उत्तरी ध्रुव की यात्रा-2
uttari dhruw ki yatra 2
डाक्टर कुक और कमांडर पीरी में तुमुल वाग्युद्ध हो रहा है। एक दूसरे को अपदस्थ करने की कोशिश में अपनी पूरी पूरी शक्ति खर्च कर रहा है। तुम झूठे हो, तुम उत्तरी ध्रुव तक हरग़िज नही गए—इस प्रकार परस्पर एक दूसरे पर अभिशाप लगा रहा है। योरप और अमेरिका में दो पक्ष हो गए हैं। एक पीरी का पृष्ठपोषक बना है, दूसरा कुक का। ये दोनों ही महात्मा अमेरिका के रहने वाले हैं। इस कारण अमेरिका में इनके झगड़े की मात्रा बेहद बढ़ रही है। दूसरा कुक के। अमेरिका के प्रसिद्ध नगर न्यूयार्क के अधिकारियों ने कुक के दावे को सच समझ कर उनका बढ़िया सत्कार किया है। उधर अमेरिका की संयुक्त रियासतो के भूतपूर्व प्रेसिडेंट रूज़वेल्ट ने कमांडर पीरी ही से हाथ मिला कर उन्हें उत्तरी ध्रुव की चढ़ाई पर भेजा था। कमांडर पीरी अमेरिका की फ़ौज में अफ़सरी कर चुके हैं। उन्होंने प्रेसिडेंट ‘रुज़वेल्ट’ ही के नामानुसार अपने जहाज़ का नाम ‘रूज़वेल्ट ’ रखा था। इसी जहाज़ पर वे पहले और इस दफ़े भी उत्तरी ध्रुव की यात्रा करने गए थे।
अतएव पीरी की कामयाबी पर रूज़वेल्ट साहब को ज़रुर ही प्रसन्नता हुई होगी। न्यूयार्क की प्रधान भौगोलिक सभा ने भी पीरी के काग़ज़ात की जाँच करके उन्हें यथार्थ माना है।
पीरी के पक्षपाती कुक की बेतरब ख़बर ले रहे हैं। उत्तरी अमेरिका में अलास्का एक जगह हैं। उसमें मेलकिन्ले नाम का एक पर्वत है। उसके सर्वोच्च शिखर पर चढ़ जाना दुःसाध्य समझा गया था। कई वर्ष हुए डाक्टर कुक उस पर्वत पर चढ़े थे। बाद में उन्होंने प्रकाशित किया था कि मैं उसकी चोटी तक हो आया। अपने चढ़न उतरने का वृतांत भी उन्होंने प्रकाशित किया था। जो मनुष्य उस चढ़ाई में उनके साथ था उसने अब, इतने दिनों बाद हल्ला मचाया है कि डाक्टर कुक उस पहाड़ की चोटी तक गए ही नही। बीच ही से वे उतर आए थे और झूठ ही प्रकाशित कर दिया था कि मैं ऊपर तक हो आया। एक और तुर्रा सुनिए। डाक्टर कुक कहते हैं कि उत्तरी ध्रुव की चढ़ाई के विषय के काग़ज़ात मैं अमुक टापू के अमुक नगर में अमुक मनुष्य के पास रख आया हूँ। उनके आने पर मैं अपनी यात्रा का वैज्ञानिक वर्णन प्रकाशित करुँगा। इस ‘अमुक’ मनुष्य को लोगों ने ढूँढ़ निकाला और कुक के काग़ज़ात की बात उससे पूछी। वह कहता है कि मेरे पास कुक के काग़ज़ात की एक चिट भी नही। हाँ, दो-एक कुक ज़रुर मेरे पास रख आए हैं। उनमे चाहे जो भरा हो, मै नही जानता; वे सब बंद हैं।
इस प्रकार के पक्षपाती डाक्टर कुक के पीछे पड़ गए हैं। वे उन्हें हर तरह झूठा साबित करने की चेष्टा कर रहे हैं। वे कहते कि डाक्टर कुक के जी में यदि चालाकी न होती तो वे ध्रुव की यात्रा में अपने साथ किसी सभ्य आदमी को ज़रुर ले जाते। जंगली यस्किमो लोगों ही को वे अपना मददगार न बनाते। ख़ैर, जिन दो जंगली आदमियों को वे कहते हैं कि मेरे साथ थे उन्ही को हाज़िर करें। क्यों वे उन्हें वही छोड़ आए? बिना बरसों पहले से तैयारी किए, मछली मारने की एक साधारण सी नौका पर सवार होकर, कोई उत्तरी समुद्र की यात्रा नहीं कर सकता।
