रेल पर ब्लॉग

यातायात के आधुनिक साधनों

में से एक रेलगाड़ी ने कालक्रम में मानव-जीवन और स्मृति को व्यापक रूप से प्रभावित किया है और इसकी अभिव्यक्ति कविताओं में भी होती रही है। जहाँ स्वयं जीवन को एक यात्रा के रूप में देखा जाता हो, वहाँ यात्रा का यह साधन नैसर्गिक रूप से कविता का साधन भी बन जाता है। छुक-छुक की आवाज़, गुज़रते स्टेशन, पीछे छूटता घर, पड़ाव, मंजिल आदि कई रूपकों में रेल काव्याभिव्यक्तियों को समृद्ध बनाती रही है। इस चयन में रेल-विषयक कविताओं का एक अनूठा संकलन प्रस्तुत किया गया है।

जीवन का पैसेंजर सफ़र

जीवन का पैसेंजर सफ़र

यह नब्बे के दशक की बात है। 1994-95 के आस-पास की। हम राजस्थान विश्वविद्यालय में पढ़ा करते थे। साहित्य में रुचि रखने वाले हम कुछ दोस्तों का एक समूह जैसा बन गया था। इस समूह को हमने ‘वितान’ नाम दिया था।

प्रभात
मैं लेखकों की तरह नहीं लिख सकता

मैं लेखकों की तरह नहीं लिख सकता

But there are passions that it is not for man to choose. They are born with him at the moment of his birth into this world, and he is not granted the power to refuse them.                          

विजय शर्मा
कल कुछ कल से अलग होगा

कल कुछ कल से अलग होगा

…क्या ज़रूरी है कि आलोकधन्वा की कविताओं पर बात करते हुए यह बताया जाए कि वह एक आंदोलन से निकले हुए कवि हैं? क्या ज़रूरी है कि यह बताया जाए कि उनकी कविताएँ एक विशेष वैचारिक समझ की कविताएँ हैं? क्या ज़रूरी

अविनाश मिश्र
बहुत धीरे चलती थी मेरी काठगोदाम

बहुत धीरे चलती थी मेरी काठगोदाम

काठगोदाम एक्सप्रेस। गोरखपुर से होते हुए हावड़ा जंक्शन से चल कर काठगोदाम को जाने वाली। जो कई वर्षों से प्लेटफ़ॉर्म नंबर चार पर आ रही है। धीरे-धीरे। हथिनी की तरह मथते हुए। हल्के पदचापों सहित। डेढ़-दो घंटे

अतुल तिवारी

जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।

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