हिंदी के कथापरक रचना-विधान का एक रूप उपन्यास विकसित हुआ है। अँग्रेज़ी के नॉवेल के रूप में इसका प्रयोग किया गया है। इस नॉवेल का अर्थ नया है और इसका प्रयोग कल्पना प्रधान कथात्मक रचनाओं के लिए तैयार किया गया। जीवन के यथार्थ पर आधारित रचनाओं के आंदोलन के क्रम से यह नाम प्रचलित हुआ। इस दृष्टि से स्टील ने कहा कि “हमारी भावशीलता केवल रोमांस द्वारा ही परितृप्त नहीं हो सकती, अब नॉवेल उसका प्रतिरूप बनेगा।” इस कथा-रूप का रोमांस के क्रम में विकास माना जा सकता है। रोमांस कथानकों में असंभव तथा दुर्लभ, अद्भुत तथा वैचित्र्यपरक कार्यों का आधार रहा है, जबकि उपन्यास संभव, सहज, यथार्थ जीवन के आधार पर नियोजित हुआ है। 'उपन्यास' शब्द इस दृष्टि से इस कथा-रूप के लिए प्रचलित हुआ है। इसके अर्थ में समीप स्थिति का भाव है और इस दृष्टि से यह कथात्मक रचना-विधान हमारी ही कथा का हमारी ही भाषा में संयोजित होना है। इसमें हमको अपने जीवन का प्रतिबिंब मिलता है। अँग्रेज़ी में नॉवेल शब्द का प्रयोग यूरोप के फ़्रांस तथा इटली आदि के समांतर हुआ है। उपन्यास रचना-विधान का विकास जिस प्रकार विविध रूपों तथा शैलियों में हुआ है, उसके देखते हुए उसके परिभाषित कर पाना संभव नहीं है। परिभाषाओं की सीमाओं में रचना-रूप निश्चित और विजड़ित होता है, पर उपन्यास की रचना का क्रम अधिक गति तथा विविधता के साथ विकसित हुआ है। कुछ महत्त्वपूर्ण चिंतकों की परिभाषाओं से ही यह स्पष्ट हो जाता है। फील्डिंग उपन्यास को एक ‘मनोरंजनपूर्ण महाकाव्य' मानते हैं, तो फ़्रांसिस बेकन उसे 'कल्पित इतिहास' कहते हैं।
क्लारा रीव उपन्यास को ऐसी विधा मानते हैं, जिसमें समकालीन युग के सामाजिक यथार्थ और उसमें प्रचलित रीति-रिवाजों का चित्र होता है। बेकर के अनुसार यह कल्पित गद्य-कथा मानव-जीवन की व्याख्या का रूप है। रिचर्ड बर्टन अपनी व्याख्या में 'उपन्यास को समसामयिक समाज और उसके मंगलकारी तत्त्वों का अध्ययन, प्रेम-तत्त्व की प्रेरक शक्ति से अनुप्रेरित' मानते हैं। व्यापक रूप से स्वीकार किया जा सकता है कि इस रचना-विधान में व्यक्ति और समाज के नानाविध संबंधों अनुभवों-भावों, विकसित होने वाले चरित्रों, अनेक स्तर पर विकसित होने वाले मनोभावों तथा मानसिक स्तर पर घटित होने वाली नानाविध मनःस्थितियों के यथार्थ की अभिव्यक्ति होती है। और इसके अनुसार उसकी अनेकानेक शैलियों का प्रयोग हुआ है।
मानवीय जीवन को संपूर्ण वैविध्य तथा व्यापकता से कथावस्तु में संयोजित करने के कारण उपन्यास का रचना-विधान एक रूप अथवा निश्चित नहीं होता। इस कारण उसको स्पष्ट रूप से परिभाषित करना संभव नहीं है। उसकी कथावस्तु के विभिन्न उपकरणों में मुख्य दृष्टि, विचार, आधारभूत विषय या कार्य अथवा संवेदना के रूप में कथासूत्र कहा गया है क्योंकि संपूर्ण औपन्यासिक विधान उसी पर आधारित रहता है और विकसित होता है। इस सूत्र को जीवन के व्यावहारिक परिवेश में विकसित करने के लिए प्रत्यक्ष घटनाक्रमों, कार्य-व्यापारों से लेकर मन की अंत:प्रक्रियाओं तक का वर्णन किया जाता है। इस योजनाक्रम को मुख्य कथानक कहा जाता है। फिर कथावस्तु का ताना-बाना अनेक कथाओं, घटनाओं वृत्तों से निर्मित होता है। इनमें केंद्रीय कथा मुख्य होती है और अन्य शेष उसकी सहायक लघुकथाएँ या वृत्त होते हैं। इन सबके संयोजन से उपन्यास का रचनात्मक रूप विकसित होता है। बड़े उपन्यासों में मुख्य कथानक के साथ दूसरे समानांतर कथानक का भी उपयोग किया जाता है। पर रचना के स्वरूप के समुचित संयोजन तथा विकास के लिए सार्थक प्रयोग आवश्यक है। इसके अलावा कथावस्तु में कथानक के अनुसार तथा उसके विकास की दृष्टि से अनेक वस्तुओं, स्थितियों, समाचारों, लेखों, पत्रों, अभिलेखों, कथोपकथनों, अधिकार-पत्रों, न्यायालयों के निर्णयों, डायरी के पृष्ठों आदि का उपयोग किया जाता है। अनेक स्तर के संबंधों के नानाविध रूपों का उपयोग भी इस दृष्टि से मिलता है।
उपन्यास की रचना में यथार्थ जीवन के अनुभव का व्यापक आधार रहता है। परंतु रचनाकार अपनी कल्पना द्वारा कथानक का ढाँचा निर्मित करता है। यह वस्तु-योजना यथार्थ का यथातथ्य प्रस्तुतीकरण नहीं होता क्योंकि इस प्रकार का विवरण सूचनार्थ पत्रकारिता के स्तर का होगा। उसमें अनुभव तथा संवेदन का रचनात्मक बोध व्यक्त नहीं होता और रचना के लिए आवश्यक है कि वह आकर्षक रूप में पाठक के मन को प्रभावित करे, अस्वादनीय रहे और विशिष्ट अनुभव प्रदान करे। सामान्य जीवन-क्रम में घटनाएँ तथा परिस्थितियाँ सीमित होती हैं, बार-बार दोहराई भी जाती हैं। इसी प्रकार पात्र के चरित्र और व्यवहार स्पष्ट और सरल होते हैं, उनमें सामान्य रूप में विविधता और जटिलता कम होती है। विशिष्ट कार्य-व्यापार को व्यक्ति करने वाली घटनाएँ जीवन-क्रम में कम देखी जाती हैं, उसी प्रकार विशिष्ट तथा विषम चरित्र सीमित ही मिलते हैं। उपन्यासकार रचना का संयोजन इस सारे यथार्थ के विस्तार से कल्पना के रूप-विधान में करता है। इस क्रम में वह चयन करता है, विशिष्ट तथा प्रभावी रूप में कथानक विधान करता है। अपने कौशल से एक ही भाव और स्थिति को अनेकविध रूपों में रचता है, प्रस्तुत करता है। चयन की प्रक्रिया से कल्पना में घटनाओं-स्थितियों-पात्रों का विशेष प्रकार का कथा-क्रम निर्मित करता है। यह वस्तु काल्पनिक होकर भी यथार्थ के तत्त्वों से संयोजित होती है। जैसा कहा गया है, उपन्यास के वस्तु-विन्यास का एक केंद्रीय तत्त्व होता है और वह पूरे कथानक को धारण तथा विकसित करने वाला होता है। यह कथानक का केंद्रीयरूप प्रभाव को सघन और गतिशील रखता है। समानांतर कथा यदि इस रूप में रचना के स्तर पर संयोजित नहीं हो पाती तो रचना के केंद्रीय भाव को बाधित करती है। इसी प्रकार अवांतर घटनाओं और प्रसंगों के प्रयोग का रचनात्मक रूप ही स्वीकार्य माना गया है।
