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जिस दिन उन लोगों का विवाह होना निश्चित हुआ, उसी दिन से बर्तोलीनो ने अपनी भावी पत्नी को कहते सुना-जानते हो न, मेरा असली नाम लीना नहीं है। मेरा नाम है करोलीना, किंतु ‘वे’ मुझे लीना कह कर पुकारते थे। इसी कारण तभी से मेरा नाम लीना ही रह गया है। ओह! बहुत ही सज्जन थे वे। वह देखो उनकी तसवीर, कह कर लीना ने एक बड़े फ़ोटोग्राफ़ की ओर उँगली उठाई। बर्तोलीनो ने देखा, उसकी भावी पत्नी के प्रथम पति सिनोर कोसिमो ताद्देयी उसकी ओर मृदु मुस्कान के साथ टोपी उठा रहे हैं।

अपने अनजाने में बर्तोलीनो ने मृत सज्जन के अभिवादन के प्रत्युत्तर में अपना माथा क़रीब आधा झुका लिया था। ताद्देयी एक विख्यात मूर्तिकार थे। उनके निधन के उपरांत उनकी तसवीर को दीवाल पर से उतार कर रखने की बात उनकी विधवा पत्नी लीना सारूल्ली के मन में एक बार भी आई और आती भी क्यों? उनके प्रति लीना की कृतज्ञता भी तो कम नहीं है। उसका मान-सम्मान, घर-द्वार सुंदर-सुंदर तमाम सामान, ये सब कुछ तो वे ही रख गए हैं।

भावी द्वितीय पति की हैरानी के भाव की ओर तनिक भी ध्यान देती हुई लीना ने आगे कहा-असल में मैं नाम बदलना नहीं चाहती थी, परंतु वे जो कहते थे, उसको मैं ‘ना’ नहीं कह सकती थी। तुम भी मुझे उसी नाम से पुकारना क्यों? ठीक है न! ग़लत तो नहीं समझोगे न?

बर्तोलीनो अचकचा कर बोला—नहीं, अरे...नहीं...हाँ, हाँ, वह तो ठीक ही है। दीवाल पर टंगी बड़ी तसवीर की ओर से वह अपनी आँखें हटा सका। वे सज्जन उसी की ओर ताकते और मुस्कुराते हुए टोपी उठाए अभिवादन कर रहे थे।

तीन माह पश्चात् जब रिश्तेदार और मित्रगण लीना और उसके पति को हनीमून यात्रा के लिए विदा करने स्टेशन पर आए, तब लीना की प्रिय सखी अर्तेनसिया पोत्ता अपने पति की ओर देखकर एक गहरा नि:श्वास लेती हुई बोली—बेचारा बर्तोलिनो लीना की तरह की लड़की के साथ...

—क्यों, बेचारा क्यों? उसके पति बोल पड़े।

इन महोदय की काफ़ी उम्र हो गई है, लीना की दूसरी शादी की बात उन्होंने ही चलाई थी। इसी कारण इस शादी की किसी प्रकार की भी समालोचना सुनते ही उन्हें क्रोध आता था।

—बेचारा, कहने लायक कौन-सी बात हुई? बर्तोलीनो तो मूर्ख नहीं है, केमेस्ट्री पर उसका असाधारण अधिकार है।

—हाँ, केमेस्ट्री पर है, अर्तेनसिया बोली।

—देखना तुम, बर्तोलीनो बिलकुल यथार्थ पति सिद्ध होगा। केमेस्ट्री की कौन सी बात है? यदि तनिक प्रयास कर वह अपने सारे शोधकार्य छपवा देता तो आज सारे देश में वह एक आदर्श शिक्षक माना जाता। इसके अलावा ऐसा साफ़ दिल वाला नेक इंसान है।

बिल्कुल ठीक कहा, अत्यंत साफ़ दिलवाला नेक आदमी है। लीना के इस द्वितीय हनीमून की बातें सोच कर अर्तेनसिया मन ही मन बिना हँसे रह सकी। पहली बार भी लीना रोम गई थी। इस बार भी रोम जा रही है। पहली बार था फुर्तीला, धूर्त, उत्साही (कभी-कभी थोड़ा या अधिक उत्साही) सिनोर ताद्देयी, और इस बार उसकी जगह यह छोकरा बर्तोलीनो—गंजा सिर, मासूम चेहरे और अनुभव में बिल्कुल बच्चा है।

