हम नईं जात चराबे गईयाँ
ham na.ii.n jaat charaabe ga.iiyaa.n
परमलाल कुशवाहा ‘परम’
Paramlaal Kushwaha 'param'
हम नईं जात चराबे गईयाँ
ham na.ii.n jaat charaabe ga.iiyaa.n
Paramlaal Kushwaha 'param'
परमलाल कुशवाहा ‘परम’
और अधिकपरमलाल कुशवाहा ‘परम’
हम नईं जात चराबे गईयाँ, करे बाई सें नईयाँ।
भोंरें आ रईं आज सखन संग, खेली चइयाँ-मइयाँ।
काँटे छिदे उतै मधुवन में, नइयाँ पाँव पनइयाँ।
‘परम’ कहत पुचकार जसोदा, ललै उठा लये कइयाँ॥
- पुस्तक : बुंदेलखंड की फागें (पृष्ठ 86)
- संपादक : अयोध्या प्रसाद गुप्त 'कुमुद'
- रचनाकार : परमलाल कुशवाहा ‘परम’
- प्रकाशन : उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी
- संस्करण : 2000
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