इस घटना का संबंध पिताजी से है। मेरे सपने से है और शहर से भी है। शहर के प्रति जो एक जन्म-जात भय होता है, उससे भी है।
पिताजी तब पचपन साल के हुए थे। दुबला शरीर। बाल बिलकुल मक्के के भुए जैसे सफ़ेद। सिर पर जैसे रुई रखी हो। वे सोचते ज़्यादा थे—बोलते बहुत कम। जब बोलते तो हमें राहत मिलती, जैसे देर से रुकी हुई साँस निकल रही हो। साथ-साथ हमें डर भी लगता। हम बच्चों के लिए वे एक बहुत बड़ा रहस्य थे। हमें पता था कि संसार के सारे ज्ञान की तिजोरी उनके पास है। हम जानते थे कि संसार की सारी भाषाएँ वे बोल सकते हैं। दुनिया उनको जानती है और हमारी तरह ही उनसे डरती हुई उनका सम्मान करती है।
हमें उनकी संतान होने का गर्व था।
कभी-कभी, वैसे ऐसा सालों में एकाध बार ही होता, वे शाम को हमें अपने साथ टहलाने कहीं बाहर ले जाते। चलने से पहले वे मुँह में तंबाकू भर लेते। तंबाकू के कारण वे कुछ बोल नहीं पाते थे। वे चुप रहते। यह चुप्पी हमें बहुत गंभीर, गौरवशाली, आश्चर्यजनक और भारी-भरकम लगती। छोटी बहन कभी उनसे रास्ते में कुछ पूछना चाहती तो फ़ौरन मैं उसका जवाब देने की कोशिश करता, जिससे पिताजी को न बोलना पड़े।
वैसे यह काम काफ़ी मुश्किल और जोखिम भरा होता। क्योंकि मैं जानता था कि अगर मेरा जवाब ग़लत हुआ तो पिताजी को बोलना पड़ जाएगा। बोलने में उन्हें परेशानी होती थी। एक तो उन्हें तंबाकू की पीक निकालनी पड़ती थी, फिर जिस दुनिया में वे रहते थे, वहाँ से निकलकर यहाँ तक आने में उन्हें एक कठिन दूरी तय करनी पड़ती थी। वैसे बहन के सवालों में कोई ख़ास बात होती नहीं थी। जैसे वह यही पूछ लेती कि सामने छिउले की सूखी टहनी पर बैठी उस चिड़िया को क्या कहते हैं? चूँकि सारी चिड़ियों को जानता था इसलिए बता सकता था कि वह नीलकंठ है और दशहरे के दिन से ज़रूर देखना चाहिए। मेरी पूरी कोशिश रहती कि पिताजी को आराम रहे और वे सोचते रहें।
मेरी और माँ की, दोनों की पूरी कोशिश रहती कि पिताजी अपनी दुनिया में सुख-चैन से रहें। वहाँ से उन्हें जबरन बाहर न निकाला जाए। वह दुनिया हमारे लिए बहुत रहस्यपूर्ण थी, लेकिन हमारे घर की और हमारे जीवन की बहुत-सी समस्याओं का अंत पिताजी वहीं रहते हुए करते थे। जैसे जब मेरी फ़ीस की बात आई, उस समय हमारे पास का आख़िरी गिलास भी गुम गया था और सब लोग लोटे में पानी पीते थे। पिताजी दो दिन तक बिलकुल चुप रहे। माँ को भी शक हुआ था कि पिताजी फ़ीस की बात बिलकुल भूल गए हैं या फिर इसका हल उनके वश की बात नहीं है। लेकिन तीसरे दिन, सुबह-सुबह, पिताजी ने मुझे एक पत्र लिफ़ाफ़े में रखकर दिया और शहर के डॉक्टर पंत के पास भेजा। मुझे बहुत आश्चर्य हुआ जब डॉक्टर ने मुझे शरबत पिलाई, घर के भीतर ले जाकर अपने बेटे से परिचय कराया और सौ-सौ के तीन नोट मुझे दिए।
हम पिताजी पर गर्व करते थे, प्यार करते थे, उनसे डरते थे और उनके होने का अहसास ऐसा था जैसे हम किसी क़िले में रह रहे हों। ऐसा क़िला, जिसके चारों ओर गहरी नहरें खुदी हुई हों, बुर्जे बहुत ऊँची हों, दीवारें सख़्त लाल चट्टानों की बनी हुई हों और हर बाहरी हमले के सामने हमारा क़िला अभेद्य हो।
पिताजी एक ख़ूब मज़बूत क़िला थे। उनके परकोटे पर हम सब कुछ भूलकर खेलते थे, दौड़ते थे। और, रात में ख़ूब गहरी नींद मुझे आती थी।
लेकिन उस दिन शाम को, जब पिताजी बाहर से टहलकर आए तो उनके टख़ने में पट्टी बँधी थी। थोड़ी देर में गाँव के कई लोग वहाँ आ गए। पता चला कि पिताजी को जंगल में तिरिछ (विषखापर, एक ज़हरीला लिज़ार्ड) ने काट लिया है।
हम सब जानते थे कि तिरिछ के काटने पर आदमी बच ही नहीं सकता। रात में, लालटेन की धुँधली-मटैली रौशनी में गाँव के बहुत से लोग हमारे आँगन में जमा हो गए थे। पिताजी उनके बीच थे, ज़मीन पर बैठे हुए। फिर पास के गाँव का चुटुआ नाई भी आया। वह अरंड के पत्ते और कंडे की राख से ज़हर उतारता था।
तिरिछ एक बार मैंने देखा था।
तालाब के किनारे जो बड़ी-बड़ी चट्टानों के ढेर थे, और जो दोपहर में ख़ूब गर्म हो जाते थे, उनमें से किसी चट्टान की दरार से निकलकर वह पानी पीने तालाब की ओर जा रहा था।
मेरे साथ थानू था। उसने बतलाया कि वह तिरिछ है, काले नाग से सौ गुना ज़्यादा उसमें ज़हर होता है। उसी ने बताया कि साँप तो तब काटता है, जब उसके ऊपर पैर पड़ जाए या कोई जब ज़बरदस्ती उसे तंग करे। लेकिन तिरिछ तो नज़र मिलते ही दौड़ता है। पीछे पड़ जाता है। उससे बचने के लिए कभी सीधे नहीं भागना चाहिए। टेढ़ा-मेढ़ा, चक्कर काटते हुए, गोल-मोल दौड़ना चाहिए।
दरअसल जब आदमी भागता है तो ज़मीन पर वह सिर्फ़ अपने पैरों के निशान ही नहीं छोड़ता, बल्कि हर निशान के साथ, वहाँ की धूल में, अपनी गंध भी छोड़ जाता है। तिरिछ इसी गंध के सहारे दौड़ता है। थानू ने बतलाया कि तिरिछ को चकमा देने के लिए आदमी को यह करना चाहिए कि पहले तो वह बिलकुल पास-पास क़दम रखकर, जल्दी-जल्दी कुछ दूर दौड़े फिर चार-पाँच बार ख़ूब लंबी-लंबी छलाँग दे। तिरिछ सूँघता हुआ दौड़ता आएगा, जहाँ पास-पास पैर के निशान होंगे, वहाँ उसकी रफ़्तार ख़ूब तेज़ हो जाएगी और जहाँ से आदमी ने छलाँग मारी होगी, वहाँ आकर वह उलझन में पड़ जाएगा। वह इधर-उधर तब तक भटकता रहेगा जब तक उसे अगले पैर का निशान और उसमें बसी गंध नहीं मिल जाती।
हमें तिरिछ के बारे में दो बातें और पता थीं। एक तो यह कि जैसे ही वह आदमी को काटता है, वैसे ही वह वहाँ से भागकर किसी जगह पेशाब करता है और उस पेशाब में लोट जाता है। अगर तिरिछ ने ऐसा कर लिया तो आदमी बच नहीं सकता। अगर उसे बचना है तो तिरिछ के पेशाब में लोटने के पहले ही, ख़ुद किसी नदी, कुएँ या तालाब में डुबकी लगा लेनी चाहिए या फिर तिरिछ के ऐसा करने के पहले ही उसे मार देना चाहिए।
दूसरी बात यह कि तिरिछ काटने के लिए तभी दौड़ता है, जब उससे नज़र टकरा जाए। अगर तिरिछ को देखो तो उससे कभी आँख मत मिलाओ। आँख मिलते ही वह आदमी की गंध पहचान लेता है और फिर पीछे लग जाता है। फिर तो आदमी चाहे पूरी पृथ्वी का चक्कर लगा ले, तिरिछ पीछे-पीछे आता है।
मैं भी तमाम बच्चों की तरह उस समय तिरिछ से बहुत डरता था। मेरे दुःस्वप्न के सबसे ख़तरनाक पात्र दो ही थे—एक हाथी और दूसरा तिरिछ। हाथी तो फिर भी दौड़ता-दौड़ता थक जाता था और मैं पेड़ पर चढ़कर बच जाता था, या फिर उड़ने लगता था, लेकिन तिरिछ उसके सामने तो मैं किसी इंद्रजाल में बँध जाता था। मैं सपने में कहीं जा रहा होता तो अचानक ही किसी जगह वह मिल जाता, उसकी जगह तय नहीं होती थी। कोई ज़रूरी नहीं था कि वह चट्टानों की दरार में, पुरानी इमारतों के पिछवाड़े या किसी झाड़ी के पास दिखे—वह मुझे बाज़ार में, सिनेमा हाल में, किसी दुकान या मेरे कमरे में ही दिख सकता था।
मैं सपने में कोशिश करता कि उससे नज़र न मिलने पाए, लेकिन वह इतनी परिचित आँखों से मुझे देखता कि मैं अपने-आपको रोक नहीं पाता था और बस, आँख मिलते ही उसकी नज़र बदल जाती थी—वह दौड़ता था और मैं भागता था।
मैं गोल-गोल चक्कर लगाता, जल्दी-जल्दी पास-पास डग भरकर अचानक ख़ूब लंबी-लंबी छलाँगें लगाने लगता, उड़ने की कोशिश करता, किसी ऊँची जगह पर चढ़ जाता, लेकिन मेरी हज़ार कोशिशों के बावजूद वह चकमा नहीं खाता था। वह मुझे बहुत घाघ, समझदार, चतुर और ख़तरनाक लगता। मुझे लगता कि वह मुझे ख़ूब अच्छी तरह से जानता है। उसकी आँखों में मेरे लिए परिचय की जो चमक थी, उससे मुझे लगता कि वह मेरा ऐसा शत्रु है जिसे मेरे दिमाग़ में आने वाले हर विचार के बारे में पता है।
मेरा सबसे ख़ौफ़नाक, यातनादायक, भयाक्रांत और बेचैनी से भरा यही सपना था। भागते-भागते मेरा पूरा शरीर थक जाता, फेफड़े फूल जाते, मैं पसीने में लथ-पथ होकर बेदम होने लगता और एक बहुत ही डरावनी, सुन्न कर डालने वाली मृत्यु मेरे बिलकुल क़रीब आने लगती। मैं ज़ोरों से चीख़ता, रोने लगता। पिताजी को, थानू को या माँ को पुकारता और फिर मैं जान जाता कि यह सपना है। लेकिन यह पता चल जाने के बावजूद मैं अच्छी तरह से जानता कि तब भी मैं अपनी इस मृत्यु से नहीं बच सकता। मृत्यु नहीं—तिरिछ द्वारा अपनी हत्या से-और ऐसे में मैं सपने में ही कोशिश करता कि किसी तरह मैं जाग जाऊँ। मैं पूरी ताक़त लगाता, सपने के भीतर आँखें खोलकर फाड़ता, रौशनी को देखने की कोशिश करता और ज़ोर से कुछ बोलता। कई बार बिलकुल ऐन मौक़े पर मैं जागने में सफल भी हो जाता।
माँ बतलाती कि मुझे सपने में बोलने और चीख़ने की आदत है। कई बार उन्होंने मुझे नींद में रोते हुए भी देखा था। ऐसे में उन्हें मुझे जगा डालना चाहिए, लेकिन वे मेरे माथे को सहला कर मुझे रज़ाई से ढक देती थीं और मैं उसी ख़ौफ़नाक दुनिया में अकेला छोड़ दिया जाता था। अपनी मृत्यु-बल्कि अपनी हत्या से बचने की कमज़ोर कोशिश में भागता, दौड़ता चीख़ता।
वैसे, धीरे-धीरे मैंने अनुभवों से यह जान लिया था कि आवाज़ ही ऐसे मौक़े पर मेरा सबसे बड़ा अस्त्र है, जिससे मैं तिरिछ से बच सकता था। लेकिन दुर्भाग्य से, हर बार, इस अस्त्र की याद मुझे बिलकुल अंतिम समय पर आती थी। तब, जब वह मुझे बिलकुल पा लेने वाला होता। अपनी हत्या की साँसें मुझे छूने लगतीं, मौत के नशे से भरे एक निर्जीव लेकिन डरावने अँधेरे में मैं घिर जाता, लगता मेरे नीचे कोई ठोस आधार नहीं है−मैं हवा में हूँ और वह पल आ जाता, जब मेरे जीवन का अंत होने वाला होता। तभी, बिलकुल इसी एक बहुत ही छोटे और नाज़ुक पल में मुझे अपने इस अस्त्र की याद आती और मैं ज़ोर-ज़ोर से बोलने लगता और इस आवाज़ के सहारे मैं सपने से बाहर निकल आता। मैं जाग जाता।
कई बार माँ मुझसे पूछतीं भी कि मुझे क्या हो गया था। तब मेरे पास इतनी भाषा नहीं थी कि मैं उन्हें सब कुछ, एक-एक चीज़ उसी तरह बता पाता। अपनी इस असमर्थता के बारे में मुझे ख़ूब पता था और इसी वजह से मैं एक अजीब-से तनाव, बेचैनी और असहायता से भर जाता। अंत में हारकर इतना ही कह पाता कि “बहुत डरावना सपना था।”
जाने क्यों मुझे शक था कि पिताजी को उसी तिरिछ ने काटा था, जिसे मैं पहचानता था और जो मेरे सपने में आता था।
लेकिन एक अच्छी बात यह हुई थी कि जैसे ही वह तिरिछ पिताजी को काटकर भागा, पिताजी ने उसका पीछा करके उसे मार डाला था। तय था कि अगर वे फ़ौरन उसे नहीं मार पाते तो वह पेशाब करके उसमें ज़रूर लोट जाता। फिर पिताजी किसी हाल में न बचते। यही वजह थी कि पिताजी को लेकर मुझे उतनी चिंता नहीं रह गई थी। बल्कि एक तरह की राहत और मुक्ति की ख़ुशी मेरे भीतर धीरे-धीरे पैदा हो रही थी। कारण, एक तो यही कि पिताजी ने तिरिछ को तुरंत मार डाला था और दूसरा यह कि मेरा सबसे ख़तरनाक, पुराना परिचित शत्रु आख़िरकार मर चुका था। उसका वध हो गया था और अब मैं अपने सपने के भीतर, कहीं भी, बिना किसी डर के सीटी बजाता घूम सकता था।
उस रात देर तक हमारे आँगन में भीड़ रही आई। पिताजी की झाड़-फूँक चलती रही। काटे के ज़ख़्म को चीर कर ख़ून भी बाहर निकाला गया और कुएँ में डालने वाली लाल दवा (पोटेशियम परमैंगनेट) ज़ख़्म में भरा गया। मैं निश्चिंत था।
अगली सुबह पिताजी को शहर जाना था। अदालत में पेशी थी। उनके नाम सम्मन आया था। हमारे गाँव से लगभग दो किलोमीटर दूर से निकलने वाली सड़क से शहर के लिए बसें गुज़रती थीं। उनकी संख्या दिन भर में मुश्किल से दो या तीन थी। ग़नीमत थी कि पिताजी जैसे ही सड़क तक पहुँचे, शहर जाने वाला पास के गाँव का एक ट्रैक्टर उन्हें मिल गया। ट्रैक्टर में बैठे हुए लोग पहचान के थे। ट्रैक्टर दो-ढाई घंटे में शहर पहुँच जाने वाला था। यानी अदालत खुलने से काफ़ी पहले।
रास्ते में तिरिछ वाली बात चली। पिताजी ने अपना टख़ना उन लोगों को दिखलाया। ट्रैक्टर में पंडित राम औतार भी थे। उन्होंने बतलाया कि तिरिछ के ज़हर की एक ख़ासियत यह भी है कि कभी-कभी यह चौबीस घंटे बाद, ठीक उसी वक़्त, जिस वक़्त पिछले दिन तिरिछ काटता है, अपना असर दिखाता है। इसलिए अभी पिताजी को निश्चिंत नहीं होना चाहिए। ट्रैक्टर के लोगों ने पिताजी का ध्यान एक और बड़ी ग़लती की ओर खींचा। उनका कहना था कि यह तो पिताजी ने बहुत ठीक किया कि तिरिछ को फ़ौरन मार डाला, लेकिन इसके बाद भी तिरिछ को यूँही नहीं छोड़ देना चाहिए था। उसे कम-से-कम जला ज़रूर देना चाहिए था।
उन लोगों का कहना था कि बहुत-से कीड़े-मकोड़े और जीव-जंतु रात में चंद्रमा की रौशनी में दुबारा जी उठते हैं। चाँदनी में जो ओस और शीत होती है उसमें अमृत होता है और कई बार ऐसा देखा गया है कि जिस साँप को मरा हुआ समझकर रात में यूँ ही फेंक दिया जाता है, उसका शरीर चाँद की शीत में भीग कर दुबारा जी उठता है और वह भाग जाता है। फिर वह हमेशा बदला लेने की ताक में रहता है।
ट्रैक्टर के लोगों को शक था कि कहीं ऐसा न हो कि रात में जी उठने के बाद तिरिछ पेशाब करके उसमें लोट जाए। ऐसा हुआ तो चौबीस घंटे बीतते-बीतते, ठीक उसी घड़ी के आने पर, तिरिछ का जानलेवा ज़हर पिताजी पर चढ़ना शुरू हो जाएगा। उन लोगों ने सलाह भी दी कि पिताजी को वहीं से वापस लौट जाना चाहिए और अगर संयोग से, उस तिरिछ की लाश उसी जगह पड़ी हुई हो, तो उसे अच्छी तरह जलाकर राख कर देना चाहिए। लेकिन पिताजी ने उन्हें बताया कि पेशी कितनी ज़रूरी थी। यह तीसरा सम्मन थी। और अगर इस बार भी वे अदालत में हाज़िर न हुए तो ग़ैर-ज़मानती वारंट निकलने का डर था। पेशी भी हमारे उसी मकान को लेकर थी, जिसमें हमारा परिवार रह रहा था। वकील को पिछले दो बार की पेशी में फ़ीस भी नहीं दी जा सकी थी और कहीं अगर उसने लापरवाही दिखला दी और जज सनक गया तो वह हमारी कुड़की-डिक्री भी करवा सकता था।
विचित्र स्थिति थी कि अगर पिताजी उस तिरिछ की लाश को जलाने के लिए ट्रैक्टर से उतरकर, वहीं से, गाँव लौट आते तो ग़ैरज़मानती वारंट के तहत वे गिरफ़्तार कर लिए जाते और हमारा घर हमसे छिन जाता। अदालत हमारे ख़िलाफ़ हो जाती।
लेकिन पंडित राम औतार एक वैद्य भी थे। ज्योतिष पंचांग के अलावा उन्हें जड़ी-बूटियों की भी बड़ी गहरी जानकारी थी। उन्होंने सुझाया कि एक तरीक़ा ऐसा है, जिससे पिताजी पेशी में हाज़िर भी हो सकते हैं और तिरिछ के ज़हर से चौबीस घंटे के बाद बच भी सकते हैं। उन्होंने बताया कि चरक का निचोड़ इस सूत्र में है कि विष ही विष की औषधि होता है। अगर धतूरे के बीज कहीं मिल जाएँ तो वह तिरिछ के ज़हर की काट तैयार कर सकते हैं।
अगले गाँव सामतपुर में ट्रैक्टर रोक दिया गया और एक तेली के खेत में धतूरे के पौधे आख़िरकार खोज निकाले गए। धतूरे के बीजों को पीसकर उसे ताँबे के पुराने सिक्के के साथ उबालकर काढ़ा तैयार किया गया। काढ़ा बहुत कड़वा था इसलिए उसे चाय में मिलाया गया और पिताजी को वह चाय पिला दी गई। इसके बाद सभी निश्चिंत हो गए। एक बहुत बड़े ख़तरे से पिताजी को निकालने की कोशिश हो रही थी।
वैसे मुझे तिरिछ के बारे में तीसरी बात भी पता थी, जो पिताजी के जाने के कई घंटे बाद अचानक याद आ गई थी। यह बात साँप की उस बात से मिलती-जुलती थी, जिसके फलस्वरूप आगे चलकर कैमरे का आविष्कार हुआ था।
माना यह जाता था कि अगर कोई आदमी साँप को मार रहा हो तो अपने मरने से पहले वह साँप, अंतिम बार, अपने हत्यारे के चेहरे को पूरी तरह से, बहुत ग़ौर से देखता है। आदमी उसकी हत्या कर रहा होता है और साँप टकटकी बाँधकर उस आदमी के चेहरे की एक-एक बारीकी को अपनी आँख के भीतरी पर्दे में दर्ज कर रहा होता है। साँप की मृत्यु के बाद साँप की आँख के भीतरी पर्दे पर उस आदमी का चित्र स्पष्ट दर्ज हो जाता है।
बाद में, आदमी के जाने के बाद, उस साँप का दूसरा जोड़ा जाकर उस मरे हुए साँप की आँख के भीतर झाँकता है और इस तरह वह हत्यारा पहचान लिया जाता है। सारे साँप उसे पहचानने लगते हैं। फिर वह कहीं भी चला जाए, उससे बदला लेने की फ़िराक़ में वे रहते हैं। हर साँप उसका शत्रु होता है।
मुझे शक था कि मरे हुए तिरिछ की आँख के भीतरी पर्दे पर पिताजी का चेहरा दर्ज होगा। कोई दूसरा तिरिछ आकर उस लाश की आँख में से झाँकेगा और पिताजी वहाँ पहचान लिए जाएँगे। मेरे भीतर इस बात को लेकर बेचैनी पैदा हुई कि पिताजी ने यह सतर्कता क्यों नहीं बरती? उन्हें तिरिछ को मारने के साथ ही किसी पत्थर से उसकी दोनों आँखों को कुचलकर फोड़ देना चाहिए था। लेकिन अब क्या हो सकता था? पिताजी शहर जा चुके थे और मेरे सामने उलझन और चुनौती थी कि गाँव के पास फैले इतने बड़े जंगल में जिस जगह तिरिछ को मारकर उन्होंने छोड़ा था, वह जगह मैं खोज निकालूँ।
मैं थानू के साथ बोतल में मिट्टी का तेल, दियासलाई और डंडा लेकर जंगल में तिरिछ की खोज में भटकता रहा। मैं उसे अच्छी तरह से पहचानता था। बहुत अच्छी तरह। थानू निराश था।
फिर, मुझे अचानक ही लगने लगा कि इस जंगल को मैं अच्छी तरह से जानता हूँ। एक-एक पेड़ मेरा परिचित निकलने लगा। इसी जगह से कई बार सपने में मैं तिरिछ से बचने के लिए भागा था। मैंने ग़ौर से हर तरफ़ देखा—बिलकुल यही वह जगह थी। मैंने थानू को बताया कि एक सँकरा-सा नाला इस जगह से कितनी दूर दक्षिण की तरफ़ बहता है। नाले के ऊपर जहाँ बड़ी-बड़ी चट्टानें हैं, वहाँ कीकर का एक बहुत पुराना पेड़ है, जिस पर बड़े-बड़े शहद के छत्ते हैं। उन्हें देखकर लगता है कि वे कई शताब्दियों पुराने हैं। मैं उस भूरे रंग की चट्टान को जानता था, जो बरसात भर नाले के पानी में आधी डूबी रहती थी और बारिश के बीतने के बाद जब बाहर निकलती थी तो उसकी खोहों में कीचड़ भर जाती थी और अजीब-अजीब वनस्पतियाँ वहाँ से उग आती थीं। चट्टान के ऊपर हरी काई की एक पर्त-सी जम जाती थी। इसी चट्टान की सबसे ऊपर वाली दरार में तिरिछ रहता था। थानू इस बात को मेरी कल्पना मान रहा था।
