रीतिकाल के अलक्षित नीति कवि।
राजनीति सबही पढ़े, सब ते राखे स्नेह।
जा के किमत नहिं जसू, लगे कुलच्छन एह॥
चोरी चुगली पर तिया, कोऊ काम कुकाम।
एती बात न जानिये, सोऊ रैयत नाम॥
जो दीजै परधान पद, तो कीजे इतवार।
जो इतवार न होय जसु, तो परधान निवार॥
रैयत सब राज़ी रहै, मेटन राउत मान।
आमद घटै न राय की, ऐसे करै प्रधान॥
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