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अरुंधती रॉय

1961 | शिलॉन्ग, मेघालय

सुप्रसिद्ध लेखिका और समाजसेवी।

सुप्रसिद्ध लेखिका और समाजसेवी।

अरुंधती रॉय के उद्धरण

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इतिहास, रात में एक पुराने मकान सरीखा है, जिसकी सारी बत्तियाँ रोशन हों और अंदर पुर्खे फुसफुसा रहे हों। इतिहास को समझने के लिए हमें अंदर जाकर यह सुनना होगा कि वे क्या कह रहे हैं। और किताबों और दीवार पर टंगी तस्वीरों को देखना होगा। और गंध सैंधनी होगी। मगर हम भीतर नहीं जा सकते क्योंकि दरवाज़े हमारे लिए बंद हैं। और जब हम खिड़कियों से भीतर झाँकते हैं, हमें सिर्फ़ परछाइयों दिखाई देती हैं। और जब हम सुनने की कोशिश करते हैं, हमें सिर्फ़ फुसफुसाहटें सुनाई देती हैं। और हम फुसफुसाहटों को समझ नहीं पाते क्योंकि हमारे दिमाग़ों में एक युद्ध छिड़ा हुआ है। एक युद्ध जिसे हमने जीता भी है और हारा भी है। सबसे ख़राब क़िस्म का युद्ध। ऐसा युद्ध जो सपनों को बंदी बनाता है और उन्हें फिर से सपनाता है। ऐसा युद्ध जिसने हमें अपने विजेताओं की पूजा करने और अपना तिरस्कार करने पर मजबूर किया है।

हम युद्ध-बंदी हैं। हमारे सपनों में मिलावट कर दी गई है। हम कहीं के नहीं रहे हैं। हम अशांत समुद्रों पर लंगरविहीन जहाज़ की तरह यात्रा कर रहे हैं। हो सकता है, हमें कभी किनारा मिले। हमारे दुख कभी उतने दुखद नहीं होंगे। हमारे सुख कभी उतने सुखद। हमारे सपने कभी उतने विशाल होंगे। हमारी ज़िंदगियाँ उतनी महत्त्वपूर्ण कि उनकी कोई अहमियत हो।

सारी हिंदुस्तानी माएँ अपने बेटों से अभिभूत रहती हैं और इसीलिए वे उनकी योग्यताओं के सिलसिले में सही न्याय नहीं कर पातीं।

  • संबंधित विषय : माँ

यह दिलचस्प है कि कैसे मृत्यु की स्मृति कभी-कभी उस जीवन की स्मृति की तुलना में कहीं देर तक ज़िंदा रहती है, जिसे उसने हस्तगत कर लिया होता है।

उन्होंने आसानी से माफ़ कर दिए जाने की माँग नहीं की थी। वे सिर्फ़ ऐसी सज़ाएँ चाहते थे, जो उनके अपराधों से मेल खाएँ।

आख़िरकार, कितना आसान होता है एक कहानी को चूर-चूर कर देना। ख़यालों के एक सिलसिले को तोड़ देना। एक सपने के टुकड़े को नष्ट कर देना, जिसे चीनी मिट्टी के किसी पात्र की तरह सावधानी से सँजोकर यहाँ-वहाँ ले जाया जा रहा हो। उसे जीवित रहने देना, उसका साथ देना, कहीं अधिक कठिन काम है।

गंध, संगीत की तरह, स्मृतियों को संभाले रखती है।

कुछ चीज़ें ऐसी होती हैं जो भुलाई जा सकती हैं। और कुछ चीज़ें ऐसी होती हैं जो भुलाई नहीं जा सकतीं—जो गर्द से अटे ख़ानों में द्वेष-भरी आँखों से अगल-बग़ल घूरने वाले भूस -भरे पक्षियों की तरह बैठी रहती हैं।

एक मछुआरे के लिए यह मान लेना कितना ग़लत है कि वह अपनी नदी को अच्छी तरह जानता है।

  • संबंधित विषय : नदी

जब तुम लोगों को चोट पहुँचाते हो तो वे तुम्हें पहले से थोड़ा कम प्यार करने लगते हैं। लापरवाही से बोले गए शब्द ऐसा ही करते हैं। वे लोगों को तुम्हें पहले से थोड़ा कम प्यार करने के लिए मजबूर कर देते हैं।

दूसरों की ग़रीबी की तरह, दुर्गंध भी आदी होने का ही मामला है। अनुशासन का मामला है। कठोरता और एयर-कंडीशनिंग का मामला है। बस, और कुछ नहीं।

इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता था कि कहानी शुरू हो चुकी थी, क्योंकि कथकली ने बहुत पहले यह ख़ोज कर ली थी कि महान गाथाओं का रहस्य यह होता है कि उनमें कोई रहस्य नहीं होता। महान गाथाएँ वे होती हैं जिन्हें तुमने सुन रखा होता है और जिन्हें तुम फिर से सुनना चाहते हो। जिनमें तुम कहीं से भी प्रवेश कर सकते हो और आराम से रह सकते हो। वे तुम्हें सनसनी और रोमांच और चतुराई-भरे अंत से धोखा नहीं देतीं। वे तुम्हें अप्रत्याशित चीज़ों से चकित नहीं करतीं। वे उतनी ही चिर-परिचित होती हैं जितना वह घर जिसमें तुम रहते हो। या जितनी तुम्हारे प्रेमी की त्वचा। तुम जानते हो उनका अंत क्या है, फिर भी तुम यों सुनते हो जैसे तुम्हें पता हो। उसी तरह जैसे हालाँकि तुम जानते हो कि एक दिन तुम मर जाओगे, तुम यों जीते हो जैसे तुम कभी मरोगे नहीं। महान गाथाओं में तुम जानते हो कि कौन जीवित रहता है, कौन मरता है, किसे प्रेम मिलता है, किसे नहीं। और इसके बावजूद तुम फिर से जानना चाहते हो।

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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