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अमृतलाल नागर

1916 - 1990 | आगरा, उत्तर प्रदेश

समादृत उपन्यासकार-कथाकार। पटकथा-लेखन में भी योगदान। साहित्य अकादेमी-पुरस्कार से सम्मानित।

समादृत उपन्यासकार-कथाकार। पटकथा-लेखन में भी योगदान। साहित्य अकादेमी-पुरस्कार से सम्मानित।

अमृतलाल नागर का परिचय

जन्म : 01/08/1916 | आगरा, उत्तर प्रदेश

निधन : 01/02/1990

पुरस्कार : साहित्य अकादेमी पुरस्कार(1967) | पद्म भूषण पुरस्कार(1981)

अमृतलाल नागर का जन्म 17 अगस्त 1916 को उत्तर प्रदेश के गोकुलपुरा में एक गुजराती ब्राह्मण परिवार में हुआ। पिता का नाम राजाराम नागर और माता का नाम विद्यावती नागर था। बाल्यकाल में ही कांग्रेस की वानर सेना के सक्रिय सदस्य बन गए थे और अँग्रेज़ सरकार विरोधी गतिविधियों में अपनी भूमिका निभाने लगे थे। आरंभिक शिक्षा-दीक्षा के बाद उन्होंने इतिहास, पुरातत्व और समाजशास्त्र का अध्ययन किया। वह बहुमुखी प्रतिभा के धनी होने के साथ ही बहुभाषी भी थे और हिंदी के अतिरिक्त मराठी, गुजराती, बांग्ला एवं अँग्रेज़ी भाषा का ज्ञान रखते थे। 

अमृतलाल नागर को साहित्यिक संस्कार पारिवारिक वातावरण में प्राप्त हुआ। युवावस्था से ही सक्रिय लेखन की ओर मुड़ गए थे और इस क्रम में उनका पहला कहानी-संग्रह ‘वाटिका’ 1935 में ही प्रकाशित हो गया था। उन्होंने एक स्वतंत्र लेखक और पत्रकार के रूप में कार्य-जीवन का आरंभ किया था। पहले कोल्हापुर से प्रकाशित होने वाले पत्र ‘चकल्लस’ का संपादन किया, फिर हिंदी सिनेमा में पटकथा-लेखन से जुड़ गए। उन्होंने कुछ वर्ष ऑल इंडिया रेडियो पर ड्रामा प्रोड्यूसर के रूप में भी कार्य किया। उस समय ऑल इंडिया रेडियो के सलाहकार मंडल में हिंदी साहित्य के भगवतीचरण वर्मा, सुमित्रानंदन पंत, उदयशंकर भट्ट और पंडित नरेंद्र शर्मा जैसे महत्त्वपूर्ण साहित्यकार शामिल थे। बाद में फिर रेडियो से अवकाश लेते हुए वह स्वतंत्र साहित्य सृजन में जुट गए। 

एक साहित्यकार के रूप में अमृतलाल नागर ने अपने समय-समाज-संस्कृति से सार्थक संवाद किया है। उन्होंने गद्य की विभिन्न विधाओं—उपन्यास, कहानी, नाटक, बाल साहित्य, फ़िल्म पटकथा, लेख, संस्मरण आदि में विपुल योगदान किया है। उनकी विशेष ख्याति एक उपन्यासकार के रूप में है। हिंदी उपन्यास की परंपरा में उन्हें प्रेमचंद, फणीश्वरनाथ रेणु, नागार्जुन, यशपाल की श्रेणी में रखकर देखा जाता है। उनके उपन्यासों का वितान वृहत है जहाँ उन्होंने प्राचीन भारतीय इतिहास और संस्कृति से लेकर तुलसी-सूर जैसी विलक्षण काव्यात्माओं और स्वतंत्रता-पूर्व भारत के राजनीतिक यथार्थ से लेकर स्वातंत्र्योत्तर भारत के बदलते सामाजिक-आर्थिक अनुभवों तक के विस्तृत भारतीय परिदृश्य पर लेखन किया है। वह अपनी कृतियों में यथार्थपरक दृष्टिकोण से भारतीय जनजीवन का जीवंत रूप प्रस्तुत करने के साथ मनुष्य और मनुष्यता का इतिहास रचते जाते हैं।
 
