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रसिक अली

- 1852 | पोरबंदर, गुजरात

रसिक अली की संपूर्ण रचनाएँ

दोहा 28

दास दासि अरु सखि सखा, इनमें निज रुचि एक।

नातो करि सिय राम सों, सेवै भाव विवेक॥

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नाम गाम में रुचि सदा, यह नव लक्षण होइ।

सिय रघुनंदन मिलन को, अधिकारी लखु सोइ॥

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बसै अवध मिथिलाथवा, त्यागि सकल जिस आस।

मिलिहैं सिय रघुनंद मोहिं, अस करि दृढ़ विश्वास॥

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होरी रास हिंडोलना, महलन अरु शिकार।

इन्ह लीलन की भावना, करे निज भावनुसार॥

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जामे प्रीति लगाइये, लखि कछु तिही विपरीत।

जिय अभाव आवै नहीं, सो निष्ठा की रीति॥

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