उपन्यास के वस्तु-विन्यास में कार्य-कारण संबंध 'मनोवैज्ञानिक क्षण' के रूप में पाठक के मन में घटना संबंधी उत्कट आशा और अपेक्षा को जाग्रत रखता है और तत्क्षण उसके घटित होने का क्रम चलता रहता है। पाठक की रुचि को केंद्रित रखने के लिए और भावों को जाग्रत करने के लिए इसका प्रयोग करना अपेक्षित है। कथानक के विकास के साथ पाठक की उत्सुकता को जाग्रत रखने की दृष्टि से घटनाओं के क्रम के बारे में उसकी संभावनाओं को लेकर स्वयं विविध कल्पनाओं के लिए रचना में अंतराल का विधान भी होता है। पाठक को कई बार आसन्न विपत्ति, दुर्घटना, संकट का बोध हो जाता है, जबकि पात्र उससे अनभिज्ञ रहते हैं। रचना विधान के अनुसार कथानक में घात-प्रतिघात से संघर्ष की स्थिति उत्पन्न होती है, घटना-क्रम पराकाष्ठा की ओर अग्रसर होता है और चरमोत्कर्ष में समाप्त होता है। परंतु अनेक प्रकार के भिन्न रचना विधान भी हैं, जिनमें वर्णन-क्रम भिन्न स्तरों पर, भिन्न रूपों में तथा विविध शैलियों में चलता है। भविष्य संकेतों से पाठक के कौतूहल को बढ़ाया जाता है। इस प्रकार कथावस्तु की संपूर्ण रचना जिज्ञासा, उत्सुकता, आकर्षण, प्रभावशीलता (जिसमें रोचक तथा मनोरंजक होने की बात शामिल है।) सौंदर्यबोध के आधार पर संयोजित होती है। आधुनिक प्रयोगों में कथानक के विधान में घटना, परिस्थिति पात्र (चरित्र) आदि परंपरित तत्त्वों को उस स्तर पर स्वीकार नहीं किया जाता है। मनोविश्लेषण आदि पर आधारित चेतना-प्रवाह के रूप में लिखे गए उपन्यासों में कथानक का यह रूप नहीं मिलता। परंतु व्यापक अर्थ में कथानक उसमें निहित रहता है।
उपन्यास का रचना-विधान इतने व्यापक स्तर पर संयोजित तथा विकसित होता है कि उसमें परंपरित वस्तु तथा चरित्र जैसे तत्त्वों के उपयोग को निर्धारित कर पाना संभव नहीं है। उनका उपयोग एवं प्रयोग नानाविध रूपों में होता है, निरंतर किया जाता रहा है। आधुनिक उपन्यासों में पात्रों के चरित्र कथावस्तु से अधिक महत्त्वपूर्ण तत्त्व स्वीकार किया गया है। सामान्यतः पात्रों के कार्य-व्यापारों, क्रियाकलापों, आचरण-व्यवहारों से उपन्यास की कथावस्तु का संयोजन होता है। यथार्थ के स्तर पर पात्रों की सप्राणता, सजीवता और उनके सामाजिक संदर्भ उपन्यास की विश्वसनीयता और प्रभावशीलता के आधार हैं। इसके लिए लेखक में कल्पना-शक्ति व्यापक अध्ययन तथा अनुभव, मानव चरित्र और मन के गहन ज्ञान तथा रचनात्मक क्षमता की अपेक्षा है। चरित्र को विविध स्तरों एवं रूपों में प्रस्तुत-अंकित करने के लिए तत्त्वों का प्रयोग ही साधन है। रचनाकार प्रभावगत उद्देश्यों के अंतर्गत मूल्य-दृष्टियों को भी व्यंजित करता है। चरित्रों के अंकन की सफलता इस बात में मानी जाती है कि पाठक चरित्रों के साथ किस स्तर पर और किस सीमा तक तादात्म्य स्थापित कर पाता है। चित्रण चिंतन में मानव मन के विभिन्न स्तरों को किस रूप में प्रस्तुत किया जाता है और जिन संकेतों और संदर्भो में उसकी आंतरिक अनुभूतियों-संवेदनाओं को व्यंजित किया जाता है, उनसे उसकी विशेषता को जाना-परखा जा सकता है। उच्च स्तरीय उपन्यासों में देश-काल की सीमाओं में पात्रों के चरित्र को इस रचनात्मक प्रतिभा से अंकित किया जाता है कि उनका स्वरूप सार्वभौम तथा सार्वजनिक व्यंजित होता है।
चरित्र की योजना अनेक विधियों से की जाती है। बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि उपन्यास की कथावस्तु की योजना किस रूप में की गई है अथवा उपन्यास का पूरा रचना-विधान किस शैली में हुआ है। सामान्यतः वर्णनात्मक पद्धति से लेखक स्वयं पात्रों के आचरण व्यवहार के वर्णन से चरित्रगत विशेषताओं को व्यक्त करता है। दूसरे रूप में वह नाटकीय शैली का प्रयोग करता है। इस स्तर पर पात्रों के वार्तालाप, उनके हाव-भाव, उनके कार्य-व्यापारों में व्यक्त होने वाले हाव-भाव के अंकन में चरित्र की विशिष्टताओं को व्यक्त किया जाता है। पात्र स्वयं अपने आत्मकथनों में चरित्र को व्यक्त करता है। इस शैली में अपने भावों, विचारों, अनुभवों तथा चित्रवृत्तियों को आत्मकथा तथा पत्र आदि के रूप में पात्र व्यक्त करता है। इसी प्रकार पात्र के चरित्र के स्तर असीम प्रकार के होते हैं, परंतु दो मुख्य भेदों में वर्णगत तथा व्यक्तिगत पात्र माने जा सकते हैं। लेखक जिस प्रकार के जीवन की कल्पना करता है, उसके अंतर्गत पात्रों की सृष्टि करता है। वस्तु योजना के अनुकूल चरित्रों की उद्भावना भी की जाती है। उनमें एक प्रकार के पात्रों का चरित्र विशिष्ट न होकर सामान्य रूप में अंकित होता है और दूसरे प्रकार के पात्रों की व्यक्तिगत अस्मिता को निजता तथा विशिष्टता के साथ प्रस्तुत किया गया है।
उपन्यास की कथावस्तु का विकास देश-काल की सीमाओं में होता है। अपने व्यापक स्वरूप एवं विस्तार के कारण देश-काल तथा वातावरण का समुचित उपयोग उसमें होता है। पात्र के रूप में व्यक्ति का संपूर्ण व्यक्तित्व, उसके कार्य-व्यापार, उसकी क्रिया-प्रतिक्रियाएँ उसके देश-काल के परिवेश के प्रभाव के अंतर्गत रूपायित-व्यक्त होती हैं। इस दृष्टि से कथावस्तु के यथार्थ के विश्वसनीय तथा प्रभावी संयोजन के लिए पात्रों के जीवन अंकन के लिए आवश्यक है कि उसको उपयुक्त वातावरण परिवेश की पृष्ठभूमि प्रदान की जाए। उपन्यास की घटनाएँ और पात्र अपने परिवेश में प्रस्तुत होते हैं। ये पात्र अपने ग्राम-नगर के संपूर्ण परिवेश में प्रस्तुत होते हैं, पूरे सामाजिक, राजनीतिक तथा सांस्कृतिक वातावरण में जीवनयापन करते हैं और अपने पूरे रीति-रिवाज व्यवहार और भाषा-बोली की यथार्थ भूमिका पर विकसित होकर सजीव रूप में पाठक के देखे-समझे जाते हैं। कुछ उपन्यासों में देश-काल और वातावरण की स्थानीय स्थिति, उसका रंगरूप अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं। इनमें कथानक और चरित्रों की अपेक्षा वातावरण प्रधान केंद्र बन जाता है और इन्हें आंचलिक माना गया है।
उपन्यास में बाह्य प्रकृति को भी अनेक बार अधिक महत्त्वपूर्ण ढंग से अंकित किया गया है। यह देश-काल और वातावरण का रूप-विधान समस्त मानवीय परिस्थिति को यथार्थ में प्रस्तुत
करने के लिए किया गया है। परंतु उसके माध्यम से भाव-व्यंजना और सांकेतिक अर्थ-ग्रहण करने का उपक्रम भी रहा है। पृष्ठभूमि के रूप में प्रकृति बाह्य वातावरण का अंग है। चरित्रों के भावों के साथ उपस्थित होकर उनको सघन करती है, व्यंजक बनाती है। रचनाकार कभी मानवीय भावना और बाह्य प्रकृति को विपरीत अथवा विलोम स्थिति में प्रस्तुत कर परिवेश का ऐसा निर्माण करता है जो पात्रों की चरित्रगत विशेषताओं को अधिक भाषिक तथा सघन स्तर पर व्यक्त करने में सहायक होता है। ऐतिहासिक उपन्यासों में देश-काल और वातावरण
