एक कीड़ा होता है—अँखफोड़वा, जो केवल उड़ते वक़्त बोलता है—भनु-भनु-भन्! क्या कारण है कि वह बैठकर नहीं बोल पाता? सूक्ष्म पर्यवेक्षण से ज्ञात होगा कि यह आवाज़ उड़ने में चलते हुए उसके पंखों की है।
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साहित्य की पौध बड़ी नाज़ुक और हरी होती है। इसे राजनीति की भैंस द्वारा चर लिए जाने से बचाए रख सकें तभी फ़सल हमें मिल सकती है।
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साहित्यकार को चाहिए कि वह अपने परिवेश को संपूर्णता और ईमानदारी से जिए।
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सूक्ष्मता से देखना और पहचानना साहित्यकार का कर्तव्य है—परिवेश से ऐसे ही सूक्ष्म लगाव का संबंध साहित्य से अपेक्षित है।
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लेखक के संप्रेषण में ईमानदारी है तो रचना सशक्त होगी—चाहे जिस विधा की हो।
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