लेकिन बहुत जल्द हमें वह नाला मिल गया। कीकर का वह बूढ़ा पेड़ भी, जिस पर शहद के छत्ते थे, और वह चट्टान भी। तिरिछ की लाश चट्टान से ज़रा हटकर, ज़मीन पर, घास के ऊपर चित्त पड़ी हुई थी। बिलकुल यह वही तिरिछ था। मेरे भीतर हिंसा और उत्तेजना और ख़ुशी की एक सनसनी दौड़ रही थी।
थानू ने और मैंने सूखे पत्ते और लकड़ियाँ इकट्ठी की, ख़ूब सारा मिट्टी का तेल उसमें डाला और आग लगा दी। तिरिछ उसमें जल रहा था। उसके जलने की चिरायंध गंध हवा में फैल रही थी। मेरा मन ज़ोर से चिल्लाने को हुआ लेकिन मैं डरा कि कहीं मैं जाग न जाऊँ और यह सब कुछ सपना न साबित हो जाए। मैंने थानू की ओर देखा। वह रो रहा था। वह मेरा बहुत अच्छा दोस्त था।
मेरे सपने में इसी जगह से निकलकर उस तिरिछ ने कई बार मेरा पीछा करना शुरू किया था। आश्चर्य था कि इतने लंबे अर्से से उसके अड्डे को इतनी अच्छी तरह से जानने के बावजूद कभी दिन में आकर मैंने उसे मारने की कोई कोशिश नहीं की थी।
मैं आज बेतहाशा ख़ुश था।
पंडित राम औतार ने बतलाया था कि ट्रैक्टर ने पौने दस बजे के लगभग शहर का चुंगीनाका पार किया था। वहाँ उन्हें नाके का टोल टैक्स चुकाने के लिए कुछ देर रुकना भी पड़ा था। वहाँ पर पिताजी ट्रैक्टर से उतरकर पेशाब करने गए थे। लौटने पर उन्होंने बताया था कि उनका सिर कुछ घूम-सा रहा है, तब तक पिताजी को धतूरे का काढ़ा पिए हुए तक़रीबन डेढ़ घंटा हो चुका था। ट्रैक्टर ने पिताजी को शहर में दस बजकर पाँच-सात मिनट के आसपास छोड़ दिया था। ट्रैक्टर में ही बैठे पलड़ा गाँव के मास्टर नंदलाल का कहना था कि जब शहर में, मिनर्वा टाकीज के पास वाले चौराहे पर पिताजी को ट्रैक्टर से उतारा गया, तब उन्होंने शिकायत की थी कि उनका गला कुछ सूख-सा रहा है। वे थोड़ा परेशान भी थे क्योंकि अदालत जाने का रास्ता उन्हें मालूम नहीं था और शहर के लोगों से पूछ-पूछकर कहीं जाने में उन्हें बहुत तकलीफ़ होती थी।
पिताजी के साथ एक दिक़्क़त यह भी थी कि गाँव या जंगल की पगडंडियाँ तो उन्हें याद रहती थीं, शहर की सड़कों को वे भूल जाते थे। शहर वे बहुत कम जाते थे। जाना ही पड़े तो अंतिम समय तक वे टालते रहते थे, तब तक, जब तक जाना बिलकुल ही ज़रूरी न हो जाए। कई बार तो ऐसा भी हुआ कि पिताजी सारा सामान लेकर शहर के लिए रवाना हुए और बस अड्डे से लौट आए। बहाना यह कि बस छूट गई। जब कि हम सब जानते थे कि ऐसा नहीं हुआ होगा। पिताजी ने बस को देखा होगा, फिर वे कहीं बैठ गए होंगे—पेशाब करने या पान खाने। फिर उन्होंने देखा होगा कि बस छूट रही है। उन्होंने ज़रा-सा और इंतिज़ार किया होगा। जब बस ने रफ़्तार पकड़ ली होगी—तब वे कुछ दूर तक दौड़े होंगे। फिर उनके क़दम धीमे पड़ गए होंगे और अफ़सोस और ग़ुस्सा प्रकट करते वे लौट आए होंगे। ऐसा करते हुए उन्हें स्वयं भी लगा होगा कि बस सचमुच छूट गई है। ऐसे में, जबकि हम मान चुके होते कि वे शहर जा चुके हैं, वह लौटकर हमें चकित कर देते।
ट्रैक्टर से मिनर्वा टाकीज के पास वाले चौराहे पर, सिंध वाच कंपनी के ठीक सामने लगभग दस बज कर सात मिनट पर उतरने के बाद से लेकर शाम छह बजे तक पिताजी के साथ शहर में जो कुछ भी हुआ, उसका सिर्फ़ एक धुँधला-सा अनुमान ही लगाया जा सकता है। यह जानकारी भी कुछ लोगों से बातचीत और पूछताछ के बाद मिली है। किसी की भी मृत्यु के बाद, अगर वह मृत्यु बहुत आकस्मिक और अस्वाभाविक ढंग से हुई हो, ऐसी जानकारियाँ मिल ही जाती है। उस दिन, बुधवार 17 मई, 1972 को सुबह दस-दस से लेकर शाम छह बजे तक, लगभग पौने आठ घंटे में पिताजी कहाँ-कहाँ गए, कहाँ-कहाँ उनके साथ क्या-क्या हुआ, इसका बहुत सही और विस्तृत ब्यौरा तो मिलना मुश्किल है। जो सूचनाएँ या जानकारियाँ बाद में मिली, उनके ज़रिए उन घटनाओं का सिर्फ़ अनुमान ही लगाया जा सकता है।
जैसा कि पलड़ा गाँव के मास्टर नंदलाल का कहना था कि जब पिताजी ट्रैक्टर से उतरे, तभी उन्होंने गला सूखने की शिकायत की थी। इसके पहले चुंगीनाका के पास, जब पेशाब करके पिताजी लौटे थे तो उन्होंने सिर घूमने की बात की थी। यानी पिताजी पर धतूरे के बीजों के काढ़े का असर होना शुरू हो गया था। वैसे भी शहर पहुँचने तक पिताजी को काढ़ा पिए हुए लगभग दो घंटे हो चुके थे। मेरा अनुमान है कि उस समय पिताजी को प्यास बहुत लगी होगी। गला भिगाने के लिए वे किसी होटल या ढाबे की तरफ़ गए भी होंगे, लेकिन जैसा कि मुझे उनके स्वभाव के बारे में पता है, वे वहाँ कुछ देर खड़े रहे होंगे, और फिर एक गिलास पानी माँगने का फैसला न कर सके होंगे। एक बार उन्होंने बताया भी था कि कुछ साल पहले गर्मियों के दिनों में जब उन्होंने किसी होटल में पानी माँगा था, तो वहाँ काम करने वाले नौकर ने उन्हें गाली दी थी। पिताजी बहुत संवेदनशील थे, इसलिए उन्होंने अपनी प्यास को दबाया होगा और वे वहाँ से चल पड़े होंगे।
सवा दस से लेकर लगभग ग्यारह बजे के बीच, पैंतालीस मिनट तक पिताजी कहाँ-कहाँ गए, इसकी कोई जानकारी कहीं से नहीं मिलती। इस बीच ऐसी कोई ख़ास घटना भी नहीं हुई, जिससे कोई कुछ कह सके। फिर शहर में सड़क पर आते-जाते लोगों में से किसी ने उन पर ध्यान दिया हो, उन्हें देखा हो, इसका पता लगाना भी मुश्किल है। वैसे मेरा अपना अंदाज़ा है कि इस बीच पिताजी ने कुछ लोगों से अदालत जाने का रास्ता पूछा होगा और उनके दिमाग़ में यह बात भी रही होगी कि वहाँ पहुँचकर वे अपने वकील एस.एन. अग्रवाल से पानी माँग लेंगे। लेकिन उनके पूछने पर या तो लोग चुप रह कर तेज़ी से आगे बढ़ गए होंगे या किसी ने इतनी बौखलाहट और जल्दबाज़ी में उन्हें कुछ बताया होगा, जो पिताजी ठीक से समझ नहीं सके होंगे और सिर्फ़ अपमानित, दुःखी और परेशान होकर रह गए होंगे। शहर में ऐसा होता ही है।
वैसे बीच के पौन घंटे के बारे में मेरा अपना अनुमान है कि इस बीच पिताजी पर काढ़े का असर काफी बढ़ गया होगा। मई की धूप और प्यास ने इस असर को और भी तेज, और भी गहरा कर दिया होगा। उनके पैर लड़खड़ाने भी लगे होंगे और बहुत संभव है कि एकाध बार, इस बीच, उन्हें चक्कर भी आ गए हों।
पिताजी ग्यारह बजे, शहर में देशबंधु मार्ग पर स्थित स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की इमारत में घुसे थे। वे वहाँ क्यों गए, इसकी वजह ठीक-ठीक समझ में नहीं आती। वैसे हमारे गाँव का रमेश दत्त शहर में भूमि विकास सहकारी बैंक में क्लर्क है। हो सकता है पिताजी के दिमाग में सिर्फ बैंक रहा हो और यहाँ से गुज़रते हुए अचानक उन्होंने स्टेट बैंक लिखा हुआ देखा हो और वे उधर घूम गए हों। उन्होंने अब तक पानी नहीं पिया था इसलिए उन्होंने सोचा होगा कि वे रमेश दत्त से पानी भी माँग लेंगे, अदालत जाने का रास्ता भी पूछ लेंगे और बता सकेंगे कि उनका सिर घूम-सा रहा है, यह भी कि कल शाम उन्हें तिरिछ ने काटा था। स्टेट बैंक के कैशियर अग्निहोत्री के अनुसार वह उस समय कैश रजिस्ट्री चेक कर रहा था। उसकी मेज़ पर लगभग अट्ठाइस हजार रुपयों की गड्डियाँ रखी हुई थीं। उस वक्त ग्यारह से दो-तीन मिनट ऊपर हुए होंगे, तभी पिताजी वहाँ आए। उनके चेहरे पर धूल लगी हुई थी, चेहरा डरावना था और अचानक ही उन्होंने जोर से कुछ कहा था। अग्निहोत्री का कहना था कि मैं अचानक डर गया। अमूमन ऐसे लोग बैंक के इतने भीतर, कैशियर की टेबिल तक नहीं पहुँच पाते। अग्निहोत्री का कहना यह भी था कि अगर वह पिताजी को एकाध मिनट पहले से अपनी ओर आता हुआ देख लेता, तब शायद न डरता। लेकिन हुआ यह कि वह पूरी तरह से कैश रजिस्टर के हिसाब-किताब में डूबा हुआ था, तभी अचानक ही पिताजी ने आवाज़ निकाली और सिर उठाते ही उन्हें देखकर वह डर गया और चीख पड़ा। उसने घंटी भी बजा दी।
बैंक के चपरासियों, दो चौकीदारों और दूसरे कर्मचारियों के अनुसार अचानक ही कैशियर की चीख और घंटी की आवाज से वे सब लोग चौंक गए और उस तरफ दौड़े, तब तक नेपाली चौकीदार थापा ने पिताजी को दबोच लिया था और मारता हुआ कॉमन रूप की तरफ़ ले जा रहा था। एक चपरासी रामकिशोर, जिसकी उम्र पैंतालीस के आस-पास थी, ने कहा कि उसने समझा कि कोई शराबी दफ़्तर में घुस आया है, या पागल और चूँकि उसकी ड्यूटी बैंक के मुख्य दरवाज़े पर थी इसलिए ब्रांच मैनेजर उसे चार्जशीट कर सकता था। लेकिन हुआ यह कि जब पिताजी को मारा जा रहा था, तभी उन्होंने अंग्रेजी में कुछ बोलना शुरू कर दिया। इसी वजह से चपरासियों का शक बढ़ गया। इसी बीच शायद असिस्टेंट ब्रांच मैनेजर मेहता ने यह कह दिया कि इस आदमी की अच्छी तरह से तलाशी ले लेना तभी बाहर निकलने देना। वैसे चपरासी रामकिशोर का कहना था कि पिताजी का चेहरा अजीब तरह से डरावना हो गया था। उस पर धूल जमा हो गई थी और उल्टी की बास आ रही थी। बैंक के चपरासियों ने पिताजी को ज़्यादा मारने-पीटने की बात से इनकार किया, लेकिन बैंक के बाहर, ठीक दरवाज़े के पास जो पान की दुकान है, उसमें बैठने वाले बुन्नू का कहना था कि जब साढ़े ग्यारह बजे के आस-पास पिताजी बैंक से बाहर आए तो उनके कपड़े फटे हुए थे और निचला होंठ कट गया था, जहाँ से ख़ून निकल रहा था। आँखों के नीचे सूजन और कत्थई चकत्ते थे। ऐसे चकत्ते बाद में बैंगनी या नीले पड़ जाते हैं।
इसके बाद, यानी साढ़े ग्यारह बजे से लेकर एक बजे के बीच पिताजी कहाँ-कहाँ गए, इसके बारे में कोई जानकारी नहीं मिलती। हाँ स्टेट बैंक के बाहर पान की दुकान लगाने वाले बुन्नू ने एक बात बताई थी हालाँकि इस बारे में वह पूरी तरह स्पष्ट नहीं था, या हो सकता है कि स्टेट बैंक के कर्मचारियों से डर की वजह से वह साफ़-साफ़ बतलाने से कतरा रहा हो। बुन्नू ने बतलाया था कि स्टेट बैंक से बाहर निकलने पर शायद (वह ‘शायद’ पर बहुत ज़ोर डाल रहा था) पिताजी ने कहा था कि उनके रुपए और काग़ज़ात बैंक के चपरासियों ने छीन लिए हैं। लेकिन बुन्नू का कहना था कि हो सकता है पिताजी ने कोई और बात कही हो, क्योंकि वे ठीक से बोल नहीं पा रहे थे, उनका निचला होंठ काफ़ी कट गया था, मुँह से लार भी बह रही थी और उनका दिमाग़ सही नहीं था।
मेरा अपना अंदाज़ा है कि इस समय तक पिताजी पर काढ़े का असर बहुत ज़्यादा हो चुका था। हालाँकि पंडित राम औतार इस बात से इनकार करते हैं। उनका कहना था कि धतूरे के बीज तो होली के दिनों में भाँग के साथ भी घोटे जाते हैं, लेकिन कभी ऐसा नहीं होता कि आदमी पूरी तरह से पागल हो जाए। पंडित राम औतार का मानना है कि या तो तिरिछ का ज़हर उस समय पिताजी के शरीर में चढ़ना शुरू हो गया था और उसका नशा उनके दिमाग़ तक पहुँचने लगा था। या फिर बहुत संभव है कि जब स्टेट बैंक में पिताजी को थापा चौकीदार और चपरासियों ने मारा-पीटा था तब उनके सिर के पीछे की तरफ़ कोई चोट लग गई हो और उस धक्के से उनका दिमाग़ सनक गया हो। लेकिन मुझे लगता है कि उस समय तक पिताजी को थोड़ा-बहुत होश था और वे पूरी कोशिश कर रहे थे कि किसी तरह वे शहर से बाहर निकल जाएँ। शायद रुपए और अदालत के काग़ज़ात बैंक में छिन जाने की वजह से उन्होंने सोचा हो कि अब यहाँ रहने का कोई मतलब भी नहीं है। उन्होंने शायद एकाध बार सोचा भी होगा कि वापस स्टेट बैंक जाकर अपने काग़ज़ात तो कम-से-कम माँग लाएँ। फिर ऐसा करने की उनकी हिम्मत नहीं पड़ी होगी। वे डर गए होंगे। उन्हें उनके जीवन में पहली बार इस तरह से मारा गया था, इसलिए वे ठीक से सोच पाने में सफल नहीं हो पा रहे होंगे। उनका शरीर बहुत दुबला था और बचपन से ही उन्हें एपेंडिसाइटिस की शिकायत थी। यह भी हो सकता है कि उस वक़्त तक उन पर काढ़े का असर इतना ज़्यादा हो गया हो कि वे एक चीज़ पर देर तक सोच ही नहीं पा रहे हों और दिमाग़ में हर पल पैदा होने वाला, छोटे-छोटे बुलबुलों जैसे विचारों या नए-नए झटकों के वश में आकर इधर से उधर चल पड़ते रहे हों। लेकिन मैं यह जानता हूँ, मुझे अच्छी तरह से महसूस होता है कि उनके दिमाग़ में घर लौट आने और शहर से बाहर निकल जाने की बात-एक स्थाई, बार-बार कहीं अँधेरे से उभरने वाली, भले ही बहुत क्षीण और बहुत धुँधली बात-ज़रूर रही होगी।
पिताजी लगभग सवा बजे शहर के पुलिस थाना पहुँचे थे। थाना शहर के बाहरी छोर पर सर्किट हाउस के पास बने विजय स्तंभ के पास है। आश्चर्य यह है कि थाने से बमुश्किल एक किलोमीटर दूर अदालत भी है। अगर पिताजी चाहते तो यहाँ से पैदल ही दस मिनट में अदालत पहुँच सकते थे। समझ में यह नहीं आता कि पिताजी अगर यहाँ तक पहुँचे थे, क्या तब तक उनके दिमाग़ में अदालत जाने की बात रह भी गई थी? उनके काग़ज़ात तो रह नहीं गए थे।
थाने के एस.एच.ओ. राघवेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि उस वक़्त एक बजकर पंद्रह मिनट हुए थे। वे घर से लाए गए टिफ़िन को खोलकर लंच लेने की तैयारी कर रहे थे। आज टिफ़िन में पराठों के साथ करेले रखे हुए थे। करेले वे खा नहीं पाते और इसी उलझन में थे कि अब क्या करें। तभी पिताजी वहाँ आए थे। उनके शरीर पर क़मीज़ नहीं थी, पैंट फटी हुई थी। लगता था कि वे कहीं गिरे होंगे या किसी वाहन ने उन्हें टक्कर मारी होगी। थाने में उस वक़्त एक ही सिपाही गजाधर प्रसाद शर्मा मौजूद था। सिपाही का कहना था कि उसने सोचा कि शायद कोई भिखमंगा थाने में घुस आया है। उसने आवाज़ भी दी लेकिन पिताजी तब तक एस.एच.ओ. राघवेंद्र प्रताप सिंह की टेबिल तक पहुँच चुके थे। एस.एच.ओ. ने कहा कि करेलों की वजह से वैसे भी उनका मूड ऑफ़ था। तेरह साल के विवाहित जीवन के बावजूद पत्नी यह नहीं जान पाई थी कि उन्हें कौन-सी चीज़ें बिलकुल नापसंद हैं, इतनी नापसंद कि वे उन चीज़ों से घृणा करते हैं। उन्होंने जैसे ही निवाला मुँह में रखा, पिताजी बिलकुल उनके क़रीब पहुँच गए। पिताजी के चेहरे और कंधों के नीचे उल्टी लगी हुई थी और उसकी बहुत तेज़ गंध उठ रही थी। एस.एच.ओ. ने पूछा कि क्या बात है। तो जवाब में पिताजी ने जो कुछ कहा उसे समझना बहुत मुश्किल था। एस.एच.ओ. राघवेंद्र सिंह बाद में पछता रहे थे कि अगर उन्हें मालूम होता कि यह आदमी बकेली ग्राम का प्रधान और भूतपूर्व अध्यापक है तो वे उसे थाने में ही कम-से-कम दो-चार घंटे बिठा लेते। बाहर न जाने देते। लेकिन उस समय उन्हें लगा कि यह कोई पागल है और उन्हें खाते हुए देखकर यहाँ तक घुस आया है इसीलिए उन्होंने सिपाही गजाधर शर्मा को ग़ुस्से में आवाज़ दी। सिपाही पिताजी को घसीटता हुआ बाहर ले गया। गजाधर शर्मा का कहना था कि उसने पिताजी के साथ कोई मार-पीट नहीं की और उसने देखा था कि जब वे थाने आए थे तब उनका निचला होंठ कटा था। ठुड्डी पर कहीं रगड़ा खाकर गिरने से खरोंच के निशान थे और कुहनियाँ छिली हुई थीं। वे कहीं-न-कहीं गिरे ज़रूर थे।
यह कोई नहीं जानता कि थाने से निकलकर लगभग डेढ़ घंटे पिताजी कहाँ-कहाँ भटकते रहे। सुबह दस बजकर सात मिनट पर, जब वे शहर आए थे और मिनर्वा टाकीज के पास वाले चौराहे पर ट्रैक्टर से उतरे थे, तब से लेकर अब तक उन्होंने कहीं पानी पिया था या नहीं, इसे जानना मुश्किल है। इसकी संभावना भी कम ही बनती है। हो सकता है तब तक उनका दिमाग़ इस क़ाबिल न रह गया हो कि वे प्यास को भी याद रख सकें। लेकिन अगर वे पुलिस थाने तक पहुँचे तो उनके मस्तिष्क में, नशे के बावजूद, कहीं बहुत कमज़ोर-सा, अँधेरे में डूबा यह ख़याल रहा होगा कि वे किसी तरह अपने गाँव जाने का रास्ता वहाँ पूछ लें, या उस ट्रैक्टर का पता पूछे या फिर अपने रुपए और अदालती काग़ज़ात छिन जाने की रिपोर्ट वहाँ लिखा दें। यह सोचने के क़रीब पहुँचना ही बुरी तरह से बेचैन कर डालने वाला है कि उस समय पिताजी सिर्फ़ तिरिछ के ज़हर और धतूरे के नशे के ख़िलाफ़ ही नहीं लड़ रहे थे, बल्कि हमारे मकान को बचाने की चिंता भी कहीं-न-कहीं उनके नशे की नींद में से बार-बार सिर उठा रही थी। शायद उन्हें अब तक यह लगने लगा हो कि यह सब कुछ जो हो रहा है, सिर्फ़ एक सपना है, पिताजी इससे जागने और बाहर निकलने की कोशिश भी करते रहे होंगे।
सवा दो बजे के आस-पास पिताजी को शहर के बिलकुल उत्तरी छोर पर बसी सबसे संपन्न कॉलोनी-इतवारी कॉलोनी में घिसटते हुए देखा गया था। यह कॉलोनी सर्राफ़ा के जौहरियों, पी.डब्ल्यू.डी. के बड़े ठेकेदारों और रिटायर्ड अफ़सरों की कॉलोनी थी। कुछ समृद्ध पत्रकार-कवि भी वहीं रहते थे। यह कॉलोनी हमेशा शाँत और घटनाहीन रहती थी। जिन लोगों ने यहाँ पिताजी को देखा था, उन्होंने बताया कि उस वक़्त तक उनके शरीर में सिर्फ़ एक पट्टेदार जाँघिया बचा था, जिसका नाड़ा शायद टूट गया था और वे उसे अपने बाएँ हाथ से बार-बार सँभाल रहे थे। जिसने भी उन्हें वहाँ देखा, उसने यही समझा कि कोई पागल है। कुछ ने कहा कि वे बीच-बीच में खड़े होकर ज़ोर-ज़ोर से गालियाँ बकने लगते थे। बाद में, उसी कॉलोनी में रहने वाले एक रिटायर्ड तहसीलदार सोनी साहब और शहर के सबसे बड़े अख़बार के विशेष संवाददाता और कवि सत्येंद्र थपलियाल ने बताया कि उन्होंने पिताजी के बोलने को ठीक से सुना था और दरअसल वे गालियाँ नहीं बक रहे थे बल्कि बार-बार कह रहे थे—“मैं रामस्वारथ प्रसाद, एक्स स्कूल हेड मास्टर...एंड विलेज हेड ऑफ...ग्राम बकेली...!” कवि पत्रकार थपलियाल साहब ने दुःख ज़ाहिर किया। दरअसल उसी समय वे अमरीकी दूतावास की किसी ख़ास पार्टी में संगीत सुनने दिल्ली जा रहे थे इसलिए जल्दबाज़ी में वे चले गए। हाँ तहसीलदार सोनी साहब का कहना था कि “मुझे उस आदमी पर बहुत तरस आया और मैंने लड़कों को डाँटा भी। लेकिन दो-तीन लड़कों ने कहा कि यह आदमी रामरतन सर्राफ़ की बीवी और साली पर हमला करने वाला था।” तहसीलदार ने कहा कि ऐसा सुनने के बाद उन्हें भी लगा कि हो सकता है यह कोई बदमाश हो और नाटक कर रहा हो। लड़के उन्हें तंग करने में लगे थे और पिताजी बीच-बीच में ज़ोर-ज़ोर से बोलते थे, “मैं रामस्वारथ प्रसाद...एक्स स्कूल हेडमास्टर...
