हिंद महासागर में छोटा-सा हिंदुस्तान
hind mahasagar mein chhota sa hindustan
रामधारी सिंह दिनकर
Ramdhari Singh Dinkar
हिंद महासागर में छोटा-सा हिंदुस्तान
hind mahasagar mein chhota sa hindustan
Ramdhari Singh Dinkar
रामधारी सिंह दिनकर
और अधिकरामधारी सिंह दिनकर
नोट
प्रस्तुत पाठ एनसीईआरटी की कक्षा छठी के पाठ्यक्रम में शामिल है।
यात्रा पर मैं दिल्ली से 15 जुलाई को, बंबई (मुंबई) से 16 जुलाई को और नैरोबी से 17 जुलाई को मॉरिशस के लिए रवाना हुआ। इधर से जाते समय नैरोबी (केन्या) की दुनिया में मुझे एक रात और दो दिन ठहरने का मौक़ा मिल गया। अतएव मन में यह लोभ जग गया कि मॉरिशस के भारतीयों और अफ़्रीकियों से मिलने के पूर्व हमें अफ़्रीका के शेरों से मुलाक़ात कर लेनी चाहिए। जहाज़ (विमान) दूसरे दिन शाम को मिलने वाला था। अतएव, हम जिस दिन नैरोबी पहुँचे, उसी दिन नेशनल पार्क में घूमने को निकल गए।
नैरोबी का नेशनल पार्क चिड़ियाघर नहीं है। शहर से बाहर बहुत बड़ा जंगल है, जिसमें घास अधिक, पेड़ बहुत कम हैं। लेकिन जंगल में सर्वत्र अच्छी सड़कें बिछी हुई हैं और पर्यटकों की गाड़ियाँ उन पर दौड़ती ही रहती हैं। हमारी गाड़ी को भी काफ़ी देर तक दौड़ना पड़ा, मगर सिंह कहीं भी दिखाई नहीं पड़े। एक जगह सड़क पर दो मोटरें खड़ी थीं और उन पर तरह-तरह के बंदर और लंगूर चढ़े हुए थे। पर्यटक लोग इन बंदरों को कभी-कभी फल या बिस्कुट खाने को दे देते हैं। अतएव मोटर के रुकते ही बंदर उसे घेर लेते हैं।
बड़ी दूरी तय करने के बाद या यों कहिए कि दस-बीस मील के भीतर हर सड़क छान लेने के बाद, हम उस जगह जा पहुँचे, जहाँ सिंह उस दिन आराम कर रहे थे। वहाँ जो कुछ देखा, वह जन्मभर कभी नहीं भूलेगा। कोई सात-आठ सिंह लेटे या सोए हुए थे और उन्हें घेरकर आठ-दस मोटरें खड़ी थीं। तुर्रा यह कि सिंहों को यह जानने की कोई इच्छा ही नहीं थी कि हमें देखने को आने वाले लोग कौन हैं? मोटरों और शीशे चढ़ाकर उनके भीतर बैठे लोगों की ओर सिंहों ने कभी भी दृष्टिपात नहीं किया, मानो हम लोग तुच्छातितुच्छ हों और उनकी नज़र में आने के योग्य बिल्कुल नहीं हों। हम लोग वहाँ आधा घंटा ठहरे होंगे। इस बीच एक सिंह ने उठकर जम्हाई ली, दूसरे ने देह को ताना, मगर हमारी ओर किसी भी सिंह ने नज़र नहीं उठाई। हम लोग पेड़-पौधे और खरपात से भी बदतर समझे गए।
इतने में कोई मील-भर की दूरी पर हिरनों का एक झुंड दिखाई पड़ा, जिनके बीच एक जिराफ़ बिल्कुल बेवक़ूफ़ की तरह खड़ा था। अब दो जवान सिंह उठे और दो ओर चल दिए। एक तो थोड़ा-सा आगे बढ़कर एक जगह बैठ गया, लेकिन दूसरा घास के बीच छिपता हुआ मोर्चे पर आगे बढ़ने लगा।
