यदि अहं भाव करता हूँ तो हे ईश्वर! तू प्राप्त नहीं होता और यदि तू प्राप्त हो जाता है तो अहं-भाव नहीं रह पाता।
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ज्ञान बातों से नहीं ढूँढ़ा जा सकता। ज्ञान-प्राप्ति की बात कहना लोहे को चबाने के समान है। ईश्वर-कृपा से ही वह प्राप्त होता है, अन्य चतुराइयाँ आदि तो नष्ट ही करते हैं।
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