राजेंद्र यादव की कहानियाँ
जहाँ लक्ष्मी क़ैद है
ज़रा ठहरिए, यह कहानी विष्णु की पत्नी लक्ष्मी के बारे में नहीं, लक्ष्मी नाम की एक ऐसी लड़की के बारे में है जो अपनी क़ैद से छूटना चाहती है। इन दो नामो में ऐसा भ्रम होना स्वाभाविक है जैसा कि कुछ क्षण के लिए गोविंद को हो गया था। एकदम घबराकर जब गोविंद
खेल-खिलौने
बड़े आदर के साथ जैसे ही हमने दोनों हाथ माथे तक उठाकर नमस्कार किया, कार घुर्रघूँ करके हमारे बीच से चल दी। एक ओर मैं खड़ा था, दूसरी ओर बाबू जी। दरवाज़े पर झुंड का झुंड बनाए वे लोग झाँकती हुई कार की ओर हाथ जोड़ रही थी। जब वे उधर कार की ओर देखतीं तो बड़ी
संबंध
शायद मरते वक़्त वह खिलखिलाकर हँसा था, मन में पहला विचार यही आया। बाक़ी खोपड़ी कुछ इस तरह से जलकर काली पड़ गई थी, और आस-पास की खाल कुछ ऐसे वीभत्स रूप से सिकुड़ी हुई थी कि सिर्फ़ बत्तीसी की सफ़ेदी ही पहली निगाह में दीखती थी और बाक़ी चेहरा न देखो तो यही