बनारस पर ब्लॉग

ग़ालिब ने बनारस को दुनिया

के दिल का नुक़्ता कहना दुरुस्त पाया था जिसकी हवा मुर्दों के बदन में भी रूह फूँक देती है और जिसकी ख़ाक के ज़र्रे मुसाफ़िरों के तलवे से काँटे खींच निकालते हैं। बनारस को एक जगह भर नहीं एक संस्कृति कहा जाता है जो हमेशा से कला, साहित्य, धर्म और दर्शन के अध्येताओं को अपनी ओर आकर्षित करता रहा। इस चयन में बनारस की विशिष्ट उपस्थिति और संस्कृति को आधार लेकर व्यक्त हुई कविताओं का संकलन किया गया है।

बनारस : आत्मा में कील की तरह धँसा है

बनारस : आत्मा में कील की तरह धँसा है

एक बनारस के छायाकार-पत्रकार जावेद अली की तस्वीरें देख रहा हूँ। गंगा जी बढ़ियाई हुई हैं और मन बनारस में बाढ़ से जूझ रहे लोगों की ओर है, एक बेचैनी है। मन अजीब शै है। दिल्ली में हूँ और मन बनारस में है।

कुमार मंगलम

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