का चित्रण उस दृष्टि से प्रामाणिक, विश्वसनीय और मान्यताओं के अनुसार होना अपेक्षित है और इस बात का बहुत महत्त्व है कि इसका संयोजन रचनात्मक कल्पना के स्तर पर किया गया है क्योंकि उपन्यासकार का लक्ष्य परिचय देना, ज्ञान प्रदान करना न होकर अनुभव के स्तर पर वस्तु को संवेदनीय बनाना है। भौगोलिक, सामाजिक, ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक जीवन के यथार्थ को रचनाकार इसी मूल दृष्टि से अपने उपन्यास के रचना-विधान में योजित करता है। इस कारण उसकी यथातथ्यता की अपेक्षा विश्वसनीयता का अधिक महत्त्व माना गया है क्योंकि रचना में दृश्य या स्थिति का महत्त्व नहीं होता।
रचना का उद्देश्य, उसमें निहित विचार उसके हर विधान में निहित माना गया है और केंद्रीय तत्त्व है। रचना-विधान के स्तर पर उपन्यास या उद्देश्य के रूप में मनोरंजन, रसानुभव, आनंद, विशिष्ट बोध, उदात्तीकरण को स्वीकार किया गया है। साहित्य के परिवेश में सर्जन-कर्म के सामान्य उद्देश्य के रूप में मनोरंजन, रसानुभव, आनंद, विशिष्ट बोध, उदात्तीकरण को स्वीकार किया गया है, जो विशिष्ट अनुभव के स्तर पर सामाजिक को भावसंपन्न करने में सहायक होते हैं। कलाकार, रचनाकार अपने सौंदर्य-बोध को विशेष स्तर के अनुभव को, संवेदना को सामाजिक, दर्शक-पाठक के लिए संप्रेषित करने के लिए प्रेरित होता है। इसके अतिरिक्त इस अनुभव को अभिव्यक्त करने के क्रम में वह आपने पाठकों को किसी जीवन-दर्शन, संदेश, मूल्य-बोध से संवेदित-प्रेरित करना भी चाहता है और उसकी यह दृष्टि रचना के सारे विधान में व्यंजित रहती है। उसके अनुसार उपन्यास अपना रचना-विधान संयोजित करता है, पात्रों का नियोजन करता है, घटनाओं का विकास करता है, मनःस्थितियों-मनोभावों को व्यंजित करता है। उपन्यास की रचनात्मक श्रेष्ठता के मूल्यांकन में इस प्रकार के जीवन-दर्शन की रचनात्मक उपलब्धि को महत्त्व दिया जाता है। पर यह भी स्पष्टतः उसकी अभिव्यक्ति, रचना में निहित होनी चाहिए क्योंकि आरोपित होने पर वह उपन्यास को असफल रचना भी सिद्ध करता है।
उपन्यास की भाषा-शैली भी वैविध्यपूर्ण रही है क्योंकि उसकी अभिव्यक्ति के रूप-विधान के अनुसार उसका उपयोग होना अनिवार्य है। उपन्यास का यह विधान, भाषा के गद्य-रूप से संयोजित होता है, अतः उसमें काव्य की अलंकृत, व्यंजक, चित्रात्मक तथा अनेकार्थी भाषा का उपयोग नहीं मिलता है, अथवा केवल विशेष दृष्टि से सीमित रूप किया जाता है। परंतु रचनात्मक स्तर पर उसकी सरल-सहज भाषा और सामान्य जीवन के स्तर से ग्रहण की गई भाषा में चरित्रों, परिस्थितियों, भावों मानसिक ऊहापोहों हो तथा जटिलताओं को व्यक्त करने की क्षमता अपेक्षित होती है। अगर उसकी भाषा-शैली सामान्य व्यावहारिक जीवन का विवरण-परिचय मात्र विस्तार से दे पाएगी, तो वह उपन्यास सफल रचना नहीं स्वीकार किया जा सकता। यह अवश्य है कि उपन्यासकार जीवन के विभिन्न क्षेत्रों, समाज के विविध स्तरों तथा वर्गों के नानाविध कार्यों-व्यापार में लगे व्यक्तियों की भाषा का उपयोग इस रचनात्मक स्तर पर करता है और उस परिवेश और चरित्र की विशेषताओं को व्यंजित करने का उपक्रम करता है। विभिन्न स्थितियों को अभिव्यक्त करने के लिए भाषा के मुहावरों, लोकोक्तियों, कहावतों का उपयोग किया जाता है। और आधुनिक उपन्यासों में मानसिक द्वंद्वों, चेतना-प्रवाह आदि का वर्णन भाषा के उसी स्तर के रूप-विधान में किया गया है।
औपन्यासिक रूप-विधान के प्रकार-भेद व्यक्ति और समाज के नानाविध संबंध के आधार पर किए गए हैं। इस प्रकार व्यक्ति के आंतरिक मन की प्रक्रिया और उस संबंधित रचना-प्रक्रिया के अंतर्वर्ती संबंध की दृष्टि से भी उसके रूप-विधान स्वीकार किए गए हैं। इसी प्रकार व्यक्ति के आंतरिक मन की प्रक्रिया और उस संबंधित रचना-प्रक्रिया के अंतर्वती संबंध की दृष्टि से भी उसके रूप विधान स्वीकार किए गए हैं। पूर्ण रचनात्मक स्तर अपनी अभिव्यक्ति का रूप विकसित कर पाने के पहले उपन्यास साहसिक रोमांसपरक प्रेम कथाओं के रूप में लिखे गए हैं। इस प्रकार रहस्य-कल्पना के आधार पर भी प्रचलित रहे हैं। एक दृष्टि उपन्यासों के वर्गीकरण की, तत्त्व के आधार की रही है। घटना-प्रधान, चरित्र प्रधान, वातावरण प्रधान आदि इतिहास के इतिवृत्तों के आधार पर रचे उपन्यास ऐतिहासिक माने गए हैं और इसी प्रकार की व्यापक समस्याओं अथवा सामाजिक जीवन-क्रम पर आधारित सामाजिक उपन्यास स्वीकार किए गए, क्षेत्र विशेष के जीवन को अंकित करने वाले आँचलिक उपन्यास हैं। जिन उपन्यासों के विधान में पात्रों के चरित्र का विकास और चित्रण उनकी मानसिक स्थितियों और सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक भाव-स्थितियों के आधार पर किया गया है। उन्हें मनोवैज्ञानिक कहते हैं। इन उपन्यासों में एक ऐसा प्रकार भी है, जिनमें मनुष्य के दमित भावनाओं, इच्छाओं, वासनाओं के आधार पर अंतश्चेतना का उद्घाटन किया जाता है। इनमें भी काम-वासनाओं को प्रधानता देने वाले उपन्यास फ्रायड के यौन-सिद्धांत और एडलर युग के मनोविश्लेषण के सिद्धांत के आधार पर रचना-विधान संयोजित करते हैं। दूसरे प्रकार के मनोविश्लेषणवादी उपन्यास दमित वासनाओं को उभार कर मानस-ग्रंथियों को खोलने की प्रक्रिया में अपना रचना विधान संयोजित करते हैं। स्पष्ट इनमें जिस प्रकार के जो भी उपन्यास रचना के स्तर पर भावों-संवेदनाओं को, अनुभव आयामों, विशिष्ट अनुभव रूपों को अभिव्यक्त करते हैं, उनको सफल रचना माना जाएगा।
('साहित्य चिंतन रचनात्मक आयाम' नामक पुस्तक से)