अमेरिका के न्यूयार्क नगरसे ‘सायंटिफिक अमेरिकन’ नाम का एक वैज्ञानिक पत्र बहुत प्रतिष्ठित समझा जाता हैं। इसके लिखने के तर्ज़ से मालूम होता है कि यह डाक्टर कुक ही को उत्तरी ध्रुव का अविष्कारक समझता है। उसने पहले तो कुक की यात्रा का संक्षिप्त समाचार प्रकाशित किया; फिर पत्र के दूसरे अंक में पीरी और कुक के झगड़े पर अफ़सोस ज़ाहिर करके यह राय दी की पीरी ने यह बहुत ही अनुचित बात की जो लबराडोर से तार द्वारा कुक के अविष्कार को झूठा ठहराया। इसी अंक में उसने सेक्सटंट नामक यंत्र द्वारा आकाश में सूर्य की अविस्थति और आक्षांश आदि जानने की तरकीब भी प्रकाशित की। आपने लिखा की इस यंत्र के द्वारा वैज्ञानिक जाँच करना कोई कठिन काम नही, अतएव डाक्टर कुक ने उत्तरी ध्रुव पर पहुँचकर ज़रुर ही इस यंत्र के द्वारा सब बातें जान लीं होगीं। क्यों न हो! आपके इस वैज्ञानिक औदार्य्य का मतलब डाक्टर कुक ही नही और भी लाखों आदमी समझ गए होंगे ख़ैर आपने यह सब करके पीरी की यात्रा का भी कुछ हाल अपने पत्र में छापा हैं। इस कृपा के लिए कमांडर पीरी ज़रुर ही आपके कृतज्ञ होंगे।
अँग्रेज़ी के प्रसिद्ध मासिक पत्र ‘रिव्यू आव् रिव्यूज़’ के संपादक स्टीड साहब डाक्टर कुक से मिलने डेनमार्क की राजधानी कोपिनहेगिन गए थे। उनकी राय है कि कुक बड़े सच्चे आदमी हैं। वे ज़रुर उत्तरी ध्रुव तक हो आए है। संभव है पीरी भी हो आए हों। पर डाक्टर कुक के बाद पीरी पहुँचे होगे स्टीड साहब पीरी सज्जन नहीं समझते। वे कहते हैं कि पीरी को डाक्टर कुक पर यह अभिशाप नहीं लगाया। पीरी ने कप्तान बर्टलेट को अपने साथ ध्रुव तक ले जाने से इंकार कर दिया। लौटते वक़्त डाक्टर कुक के यंत्र और काग़ज़ात भी अपने जहाज़ पर लाने से उन्होंने इंकार किया। यह उन्होंने भलमंसी का काम नहीं किया। इससे उनका ईर्षाद्वेष प्रकट होता है। अतएव डाक्टर कुक के ख़िलाफ़ कही गई उनकी बातें नहीं मानी जाएगी। ख़ैर।
पीरी ने अपनी यात्रा का संक्षिप्त हाल ‘न्यूयार्क टाइम्स’ नामक पत्र में प्रकाशित कराया है। डाक्टर कुक और कमांडर पीरी में से कौन सच्चा और कौन झूठा है, इसका निश्चय तो कुछ दिनों मे हो ही जाएगा। तब तक पीरी की यात्रा का थोड़ा सा वृतांत सुन लिजिए।
अमेरिका के एक अमीर आदमी उत्तरी समुद्र में शिकार खेलने जाते थे। उन्होंने कहा, डाक्टर कुक, तुम भी चलोगे? कुक ने कहा, बहुत अच्छा, खुशी से। बस डाक्टर साहब उनके साथ चल दिए। वहाँ एक जगह आपने बहुत से यस्किमो जाति के आदमियों को देखा। खाने का सामान भी बहुत सा आपको मिल गया। बस आपने ठेठ उत्तरी ध्रुव तक जाने की ठान दी। और गए भी और लौट भी आए। पर पीरी के लिए यह काम इतना सहज न था। उन्हें उत्तरी ध्रुव तक भेजने के लिए अमेरिका वालों ने एक सभा बनाई है। उसने हज़ारो रुपये एकत्र कर के पीरी की मदद की है। ‘रूज़वेल्ट’ नाम का जहाज़ भी उसी सभा का हैं। आज कोई 400 वर्ष से लोग उत्तरी ध्रुव तक पहुँचने की कोशिश कर रहे हैं। सब मिलाकर 21 आदमी ध्रुव की तरफ़ आज तक गए है। कोई कुछ अधिक दूर तक गया, कोई कुछ कम। इन्हीं आदमियों मे से पीरी भी एक हैं। आप इसके पहले दो दफ़े ध्रुव की ओर जा चुके है। पिछली दफ़े आप 87 अक्षांश तक पहुँच गए थे। उसका वर्णन इस लेख के प्रथमांश में दिया जा चुका है। वहाँ से उत्तरी ध्रुव सिर्फ़ 3 अक्षांश दूर था। वहाँ तक उनके पहले और कोई नही पहुँचा था। इससे उन्होंने एक दफ़े और कोशिश कर देखना चाहा। उन्होने कहा, संभव है इस दफ़े बाकी के 3 अंश भी तय हो जाए। कमांडर पीरी उत्तरी ध्रुव के आस-पास के टापुओ में बहुत समय तक घूमे हैं। उनका तजरबा कोई 23 वर्ष का है।
