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रामरसरंगमणि

रामभक्ति शाखा के 'रसिक संप्रदाय' से संबद्ध कवि।

रामभक्ति शाखा के 'रसिक संप्रदाय' से संबद्ध कवि।

रामरसरंगमणि की संपूर्ण रचनाएँ

दोहा 5

बंदौं दूलह वेष दुति, सिय दुलहिनि युत राम।

गौरि श्याम रसरंगमणि, जन-मन पूरन काम॥

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बंदौं सिंहासन लसे, दुलहिनि दूलह चारि।

पूजहिं अंब कदंब लखिं, रसरंगहु बलिहारि॥

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बंदौं सीताकांत सुख, रस शृंगार स्वरूप।

रसिकराज रसरंगमणि, सखा सुबंधु अनूप॥

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बंदौं बर दुलहिनि सकल, आए अवध दुआर।

मुदित मातु परिछन करहिं, सुख रसरंग अपार॥

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बन्दौं भरताग्रज मधुर, प्रेम सख्य रस रूप।

कृपासिंधु रसरंगमणि, बंधु अखिल रस भूप॥

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पद 1

 

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