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upanyas ka rachna widhan itne wyapak star par sanyojit tatha wiksit hota hai ki usmen paranprit wastu tatha charitr jaise tattwon ke upyog ko nirdharit kar pana sambhaw nahin hai unka upyog ewan prayog nanawidh rupon mein hota hai, nirantar kiya jata raha hai adhunik upanyason mein patron ke charitr kathawastu se adhik mahattwapurn tattw swikar kiya gaya hai samanyat patron ke kary wyaparon, kriyaklapon, acharn wyawharon se upanyas ki kathawastu ka sanyojan hota hai yatharth ke star par patron ki sapranta, sajiwata aur unke samajik sandarbh upanyas ki wishwasniyata aur prabhawashilata ke adhar hain iske liye lekhak mein kalpana shakti wyapak adhyayan tatha anubhaw, manaw charitr aur man ke gahan gyan tatha rachnatmak kshamata ki apeksha hai charitr ko wiwidh stron ewan rupon mein prastut ankit karne ke liye tattwon ka prayog hi sadhan hai rachnakar prbhawgat uddeshyon ke antargat mooly drishtiyon ko bhi wyanjit karta hai charitron ke ankan ki saphalta is baat mein mani jati hai ki pathak charitron ke sath kis star par aur kis sima tak tadatmy sthapit kar pata hai chitran chintan mein manaw man ke wibhinn stron ko kis roop mein prastut kiya jata hai aur jin sanketon aur sandarbho mein uski antrik anubhutiyon sanwednaon ko wyanjit kiya jata hai, unse uski wisheshata ko jana parkha ja sakta hai uchch stariy upanyason mein desh kal ki simaon mein patron ke charitr ko is rachnatmak pratibha se ankit kiya jata hai ki unka swarup sarwabhaum tatha sarwajnik wyanjit hota hai
charitr ki yojna anek widhiyon se ki jati hai bahut kuch is baat par nirbhar karta hai ki upanyas ki kathawastu ki yojna kis roop mein ki gai hai athwa upanyas ka pura rachna widhan kis shaili mein hua hai samanyat warnanatmak paddhati se lekhak swayan patron ke acharn wywahar ke warnan se charitrgat wisheshtaon ko wyakt karta hai dusre roop mein wo natkiya shaili ka prayog karta hai is star par patron ke wartalap, unke haw bhaw, unke kary wyaparon mein wyakt hone wale haw bhaw ke ankan mein charitr ki wishishttaon ko wyakt kiya jata hai patr swayan apne atmakathnon mein charitr ko wyakt karta hai is shaili mein apne bhawon, wicharon, anubhwon tatha chitrwrittiyon ko atmaktha tatha patr aadi ke roop mein patr wyakt karta hai isi prakar patr ke charitr ke star asim prakar ke hote hain, parantu do mukhy bhedon mein warngat tatha wyaktigat patr mane ja sakte hain lekhak jis prakar ke jiwan ki kalpana karta hai, uske antargat patron ki sirishti karta hai wastu yojna ke anukul charitron ki udbhawana bhi ki jati hai unmen ek prakar ke patron ka charitr wishisht na hokar samany roop mein ankit hota hai aur dusre prakar ke patron ki wyaktigat asmita ko nijta tatha wishishtata ke sath prastut kiya gaya hai
upanyas ki kathawastu ka wikas desh kal ki simaon mein hota hai apne wyapak swarup ewan wistar ke karan desh kal tatha watawarn ka samuchit upyog usmen hota hai patr ke roop mein wekti ka sampurn wyaktitw, uske kary wyapar, uski kriya prtikriyayen uske desh kal ke pariwesh ke prabhaw ke antargat rupayit wyakt hoti hain is drishti se kathawastu ke yatharth ke wishwasniy tatha prabhawi sanyojan ke liye patron ke jiwan ankan ke liye awashyak hai ki usko upyukt watawarn pariwesh ki prishthabhumi pradan ki jaye upanyas ki ghatnayen aur patr apne pariwesh mein prastut hote hain ye patr apne gram nagar ke sampurn pariwesh mein prastut hote hain, pure samajik, rajnitik tatha sanskritik watawarn mein jiwanyapan karte hain aur apne pure riti riwaj wywahar aur bhasha boli ki yatharth bhumika par wiksit hokar sajiw roop mein pathak ke dekhe samjhe jate hain kuch upanyason mein desh kal aur watawarn ki asthaniya sthiti, uska rangrup adhik mahattwapurn ho jate hain inmen kathanak aur charitron ki apeksha watawarn pardhan kendr ban jata hai aur inhen anchlik mana gaya hai
upanyas mein bahy prakrti ko bhi anek bar adhik mahattwapurn Dhang se ankit kiya gaya hai ye desh kal aur watawarn ka roop widhan samast manawiy paristhiti ko yatharth mein prastut
karne ke liye kiya gaya hai parantu uske madhyam se bhaw wyanjna aur sanketik arth grahn karne ka upakram bhi raha hai prishthabhumi ke roop mein prakrti bahy watawarn ka ang hai charitron ke bhawon ke sath upasthit hokar unko saghan karti hai, wyanjak banati hai rachnakar kabhi manawiy bhawna aur bahy prakrti ko wiprit athwa wilom sthiti mein prastut kar pariwesh ka aisa nirman karta hai jo patron ki charitrgat wisheshtaon ko adhik bhashaik tatha saghan star par wyakt karne mein sahayak hota hai aitihasik upanyason mein desh kal aur watawarn
ka chitran us drishti se pramanaik, wishwasniy aur manytaon ke anusar hona apekshait hai aur is baat ka bahut mahattw hai ki iska sanyojan rachnatmak kalpana ke star par kiya gaya hai kyonki upanyasakar ka lakshya parichai dena, gyan pradan karna na hokar anubhaw ke star par wastu ko sanwedaniy banana hai bhaugolik, samajik, aitihasik tatha sanskritik jiwan ke yatharth ko rachnakar isi mool drishti se apne upanyas ke rachna widhan mein yojit karta hai is karan uski yathatathyata ki apeksha wishwasniyata ka adhik mahattw mana gaya hai kyonki rachna mein drishya ya sthiti ka mahattw nahin hota