अगर हिसाब लगाया जाए तो मिनर्वा टाकीज के पास वाला चौराहा, जहाँ पिताजी ट्रैक्टर से सुबह दस बजकर सात मिनट पर उतरे थे, वहाँ से लेकर देशबंधु मार्ग का स्टेट बैंक फिर विजय स्तंभ के पास का थाना और शहर के बाहरी उत्तरी छोर पर बसी इतवारी कॉलोनी को मिलाकर वे अब तक लगभग तीस-बत्तीस किलोमीटर की दूरी तक भटक चुके थे। ये जगहें ऐसी हैं जो एक ही दिशा में नहीं है। इसका मतलब यह हुआ कि पिताजी की दिमाग़ी हालत यह थी कि उन्हें ठीक-ठीक कुछ सूझ नहीं रहा था और वे अचानक ही, किसी भी तरफ़ चल पड़ते थे। जहाँ तक सर्राफ़ की पत्नी और साली पर उनके हमला करने की बात है, जिसे थपलियाल साहब सच मानते हैं, मेरा अपना अनुमान है कि पिताजी उनके पास या तो पानी माँगने गए होंगे या बकेली जानेवाली सड़क के बारे में पूछने। उस एक पल के लिए पिताजी को होश ज़रूर रहा होगा। लेकिन इस हुलिए के आदमी को अपने इतना क़रीब देखकर वे औरतें डरकर चीख़ने लगी होंगी। वैसे, पिताजी की दाहिनी आँख के ऊपर भौंह पर जो चोट लगी थी और जिसका ख़ून रिसकर उनकी आँख पर आने लगा था, वह चोट उनको इतवारी कॉलोनी में ही लगी थी, क्योंकि बाद में लोगों ने बताया कि लड़के उन्हें बीच-बीच में ढेले मार रहे थे।
वह जगह इतवारी कॉलोनी से बहुत दूर नहीं है, जिस जगह पिताजी को सबसे ज़्यादा चोटें लगीं। नेशनल रेस्टोरेंट नाम के एक सस्ते से ढाबे के सामने की ख़ाली जगह पर पिताजी घिर गए थे। इतवारी कॉलोनी से लड़कों का जो झुंड उनके पीछे पड़ गया था, उसमें कुछ बड़ी उम्र के लड़के भी शामिल हो गए थे। नेशनल रेस्टोरेंट में काम करने वाले नौकर सत्ते का कहना था कि पिताजी ने ग़लती यह की थी कि एक बार उन्होंने ग़ुस्से में आकर भीड़ पर ढेले मारने शुरू कर दिए थे। शायद उन्हीं का एक बड़ा-सा ढेला सात-आठ साल के लड़के विकी अग्रवाल को लग गया था, जिसे बाद में कई टाँके लगे थे। सत्ते का कहना था कि इसके बाद झुंड ज़्यादा ख़तरनाक हो गया था। वे हल्ला मचा रहे थे और चारों तरफ़ से पिताजी पर पत्थर मार रहे थे। ढाबे के मालिक सरदार सतनाम सिंह ने बताया कि उस वक़्त पिताजी के जिस्म पर सिर्फ़ पट्टेवाली एक चड्डी थी, दुबले शरीर की हड्डियाँ और छाती के सफ़ेद बाल दिख रहे थे। पेट पिचका हुआ था। वे धूल और मिट्टी में लिथड़े हुए थे, सिर के सफ़ेद बाल बिखर गए थे, दाहिनी आँख के ऊपर से और निचले होंठ से ख़ून बह रहा था। सतनाम सिंह ने दु:ख और पछतावे के साथ कहा—“मेरे को क्या मालूम था कि यह आदमी सीधा-सादा, इज़्ज़तदार, साख-रसूख का इंसान है और नसीब के फेर में इसकी ये हालत हो गई है।” वैसे ढाबे में कप-प्लेट धोने वाले नौकर हरी का कहना था कि बीच-बीच में पिताजी भीड़ को अंड-बंड गालियाँ दे-देकर ढेले मारने लगते थे—“आओ ससुरो...आओ...एक-एक को मार डालूँगा भोसड़ीवालो ...तुम्हारी माँ की...” लेकिन मुझे संदेह है कि पिताजी ने ऐसी कोई गाली दी होगी। हमने कभी भी उन्हें गाली देते नहीं सुना था।
मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूँ, क्योंकि पिताजी को मैं बहुत अच्छी तरह से जानता हूँ कि, इस समय तक, उन्हें कई बार लगा होगा कि उनके साथ जो कुछ हो रहा है, वह वास्तविकता नहीं है, एक सपना है। पिताजी को ये सारी घटनाएँ ऊल-जलूल, ऊटपटाँग और बेमतलब लगी होंगी। वे इस सब पर अविश्वास करने लगे होंगे। उन्होंने सोचा होगा कि यह सब क्या बकवास है? वे तो गाँव से शहर आए ही नहीं हैं, उन्हें किसी तिरिछ ने नहीं काटा है। बल्कि तिरिछ तो होता ही नहीं है, एक मनगढ़ंत और अंधविश्वास है...और धतूरे का काढ़ा पीने की बात तो हास्यास्पद है, वह भी एक तेली के खेत में उसका पौधा खोजकर। उन्होंने सोचा होगा और पाया होगा कि भला उन पर कोई मुक़दमा क्यों चलेगा? उन्हें अदालत जाने की क्या ज़रूरत है?
मैं जानता हूँ कि सुरंग जैसा लंबा, सम्मोहक लेकिन डरावना सपना जैसा मुझे आता था, पिताजी को भी आता रहा होगा। मेरी और उनकी बहुत-सी बातें बिलकुल मिलती-जुलती थीं। मुझे लगता है कि इस समय तक पिताजी पूरी तरह से मान चुके होंगे कि यह जो कुछ हो रहा है सब झूठ और अवास्तविक है। इसीलिए वे बार-बार उस सपने से जागने की कोशिश भी करते रहे होंगे। अगर वे बीच-बीच में ज़ोर-ज़ोर से कुछ बोलने लगते थे, या शायद गालियाँ बकने लगते थे, तो इसी कठिन कोशिश में कि वे उस आवाज़ के सहारे उस दुःस्वप्न से बाहर निकल आएँ। नेशनल रेस्टोरंट के नौकरों और मालिक सरदार सतनाम सिंह ने जैसा बताया था उसके अनुसार उस जगह पर पिताजी को बहुत चोटें आई थीं। उनकी कनपटी, माथे, पीठ और शरीर के दूसरे हिस्सों पर कई ईंटें और ढेले आकर लग गए थे। सड़क का ठेका लेने वाले ठेकेदार अरोड़ा के बीस-बाइस साल के लड़के संजू ने उन्हें दो-तीन बार लोहे की रॉड से भी मारा था। सत्ते का तो कहना था कि इतनी चोटों से कोई भी आदमी मर सकता था।
मुझे यह सोचकर एक अजीब-सी राहत मिलती है और मेरी फँसती हुई साँसें फिर से ठीक हो जाती हैं कि उस समय पिताजी को कोई दर्द महसूस नहीं होता रहा होगा, क्योंकि वे अच्छी तरह से, पूरी तार्किकता और गहराई के साथ विश्वास करने लग गए होंगे कि यह सब सपना है और जैसे ही वे जागेंगे, सब ठीक हो जाएगा। आँख खुलते ही आँगन बुहारती माँ नज़र आ जाएगी या नीचे फ़र्श पर सोते हुए मैं और छोटी बहन दिख जाएँगे...या गौरइयों का झुंड...हो सकता है कि उन्हें बीच-बीच में अपने इस अजीब-ओ-ग़रीब सपने पर हँसी भी आई हो।
अगर पिताजी ने ग़ुस्से में लड़कों की तरफ़ ख़ुद भी ढेले मारने शुरू कर दिए तो इसके पीछे पहली वजह तो यही थी कि उन्हें यह बहुत अच्छी तरह से पता था कि ये ढेले सपने के भीतर जा रहे हैं और इससे किसी को कोई चोट नहीं आएगी। यह भी हो सकता है कि पूरी ताक़त से ढेला मार कर वे उत्सुकता और बेचैनी से यह इंतिज़ार करते रहे हों कि जैसे ही वह जाकर किसी लड़के के सिर से टकराएगा, उसका माथा नष्ट होगा और एक ही झटके में इस दुःस्वप्न के टुकड़े-टुकड़े बिखर जाएँगे और चारों ओर से वास्तविक संसार की बेतहाशा रौशनी अंदर आने लगेगी। उनका ज़ोर-ज़ोर से चीख़ना भी दरअसल ग़ुस्से के कारण नहीं था, वे असल में मुझे, छोटी बहन को, माँ को या किसी को भी पुकार रहे थे कि अगर वे अपने आप इस सपने से जाग पाने में सफल न भी हो पाएँ, तब भी कोई भी आकर उन्हें जगा दे।
एक सबसे बड़ी विडंबना भी इसी बीच हुई। हमारे गाँव की ग्राम पंचायत के सरपंच और पिताजी के बचपन के पुराने दोस्त पंडित कंधई राम तिवारी लगभग साढ़े तीन बजे नेशनल रेस्टोरंट के सामने, सड़क से गुज़रे थे। वे रिक्शे पर थे। उन्हें अगले चौराहे से बस लेकर गाँव लौटना था। उन्होंने उस ढाबे के सामने इकट्ठी भीड़ को भी देखा और उन्हें यह पता भी चल गया कि वहाँ पर किसी आदमी को मारा जा रहा है। उनकी यह इच्छा भी हुई कि वहाँ जाकर देखें कि आख़िर मामला क्या है। उन्होंने रिक्शा रुकवा भी लिया। लेकिन उनके पूछने पर किसी ने कहा कि कोई पाकिस्तानी जासूस पकड़ा गया है जो पानी की टंकी में ज़हर डालने जा रहा था, उसे ही लोग मार रहे हैं। ठीक इसी समय पंडित कंधई राम को गाँव जाने वाले बस आती हुई दिखी और उन्होंने रिक्शेवाले से अगले चौराहे तक जल्दी-जल्दी रिक्शा बढ़ाने के लिए कहा। गाँव जाने वाली यह आख़िरी बस थी। अगर उस बस के आने में तीन-चार मिनट की भी देरी हो जाती तो वे निश्चित ही वहाँ जाकर पिताजी को देखते और उन्हें पहचान लेते। राज्य परिवहन की वह बस हमेशा आधा-पौन घंटा लेट रहा करती थी, लेकिन उस दिन, संयोग से, वह बिलकुल सही समय पर आ रही थी।
सतनाम सिंह का कहना था कि वह भीड़ नेशनल रेस्टोरेंट के सामने से तब हटी और लोग तितर-बितर हुए जब बड़ी देर तक पिताजी ज़मीन से उठे ही नहीं। ईंट का एक बड़ा-सा ढेला उनकी कनपटी पर आकर लगा था। उनके मुँह से ख़ून आना शुरू हो गया था। सिर में भी चोटें थीं। सतनाम ने बताया कि जब पिताजी बहुत देर तक नहीं हिले-डुले तो लड़कों के झुंड में से किसी ने कहा कि लगता है यह मर गया। जब भीड़ छँटने के दस-पंद्रह मिनट बाद भी पिताजी नहीं हिले-डुले तो सतनाम सिंह ने सत्ते से कहा था कि वह उनके मुँह में पानी के छींटे मार कर देखे कि वे सिर्फ़ बेहोश हैं तो हो सकता है कि उठ जाएँ। लेकिन सत्ते पुलिस की वजह से डर रहा था। बाद में सतनाम सिंह ने ख़ुद ही एक बाल्टी पानी उनके ऊपर डाला था। दूर से पानी डालने के कारण ज़मीन की मिट्टी गीली होकर पिताजी के शरीर से लिथड़ गई थी।
सरदार सतनाम सिंह और सत्ते दोनों का कहना था कि लगभग पाँच बजे तक पिताजी उसी जगह पड़े हुए थे। तब तक पुलिस नहीं आई थी। फिर सतनाम सिंह ने सोचा कि कहीं उसे पंचनामा और गवाही वग़ैरा में न फँसना पड़ जाए इसलिए उसने ढाबा बंद कर दिया था और डिलाइट टाकीज में ‘आन मिलो सजना’ फिल्म देखने चला गया था।
उस समय लगभग छह बजे थे जब सिविल लाइंस की सड़क की पटरियों पर एक क़तार में बनी मोचियों की दुकानों में से एक मोची गनेशवा की गुमटी में पिताजी ने अपना सिर घुसेड़ा। उस समय तक उनके शरीर पर चड्डी भी नहीं रह गई थी, वे घुटनों के बल किसी चौपाए की तरह रेंग रहे थे। शरीर पर कालिख और कीचड़ लगी हुई थी और जगह-जगह चोटें थीं।
गनेशवा हमारे गाँव के तालाब के पार वाले टोले का मोची है। उसने बताया कि मैं बहुत डर गया और मास्टर साहब को पहचान ही नहीं पाया। उनका चेहरा डरावना हो गया था और चिन्हाई में नहीं आता था। मैं डर कर गुमटी से बाहर निकल आया और शोर मचाने लगा। दूसरे मोचियों के अलावा वहाँ कुछ और लोग भी इकट्ठा हो गए थे। लोगों ने जब गनेशवा की गुमटी के भीतर जाकर झाँका तो गुमटी के अंदर, उसके सबसे अंतरे-कोने में, टूटे-फूटे जूतों, चमड़ों के टुकड़ों, रबर और चिथड़ों के बीच पिताजी दुबके हुए थे। उनकी साँसें थोड़ी-बहुत चल रही थीं। उन्हें वहाँ से खींच कर, बाहर, पटरी पर निकाला गया। तभी गनेशवा ने उन्हें पहचान लिया। गनेशवा का कहना था कि उसने पिताजी के कान में कुछ आवाज़ें भी लगाईं लेकिन वे कुछ बोल नहीं पा रहे थे। बहुत देर बाद उन्होंने ‘राम स्वारथ प्रसाद...’ और ‘बकेली’ जैसा कुछ कहा था। फिर चुप हो गए थे।
पिताजी की मृत्यु सवा छह बजे के आसपास हुई थी। तारीख थी 17 मई, 1972, चौबीस घंटे पहले लगभग इसी वक़्त उन्हें जंगल में तिरिछ ने काटा था। चौबीस घंटे पहले क्या पिताजी इन घटनाओं और इस मृत्यु का अनुमान कर सकते थे?
पिताजी का शव शहर के मुर्दाघर में पुलिस ने रखवा दिया था। पोस्टमार्टम में पता चला था कि उनकी हड्डियों में कई जगह फ्रैक्चर था, दाईं आँख पूरी तरह फूट चुकी थी, कॉलर बोन टूटा हुआ था। उनकी मृत्यु मानसिक सदमे और अधिक रक्तस्राव के कारण हुई थी। रिपोर्ट के अनुसार उनका आमाशय ख़ाली था, पेट में कुछ नहीं था। इसका मतलब यही हुआ कि धतूरे के बीजों का काढ़ा उल्टियों द्वारा पहले ही निकल चुका था।
हालाँकि थानू कहता है कि अब तो यह तय हो गया कि तिरिछ के ज़हर से कोई नहीं बच सकता। ठीक चौबीस घंटे बाद उसने अपना करिश्मा दिखाया और पिताजी की मृत्यु हुई। पंडित राम औतार भी यही कहते हैं। हो सकता है कि पंडित राम औतार इसलिए ऐसा कहते हों कि वे ख़ुद को विश्वास दिलाना चाहते हों कि धतूरे के काढ़े का पिताजी की मृत्यु से कोई संबंध नहीं था।
मैं सोचता हूँ, अंदाज़ा लगाने की कोशिश करता हूँ कि शायद अंत में, जब गनेशवा ने अपनी गुमटी के बाहर, पिताजी के कान में आवाज़ दी होगी तो पिताजी सपने से जाग गए होंगे। उन्होंने मुझे, माँ को और छोटी बहन को देखा होगा—फिर वे दातून लेकर नदी की तरफ़ चले गए होंगे। नदी के ठंडे पानी से उन्होंने अपना चेहरा धोया होगा, कुल्ला किया होगा और इस लंबे दुःस्वप्न को वे भूल गए होंगे। उन्होंने अदालत जाने के बारे में सोचा होगा। हम लोगों के मकान की चिंता ने उन्हें परेशान किया होगा।
लेकिन मैं अपने सपने के बारे में बताना चाहता हूँ, जो मुझे अक्सर आता है। वह यूँ है—कि मैं खेतों की मेंड़, गाँव की पगडंडी से होता हुआ जंगल पहुँच गया हूँ। मैं रक्सा नाला, कीकर के पेड़ को देखता हूँ। वह भूरी चट्टान वहाँ उसी जगह है, जो सारी बारिश नाले के पानी में डूबी रहती है। मैं देखता हूँ कि तिरिछ की लाश उसके ऊपर पड़ी हुई है। मुझे एक बेतहाशा ख़ुशी अपने घेरे में ले लेती है। आख़िर वह मारा गया। मैं पत्थर लेकर तिरिछ को कुचलने लगता हूँ, ज़ोर-ज़ोर से उसे मारता हूँ। मेरे पास थानू मिट्टी का तेल और माचिस लिए खड़ा है। तभी, अचानक ही, मैं पाता हूँ कि मैं उस चट्टान पर नहीं हूँ। थानू भी वहाँ नहीं है, वहाँ कोई जंगल नहीं है बल्कि मैं दरअसल शहर में हूँ। मेरे कपड़े बहुत ही मैले, फटे और चिथड़ों जैसे हो गए हैं। मेरे गालों की हड्डियाँ निकली हैं। बाल बिखरे हैं। मुझे प्यास लगी है और मैं बोलने की कोशिश करता हूँ। शायद मैं बकेली, अपने घर जाने का रास्ता पूछना चाहता हूँ और तभी अचानक चारों ओर शोर उठता है...घंटियाँ बजने लगती हैं...हज़ारों-हज़ारों घंटियाँ...मैं भागता हूँ।
मैं भागता हूँ...मेरा पूरा शरीर बेदम होने लगता है, फेफड़े फूल जाते हैं। मैं पास-पास क़दम रख कर अचानक लंबी-लंबी छलाँगें लगाता हूँ, उड़ने की कोशिश करता हूँ। लेकिन भीड़ लगता है मेरे पास पहुँचने वाली होती है। एक अजीब-सी गर्म और भारी हवा मुझे सुन्न कर देती है। अपनी हत्या की साँसें मुझे छूने लगती हैं...और आख़िरकार वह पल आ जाता है, जब मेरे जीवन का अंत होने वाला होता है...
