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प्रेमचंद-जयंती पर इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में प्रेमचंद की कहानियों की नाट्य-प्रस्तुति

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिंदी एवं आधुनिक भारतीय भाषा विभाग ने प्रेमचंद-जयंती के अवसर पर 31 जुलाई 2025 को एक विशेष नाट्य कार्यक्रम ‘नाट्य पाठ 5.0’ का आयोजन किया। यह आयोजन विश्वविद्यालय के यूनिवर्सिटी थिएटर के सहयोग से किया गया, उनकी ओर से प्रेमचंद की तीन कालजयी कहानियों—‘सभ्यता का रहस्य’, ‘सत्याग्रह’ और ‘क़ातिल’—की प्रभावशाली नाट्य पाठ प्रस्तुति की गई।

प्रेमचंद केवल कथाकार नहीं थे, वह यथार्थ के दस्तावेज़कार थे। उनके साहित्य में समाज की आत्मा बोलती है, शोषण के ख़िलाफ़ प्रतिरोध की आहट सुनाई देती है और पाखंड को चुनौती देती संवेदना दिखाई देती है। ‘नाट्य पाठ 5.0’ में इन कहानियों को जिस तरह मंच पर प्रस्तुत किया गया, वह सिर्फ़ प्रस्तुति नहीं, एक विचारशील संवाद था—प्रेमचंद के समय से आज तक की यात्रा का आईना। ‘सभ्यता का रहस्य’ ने उस तथाकथित आधुनिकता पर सवाल उठाया, जिसमें बाहरी चमक के पीछे छिपा लालच और हिंसा छिपी होती है। यह प्रस्तुति बताती है कि ‘सभ्यता’ का नाम लेकर समाज किस तरह अपने ऐब छिपाता है। ‘सत्याग्रह’ कहानी में पाखंड के मुखौटे को उतार फेंकने की कोशिश थी। धार्मिकता और नैतिकता के नाम पर जो छल होता है, प्रेमचंद वहाँ अपने पात्रों के माध्यम से एक नई सोच पैदा करते हैं। ‘क़ातिल’ ने सबसे जटिल प्रश्न उठाया—क्या किसी महान् उद्देश्य के लिए की गई हत्या को भी हत्या ही कहा जाएगा? क्या क्रांति की राह पर बहा ख़ून भी न्यायसंगत हो सकता है?
इन तीनों कहानियों के पाठ में प्रेमचंद के गद्य की धार, समाज के प्रति उनकी संवेदनशील दृष्टि और मानवीय मूल्य एक नई चमक के साथ उपस्थित हुए।
कार्यक्रम का प्रमुख बिंदु रहा छात्रों की भागीदारी। मंच पर साक्षी, शांभवी, सभ्यता, अंकिता, प्राची, अनामिका, सुमन, आशीष, रीति, निशांत, श्रीह, सृष्टि, अंकित, प्रखर, अनन्त, हर्षित, स्वीटी, प्राची, सत्यवान, विवेक, नंदिनी, दीपशिखा, शानू, दुर्गेश, शिवम और माधवी ने इन कहानियों को जीवंत कर दिया। कार्यक्रम का संचालन श्रेया ने अत्यंत संयम और आत्मीयता से किया।

इस अवसर पर हिंदी विभाग की अध्यक्ष प्रो. लालसा यादव, प्रो. प्रणय कृष्ण, प्रो. योगेंद्र प्रताप सिंह, प्रो. शिव प्रसाद शुक्ल, प्रो. बृजेश पांडे, डॉ. सूर्यनारायण, डॉ. लक्ष्मण गुप्ता, डॉ. संतोष सिंह, डॉ. मीना कुमारी, डॉ. प्रचेतस, प्रवीण शेखर सहित विभाग के सभी शिक्षकगण उपस्थित रहे। इसके अलावा हिंदी विभाग एवं विश्वविद्यालय के अन्य संकायों से भी बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएँ नाट्य-पाठ में मौजूद रहे।

यूनिवर्सिटी थिएटर के सहयोग से किए गए इस नाट्य-पाठ का उद्देश्य सिर्फ़ अभिनय या पाठ करना नहीं था—यह प्रेमचंद के विचारों का पुनर्पाठ था। कार्यक्रम से यह बताने की कोशिश थी कि प्रेमचंद आज भी प्रासंगिक हैं, बल्कि शायद पहले से कहीं अधिक। जिस तरह हमारे समय में भी धर्म, नैतिकता, सत्ता और न्याय के नाम पर भ्रम और हिंसा फैलाई जा रही है, उसमें प्रेमचंद का साहित्य हमें ज़मीन पर टिके रहने का रास्ता दिखाता है। इस आयोजन से यह भी साफ़ हुआ कि साहित्य और रंगकर्म मिलकर कितनी बड़ी सामाजिक भूमिका निभा सकते हैं।

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