ट्रेन छूटने से पहले अनसेलमो चाचा ने बहू से कहा था—बर्तोलीनो की ज़रा देखभाल करना, उसका ज़रा ख़याल रखना। लीना अपने प्रथम: हनीमून के लिए पहले एक बार रोम चुकी थी। देश भ्रमण का सारा रहस्य उसे पता है—सारे सफर में वह बर्तोलीनो को लगभग बच्चों की तरह हाथ पकड़ कर ले आई।

अंत में गाड़ी जब रोम पहुंची तो वह पति से बोली—तुम कोई चिंता मत करो, उसकी मैं सब प्रबंध किए लेती हूँ। जो कुली उनका सामान एकत्र कर रहा था, ओर देख कर वह बोली—होटल विक्टोरिया।

स्टेशन के बाहर ही होटल विक्टोरिया की बस इंतज़ार कर रही थी। ड्राइवर को पहचान कर लीना ने उसकी ओर देख कर थोड़ा सिर हिलाया।

—सुंदर होटल है, देखो, छोटा-सा, साफ़-सुथरा, नौकर-चाकर चुस्त हैं, बिल्कुल शहर के बीच में और ख़र्च भी बहुत अधिक नहीं है। छह साल पहले उनके साथ प्रथम हनीमून में आकर मैं इसी होटल में ठहरी थी...तुम्हें भी यह अच्छा लगेगा, देखना।

वह होटल लीना को बिल्कुल घर की तरह लगा। किसी ने उसको पहचाना है, ऐसा प्रतीत नहीं हुआ, लेकिन वह सबको अवश्य ही पहचान सकी है। वह बूढ़ा वही पिप्पो है, छह साल पहले इसी आदमी ने उनकी सेवा-टहल की थी। वह उनको दूसरी मंज़िल में एन.12 नं. कमरे में ले गया, काफ़ी बड़ा कमरा है, भली-भाँति सजाया हुआ, किंतु लीना को वह कमरा पसंद नहीं आया।

—पिप्पो, उन्नीस नं. का कमरा क्या ख़ाली है? पिप्पो पता लगाने गया। उस मौक़े पर लीना को याद आया कि छह वर्ष पूर्व ‘उनके’ साथ भी ऐसा ही हुआ था। ‘उनके’ लिए दूसरी मंज़िल में एक कमरा इन लोगों ने ठीक कर रखा था, लेकिन ‘उन्होंने’ तीसरी मंज़िल का एन-19 नं. का कमरा माँगा।

—सुनते हो? वहीं हम लोग ठीक रहेंगे। शोरगुल कम है, हवा काफ़ी है। वही एक कमरा...

पिप्पो ने लौट कर जब बतलाया कि एन-19 नं. का कमरा ख़ाली है, तो लीना बच्चों की तरह ताली बजा कर हँस पड़ी। ठीक उसी कमरे में वह फिर रहेगी, वही सब असबाबात, उसी तरह सजाया हुआ, जंगले के पास वही छोटी-सी ताक। कितना मज़ा आएगा।

कहने की ज़रूरत नहीं, बर्तोलीनो...लीना की ख़ुशी में हिस्सा ले सका।

—क्यों जी, यह कमरा तुम्हें पसंद नहीं रहा है? लीना ने पूछा।

उदासभाव से बर्तोलीनो ने जवाब दिया—क्या बुरा है, तुम्हें पसंद है तो ठीक ही है। उसके बाद लीना जब कपड़े बदलने पर्दे के पीछे गई तो वह कमरे में पड़े पलंग की ओर देख कर सोचने लगा कि यहीं, इसी बिस्तर पर उसकी पत्नी ने अपनी प्रथम विवाहित रात्रि अपने प्रथम पति सिनोर ताद्देयी के साथ बिताई थी...और बहुत दूर उसकी पत्नी के मकान की दीवाल पर टंगी तसवीर में से सिनोर ताद्देयी की मूर्ति उसकी आँखों के सामने जाग उठी—स्मित हास्य के साथ उसकी ओर देख कर वे टोपी उठा रहे हैं।