मैं रोता हूँ...भागने की कोशिश करता हूँ। मेरा पूरा शरीर नींद में ही पसीने में डूब जाता है। मैं ज़ोर-ज़ोर से बोल कर जागने की कोशिश करता हूँ...मैं विश्वास करना चाहता हूँ कि यह सब सपना है...और अभी आँख खोलते ही सब ठीक हो जाएगा...मैं सपने के भीतर अपनी आँखें फाड़ कर देखता हूँ...दूर तक...लेकिन वह पल आख़िर आ ही जाता है...
माँ बाहर से मुझे देखती है। मेरा माथा सहलाकर वह मुझे रज़ाई से ढाँप देती है और मैं वहाँ अकेला छोड़ दिया जाता हूँ। अपनी मृत्यु से बचने की कोशिश में जूझता, बेदम होता, रोता, चीख़ता और भागता।
माँ कहती हैं मुझे अभी भी नींद में बड़बड़ाने और चीख़ने की आदत है। लेकिन मैं पूछना चाहता हूँ और यही सवाल मुझे हमेशा परेशान करता है कि मुझे आख़िरकार अब तिरिछ का सपना क्यों नहीं आता?
is ghatna ka sambandh pitaji se hai mere sapne se hai aur shahr se bhi hai shahr ke prati jo ek janm jat bhay hota hai, usse bhi hai
pitaji tab pachpan sal ke hue the dubla sharir baal bilkul makke ke bhue jaise safed sir par jaise rui rakhi ho we sochte ziyada the bolte bahut kam jab bolte to hamein rahat milti, jaise der se ruki hui sans nikal rahi ho sath sath hamein Dar bhi lagta hum bachchon ke liye we ek bahut baDa rahasy the hamein pata tha ki sansar ke sare gyan ki tijori unke pas hai hum jante the ki sansar ki sari bhashayen we bol sakte hain duniya unko janti hai aur hamari tarah hi unse Darti hui unka samman karti hai
hamein unki santan hone ka garw tha
kabhi kabhi, waise aisa salon mein ekadh bar hi hota, we sham ko hamein apne sath tahlane kahin bahar le jate chalne se pahle we munh mein tambaku bhar lete tambaku ke karan we kuch bol nahin pate the we chup rahte ye chuppi hamein bahut gambhir, gaurawshali, ashcharyajnak aur bhari bharkam lagti chhoti bahan kabhi unse raste mein kuch puchhna chahti to fauran main uska jawab dene ki koshish karta, jisse pitaji ko na bolna paDe
waise ye kaam kafi mushkil aur jokhim bhara hota kyonki main janta tha ki agar mera jawab ghalat hua to pitaji ko bolna paD jayega bolne mein unhen pareshani hoti thi ek to unhen tambaku ki peek nikalni paDti thi, phir jis duniya mein we rahte the, wahan se nikalkar yahan tak aane mein unhen ek kathin duri tay karni paDti thi waise bahan ke sawalon mein koi khas baat hoti nahin thi jaise wo yahi poochh leti ki samne chhiule ki sukhi tahni par baithi us chiDiya ko kya kahte hain? chunki sari chiDiyon ko janta tha isliye bata sakta tha ki wo nilkanth hai aur dashahre ke din se zarur dekhana chahiye meri puri koshish rahti ki pitaji ko aram rahe aur we sochte rahen
meri aur man ki, donon ki puri koshish rahti ki pitaji apni duniya mein sukh chain se rahen wahan se unhen jabran bahar na nikala jaye wo duniya hamare liye bahut rahasyapurn thi, lekin hamare ghar ki aur hamare jiwan ki bahut si samasyaon ka ant pitaji wahin rahte hue karte the jaise jab meri fees ki baat i, us samay hamare pas ka akhiri gilas bhi gum gaya tha aur sab log lote mein pani pite the pitaji do din tak bilkul chup rahe man ko bhi shak hua tha ki pitaji fees ki baat bilkul bhool gaye hain ya phir iska hal unke wash ki baat nahin hai lekin tisre din, subah subah, pitaji ne mujhe ek patr lifafe mein rakhkar diya aur shahr ke doctor pant ke pas bheja mujhe bahut ashchary hua jab doctor ne mujhe sharbat pilai, ghar ke bhitar le jakar apne bete se parichai karaya aur sau sau ke teen not mujhe diye
hum pitaji par garw karte the, pyar karte the, unse Darte the aur unke hone ka ahsas aisa tha jaise hum kisi qile mein rah rahe hon aisa qila, jiske charon or gahri nahren khudi hui hon, burje bahut unchi hon, diwaren sakht lal chattanon ki bani hui hon aur har bahari hamle ke samne hamara kila abhedy ho
pitaji ek khoob mazbut qila the unke parkote par hum sab kuch bhulkar khelte the, dauDte the aur, raat mein khoob gahri neend mujhe aati thi
lekin us din sham ko, jab pitaji bahar se tahalkar aaye to unke takhne mein patti bandhi thi thoDi der mein ganw ke kai log wahan aa gaye pata chala ki pitaji ko jangal mein tirichh (wishkhapar, ek zahrila lijarD) ne kat liya hai
hum sab jante the ki tirichh ke katne par adami bach hi nahin sakta raat mein, lalten ki dhundhli mataili raushani mein ganw ke bahut se log hamare angan mein jama ho gaye the pitaji unke beech the, zamin par baithe hue phir pas ke ganw ka chutua nai bhi aaya wo aranD ke patte aur kanDe ki rakh se zahr utarta tha
tirichh ek bar mainne dekha tha
talab ke kinare jo baDi baDi chattanon ke Dher the, aur jo dopahar mein khoob garm ho jate the, unmen se kisi chattan ki darar se nikalkar wo pani pine talab ki or ja raha tha
mere sath thanu tha usne batlaya ki wo tirichh hai, kale nag se sau guna ziyada usmen zahr hota hai usi ne bataya ki sanp to tab katta hai, jab uske upar pair paD jaye ya koi jab zabardasti use tang kare lekin tirichh to nazar milte hi dauDta hai pichhe paD jata hai usse bachne ke liye kabhi sidhe nahin bhagna chahiye teDha meDha, chakkar katte hue, gol mol dauDna chahiye
darasal jab adami bhagta hai to zamin par wo sirf apne pairon ke nishan hi nahin chhoDta, balki har nishan ke sath, wahan ki dhool mein, apni gandh bhi chhoD jata hai tirichh isi gandh ke sahare dauDta hai thanu ne batlaya ki tirichh ko chakma dene ke liye adami ko ye karna chahiye ki pahle to wo bilkul pas pas qadam rakhkar, jaldi jaldi kuch door dauDe phir chaar panch bar khoob lambi lambi chhalang de tirichh sunghta hua dauDta ayega, jahan pas pas pair ke nishan honge, wahan uski raftar khoob tez ho jayegi aur jahan se adami ne chhalang mari hogi, wahan aakar wo uljhan mein paD jayega wo idhar udhar tab tak bhatakta rahega jab tak use agle pair ka nishan aur usmen basi gandh nahin mil jati
hamein tirichh ke bare mein do baten aur pata theen ek to ye ki jaise hi wo adami ko katta hai, waise hi wo wahan se bhagkar kisi jagah peshab karta hai aur us peshab mein lot jata hai agar tirichh ne aisa kar liya to adami bach nahin sakta agar use bachna hai to tirichh ke peshab mein lotne ke pahle hi, khu kisi nadi, kuen ya talab mein Dupki laga leni chahiye ya phir tirichh ke aisa karne ke pahle hi use mar dena chahiye
dusri baat ye ki tirichh katne ke liye tabhi dauDta hai, jab usse nazar takra jaye agar tirichh ko dekho to usse kabhi ankh mat milao ankh milte hi wo adami ki gandh pahchan leta hai aur phir pichhe lag jata hai phir to adami chahe puri prithwi ka chakkar laga le, tirichh pichhe pichhe aata hai
main bhi tamam bachchon ki tarah us samay tirichh se bahut Darta tha mere duaswapn ke sabse khatarnak patr do hi the—ek hathi aur dusra tirichh hathi to phir bhi dauDta dauDta thak jata tha aur main peD par chaDhkar bach jata tha, ya phir uDne lagta tha, lekin tirichh uske samne to main kisi indrajal mein bandh jata tha main sapne mein kahin ja raha hota to achanak hi kisi jagah wo mil jata, uski jagah tay nahin hoti thi koi zaruri nahin tha ki wo chattanon ki darar mein, purani imaraton ke pichhwaDe ya kisi jhaDi ke pas dikhe—wah mujhe bazar mein, cinema haal mein, kisi dukan ya mere kamre mein hi dikh sakta tha
main sapne mein koshish karta ki usse nazar na milne pae, lekin wo itni parichit ankhon se mujhe dekhta ki main apne aapko rok nahin pata tha aur bus, ankh milte hi uski nazar badal jati thi—wah dauDta tha aur main bhagta tha
main gol gol chakkar lagata, jaldi jaldi pas pas Dag bharkar achanak khoob lambi lambi chhalangen lagane lagta, uDne ki koshish karta, kisi unchi jagah par chaDh jata, lekin meri hazar koshishon ke bawjud wo chakma nahin khata tha wo mujhe bahut ghagh, samajhdar, chatur aur khatarnak lagta mujhe lagta ki wo mujhe khoob achchhi tarah se janta hai uski ankhon mein mere liye parichai ki jo chamak thi, usse mujhe lagta ki wo mera aisa shatru hai jise mere dimagh mein aane wale har wichar ke bare mein pata hai
mera sabse khaufnak, yatnadayak, bhayakrant aur bechaini se bhara yahi sapna tha bhagte bhagte mera pura sharir thak jata, phephDe phool jate, main pasine mein lath path hokar bedam hone lagta aur ek bahut hi Darawni, sunn kar Dalnewali mirtyu mere bilkul qarib aane lagti main zoron se chikhta, rone lagta pitaji ko, thanu ko ya man ko pukarta aur phir main jaan jata ki ye sapna hai lekin ye pata chal jane ke bawjud main achchhi tarah se janta ki tab bhi main apni is mirtyu se nahin bach sakta mirtyu nahin—tirichh dwara apni hattya se aur aise mein main sapne mein hi koshish karta ki kisi tarah main jag jaun main puri taqat lagata, sapne ke bhitar ankhen kholkar phaDta, raushani ko dekhne ki koshish karta aur zor se kuch bolta kai bar bilkul ain mauqe par main jagne mein saphal bhi ho jata
man batlati ki mujhe sapne mein bolne aur chikhne ki aadat hai kai bar unhonne mujhe neend mein rote hue bhi dekha tha aise mein unhen mujhe jaga Dalna chahiye, lekin we mere mathe ko sahla kar mujhe razai se Dhak deti theen aur main usi khaufnak duniya mein akela chhoD diya jata tha apni mirtyu balki apni hattya se bachne ki kamzor koshish mein bhagta, dauDta chikhta
waise, dhire dhire mainne anubhwon se ye jaan liya tha ki awaz hi aise mauqe par mera sabse baDa astra hai, jisse main tirichh se bach sakta tha lekin durbhagy se, har bar, is astra ki yaad mujhe bilkul antim samay par aati thi tab, jab wo mujhe bilkul pa lenewala hota apni hattya ki sansen mujhe chhune lagtin, maut ke nashe se bhare ek nirjiw lekin Darawne andhere mein main ghir jata, lagta mere niche koi thos adhar nahin hai−main hawa mein hoon aur wo pal aa jata, jab mere jiwan ka ant hone wala hota tabhi, bilkul isi ek bahut hi chhote aur nazuk pal mein mujhe apne is astra ki yaad aati aur main zor zor se bolne lagta aur is awaz ke sahare main sapne se bahar nikal aata main jag jata
kai bar man mujhse puchhtin bhi ki mujhe kya ho gaya tha tab mere pas itni bhasha nahin thi ki main unhen sab kuch, ek ek cheez usi tarah bata pata apni is asmarthata ke bare mein mujhe khoob pata tha aur isi wajah se main ek ajib se tanaw, bechaini aur ashayta se bhar jata ant mein harkar itna hi kah pata ki bahut Darawna sapna tha
jane kyon mujhe shak tha ki pitaji ko usi tirichh ne kata tha, jise main pahchanta tha aur jo mere sapne mein aata tha
lekin ek achchhi baat ye hui thi ki jaise hi wo tirichh pitaji ko katkar bhaga, pitaji ne uska pichha karke use mar Dala tha tay tha ki agar we fauran use nahin mar pate to wo peshab karke usmen zarur lot jata phir pitaji kisi haal mein na bachte yahi wajah thi ki pitaji ko lekar mujhe utni chinta nahin rah gai thi balki ek tarah ki rahat aur mukti ki khushi mere bhitar dhire dhire paida ho rahi thi karan, ek to yahi ki pitaji ne tirichh ko turant mar Dala tha aur dusra ye ki mera sabse khatarnak, purana parichit shatru akhiraka mar chuka tha uska wadh ho gaya tha aur ab main apne sapne ke bhitar, kahin bhi, bina kisi Dar ke, siti bajata ghoom sakta tha
us raat der tak hamare angan mein bheeD rahi i pitaji ki jhaD phoonk chalti rahi kate ke zakhm ko cheer kar khoon bhi bahar nikala gaya aur kuen mein Dalnewali lal dawa (poteshiyam parmaingnet) zakhm mein bhara gaya main nishchint tha
agli subah pitaji ko shahr jana tha adalat mein peshi thi unke nam samman aaya tha hamare ganw se lagbhag do kilomitar door se nikalnewali saDak se shahr ke liye basen guzarti theen unki sankhya din bhar mein mushkil se do ya teen thi ghanimat thi ki pitaji jaise hi saDak tak pahunche, shahr janewala pas ke ganw ka ek tracktor unhen mil gaya tracktor mein baithe hue log pahchan ke the tracktor do Dhai ghante mein shahr pahunch janewala tha yani adalat khulne se kafi pahle
raste mein tirichh wali baat chali pitaji ne apna takhna un logon ko dikhlaya tracktor mein panDit ram autar bhi the unhonne batlaya ki tirichh ke zahr ki ek khasiyat ye bhi hai ki kabhi kabhi ye chaubis ghante baad, theek usi waqt, jis waqt pichhle din tirichh katta hai, apna asar dikhata hai isliye abhi pitaji ko nishchint nahin hona chahiye tracktor ke logon ne pitaji ka dhyan ek aur baDi ghalati ki or khincha unka kahna tha ki ye to pitaji ne bahut theek kiya ki tirichh ko fauran mar Dala, lekin iske baad bhi tirichh ko yunhi nahin chhoD dena chahiye tha use kam se kam jala zarur dena chahiye tha
un logon ka kahna tha ki bahut se kiDe makoDe aur jeew jantu raat mein chandarma ki raushani mein dubara ji uthte hain chandni mein jo os aur sheet hoti hai usmen amrit hota hai aur kai bar aisa dekha gaya hai ki jis sanp ko mara hua samajhkar raat mein yoon hi phenk diya jata hai, uska sharir chand ki sheet mein bheeg kar dubara ji uthta hai aur wo bhag jata hai phir wo hamesha badla lene ki tak mein rahta hai
tracktor ke logon ko shak tha ki kahin aisa na ho ki raat mein ji uthne ke baad tirichh peshab karke usmen lot jaye aisa hua to chaubis ghante bitte bitte, theek usi ghaDi ke aane par, tirichh ka janalewa zahr pitaji par chaDhna shuru ho jayega un logon ne salah bhi di ki pitaji ko wahin se wapas laut jana chahiye aur agar sanyog se, us tirichh ki lash usi jagah paDi hui ho, to use achchhi tarah jalakar rakh kar dena chahiye lekin pitaji ne unhen bataya ki peshi kitni zaruri thi ye tisra samman thi aur agar is bar bhi we adalat mein hazir na hue to ghair zamanati warant nikalne ka Dar tha peshi bhi hamare usi makan ko lekar thi, jismen hamara pariwar rah raha tha wakil ko pichhle do bar ki peshi mein fees bhi nahin di ja saki thi aur kahin agar usne laparwahi dikhla di aur jaj sanak gaya to wo hamari kuDki Dikri bhi karwa sakta tha
wichitr sthiti thi ki agar pitaji us tirichh ki lash ko jalane ke liye tracktor se utarkar, wahin se, ganw laut aate to ghairazmanti warant ke tahat we giraftar kar liye jate aur hamara ghar hamse chhin jata adalat hamare khilaf ho jati
lekin panDit ram autar ek waidy bhi the jyotish panchang ke alawa unhen jaDi butiyon ki bhi baDi gahri jankari thi unhonne sujhaya ki ek tariqa aisa hai, jisse pitaji peshi mein hazir bhi ho sakte hain aur tirichh ke zahr se chaubis ghante ke baad bach bhi sakte hain unhonne bataya ki charak ka nichoD is sootr mein hai ki wish hi wish ki aushadhi hota hai agar dhature ke beej kahin mil jayen to wo tirichh ke zahr ki kat taiyar kar sakte hain
agle ganw samatpur mein tracktor rok diya gaya aur ek teli ke khet mein dhature ke paudhe akhiraka khoj nikale gaye dhature ke bijon ko piskar use tanbe ke purane sikke ke sath ubalkar kaDha taiyar kiya gaya kaDha bahut kaDwa tha isliye use chay mein milaya gaya aur pitaji ko wo chay pila di gai iske baad sabhi nishchint ho gaye ek bahut baDe khatre se pitaji ko nikalne ki koshish ho rahi thi
waise mujhe tirichh ke bare mein tisri baat bhi pata thi, jo pitaji ke jane ke kai ghante baad achanak yaad aa gai thi ye baat sanp ki us baat se milti julti thi, jiske phalaswarup aage chalkar camere ka awishkar hua tha
mana ye jata tha ki agar koi adami sanp ko mar raha ho to apne marne se pahle wo sanp, antim bar, apne hatyare ke chehre ko puri tarah se, bahut ghaur se dekhta hai adami uski hattya kar raha hota hai aur sanp takatki bandhakar us adami ke chehre ki ek ek bariki ko apni ankh ke bhitari parde mein darj kar raha hota hai sanp ki mirtyu ke baad sanp ki ankh ke bhitari parde par us adami ka chitr aspasht darj ho jata hai
baad mein, adami ke jane ke baad, us sanp ka dusra joDa jakar us mare hue sanp ki ankh ke bhitar jhankta hai aur is tarah wo hatyara pahchan liya jata hai sare sanp use pahchanne lagte hain phir wo kahin bhi chala jaye, usse badla lene ki firaq mein we rahte hain har sanp uska shatru hota hai
mujhe shak tha ki mare hue tirichh ki ankh ke bhitari parde par pitaji ka chehra darj hoga koi dusra tirichh aakar us lash ki ankh mein se jhankega aur pitaji wahan pahchan liye jayenge mere bhitar is baat ko lekar bechaini paida hui ki pitaji ne ye satarkata kyon nahin barti? unhen tirichh ko marne ke sath hi kisi patthar se uski donon ankhon ko kuchalkar phoD dena chahiye tha lekin ab kya ho sakta tha? pitaji shahr ja chuke the aur mere samne uljhan aur chunauti thi ki ganw ke pas phaile itne baDe jangal mein jis jagah tirichh ko markar unhonne chhoDa tha, wo jagah main khoj nikalun
main thanu ke sath botal mein mitti ka tel, diyasalai aur DanDa lekar jangal mein tirichh ki khoj mein bhatakta raha main use achchhi tarah se pahchanta tha bahut achchhi tarah thanu nirash tha
phir, mujhe achanak hi lagne laga ki is jangal ko main achchhi tarah se janta hoon ek ek peD mera parichit nikalne laga isi jagah se kai bar sapne mein main tirichh se bachne ke liye bhaga tha mainne ghaur se har taraf dekha—bilkul yahi wo jagah thi mainne thanu ko bataya ki ek sankra sa nala is jagah se kitni door dakshain ki taraf bahta hai nale ke upar jahan baDi baDi chattanen hain, wahan kikar ka ek bahut purana peD hai, jis par baDe baDe shahd ke chhatte hain unhen dekhkar lagta hai ki we kai shatabdiyon purane hain main us bhure rang ki chattan ko janta tha, jo barsat bhar nale ke pani mein aadhi Dubi rahti thi aur barish ke bitne ke baad jab bahar nikalti thi to uski khohon mein kichaD bhar jati thi aur ajib ajib wanaspatiyan wahan se ug aati theen chattan ke upar hari kai ki ek part si jam jati thi isi chattan ki sabse uparwali darar mein tirichh rahta tha thanu is baat ko meri kalpana man raha tha
lekin bahut jald hamein wo nala mil gaya kikar ka wo buDha peD bhi, jis par shahd ke chhatte the, aur wo chattan bhi tirichh ki lash chattan se zara hatkar, zamin par, ghas ke upar chitt paDi hui thi bilkul ye wahi tirichh tha mere bhitar hinsa aur uttejna aur khushi ki ek sansani dauD rahi thi
thanu ne aur mainne sukhe patte aur lakDiyan ikatthi ki, khoob sara mitti ka tel usmen Dala aur aag laga di tirichh usmen jal raha tha uske jalne ki chirayandh gandh hawa mein phail rahi thi mera man zor se chillane ko hua lekin main Dara ki kahin main jag na jaun aur ye sab kuch sapna na sabit ho jaye mainne thanu ki or dekha wo ro raha tha wo mera bahut achchha dost tha
mere sapne mein isi jagah se nikalkar us tirichh ne kai bar mera pichha karna shuru kiya tha ashchary tha ki itne lambe arse se uske aDDe ko itni achchhi tarah se janne ke bawjud kabhi din mein aakar mainne use marne ki koi koshish nahin ki thi
main aaj betahasha khush tha
