इड़ा-गंग, पिंगला-जमुन, सुखमन-सरसुति-संग।
मिलत उठति बहु अरथमय, अनुपम सबद-तरंग॥
गांधी-गुरु तें ग्याँन लै, चरखा-अनहद-ज़ोर।
भारत सबद-तरंग पै, बहत मुकति की ओर॥
नखत-मुकत आँगन-गगन, प्रकृति देति बिखराय।
बाल हंस चुपचाप चट, चमक-चोंच चुगि जाय॥
संतत सहज सुभाव सों, सुजन सबै सनमानि।
सुधा-सरस सींचत स्रवन, सनी-सनेह सुबानि॥
हृदय कूप, मन रहँट, सुधि-माल, रस राग।
बिरह बृषभ, बरखा नयन, क्यों न सिंचै तन-बाग॥
हिलोर
प्राचीन पंडित और कवि
प्रेम की भेंट
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जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली
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