Font by Mehr Nastaliq Web

डॉ० थॉमसन और उनका चिकित्सालय

Dau० thaumsan aur unka chikitsalay

विट्ठलदास मोदी

विट्ठलदास मोदी

डॉ० थॉमसन और उनका चिकित्सालय

विट्ठलदास मोदी

और अधिकविट्ठलदास मोदी

    एडिनवरा पहुँचने के दूसरे दिन सुबह उठकर नहाने-धोने के पश्चयात पहला काम मैंने डॉ० थामसन को मिलने का समय निश्चित करने के लिए फोन करने का किया। फोन पर मिली डॉ० थामसन की सेकेट्री कोई महिला। मैंने उन्हें अपना परिचय दिया।

    ‘’जी हाँ, आपका पत्र कल मिल गया था। यहाँ आप ग्यारह बजे पहुंच जाएँ। डॉ० थामसन से उस समय आपकी मुलाकात हो सकेगी।’’

    ‘’आपके यहाँ पहुँचने का रास्ता बताइए।’’

    ‘’आप तेरह नंबर की बस पकड़े और जहाँ शहर ख़त्म होकर हरियाली शुरू हो जाती है, वहीं हमारा क्लीनिक है। बस-कंडक्टर भी इस सवध में आपकी मदद करेगा। वह हमारे स्थान से परिचित है।’’

    मैंने उन्हें धन्यवाद दिया और अपने आने की सूचना डॉ० थामसन को देने की प्रार्थना की। तेरह नंबर की बस पकड़ने के लिए मैं दस बजे सड़क पर ठहरने के अड्डे पर गया। बसे पश्चिम की ओर से रही थीं। यह सड़क धीरे-धीरे ऊँचाई की ओर गई थी, अत लुढ़कती हुई आती बसें बच्चों के खिलौनों-सी दिखाई देती थी। सूरज की रोशनी उनपर पड़कर उनके हरे-पीले रंगो को और भी चमकीला बना देती और वे बड़ी सुहावनी प्रतीत हो रही थी। मेरी बस भी गई और उसमें मैंने अपनी जगह ली। बस-कंडक्टर से मैंने अपना गंतव्य स्थान बताकर अपना टिकट ख़रीदा। बस चलती-चलती शहर से पार हो गई और हरियाली के बीच गई।

    यहाँ सड़क के दोनों ओर हरी पत्तियों से लदे वृक्ष थे। थोड़ी देर में बस रुकी तो कंडक्टर ने मेरे पास आकर कहा—‘’डॉ० थामसन का चिकित्सालय गया।’’ और उसने सड़क के किनारे एक बड़े फाटक पर लगे साईंनबोर्ड की ओर इशारा किया, जिसपर लिखा था, ‘किंग्सटन क्लीनिक’। मेरे साथ ही एक अन्य युवक भी उतरे और मेरे साथ ही चलने लगे। मुझे अपने साथ देखकर बोले—‘’आप डॉ० थामसन के पास जा रहे हैं?’’

    ‘’जी हाँ, और आप?’’

    ‘’उन्ही के पास।’’

    ‘’उनसे चिकित्सा करा रहे हैं?’’

    ‘’नही, मैं उनका विद्यार्थी हूँ। इस समय कालेज की छुट्टी है,पर मैं उनकी सहायता के लिए रह गया हूँ।

    ‘’कॉलेज में विद्यार्थी कितने हैं?’’

    ‘’सोलह।’’

    ‘’और चिकित्सालय में रोगी कितने हैं?‘’

    ‘’तीस ‘’

    मेरा परिचय पाकर विद्यार्थी ने मुझसे हिंदुस्तान में प्राकृतिक चिकित्सा के संबंध में बहुत बातें पूछी और चिकित्सालय के संबंध में मेरी हर जिज्ञासा को शांत किया।

    डॉ थामसन का चिकित्सालय एक बहुत बड़े बाग़ में है, जिसके चारों ओर बहुत ऊँची-ऊँची दीवारें है। यह सारा स्थान पुराने समय में यहाँ के किसी छोटे रजवाड़े के हाथ में था। चिकित्सालय भी उसी के महल में है। महल पर ऊँचा गुंबद है,जो दूर से ही दिखाई देता है। अहाते में कुछ और भी इमारतें हैं। शेष बाग़ है, जिसमे फूलों की बहुतायत है। चिकित्सालय के चारों ओर डॉ० थामसन ने रोगियों के लिए तरह-तरह की तरकारियाँ भी लगा रखी हैं।