panDit ram autar ne batlaya tha ki tracktor ne paune das baje ke lagbhag shahr ka chunginaka par kiya tha wahan unhen nake ka tol tax chukane ke liye kuch der rukna bhi paDa tha wahan par pitaji tracktor se utarkar peshab karne gaye the lautne par unhonne bataya tha ki unka sir kuch ghoom sa raha hai, tab tak pitaji ko dhature ka kaDha piye hue taqriban DeDh ghanta ho chuka tha tracktor ne pitaji ko shahr mein das bajkar panch sat minat ke asapas chhoD diya tha tracktor mein hi baithe palDa ganw ke master nandlal ka kahna tha ki jab shahr mein, minarwa takij ke paswale chaurahe par pitaji ko tracktor se utara gaya, tab unhonne shikayat ki thi ki unka gala kuch sookh sa raha hai we thoDa pareshan bhi the kyonki adalat jane ka rasta unhen malum nahin tha aur shahr ke logon se poochh puchhkar kahin jane mein unhen bahut taklif hoti thi
pitaji ke sath ek diqqat ye bhi thi ki ganw ya jangal ki pagDanDiyan to unhen yaad rahti theen, shahr ki saDkon ko we bhool jate the shahr we bahut kam jate the jana hi paDe to antim samay tak we talte rahte the, tab tak, jab tak jana bilkul hi zaruri na ho jaye kai bar to aisa bhi hua ki pitaji sara saman lekar shahr ke liye rawana hue aur bus aDDe se laut aaye bahana ye ki bus chhoot gai jab ki hum sab jante the ki aisa nahin hua hoga pitaji ne bus ko dekha hoga, phir we kahin baith gaye honge—peshab karne ya pan khane phir unhonne dakha hoga ki bus chhoot rahi hai unhonne zara sa aur intizar kiya hoga jab bus ne raftar pakaD li hogi—tab we kuch door tak dauDe honge phir unke qadam dhime paD gaye honge aur afsos aur ghussa prakat karte we laut aaye honge aisa karte hue unhen swayan bhi laga hoga ki bus sachmuch chhoot gai hai aise mein, jabki hum man chuke hote ki we shahr ja chuke hain, wo lautkar hamein chakit kar dete
tracktor se minarwa takij ke pas wale chaurahe par, sindh wach company ke theek samne lagbhag das baj kar sat minat par utarne ke baad se lekar sham chhah baje tak pitaji ke sath shahr mein jo kuch bhi hua, uska sirf ek dhundhla sa anuman hi lagaya ja sakta hai ye jankari bhi kuch logon se batachit aur puchhatachh ke baad mili hai kisi ki bhi mirtyu ke baad, agar wo mirtyu bahut akasmik aur aswabhawik Dhang se hui ho, aisi jankariyan mil hi jati hai us din, budhwar 17 mai, 1972 ko subah das das se lekar sham chhah baje tak, lagbhag paune aath ghante mein pitaji kahan kahan gaye, kahan kahan unke sath kya kya hua, iska bahut sahi aur wistrit byaura to milna mushkil hai jo suchnayen ya jankariyan baad mein mili, unke zariye un ghatnaon ka sirf anuman hi lagaya ja sakta hai
jaisa ki palDa ganw ke master nandlal ka kahna tha ki jab pitaji tracktor se utre, tabhi unhonne gala sukhne ki shikayat ki thi iske pahle chunginaka ke pas, jab peshab karke pitaji laute the to unhonne sir ghumne ki baat ki thi yani pitaji par dhature ke bijon ke kaDhe ka asar hona shuru ho gaya tha waise bhi shahr pahunchne tak pitaji ko kaDha piye hue lagbhag do ghante ho chuke the mera anuman hai ki us samay pitaji ko pyas bahut lagi hogi gala bhigane ke liye we kisi hotel ya Dhabe ki taraf gaye bhi honge, lekin jaisa ki mujhe unke swbhaw ke bare mein pata hai, we wahan kuch der khaDe rahe honge, aur phir ek gilas pani mangne ka phaisla na kar sake honge ek bar unhonne bataya bhi tha ki kuch sal pahle garmiyon ke dinon mein jab unhonne kisi hotel mein pani manga tha, to wahan kaam karnewale naukar ne unhen gali di thi pitaji bahut sanwedanshil the, isliye unhonne apni pyas ko dabaya hoga aur we wahan se chal paDe honge
sawa das se lekar lagbhag gyarah baje ke beech, paintalis minat tak pitaji kahan kahan gaye, iski koi jankari kahin se nahin milti is beech aisi koi khas ghatna bhi nahin hui, jisse koi kuch kah sake phir shahr mein saDak par aate jate logon mein se kisi ne un par dhyan diya ho, unhen dekha ho, iska pata lagana bhi mushkil hai waise mera apna andaza hai ki is beech pitaji ne kuch logon se adalat jane ka rasta puchha hoga aur unke dimagh mein ye baat bhi rahi hogi ki wahan pahunchakar we apne wakil s en agarwal se pani mang lenge lekin unke puchhne par ya to log chup rah kar tezi se aage baDh gaye honge ya kisi ne itni baukhalahat aur jaldabaज़i mein unhen kuch bataya hoga, jo pitaji theek se samajh nahin sake honge aur sirf apmanit, duःkhi aur pareshan hokar rah gaye honge shahr mein aisa hota hi hai
waise beech ke paun ghante ke bare mein mera apna anuman hai ki is beech pitaji par kaDhe ka asar kaphi baDh gaya hoga mai ki dhoop aur pyas ne is asar ko aur bhi tej, aur bhi gahra kar diya hoga unke pair laDkhaDane bhi lage honge aur bahut sambhaw hai ki ekadh bar, is beech, unhen chakkar bhi aa gaye hon
pitaji gyarah baje, shahr mein, deshabandhu marg par sthit state bank auph india ki imarat mein ghuse the we wahan kyon gaye, iski wajah theek theek samajh mein nahin aati waise hamare ganw ka ramesh datt shahr mein bhumi wikas sahkari bank mein clerk hai ho sakta hai pitaji ke dimag mein sirph bank raha ho aur yahan se gujarte hue achanak unhonne state bank likha hua dekha ho aur we udhar ghoom gaye hon unhonne ab tak pani nahin piya tha isliye unhonne socha hoga ki we ramesh datt se pani bhi mang lenge, adalat jane ka rasta bhi poochh lenge aur bata sakenge ki unka sir ghoom sa raha hai, ye bhi ki kal sham unhen tirichh ne kata tha state bank ke cashier agnihotri ke anusar wo us samay cash registry check kar raha tha uski mej par lagbhag atthais hajar rupyon ki gaDDiyan rakhi hui theen us wakt gyarah se do teen minat upar hue honge, tabhi pitaji wahan aaye unke chehre par dhool lagi hui thi, chehra Darawna tha aur achanak hi unhonne jor se kuch kaha tha agnihotri ka kahna tha ki main achanak Dar gaya amuman aise log bank ke itne bhitar, cashier ki tebil tak nahin pahunch pate agnihotri ka kahna ye bhi tha ki agar wo pitaji ko ekadh minat pahle se apni or aata hua dekh leta, tab shayad na Darta lekin hua ye ki wo puri tarah se cash register ke hisab kitab mein Duba hua tha, tabhi achanak hi pitaji ne awaj nikali aur sir uthate hi unhen dekhkar wo Dar gaya aur cheekh paDa usne ghanti bhi baja di
bank ke chaprasiyon, do chaukidaron aur dusre karmchariyon ke anusar achanak hi cashier ki cheekh aur ghanti ki awaj se we sab log chaunk gaye aur us taraph dauDe, tab tak nepali chaukidar thapa ne pitaji ko daboch liya tha aur marta hua common roop ki taraph le ja raha tha ek chaprasi ramakishor, jiski umr paintalis ke aas pas thi, ne kaha ki usne samjha ki koi sharabi daphtar mein ghus aaya hai, ya pagal aur chunki uski Dayuti bank ke mukhy darwaje par thi isliye branch manager use charjshit kar sakta tha lekin hua ye ki jab pitaji ko mara ja raha tha, tabhi unhonne angreji mein kuch bolna shuru kar diya isi wajah se chaprasiyon ka shak baDh gaya isi beech shayad asistent branch manager mehta ne ye kah diya ki is adami ki achchhi tarah se talashi le lena tabhi bahar nikalne dena waise chaprasi ramakishor ka kahna tha ki pitaji ka chehra ajib tarah se Darawna ho gaya tha us par dhool jama ho gai thi aur ulti ki bas aa rahi thi bank ke chaprasiyon ne pitaji ko ziyada marne pitne ki baat se inkar kiya, lekin bank ke bahar, theek darwaze ke pas jo pan ki dukan hai, usmen baithnewale bunnu ka kahna tha ki jab saDhe gyarah baje ke aas pas pitaji bank se bahar aaye to unke kapDe phate hue the aur nichla honth kat gaya tha, jahan se khoon nikal raha tha ankhon ke niche sujan aur katthai chakatte the aise chakatte baad mein baingani ya nile paD jate hain
iske baad, yani saDhe gyarah baje se lekar ek baje ke beech pitaji kahan kahan gaye, iske bare mein koi jankari nahin milti han state bank ke bahar pan ki dukan laganewale bunnu ne ek baat batai thi halanki is bare mein wo puri tarah aspasht nahin tha, ya ho sakta hai ki state bank ke karmchariyon se Dar ki wajah se wo saf saf batlane se katra raha ho bunnu ne batlaya tha ki state bank se bahar nikalne par shayad (wah shayad par bahut zor Dal raha tha) pitaji ne kaha tha ki unke rupae aur kaghzat bank ke chaprasiyon ne chheen liye hain lekin bunnu ka kahna tha ki ho sakta hai pitaji ne koi aur baat kahi ho, kyonki we theek se bol nahin pa rahe the, unka nichla honth kafi kat gaya tha, munh se lar bhi bah rahi thi aur unka dimagh sahi nahin tha
mera apna andaza hai ki is samay tak pitaji par kaDhe ka asar bahut ziyada ho chuka tha halanki panDit ram autar is baat se inkar karte hain unka kahna tha ki dhature ke beej to holi ke dinon mein bhang ke sath bhi ghote jate hain, lekin kabhi aisa nahin hota ki adami puri tarah se pagal ho jaye panDit ram autar ka manna hai ki ya to tirichh ka zahr us samay pitaji ke sharir mein chaDhna shuru ho gaya tha aur uska nasha unke dimagh tak pahunchne laga tha ya phir bahut sambhaw hai ki jab state bank mein pitaji ko thapa chaukidar aur chaprasiyon ne mara pita tha tab unke sir ke pichhe ki taraf koi chot lag gai ho aur us dhakke se unka dimagh sanak gaya ho lekin mujhe lagta hai ki us samay tak pitaji ko thoDa bahut hosh tha aur we puri koshish kar rahe the ki kisi tarah we shahr se bahar nikal jayen shayad rupae aur adalat ke kaghzat bank mein chhin jane ki wajah se unhonne socha ho ki ab yahan rahne ka koi matlab bhi nahin hai unhonne shayad ekadh bar socha bhi hoga ki wapas state bank jakar apne kaghzat to kam se kam mang layen phir aisa karne ki unki himmat nahin paDi hogi we Dar gaye honge unhen unke jiwan mein pahli bar is tarah se mara gaya tha, isliye we theek se soch pane mein saphal nahin ho pa rahe honge unka sharir bahut dubla tha aur bachpan se hi unhen epenDisaitis ki shikayat thi ye bhi ho sakta hai ki us waqt tak un par kaDhe ka asar itna ziyada ho gaya ho ki we ek cheez par der tak soch hi nahin pa rahe hon aur dimagh mein har pal paida honewala, chhote chhote bulbulon jaise wicharon ya nae nae jhatkon ke wash mein aakar idhar se udhar chal paDte rahe hon lekin main ye janta hoon, mujhe achchhi tarah se mahsus hota hai ki unke dimagh mein ghar laut aane aur shahr se bahar nikal jane ki baat ek sthai, bar bar kahin andhere se ubharnewali, bhale hi bahut kshain aur bahut dhundhli baat zarur rahi hogi
pitaji lagbhag sawa baje shahr ke police thana pahunche the thana shahr ke bahari chhor par circuit house ke pas bane wijay stambh ke pas hai ashchary ye hai ki thane se bamushkil ek kilomitar door adalat bhi hai agar pitaji chahte to yahan se paidal hi das minat mein adalat pahunch sakte the samajh mein ye nahin aata ki pitaji agar yahan tak pahunche the, kya tab tak unke dimagh mein adalat jane ki baat rah bhi gai thee? unke kaghzat to rah nahin gaye the
thane ke s ech o raghwendr pratap singh ne kaha ki us waqt ek bajkar pandrah minat hue the we ghar se laye gaye tiffin ko kholkar lunch lene ki taiyari kar rahe the aaj tiffin mein parathon ke sath karele rakhe hue the karele we kha nahin pate aur isi uljhan mein the ki ab kya karen tabhi pitaji wahan aaye the unke sharir par qamiz nahin thi, pant phati hui thi lagta tha ki we kahin gire honge ya kisi wahan ne unhen takkar mari hogi thane mein us waqt ek hi sipahi gajadhar parsad sharma maujud tha sipahi ka kahna tha ki usne socha ki shayad koi bhikhmanga thane mein ghus aaya hai usne awaz bhi di lekin pitaji tab tak s ech o raghwendr pratap singh ki tebil tak pahunch chuke the s ech o ne kaha ki karelon ki wajah se waise bhi unka mood off tha terah sal ke wiwahit jiwan ke bawjud patni ye nahin jaan pai thi ki unhen kaun si chizen bilkul napasand hain, itni napasand ki we un chizon se ghrina karte hain unhonne jaise hi niwala munh mein rakha, pitaji bilkul unke qarib pahunch gaye pitaji ke chehre aur kandhon ke niche ulti lagi hui thi aur uski bahut tez gandh uth rahi thi s ech o ne puchha ki kya baat hai to jawab mein pitaji ne jo kuch kaha use samajhna bahut mushkil tha s ech o raghwendr singh baad mein pachhta rahe the ki agar unhen malum hota ki ye adami bakeli gram ka pardhan aur bhutapurw adhyapak hai to we use thane mein hi kam se kam do chaar ghante bitha lete bahar na jane dete lekin us samay unhen laga ki ye koi pagal hai aur unhen khate hue dekhkar yahan tak ghus aaya hai isiliye unhonne sipahi gajadhar sharma ko ghusse mein awaz di sipahi pitaji ko ghasitta hua bahar le gaya gajadhar sharma ka kahna tha ki usne pitaji ke sath koi mar peet nahin ki aur usne dekha tha ki jab we thane aaye the tab unka nichla honth kata tha thuDDi par kahin ragDa khakar girne se kharonch ke nishan the aur kuhaniyan chhili hui theen we kahin na kahin gire zarur the
ye koi nahin janta ki thane se nikalkar lagbhag DeDh ghante pitaji kahan kahan bhatakte rahe subah das bajkar sat minat par, jab we shahr aaye the aur minarwa takij ke paswale chaurahe par tracktor se utre the, tab se lekar ab tak unhonne kahin pani piya tha ya nahin, ise janna mushkil hai iski sambhawana bhi kam hi banti hai ho sakta hai tab tak unka dimagh is qabil na rah gaya ho ki we pyas ko bhi yaad rakh saken lekin agar we police thane tak pahunche to unke mastishk mein, nashe ke bawjud, kahin bahut kamzor sa, andhere mein Duba ye khayal raha hoga ki we kisi tarah apne ganw jane ka rasta wahan poochh len, ya us tracktor ka pata puchhe ya phir apne rupae aur adalati kaghzat chhin jane ki report wahan likha den ye sochne ke qarib pahunchna hi buri tarah se bechain kar Dalne wala hai ki us samay pitaji sirf tirichh ke zahr aur dhature ke nashe ke khilaf hi nahin laD rahe the, balki hamare makan ko bachane ki chinta bhi kahin na kahin unke nashe ki neend mein se bar bar sir utha rahi thi shayad unhen ab tak ye lagne laga ho ki ye sab kuch jo ho raha hai, sirf ek sapna hai, pitaji isse jagne aur bahar nikalne ki koshish bhi karte rahe honge
sawa do baje ke aas pas pitaji ko shahr ke bilkul uttari chhor par basi sabse sanpann colony itwari colony mein ghisatte hue dekha gaya tha ye colony sarrafa ke jauhariyon, pi Dablyu d ke baDe thekedaron aur ritayarD afsaron ki colony thi kuch samrddh patrakar kawi bhi wahin rahte the ye colony hamesha shant aur ghatnahin rahti thi jin logon ne yahan pitaji ko dekha tha, unhonne bataya ki us waqt tak unke sharir mein sirf ek pattedar janghiya bacha tha, jiska naDa shayad toot gaya tha aur we use apne bayen hath se bar bar sanbhal rahe the jisne bhi unhen wahan dekha, usne yahi samjha ki koi pagal hai kuch ne kaha ki we beech beech mein khaDe hokar zor zor se galiyan bakne lagte the baad mein, usi colony mein rahnewale ek ritayarD tahsildar soni sahab aur shahr ke sabse baDe akhbar ke wishesh sanwadadata aur kawi satyendr thapaliyal ne bataya ki unhonne pitaji ke bolne ko theek se suna tha aur darasal we galiyan nahin bak rahe the balki bar bar kah rahe the —main ramaswarath parsad, x school head master enD wilej head auph gram bakeli ! kawi patrakar thapaliyal sahab ne duःkh zahir kiya darasal usi samay we americi dutawas ki kisi khas party mein sangit sunne dilli ja rahe the isliye jaldabaज़i mein we chale gaye han tahsildar soni sahab ka kahna tha ki mujhe us adami par bahut taras aaya aur mainne laDkon ko Danta bhi lekin do teen laDkon ne kaha ki ye adami ramartan sarraf ki biwi aur sali par hamla karne wala tha tahsildar ne kaha ki aisa sunne ke baad unhen bhi laga ki ho sakta hai ye koi badmash ho aur natk kar raha ho laDke unhen tang karne mein lage the or pitaji beech beech mein zor zor se bolte the, “main ramaswarath parsad x school headmaster
agar hisab lagaya jaye to minarwa takij ke pas wala chauraha, jahan pitaji tracktor se subah das bajkar sat minat par utre the, wahan se lekar deshabandhu marg ka state bank phir wijay stambh ke pas ka thana aur shahr ke bahari uttari chhor par basi itwari colony ko milakar we ab tak lagbhag tees battis kilomitar ki duri tak bhatak chuke the ye jaghen aisi hain jo ek hi disha mein nahin hai iska matlab ye hua ki pitaji ki dimaghi haalat ye thi ki unhen theek theek kuch soojh nahin raha tha aur we achanak hi, kisi bhi taraf chal paDte the jahan tak sarraf ki patni aur sali par unke hamla karne ki baat hai, jise thapaliyal sahab sach mante hain, mera apna anuman hai ki pitaji unke pas ya to pani mangne gaye honge ya bakeli janewali saDak ke bare mein puchhne us ek pal ke liye pitaji ko hosh zarur raha hoga lekin is huliye ke adami ko apne itna qarib dekhkar we aurten Darkar chikhne lagi hongi waise, pitaji ki dahini ankh ke upar bhaunh par jo chot lagi thi aur jiska khoon riskar unki ankh par aane laga tha, wo chot unko itwari colony mein hi lagi thi, kyonki baad mein logon ne bataya ki laDke unhen beech beech mein Dhele mar rahe the
wo jagah itwari colony se bahut door nahin hai, jis jagah pitaji ko sabse ziyada choten lagin neshnal restaurant nam ke ek saste se Dhabe ke samne ki khali jagah par pitaji ghir gaye the itwari colony se laDkon ka jo jhunD unke pichhe paD gaya tha, usmen kuch baDi umr ke laDke bhi shamil ho gaye the neshnal restaurant mein kaam karnewale naukar satte ka kahna tha ki pitaji ne ghalati ye ki thi ki ek bar unhonne ghusse mein aakar bheeD par Dhele marne shuru kar diye the shayad unhin ka ek baDa sa Dhela sat aath sal ke laDke wiki agarwal ko lag gaya tha, jise baad mein kai tanke lage the satte ka kahna tha ki iske baad jhunD ziyada khatarnak ho gaya tha we halla macha rahe the aur charon taraf se pitaji par patthar mar rahe the Dhabe ke malik sardar satnam singh ne bataya ki us waqt pitaji ke jism par sirf pattewali ek chaDDi thi, duble sharir ki haDDiyan aur chhati ke safed baal dikh rahe the pet pichka hua tha we dhool aur mitti mein lithDe hue the, sir ke safed baal bikhar gaye the, dahini ankh ke upar se aur nichle honth se khoon bah raha tha satnam singh ne duhakh aur pachhtawe ke sath kaha —“mere ko kya malum tha ki ye adami sidha sada, izzatdar, sakh rasukh ka insan hai aur nasib ke pher mein iski ye haalat ho gai hai ” waise Dhabe mein kap plate dhonewale naukar hari ka kahna tha ki beech beech mein pitaji bheeD ko anD banD galiyan de dekar Dhele marne lagte the —“ao sasuro aao ek ek ko mar Dalunga bhosDiwalo tumhari man ki ” lekin mujhe sandeh hai ki pitaji ne aisi koi gali di hogi hamne kabhi bhi unhen gali dete nahin suna tha
main pure wishwas ke sath kah sakta hoon, kyonki pitaji ko main bahut achchhi tarah se janta hoon ki, is samay tak, unhen kai bar laga hoga ki unke sath jo kuch ho raha hai, wo wastawikta nahin hai, ek sapna hai pitaji ko ye sari ghatnayen ul jalul, utaptang aur bematlab lagi hongi we is sab par awishwas karne lage honge unhonne socha hoga ki ye sab kya bakwas hai? we to ganw se shahr aaye hi nahin hain, unhen kisi tirichh ne nahin kata hai balki tirichh to hota hi nahin hai, ek managDhant aur andhwishwas hai aur dhature ka kaDha pine ki baat to hasyaspad hai, wo bhi ek teli ke khet mein uska paudha khojkar unhonne socha hoga aur paya hoga ki bhala un par koi muqadma kyon chalega? unhen adalat jane ki kya zarurat hai?
