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हरिहर प्रसाद

रामभक्ति शाखा के रसिक संप्रदाय के भक्त-कवि।

रामभक्ति शाखा के रसिक संप्रदाय के भक्त-कवि।

हरिहर प्रसाद की संपूर्ण रचनाएँ

दोहा 4

बिहरत गलबाहीं दिये, सिय रघुनन्दन भोर।

चहुँ दिशि ते घेरे फिरत, केकी भँवर चकोर॥

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इत कलँगी उत चन्द्रिका, कुंडल तरिवन कान।

सिय सिय बल्लभ मों सदा, बसो हिये बिच आन॥

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जैति सिया तड़िता बरण, मेघ बरण जय राम।

जै सिय रति मद नाशिनी, जै रति पति जित साम॥

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विधि हरिहर जाकहँ जपत, रहत त्यागि सब काम।

सो रघुबर मन महँ सदा, सिय को सुमिरत नाम॥

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पद 5

 

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