rachna ka uddeshy, usmen nihit wichar uske har widhan mein nihit mana gaya hai aur kendriy tattw hai rachna widhan ke star par upanyas ya uddeshy ke roop mein manoranjan, rasanubhaw, anand, wishisht bodh, udattikarn ko swikar kiya gaya hai sahity ke pariwesh mein surgeon karm ke samany uddeshy ke roop mein manoranjan, rasanubhaw, anand, wishisht bodh, udattikarn ko swikar kiya gaya hai, jo wishisht anubhaw ke star par samajik ko bhawsampann karne mein sahayak hote hain kalakar, rachnakar apne saundarya bodh ko wishesh star ke anubhaw ko, sanwedana ko samajik, darshak pathak ke liye sanpreshait karne ke liye prerit hota hai iske atirikt is anubhaw ko abhiwyakt karne ke kram mein wo aapne pathkon ko kisi jiwan darshan, sandesh, mooly bodh se sanwedit prerit karna bhi chahta hai aur uski ye drishti rachna ke sare widhan mein wyanjit rahti hai uske anusar upanyas apna rachna widhan sanyojit karta hai, patron ka niyojan karta hai, ghatnaon ka wikas karta hai, manःsthitiyon manobhawon ko wyanjit karta hai upanyas ki rachnatmak shreshthta ke mulyankan mein is prakar ke jiwan darshan ki rachnatmak uplabdhi ko mahattw diya jata hai par ye bhi spashtatः uski abhiwyakti, rachna mein nihit honi chahiye kyonki aropit hone par wo upanyas ko asaphal rachna bhi siddh karta hai
upanyas ki bhasha shaili bhi waiwidhypurn rahi hai kyonki uski abhiwyakti ke roop widhan ke anusar uska upyog hona aniwary hai upanyas ka ye widhan, bhasha ke gady roop se sanyojit hota hai, at usmen kawy ki alankrt, wyanjak, chitratmak tatha anekarthi bhasha ka upyog nahin milta hai, athwa kewal wishesh drishti se simit roop kiya jata hai parantu rachnatmak star par uski saral sahj bhasha aur samany jiwan ke star se grahn ki gai bhasha mein charitron, paristhitiyon, bhawon manasik uhapohon ho tatha jatiltaon ko wyakt karne ki kshamata apekshait hoti hai agar uski bhasha shaili samany wyawaharik jiwan ka wiwarn parichai matr wistar se de payegi, to wo upanyas saphal rachna nahin swikar kiya ja sakta ye awashy hai ki upanyasakar jiwan ke wibhinn kshetron, samaj ke wiwidh stron tatha wargon ke nanawidh karyon wyapar mein lage wyaktiyon ki bhasha ka upyog is rachnatmak star par karta hai aur us pariwesh aur charitr ki wisheshtaon ko wyanjit karne ka upakram karta hai wibhinn sthitiyon ko abhiwyakt karne ke liye bhasha ke muhawaron, lokoktiyon, kahawaton ka upyog kiya jata hai aur adhunik upanyason mein manasik dwandwon, chetna prawah aadi ka warnan bhasha ke usi star ke roop widhan mein kiya gaya hai
aupanyasik roop widhan ke prakar bhed wekti aur samaj ke nanawidh sambandh ke adhar par kiye gaye hain is prakar wekti ke antrik man ki prakriya aur us sambandhit rachna prakriya ke antarwarti sambandh ki drishti se bhi uske roop widhan swikar kiye gaye hain isi prakar wekti ke antrik man ki prakriya aur us sambandhit rachna prakriya ke antarwti sambandh ki drishti se bhi uske roop widhan swikar kiye gaye hain poorn rachnatmak star apni abhiwyakti ka roop wiksit kar pane ke pahle upanyas sahasik romansaprak prem kathaon ke roop mein likhe gaye hain is prakar rahasy kalpana ke adhar par bhi prachalit rahe hain ek drishti upanyason ke wargikarn ki, tattw ke adhar ki rahi hai ghatna pardhan, charitr pardhan, watawarn pardhan aadi itihas ke itiwritton ke adhar par rache upanyas aitihasik mane gaye hain aur isi prakar ki wyapak samasyaon athwa samajik jiwan kram par adharit samajik upanyas swikar kiye gaye, kshaetr wishesh ke jiwan ko ankit karne wale anchalik upanyas hain jin upanyason ke widhan mein patron ke charitr ka wikas aur chitran unki manasik sthitiyon aur sookshm manowaij~nanik bhaw sthitiyon ke adhar par kiya gaya hai unhen manowaij~nanik kahte hain in upanyason mein ek aisa prakar bhi hai, jinmen manushya ke damit bhaunaun, ichchhaun, wasnaon ke adhar par antashchetana ka udghatan kiya jata hai inmen bhi kaam wasnaon ko pradhanta dene wale upanyas phrayaD ke yaun siddhant aur eDlar yug ke manowishleshan ke siddhant ke adhar par rachna widhan sanyojit karte hain dusre prakar ke manowishleshanwadi upanyas damit wasnaon ko ubhaar kar manas granthiyon ko kholne ki prakriya mein apna rachna widhan sanyojit karte hain aspasht inmen jis prakar ke jo bhi upanyas rachna ke star par bhawon sanwednaon ko, anubhaw ayamon, wishisht anubhaw rupon ko abhiwyakt karte hain, unko saphal rachna mana jayega
(sahity chintan rachnatmak ayam namak pustak se)
hindi ke kathaprak rachna widhan ka ek roop upanyas wiksit hua hai angrezi ke nowel ke roop mein iska prayog kiya gaya hai is nowel ka arth naya hai aur iska prayog kalpana pardhan kathatmak rachnaon ke liye taiyar kiya gaya jiwan ke yatharth par adharit rachnaon ke andolan ke kram se ye nam prachalit hua is drishti se steel ne kaha ki “hamari bhawshilta kewal romans dwara hi paritrpt nahin ho sakti, ab nowel uska pratirup banega ” is katha roop ka romans ke kram mein wikas mana ja sakta hai romans kathankon mein asambhau tatha durlabh, adbhut tatha waichitryaprak karyon ka adhar raha hai, jabki upanyas sambhaw, sahj, yatharth jiwan ke adhar par niyojit hua hai upanyas shabd is drishti se is katha roop ke liye prachalit hua hai iske arth mein samip sthiti ka bhaw hai aur is drishti se ye kathatmak rachna widhan hamari hi katha ka hamari hi bhasha mein sanyojit hona hai ismen hamko apne jiwan ka pratibimb milta hai angrezi mein nowel shabd ka prayog europe ke frans tatha italy aadi ke samantar hua hai upanyas rachna widhan ka wikas jis prakar wiwidh rupon tatha shailiyon mein hua hai, uske dekhte hue uske paribhashit kar pana sambhaw nahin hai paribhashaon ki simaon mein rachna roop nishchit aur wijDit hota hai, par upanyas ki rachna ka kram adhik gati tatha wiwidhta ke sath wiksit hua hai kuch mahattwapurn chintkon ki paribhashaon se hi ye aspasht ho jata hai philDing upanyas ko ek ‘manoranjanpurn mahakawya mante hain, to fransis bekan use kalpit itihas kahte hain