    चिकित्सालय में पहुँचा और जल्द ही मुझे डॉ० थामसन मिल गए। वह दौड़ते-से मेरे पास आए—बूढ़े शरीर से बहुत ही दृढ, कमर जरा झुकी हुई, पर फिर भी गर्दन ऊँची। आते ही उन्होंने मेरा हाथ पकड़ लिया, ‘’इतने दूर देश से आए अपने प्राकृतिक चिकित्सक बंधू से मिलकर मुझे बड़ी प्रसन्नता हो रही है।’’

    आपकी इस आत्मीयता के लिए आपका बहुत बृहत ह्र्दय है। ‘’वेल्सली’’ उन्होंने अपने चौबीस वर्षीय पुत्र को संबोधित किया ‘’तुम मिस्टर मोदी को चिकित्सालय दिखलाओ। और मिस्टर मोदी, अभी मेरे पास दो नए रोगी गए हैं। मैं उनसे बात करके निपट लूँ, तब आपसे फ़ुर्सत से बात करना चाहता हूँ। मेरा पुत्र वेल्सली मेरे सहकारी-का काम करता है। कॉलेज का काम इसी के हाथ में हैं। आप चिकित्सालय देखें, यहाँ भोजन करें, आराम करें। मैं दो बजे बैठकर आपसे बात करूँगा।

    ''भाग-दौड़ में तो मैं आपकी सारी बातें सुन पाउँगा और कुछ सुना पाउँगा।’’

    मैं श्री वेल्सली थामसन के साथ हो लिया। उन्होंने मुझे चिकित्सालय दिखलाया, जहाँ चालीस रोगियों के रहने की जगह है। रोगियों के रहने और चिकित्सालय का स्थान क़रीब-क़रीब डॉ० लीफके चिकित्सालय जैसा ही है। बाग़ में तरकारियों के खेत भी देखे। ये डॉ० थामसन को बहुत प्रिय हैं। लटूस ही अधिक लगी थी, जो शीशे में बंद थी।

    चिकित्सालय की व्यायामशाला विशेषरूप से उल्लेखनीय है। यह एक बड़े कमरे में है, जहाँ पच्चीस-तीस आदमी आसानी से कसरत कर सकते है। यहाँ तरह-तरह के व्यायाम करने के साधन रखे हुए हैं। डाक्टर थामसन का विश्वास है कि हर रोगी को कुछ-न-कुछ कसरत करनी ही चाहिए। कमज़ोर-से कमज़ोर रोगी भी कुछ कसरत कर सके, ऐसे साधन उन्होंने व्यायामशाला जुटा रखे है।

    घास के एक बड़े मैदान में पाँच-सात काठ की बड़ी सुंदर-सी झोपड़िया बनी थी, यहाँ बैठकर रोगी धूप-स्नान ले सकते है और पानी बरसने लगे तो झोपड़ियों में जाकर वर्षा से बच रखे है।

    चिकित्सालय के निकट ही डॉ० थामसन के कालेज की इमारत है। थामसन का कॉलेज ब्रिटेन का पहला प्राकृतिक चिकित्सा के शिक्षण का केंद्र है। यह लगभग पच्चीस वर्ष पहले स्थापित हुआ था। यहाँ से लगभग एक सी स्नातक कालेज का चार वर्ष का कोर्स समाप्त कर डिग्री प्राप्त कर चुके हैं। मैंने श्री वेल्सली से पूछा—‘’क्या सभी स्नातक चिकित्सा का कार्य कर रहे हैं?’’

    ‘’हाँ अधिकांश कर रहे हैं।’’

    ‘’जो नही कर रहे हैं वे कौन है?’’

    ‘’ऐसों में अधिकांश लडकियाँ हैं, जिन्होंने शादी के बाद चिकित्सा का काम बंद कर दिया है, पर कई ऐसी भी है, जिन्होंने शादी के पाँच-सात वर्ष बाद फिर काम शुरू किया है, पर ऐसे भी हैं, जो चिकित्सा नही चला सके और दूसरा धंधा इख़्तियार कर लिया। चिकित्सा चलाने के लिए केवल चिकित्सा का ज्ञान ही तो काफी नही है।’’

    एक बजे मैंने चिकित्सालय के भोजनालय से भोजन किया। वहाँ मेरा टेबुल का साथी एक किशोर था, जो मुझे भारतीय लगा। पूछने पर पता लगा कि यह दक्षिण अफ़्रीका का है। उसके माता-पिता भारत जाकर वहाँ बस गए थे।

    ‘’आप किस रोग से पीड़ित हैं‘’

    ‘’मिरगी से‘’

    ‘’प्राकृतिक चिकित्सा की ओर आपकी रूचि कैसे हुई?’’

