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थप्प रोटी थप्प दाल

thapp roti thapp daal

रेखा जैन

रेखा जैन

थप्प रोटी थप्प दाल

रेखा जैन

नोट

प्रस्तुत पाठ एनसीईआरटी की कक्षा चौथी के पाठ्यक्रम में शामिल है।

(पर्दा खुलने पर बच्चे खेलते हुए दिखाई पड़ते हैं। सब बच्चे हल्ला मचाते, हँसते हुए बड़े उत्साह के साथ खेल रहे हैं। अचानक मुन्नी अपने घर से भागी-भागी वहाँ आती है और नीना को पुकारती है। नीना खेल छोड़कर सामने एक किनारे पर आ जाती है। पीछे बच्चों का खेल चलता रहता है।)

मुन्नी - (पुकारकर) ओ नीना, नीना सुन!

नीना - (पास आते हुए) क्यों क्या बात है मुन्नी?

मुन्नी - देख नीना, आज मैंने अम्मा से आटा, घी, दाल, दही, साग, चीनी, मक्खन सब चीज़ें ले ली हैं। चल, रोटी का खेल खेलेंगे। 

नीना - हाँ, ख़ूब मज़ा आएगा। चलो, उन लोगों को भी बुला लें। (ताली बजाकर)

अरे चुन्नू, सुनो, अब इस खेल को खेलते तो बहुत देर हो गई। चलो, अब रोटी का खेल खेलें।

सब - हाँ, हाँ! यह ठीक है।

मुन्नी - अच्छा-अच्छा चलो। देख चुन्नू, तू और टिंकू, बाज़ार से साग-सब्ज़ी लाने का काम करना।

नीना -  नहीं, मुन्नी, इन दोनों से दाल बनवाएँगे। जब इनसे आग तक नहीं जलेगी, तब मज़ा आएगा।

चुनू - तो क्या तू समझती है हम आग नहीं जला सकते? चल रे टिंकू, आज इन्हें दाल बनाकर दिखा ही देंगे। क्यों?

टिंकू - हाँ, हाँ दोस्त। देख लेंगे।

मुन्नी - तो सरला, तू क्या करेगी?

सरला - भई, मैं तो दही का मट्ठा चला दूँगी।

मुन्नी - और तरला, तू।

तरला - मैं? मैं तेरे संग रोटी बनाऊँगी।

नीना - ठीक है, मैं बिल्ली बन जाती हूँ। ख़ूब मज़ा आएगा! तुम्हारी सारी चीज़ें खा जाऊँगी।

(मट्ठा चलाने की हांडी लेकर अभिनय के साथ सरला और तरला रंगमंच पर आती हैं। फिर गगरी उतारने का और रई से मट्ठा चलाने का अभिनय करती हैं। एक बच्चा रोता हुआ माँ के पास आता है। वह उसे मक्खन देने का अभिनय करती है और प्यार से पास में बिठाकर फिर मट्ठा चलाने लगती है। मुन्नी दौड़कर आती है। मट्ठा देखने का अभिनय करती है।)

मुन्नी - वाह, ख़ूब चलाया मट्ठा, 

        देखूँ यह मीठा या खट्टा।

सरला - क्या देखोगी!

इस मट्ठे का बढ़िया स्वाद, 

खाकर सब करते हैं याद।

(चुन्नू, टिंकू कंधे पर बोझ रखे हुए आते हैं।)

तरला - यह लो, चुन्नू-टिंकू आए, देखें क्या तरकारी लाए।

चुनू - (बोझ उतारते हुए) ओहो, पीठ रही हैं दुख।

टिंकू - मुझको लगी करारी भूख।

मुन्नी - (मुँह मटकाते हुए) बच्चूजी, भूख लगने से क्या होगा? अब पहले तुम आग जलाओ, और हांडी में दाल पकाओ।

चुनू - अरे हाँ। 

       चल जल्दी से दाल पकाएँ।

       बड़ियों का भी स्वाद चखाएँ।

(दोनों आग जलाने, फूँक मारने और धुएँ की वजह से आए आँसू पोंछने का अभिनय करते हैं। फिर दाल और बड़ी पकाते हैं। कलछी से दाल चलाकर चखते हैं कि उँगली जल जाती है। उँगली जलने के अभिनय के साथ-साथ मुन्नी पास आकर इन्हें देखती है।)

मुन्नी - टिंकू ने पकाई बड़ियाँ, 

        चुन्नू ने पकाई दाल, 

        टिंकू की बड़ियाँ जल गईं, 

        चुन्नू का बुरा हाल।

(तरला तथा अन्य सहेलियाँ एक ओर से आती हैं। हाथ कमर पर इस प्रकार रखा है जैसे हाथ में डलिया हो। आकर बैठ जाती हैं। फिर गाकर रोटी पकाने का अभिनय करती हैं।)