हनीमून के वक़्त वे उसी बिस्तर में सोए, उसी रेस्ट्राँ में उन्होंने खाना खाया, वही सब दृश्य भी देखते फिरे, वही सब जादूघर, वही चित्रशालाएँ, वही सब गिरजे, यहाँ तक कि वही सब बाग़-बग़ीचे, जहाँ-जहाँ छह वर्ष पूर्व लीना अपने ‘उनके’ साथ गई थी।

बर्तोलीनो बहुत शर्मीले स्वभाव का आदमी है। किसी तरह भी मुँह खोलकर नहीं कह सका कि लीना के प्रथम पति के उपदेश, अनुभव, रुचि और इच्छा-अनिच्छा का पग-पग पर अनुसरण करते हुए चलना, उसे कितना बुरा लग रहा है। लीना ने भी इस पर ध्यान नहीं दिया कि उसका तरुण पति उसके व्यवहार से मन ही मन कितना मर्माहत हुआ है। अट्ठारह साल की उम्र में उसकी शादी हुई थी। उस समय वह लगभग बच्ची ही थी। कुछ भी समझती नहीं थी। जानती नहीं थी। उसी भले आदमी अर्थात् ताद्देयी ने उसे शिक्षा-दीक्षा देकर बड़ा किया। वह अपने प्रथम पति की ही सृष्टि है। जो कुछ भी उसके पास है, वह सब कुछ ही क्या उसने ‘उनसे’ नहीं पाया है? यहाँ तक की ‘उनसे’ अलग-थलग कुछ सोचने या अनुभव करने तक की क्षमता भी उसकी लोप हो गई थी।

उसने जो पुनर्विवाह किया है, वह भी सिनोर ताद्देयी के निर्देश के अनुसार है। ‘उन्होंने’ ही उसको सिखाया था कि अश्रुजल से जीवन की शुश्रूषा नहीं होती, जीवित के लिए जीवन और मृत के लिए मृत्यु का होना ज़रूरी है। केवल यही बात याद रखते हुए उसने बर्तोलीनो को पति रूप में ग्रहण किया था और किसी कारण से नहीं। बर्तोलीनो यदि उसे प्यार करता है तो उसकी मर्ज़ी को वह अवश्य ही मानकर चलेगा। और इसका अर्थ है ताद्देयी की इच्छा-अनिच्छा का अनुसरण करना। ‘वे’ ही मालिक हैं, जीवन-रथ के सारथी हैं। किंतु यौवन की अंधी अनभिज्ञता के वशीभूत होकर बर्तोलीनो ने सोचा, अति सामान्य कुछ भी क्या लीना उसे नहीं दे सकती? एक चुंबन, थोड़ा-सा प्यार, उसके प्रथम पति उसे जो कुछ सिखा गए हैं, उससे अलग कुछ? ऐसा कुछ जो उस गत व्यक्ति के प्रभुत्व से लीना को कुछ समय के लिए मुक्त कर सके। लेकिन यह बात प्रकट करने में भी उसे शर्म मालूम होती है और विद्रोह करने की बात तो वह सोच ही नहीं सकता।

हनीमून से लौटकर एक अप्रत्याशित बुरी ख़बर उन लोगों ने सुनी। सिनोर मोत्ता की, जिन्होंने उनकी शादी की बातें चलायी थी, अचानक मृत्यु हो गई। वह ख़ुद जब विधवा हो गई थी, उस समय इन्हीं मोत्ता की पत्नी अर्तेनसिया ने उसके लिए कितना किया था, यह बात क्या लीना भूल सकती थी? वह भी दौड़ गई, अपनी सहेली को सांत्वना प्रदान करने, सहायता करने। लेकिन वह समझ ही नहीं पाई कि पति की मृत्यु के दस दिन बाद भी अर्तेनसिया क्यों इतनी अधिक शोकाकुल है?

