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चाणक्य

चाणक्य की संपूर्ण रचनाएँ

उद्धरण 3

कर्मचारी उस अर्थ का थोड़ा भी स्वाद लें, यह संभव नहीं।

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जैसा अन्न खाया जाता है, वैसी ही प्रजा होती है। दीपक अँधेरे को खाता है और काजल को उत्पन्न करता है।

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शास्त्र अनेक हैं, विद्याएँ भी बहुत हैं, समय थोड़ा है, विघ्न भी बहुत हैं। अतएव जैसे हंस जल-मिश्रित दूध में से दूध को ले लेता है, उसी प्रकार जो कुछ सारभूत हो, उसी को ग्रहण कर लेना चाहिए।

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