तुम्हारे पास बहुत सारी स्मृतियाँ हैं। तुम स्मृतियों में सिर से पैर तक डूबे हुए हो पर ये स्मृतियाँ तुमने खोज-खोज कर इकट्ठा की हैं सो तुम नहीं जानते कि इनमें से कितनी चीज़ें वास्तव में तुम्हारे साथ घटी थीं और कितनी दूसरों की स्मृति का हिस्सा हैं! या वे कौन-सी घटनाएँ हैं जो वास्तव में कभी घटी ही नहीं, किसी के भी जीवन में पर तुरंत ही तुम्हें ख़याल आता है कि तुम दावे के साथ कैसे कह सकते हो कि ये घटनाएँ किसी की भी स्मृति का हिस्सा नहीं हैं याकि किसी के भी जीवन में सचमुच नहीं घटीं। क्या तुम दुनिया भर के लोगों को जानते हो?
तो वहाँ एक प्राइमरी स्कूल है जिसमें मैं पढ़ता हूँ स्कूल की इमारत में सिर्फ़ तीन कमरे और एक बरामदा है। बरामदा सामने है। बरामदे के पीछे एक कमरा है। बरामदे के आजू-बाजू दो कमरे हैं जो सामने की तरफ़ एक अंडाकार उभार लिए हुए हैं। इन तीन कमरों में से सिर्फ़ एक में दरवाज़ा है और एक खिड़की भी, जिसकी चौखट कोई उखाड़ ले गया है। इस कमरे की दूसरी खिड़कियों में ईंटें चुनवा दी गई हैं। बाक़ी दोनों कमरों की खिड़कियाँ इतनी बड़ी हो गई हैं कि सोचना पड़ता है कि उन कमरों में दरवाज़े से जाया जाए या खिड़कियों से। जिस एक कमरे में दरवाज़ा है और जिसकी एक खिड़की की चौखट कोई उखाड़ ले गया है, उसमें सिर्फ़ लोहे की चौखानेदार पत्तियाँ भर बची हैं। इन पत्तियों के बाहर से मैं इस कमरे में बहुत देर तक झाँकता रहता हूँ। इस कमरे में दो साबुत कुर्सियाँ हैं, एक मेज़, तीन लकड़ी की आलमारियाँ, एक झूला कुर्सी, एक काठ का घोड़ा, एक सरकसीढ़ी, कुछ नई पुरानी किताबें, दो ज़ंग खाए बक्से और उनके ऊपर बेतरतीब ढंग से रखी हुई परीक्षा वाली कॉपियाँ। इस कमरे में हमेशा ताला बंद रहता है। यह सुबह के दस साढ़े दस बजे खुलता है और इसके भीतर की दोनों कुर्सियाँ निकाली जाती हैं। एक मिसिर मास्टर के लिए और एक बालगोविन्न मास्टर के लिए। शाम को फिर ताला खुलता है—दोनों कुर्सियाँ फिर से इसी कमरे में रख दी जाती हैं और फिर से ताला बंद कर दिया जाता है। एक बार कई दिनों तक इस कमरे की चाबी मेरे पास भी रही थी पर मुझे खिड़की से झाँकना ज़्यादा अच्छा लगता है।
स्कूल, स्कूल में नहीं स्कूल के पश्चिम के बाग़ में चलता है। आम के पेड़ों की हरी छाया में। पेड़ ख़ूब बड़े-बड़े हैं इसलिए पेड़ हमारी पहुँच में नहीं हैं। बस उनकी छाया ही हमारी पहुँच में है। स्कूल चलते-चलते बाग़ की सतह चिकनी और समतल हो गई है। इसी बाग़ में कोई पाँच पेड़ छाँट लिए जाते हैं और उन पाँच पेड़ों के नीचे पाँच कक्षाएँ चलती हैं। कक्षाओं का मुँह पेड़ की तरफ़ होता है