—उसे क्या हुआ है, बोलो तो? लौट कर उसने पति से पूछा। पत्नी की नासमझी को देखकर बर्तोलीनो शर्म से लाल पड़ गया।

—इसके माने जो भी कहो तुम, उसके पति का देहांत हो गया है।

—उसके पति? उनका देहांत हो गया है तो क्या हुआ? पिता की उम्र के पति, उसके लिए...

—तो क्या हुआ? क्या वह दु:खी नहीं हो सकती?

—पिता की उम्र के थे, पर पिता तो नहीं थे न? लीना जबरन बोल पड़ी।

लीना की ही बात सही है। अर्तेनसिया ने लक्ष्य किया था कि लीना के मुख से उसके मृत पति के बारे में सुनते-सुनते बर्तोलीनो के मन में घृणा भर गई थी। इसी कारण अर्तेनसिया गहरे दु:ख के भाव को धारण किए हुए उसके मन को भुलाने का प्रयास करने लगी। उसके दु:ख ने बर्तोलीनो को इतने गंभीर रूप से विचलित कर दिया कि उसने पहली बार अपनी स्त्री के ख़िलाफ़ विद्रोह किया।

—तुम...तुम भी क्या रोई नहीं थी?

वह और भी कुछ कहता शायद, किंतु लीना उसे बाधा देकर बोल पड़ी—उसके साथ मेरी तुलना। पहली बात है कि ‘वे’ वे थे!...

पत्नी के मुँह की बात काट कर बर्तोलीनो बोला—वे उस समय बूढ़े नहीं हुए थे, यही न?

—इसके अलावा...मैं भी क्या रोई नहीं थी? हाँ, रोई थी, कितना रोई थी...

लेकिन आख़िर तक मैंने अपने को संभाल लिया था, किंतु अर्तेनसिया क्या कर रही है? केवल रो रही है और रोती ही जा रही है मानो जीवन भर वह रोएगी ही। जानती हूँ, जानती हूँ मैं, यह सब दिखावटी रोना है।

—दिखावटी! असंभव! लीना की बात सुनते ही बर्तोलीनो का क्रोध बढ़ गया। उसे जितना ग़ुस्सा अपनी पत्नी पर आया, उससे कहीं अधिक ग़ुस्सा उसको आया उसके मृत पति पर, उन्हीं सिनोर ताद्देयी पर। वह आदमी जैसे अभी तक उसकी ओर देखता-मुस्कुराता हुआ टोपी उठाए हुए है। अभी तक उसने अपनी इच्छा और मर्ज़ी के वशीभूत कर रखा है, उसकी पत्नी को।

वही चित्र! वही चिरंतन हँसी! अब सहन नहीं होता। जहाँ भी वह जाता है, भूत की तरह पीछे पड़ा रहता है यह। वो है, उसकी आँखों के सामने हँस-हँस कर टोपी उठाकर मानो कह रहा है, अब तुम्हारी बारी है, हाथ-पैर फैलाकर काफ़ी आराम कर लो। यह कमरा किसी समय मेरा ऑफ़िस-रूम था, तुम्हारी केमिस्ट्री-लैब है। जीवित के लिए जीवन, मृत के लिए मृत्यु। सुख से रहो, शांतिपूर्वक काम करो।

शायद वह सोने के कमरे में आया है, वहाँ भी सिनोर ताद्देयी की मूर्ति मुख पर क्रूर हँसी के साथ प्रकट होती है’-आओ, आओ। कहो, अच्छे तो हो? मेरी पत्नी कैसी लग रही है तुम्हें? मैंने उसे अच्छी शिक्षा दी है कि नहीं, बोलो? जीवित के लिए जीवन, मृत के लिए मृत्यु।

नहीं, नहीं, अब बरदाश्त नहीं होता। घर के कोने में वह आदमी विराज रहा है। बर्तोलीनो जैसा निरीह आदमी है, अस्थिर हो उठा, छटपटाने लगा। पत्नी के निकट अपनी मानसिक दशा छिपाने के प्रयत्न में अब वह सफल हो सका। अंत में मन की भावना को छिपाने की चेष्टा करना ही उसने छोड़ दिया। उसने प्रयत्न किया अव्यवस्थित होने का, अजीब बनने का, जिससे पत्नी की पुरानी आदतों में हलचल पैदा हो, किंतु इस बार भी वह असफल रहा।

—तुम्हारा चाल-चलन बिलकुल ‘इनकी’ ही तरह हो रहा है, तनिक शासन के स्वर में लीना बोली, वे भी बहुत ही बेहिसाबी थे। ओह, बड़े ही सज्जन थे बिचारे!