    ‘’मेरे बड़े भाई यहाँ लंदन में पढ़ते है। उन्हें मेरे रोग के बारे में लिखा गया। उन्होंने पता लगाया तो उन्हें ज्ञात हुआ कि यह रोग प्राकृतिक चिकित्सा से ही जा सकता है और उन्होंने मुझे बुलाकर यहाँ करा दिया।’’

    ‘’कितने सप्ताह हुए यहाँ आए‘’

    ‘’चार सप्ताह।‘’

    ‘’लाभ है?’’

    ‘’मुझे प्रति सप्ताह दौरे आते हैं। यहाँ आने पर पहले दो सप्ताह तो दौरे आए, इधर दो सप्ताह से कोई दौरा नही आया है, पर डॉ० थामसन का कहना है कि अभी दौरे और सकते हैं।

    ‘’आप निश्चय कर लीजिए कि दौरे नही आएँगे तो फिर वे नही आएँगे।’’

    लड़के को बड़ी तसल्ली हुई। उसका मन चिकित्सा में खूब लग रहा था और यहाँ की चिकित्सा और व्यवहार से वह संतुष्ट था।

    दो बजे डॉ० थामसन भेंट हुई। वह मुझे अपने परीक्षा गृह में ले गए। हम बैठे तो वह आप-बीती सुनाने लगे, जो कशमकश से भरी हुई है। उनका सारा काम रोगियों द्वारा दी गई सहायता से चला है। एक स्त्री ने, जो सब कुछ चिकित्सा कराकर निराश हो चुकी थी, अपनी सारी संपत्ति इस चिकित्सालय और प्राकृतिक चिकित्सा के अन्वेषण के लिए लिख दी थी। अभी वह मरी है , पर उसकी वसीयत में उसके भाइयों के वकील ने खामी निकाल ली और सारी संपत्ति उन्हें मिल गई। उन्होंने दो ऐसी और घटनाएँ सुनाई, जिनमे डॉ० थामसन की आर्थिक समस्या हल होते-होते रह गई।

    मैं सोच रहा था कि दुनिया में हर जगह प्राकृतिक चिकित्सकों को कितना संघर्ष करना पड़ता है। यही कारण है कि प्राकृतिक चिकित्सा की ओर बहुत सशक्त व्यक्ति ही आकृष्ट होते हैं और उन्हें भी खड़े रहने में कितनी कठिनाई पड़ती है।

    डॉ० थामसन का प्रवाह रुक ही नही रहा था और समय तेज़ी से भागा जा रहा था। मैंने उन्हें रोकने के हिसाब से पूछा ‘’डाक्टर, मैंने अभी आपके कॉलेज के श्याम-पट्ट पर कुछ अक्षि-विज्ञान के नक़्शे देखे हैं। अक्षि-विज्ञान पर आपका कितना विश्वास है?’’

    ‘’अक्षि-विज्ञान का कहना है कि हमारे शरीर में जो भी रोग आते हैं, उनके चिन्ह शाखों की पुतलियों पर पड़ जाते हैं और रोग जाने की गति के साथ मिटते जाते हैं। अक्षि-विज्ञान रोग के निदान में बहुत सहायक होता है।’’

    ‘’अक्षि-विज्ञान में तो कहीं गलती नही है, पर रोग किसी अंग में थोड़े ही होता है। वह तो सारे शरीर में होता है, अत किसी अंग की चिकित्सा क्या करनी है, वह तो सारे शरीर की ही करनी चाहिए।’’

    डॉ० थामसन का उत्तर बड़ा ही प्रकाशपूर्ण था। उनके इस उत्तर ने मुझे उनके विचारों के सवध से अपनी शंकाएँ प्रकट करने का साहस दिया।

    मैंने कहा, ‘’डाक्टर, आपकी सारी बातें तो समझ में आती हैं, पर आपका पानी ना पीने का सिद्धांत समझ नही आता।