klara reew upanyas ko aisi widha mante hain, jismen samkalin yug ke samajik yatharth aur usmen prachalit riti riwajon ka chitr hota hai bekar ke anusar ye kalpit gady katha manaw jiwan ki wyakhya ka roop hai richarD bartan apni wyakhya mein upanyas ko samsamayik samaj aur uske mangalkari tattwon ka adhyayan, prem tattw ki prerak shakti se anuprerit mante hain wyapak roop se swikar kiya ja sakta hai ki is rachna widhan mein wekti aur samaj ke nanawidh sambandhon anubhwon bhawon, wiksit hone wale charitron, anek star par wiksit hone wale manobhawon tatha manasik star par ghatit hone wali nanawidh manःsthitiyon ke yatharth ki abhiwyakti hoti hai aur iske anusar uski anekanek shailiyon ka prayog hua hai
manawiy jiwan ko sampurn waiwidhy tatha wyapakta se kathawastu mein sanyojit karne ke karan upanyas ka rachna widhan ek roop athwa nishchit nahin hota is karan usko aspasht roop se paribhashit karna sambhaw nahin hai uski kathawastu ke wibhinn upakarnon mein mukhy drishti, wichar, adharabhut wishay ya kary athwa sanwedana ke roop mein kathasutr kaha gaya hai kyonki sampurn aupanyasik widhan usi par adharit rahta hai aur wiksit hota hai is sootr ko jiwan ke wyawaharik pariwesh mein wiksit karne ke liye pratyaksh ghatnakrmon, kary wyaparon se lekar man ki anthaprakriyaon tak ka warnan kiya jata hai is yojnakram ko mukhy kathanak kaha jata hai phir kathawastu ka tana bana anek kathaon, ghatnaon writton se nirmit hota hai inmen kendriy katha mukhy hoti hai aur any shesh uski sahayak laghukthayen ya writt hote hain in sabke sanyojan se upanyas ka rachnatmak roop wiksit hota hai baDe upanyason mein mukhy kathanak ke sath dusre samanantar kathanak ka bhi upyog kiya jata hai par rachna ke swarup ke samuchit sanyojan tatha wikas ke liye sarthak prayog awashyak hai iske alawa kathawastu mein kathanak ke anusar tatha uske wikas ki drishti se anek wastuon, sthitiyon, samacharon, lekhon, patron, abhilekhon, kathopakathnon, adhikar patron, nyayalyon ke nirnyon, Diary ke prishthon aadi ka upyog kiya jata hai anek star ke sambandhon ke nanawidh rupon ka upyog bhi is drishti se milta hai
upanyas ki rachna mein yatharth jiwan ke anubhaw ka wyapak adhar rahta hai parantu rachnakar apni kalpana dwara kathanak ka Dhancha nirmit karta hai ye wastu yojna yatharth ka yathatathy prastutikarn nahin hota kyonki is prakar ka wiwarn suchanarth patrakarita ke star ka hoga usmen anubhaw tatha sanwedan ka rachnatmak bodh wyakt nahin hota aur rachna ke liye awashyak hai ki wo akarshak roop mein pathak ke man ko prabhawit kare, aswadniy rahe aur wishisht anubhaw pradan kare samany jiwan kram mein ghatnayen tatha paristhitiyan simit hoti hain, bar bar dohrai bhi jati hain isi prakar patr ke charitr aur wywahar aspasht aur saral hote hain, unmen samany roop mein wiwidhta aur jatilta kam hoti hai wishisht kary wyapar ko wekti karne wali ghatnayen jiwan kram mein kam dekhi jati hain, usi prakar wishisht tatha wisham charitr simit hi milte hain upanyasakar rachna ka sanyojan is sare yatharth ke wistar se kalpana ke roop widhan mein karta hai is kram mein wo chayan karta hai, wishisht tatha prabhawi roop mein kathanak widhan karta hai apne kaushal se ek hi bhaw aur sthiti ko anekawidh rupon mein rachta hai, prastut karta hai chayan ki prakriya se kalpana mein ghatnaon sthitiyon patron ka wishesh prakar ka katha kram nirmit karta hai ye wastu kalpanik hokar bhi yatharth ke tattwon se sanyojit hoti hai jaisa kaha gaya hai, upanyas ke wastu winyas ka ek kendriy tattw hota hai aur wo pure kathanak ko dharan tatha wiksit karne wala hota hai ye kathanak ka kendriyrup prabhaw ko saghan aur gatishil rakhta hai samanantar katha yadi is roop mein rachna ke star par sanyojit nahin ho pati to rachna ke kendriy bhaw ko badhit karti hai isi prakar awantar ghatnaon aur prsangon ke prayog ka rachnatmak roop hi swikary mana gaya hai
upanyas ke wastu winyas mein kary karan sambandh manowaigyanik kshan ke roop mein pathak ke man mein ghatna sambandhi utkat aasha aur apeksha ko jagrat rakhta hai aur tatkshan uske ghatit hone ka kram chalta rahta hai pathak ki ruchi ko kendrit rakhne ke liye aur bhawon ko jagrat karne ke liye iska prayog karna apekshait hai kathanak ke wikas ke sath pathak ki utsukta ko jagrat rakhne ki drishti se ghatnaon ke kram ke bare mein uski sambhawnaon ko lekar swayan wiwidh kalpanaon ke liye rachna mein antral ka widhan bhi hota hai pathak ko kai bar asann wipatti, durghatna, sankat ka bodh ho jata hai, jabki patr usse anbhij~n rahte hain rachna widhan ke anusar kathanak mein ghat pratighat se sangharsh ki sthiti utpann hoti hai, ghatna kram parakashtha ki or agrasar hota hai aur charmotkarsh mein samapt hota hai parantu anek prakar ke bhinn rachna widhan bhi hain, jinmen warnan kram bhinn stron par, bhinn rupon mein tatha wiwidh shailiyon mein chalta hai bhawishya sanketon se pathak ke kautuhal ko baDhaya jata hai is prakar kathawastu ki sampurn rachna jij~nasa, utsukta, akarshan, prabhawashilata (jismen rochak tatha manoranjak hone ki baat shamil hai ) saundaryabodh ke adhar par sanyojit hoti hai adhunik pryogon mein kathanak ke widhan mein ghatna, paristhiti patr (charitr) aadi paranprit tattwon ko us star par swikar nahin kiya jata hai manowishleshan aadi par adharit chetna prawah ke roop mein likhe gaye upanyason mein kathanak ka ye roop nahin milta parantu wyapak arth mein kathanak usmen nihit rahta hai
