लोरी
वह अपना मुँह ख़ामोशी से भींच लेता और चक्के के गोल पहियों के चारों ओर घूमता हुआ सिर्फ़ अपने दाँतों का अस्तित्व अनुभव करता, जहाँ केवल एक ख़ामोश आगंतुक का आगमन होता था और थी उसकी ज़बान। वह अपनी मुट्ठियाँ भींचता और दाँत पीसता। क्रोध से लाल हुई आँखों और भारी