साहित्य का फूल अपने ही वृंत पर
कला निष्कलुष है। दुनिया में वह अपना सानी नहीं रखती। साहित्यकार के लिए उसके अपर अंगों के ज्ञान से पहले बोध आवश्यक है। जैसे बीजमंत्र, उसका अर्थ, पश्चात् अनिंद्द सुंदर रूप उसी के फूल की तरह उसके अर्थ के। डेंटल पर खिला हुआ। नया जन्म जिस तरह, एक युग की संचित