जहाँ पेड़ की बग़ल में एक कुर्सी आ जाती है। मिसिर मास्टर और बालगोविन्न मास्टर जब एक कक्षा से दूसरी कक्षा में जाते हैं तो उनके साथ उनकी कुर्सियाँ भी जाती हैं। मास्टर पहले पहुँच जाते हैं और खड़े रहते हैं फिर पीछे-पीछे कुर्सी पहुँचती है। मास्टर कुर्सी पर बैठ जाते हैं। हम सब बच्चे भी बैठ जाते हैं। हम ज़मीन पर बैठते हैं। हम अपने बैठने के लिए घर से बोरियाँ ले कर आते हैं और लौटते समय बोरी अपने झोले में भर लेते हैं। झोला भी बोरी से बना होता है और कई बार कई लड़कों के कपड़े भी। ये बोरियाँ जाड़े में हमारे दोहरे काम आती हैं स्कूल से लौटते हुए हम इसमें आग तापने के लिए सूखी पत्तियाँ बटोर कर घर ले जाते हैं।
स्कूल के पूरब की तरफ़ एक पुराना-सा कुआँ है। जब स्कूल खुला रहता है तो उसकी जगत पर एक रस्सी-बाल्टी रखी रहती है। हमें ख़ूब प्यास लगती है। हम जितना पानी पीते हैं उससे ज़्यादा गिराते हैं। कुएँ का पानी ख़ूब ऊपर तक है। हम इसे जादुई कुआँ कहते हैं। जैसे-जैसे गर्मी बढ़ती है इसका पानी ठंडा होता चला जाता है और जैसे-जैसे जाड़ा आता है इसका पानी गर्म होता चला आता है। कुएँ के पूरब में मेहँदी के कई झाड़ थे जिन पर हम झूला झूलते थे। एक बार मैं इस पर झूल रहा था कि मिसिर मास्टर आते दिखाई पड़े। मैं जल्दी से उतरने लगा और नीचे आ गिरा। मिसिर मास्टर ने मुझे कई डंडे मारे पर मैं उठ नहीं पाया। थोड़ी देर में मेरा पैर ऐसे सूज आया जैसे मुझे हाथीपाँव हो गया हो। मिसिर मास्टर ने चारपाई मँगवाई और मुझे घर भिजवा दिया। हफ़्ते भर बाद जब मैं फिर से स्कूल आया तो वहाँ मेहँदी का एक भी झाड़ नहीं बचा था। उनकी जगह पर कुछ चीख़ती हुई खूँटियाँ भर थीं। तब भी जब मैं उधर से गुज़रता हूँ तो कभी स्याही गिर जाती है तो कभी क़लम। कितना भी ढूँढ़ो, वहाँ गुम हुई चीज़ें दुबारा कभी नहीं मिलती। खूँटियों के आगे जाने की हमें मनाही है। आगे जंगल शुरू हो जाता है।
स्कूल में दो ही मास्टर हैं। एक मिसिर मास्टर, एक बालगोविन्न मास्टर। दोनों कुर्ता पहनते हैं। बालगोविन्न मास्टर की तोंद बहुत बड़ी है। जब वह चलते हैं तो उनकी तोंद आगे-पीछे होती हुई बहुत मज़ेदार लगती है। बालगोविन्न मास्टर छड़ी लेकर चलते हैं पर हमें मारने के लिए उन्हें बाँस की पतली-पतली टहनियाँ पसंद हैं जो चमड़े को चूमती हैं तो एक शाइस्ता-सी सटाक की आवाज़ होती है और जिस्म में पतली-पतली लाल रेखाएँ बन जाती हैं जो थोड़ी देर बाद जिस्म के नक़्शे पर उभरी लाल पगडंडियों-सी दिखाई देने लगती हैं बालगोविन्न मास्टर इन पगडंडियों पर बिना छड़ी लिए ही चलते हैं।
