पानी रे पानी
pani re pani
नोट
प्रस्तुत पाठ एनसीईआरटी की कक्षा पाँचवी के पाठ्यक्रम में शामिल है।
कहाँ से आता है हमारा पानी और फिर कहाँ से चला जाता है हमारा पानी? हमने कभी इस बारे में कुछ सोचा है? सोचा तो नहीं शायद, पर इस बारे में पढ़ा ज़रूर है। भूगोल की किताब पढ़ते समय जल-चक्र जैसी बातें हमें बताई जाती हैं। एक सुंदर-सा चित्र भी होता है, इस पाठ के साथ। सूरज, समुद्र, बादल, हवा, धरती फिर बरसात की बूँदें और लो फिर बहती हुई एक नदी और उसके किनारे बसा तुम्हारा, हमारा घर, गाँव या शहर। चित्र के दूसरे भाग में यही नदी अपने चारों तरफ़ का पानी लेकर उसी समुद्र में मिलती दिखती है। चित्र में कुछ तीर भी बने रहते हैं। समुद्र से उठी भाप बादल बनकर पानी में बदलती है और फिर इन तीरों के सहारे जल की यात्रा एक तरफ़ से शुरू होकर समुद्र में वापिस मिल जाती है। जल-चक्र पूरा हो जाता है।
यह तो हुई जल-चक्र की किताबी बात। पर अब तो हम सबके घरों में, स्कूल में, माता-पिता के दफ़्तरों में, कारख़ानों और खेतों में पानी का कुछ अजीब-सा चक्कर सामने आने लगा है।
नलों में अब पूरे समय पानी नहीं आता। नल खोलो तो उससे पानी के बदले सूँ-सूँ की आवाज़ आने लगती है। पानी आता भी है तो बेवक़्त। कभी देर रात को तो कभी भोर सबेरे। मीठी नींद छोड़कर घर भर की बाल्टियाँ, बर्तन और घड़े भरते फिरो। पानी को लेकर कभी-कभी, कहीं-कहीं आपस में तू-तू मैं-मैं, भी होने लगती हैं।
रोज़-रोज़ के इन झगड़े-टंटों से बचने के लिए कई घरों में लोग नलों के पाईप में मोटर लगवा लेते हैं। इससे कई घरों का पानी खिंचकर एक ही घर में आ जाता है। यह तो अपने आस-पास का हक़ छीनने जैसा काम है। लेकिन मजबूरी मानकर इस काम को मोहल्ले में कोई एक घर कर बैठे तो फिर और कई घर यही करने लगते हैं। पानी की कमी और बढ़ जाती है। शहरों में तो अब कई चीज़ों की तरह पानी भी बिकने लगा है। यह कमी गाँव शहरों में ही नहीं बल्कि हमारे प्रदेशों की राजधानियों में और दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई और बैंगलोर जैसे बड़े शहरों में भी लोगों को भयानक कष्ट में डाल देती है। देश के कई हिस्सों में तो अकाल जैसी हालत बन जाती है। यह तो हुई गर्मी के मौसम की बात।
लेकिन बरसात के मौसम में क्या होता है? लो, सब तरफ़ पानी ही बहने लगता है। हमारे-तुम्हारे घर, स्कूल, सड़कों, रेल की पटरियों पर पानी भर जाता है। देश के कई भागों बाढ़ में डूब जाते हैं। यह बाढ़ न गाँवों को छोड़ती है और न मुंबई जैसे बड़े शहरों को। कुछ दिनों के लिए सब कुछ थम जाता है, सब कुछ बह जाता है।
ये हालात हमें बताते हैं कि पानी का बेहद कम हो जाना और पानी का बेहद ज़्यादा हो जाना, यानी अकाल और बाढ़ एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। यदि हम इन दोनों को ठीक से समझ सकें और सँभाल लें तो इन कई समस्याओं से छुटकारा मिल सकता है।