main janta hoon ki surang jaisa lamba, sammohak lekin Darawna sapna jaisa mujhe aata tha, pitaji ko bhi aata raha hoga meri aur unki bahut si baten bilkul milti julti theen mujhe lagta hai ki is samay tak pitaji puri tarah se man chuke honge ki ye jo kuch ho raha hai sab jhooth aur awastawik hai isiliye we bar bar us sapne se jagne ki koshish bhi karte rahe honge agar we beech beech mein zor zor se kuch bolne lagte the, ya shayad galiyan bakne lagte the, to isi kathin koshish mein ki we us awaz ke sahare us duaswapn se bahar nikal ayen neshnal restorant ke naukaron aur malik sardar satnam singh ne jaisa bataya tha uske anusar us jagah par pitaji ko bahut choten i theen unki kanpati, mathe, peeth aur sharir ke dusre hisson par kai inten aur Dhele aakar lag gaye the saDak ka theka lenewale thekedar aroDa ke bees bais sal ke laDke sanju ne unhen do teen bar lohe ki raD se bhi mara tha satte ka to kahna tha ki itni choton se koi bhi adami mar sakta tha
mujhe ye sochkar ek ajib si rahat milti hai aur meri phansati hui sansen phir se theek ho jati hain ki us samay pitaji ko koi dard mahsus nahin hota raha hoga, kyonki we achchhi tarah se, puri tarkikta aur gahrai ke sath wishwas karne lag gaye honge ki ye sab sapna hai aur jaise hi we jagenge, sab theek ho jayega ankh khulte hi angan buharti man nazar aa jayegi ya niche farsh par sote hue main aur chhoti bahan dikh jayenge ya gauraiyon ka jhunD ho sakta hai ki unhen beech beech mein apne is ajib o gharib sapne par hansi bhi i ho
agar pitaji ne ghusse mein laDkon ki taraf khu bhi Dhele marne shuru kar diye to iske pichhe pahli wajah to yahi thi ki unhen ye bahut achchhi tarah se pata tha ki ye Dhele sapne ke bhitar ja rahe hain aur isse kisi ko koi chot nahin ayegi ye bhi ho sakta hai ki puri taqat se Dhela mar kar we utsukta aur bechaini se ye intizar karte rahe hon ki jaise hi wo jakar kisi laDke ke sir se takrayega, uska matha nasht hoga aur ek hi jhatke mein is duaswapn ke tukDe tukDe bikhar jayenge aur charon or se wastawik sansar ki betahasha raushani andar aane lagegi unka zor zor se chikhna bhi darasal ghusse ke karan nahin tha, we asal mein mujhe, chhoti bahan ko, man ko ya kisi ko bhi pukar rahe the ki agar we apne aap is sapne se jag pane mein saphal na bhi ho payen, tab bhi koi bhi aakar unhen jaga de
ek sabse baDi wiDambna bhi isi beech hui hamare ganw ki gram panchayat ke sarpanch aur pitaji ke bachpan ke purane dost panDit kandhi ram tiwari lagbhag saDhe teen baje nashenal restorant ke samne, saDak se guzre the we rikshe par the unhen agle chaurahe se bus lekar ganw lautna tha unhonne us Dhabe ke samne ikatthi bheeD ko bhi dekha aur unhen ye pata bhi chal gaya ki wahan par kisi adami ko mara ja raha hai unki ye ichha bhi hui ki wahan jakar dekhen ki akhir mamla kya hai unhonne rickshaw rukwa bhi liya lekin unke puchhne par kisi ne kaha ki koi pakistani jasus pakDa gaya hai jo pani ki tanki mein zahr Dalne ja raha tha, use hi log mar rahe hain theek isi samay panDit kandhi ram ko ganw janewale bus aati hui dikhi aur unhonne rikshewale se agle chaurahe tak jaldi jaldi rickshaw baDhane ke liye kaha ganw janewali ye akhiri bus thi agar us bus ke aane mein teen chaar minat ki bhi deri ho jati to we nishchit hi wahan jakar pitaji ko dekhte aur unhen pahchan lete rajy pariwhan ki wo bus hamesha aadha paun ghanta let raha karti thi, lekin us din, sanyog se, wo bilkul sahi samay par aa rahi thi
satnam singh ka kahna tha ki wo bheeD neshnal restaurant ke samne se tab hati aur log titar bitar hue jab baDi der tak pitaji zamin se uthe hi nahin int ka ek baDa sa Dhela unki kanpati par aakar laga tha unke munh se khoon aana shuru ho gaya tha sir mein bhi choten theen satnam ne bataya ki jab pitaji bahut der tak nahin hile Dule to laDkon ke jhunD mein se kisi ne kaha ki lagta hai ye mar gaya jab bheeD chhantne ke das pandrah minat baad bhi pitaji nahin hile Dule to satnam singh ne satte se kaha tha ki wo unke munh mein pani ke chhinte mar kar dekhe ki we sirf behosh hain to ho sakta hai ki uth jayen lekin satte police ki wajah se Dar raha tha baad mein satnam singh ne khu hi ek balti pani unke upar Dala tha door se pani Dalne ke karan zamin ki mitti gili hokar pitaji ke sharir se lithaD gai thi
sardar satnam singh aur satte donon ka kahna tha ki lagbhag panch baje tak pitaji usi jagah paDe hue the tab tak police nahin i thi phir satnam singh ne socha ki kahin use panchnama aur gawahi waghaira mein na phansna paD jaye isliye usne Dhaba band kir diya tha aur Dilait takij mein aan milo sajna philm dekhne chala gaya tha
us samay lagbhag chhah baje the jab siwil lains ki saDak ki ptriyon par ek qatar mein bani mochiyon ki dukanon mein se ek mochi ganeshwa ki gumti mein pitaji ne apna sir ghuseDa us samay tak unke sharir par chaDDi bhi nahin rah gai thi, we ghutnon ke bal kisi chaupaye ki tarah reng rahe the sharir par kalikh aur kichaD lagi hui thi aur jagah jagah choten theen
ganeshwa hamare ganw ke talab ke parwale tole ka mochi hai usne bataya ki main bahut Dar gaya aur master sahab ko pahchan hi nahin paya unka chehra Darawna ho gaya tha aur chinhai mein nahin aata tha main Dar kar gumti se bahar nikal aaya aur shor machane laga dusre mochiyon ke alawa wahan kuch aur log bhi ikattha ho gaye the logon ne jab ganeshwa ki gumti ke bhitar jakar jhanka to gumti ke andar, uske sabse antre kone mein, tute phute juton, chamDon ke tukDon, rabar aur chithDon ke beech pitaji dubke hue the unki sansen thoDi bahut chal rahi theen unhen wahan se kheench kar, bahar, patri par nikala gaya tabhi ganeshwa ne unhen pahchan liya ganeshwa ka kahna tha ki usne pitaji ke kan mein kuch awazen bhi lagain lekin we kuch bol nahin pa rahe the bahut der baad unhonne ram swarath parsad aur bakeli jaisa kuch kaha tha phir chup ho gaye the
pitaji ki mirtyu sawa chhah baje ke asapas hui thi tarikh thi 17 mai, 1972, chaubis ghante pahle lagbhag isi waqt unhen jangal mein tirichh ne kata tha chaubis ghante pahle kya pitaji in ghatnaon aur is mirtyu ka anuman kar sakte the?
pitaji ka shau shahr ke murdaghar mein police ne rakhwa diya tha postmortem mein pata chala tha ki unki haDDiyon mein kai jagah phraikchar tha, dain ankh puri tarah phoot chuki thi, collar bon tuta hua tha unki mirtyu manasik sadme aur adhik raktasraw ke karan hui thi report ke anusar unka amashay khali tha, pet mein kuch nahin tha iska matlab yahi hua ki dhature ke bijon ka kaDha ultiyon dwara pahle hi nikal chuka tha
halanki thanu kahta hai ki ab to ye tay ho gaya ki tirichh ke zahr se koi nahin bach sakta theek chaubis ghante baad usne apna karishma dikhaya aur pitaji ki mirtyu hui panDit ram autar bhi yahi kahte hain ho sakta hai ki panDit ram autar isliye aisa kahte hon ki we khu ko wishwas dilana chahte hon ki dhature ke kaDhe ka pitaji ki mirtyu se koi sambandh nahin tha
main sochta hoon, andaza lagane ki koshish karta hoon ki shayad ant mein, jab ganeshwa ne apni gumti ke bahar, pitaji ke kan mein awaz di hogi to pitaji sapne se jag gaye honge unhonne mujhe, man ko aur chhoti bahan ko dekha hoga—phir we datun lekar nadi ki taraf chale gaye honge nadi ke thanDe pani se unhonne apna chehra dhoya hoga, kulla kiya hoga aur is lambe duaswapn ko we bhool gaye honge unhonne adalat jane ke bare mein socha hoga hum logon ke makan ki chinta ne unhen pareshan kiya hoga
lekin main apne sapne ke bare mein batana chahta hoon, jo mujhe aksar aata hai wo yoon hai —ki main kheton ki meinD, ganw ki pagDanDi se hota hua jangal pahunch gaya hoon main raksa nala, kikar ke peD ko dekhta hoon wo bhuri chattan wahan usi jagah hai, jo sari barish nale ke pani mein Dubi rahti hai main dekhta hoon ki tirichh ki lash uske upar paDi hui hai mujhe ek betahasha khushi apne ghere mein le leti hai akhir wo mara gaya main patthar lekar tirichh ko kuchalne lagta hoon, zor zor se use marta hoon mere pas thanu mitti ka tel aur machis liye khaDa hai tabhi, achanak hi, main pata hoon ki main us chattan par nahin hoon thanu bhi wahan nahin hai, wahan koi jangal nahin hai balki main darasal shahr mein hoon mere kapDe bahut hi maile, phate aur chithDon jaise ho gaye hain mere galon ki haDDiyan nikli hain baal bikhre hain mujhe pyas lagi hai aur main bolne ki koshish karta hoon shayad main bakeli, apne ghar jane ka rasta puchhna chahta hoon aur tabhi achanak charon or shor uthta hai ghantiyan bajne lagti hain hazaron hazaron ghantiyan main bhagta hoon
main bhagta hoon mera pura sharir bedam hone lagta hai, phephDe phool jate hain main pas pas qadam rakh kar achanak lambi lambi chhalangen lagata hoon, uDne ki koshish karta hoon lekin bheeD lagta hai mere pas pahunchne wali hoti hai ek ajib si garm aur bhari hawa mujhe sunn kar deti hai apni hattya ki sansen mujhe chhune lagti hain aur akhiraka wo pal aa jata hai, jab mere jiwan ka ant hone wala hota hai
main rota hoon bhagne ki koshish karta hoon mera pura sharir neend mein hi pasine mein Doob jata hai main zor zor se bol kar jagne ki koshish karta hoon main wishwas karna chahta hoon ki ye sab sapna hai aur abhi ankh kholte hi sab theek ho jayega main sapne ke bhitar apni ankhen phaD kar dekhta hoon door tak lekin wo pal akhir aahi jata hai
man bahar se mujhe dekhti hai mera matha sahlakar wo mujhe razai se Dhanp deti hai aur main wahan akela chhoD diya jata hoon apni mirtyu se bachne ki koshish mein jujhta, bedam hota, rota, chikhta aur bhagta
man kahti hain mujhe abhi bhi neend mein baDbaDane aur chikhne ki aadat hai lekin main puchhna chahta hoon aur yahi sawal mujhe hamesha pareshan karta hai ki mujhe akhiraka ab tirichh ka sapna kyon nahin ata?
is ghatna ka sambandh pitaji se hai mere sapne se hai aur shahr se bhi hai shahr ke prati jo ek janm jat bhay hota hai, usse bhi hai
pitaji tab pachpan sal ke hue the dubla sharir baal bilkul makke ke bhue jaise safed sir par jaise rui rakhi ho we sochte ziyada the bolte bahut kam jab bolte to hamein rahat milti, jaise der se ruki hui sans nikal rahi ho sath sath hamein Dar bhi lagta hum bachchon ke liye we ek bahut baDa rahasy the hamein pata tha ki sansar ke sare gyan ki tijori unke pas hai hum jante the ki sansar ki sari bhashayen we bol sakte hain duniya unko janti hai aur hamari tarah hi unse Darti hui unka samman karti hai
hamein unki santan hone ka garw tha
kabhi kabhi, waise aisa salon mein ekadh bar hi hota, we sham ko hamein apne sath tahlane kahin bahar le jate chalne se pahle we munh mein tambaku bhar lete tambaku ke karan we kuch bol nahin pate the we chup rahte ye chuppi hamein bahut gambhir, gaurawshali, ashcharyajnak aur bhari bharkam lagti chhoti bahan kabhi unse raste mein kuch puchhna chahti to fauran main uska jawab dene ki koshish karta, jisse pitaji ko na bolna paDe
waise ye kaam kafi mushkil aur jokhim bhara hota kyonki main janta tha ki agar mera jawab ghalat hua to pitaji ko bolna paD jayega bolne mein unhen pareshani hoti thi ek to unhen tambaku ki peek nikalni paDti thi, phir jis duniya mein we rahte the, wahan se nikalkar yahan tak aane mein unhen ek kathin duri tay karni paDti thi waise bahan ke sawalon mein koi khas baat hoti nahin thi jaise wo yahi poochh leti ki samne chhiule ki sukhi tahni par baithi us chiDiya ko kya kahte hain? chunki sari chiDiyon ko janta tha isliye bata sakta tha ki wo nilkanth hai aur dashahre ke din se zarur dekhana chahiye meri puri koshish rahti ki pitaji ko aram rahe aur we sochte rahen
meri aur man ki, donon ki puri koshish rahti ki pitaji apni duniya mein sukh chain se rahen wahan se unhen jabran bahar na nikala jaye wo duniya hamare liye bahut rahasyapurn thi, lekin hamare ghar ki aur hamare jiwan ki bahut si samasyaon ka ant pitaji wahin rahte hue karte the jaise jab meri fees ki baat i, us samay hamare pas ka akhiri gilas bhi gum gaya tha aur sab log lote mein pani pite the pitaji do din tak bilkul chup rahe man ko bhi shak hua tha ki pitaji fees ki baat bilkul bhool gaye hain ya phir iska hal unke wash ki baat nahin hai lekin tisre din, subah subah, pitaji ne mujhe ek patr lifafe mein rakhkar diya aur shahr ke doctor pant ke pas bheja mujhe bahut ashchary hua jab doctor ne mujhe sharbat pilai, ghar ke bhitar le jakar apne bete se parichai karaya aur sau sau ke teen not mujhe diye
hum pitaji par garw karte the, pyar karte the, unse Darte the aur unke hone ka ahsas aisa tha jaise hum kisi qile mein rah rahe hon aisa qila, jiske charon or gahri nahren khudi hui hon, burje bahut unchi hon, diwaren sakht lal chattanon ki bani hui hon aur har bahari hamle ke samne hamara kila abhedy ho
pitaji ek khoob mazbut qila the unke parkote par hum sab kuch bhulkar khelte the, dauDte the aur, raat mein khoob gahri neend mujhe aati thi
lekin us din sham ko, jab pitaji bahar se tahalkar aaye to unke takhne mein patti bandhi thi thoDi der mein ganw ke kai log wahan aa gaye pata chala ki pitaji ko jangal mein tirichh (wishkhapar, ek zahrila lijarD) ne kat liya hai
hum sab jante the ki tirichh ke katne par adami bach hi nahin sakta raat mein, lalten ki dhundhli mataili raushani mein ganw ke bahut se log hamare angan mein jama ho gaye the pitaji unke beech the, zamin par baithe hue phir pas ke ganw ka chutua nai bhi aaya wo aranD ke patte aur kanDe ki rakh se zahr utarta tha
tirichh ek bar mainne dekha tha
talab ke kinare jo baDi baDi chattanon ke Dher the, aur jo dopahar mein khoob garm ho jate the, unmen se kisi chattan ki darar se nikalkar wo pani pine talab ki or ja raha tha
mere sath thanu tha usne batlaya ki wo tirichh hai, kale nag se sau guna ziyada usmen zahr hota hai usi ne bataya ki sanp to tab katta hai, jab uske upar pair paD jaye ya koi jab zabardasti use tang kare lekin tirichh to nazar milte hi dauDta hai pichhe paD jata hai usse bachne ke liye kabhi sidhe nahin bhagna chahiye teDha meDha, chakkar katte hue, gol mol dauDna chahiye
darasal jab adami bhagta hai to zamin par wo sirf apne pairon ke nishan hi nahin chhoDta, balki har nishan ke sath, wahan ki dhool mein, apni gandh bhi chhoD jata hai tirichh isi gandh ke sahare dauDta hai thanu ne batlaya ki tirichh ko chakma dene ke liye adami ko ye karna chahiye ki pahle to wo bilkul pas pas qadam rakhkar, jaldi jaldi kuch door dauDe phir chaar panch bar khoob lambi lambi chhalang de tirichh sunghta hua dauDta ayega, jahan pas pas pair ke nishan honge, wahan uski raftar khoob tez ho jayegi aur jahan se adami ne chhalang mari hogi, wahan aakar wo uljhan mein paD jayega wo idhar udhar tab tak bhatakta rahega jab tak use agle pair ka nishan aur usmen basi gandh nahin mil jati
hamein tirichh ke bare mein do baten aur pata theen ek to ye ki jaise hi wo adami ko katta hai, waise hi wo wahan se bhagkar kisi jagah peshab karta hai aur us peshab mein lot jata hai agar tirichh ne aisa kar liya to adami bach nahin sakta agar use bachna hai to tirichh ke peshab mein lotne ke pahle hi, khu kisi nadi, kuen ya talab mein Dupki laga leni chahiye ya phir tirichh ke aisa karne ke pahle hi use mar dena chahiye
dusri baat ye ki tirichh katne ke liye tabhi dauDta hai, jab usse nazar takra jaye agar tirichh ko dekho to usse kabhi ankh mat milao ankh milte hi wo adami ki gandh pahchan leta hai aur phir pichhe lag jata hai phir to adami chahe puri prithwi ka chakkar laga le, tirichh pichhe pichhe aata hai
main bhi tamam bachchon ki tarah us samay tirichh se bahut Darta tha mere duaswapn ke sabse khatarnak patr do hi the—ek hathi aur dusra tirichh hathi to phir bhi dauDta dauDta thak jata tha aur main peD par chaDhkar bach jata tha, ya phir uDne lagta tha, lekin tirichh uske samne to main kisi indrajal mein bandh jata tha main sapne mein kahin ja raha hota to achanak hi kisi jagah wo mil jata, uski jagah tay nahin hoti thi koi zaruri nahin tha ki wo chattanon ki darar mein, purani imaraton ke pichhwaDe ya kisi jhaDi ke pas dikhe—wah mujhe bazar mein, cinema haal mein, kisi dukan ya mere kamre mein hi dikh sakta tha
main sapne mein koshish karta ki usse nazar na milne pae, lekin wo itni parichit ankhon se mujhe dekhta ki main apne aapko rok nahin pata tha aur bus, ankh milte hi uski nazar badal jati thi—wah dauDta tha aur main bhagta tha
main gol gol chakkar lagata, jaldi jaldi pas pas Dag bharkar achanak khoob lambi lambi chhalangen lagane lagta, uDne ki koshish karta, kisi unchi jagah par chaDh jata, lekin meri hazar koshishon ke bawjud wo chakma nahin khata tha wo mujhe bahut ghagh, samajhdar, chatur aur khatarnak lagta mujhe lagta ki wo mujhe khoob achchhi tarah se janta hai uski ankhon mein mere liye parichai ki jo chamak thi, usse mujhe lagta ki wo mera aisa shatru hai jise mere dimagh mein aane wale har wichar ke bare mein pata hai
mera sabse khaufnak, yatnadayak, bhayakrant aur bechaini se bhara yahi sapna tha bhagte bhagte mera pura sharir thak jata, phephDe phool jate, main pasine mein lath path hokar bedam hone lagta aur ek bahut hi Darawni, sunn kar Dalnewali mirtyu mere bilkul qarib aane lagti main zoron se chikhta, rone lagta pitaji ko, thanu ko ya man ko pukarta aur phir main jaan jata ki ye sapna hai lekin ye pata chal jane ke bawjud main achchhi tarah se janta ki tab bhi main apni is mirtyu se nahin bach sakta mirtyu nahin—tirichh dwara apni hattya se aur aise mein main sapne mein hi koshish karta ki kisi tarah main jag jaun main puri taqat lagata, sapne ke bhitar ankhen kholkar phaDta, raushani ko dekhne ki koshish karta aur zor se kuch bolta kai bar bilkul ain mauqe par main jagne mein saphal bhi ho jata
man batlati ki mujhe sapne mein bolne aur chikhne ki aadat hai kai bar unhonne mujhe neend mein rote hue bhi dekha tha aise mein unhen mujhe jaga Dalna chahiye, lekin we mere mathe ko sahla kar mujhe razai se Dhak deti theen aur main usi khaufnak duniya mein akela chhoD diya jata tha apni mirtyu balki apni hattya se bachne ki kamzor koshish mein bhagta, dauDta chikhta
waise, dhire dhire mainne anubhwon se ye jaan liya tha ki awaz hi aise mauqe par mera sabse baDa astra hai, jisse main tirichh se bach sakta tha lekin durbhagy se, har bar, is astra ki yaad mujhe bilkul antim samay par aati thi tab, jab wo mujhe bilkul pa lenewala hota apni hattya ki sansen mujhe chhune lagtin, maut ke nashe se bhare ek nirjiw lekin Darawne andhere mein main ghir jata, lagta mere niche koi thos adhar nahin hai−main hawa mein hoon aur wo pal aa jata, jab mere jiwan ka ant hone wala hota tabhi, bilkul isi ek bahut hi chhote aur nazuk pal mein mujhe apne is astra ki yaad aati aur main zor zor se bolne lagta aur is awaz ke sahare main sapne se bahar nikal aata main jag jata