6 जुलाई 1908 को पीरी न्यूयार्क से रवाना हुए। नोवा स्कोटिया मे ब्रेटन नाम का जो अंतरीप है उसके पास सिडनी नाम के बंदरगाह में 17 जुलाई को उनका जहाज़ पहुँचा। वहाँ से न्यूफ़ौडलैड के किनारे किनारे चक्कर लगाते हुए वे डेविस नाम के मुहाने में पहुँचे। वहाँ से सीधे उत्तर की ओर जाकर वे बेफिन की खाड़ी में दाखिल हुए। वहाँ से चल कर ग्रीनलैंड टापू के पर्क अंतरीय के पास उन्होंने जहाज़ का लगर डाला। 1 अगस्त को वे वहाँ से आगे बढ़े। समुद्र मे जमे हुए बर्फ़ के टुकड़े इधर-उधर बह रहे थे। बड़ी कठिनता से उन टुकड़ो को बचाते हुए उन्हें अपना जहाज़ आगे की ओर चलाना पड़ा। धीरे-धीरे व ग्राटलैंड में पहुँचे। वहाँ शेरडिन नामक अंतरीप उन्होंने अपना जहाज़ ठहराया। 1 सितंबर को वे वहाँ पहुँचे। अंतरीप के पास तो वे पहुँच गए, पर किनारे पर जहाज़ लगाने मे उन्हे बड़ी आफ़ते झेलनी पड़ी। जाड़े शुरु हो गए थे। बर्फ़ की वर्षा हो रही थी। समुद्र जम चला था। इस दशा में जहाज़ को किनारे ले जाना असाध्य नही तो दुसाध्य ज़रुर वलाने लायक था तो दो मील जम गया था। खैर, किसी तरह राम राम करके सितंबर को जहाज़ किनारे लग गया।
वहाँ जोड़ो मे रहने के लिए एक छोटा सा घर लकड़ी के तख़्तों का बनाया गया। खाने-पीने का सब सामान उसी में रखा गया। फिर यह ठहरी कि शेरडिन अंतरीप से लेकर कोलंबिया अंतरीप तक जगह पर खाने-पीने की सामग्री रख आई जाए। इसके लिए बहुत सी बेपहिए की स्लेज नामक गाड़ियाँ तैयार की गई। उन में कुत्ते जोते गए। सामान लादा गया। और 15 सितंबर से 5 नवंबर तक वह सब सामान ढो कर थोड़ी दूर पर बनाए गए झोंपड़ों में रखा गया। यह इसलिए किया गया, जिसमें लौटते वक़्त खाने पीने का काफ़ी सामान रास्ते मे तैयार मिले। तब तक शिकार भी ख़ूब खेला गया। कितने ही रीछ, ख़रगोश और वालरस नाम के दरियाई घोड़े मारे गए। वैज्ञानिक जाँच भी उस प्रदेश की गई।
फरवरी में ‘रुज़वेल्ट’ जहाज़ वहीं पर छोड़ दिया गया। जितने लोग पीरी के साथ थे, तीन टुकड़ियों में बाँट दिए गए। सबके लिए अलग-अलग स्लेज गाड़ियाँ तैयार हुई। ये तीनों टुकड़ियों 15, 21 और 22 फरवरी को अलग अलग तीन आदमियो की अध्यक्षता में उत्तरी ध्रुव के लिए रवाना हुई। एक के अध्यक्ष हुए कप्तान बार्टलेट, दूसरू के अध्यापक मारटीन, तीसरी के कमांडर पीरी। सब मिलाकर इस चढ़ाई में 7 गोरे और 59 यास्किमो जाति के बर्फ़िस्तानी आदमी थे। स्लेज गाड़ियों की संख्या 23 थी और कुत्तों की 140।
कोलंबिया अंतरीप में तीनों टुकड़ियो एकत्र हुई। कुत्तों को विश्राम दिया गया। साथ ही गाड़ियों की मरम्मत की गई। खाने पीने का सामान फिर से सँभाला गया। 