इसराइल का परिचय
जनवादी आंदोलन के महत्वपूर्ण कथाकार इसराइल का जन्म बिहार के गोपालगंज जिले के मुहम्मदपुर गाँव के एक मज़दूर परिवार में 5 नवंबर 1934 के दिन हुआ था।
पिता का नाम दिला मीयां और और माता का नाम खुदैजा बीबी था। पिता और चाचा कोलकाता के निकट उत्तर 24 परगना के कांकीनाड़ा में चटकल में काम करते थे।
कथाकार इसराइल के पिता चटकल में मज़दूरों के सरदार थे। इसीलिए उनमें एक प्रकार का स्वाभिमान और आत्म-विश्वास था।
मिडिल स्कूल के एक अध्यापक के जरिए इसराइल का साहित्य से परिचित हुआ। घर की मजबूरियों के चलते इसराइल की औपचारिक शिक्षा आगे नहीं बढ़ पाई और छोटी उम्र में ही नौकरी के लिए चाचा के साथ कांकीनाड़ा आना पड़ा।
1962 से कलकत्ता में साप्ताहिक ‘स्वाधीनता’ में काम करने लगे। ‘स्वाधीनता’ में काम के लिए आने के पहले ही इसराइल हिंदी की प्रगतिशील साहित्य परंपरा से परिचित थे। यशपाल, राहुल और कृश्नचंदर जैसे कथाकारों, उपन्यासकारों की रचनाएं पढ़ चुके थे। बांग्ला के समरेश बसु, माणिक बंदोपाध्याय के साहित्य से भी परिचित थे। ‘स्वाधीनता’ में महादेव साहा, सूर्यदेव उपाध्याय और अयोध्या सिंह ने भी उन्हें लिखने के लिए प्रेरित किया।
हिंदी साहित्य की दुनिया में इसराइल अपने मज़दूर जीवन के बिल्कुल नए अनुभवों और प्रतिबद्ध रचनादृष्टि की बदौलत एक नई पहचान के कथाकार के रूप में जाने जाने लगे।
1999 में अयोध्या सिंह की मृत्यु के बाद वे ‘स्वाधीनता’ साप्ताहिक के संपादक बने, जिसमें वे साठ के दशक के शुरुआत में पूरा वक्ती कार्यकर्ता के रूप में काम कर रहे थे और आख़िरी दिन तक वे इस पद पर बने रहे।
दिसंबर 2001 के शुरू के दिनों में ही उनको बुख़ार हुआ था। बुख़ार कम नहीं हुआ, तो जांच के उपरांत पाया गया कि उन्हें पीलिया है। इसी बीमारी ने 26 दिसंबर 2001 को उनकी जान ले ली। प्रकाशित रचनाएँ: फ़र्क, रोजनामचा (कहानी-संग्रह)। उपन्यास: रोशन