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रांगेय राघव

1923 - 1962 | आगरा, उत्तर प्रदेश

प्रगतिशील कथाकार। कहानी, उपन्यास, नाटक, आलोचना, अनुवाद आदि गद्य विधाओं के साथ-साथ पद्य लेखन में भी प्रवीण। 'मुर्दों का टीला' ख्याति का मूल आधार।

प्रगतिशील कथाकार। कहानी, उपन्यास, नाटक, आलोचना, अनुवाद आदि गद्य विधाओं के साथ-साथ पद्य लेखन में भी प्रवीण। 'मुर्दों का टीला' ख्याति का मूल आधार।

रांगेय राघव का परिचय

मूल नाम : टी.एन.बी.आचार्य (तिरूमल्लै नंबकम् वीरराघव आचार्य)

जन्म : 17/01/1923 | आगरा, उत्तर प्रदेश

निधन : 12/09/1962 | मुंबई, महाराष्ट्र

रांगेय राघव का जन्म 17 जनवरी सन्‌ 1923 को आगरा में हुआ। माता कन्नड़ और पिता तमिल थे। आपका मूल नाम टी० एन० वी० आचार्य था। लेखन के क्षेत्र में आने पर आपने 'रांगेय राघव” नाम अपनाया था। आपकी मातृभाषा तमिल थी। आपके परिवार के लोग काफ़ी पहले मथुरा में आकर बस ग़ए थे और भरतपुर के पास वैर नामक स्थान में आपकी जमींदारी थी। आगरा विश्वविद्यालय से हिंदी में. एम० ए० करने के बाद वहीं से सन्‌ 1948 मे ‘श्री गुरु गोरखनाथ और उनका युग’ विषय पर आपने पीएचडी की।

आप काफ़ी लंबे अरसे तक प्रगतिशील आंदोलनों के प्रमुख सूत्रधार रहे। अपने संक्षिप्त साहित्यिक जीवन में 150 के लगभग साहित्यिक कृतियाँ प्रदान कर गए हैं। कविता, कहानी, उपन्यास, आलोचना, इतिहास और कला आदि विषयों से सम्बन्धित आपकी अनेक महत्त्वपूर्ण कृतियाँ इनमें शामिल हैं।

1944 के बंगाल के अकाल के दिनों में भयंकर विभीषिका से आक्रांत प्रदेश की पैदल यात्रा  करके उन्होंने जो रिपोर्ताज लिखे, सर्वप्रथम उन्हीं से हिंदी के अनेक साहित्यकारों का ध्यान डॉ० राघव की ओर गया था और जब वे 'हंस' में प्रकाशित होने प्रारंभ हुए तो साहित्यिक क्षेत्र में 'रिपोर्ताज-लेखन की परंपरा-सी चल पड़ी।  
सन्‌ 1946 में जब आपका पहला उपन्यास ‘घरौंदे' प्रकाशित हुआ तो उसने भी लेखन-शैली और कथावस्तु के कारण हिंदी के पाठकों और अध्येताओं को अपनी ओर आकृष्ट किया। आपने 50 से अधिक उपन्यास लिखे। ‘भारती के सपूत', 'लोई का ताना', 'रत्ना की बात', 'देवकी का बेटा', 'यशोधरा जीत गई', 'लखमा की आँखें', 'धूनी और धुआँ’, तथा 'मेरी भव बाधा हरो' आदि उपन्यास ऐतिहासिक और मिथिकीय इतिहास पर आधृत हैं। जहाँ आपने भारतेन्दु, कबीर, तुलसी, कृष्ण, बुद्ध, विद्यापति, गोरखनाथ और बिहारी आदि से संबंधित चरित्रों को केंद्र रखा है। आपके अन्य प्रमुख उपन्यासों में 'मुर्दों का टीला', ‘सीधा-सादा रास्ता’ और 'कब तक पुकारूँ’ हैं।

अपने साहित्यिक जीवन के पूर्व में आपने कहानियाँ अधिक लिखी थीं; ‘देवदासी', 'साम्राज्य का वैभव’, 'जीवन के दाने', ‘अधूरी सूरत', 'समुद्र के फेन', 'अंगारे न बुझे', ‘इंसान पैदा हुआ' और 'पाँच गधे” आदि आपकी कहानियों के संग्रह हैं। ‘गदल' शीर्षक आपकी कहानी हिंदी की सर्वोत्तम कहानियों में से एक है। 'तूफ़ानों के बीच' आपका एकमात्र रिपोर्ताज है

कविता-लेखन में भी आपकी 'अजेय खंडहर', 'पिघलते पत्थर', ‘राह के दीपक', 'रूप की छाया' और ‘मेधावी' आदि कृतियाँ विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। नाटक और एकांकी भी आपने बहुत लिखे। आपका 'विरूढक' नाटक है और 'इंद्र-धनुष' पुस्तक एकांकियों का संकलन। 

'आधुनिक हिंदी कविता में प्रेम और शृंगार', 'आधुनिक हिंदी कविता में विषय और शैली, 'काव्य, कला और शास्त्र', ‘काव्य, यथार्थ और प्रगति’, 'समीक्षा और आदर्श', 'महाकाव्य विवेचन', 'प्रगतिशील साहित्य के मानदंड' और तुलसीदास का कथा-शिल्प' आदि सैद्धांतिकी और आलोचना से संबंधित पुस्तकें हैं। ‘प्राचीन भारतीय परंपरा और इतिहास' तया 'भारतीय-चिन्तन' जैसे आपके ग्रन्थ इतिहास से संबंधित हैं। ‘प्राचीन भारतीय परंपरा और इतिहास' के लिए सन्‌ 1951 में 'हरजीमल डालमिया पुरस्कार” मिला।

आपने 'शेक्सपीयर' के प्रायः सभी नाटकों का हिंदी में सरल और सुबोध अनुवाद किया। संस्कृत के अमर ग्रन्थों ‘ऋतु संहार', 'मेघदूत', 'दशकुमार चरित', ‘मृच्छकटिकम्' और ‘मुद्राराक्षस’ आदि को भी आपने हिंदी पाठकों के लिए सुलभ किया। 'गीत गोविंद” का आपके द्वारा किया गया अनुवाद भी सराहनीय रहा। 
डॉ० रागेय राघव एक उत्कृष्ट चित्रकार भी थे।

रांगेय राघव का निधन 12 सितंबर सन्‌ 1962 को बंबई के 'टाटा मेमोरियल अस्पताल' में हुआ, जहाँ वे कैंसर का इलाज करा रहे थे।

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