साहिर लुधियानवी
मुझे अच्छी तरह याद है। उस रोज़ दिन भर बारिश होती रही। शाम के वक़्त बूँदें ज़रा थम गई थीं, लेकिन प्रकाश पर अभी तक बादल छाए थे। ऐसा लगता था कि अभी भी मेंह फिर बरसने लगेगा। मैं और गोपाल मित्तल ‘मकतबा-उर्दू’ से ब्रांडर्थ रोड की तरफ़ जा रहे थे। अनारकली के