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कविता 54
गीत 1
उद्धरण 4
अकेले बैठना, चुप बैठना—इस प्रश्न की चिंता से मुक्त होकर बैठना कि ‘क्या सोच रहे हो?’—यह भी एक सुख है।
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साहित्य तुम्हारी तुम्हीं से पहचान और गहरी करता है।
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कपड़े पहनने ही के लिए नहीं हैं—उतार कर रखना भी होता है कि धुल सकें।
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