मिसिर मास्टर ख़ूब काले हैं और काली-काली मूँछे रखते हैं। उनका घर स्कूल के पश्चिम के बाग़ के पश्चिम में है। वह अपनी मिसिराइन को ख़ूब पीटते हैं। कई बार जब वह मिसिराइन को पीट रहे होते हैं तो उनकी चीख़ें हम तक पहुँच जाती हैं। पीटने के दृश्य हम तक पहुँच जाते हैं। जिस दिन भी ऐसा होता है हम दिन भर डरे रहते हैं। क्या हमारा पिटना मिसिराइन को दिखता होगा तो वे भी ऐसे ही डर जाती होंगी? मिसिर मास्टर की मेरे पिता से ख़ूब जमती है। मेरे पिता भी मास्टर हैं सुबह मेरे पिता मिसिर मास्टर के यहाँ जाते हैं तो शाम को मिसिर मास्टर मेरे यहाँ आ जाते हैं। मैं पिता से भी डरता हूँ और मिसिर मास्टर से भी। मिसिर मास्टर कक्षा में जब कभी इम्तहान लेते हैं सारे बच्चों की कॉपियाँ मुझसे जँचवाते हैं और मेरी कॉपी ख़ुद जाँचते हैं। इससे क्लास में मेरा रुतबा थोड़ा बढ़ जाता है और मैं चाहता हूँ कि ये स्थिति हमेशा क़ायम रहे।
मेरी कक्षा में एक लड़का है ‘अशोक कुमार निर्मल’। उसका घर का नाम बितानू है। हम भी उसे बितानू कहते हैं और अपनी स्याहियाँ उसके कपड़े या झोले पर पोंछ देते हैं। वह शिकायत करता है तो मिसिर मास्टर हँसने लगते हैं। कहते हैं कि ‘तू क्यों रोता है बे! तेरी माई जैसे इतने लोगों का धोती है वैसे ही तेरा भी धो देगी।’ पूरी कक्षा फिसिर-फिसिर करने लगती है और बितानू का चेहरा तमतमा उठता है। अब धीरे-धीरे उसने शिकायत करनी बंद कर दी है। हम उसके साथ बदमाशी करते हैं तो वह जलती आँखों से हमें देखता है और न जाने क्या-क्या बुदबुदाने लगता है! इधर उसका बुदबुदाना बढ़ता जा रहा है पर हम उसकी बुदबुदाहट की रत्ती भर भी परवाह नहीं करते हैं क्योंकि मिसिर मास्टर और कक्षा की बहुसंख्या हमारे साथ होती है। मैं अपनी कक्षा में पढ़ने में सबसे अच्छा हूँ। मुझे अधिकतर सवालों के जवाब आते हैं। पर एक दिन ऐसा हुआ कि मिसिर मास्टर ने जो सवाल दिए उनमें से पाँच में से तीन मुझे नहीं आते थे। पूरा दम लगाकर भी मैं गणित के उन सवालों को हल नहीं कर पाया। मुझे मिसिर मास्टर से डर लगा। ऐसे किसी भी मौक़े पर मिसिर मास्टर दूसरों की अपेक्षा मुझे ज़्यादा पीटते थे। कहते, ससुर बाभन का लड़का होकर तुम्हारा ये हाल है।’ या ‘पढ़ोगे नहीं ससुर तौ का निर्मलवा की तरह गदहा चराओगे?’ लड़कियों के लिए कहते, ‘इन ससुरिन को, क्या करना है! घर में रहेंगी, चूल्हा-चौका करेंगी और लड़िका जनेंगी।’ ऐसा कोई भी प्रसंग पूरी कक्षा पर भारी गुज़रता है। मैं या जो भी उनके कोप का भोजन बनता है पिट-पिटकर चकनाचूर हो जाता है और दूसरों के चेहरे बिना पिटे ही सहम जाते हैं लड़कियाँ पानी-पानी हो जाती हैं। पर बितानू कुछ दूसरी तरह का है। उसकी आँखें लाल हो जाती हैं और वहाँ आग दहकने लगती है। इसीलिए वह सबसे ज़्यादा मार खाता है।
