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राहुल सांकृत्यायन

1893 - 1963 | आज़मगढ़, उत्तर प्रदेश

राहुल सांकृत्यायन का परिचय

 

आधुनिक हिंदी के आदि विद्वान, साहित्यकार, घुमक्कड़-शास्त्री, भाषा-विज्ञानी, धर्मशास्त्र-ज्ञाता महापंडित, राहुल सांकृत्यायन (९ अप्रैल, १८९३ ई०-१४ अप्रैल, १९६३ ई०) का जन्म जन्म उनके ननिहाल अर्थात पंदहा ग्राम, जिला आजमगढ़ (उत्तर प्रदेश) हुआ। राहुल जी की अपनी भूमि पंदहा से दस मील दूर कनैला ग्राम थी। पिता का नाम था गोवर्धन पांडे और माता का नाम था कूलवन्ती। कुल चार भाई और एक बहन, परंतु बाल्यावस्था में ही बहन का देहांत हो गया। राहुल जी भाइयों में ज्येष्ठ थे। उनका मूल नाम केदारनाथ पांडे था। 'राहुल' नाम तो बाद में पड़ा, जब सन्‌ १९३० ई० में लंका में वे बौद्ध हुए। बौद्ध होने के पूर्व राहुल जी 'दामोदर स्वामी' के नाम से भी पुकारे जाते थे। 'राहुल' नाम के आगे 'सांस्कृत्यायन' इसलिए लगा कि पितृकल सांकृत्य गोत्रीय है। 

 

राहुल जी का बाल्य जीवन ननिहाल, पंदहा ग्राम, में व्यतीत हुआ। राहुल जी के नाना का नाम पंडित राम शरण पाठक था जो अपनी युवावस्था में फ़ौज में नौकरी कर चुके थे। नाना के मुख से सुनी हुई फौजी जीवन की कहानियाँ, शिकार के अद्भुत वृतांत, देश के विभिन्न प्रदेशों का रोचक वर्णन, अजंता-एलोरा की किंवदंतियाँ तथा नदियों, झरनों के वर्णन आदि ने राहुल जी के आगामी जीवन की भूमिका तैयार कर दी। इसके अतिरिक्त दर्जा ३ की उर्दू किताब में पढ़ा हुआ 'नवाज़िंदा-बाज़िंदा' का शेर "सैर कर दुनियाँ की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ, ज़िंदगी गर कुछ रही तो नौजवानी फिर कहाँ”-राहुल जी को दूर देश जाने के लिए प्रेरित करने लगा।

कुछ समय पश्चात्‌ घर छोड़ने का संयोग यों उपस्थित हुआ कि घी की मटकी सम्हली नहीं और दो सेर घी ज़मीन पर बह गया। अब नाना की डाँट का भय, नवाज़िंदा बाज़िंदा का वह शेर और नाना के ही मुख से सुनी कहानियाँ ने मिलकर केदारनाथ पांडे (राहुल जी) को घर से बाहर निकाल दिया।