27 फ़रवरी तक यह सब होता रहा। बार्टलेट साहब आगे बढ़े। वे बहुत दूर तक निकल गए। उनके पीछे दूसरी टुकड़ी वालो को बर्फ़ ने बहुत सताया। ज़ोर की हवा ने बर्फ़ के टुकड़ों को तोड़-फोड़ डाला। समुद्र खुल गया। उस पर जो बर्फ़ जमा हुआ था वह बह गया। अब वह पार कैसे किया जाए? दो गाड़ियाँ वहाँ पर टूट गई। फिर आदमी पीछे भेजे गए अब वह पार कैसे किया जाए? दो गाड़ियाँ टूट गई। फिर आदमी पीछे भेजे गए। वे कोलंबिया अंतरीप से दो और गाड़ियाँ वहाँ ले गए। चौथे दिन खुले समुद्र को जाड़ो के बाद 5 मार्च को सूर्य के पहले पहल दर्शन हुए 11 मार्च को फिर कूच हुआ। वहाँ से सिर्फ़ 16 आदमी 12 गाड़ियाँ और 100 कुत्ते पीरी ने साथ रखे। बाकी के कुछ वही रहे, कुछ लौटा दिए गए। दो तीन गोरे भी आगे न बढ़ सके। एक का पैर सूज गया। एक रास्ता ही भूल गया। इसमे वे पीछे पड़े रह गए। मारटिन और बार्टलेट ने बहुत दूर तक पीरी का साथ दिया। परंतु खाने पीने का सामान कम रह जाने से मारटिन को भी पीछे ही पड़ा रह जाना पड़ा। रहे बार्टलेट, सो उनसे पीरी ने कहा, आप क्यों उत्तरी ध्रुव तक जाने का कष्ट उठावेंगे। मैं ही अमेरिका की तरफ़ से वहाँ तक जाने का बीड़ा उठा आया हूँ। सो अब मुझे ही जाने दीजिए।
कमांडर पीरी बड़ी मुस्तैदी और बहादुरी से आगे बढ़ने लगे। किसी दिन वे 20 मील चलते थे, किसी दिन 25 मील। मुसीबतो का तो कुछ ठिकाना ही न था। मारे जाड़ो के बर्फिस्तानी यस्किमो लोगों तक के नाकोंदम हो गया। अंगुलियाँ सूज गई। चेहरो की बुरी दशा हो गई। पीरी के क्लेशों की तो कुछ पूछिए ही नही। जहाँ ये लोग विश्राम के लिए ठहरते थे, वही पर कभी-कभी बर्फ़ फटकर खुला समुद्र निकल आता था और ये लोग डूबने से बाल-बाल बच जाते थे। चलते-चलते कमांडर पीरी 88 अक्षांश तक जा पहुँचे। अब उन्होंने सोना और आराम करना बहुत कम कर दिया। दौड़ने ही की उन्होंने धुन बाँधी। ज़रा आराम करना और फिर दौड लगाना। चौबीसवें पड़ाव पर पीरी ने जो यंत्र से दूरी जाँची तो मालूम हुआ कि वे लोग अक्षांश 89 कला 25 पर पहुँच गए हैं। अब वे बारह-बारह घंटे में चालीस-चालीस मील चलने लगे। छब्बीसवें पड़ाव पर वे अक्षांश 89 कला 57 पर जा पहुँचे। वहाँ से उत्तरी ध्रुव केवल 3 कला अर्थात् 3 मील का सफ़र तै कर डाला गया। ठीक उत्तरी ध्रुव पर जाकर 5 अप्रैल 1909 को पीरी ने उसे अपने पैरों के स्पर्श से पुनीत किया।
26 घंटे तक पीरी उत्तरी ध्रुव की जाँच करते रहे। वहाँ से पाँच मील पर बर्फ़ के टूट जाने से समुद्र निकल आया था उसकी गहराई नापने की आपने कोशिश की। पर थाह न मिली। इस नाप जोख में नापने का तार ही टूट गया।
अब पीरी ने बड़ी फुर्ती से लौटने की ठानी। लौटते वक़्त उन्होंने अपनी रफ़्तार और भी बढ़ा दी। जितनी दूरी को उन्होंने जाते समय 26 पड़ाव में तय किया था उतनी को लौटती बार सिर्फ़ 15 पड़ाव मे तै किया। इस प्रकार दौडने में सवार को भी मात करके कमांडर साहब 23 अप्रैल को कोलंबिया अंतरीप तक पहुँच गए। दो कूचों में वे अपने जहाज़ ‘रूज़वेल्ट’ के पास आ गए और उसे सुरक्षित पाया। दो महीने तक वही रहकर उन्होंने कितने ही प्रकार की वैज्ञानिक जाँच की। इस बीच में जो सामाग्री मार्ग के पड़ावों में रह गई थी वह भी वापस आ गई। 18 जुलाई 1909 को वहाँ से कूच हुई 5 दिसम्बर को वे लबराडोर मे पहुँच गए। वही से आपने तार दिया—“उत्तरी ध्रुव पर मैं अमेरिका का झंडा गाड़ आया।’’
- पुस्तक : महावीर प्रसाद रचनावली 4 (पृष्ठ 371)
- रचनाकार : महावीर प्रसाद द्विवेदी
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