kai bar man mujhse puchhtin bhi ki mujhe kya ho gaya tha tab mere pas itni bhasha nahin thi ki main unhen sab kuch, ek ek cheez usi tarah bata pata apni is asmarthata ke bare mein mujhe khoob pata tha aur isi wajah se main ek ajib se tanaw, bechaini aur ashayta se bhar jata ant mein harkar itna hi kah pata ki bahut Darawna sapna tha
jane kyon mujhe shak tha ki pitaji ko usi tirichh ne kata tha, jise main pahchanta tha aur jo mere sapne mein aata tha
lekin ek achchhi baat ye hui thi ki jaise hi wo tirichh pitaji ko katkar bhaga, pitaji ne uska pichha karke use mar Dala tha tay tha ki agar we fauran use nahin mar pate to wo peshab karke usmen zarur lot jata phir pitaji kisi haal mein na bachte yahi wajah thi ki pitaji ko lekar mujhe utni chinta nahin rah gai thi balki ek tarah ki rahat aur mukti ki khushi mere bhitar dhire dhire paida ho rahi thi karan, ek to yahi ki pitaji ne tirichh ko turant mar Dala tha aur dusra ye ki mera sabse khatarnak, purana parichit shatru akhiraka mar chuka tha uska wadh ho gaya tha aur ab main apne sapne ke bhitar, kahin bhi, bina kisi Dar ke, siti bajata ghoom sakta tha
us raat der tak hamare angan mein bheeD rahi i pitaji ki jhaD phoonk chalti rahi kate ke zakhm ko cheer kar khoon bhi bahar nikala gaya aur kuen mein Dalnewali lal dawa (poteshiyam parmaingnet) zakhm mein bhara gaya main nishchint tha
agli subah pitaji ko shahr jana tha adalat mein peshi thi unke nam samman aaya tha hamare ganw se lagbhag do kilomitar door se nikalnewali saDak se shahr ke liye basen guzarti theen unki sankhya din bhar mein mushkil se do ya teen thi ghanimat thi ki pitaji jaise hi saDak tak pahunche, shahr janewala pas ke ganw ka ek tracktor unhen mil gaya tracktor mein baithe hue log pahchan ke the tracktor do Dhai ghante mein shahr pahunch janewala tha yani adalat khulne se kafi pahle
raste mein tirichh wali baat chali pitaji ne apna takhna un logon ko dikhlaya tracktor mein panDit ram autar bhi the unhonne batlaya ki tirichh ke zahr ki ek khasiyat ye bhi hai ki kabhi kabhi ye chaubis ghante baad, theek usi waqt, jis waqt pichhle din tirichh katta hai, apna asar dikhata hai isliye abhi pitaji ko nishchint nahin hona chahiye tracktor ke logon ne pitaji ka dhyan ek aur baDi ghalati ki or khincha unka kahna tha ki ye to pitaji ne bahut theek kiya ki tirichh ko fauran mar Dala, lekin iske baad bhi tirichh ko yunhi nahin chhoD dena chahiye tha use kam se kam jala zarur dena chahiye tha
un logon ka kahna tha ki bahut se kiDe makoDe aur jeew jantu raat mein chandarma ki raushani mein dubara ji uthte hain chandni mein jo os aur sheet hoti hai usmen amrit hota hai aur kai bar aisa dekha gaya hai ki jis sanp ko mara hua samajhkar raat mein yoon hi phenk diya jata hai, uska sharir chand ki sheet mein bheeg kar dubara ji uthta hai aur wo bhag jata hai phir wo hamesha badla lene ki tak mein rahta hai
tracktor ke logon ko shak tha ki kahin aisa na ho ki raat mein ji uthne ke baad tirichh peshab karke usmen lot jaye aisa hua to chaubis ghante bitte bitte, theek usi ghaDi ke aane par, tirichh ka janalewa zahr pitaji par chaDhna shuru ho jayega un logon ne salah bhi di ki pitaji ko wahin se wapas laut jana chahiye aur agar sanyog se, us tirichh ki lash usi jagah paDi hui ho, to use achchhi tarah jalakar rakh kar dena chahiye lekin pitaji ne unhen bataya ki peshi kitni zaruri thi ye tisra samman thi aur agar is bar bhi we adalat mein hazir na hue to ghair zamanati warant nikalne ka Dar tha peshi bhi hamare usi makan ko lekar thi, jismen hamara pariwar rah raha tha wakil ko pichhle do bar ki peshi mein fees bhi nahin di ja saki thi aur kahin agar usne laparwahi dikhla di aur jaj sanak gaya to wo hamari kuDki Dikri bhi karwa sakta tha
wichitr sthiti thi ki agar pitaji us tirichh ki lash ko jalane ke liye tracktor se utarkar, wahin se, ganw laut aate to ghairazmanti warant ke tahat we giraftar kar liye jate aur hamara ghar hamse chhin jata adalat hamare khilaf ho jati
lekin panDit ram autar ek waidy bhi the jyotish panchang ke alawa unhen jaDi butiyon ki bhi baDi gahri jankari thi unhonne sujhaya ki ek tariqa aisa hai, jisse pitaji peshi mein hazir bhi ho sakte hain aur tirichh ke zahr se chaubis ghante ke baad bach bhi sakte hain unhonne bataya ki charak ka nichoD is sootr mein hai ki wish hi wish ki aushadhi hota hai agar dhature ke beej kahin mil jayen to wo tirichh ke zahr ki kat taiyar kar sakte hain
agle ganw samatpur mein tracktor rok diya gaya aur ek teli ke khet mein dhature ke paudhe akhiraka khoj nikale gaye dhature ke bijon ko piskar use tanbe ke purane sikke ke sath ubalkar kaDha taiyar kiya gaya kaDha bahut kaDwa tha isliye use chay mein milaya gaya aur pitaji ko wo chay pila di gai iske baad sabhi nishchint ho gaye ek bahut baDe khatre se pitaji ko nikalne ki koshish ho rahi thi
waise mujhe tirichh ke bare mein tisri baat bhi pata thi, jo pitaji ke jane ke kai ghante baad achanak yaad aa gai thi ye baat sanp ki us baat se milti julti thi, jiske phalaswarup aage chalkar camere ka awishkar hua tha
mana ye jata tha ki agar koi adami sanp ko mar raha ho to apne marne se pahle wo sanp, antim bar, apne hatyare ke chehre ko puri tarah se, bahut ghaur se dekhta hai adami uski hattya kar raha hota hai aur sanp takatki bandhakar us adami ke chehre ki ek ek bariki ko apni ankh ke bhitari parde mein darj kar raha hota hai sanp ki mirtyu ke baad sanp ki ankh ke bhitari parde par us adami ka chitr aspasht darj ho jata hai
baad mein, adami ke jane ke baad, us sanp ka dusra joDa jakar us mare hue sanp ki ankh ke bhitar jhankta hai aur is tarah wo hatyara pahchan liya jata hai sare sanp use pahchanne lagte hain phir wo kahin bhi chala jaye, usse badla lene ki firaq mein we rahte hain har sanp uska shatru hota hai
mujhe shak tha ki mare hue tirichh ki ankh ke bhitari parde par pitaji ka chehra darj hoga koi dusra tirichh aakar us lash ki ankh mein se jhankega aur pitaji wahan pahchan liye jayenge mere bhitar is baat ko lekar bechaini paida hui ki pitaji ne ye satarkata kyon nahin barti? unhen tirichh ko marne ke sath hi kisi patthar se uski donon ankhon ko kuchalkar phoD dena chahiye tha lekin ab kya ho sakta tha? pitaji shahr ja chuke the aur mere samne uljhan aur chunauti thi ki ganw ke pas phaile itne baDe jangal mein jis jagah tirichh ko markar unhonne chhoDa tha, wo jagah main khoj nikalun
main thanu ke sath botal mein mitti ka tel, diyasalai aur DanDa lekar jangal mein tirichh ki khoj mein bhatakta raha main use achchhi tarah se pahchanta tha bahut achchhi tarah thanu nirash tha
phir, mujhe achanak hi lagne laga ki is jangal ko main achchhi tarah se janta hoon ek ek peD mera parichit nikalne laga isi jagah se kai bar sapne mein main tirichh se bachne ke liye bhaga tha mainne ghaur se har taraf dekha—bilkul yahi wo jagah thi mainne thanu ko bataya ki ek sankra sa nala is jagah se kitni door dakshain ki taraf bahta hai nale ke upar jahan baDi baDi chattanen hain, wahan kikar ka ek bahut purana peD hai, jis par baDe baDe shahd ke chhatte hain unhen dekhkar lagta hai ki we kai shatabdiyon purane hain main us bhure rang ki chattan ko janta tha, jo barsat bhar nale ke pani mein aadhi Dubi rahti thi aur barish ke bitne ke baad jab bahar nikalti thi to uski khohon mein kichaD bhar jati thi aur ajib ajib wanaspatiyan wahan se ug aati theen chattan ke upar hari kai ki ek part si jam jati thi isi chattan ki sabse uparwali darar mein tirichh rahta tha thanu is baat ko meri kalpana man raha tha
lekin bahut jald hamein wo nala mil gaya kikar ka wo buDha peD bhi, jis par shahd ke chhatte the, aur wo chattan bhi tirichh ki lash chattan se zara hatkar, zamin par, ghas ke upar chitt paDi hui thi bilkul ye wahi tirichh tha mere bhitar hinsa aur uttejna aur khushi ki ek sansani dauD rahi thi
thanu ne aur mainne sukhe patte aur lakDiyan ikatthi ki, khoob sara mitti ka tel usmen Dala aur aag laga di tirichh usmen jal raha tha uske jalne ki chirayandh gandh hawa mein phail rahi thi mera man zor se chillane ko hua lekin main Dara ki kahin main jag na jaun aur ye sab kuch sapna na sabit ho jaye mainne thanu ki or dekha wo ro raha tha wo mera bahut achchha dost tha
mere sapne mein isi jagah se nikalkar us tirichh ne kai bar mera pichha karna shuru kiya tha ashchary tha ki itne lambe arse se uske aDDe ko itni achchhi tarah se janne ke bawjud kabhi din mein aakar mainne use marne ki koi koshish nahin ki thi
main aaj betahasha khush tha
panDit ram autar ne batlaya tha ki tracktor ne paune das baje ke lagbhag shahr ka chunginaka par kiya tha wahan unhen nake ka tol tax chukane ke liye kuch der rukna bhi paDa tha wahan par pitaji tracktor se utarkar peshab karne gaye the lautne par unhonne bataya tha ki unka sir kuch ghoom sa raha hai, tab tak pitaji ko dhature ka kaDha piye hue taqriban DeDh ghanta ho chuka tha tracktor ne pitaji ko shahr mein das bajkar panch sat minat ke asapas chhoD diya tha tracktor mein hi baithe palDa ganw ke master nandlal ka kahna tha ki jab shahr mein, minarwa takij ke paswale chaurahe par pitaji ko tracktor se utara gaya, tab unhonne shikayat ki thi ki unka gala kuch sookh sa raha hai we thoDa pareshan bhi the kyonki adalat jane ka rasta unhen malum nahin tha aur shahr ke logon se poochh puchhkar kahin jane mein unhen bahut taklif hoti thi
pitaji ke sath ek diqqat ye bhi thi ki ganw ya jangal ki pagDanDiyan to unhen yaad rahti theen, shahr ki saDkon ko we bhool jate the shahr we bahut kam jate the jana hi paDe to antim samay tak we talte rahte the, tab tak, jab tak jana bilkul hi zaruri na ho jaye kai bar to aisa bhi hua ki pitaji sara saman lekar shahr ke liye rawana hue aur bus aDDe se laut aaye bahana ye ki bus chhoot gai jab ki hum sab jante the ki aisa nahin hua hoga pitaji ne bus ko dekha hoga, phir we kahin baith gaye honge—peshab karne ya pan khane phir unhonne dakha hoga ki bus chhoot rahi hai unhonne zara sa aur intizar kiya hoga jab bus ne raftar pakaD li hogi—tab we kuch door tak dauDe honge phir unke qadam dhime paD gaye honge aur afsos aur ghussa prakat karte we laut aaye honge aisa karte hue unhen swayan bhi laga hoga ki bus sachmuch chhoot gai hai aise mein, jabki hum man chuke hote ki we shahr ja chuke hain, wo lautkar hamein chakit kar dete
tracktor se minarwa takij ke pas wale chaurahe par, sindh wach company ke theek samne lagbhag das baj kar sat minat par utarne ke baad se lekar sham chhah baje tak pitaji ke sath shahr mein jo kuch bhi hua, uska sirf ek dhundhla sa anuman hi lagaya ja sakta hai ye jankari bhi kuch logon se batachit aur puchhatachh ke baad mili hai kisi ki bhi mirtyu ke baad, agar wo mirtyu bahut akasmik aur aswabhawik Dhang se hui ho, aisi jankariyan mil hi jati hai us din, budhwar 17 mai, 1972 ko subah das das se lekar sham chhah baje tak, lagbhag paune aath ghante mein pitaji kahan kahan gaye, kahan kahan unke sath kya kya hua, iska bahut sahi aur wistrit byaura to milna mushkil hai jo suchnayen ya jankariyan baad mein mili, unke zariye un ghatnaon ka sirf anuman hi lagaya ja sakta hai
jaisa ki palDa ganw ke master nandlal ka kahna tha ki jab pitaji tracktor se utre, tabhi unhonne gala sukhne ki shikayat ki thi iske pahle chunginaka ke pas, jab peshab karke pitaji laute the to unhonne sir ghumne ki baat ki thi yani pitaji par dhature ke bijon ke kaDhe ka asar hona shuru ho gaya tha waise bhi shahr pahunchne tak pitaji ko kaDha piye hue lagbhag do ghante ho chuke the mera anuman hai ki us samay pitaji ko pyas bahut lagi hogi gala bhigane ke liye we kisi hotel ya Dhabe ki taraf gaye bhi honge, lekin jaisa ki mujhe unke swbhaw ke bare mein pata hai, we wahan kuch der khaDe rahe honge, aur phir ek gilas pani mangne ka phaisla na kar sake honge ek bar unhonne bataya bhi tha ki kuch sal pahle garmiyon ke dinon mein jab unhonne kisi hotel mein pani manga tha, to wahan kaam karnewale naukar ne unhen gali di thi pitaji bahut sanwedanshil the, isliye unhonne apni pyas ko dabaya hoga aur we wahan se chal paDe honge
sawa das se lekar lagbhag gyarah baje ke beech, paintalis minat tak pitaji kahan kahan gaye, iski koi jankari kahin se nahin milti is beech aisi koi khas ghatna bhi nahin hui, jisse koi kuch kah sake phir shahr mein saDak par aate jate logon mein se kisi ne un par dhyan diya ho, unhen dekha ho, iska pata lagana bhi mushkil hai waise mera apna andaza hai ki is beech pitaji ne kuch logon se adalat jane ka rasta puchha hoga aur unke dimagh mein ye baat bhi rahi hogi ki wahan pahunchakar we apne wakil s en agarwal se pani mang lenge lekin unke puchhne par ya to log chup rah kar tezi se aage baDh gaye honge ya kisi ne itni baukhalahat aur jaldabaज़i mein unhen kuch bataya hoga, jo pitaji theek se samajh nahin sake honge aur sirf apmanit, duःkhi aur pareshan hokar rah gaye honge shahr mein aisa hota hi hai
waise beech ke paun ghante ke bare mein mera apna anuman hai ki is beech pitaji par kaDhe ka asar kaphi baDh gaya hoga mai ki dhoop aur pyas ne is asar ko aur bhi tej, aur bhi gahra kar diya hoga unke pair laDkhaDane bhi lage honge aur bahut sambhaw hai ki ekadh bar, is beech, unhen chakkar bhi aa gaye hon
pitaji gyarah baje, shahr mein, deshabandhu marg par sthit state bank auph india ki imarat mein ghuse the we wahan kyon gaye, iski wajah theek theek samajh mein nahin aati waise hamare ganw ka ramesh datt shahr mein bhumi wikas sahkari bank mein clerk hai ho sakta hai pitaji ke dimag mein sirph bank raha ho aur yahan se gujarte hue achanak unhonne state bank likha hua dekha ho aur we udhar ghoom gaye hon unhonne ab tak pani nahin piya tha isliye unhonne socha hoga ki we ramesh datt se pani bhi mang lenge, adalat jane ka rasta bhi poochh lenge aur bata sakenge ki unka sir ghoom sa raha hai, ye bhi ki kal sham unhen tirichh ne kata tha state bank ke cashier agnihotri ke anusar wo us samay cash registry check kar raha tha uski mej par lagbhag atthais hajar rupyon ki gaDDiyan rakhi hui theen us wakt gyarah se do teen minat upar hue honge, tabhi pitaji wahan aaye unke chehre par dhool lagi hui thi, chehra Darawna tha aur achanak hi unhonne jor se kuch kaha tha agnihotri ka kahna tha ki main achanak Dar gaya amuman aise log bank ke itne bhitar, cashier ki tebil tak nahin pahunch pate agnihotri ka kahna ye bhi tha ki agar wo pitaji ko ekadh minat pahle se apni or aata hua dekh leta, tab shayad na Darta lekin hua ye ki wo puri tarah se cash register ke hisab kitab mein Duba hua tha, tabhi achanak hi pitaji ne awaj nikali aur sir uthate hi unhen dekhkar wo Dar gaya aur cheekh paDa usne ghanti bhi baja di
bank ke chaprasiyon, do chaukidaron aur dusre karmchariyon ke anusar achanak hi cashier ki cheekh aur ghanti ki awaj se we sab log chaunk gaye aur us taraph dauDe, tab tak nepali chaukidar thapa ne pitaji ko daboch liya tha aur marta hua common roop ki taraph le ja raha tha ek chaprasi ramakishor, jiski umr paintalis ke aas pas thi, ne kaha ki usne samjha ki koi sharabi daphtar mein ghus aaya hai, ya pagal aur chunki uski Dayuti bank ke mukhy darwaje par thi isliye branch manager use charjshit kar sakta tha lekin hua ye ki jab pitaji ko mara ja raha tha, tabhi unhonne angreji mein kuch bolna shuru kar diya isi wajah se chaprasiyon ka shak baDh gaya isi beech shayad asistent branch manager mehta ne ye kah diya ki is adami ki achchhi tarah se talashi le lena tabhi bahar nikalne dena waise chaprasi ramakishor ka kahna tha ki pitaji ka chehra ajib tarah se Darawna ho gaya tha us par dhool jama ho gai thi aur ulti ki bas aa rahi thi bank ke chaprasiyon ne pitaji ko ziyada marne pitne ki baat se inkar kiya, lekin bank ke bahar, theek darwaze ke pas jo pan ki dukan hai, usmen baithnewale bunnu ka kahna tha ki jab saDhe gyarah baje ke aas pas pitaji bank se bahar aaye to unke kapDe phate hue the aur nichla honth kat gaya tha, jahan se khoon nikal raha tha ankhon ke niche sujan aur katthai chakatte the aise chakatte baad mein baingani ya nile paD jate hain
iske baad, yani saDhe gyarah baje se lekar ek baje ke beech pitaji kahan kahan gaye, iske bare mein koi jankari nahin milti han state bank ke bahar pan ki dukan laganewale bunnu ne ek baat batai thi halanki is bare mein wo puri tarah aspasht nahin tha, ya ho sakta hai ki state bank ke karmchariyon se Dar ki wajah se wo saf saf batlane se katra raha ho bunnu ne batlaya tha ki state bank se bahar nikalne par shayad (wah shayad par bahut zor Dal raha tha) pitaji ne kaha tha ki unke rupae aur kaghzat bank ke chaprasiyon ne chheen liye hain lekin bunnu ka kahna tha ki ho sakta hai pitaji ne koi aur baat kahi ho, kyonki we theek se bol nahin pa rahe the, unka nichla honth kafi kat gaya tha, munh se lar bhi bah rahi thi aur unka dimagh sahi nahin tha
mera apna andaza hai ki is samay tak pitaji par kaDhe ka asar bahut ziyada ho chuka tha halanki panDit ram autar is baat se inkar karte hain unka kahna tha ki dhature ke beej to holi ke dinon mein bhang ke sath bhi ghote jate hain, lekin kabhi aisa nahin hota ki adami puri tarah se pagal ho jaye panDit ram autar ka manna hai ki ya to tirichh ka zahr us samay pitaji ke sharir mein chaDhna shuru ho gaya tha aur uska nasha unke dimagh tak pahunchne laga tha ya phir bahut sambhaw hai ki jab state bank mein pitaji ko thapa chaukidar aur chaprasiyon ne mara pita tha tab unke sir ke pichhe ki taraf koi chot lag gai ho aur us dhakke se unka dimagh sanak gaya ho lekin mujhe lagta hai ki us samay tak pitaji ko thoDa bahut hosh tha aur we puri koshish kar rahe the ki kisi tarah we shahr se bahar nikal jayen shayad rupae aur adalat ke kaghzat bank mein chhin jane ki wajah se unhonne socha ho ki ab yahan rahne ka koi matlab bhi nahin hai unhonne shayad ekadh bar socha bhi hoga ki wapas state bank jakar apne kaghzat to kam se kam mang layen phir aisa karne ki unki himmat nahin paDi hogi we Dar gaye honge unhen unke jiwan mein pahli bar is tarah se mara gaya tha, isliye we theek se soch pane mein saphal nahin ho pa rahe honge unka sharir bahut dubla tha aur bachpan se hi unhen epenDisaitis ki shikayat thi ye bhi ho sakta hai ki us waqt tak un par kaDhe ka asar itna ziyada ho gaya ho ki we ek cheez par der tak soch hi nahin pa rahe hon aur dimagh mein har pal paida honewala, chhote chhote bulbulon jaise wicharon ya nae nae jhatkon ke wash mein aakar idhar se udhar chal paDte rahe hon lekin main ye janta hoon, mujhe achchhi tarah se mahsus hota hai ki unke dimagh mein ghar laut aane aur shahr se bahar nikal jane ki baat ek sthai, bar bar kahin andhere se ubharnewali, bhale hi bahut kshain aur bahut dhundhli baat zarur rahi hogi
