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मतिराम ग्रंथावली

matiram granthavali

महावीर प्रसाद द्विवेदी

अन्य

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महावीर प्रसाद द्विवेदी

मतिराम ग्रंथावली

महावीर प्रसाद द्विवेदी

और अधिकमहावीर प्रसाद द्विवेदी

    नोट

    माधुरी, अक्टूबर, 1926 में प्रकाशित असंकलित।

    संपादक—कृष्ण बिहारी मिश्र बी० ए०, एल-एल० बी०, प्रकाशक—गंगा पुस्तक माना कार्यालय, लखनऊ। पृष्ठ संख्या-264 + 244; मूल्य—सजिल्द 3 रु०, अजिल्द 20

    यह ढाई रुपए मूल्यवाली 'अजिल्द' ग्रंथावली मेरे पास 'समालोचनार्थ' भेजी गई है। परंतु मैं कवि मतिराम की कविता का मर्मज्ञ तो क्या, ज्ञाता भी नहीं। और यदि मति अनुरूप कुछ लिखना भी चाहूँ तो मुझमें विशेष लिखने की शक्ति भी नहीं। अतएव इस पुस्तक के विषय में दो ही चार बातें लिखकर मैं पुस्तक-प्रेषक गंगा पुस्तक माला के अधिकारियों के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करना चाहता हूँ।

    एक समय था, जब मैं मतिराम, पद्माकर और बिहारीलाल आदि कवियों की कविता की ओर अधिक आकृष्ट था। उसे मैं पढ़ता ही नहीं, कंठ तक करता था। परंतु गुण-दोष विवेचन की ओर मेरी दृष्टि थी। कालांतर में जब मेरा मन अन्य भाषाओं के कवियों के काव्य की ओर आकृष्ट हुआ, तब हिंदी के पुराने कवियों के विषय में मेरा मन उदासीन-सा हो गया। यह उदासीनता यहाँ तक बढ़ी कि संस्कृत के कवियों की उक्तियों की तुलना में हिंदी कवियों की उक्तियाँ बिल्कुल ही जँचने लगी। कभी-कभी तो पिछले कवियों की कोई-कोई उचित उनका उपहास तक करने के लिए यदा-कदा मेरे मुँह से निकल जाने लगी। अपनी इस मनोवृत्ति का एक उदाहरण या प्रमाण जब तक याद है। मतिराम का एक सर्वधा है, जिसका अंतिम चरण है—कान्ह की बात बार दीन सुगेह की दोहरी पे धरि आई।

    इसका पहला चरण मुझे लिखना चाहिए था, पर जान-बूझकर मैंने उसे नहीं लिखा क्योंकि यह विशेष उद्वेगजनक है।

    मैंने मतिराम के केवल दो ग्रंथ देखे थे। एक रसराज, दूसरा ललितललाम। उनमें उस समय मुझे कोई विशेष पता नहीं ज्ञात हुई और विवेचना शक्ति का कुछ बड़ा-सा आविर्भाव मेरे हृदय में, होने पर भी मैंने कभी इन पुस्तकों को पढ़ा नहीं। परंतु प्रस्तुत पुस्तक की कॉपी मिलने पर मैंने भी उसकी भूमिका पढ़ी और मूल ग्रंथों को उलट-पुलटकर देखा तो मुझे अपने पूर्व-संस्कार बहुत कुछ भ्राँत मालूम हुए। मतिराम ने अपने समय के अनुरूप नायिका-भेद और अलंकार विषय पर जो कुछ लिखा है उसके लिए वह प्रशंसा ही के पात्र माने जा सकते हैं। वह समय ही वैसा था। तब इन्हीं बातों की—इन्हीं विषयों की कविता की—चाह थी। और वह इस प्रकार की कविता-रचना में अवश्य ही सफल हुए हैं। मतिराम की कविता में इनके पूर्ववर्ती—हिंदी और संस्कृत दोनों ही के—कवियों की कृतियों की छाया ही नहीं, कहीं-कहीं उनके प्रायः अनुवाद तक पाए जाते हैं। तथापि उनकी कविता का बहुत कुछ अंश उनकी निज की भी उपज मालूम होता है। उनकी कोई-कोई बहुत ही मनोहारिणी है। यथा सतराई के दोहे—

    अंगनि पिय संग में बरखत हुते पियूख।

    ते बीछू के डंक से भरा मयंक मयूख॥594॥

    लाल तिहारे चलन की सुनी बाल यह बात।

    सरद नदी के स्रोत लौं प्रतिदिन सुखत जात॥616॥

    आजकल की विशेष परिमार्जित रुचि को देखते मतिराम की कितनी ही उक्तियाँ अश्लील नहीं तो उद्वेगजनक ज़रूर ही हैं; परंतु जिस समय उनका जन्म हुआ था, उस समय वे वैसी समझी जाती थीं। इस बात को हमें भूलना चाहिए। पुराने कवियों की कृति का विचार करते समय उनके आविर्भाव काल और परिस्थिति का ज़रूर विचार करना चाहिए। यदि उन्होंने समयानुकूल रचना भी की हो तो भी उनकी पुस्तकों का योग्यतापूर्वक संपादन करके उन्हें सर्वसाधारण के लिए सुलभ कर देना विचारवान और साहित्य-हितैषी पुस्तक प्रकाशकों का कर्त्तव्य है। अतएव लखनऊ की गंगा पुस्तकमाला के मालिकों ने इस ग्रंथावली का प्रकाशन करके अपने कर्त्तव्य का प्रशंसनीय पालन किया है।

    इस पुस्तक में कोई 500 पृष्ठ हैं। पूर्वार्द्ध में 250 पृष्ठों की एक भूमिका है। और उत्तरार्द्ध में मतिराम के तीन ग्रंथ 'रसराज', 'ललितललाम' और 'सतसई' है। पिछली पुस्तक अब तक दुष्प्राप्य थी। उसकी प्राप्ति अभी कुछ ही समय पहले हुई है। इन तीनों पुस्तकों के नीचे पाद-टीकाओं में उचित टिप्पणियाँ भी संपादक ने दे दी है। उनकी लिखी भूमिका बहुत विस्तृत है उसमें उन्होंने मतिराम के जीवन-चरित के सिवा उनकी कविता की आलोचना अनेक दृष्टियों से की है। आरंभ में उन्होंने कविता के प्रयोजन, कविता की भाषा, रस-अलंकार; नायिका-भेद आदि का भी विस्तृत वर्णन किया है। उसका कुछ अंश अप्रासंगिक और अनावश्यक-सा मालूम होता है। परंतु जिन्होंने इन विषयों का ज्ञान अन्य मार्गों से नहीं प्राप्त किया उनके लिए वह भी ज्ञानवर्द्धक हो सकता है। इस पुस्तकावली के संपादक पंडित कृष्णबिहारी मिश्र वी० ए०, एल-एल० बी० है। आपकी लिखी भूमिका इस बात का प्रमाण है कि आप हिंदी के पुराने कवियों की कविता के विशेषज्ञ है।

    दौलतपुर, रायबरेली 24-9-26

    महावीरप्रसाद द्विवेदी

    स्रोत :
    • पुस्तक : महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड-2 (पृष्ठ 288)
    • संपादक : भारत यायावर
    • रचनाकार : महावीरप्रसाद द्विवेदी
    • प्रकाशन : किताबघर प्रकाशन
    • संस्करण : 2007

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