उपेंद्रनाथ अश्क के डायरी
पुरानी डायरी के पन्ने-1
महत्त्वाकांक्षा आँसू बनकर मत गिरो, बादल बनकर बरसो। बादल बनकर मत बरसो, नदी बनकर चलो। नदी बनकर मत चलो, महानद का प्रवाह धरो। महानद का प्रवाह छोड़ो, सागर का विस्तार गहो! 24 जनवरी 1931 सिर-फिरा कवि महाराज सभा में पधारे तो सारी की सारी सभा