    ‘’पानी के लिए कुदरत ने फल-तरकारियाँ बनाई हैं, मनुष्य को उन्ही से जल प्राप्त करना चाहिए। जो फल तरकारी ना खाए या नमक-मसाले ले वे ही पानी पिए।

    मैं वहाँ रोगियों को राईस (एक पत्तीदार भाजी) खाने को कहता जो वे साधारण भोजन के साथ लेते हैं। मैं उन्हें दोपहर और शाम को तीन-तीन ओस (डेढ़ छटांक) मट्ठा भी पीने को देता हूँ।

    ‘’बिना पानी के उपवास कैसे कारगर हो सकता है?‘’

    ‘’होगा ही, पर मैं एक बार में दो-तीन दिन के उपवास से अधिक की आवश्यकता नही समझता।’’

    ‘’यहाँ तो शायद बिना पानी के चल सकता है, इतनी ठंडक जो पड़ती है, पर रेगिस्तान में अथवा गर्म देश में आपका सिद्धांत कैसे चलेगा?

    नियम तो सार्वभौम होना चाहिए।’’

    ‘’रेगिस्तान की बात मैं नही जानता, पर आपके देश के बंबई शहर में एक ऐलोपैथिक डाक्टर है,जो पानी नही पीते। उन्होंने ये विचार मेरे किसी लेख से लिए और लिखा कि पानी पीने से उनके अनेक रोग गए हैं और स्वास्थ्य सुधरा है, पर जब मैंने उन्हें लिखा कि जिन विचारों से आपको लाभ हुआ है, उनका प्रचार करें तो उनका कोई उत्तर नही आया।’’

    और आप एनिमालेना क्यों मना करते हैं?’’

    ‘’एनिमा लेना मैं मना नही करता, पर जब तक लोगों का ख्याल रहता है कि एनिमा से ही आँते साफ़ हो सकती हैं तब तक एनिमा देता हूँ, पर उसका भी पानी कम करता हूँ, जिससे उनका एनिमा लेने का ख्याल खत्म हो जाए।’’

    ‘’यह तो एनिमा छुड़ाने की ही बात हुई। फिर तो आप एनिमा के खिलाफ ही हैं।’’

    ‘’है तो कुछ ऐसी ही बात। मेरा अनुभव तो यही कहता है।’’

    डाक्टर थामसन को पानी पीने और एनिमा का प्रयोग करने के सब के लाख अनुभव हों, पर मैं उनके इन विचारों से उनका साहित्य पढ़कर सहमत हो सका, उनकी बातें ही मुझे प्रभावित कर सकीं।

    मैंने आगे प्रश्न किया।

    ‘’काइरोप्रैक्टिक और आस्टियोपैथी (अस्थिचिकित्सा ) के बारे में आपका क्या ख़याल है? लंदन के प्राकृतिक चिकित्सक तो ऐसी बात कहते है, जैसे आस्टियोपैथी के बगैर प्राकृतिक चिकित्सा चल ही नही सकती।

    ‘’काइरोप्रैक्टिक के मैं ख़िलाफ़ हूँ, उसमे शरीर को बहुत ज़ोर के झटके देने पड़ते हैं, जो बिल्कुल अस्वभाविक है और उसमे जितनी तेज़ी से लाभ होता है, उतनी ही तेज़ी से लाभ चला भी जाता है। हाँ, आस्टियोपैथी कुछ ठीक है, पर वह काम तो व्यायामों द्वारा पूरे तौर पर चल सकता है।

    आस्टियोपैथी मैं चिकित्सालय में चलता हूँ और शिक्षणालय में ही उसके शिक्षण का प्रबंध किया है।’’

    दो-चार साधारण प्रश्न मैंने डॉ० थामसन से और किए और फिर उठ खड़े हुए। डॉ० थामसन मुझे समुद्र के बीच की उस चट्टान की तरह लगे, जो अपने में दृढ है और जिसकी दृढता को आँधी-तूफ़ान और उसपर सतत चोट करनेवाली लहरें ही कोई क्षति पहुँचा सकी हैं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : विठ्ठलदास मोदी की यूरोप यात्रा (पृष्ठ 78)
    • रचनाकार : विठ्ठलदास मोदी
    • प्रकाशन : आरोग्य मंदिर गोरखपुर
    • संस्करण : 1961

    संबंधित विषय

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

    टिकट ख़रीदिए