शीघ्र ही बर्तोलीनो समझ गया कि उसके इस अव्यवस्थित व्यवहार की लीना मन ही मन प्रशंसा कर रही है। उसका यह सब काम लीना को बिल्कुल उसी व्यक्ति की याद दिलाता है, जिसको वह अपनी पत्नी के मन से हटा देना चाहता है अंत में एक बहुत ही बुरी चाल उसके मन में आई।

सही बात तो यह थी कि पत्नी को धोखा देने की उसकी उतनी इच्छा नहीं थी, जितनी थी प्रतिहिंसा की उत्तेजना। उसी व्यक्ति पर उसका आक्रोश है, जिसने उससे पहले ही उसकी पत्नी पर दख़ल जमाया था एवं मर कर भी जिसने उस पर अपना दख़ल नहीं छोड़ा था। उसके अनबूझ, अनभिज्ञ मन में यह धारणा हुई कि यह दुष्टता की चाल उसकी अपनी ही सृष्टि है।

वह सोच ही नहीं सका कि इस कुबुद्धि को अर्तेनसिया ने ही उसके अवचेतन मन में थोड़ा-थोड़ा करके प्रवेश कराया था। जब उसने विवाह नहीं किया था, तब पढ़ाई से उसका ध्यान हटाने की कोशिश अर्तेनसिया ने अनेक बार की थी, पर असफल हुई थी।

कुचक्री अर्तेनसिया अब चाल पर चाल चल रही थी। इधर-उधर करके बर्तोलीनो को उसने बहुत समझाया कि लीना की तरह प्रिय सहेली के साथ प्रवंचना करने में दु:ख से उसकी छाती फट रही है, किंतु बर्तोलीनो को वह बहुत पहले से ही प्यार करती रही है, लीना ने तब उसे देखा तक था। वह प्यार नियति की तरह अनतिक्रम्य है। लेकिन इसके बाद जो हुआ, उसमें नियति का कितना हाथ हो सकता है, बर्तोलीनो कुछ सोच ही सका। बेचारा भला मानस! उसकी गहरी चाल जो इतनी आसानी से सफल हुई, उससे कुछ हताश ही हुआ। उसे लगा, जैसे वह ठगा गया है। अपने पुराने मित्र मोत्ता के कमरे में जब वह अकेला हुआ, थोड़ी ही देर में पश्चात्ताप से उसका मन भर गया। हठात् उसकी नज़र पड़ी, बिस्तर के किनारे फ़र्श पर चमकती हुई कोई चीज़ पड़ी हुई है। छोटी-सी सोने की एक लॉकेट, अवश्य ही अर्तेनसिया के गले की होगी। वह उसे उठा कर अर्तेनसिया के लिए इंतज़ार करने लगा। हिलाते-डुलाते समय उसकी उत्तेजित अंगुलियों के दबाव से अचानक लॉकेट का मुँह खुल गया।

अपनी आँखों पर वह विश्वास कर सका। लॉकेट के अंदर था छोटे आकार का एक खुदा हुआ चित्र...सिनोर कोसिमो ताद्देयी का वही चित्र...वह मुस्कुरा कर उसकी ओर देखते हुए टोपी उठा रहे हैं।

स्रोत :
  • पुस्तक : विश्व की श्रेष्ठ कहानियाँ (खण्ड-2) (पृष्ठ 118)
  • संपादक : ममता कालिया
  • रचनाकार : लुइजी पिरण्डेलो
  • प्रकाशन : लोकभारती प्रकाशन
  • संस्करण : 2005
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

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