लड़कियाँ - थप्प रोटी थप्प दाल, 

              खाने वाले हो तैयार।

(ये पंक्तियाँ दो बार गाई जाने के बाद चुन्नू और टिंकू के दोस्त एक पंक्ति में एक के पीछे एक क़दम बढ़ाते हुए बड़ी शान के साथ आकर एक ओर बैठ जाते हैं। फिर लड़कियों की ओर हाथ फैलाकर माँगते हुए गाकर दो बार कहते हैं।)

चुन्नू - लाओ रोटी लाओ दाल, 

       लाओ ख़ूब उड़ाएँ माल।

(मुन्नी और तरला की सहेलियाँ रोटी की डलिया उठाने का अभिनय करती हुई एक पंक्ति में लड़कों के पास आकर उन्हें रोटी देने के अंदाज़ में दो बार गाकर कहती हैं।)

मुन्नी आदि - ले लो रोटी ले लो दाल,

               चखकर हमें बताओ हाल।

चुन्नू आदि - (चिढ़ाकर) खट्टा (पर जैसे ही मुन्नी ग़ुस्से से उनकी ओर देखती है तो कहते हैं) नहीं, नहीं मीठा। खट्टा नहीं, नहीं, मीठा।

(खाने का अभिनय करते हुए) खट्टा, मीठा, खट्टा मीठा, खट्टा, मीठा, खट्टा, मीठा। (कुछ रुककर)

सब बच्चे - आधी खाएँ आधी रखें, 

              अब सो जाएँ, उठकर चखें।

(सब बच्चे सो जाते हैं। अचानक बिल्ली की म्याऊँ सुनाई पड़ती है। बिल्ली का प्रवेश। वह चारों ओर देखती है तो होंठों पर जीभ को फेरकर बड़ी ख़ुश होकर कहती है।)

बिल्ली - ओहो! मक्खन कितना सारा,

           झट से चटकर करूँ किनारा।

(आगे बढ़कर ऊपर उछलती है, छींके पर से कुछ चीज़ लेने का अभिनय करती है।)

है छींके पर यह क्या रखा,

आन रही क्या, अगर न चखा।

(हाथ बढ़ाकर रोटी निकालते हुए)

रोटी कैसी गर्म-गर्म है, 

घी से चुपड़ी नर्म-नर्म है। (खाते हुए)

मक्खन रोटी चावल दाल, 

जी भर खाया कित्ता माल।

और देखो वह— 

मुन्नी, चुन्नू, टिंकू सारे, 

ख़र्राटे भर रहे बेचारे। 

अब चुपके से सरपट जाऊँ। 

आलसियों को सबक सिखाऊँ। 

म्याऊँ, म्याऊँ, म्याऊँ, म्याऊँ।

(बिल्ली जाती है। अंगड़ाई लेकर सरला उठती है और मक्खन के बर्तन को ख़ाली देखकर आश्चर्य से चिल्लाती हुई कहती है।)

सरला - ओ रे चुन्नू, टिंकू भाई,

          कहाँ है मक्खन और मलाई?

मुन्नी - (चौंककर उठते हुए)

अरे ज़रा छींके तक जाना,

और रोटी का पता लगाना। हाय रे!

ना रोटी, ना दूध मलाई, 

लगता है बिल्ली ने खाई।

एक बच्चा - बिल्ली आई आधी रात,

              खा गई रोटी, खा गई भात।

दूसरा बच्चा - क्या कहा

                बिल्ली आई आधी रात,

                खा गई रोटी, खा गई भात?

टिंकू - चलो बिल्ली की ढूँढ़ मचाएँ 

         फिर चोरी का मज़ा चखाएँ।

सब बच्चे - ठीक-ठीक।

(बच्चे मिलकर बिल्ली को ढूँढ़ने जाते हैं। कुछ बच्चे अंदर जाते हैं, बाहर आते हैं। कुछ रंगमंच पर सामने की ओर देखते हैं, कभी बैठकर नीचे झुककर देखते हैं। और नहीं मिलने प्रकट करते जाते हैं। तभी तरला-सरला चीख़कर कहती हैं।)

तरला-सरला - यह लो

                  मिल गई बिल्ली,

                  मिल गया चोर।

(बिल्ली घबराई हुई सी रंगमंच पर आ जाती है। सब उसे पकड़ते हैं।)

सब - करो पिटाई इसकी ज़ोर।     

(हँसकर मारने का अभिनय करते हुए) 

बोल, अब खाएगी मेरी रोटी

अब खाएगी मेरी दाल?

बिल्ली - हाँ खाऊँगी सौ-सौ बार

          जो सोओगे टाँग पसार।

(यह कहकर बिल्ली भागने का प्रयत्न करती है। पर सब बच्चे उसे घेर लेते हैं। तीन-चार बार ऐसा करने के बाद बिल्ली घेरा छोड़कर भाग जाती है, और सारे बच्चे ‘पकड़ो पकड़ो’ का शोर मचाते हुए उसके पीछे-पीछे भागते हैं।)

(पर्दा गिरता है।)

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रेखा जैन

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स्रोत :
  • पुस्तक : रिमझिम (पृष्ठ 80)
  • रचनाकार : रेखा जैन
  • प्रकाशन : एनसीईआरटी
  • संस्करण : 2022
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

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