वह भारतीय जन नाट्य संघ, इंडो-सोवियत कल्चरल सोसाइटी, उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी, भारतेंदु नाट्य अकादमी, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान जैसी कई संस्थाओं के सम्मानित सदस्य रहे। उन्होंने मंच और रेडियों के लिए कई नाटकों का निर्देशन किया। भारत सरकार की ओर पद्म भूषण, ‘अमृत और विष’ के लिए साहित्य अकादेमी और सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार के साथ ही वह अन्य कई संस्थाओं द्वारा सम्मानित किए गए। उनकी कृतियों का अँग्रेज़ी, रुसी आदि विदेशी भाषाओं सहित विभिन्न भारतीय भाषाओं में अनुवाद किया गया है। 

प्रमुख कृतियाँ

उपन्यास : महाकाल, बूँद और समुद्र, शतरंज के मोहरे, सुहाग के नूपुर, अमृत और विष, सात घूँघट वाला मुखड़ा, एकदा नैमिषारण्ये, मानस का हंस, नाच्यौ बहुत गोपाल, खंजन नयन, बिखरे तिनके, अग्निगर्भा, करवट, पीढ़ियाँ।

कहानी-संग्रह : वाटिका, अवशेष, तुलाराम शास्त्री, आदमी नहीं! नहीं!, पाँचवाँ दस्ता, एक दिल हज़ार दास्ताँ, एटम बम, पीपल की परी, कालदंड की चोरी, एक दिल हज़ार अफ़साने (संपूर्ण कहानियाँ।)

व्यंग्य : नवाबी मसनद, सेठ बाँकेमल, कृपया दाएँ चलिए, हम फिदाए लखनऊ, चकल्लस।

नाटक : युगावतार, बात की बात, चंदन वन, चक्करदार सीढ़ियाँ और अँधेरा, उतार चढ़ाव, नुक्कड़ पार, चढ़त न दूजो रंग।

बाल साहित्य : नटखट चाची, निंदिया आ जा, बजरंगी नौरंगी, बजरंगी पहलवान, बाल महाभारत, इतिहास झरोखे, बजरंग स्मगलरों के फंदे में, हमारे युग निर्माता, अक़्ल बड़ी या भैंस, सात भाई चंपा, सोमू का जन्मदिन, त्रिलोक विजय।

अनुवाद : बिसाती (मोपासां की कहानियाँ), प्रेम की प्यास (गुस्ताव फ्लॉवर्ट के नॉवेल मैडम बोवैरी का हिंदी रूपांतरण), काला पुरोहित (एंटन चेखव की कहानियाँ), आँखों देखा गदर (विष्णु भट्ट गोडसे की मराठी कृति का अनुवाद), दो फक्कड़ (कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी के तीन गुजराती नाटकों का अनुवाद), सारस्वत (मामा वरेकर के मराठी नाटक का अनुवाद)। 

संपादन : सुनीति, सिनेमा समाचार, अल्लाह दे, चकल्लस, नया साहित्य, सनीचर, प्रसाद।
 
पटकथा और संवाद लेखन : बहुरानी, संगम, कुँवारा बाप, उलझन, राजा, पराया धन, किसी से न कहना, कल्पना, गुंजन, चोर।

रचनावली और अन्य संग्रह : अमृत मंथन (अमृतलाल नागर के साक्षात्कार), अमृतलाल रचनावली (12 खंडों में, सं। शरद नागर), फ़िल्मक्षेत्रे रंगक्षेत्रे (फ़िल्म, रंगमंच, रेडियो नाटकों पर लेख), अत्र कुशलं तत्रास्तु (अमृतलाल नागर और रामविलास शर्मा के निजी पत्र), अमृतलाल नागर रचना संचयन, संपूर्ण बाल रचनाएँ। 

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