एकदरन गजबदन, सदनबुधि, मदनकदन सुत।
गौरिनंद आनंनकंद जगबंद, चंदजुत॥
सुखदायक दायक सुकीर्ति जगनायक-नायक।
खलघायक घायक दरिद्र सब लायक-लायक॥
गुरु गुनअनंत भगवंत भव भगतिवंत-भवभय हरन।
जय केसवदास निवासनिधि लंबोदर असरन सरन॥
एक दाँत वाले, गजमुख, बुद्धि के घर, कामदेव का नाथ करने वाले महादेव के पुत्र, अपनी माता पार्वती को आंनदित करने वाले, आनंद की जड़, संसार के वंदनीय, ललाट पर चंद्रमा धारण करने वाले, सुखदायक, कीर्ति देने वाले, त्रिदेवों के भी स्वामी, दुष्टों को मारने वाले, दरिद्रता को दूर करने वाले, सब योग्यों से भी योग्य, असंख्य बड़े गुण वाले, संसार में समस्त समृद्धियों से संयुक्त, भक्तों का जन्म मरण का भय हरने वाले, निधियों के निवास-स्थान, असहाय को भी आश्रय देने वाले लंबोदर श्री गणेश जी की जय हो।
- पुस्तक : रसिकप्रिया (पृष्ठ 55)
- संपादक : प्रियाप्रसाद तिलक
- रचनाकार : केशवदास
- प्रकाशन : कल्याणदास एंड ब्रदर्स ज्ञानवापी, वाराणसी
- संस्करण : 1967
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