तो उस दिन इसी बितानू ने पाँच के पाँचों सवालों के जवाब सही-सही दिए थे और मैं पाँच में से तीन का जवाब नहीं दे पाया था, पर मेरी कॉपी तो मिसिर मास्टर सबके बाद में जाँचते हैं पहले तो मैं ही बाक़ी कॉपियाँ जाँचता हूँ तो उस दिन मैंने जान-बूझकर बितानू के तीन सवालों को ग़लत काट दिया। मेरी कॉपी मिसिर मास्टर ने देखी। तीन सवाल तो मैंने किए ही नही थे। सबके साथ-साथ मेरी भी पिटाई अच्छे से हुई बल्कि मेरी कुछ ज़्यादा ही अच्छे से, क्योंकि बाभन होने की वजह से और पिता के साथ दोस्ताना संबंधों की वजह से मिसिर मास्टर मेरे प्रति कुछ ज़्यादा ही ज़िम्मेदारी महसूस करते हैं। तो मिसिर मास्टर ने मेरे बदन का भूगोल बदल दिया। कहीं नदियाँ निकल आईं तो कहीं छोटे-छोटे पहाड़। पर इतना जैसे कम था।
बितानू उठा और अपनी कॉपी ले कर मिसिर मास्टर के पास पहुँच गया। बोला, ‘मास्साब मेरे ये सवाल सही हैं, फिर भी राजकरन ने ग़लत काट दिया।’
मिसिर मास्टर ने उसे उपहास के भाव से देखा और बोले, ‘तौ अब धोबी-धुर्रा बाभन में ग़लती निकालेंगे?’ फिर पता नहीं क्या सोच कर बोले, ‘ला कापी इधर ला।
मैं तो सच पहले से ही जानता था। मिसिर मास्टर ने मेरी तरफ़ देखा और मैं मशीन की तरह उठ कर उनके पास जा पहूँचा। बस चार डंडे की सजा मिली पर दूसरे दिन बितानू ज़्यादा पिटा क्योंकि ‘निर्मल’ होने के बावजूद वह गंदे कपड़े पहन कर आया था। उस दिन के बाद से बितानू ने स्कूल आना छोड़ दिया। कक्षा में एक जगह ख़ाली हो गई और मेरे भीतर भी। मुझे लगा कि अगर उस दिन मैंने उसके सवाल ग़लत नहीं काटे होते तो बितानू स्कूल नहीं छोड़ता, पर जल्दी ही मेरा भ्रम टूट गया।
हुआ यह कि मिसिर मास्टर के बेटे की तिलक थी। पिता गए हुए थे। मैं भी उनके साथ गया था। ख़ूब चहल-पहल थी। अचानक पता नहीं क्या सूझा कि मैंने बाएँ हाथ की तर्जनी और अँगूठे को मिला कर एक गोल घेरा बनाया और उसमें दाएँ हाथ की तर्जनी बार-बार डालने निकालने लगा। मैं यह काम पूरी तल्लीनता से कर रहा था। दो लड़के मुझे देख कर हँस रहे थे और कुछ इशारे कर रहे थे। पिता की निगाह मुझ पर गई तो उनका चेहरा कस उठा। उन्होंने मुझे बुलाया, कस कर कान उमेठा और घर जाने के लिए कहा। मैं मुँह बनाता और कान सहलाता घर चला आया।
