अति ही सरल न हूजियै
ati hi saral na hujiyai
अति ही सरल न हूजियै देखौ ज्यों बनराय।
सीधे सीधे छेदियै बांकौ तरु बच जाय।।
भावार्थ: कवि वृंद अनुभव की बात करते हुए कहते हैं कि मनुष्य को सज्जन तो होना चाहिए, लेकिन स्वभाव से अत्यंत सरल नहीं होना चाहिए। क्योंकि जिस प्रकार जंगल में सीधे खड़े हुए वृक्षों को काट लिया जाता है और टेढ़े खड़े वृक्षों को छोड़ दिया जाता है, उसी प्रकार इस संसार में सज्जनों का सहज ही शोषण हो सकता है, टेढ़े अर्थात दुर्जन का नहीं।
- पुस्तक : सतसई सप्तक (पृष्ठ 299)
- संपादक : श्यामसुंदर दास
- प्रकाशन : हिंदुस्तानी एकेडमी
- संस्करण : 1931
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