संक्षेप में राहुल की जीवन-यात्रा के अध्याय इस प्रकार हैं : पहली उड़ान वाराणसी तक, दूसरी उड़ान कलकत्ता तक, तीसरी उड़ान पुनः कलकत्ता तक, पुनः वापस आने पर हिमालय की यात्रा, सन्‌ १९१० ई० से १९१४ तक वैराग्य का भूत और हिमालय, वाराणसी में संस्कृत का अध्ययन, परसा के महंत का साहचर्य, परसा से पलायन, दक्षिण भारत की यात्रा। 'नव प्रकाश' “(१९१५-२२), आर्य मुसाफिर विद्यालय, आगरा में पढ़ाई; लाहौर में मिशनरी, पुन: घुमक्कड़ी का भूत, कुर्ग में चार मास। राजनीति में प्रवेश (१९२१-२७), छपरा के लिए प्रस्थान, बाढ़-पीड़ितों की सेवा, सत्याग्रह की तैयारी, बक्सर जेल में छः मास, जिला कांग्रेस के मंत्री, नेपाल में डेढ़ मास, हजारीबाग जेल में, राजनीतिक शिथिलता, पुन: हिमालय, कौंसिल का चुनाव। लंका के लिए प्रस्थान (१९२७, लंका में १९ मास, नेपाल में अज्ञात वास, तिब्बत में सवा वर्ष, लंका में दूसरी बार, सत्याग्रह के लिए भारत में, लंका के लिए तीसरी बार। यूरोप-यात्रा (१९३ २-३३)- इग्लैंड और यूरोप में, द्वितीय लद्दाख यात्रा, द्वितीय तिब्बत यात्रा, जापान, कोरिया, मंचूरिया, सोवियत भूमि की प्रथम झाँकी (१९३५ ई०), ईरान में पहली बार, तिब्बत में तीसरी बार (१९३६ ई०) सोवियत भूमि में दूसरी बार (१९३७ ई०), तिब्बत में चौथी बार (१९३८ ई०), किसान मजदूरों के लिए आंदोलन (१९३८-४४), किसान संघर्ष (१९३६), सत्याग्रह भूख हड़ताल; सजा, जेल और एक नए जीवन का प्रारंभ-कम्युनिस्ट पार्टी के मेम्बर। पुनः जेल में २९ मास (१९४०-४२ ई०), इसके बाद सोवियत रूस के लिए पुनः प्रस्थान। रूस से लौटने के बाद राहुल जी भारत में रहे और कुछ समय पश्चात चीन चले गए, फिर लंका।

राहुल जी की प्रारंभिक यात्राओं ने दो दिशाएँ दीं। एक तो प्राचीन एवं अर्वांचीन विषयों का अध्ययन तथा दूसरे देश-देशांतरों की अधिक से अधिक प्रत्यक्ष जानकारी प्राप्त करना। इन दो प्रवृत्तियों से अभिभूत होकर राहुल जी महान पर्यटक और महान्‌ अध्येता बने। कट्टर सनातनी ब्राह्मण कुल में जन्म लेकर भी सनातन धर्म की रुढियों को राहुल जी ने अपने ऊपर से उतार फेंका और जो भी तर्कवादी धर्म या तर्कवादी समाज शास्त्र उनके सामने आते गए, उसे ग्रहण करते गए और 'शनैः शनैः उन धर्मों एवं शास्त्रों के भी मूल तत्वों को अपनाते हुए उनके बाह्थ ढाँचों को छोड़ते गए। सनातन धर्म से आर्य समाज, आर्य समाज से बौद्ध धर्म और बौद्धधर्म से मानव धर्म- यह राहुल जी के धार्मिक विकास का क्रम है। इसी प्रकार काश्तकारी से जमींदारी, जमींदारी से महंती, महंती से कांग्रेस, कांग्रेस से किसान आंदोलन और किसान आंदोलन से साम्यवाद- राहुल जी के सामाजिक चिंतन का क्रम है। राहुल जी किसी धर्म या विचारधारा के दायरे में बैँध नहीं सके। 'मंज्झिम निकाय' के सूत्र का हवाला देते हुए राहुल जी ने अपनी 'जीवन यात्रा' में इस तथ्य का स्पष्टीकरण इस प्रकार किया है, “बड़े की भाँति मैंने तुम्हें उपदेश दिया है, वह पार उतरने के लिए हैं, सिर पर ढोये-ढोये फिरने के लिए नहीं-तो मालूम हुआ कि जिस चीज़ को मैं इतने दिनों से ढूँढ़ता रहा हूँ, वह मिल गई।

यद्यपि राहुल जी के जीवन में पर्यटक-वृत्ति सदैव प्रधान रही परंतु उनका पर्यटन केवल पर्यटन के लिए नहीं रहा। पर्यटन के मूल में अध्ययन की प्रवृत्ति सवोपरि रही। अनेक धार्मिक एवं राजनीतिक वलयों में रहने के बाद भी उनके अध्ययन एवं चिंतन में कभी जड़ता नहीं आई। 