pitaji lagbhag sawa baje shahr ke police thana pahunche the thana shahr ke bahari chhor par circuit house ke pas bane wijay stambh ke pas hai ashchary ye hai ki thane se bamushkil ek kilomitar door adalat bhi hai agar pitaji chahte to yahan se paidal hi das minat mein adalat pahunch sakte the samajh mein ye nahin aata ki pitaji agar yahan tak pahunche the, kya tab tak unke dimagh mein adalat jane ki baat rah bhi gai thee? unke kaghzat to rah nahin gaye the
thane ke s ech o raghwendr pratap singh ne kaha ki us waqt ek bajkar pandrah minat hue the we ghar se laye gaye tiffin ko kholkar lunch lene ki taiyari kar rahe the aaj tiffin mein parathon ke sath karele rakhe hue the karele we kha nahin pate aur isi uljhan mein the ki ab kya karen tabhi pitaji wahan aaye the unke sharir par qamiz nahin thi, pant phati hui thi lagta tha ki we kahin gire honge ya kisi wahan ne unhen takkar mari hogi thane mein us waqt ek hi sipahi gajadhar parsad sharma maujud tha sipahi ka kahna tha ki usne socha ki shayad koi bhikhmanga thane mein ghus aaya hai usne awaz bhi di lekin pitaji tab tak s ech o raghwendr pratap singh ki tebil tak pahunch chuke the s ech o ne kaha ki karelon ki wajah se waise bhi unka mood off tha terah sal ke wiwahit jiwan ke bawjud patni ye nahin jaan pai thi ki unhen kaun si chizen bilkul napasand hain, itni napasand ki we un chizon se ghrina karte hain unhonne jaise hi niwala munh mein rakha, pitaji bilkul unke qarib pahunch gaye pitaji ke chehre aur kandhon ke niche ulti lagi hui thi aur uski bahut tez gandh uth rahi thi s ech o ne puchha ki kya baat hai to jawab mein pitaji ne jo kuch kaha use samajhna bahut mushkil tha s ech o raghwendr singh baad mein pachhta rahe the ki agar unhen malum hota ki ye adami bakeli gram ka pardhan aur bhutapurw adhyapak hai to we use thane mein hi kam se kam do chaar ghante bitha lete bahar na jane dete lekin us samay unhen laga ki ye koi pagal hai aur unhen khate hue dekhkar yahan tak ghus aaya hai isiliye unhonne sipahi gajadhar sharma ko ghusse mein awaz di sipahi pitaji ko ghasitta hua bahar le gaya gajadhar sharma ka kahna tha ki usne pitaji ke sath koi mar peet nahin ki aur usne dekha tha ki jab we thane aaye the tab unka nichla honth kata tha thuDDi par kahin ragDa khakar girne se kharonch ke nishan the aur kuhaniyan chhili hui theen we kahin na kahin gire zarur the
ye koi nahin janta ki thane se nikalkar lagbhag DeDh ghante pitaji kahan kahan bhatakte rahe subah das bajkar sat minat par, jab we shahr aaye the aur minarwa takij ke paswale chaurahe par tracktor se utre the, tab se lekar ab tak unhonne kahin pani piya tha ya nahin, ise janna mushkil hai iski sambhawana bhi kam hi banti hai ho sakta hai tab tak unka dimagh is qabil na rah gaya ho ki we pyas ko bhi yaad rakh saken lekin agar we police thane tak pahunche to unke mastishk mein, nashe ke bawjud, kahin bahut kamzor sa, andhere mein Duba ye khayal raha hoga ki we kisi tarah apne ganw jane ka rasta wahan poochh len, ya us tracktor ka pata puchhe ya phir apne rupae aur adalati kaghzat chhin jane ki report wahan likha den ye sochne ke qarib pahunchna hi buri tarah se bechain kar Dalne wala hai ki us samay pitaji sirf tirichh ke zahr aur dhature ke nashe ke khilaf hi nahin laD rahe the, balki hamare makan ko bachane ki chinta bhi kahin na kahin unke nashe ki neend mein se bar bar sir utha rahi thi shayad unhen ab tak ye lagne laga ho ki ye sab kuch jo ho raha hai, sirf ek sapna hai, pitaji isse jagne aur bahar nikalne ki koshish bhi karte rahe honge
sawa do baje ke aas pas pitaji ko shahr ke bilkul uttari chhor par basi sabse sanpann colony itwari colony mein ghisatte hue dekha gaya tha ye colony sarrafa ke jauhariyon, pi Dablyu d ke baDe thekedaron aur ritayarD afsaron ki colony thi kuch samrddh patrakar kawi bhi wahin rahte the ye colony hamesha shant aur ghatnahin rahti thi jin logon ne yahan pitaji ko dekha tha, unhonne bataya ki us waqt tak unke sharir mein sirf ek pattedar janghiya bacha tha, jiska naDa shayad toot gaya tha aur we use apne bayen hath se bar bar sanbhal rahe the jisne bhi unhen wahan dekha, usne yahi samjha ki koi pagal hai kuch ne kaha ki we beech beech mein khaDe hokar zor zor se galiyan bakne lagte the baad mein, usi colony mein rahnewale ek ritayarD tahsildar soni sahab aur shahr ke sabse baDe akhbar ke wishesh sanwadadata aur kawi satyendr thapaliyal ne bataya ki unhonne pitaji ke bolne ko theek se suna tha aur darasal we galiyan nahin bak rahe the balki bar bar kah rahe the —main ramaswarath parsad, x school head master enD wilej head auph gram bakeli ! kawi patrakar thapaliyal sahab ne duःkh zahir kiya darasal usi samay we americi dutawas ki kisi khas party mein sangit sunne dilli ja rahe the isliye jaldabaज़i mein we chale gaye han tahsildar soni sahab ka kahna tha ki mujhe us adami par bahut taras aaya aur mainne laDkon ko Danta bhi lekin do teen laDkon ne kaha ki ye adami ramartan sarraf ki biwi aur sali par hamla karne wala tha tahsildar ne kaha ki aisa sunne ke baad unhen bhi laga ki ho sakta hai ye koi badmash ho aur natk kar raha ho laDke unhen tang karne mein lage the or pitaji beech beech mein zor zor se bolte the, “main ramaswarath parsad x school headmaster
agar hisab lagaya jaye to minarwa takij ke pas wala chauraha, jahan pitaji tracktor se subah das bajkar sat minat par utre the, wahan se lekar deshabandhu marg ka state bank phir wijay stambh ke pas ka thana aur shahr ke bahari uttari chhor par basi itwari colony ko milakar we ab tak lagbhag tees battis kilomitar ki duri tak bhatak chuke the ye jaghen aisi hain jo ek hi disha mein nahin hai iska matlab ye hua ki pitaji ki dimaghi haalat ye thi ki unhen theek theek kuch soojh nahin raha tha aur we achanak hi, kisi bhi taraf chal paDte the jahan tak sarraf ki patni aur sali par unke hamla karne ki baat hai, jise thapaliyal sahab sach mante hain, mera apna anuman hai ki pitaji unke pas ya to pani mangne gaye honge ya bakeli janewali saDak ke bare mein puchhne us ek pal ke liye pitaji ko hosh zarur raha hoga lekin is huliye ke adami ko apne itna qarib dekhkar we aurten Darkar chikhne lagi hongi waise, pitaji ki dahini ankh ke upar bhaunh par jo chot lagi thi aur jiska khoon riskar unki ankh par aane laga tha, wo chot unko itwari colony mein hi lagi thi, kyonki baad mein logon ne bataya ki laDke unhen beech beech mein Dhele mar rahe the
wo jagah itwari colony se bahut door nahin hai, jis jagah pitaji ko sabse ziyada choten lagin neshnal restaurant nam ke ek saste se Dhabe ke samne ki khali jagah par pitaji ghir gaye the itwari colony se laDkon ka jo jhunD unke pichhe paD gaya tha, usmen kuch baDi umr ke laDke bhi shamil ho gaye the neshnal restaurant mein kaam karnewale naukar satte ka kahna tha ki pitaji ne ghalati ye ki thi ki ek bar unhonne ghusse mein aakar bheeD par Dhele marne shuru kar diye the shayad unhin ka ek baDa sa Dhela sat aath sal ke laDke wiki agarwal ko lag gaya tha, jise baad mein kai tanke lage the satte ka kahna tha ki iske baad jhunD ziyada khatarnak ho gaya tha we halla macha rahe the aur charon taraf se pitaji par patthar mar rahe the Dhabe ke malik sardar satnam singh ne bataya ki us waqt pitaji ke jism par sirf pattewali ek chaDDi thi, duble sharir ki haDDiyan aur chhati ke safed baal dikh rahe the pet pichka hua tha we dhool aur mitti mein lithDe hue the, sir ke safed baal bikhar gaye the, dahini ankh ke upar se aur nichle honth se khoon bah raha tha satnam singh ne duhakh aur pachhtawe ke sath kaha —“mere ko kya malum tha ki ye adami sidha sada, izzatdar, sakh rasukh ka insan hai aur nasib ke pher mein iski ye haalat ho gai hai ” waise Dhabe mein kap plate dhonewale naukar hari ka kahna tha ki beech beech mein pitaji bheeD ko anD banD galiyan de dekar Dhele marne lagte the —“ao sasuro aao ek ek ko mar Dalunga bhosDiwalo tumhari man ki ” lekin mujhe sandeh hai ki pitaji ne aisi koi gali di hogi hamne kabhi bhi unhen gali dete nahin suna tha
main pure wishwas ke sath kah sakta hoon, kyonki pitaji ko main bahut achchhi tarah se janta hoon ki, is samay tak, unhen kai bar laga hoga ki unke sath jo kuch ho raha hai, wo wastawikta nahin hai, ek sapna hai pitaji ko ye sari ghatnayen ul jalul, utaptang aur bematlab lagi hongi we is sab par awishwas karne lage honge unhonne socha hoga ki ye sab kya bakwas hai? we to ganw se shahr aaye hi nahin hain, unhen kisi tirichh ne nahin kata hai balki tirichh to hota hi nahin hai, ek managDhant aur andhwishwas hai aur dhature ka kaDha pine ki baat to hasyaspad hai, wo bhi ek teli ke khet mein uska paudha khojkar unhonne socha hoga aur paya hoga ki bhala un par koi muqadma kyon chalega? unhen adalat jane ki kya zarurat hai?
main janta hoon ki surang jaisa lamba, sammohak lekin Darawna sapna jaisa mujhe aata tha, pitaji ko bhi aata raha hoga meri aur unki bahut si baten bilkul milti julti theen mujhe lagta hai ki is samay tak pitaji puri tarah se man chuke honge ki ye jo kuch ho raha hai sab jhooth aur awastawik hai isiliye we bar bar us sapne se jagne ki koshish bhi karte rahe honge agar we beech beech mein zor zor se kuch bolne lagte the, ya shayad galiyan bakne lagte the, to isi kathin koshish mein ki we us awaz ke sahare us duaswapn se bahar nikal ayen neshnal restorant ke naukaron aur malik sardar satnam singh ne jaisa bataya tha uske anusar us jagah par pitaji ko bahut choten i theen unki kanpati, mathe, peeth aur sharir ke dusre hisson par kai inten aur Dhele aakar lag gaye the saDak ka theka lenewale thekedar aroDa ke bees bais sal ke laDke sanju ne unhen do teen bar lohe ki raD se bhi mara tha satte ka to kahna tha ki itni choton se koi bhi adami mar sakta tha
mujhe ye sochkar ek ajib si rahat milti hai aur meri phansati hui sansen phir se theek ho jati hain ki us samay pitaji ko koi dard mahsus nahin hota raha hoga, kyonki we achchhi tarah se, puri tarkikta aur gahrai ke sath wishwas karne lag gaye honge ki ye sab sapna hai aur jaise hi we jagenge, sab theek ho jayega ankh khulte hi angan buharti man nazar aa jayegi ya niche farsh par sote hue main aur chhoti bahan dikh jayenge ya gauraiyon ka jhunD ho sakta hai ki unhen beech beech mein apne is ajib o gharib sapne par hansi bhi i ho
agar pitaji ne ghusse mein laDkon ki taraf khu bhi Dhele marne shuru kar diye to iske pichhe pahli wajah to yahi thi ki unhen ye bahut achchhi tarah se pata tha ki ye Dhele sapne ke bhitar ja rahe hain aur isse kisi ko koi chot nahin ayegi ye bhi ho sakta hai ki puri taqat se Dhela mar kar we utsukta aur bechaini se ye intizar karte rahe hon ki jaise hi wo jakar kisi laDke ke sir se takrayega, uska matha nasht hoga aur ek hi jhatke mein is duaswapn ke tukDe tukDe bikhar jayenge aur charon or se wastawik sansar ki betahasha raushani andar aane lagegi unka zor zor se chikhna bhi darasal ghusse ke karan nahin tha, we asal mein mujhe, chhoti bahan ko, man ko ya kisi ko bhi pukar rahe the ki agar we apne aap is sapne se jag pane mein saphal na bhi ho payen, tab bhi koi bhi aakar unhen jaga de
ek sabse baDi wiDambna bhi isi beech hui hamare ganw ki gram panchayat ke sarpanch aur pitaji ke bachpan ke purane dost panDit kandhi ram tiwari lagbhag saDhe teen baje nashenal restorant ke samne, saDak se guzre the we rikshe par the unhen agle chaurahe se bus lekar ganw lautna tha unhonne us Dhabe ke samne ikatthi bheeD ko bhi dekha aur unhen ye pata bhi chal gaya ki wahan par kisi adami ko mara ja raha hai unki ye ichha bhi hui ki wahan jakar dekhen ki akhir mamla kya hai unhonne rickshaw rukwa bhi liya lekin unke puchhne par kisi ne kaha ki koi pakistani jasus pakDa gaya hai jo pani ki tanki mein zahr Dalne ja raha tha, use hi log mar rahe hain theek isi samay panDit kandhi ram ko ganw janewale bus aati hui dikhi aur unhonne rikshewale se agle chaurahe tak jaldi jaldi rickshaw baDhane ke liye kaha ganw janewali ye akhiri bus thi agar us bus ke aane mein teen chaar minat ki bhi deri ho jati to we nishchit hi wahan jakar pitaji ko dekhte aur unhen pahchan lete rajy pariwhan ki wo bus hamesha aadha paun ghanta let raha karti thi, lekin us din, sanyog se, wo bilkul sahi samay par aa rahi thi
satnam singh ka kahna tha ki wo bheeD neshnal restaurant ke samne se tab hati aur log titar bitar hue jab baDi der tak pitaji zamin se uthe hi nahin int ka ek baDa sa Dhela unki kanpati par aakar laga tha unke munh se khoon aana shuru ho gaya tha sir mein bhi choten theen satnam ne bataya ki jab pitaji bahut der tak nahin hile Dule to laDkon ke jhunD mein se kisi ne kaha ki lagta hai ye mar gaya jab bheeD chhantne ke das pandrah minat baad bhi pitaji nahin hile Dule to satnam singh ne satte se kaha tha ki wo unke munh mein pani ke chhinte mar kar dekhe ki we sirf behosh hain to ho sakta hai ki uth jayen lekin satte police ki wajah se Dar raha tha baad mein satnam singh ne khu hi ek balti pani unke upar Dala tha door se pani Dalne ke karan zamin ki mitti gili hokar pitaji ke sharir se lithaD gai thi
sardar satnam singh aur satte donon ka kahna tha ki lagbhag panch baje tak pitaji usi jagah paDe hue the tab tak police nahin i thi phir satnam singh ne socha ki kahin use panchnama aur gawahi waghaira mein na phansna paD jaye isliye usne Dhaba band kir diya tha aur Dilait takij mein aan milo sajna philm dekhne chala gaya tha
us samay lagbhag chhah baje the jab siwil lains ki saDak ki ptriyon par ek qatar mein bani mochiyon ki dukanon mein se ek mochi ganeshwa ki gumti mein pitaji ne apna sir ghuseDa us samay tak unke sharir par chaDDi bhi nahin rah gai thi, we ghutnon ke bal kisi chaupaye ki tarah reng rahe the sharir par kalikh aur kichaD lagi hui thi aur jagah jagah choten theen
ganeshwa hamare ganw ke talab ke parwale tole ka mochi hai usne bataya ki main bahut Dar gaya aur master sahab ko pahchan hi nahin paya unka chehra Darawna ho gaya tha aur chinhai mein nahin aata tha main Dar kar gumti se bahar nikal aaya aur shor machane laga dusre mochiyon ke alawa wahan kuch aur log bhi ikattha ho gaye the logon ne jab ganeshwa ki gumti ke bhitar jakar jhanka to gumti ke andar, uske sabse antre kone mein, tute phute juton, chamDon ke tukDon, rabar aur chithDon ke beech pitaji dubke hue the unki sansen thoDi bahut chal rahi theen unhen wahan se kheench kar, bahar, patri par nikala gaya tabhi ganeshwa ne unhen pahchan liya ganeshwa ka kahna tha ki usne pitaji ke kan mein kuch awazen bhi lagain lekin we kuch bol nahin pa rahe the bahut der baad unhonne ram swarath parsad aur bakeli jaisa kuch kaha tha phir chup ho gaye the
pitaji ki mirtyu sawa chhah baje ke asapas hui thi tarikh thi 17 mai, 1972, chaubis ghante pahle lagbhag isi waqt unhen jangal mein tirichh ne kata tha chaubis ghante pahle kya pitaji in ghatnaon aur is mirtyu ka anuman kar sakte the?
pitaji ka shau shahr ke murdaghar mein police ne rakhwa diya tha postmortem mein pata chala tha ki unki haDDiyon mein kai jagah phraikchar tha, dain ankh puri tarah phoot chuki thi, collar bon tuta hua tha unki mirtyu manasik sadme aur adhik raktasraw ke karan hui thi report ke anusar unka amashay khali tha, pet mein kuch nahin tha iska matlab yahi hua ki dhature ke bijon ka kaDha ultiyon dwara pahle hi nikal chuka tha
halanki thanu kahta hai ki ab to ye tay ho gaya ki tirichh ke zahr se koi nahin bach sakta theek chaubis ghante baad usne apna karishma dikhaya aur pitaji ki mirtyu hui panDit ram autar bhi yahi kahte hain ho sakta hai ki panDit ram autar isliye aisa kahte hon ki we khu ko wishwas dilana chahte hon ki dhature ke kaDhe ka pitaji ki mirtyu se koi sambandh nahin tha
main sochta hoon, andaza lagane ki koshish karta hoon ki shayad ant mein, jab ganeshwa ne apni gumti ke bahar, pitaji ke kan mein awaz di hogi to pitaji sapne se jag gaye honge unhonne mujhe, man ko aur chhoti bahan ko dekha hoga—phir we datun lekar nadi ki taraf chale gaye honge nadi ke thanDe pani se unhonne apna chehra dhoya hoga, kulla kiya hoga aur is lambe duaswapn ko we bhool gaye honge unhonne adalat jane ke bare mein socha hoga hum logon ke makan ki chinta ne unhen pareshan kiya hoga
lekin main apne sapne ke bare mein batana chahta hoon, jo mujhe aksar aata hai wo yoon hai —ki main kheton ki meinD, ganw ki pagDanDi se hota hua jangal pahunch gaya hoon main raksa nala, kikar ke peD ko dekhta hoon wo bhuri chattan wahan usi jagah hai, jo sari barish nale ke pani mein Dubi rahti hai main dekhta hoon ki tirichh ki lash uske upar paDi hui hai mujhe ek betahasha khushi apne ghere mein le leti hai akhir wo mara gaya main patthar lekar tirichh ko kuchalne lagta hoon, zor zor se use marta hoon mere pas thanu mitti ka tel aur machis liye khaDa hai tabhi, achanak hi, main pata hoon ki main us chattan par nahin hoon thanu bhi wahan nahin hai, wahan koi jangal nahin hai balki main darasal shahr mein hoon mere kapDe bahut hi maile, phate aur chithDon jaise ho gaye hain mere galon ki haDDiyan nikli hain baal bikhre hain mujhe pyas lagi hai aur main bolne ki koshish karta hoon shayad main bakeli, apne ghar jane ka rasta puchhna chahta hoon aur tabhi achanak charon or shor uthta hai ghantiyan bajne lagti hain hazaron hazaron ghantiyan main bhagta hoon
main bhagta hoon mera pura sharir bedam hone lagta hai, phephDe phool jate hain main pas pas qadam rakh kar achanak lambi lambi chhalangen lagata hoon, uDne ki koshish karta hoon lekin bheeD lagta hai mere pas pahunchne wali hoti hai ek ajib si garm aur bhari hawa mujhe sunn kar deti hai apni hattya ki sansen mujhe chhune lagti hain aur akhiraka wo pal aa jata hai, jab mere jiwan ka ant hone wala hota hai
main rota hoon bhagne ki koshish karta hoon mera pura sharir neend mein hi pasine mein Doob jata hai main zor zor se bol kar jagne ki koshish karta hoon main wishwas karna chahta hoon ki ye sab sapna hai aur abhi ankh kholte hi sab theek ho jayega main sapne ke bhitar apni ankhen phaD kar dekhta hoon door tak lekin wo pal akhir aahi jata hai
man bahar se mujhe dekhti hai mera matha sahlakar wo mujhe razai se Dhanp deti hai aur main wahan akela chhoD diya jata hoon apni mirtyu se bachne ki koshish mein jujhta, bedam hota, rota, chikhta aur bhagta
man kahti hain mujhe abhi bhi neend mein baDbaDane aur chikhne ki aadat hai lekin main puchhna chahta hoon aur yahi sawal mujhe hamesha pareshan karta hai ki mujhe akhiraka ab tirichh ka sapna kyon nahin ata?
स्रोत :
पुस्तक : श्रेष्ठ हिन्दी कहानियाँ (1980-1990) (पृष्ठ 65)
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।
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