पिता रात में घर आए तब तक मैं सो गया था। उन्होंने मुझे बुलाने के लिए कहा तो दीदी गई और मुझे जगा लाई। पिता ने मुझे इतनी ज़ोर का थप्पड़ मारा कि मैं ज़मीन पर लोट गया। इसके बाद पिता ने कहा कि कल से स्कूल जाना बंद। मैं बहुत देर तक ज़मीन पर वैसे ही मुर्दे की तरह पड़ा रहा। फिर दीदी मुझे उठाने आई। मैंने उसका हाथ झटक दिया। ख़ुद उठा और बिस्तर पर पहुँच गया। पूरी रात मुझे नींद नहीं आई। मैं पूरी रात इस बारे में सोचता रहा कि पिता ने मुझे क्यों मारा! पर मैं किसी नतीजे पर नहीं पहुँच पाया। अगले कई दिनों तक स्कूल जाना बंद ही रहा। पर मैं दिन में दो बार मैदान जाने का डिब्बा उठाता और स्कूल के पूरब तरफ़ जंगल में पहुँच जाता। वहाँ बैठे-बैठे मैं स्कूल की तरफ़ ताका करता।
एक दिन मैं ऐसे ही वहाँ छुपा बैठा था और स्कूल की तरफ़ ताक रहा था कि बालगोविन्न मास्टर लोटा लेकर अंदर आते दिखाई पड़े। बालगोविन्न मास्टर थोड़ा-सा अंदर आए, एक जगह आड़ तलाशी और धोती खोलकर बैठ गए। बालगोविन्न मास्टर मुझे देख न लें इस डर से में पीछे खिसकता चला गया। जब तक वह धोती खोल बैठे रहे, डर के मारे मेरी घिग्घी बँधी रही। वह उठने ही वाले थे कि एक बड़ा-सा ढेला आकर उनकी पीठ पर पड़ा। बालगोविन्न मास्टर हकबकाकर आगे रखे लोटे पर गिर गए। लोटे का सारा पानी गिर गया। बालगोविन्न मास्टर काँखते हुए चिल्लाए, ‘कौन है ससुर?’ किसी तरफ़ से कोई जवाब नहीं आया। मैं डर के मारे ज़मीन पर लेट-सा गया। बालगोविन्न मास्टर बहुत देर तक इधर-उधर देखते रहे, फिर उन्होंने बग़ल से लसोढ़े की पत्तियाँ तोड़ी और उससे अपना पिछवाड़ा साफ़ किया, इधर-उधर देखते हुए धोती पहनी और बाहर निकल गए।
बालगोविन्न मास्टर बाहर निकल गए तो मुझे डर लगा। मैं उठ कर खड़ा हो गया और अनायास ही चारों तरफ़ देखा। चारों तरफ़ पेड़, झाड़ियाँ, फूल ही फूल। आम, महुआ, लसोढ़ा, बेर, करौंदा, कैथा, सेमल, नीम, बबूल, जंगलजलेबी, मकोय, ढिठोरी, चिलबिल और भी न जाने क्या-क्या जिनके मैं नाम तक नहीं जानता। पेड़ों के ऊपर घनी लताएँ फैली हुई थीं। इतनी कि कई पेड़ दिख ही नहीं रहे थे, सिर्फ़ लताएँ दिख रही थीं। कुछ जगहों पर लताएँ भी नहीं दिख रही थीं, सिर्फ़ नीले-पीले फूल दिख रहे थे।
मुझे सब कुछ जादू-जादू-सा लगा। मेरा डर उड़नछू हो गया। जैसे किसी सम्मोहन की क़ैद में मैं जंगल के भीतर की तरफ़ बढ़ने लगा। अंदर एक तालाब था जिसके किनारे-किनारे जलकुंभी फैली हुई थी। उसमें बैगनी रंग के गुच्छेदार फूल खिले हुए थे और अंदर की तरफ़ कमल के बड़े-बड़े पत्ते पानी की सतह पर हरे धब्बों की तरह तैर रहे थे और चारों तरफ़ ख़ूब कमल ओर कुमुदिनी के फूल खिले हुए थे। मैंने इसके पहले सचमुच का कमल नहीं देखा था। मेरे घर के ओसारे में दरवाज़े के ऊपर तीन बड़ी-बड़ी तस्वीरें टँगी हुई हैं, उन सबमें कमल के फूल हैं। एक ब्रह्माजी की तस्वीर