वाराणसी में जब॑ संस्कृत से अनुराग हुआ तो संपूर्ण संस्कृत साहित्य एवं दर्शनादि को पढ़ लिया। कलकत्ता में अँग्रेज़ी से पाला पड़ा तो कुछ समय में अँग्रेज़ी के ज्ञाता बन गए। आर्य समाज का जब प्रभाव पड़ा तो वेदों को मथ डाला। बौद्धधर्म की ओर जब झुकाव हुआ तो पाली, प्राकृत, अप्रभंश, तिब्बती, चीनी, जापानी, एवं सिंहली भाषाओं की जानकारी लेते हुए संपूर्ण बौद्ध-ग्रंथों का मनन किया और सर्वश्रेष्ठ उपाधि 'त्रिपिटकाचार्य' की पदवी पाई। साम्यवाद के क्रोड़ में जब राहुल जी गए तो कार्ल मार्क्स, लेनिन तथा स्तालिन के दर्शन से पूर्ण परिचित हुए। प्रकारांतर से राहुल जी इतिहास, पुरातत्त्व, भाषा शास्त्र एवं राजनीति शास्त्र के अच्छे ज्ञाता थे।

अपनी 'जीवन यात्रा' में राहुल जी ने स्वीकार किया है कि उनका साहित्यिक जीवन सन्‌ १९२७ ई० से प्रारंभ होता है। वास्तविक बात तो यह है कि राहुल जी ने किशोरावस्था पार करने के बाद ही लिखना शुरू कर दिया था। जिस प्रकार उनके पाँव नहीं रुके, उसी प्रकार उनके हाथ की लेखनी भी कभी नही रुकी। उनकी लेखनी की अजस्रधारा से विभिन्न विषयों पर प्रायः १५० से अधिक ग्रंथ प्रणीत हुए हैं। प्रकाशित ग्रंथों की संख्या सम्भवतः १२९ है। लेखों, निबंधों एवं वक्तव्यों की संख्या हज़ारों में है। 

राहुल जी ने हिंदी साहित्य के अतिरिक्त धर्म, दर्शन, लोक साहित्य, यात्रा साहित्य, जीवनी, राजनीति, इतिहास, संस्कृत ग्रंथों की टीका और अनुवाद, कोश, तिब्बती भाषा आदि विषयों पर अधिकार के साथ लिखा है। हिंदी भाषा और साहित्य के क्षेत्र में राहुल जी ने 'अपभ्रंश काव्य साहित्य', 'दक्खिनी हिंदी साहित्य', 'आदि हिंदी की कहानियाँ’ प्रस्तुत कर लुप्तप्राय निधि का उद्धार किया है। 

सत्तर वर्ष की आयु में वाराणसी में १४ अप्रैल, १९६३ ई० को उनका निधन हुआ।

उनकी कुछ प्रकाशित कृतियाँ: 

कहानियाँ

सतमी के बच्चे 
वोल्गा से गंगा
बहुरंगी मधुपुरी
कनैला की कथा

उपन्यास

बाईसवीं सदी
जीने के लिए
सिंह सेनापति
जय यौधेय
भागो नहीं, दुनिया को बदलो
मधुर स्वप्न
राजस्थान निवास
विस्मृत यात्री
दिवोदास
सप्तसिंधु

यात्रा वृत्तांत

मेरी जीवन यात्रा ‌‌
मेरी लद्दाख यात्रा
किन्नर प्रदेश में
रूस में 25 माश
युरोप यात्रा

जीवनियाँ

सरदार पृथ्वीसिंह
नए भारत के नए नेता
बचपन की स्मृतियाँ
अतीत से वर्तमान
स्टालिन
लेनिन
कार्ल मार्क्स
माओ-त्से-तुंग
घुमक्कड़ स्वामी
असहयोग के मेरे साथी
जिनका मैं कृतज्ञ
वीर चंद्रसिंह गढ़वाली
सिंहल घुमक्कड़ जयवर्धन
कप्तान लाल
सिंहल के वीर पुरुष
महामानव बुद्ध

यात्रा साहित्य

लंका
जापान
इरान
किन्नर देश की ओर
चीन में क्या देखा
मेरी लद्दाख यात्रा
मेरी तिब्बत यात्रा
तिब्बत में सवा वर्ष
रूस में पच्चीस मास
विश्व की रूपरेखा
ल्हासा की ओर

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