upanyas ka rachna widhan itne wyapak star par sanyojit tatha wiksit hota hai ki usmen paranprit wastu tatha charitr jaise tattwon ke upyog ko nirdharit kar pana sambhaw nahin hai unka upyog ewan prayog nanawidh rupon mein hota hai, nirantar kiya jata raha hai adhunik upanyason mein patron ke charitr kathawastu se adhik mahattwapurn tattw swikar kiya gaya hai samanyat patron ke kary wyaparon, kriyaklapon, acharn wyawharon se upanyas ki kathawastu ka sanyojan hota hai yatharth ke star par patron ki sapranta, sajiwata aur unke samajik sandarbh upanyas ki wishwasniyata aur prabhawashilata ke adhar hain iske liye lekhak mein kalpana shakti wyapak adhyayan tatha anubhaw, manaw charitr aur man ke gahan gyan tatha rachnatmak kshamata ki apeksha hai charitr ko wiwidh stron ewan rupon mein prastut ankit karne ke liye tattwon ka prayog hi sadhan hai rachnakar prbhawgat uddeshyon ke antargat mooly drishtiyon ko bhi wyanjit karta hai charitron ke ankan ki saphalta is baat mein mani jati hai ki pathak charitron ke sath kis star par aur kis sima tak tadatmy sthapit kar pata hai chitran chintan mein manaw man ke wibhinn stron ko kis roop mein prastut kiya jata hai aur jin sanketon aur sandarbho mein uski antrik anubhutiyon sanwednaon ko wyanjit kiya jata hai, unse uski wisheshata ko jana parkha ja sakta hai uchch stariy upanyason mein desh kal ki simaon mein patron ke charitr ko is rachnatmak pratibha se ankit kiya jata hai ki unka swarup sarwabhaum tatha sarwajnik wyanjit hota hai
charitr ki yojna anek widhiyon se ki jati hai bahut kuch is baat par nirbhar karta hai ki upanyas ki kathawastu ki yojna kis roop mein ki gai hai athwa upanyas ka pura rachna widhan kis shaili mein hua hai samanyat warnanatmak paddhati se lekhak swayan patron ke acharn wywahar ke warnan se charitrgat wisheshtaon ko wyakt karta hai dusre roop mein wo natkiya shaili ka prayog karta hai is star par patron ke wartalap, unke haw bhaw, unke kary wyaparon mein wyakt hone wale haw bhaw ke ankan mein charitr ki wishishttaon ko wyakt kiya jata hai patr swayan apne atmakathnon mein charitr ko wyakt karta hai is shaili mein apne bhawon, wicharon, anubhwon tatha chitrwrittiyon ko atmaktha tatha patr aadi ke roop mein patr wyakt karta hai isi prakar patr ke charitr ke star asim prakar ke hote hain, parantu do mukhy bhedon mein warngat tatha wyaktigat patr mane ja sakte hain lekhak jis prakar ke jiwan ki kalpana karta hai, uske antargat patron ki sirishti karta hai wastu yojna ke anukul charitron ki udbhawana bhi ki jati hai unmen ek prakar ke patron ka charitr wishisht na hokar samany roop mein ankit hota hai aur dusre prakar ke patron ki wyaktigat asmita ko nijta tatha wishishtata ke sath prastut kiya gaya hai
upanyas ki kathawastu ka wikas desh kal ki simaon mein hota hai apne wyapak swarup ewan wistar ke karan desh kal tatha watawarn ka samuchit upyog usmen hota hai patr ke roop mein wekti ka sampurn wyaktitw, uske kary wyapar, uski kriya prtikriyayen uske desh kal ke pariwesh ke prabhaw ke antargat rupayit wyakt hoti hain is drishti se kathawastu ke yatharth ke wishwasniy tatha prabhawi sanyojan ke liye patron ke jiwan ankan ke liye awashyak hai ki usko upyukt watawarn pariwesh ki prishthabhumi pradan ki jaye upanyas ki ghatnayen aur patr apne pariwesh mein prastut hote hain ye patr apne gram nagar ke sampurn pariwesh mein prastut hote hain, pure samajik, rajnitik tatha sanskritik watawarn mein jiwanyapan karte hain aur apne pure riti riwaj wywahar aur bhasha boli ki yatharth bhumika par wiksit hokar sajiw roop mein pathak ke dekhe samjhe jate hain kuch upanyason mein desh kal aur watawarn ki asthaniya sthiti, uska rangrup adhik mahattwapurn ho jate hain inmen kathanak aur charitron ki apeksha watawarn pardhan kendr ban jata hai aur inhen anchlik mana gaya hai
upanyas mein bahy prakrti ko bhi anek bar adhik mahattwapurn Dhang se ankit kiya gaya hai ye desh kal aur watawarn ka roop widhan samast manawiy paristhiti ko yatharth mein prastut
karne ke liye kiya gaya hai parantu uske madhyam se bhaw wyanjna aur sanketik arth grahn karne ka upakram bhi raha hai prishthabhumi ke roop mein prakrti bahy watawarn ka ang hai charitron ke bhawon ke sath upasthit hokar unko saghan karti hai, wyanjak banati hai rachnakar kabhi manawiy bhawna aur bahy prakrti ko wiprit athwa wilom sthiti mein prastut kar pariwesh ka aisa nirman karta hai jo patron ki charitrgat wisheshtaon ko adhik bhashaik tatha saghan star par wyakt karne mein sahayak hota hai aitihasik upanyason mein desh kal aur watawarn