है जिसमें वह कमल के फूल पर बैठे हुए हैं, दूसरी सरस्वती की तस्वीर है जिसमें उनके एक हाथ में कमल का फूल लटका हुआ है। ऐसे ही एक कुबेर-लक्ष्मी की तस्वीर है जिसमें दोनों एक हाथी पर बैठे हुए हैं और हाथी अपनी सूँड़ से एक कमल का फूल तोड़ रहा है। तो मेरे ध्यान में कमल के फूल से जुड़े जितने भी प्रसंग थे सब देवताओं से जुडे़ हुए थे, इसीलिए जब मैंने तालाब में कमल खिले देखे तो तालाब मुझे पवित्र किस्म का लगा। मुझे लगा कि रात में ज़रूर यहाँ परियाँ उतरती होंगी। मेरा मन हुआ कि मैं एक कमल का फूल तोड़ूँ पर कमल तालाब में काफ़ी अंदर खिले हुए थे। तालाब गहरा हो सकता था और मुझे तैरना नहीं आता।
तभी मैंने देखा कि एक तरफ़ से धुआँ उठ रहा है। मैं धीरे-धीरे वहाँ पहुँचा तो देखा कि ओमप्रकाश और बितानू आग में से कुछ निकाल रहे हैं ओमप्रकाश मुझसे एक कक्षा आगे पाँचवी में पढ़ता है। मैं उन दोनों तक पहुँचता उसके पहले ही बितानू ने मुझे देख लिया और उठकर खड़ा हो गया।
मुझे लगा कि दोनों मुझे देखकर सकपका से गए। पर बितानू ने कहा, ‘वहाँ क्यों खड़े हो पंडित? यहाँ आओ।’
मैं असमंजस में रहा! फिर धीरे-धीरे चल कर उनके पास जाकर खड़ा हो गया। सामने गणित की रफ़ कॉपी का पन्ना पड़ा हुआ था। उस पर तीन भुनी मछलियाँ रखी हुईं थीं। काग़ज़ पर एक कोने में थोड़ा सा पिसा नमक रखा था। बितानू ने पूछा, ‘खाओगे पंडित?’
मैंने कहा, ‘छिः तुम लोग पापी हो।’
ओमप्रकाश हँसने लगा। उसने कहा, ‘अच्छा पंडित जी हम लोग तो पापी हैं ही पर मछली तो आज आपको भी खानी पड़ेगी। नहीं तो मैं बालगोविन्न मास्टर को बता दूँगा कि उनको ढेला तुमने मारा था।’
मैं चौंक गया। ‘इसका मतलब उनको ढेला तुम लोगो ने मारा था।’ मैंने कहा।
‘तो क्या हुआ! हम दो हैं और तुम अकेले। दो की बात में ज़्यादा दम होता है।’ ये बितानू था।
उसके दो वाले तर्क से मैं गड़बड़ा गया। फिर भी मैंने कहा, ‘मैं यह भी बताऊँगा कि तुम दोनों यहाँ यह सब करते हो।’
बितानू बोला, ‘देख बे पंडित, जा बता दे। मैं तो पहले से ही स्कूल नहीं आता, तेरा मास्टर मेरा क्या उखाड़ेगा!’
दोनों तन कर खड़े हो गए। मुझमें वह हिम्मत नहीं बची कि मैं उन दोनों की शिकायत करने के बारे में सोचता। दोनों मुझसे ज़्यादा ताकतवर। और शिकायत करके भी क्या होगा, सही बात है कि बितानू तो पहले से ही स्कूल छोड़ चुका है और फिर पिता ने मुझे भी तो स्कूल आने से मना किया है। पिता पूछेंगे कि तुम वहाँ क्या कर रहे थे तो मैं क्या जवाब दूँगा! अब बचा ओमप्रकाश, वह तो स्कूल भी जाता है, ऊपर से मुझसे ऊपर की कक्षा में पढ़ता है। अगर उसने मेरी शिकायत कर दी तो...