चलो, थोड़ी देर के लिए हम पानी के इस चक्कर को भूल जाएँ और याद करें अपनी ग़ुल्लक को। जब भी हमें कोई पैसा देता है, हम ख़ुश होकर, दौड़कर उसे झट से अपनी ग़ुल्लक में डाल देते हैं।
एक रुपया, दो रुपया, पाँच रुपया, कभी सिक्के, तो कभी छोटे-बड़े नोट—सब इसमें धीरे-धीरे जमा होते जाते हैं। फिर जब कभी हमें कुछ पैसों की ज़रूरत पड़ती है तो इस ग़ुल्लक की बचत का उपयोग कर लेते हैं।
हक की बात
आज़ादी के बाद (पिछले साठ वर्षों में) दिल्ली में पानी की औसत माँग या खपत लगभग तीन गुना बढ़ गई है। पर झुग्गी बस्तियों को अभी भी औसत खपत का 30 प्रतिशत पानी ही मिल पाता है। जब ज़रूरत के हिसाब से लोगों को पानी नहीं मिलता तो उनके हक छिनते हैं। हमारे समाज में ज़रूरतों से जुड़े और कौन-से मुद्दे हैं जहाँ हमें बराबरी का बँटवारा नहीं दिखाई देता और कई लोगों का हिस्सा छीनकर कुछ लोगों को दे दिया जाता है? कक्षा में और घर पर बड़ों के साथ चर्चा करो।
हमारी यह धरती भी इसी तरह की ख़ूब बड़ी ग़ुल्लक़ है। मिट्टी की बनी इस विशाल ग़ुल्लक़ में प्रकृति वर्षा के मौसम में प्रकृति वर्षा के मौसम में ख़ूब पानी बरसाती है। तब रुपयों से भी कई गुना क़ीमती इस वर्षा को हमें इस बड़ी ग़ुल्लक़ में जमा कर लेना चाहिए। हमारे गाँव में शहर में जो छोटे-बड़े तालाब, झील आदि हैं वे धरती की ग़ुल्लक़ में पानी भरने का काम करते हैं। इनमें जमा पानी ज़मीन के नीचे छिपे जल के भंडार में धीरे-धीरे रिसकर, छनकर जा मिलता है। इससे हमारा भूजल भंडार समृद्ध होता जाता है। पानी का यह ख़ज़ाना हमे दिखता नहीं, लेकिन इसी ख़ज़ाने से हम बरसात का मौसम बीत जाने के बाद पूरे साल भर तक अपने उपयोग के लिए घर में, पाठशाला में पानी निकाल सकते हैं। लेकिन एक दौर ऐसा भी आया जब हम लोग इस छिपे ख़ज़ाने का महत्व भूल गए और ज़मीन के लालच में हमने अपने तालाबों को कचरे से पाटकर, भर कर समतल बना दिया। देखते-ही-देखते इन पर तो कहीं मकान, कहीं बाज़ार, स्टेडियम और सिनेमा आदि खड़े हो गए।
इस बड़ी ग़लती की सज़ा अब सबको मिल रही है। गर्मी के दिनों में हमारे नल सूख जाते हैं और बरसात के दिनों में हमारी बस्तियाँ डूबने लगती हैं। इसीलिए यदि हमें अकाल और बाढ़ से बचना है तो अपने आस-पास के जलस्रोतों की, तालाबों की और नदियों आदि की रखवाली अच्छे ढंग से करनी पड़ेगी। जल-चक्र हम ठीक से समझें, जब बरसात हो तो उसे थाम लें, अपना भूजल भंडार सुरक्षित रखें, अपनी ग़ुल्लक़ भरते रहें तभी हमें ज़रूरत के समय पानी की कोई कमी नहीं आएगी। यदि हमने जल-चक्र का ठीक उपयोग नहीं किया तो हम पानी के चक्कर में फँसते चले जाएँगे।
- पुस्तक : रिमझिम (पृष्ठ 128)
- रचनाकार : अनुपम मिश्र
- प्रकाशन : एनसीईआरटी
- संस्करण : 2022
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