हिरनों के झुंड ने ताड़ लिया कि उन पर सिंहों की नज़र पड़ रही है। अतएव वे चरना भूलकर (चौकन्ने हो उठे। फिर ऐसा हुआ कि झुंड से छूटकर कुछ हिरन एक तरफ़ को भाग निकले, मगर बाक़ी जहाँ-के-तहाँ ठिठके खड़े रहे। बाक़ी हिरन ठिठके हुए इसलिए खड़े थे कि सिंह उन्हें देख रहे थे और सहज प्रवृत्ति हिरनों को यह समझा रही थी कि ख़तरा किसी भी तरफ़ भागने में हो सकता है। शिकार सिंह सूर्यास्त के बाद किया करते हैं और शिकार वे झंड का नहीं करते, बल्कि उस जानवर का करते हैं जो भागते हुए झुंड से पिछड़ जाता है। अब यह बात समझ में आई कि हिरन भागने को निरापद नहीं समझकर एक गोल में क्यों खड़े थे। मुझे ऐसा महसूस हो रहा था कि मेरा रक्तचाप बढ़ रहा है। अतएव मैंने तय कर लिया कि अब घर लौटना चाहिए।
नैरोबी से मॉरिशस तक हम बी.ओ.ए.सी. के जहाज़ में उड़े। जहाज़ नैरोबी से चार बजे शाम को उड़ा और पाँच घंटों की निरंतर उड़ान के बाद जब वह मॉरिशस पहुँचा, तब वहाँ रात के लगभग दस बज रहे थे। रात थी, अँधेरा था, पानी बरस रहा था। मगर तब भी हमारे स्वागत में बहुत लोग खड़े थे। हवाई अड्डे के स्वागत का समाँ देखकर यह भाव जगे बिना नहीं रहा कि हम जहाँ आए हैं, वह छोटे पैमाने पर भारत ही है।
मॉरिशस द्वीप भूमध्य रेखा से कोई बीस डिग्री दक्खिन और देशांतर रेखा 60 के बिल्कुल पास, किंतु उससे पच्छिम की ओर बसा हुआ है। मॉरिशस की लंबाई 29 मील और चौड़ाई कोई 30 मील है। वैसे पूरे मॉरिशस द्वीप का रकबा 720 वर्गमील आँका जाता है। यह द्वीप हिंद महासागर का मोती है, भारत-समुद्र का सबसे ख़ूबसूरत सितारा है।
मॉरिशस वह देश है, जिसका कोई भी हिस्सा समुद्र से पंद्रह मील से ज़्यादा दूर नहीं है। मॉरिशस वह देश है, जहाँ की जनसंख्या के 67 प्रतिशत लोग भारतीय ख़ानदान के हैं तथा जहाँ 53 प्रतिशत लोग हिंदू हैं। मॉरिशस वह देश है, जिसकी राजधानी पोर्टलुई की गलियों के नाम कलकत्ता, मद्रास, हैदराबाद और बंबई हैं तथा जिसके एक पूरे मोहल्ले का नाम काशी है। मॉरिशस वह देश है, जहाँ बनारस भी है, गोकुल भी है और ब्रह्मस्थान भी। मॉरिशस वह देश है, जहाँ माध्यमिक स्कूलों को कॉलेज कहने का रिवाज़ है।
चूँकि मॉरिशस के हिंदुओं में से अधिकांश बिहार और उत्तर प्रदेश के लोग हैं, इसलिए हिंदी का मॉरिशस में व्यापक प्रचार है। मॉरिशस की राजभाषा अँग्रेज़ी, किंतु संस्कृति की भाषा फ्रेंच है। मगर जनता वहाँ क्रेयोल बोलती है। क्रेयोल का फ़्रेच से वही संबंध है, जो संबंध भोजपुरी का हिंदी से है। और क्रेयोल के बाद मॉरिशस की दूसरी जनभाषा भोजपुरी को ही मानना पड़ेगा। प्रायः सभी भारतीय भोजपुरी बोलते अथवा उसे समझ लेते हैं। यहाँ तक कि भारतीयों के पड़ोस में रहने वाले चीनी भी भोजपुरी बख़ूबी बोल लेते हैं। किंतु, मॉरिशस की भोजपुरी शाहाबाद या सारन की भोजपुरी नहीं है। उसमें फ़्रेच के इतने संज्ञापद घुस गए हैं कि आपको बार-बार शब्दों के अर्थ पूछने पड़ेंगे।
