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पुरानी डायरी के पन्ने-2

purani Dayri ke panne 2

उपेंद्रनाथ अश्क

उपेंद्रनाथ अश्क

पुरानी डायरी के पन्ने-2

उपेंद्रनाथ अश्क

और अधिकउपेंद्रनाथ अश्क

    आकाशगामी

    सुंदर तन्वी के गुलाबी गाल पर आँसू का कण अहंकार के नशे में काँप उठा, वह उस साम्राज्य का स्वामी था, जहाँ देवताओं के पंख भी जलते थे।

     

    फूल के रेशमी बिछोने पर शबनम का मोती सूरज की पहली किरण के साथ जागा और उसने गर्व से अंगड़ाई ली— किरण को बुलंदी में भी पस्ती थी और उसकी पस्ती में भी बुलंदी।

     

    जल-थल का स्वामी—चक्रवर्ती राम्राट्—अपने महल की सबसे ऊँची छत पर बैठा अपने साम्राज्य के विस्तार को सोल्लास निरख रहा था, जो उसके एक हल्के से भ्रू-भंग पर अस्त-व्यस्त हो सकता था।

     

    और धरती अपनी बाहें फैलाए,  इन सब आकाशगामियों को अपनी मिट्टी में फ़ना कर देने को तत्पर थी।

     

    3 जुलाई 1931

     

    आँसुओं का गीत

    कभी सोचता हूँ—ज़िंदगी एक आँसुओं का गीत है शायद।

     

    बचपन रोते बीतता है, जवानी इस या उसके लिए लंबी साँस भरते गुज़रती है और बुढ़ापा जवानी की याद में आँसू बहाते।

     

    हँसी के क्षण शायद इसलिए आ जाते हैं कि हम साँस ले सकें और आँसुओं के इस गीत को जारी रख सकें।

     

    लेकिन शुक्र यही है कि मैं कभी ही ऐसा सोचता हूँ, नहीं तो ज़िंदगी को जीना कठिन हो जाए।

     

    4 जुलाई 1931

     

    कगार का दर्प

    कगार ने दर्प से सिर ऊँचा किया और नीचे बहने वाली नदी की ओर देखकर कहा “मेरी शान ही में तेरी शान है, मैं न होऊँ तो तुझे कोई नदी न कहे।”

     

    नदी ज़ोर से हँसी और दूसरे रेले में उसने कगार को बहा दिया।

     

    6 अगस्त 1931

     

    कवि-गुरु से

    तेरे पास कई तरह के शागिर्द आते हैं।

     

    कुछ तुझसे अपने लिए कविताएँ लिखवाते हैं कि वे तेरे तुफ़ैल कुछ ख्याति पा सकें। ये सब भिखारी हैं। इनकी झोली में कुछ फ़ालतू छंद डाल दे, ये उन्हीं से संतुष्ट हो जाएँगे, कवि-गुरु बनना इनके भाग्य में नहीं।

     

    वे जो तेरे पास आते ही झुक जाते हैं, तेरे चरण चूमते हैं, तेरी प्रतिभा की प्रशंसा करते नहीं थकते, डाकू हैं। बातों के भुलावे में तेरी सारी पूँजी छीन लेना चाहते हैं। इनको प्रश्रय न दे!

     

    वह जो चुपचाप तेरे पास आता है और तेरे सामने अपनी टूटी-फूटी कविताएँ सुवारार्थ रख देता है, तू ठीक कर देता है तो ले जाता है, नहीं चुपचाप चला जाता है, वही तेरा असली शागिर्द है। इसकी सहायता कर और अपनी पूँजी इसे सौंप, यही तेरा नाम

    रौशन करेगा।

     

    6 सितंबर 1931

     

    ग़रीब की शिकायत

    “यदि मुझे धन-वैभव न दिया था तो दिल इतना उदार क्यों दिया?”  निर्धन ने लंबी साँस भरकर कहा।

     

    “अमीरों की तंग-दिली देखकर!” दिल बोल उठा।

     

    10 अक्तूबर 1931

    स्रोत :
    • पुस्तक : ज़्यादा अपनी : कम पराई
    • रचनाकार : उपेंद्रनाथ अश्क
    • प्रकाशन : नीलाभ प्रकाशन
    • संस्करण : 1959
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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