ka chitran us drishti se pramanaik, wishwasniy aur manytaon ke anusar hona apekshait hai aur is baat ka bahut mahattw hai ki iska sanyojan rachnatmak kalpana ke star par kiya gaya hai kyonki upanyasakar ka lakshya parichai dena, gyan pradan karna na hokar anubhaw ke star par wastu ko sanwedaniy banana hai bhaugolik, samajik, aitihasik tatha sanskritik jiwan ke yatharth ko rachnakar isi mool drishti se apne upanyas ke rachna widhan mein yojit karta hai is karan uski yathatathyata ki apeksha wishwasniyata ka adhik mahattw mana gaya hai kyonki rachna mein drishya ya sthiti ka mahattw nahin hota
rachna ka uddeshy, usmen nihit wichar uske har widhan mein nihit mana gaya hai aur kendriy tattw hai rachna widhan ke star par upanyas ya uddeshy ke roop mein manoranjan, rasanubhaw, anand, wishisht bodh, udattikarn ko swikar kiya gaya hai sahity ke pariwesh mein surgeon karm ke samany uddeshy ke roop mein manoranjan, rasanubhaw, anand, wishisht bodh, udattikarn ko swikar kiya gaya hai, jo wishisht anubhaw ke star par samajik ko bhawsampann karne mein sahayak hote hain kalakar, rachnakar apne saundarya bodh ko wishesh star ke anubhaw ko, sanwedana ko samajik, darshak pathak ke liye sanpreshait karne ke liye prerit hota hai iske atirikt is anubhaw ko abhiwyakt karne ke kram mein wo aapne pathkon ko kisi jiwan darshan, sandesh, mooly bodh se sanwedit prerit karna bhi chahta hai aur uski ye drishti rachna ke sare widhan mein wyanjit rahti hai uske anusar upanyas apna rachna widhan sanyojit karta hai, patron ka niyojan karta hai, ghatnaon ka wikas karta hai, manःsthitiyon manobhawon ko wyanjit karta hai upanyas ki rachnatmak shreshthta ke mulyankan mein is prakar ke jiwan darshan ki rachnatmak uplabdhi ko mahattw diya jata hai par ye bhi spashtatः uski abhiwyakti, rachna mein nihit honi chahiye kyonki aropit hone par wo upanyas ko asaphal rachna bhi siddh karta hai
upanyas ki bhasha shaili bhi waiwidhypurn rahi hai kyonki uski abhiwyakti ke roop widhan ke anusar uska upyog hona aniwary hai upanyas ka ye widhan, bhasha ke gady roop se sanyojit hota hai, at usmen kawy ki alankrt, wyanjak, chitratmak tatha anekarthi bhasha ka upyog nahin milta hai, athwa kewal wishesh drishti se simit roop kiya jata hai parantu rachnatmak star par uski saral sahj bhasha aur samany jiwan ke star se grahn ki gai bhasha mein charitron, paristhitiyon, bhawon manasik uhapohon ho tatha jatiltaon ko wyakt karne ki kshamata apekshait hoti hai agar uski bhasha shaili samany wyawaharik jiwan ka wiwarn parichai matr wistar se de payegi, to wo upanyas saphal rachna nahin swikar kiya ja sakta ye awashy hai ki upanyasakar jiwan ke wibhinn kshetron, samaj ke wiwidh stron tatha wargon ke nanawidh karyon wyapar mein lage wyaktiyon ki bhasha ka upyog is rachnatmak star par karta hai aur us pariwesh aur charitr ki wisheshtaon ko wyanjit karne ka upakram karta hai wibhinn sthitiyon ko abhiwyakt karne ke liye bhasha ke muhawaron, lokoktiyon, kahawaton ka upyog kiya jata hai aur adhunik upanyason mein manasik dwandwon, chetna prawah aadi ka warnan bhasha ke usi star ke roop widhan mein kiya gaya hai
aupanyasik roop widhan ke prakar bhed wekti aur samaj ke nanawidh sambandh ke adhar par kiye gaye hain is prakar wekti ke antrik man ki prakriya aur us sambandhit rachna prakriya ke antarwarti sambandh ki drishti se bhi uske roop widhan swikar kiye gaye hain isi prakar wekti ke antrik man ki prakriya aur us sambandhit rachna prakriya ke antarwti sambandh ki drishti se bhi uske roop widhan swikar kiye gaye hain poorn rachnatmak star apni abhiwyakti ka roop wiksit kar pane ke pahle upanyas sahasik romansaprak prem kathaon ke roop mein likhe gaye hain is prakar rahasy kalpana ke adhar par bhi prachalit rahe hain ek drishti upanyason ke wargikarn ki, tattw ke adhar ki rahi hai ghatna pardhan, charitr pardhan, watawarn pardhan aadi itihas ke itiwritton ke adhar par rache upanyas aitihasik mane gaye hain aur isi prakar ki wyapak samasyaon athwa samajik jiwan kram par adharit samajik upanyas swikar kiye gaye, kshaetr wishesh ke jiwan ko ankit karne wale anchalik upanyas hain jin upanyason ke widhan mein patron ke charitr ka wikas aur chitran unki manasik sthitiyon aur sookshm manowaij~nanik bhaw sthitiyon ke adhar par kiya gaya hai unhen manowaij~nanik kahte hain in upanyason mein ek aisa prakar bhi hai, jinmen manushya ke damit bhaunaun, ichchhaun, wasnaon ke adhar par antashchetana ka udghatan kiya jata hai inmen bhi kaam wasnaon ko pradhanta dene wale upanyas phrayaD ke yaun siddhant aur eDlar yug ke manowishleshan ke siddhant ke adhar par rachna widhan sanyojit karte hain dusre prakar ke manowishleshanwadi upanyas damit wasnaon ko ubhaar kar manas granthiyon ko kholne ki prakriya mein apna rachna widhan sanyojit karte hain aspasht inmen jis prakar ke jo bhi upanyas rachna ke star par bhawon sanwednaon ko, anubhaw ayamon, wishisht anubhaw rupon ko abhiwyakt karte hain, unko saphal rachna mana jayega
(sahity chintan rachnatmak ayam namak pustak se)
स्रोत :
रचनाकार : रघुवंश
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।