मॉरिशस में ऊख की खेती और उसके व्यवसाय को जो सफलता मिली है, भारतीयों के कारण मिली है। मॉरिशस की असली ताक़त भारतीय लोग ही हैं। सारा मॉरिशस कृषि-प्रधान द्वीप है, क्योंकि चीनी वहाँ का प्रमुख अथवा एकमात्र उद्योग है। किंतु भारतीय वंश के लोग यदि इस टापू में नहीं गए होते, तो ऊख की खेती असंभव हो जाती और चीनी के कारख़ाने बढ़ते ही नहीं।
भारत में बैठे-बैठे हम यह नहीं समझ पाते कि भारतीय संस्कृति कितनी प्राणवती और चिरायु है। किंतु, मॉरिशस जाकर हम अपनी संस्कृति की प्राणवत्ता का ज्ञान आसानी से प्राप्त कर लेते हैं। मालिकों की इच्छा तो यहीं थी कि भारतीय लोग भी क्रिस्तान हो जाएँ किंतु भारतीयों ने अत्याचार तो सहे, लेकिन प्रलोभनों को ठुकरा दिया। वे अपने धर्म पर डटे रहे और जिस द्वीप में भगवान ने उन्हें भेज दिया था, उस द्वीप को उन्होंने छोटा-सा हिंदुस्तान बना डाला। यह ऐसी सफलता की बात है, जिस पर सभी भारतीयों को गर्व होना चाहिए।
मॉरिशस के प्रत्येक प्रमुख ग्राम में शिवालय होता है। मॉरिशस के प्रत्येक प्रमुख ग्राम में हिंदू तुलसीकृत रामायण (रामचरितमानस) का पाठ करते हैं अथवा ढोलक और झाँझ पर उसका गायन करते हैं। मॉरिशस के मंदिरों और शिवालयों को मैंने अत्यंत स्वच्छ और सुरम्य पाया। कितना अच्छा हो, यदि हम भारत में भी अपने मंदिरों और तीर्थ स्थानों को उतना ही स्वच्छ और सुरम्य बनाना आरंभ कर दें, जितने स्वच्छ वे मॉरिशस में दिखाई देते हैं।
भारत के पर्व-त्योहार मॉरिशस में भी प्रचलित हैं। किंतु वर्ष का सर्वश्रेष्ठ धार्मिक पर्व शिवरात्रि है। मॉरिशस के मध्य में एक झील है, जिसका संबंध हिंदुओं ने परियों से बिठा दिया है और उस झील का नाम अब परी तालाब हो गया है। परी-तालाब केवल तीर्थ ही नहीं, दृश्य से भी पिकनिक का स्थान है। किंतु, वहाँ पिकनिक पर जाने वाले लोग अपने साथ माँस-मछली नहीं ले जाते, न अपवित्रता का वहाँ कोई व्यापार करते हैं।
शिवरात्रि के समय सारे मॉरिशस के हिंदू श्वेत वस्त्र धारण करके कंधों पर काँवर लिए जुलूस बाँधकर परी तालाब पर आते हैं और परी-तालाब का जल भरकर अपने-अपने गाँव के शिवालय को लौट जाते हैं तथा शिवजी को जल चढ़ाकर अपने घरों में प्रवेश करते हैं। ये सारे कृत्य वे बड़ी ही भक्ति-भावना और पवित्रता से करते हैं। सभी वयस्क लोग उस दिन उजली धोती, उजली क़मीज़ और उजली गाँधी टोपी पहनते हैं। हाँ, बच्चे हाफ़ पैंट पहन सकते हैं, लेकिन गाँधी टोपी उस दिन उन्हें भी पहननी पड़ती है। परी-तालाब पर लगने वाला यह मेला मॉरिशस के प्रमुख आकर्षणों में से एक है और उसे देखने को अन्य धर्मों के लोग भी काफ़ी संख्या में आते हैं।
- पुस्तक : मल्हार (पृष्ठ 128)
- रचनाकार : रामधारी सिंह दिनकर
- प्रकाशन : एनसीईआरटी
- संस्करण : 2022
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