तो मैंने कहा, ‘देखो तुम लोग मेरे बारे में कुछ मत बताना। मैं भी तुम दोनों के बारे में कुछ नहीं बताऊँगा।’
बितानू बोला, ‘हम तो बताएँगे।’ शायद वह मेरे डर को भाँप गया था।
मैं बहुत देर तक न-नुकुर करता रहा। वे दोनों मुझे धमकाते रहे।
आख़िरकार मैंने मिनमिनाते हुए कहा, ‘अच्छा थोड़ी-सी दो। अच्छी नहीं लगेगी तो नहीं खाऊँगा।’
ओमप्रकाश ने मछली का एक टुकड़ा निकाला, उसमें नमक छुवाया और मेरे मुँह में डाल दिया। मुझे उबकाई-सी आई। आँखों में आँसू आने को हुए, पर मैं उबकाई और आँसू दोनों पी गया। देर तक वह टुकड़ा मेरे मुँह में वैसे का वैसे ही पड़ा रहा। फिर उसका नमक मेरे मुँह में घुला। उसमें एक अजीब-सी महक थी। मेरे रोएँ सन्न भाव से खड़े हो गए जैसे किसी अनपेक्षित का इंतज़ार कर रहे हों। फिर मछली का टुकड़ा मेरे मुँह में बिखर गया। मैं दम साधे उसे महसूस करने की कोशिश कर रहा था। टुकड़ा और घुला। थोड़ा और। और। फिर मैंने उससे एक टुकड़ा और माँगा।
बितानू बोला, ‘शाबास पंडित, मजा आया न!’
मैं हँसने लगा। इसके बाद मैं भी उनका साझीदार हो गया।
अगले कई दिनों तक मैं रोज़ मैदान जाने का डिब्बा लेकर वहाँ पहुँचता रहा। ओमप्रकाश अपने साथ मछली फाँसने वाली कटिया ले कर आता। कटिया चार-पाँच मीटर लंबे ताँत के तार की बनी होती, जिसके एक छोर पर वह वहीं छुपाई गई बाँस की टहनी लगा देता। दूसरे छोर पर एक पतला-सा लोहे का तारनुमा बंसी लगी होती जिसका अगला हिस्सा हुक की तरह मुड़ा होता। वह वहीं तालाब के किनारे की नमी से केंचुए इकट्ठा करता और हुक में केंचुए फँसा देता। वह कई-कई कटिया लगाकर स्कूल चला जाता। जब इंटरवल होता तो वह तालाब की तरफ़ लपकता। मैं पहले से ही वहाँ पहुँचा होता।
वहीं पर मैंने पहली बार अंडे खाए। बीड़ी का सुट्टा मारा। फिर एक दिन अम्मा ने कहा कि मैं पिता के स्कूल के लिए निकल जाने के बाद स्कूल चला जाया करूँ। इसमें कोई दिक़्क़त नहीं थी क्योंकि पिता का स्कूल दूर था और वह पहले ही निकल जाते थे। मेरा स्कूल घर के सामने ही था सो मैं आराम से बाद में जा सकता था। अम्मा ने ज़रूर पिता की सहमति से ही ऐसा किया होगा। अम्मा न बताती तब भी उन्हें तो मिसिर मास्टर से पता चल ही जाना था।
कितना अच्छा होता कि स्कूल घर से दूर होता। कितना अच्छा होता कि स्कूल के मिसिर मास्टर, बालगोविन्न मास्टर और पिता एक दूसरे को जानते न होते। हम घर में भी पिटते और स्कूल में भी। दोनों जगहों पर हम संदिग्ध थे और हमें ठोंक-पीटकर अच्छा बनाने का पवित्र अभियान चलाया जा रहा था।
मैं स्कूल जाने लगा तो धीरे-धीरे मेरी दोस्ती ओमप्रकाश और बितानू से बढ़ती गई। स्कूल में मेरा वक़्त ओमप्रकाश के साथ बीतता और इंटरवल में बितानू हम दोनों का तालाब पर इंतज़ार करता कभी मछली, कभी चिड़िया के अंडे, कभी आलू कभी कुमुदिनी की जड़ तो कभी अरहर और मटर की फलियों के साथ।
ओमप्रकाश के साथ उसकी बहन भी स्कूल आती थी। वह मुझे बहुत सुंदर लगती थी। उसके बाएँ गाल पर चवन्नी बराबर एक बड़ा-सा मस्सा था। मस्सा मुझे बहुत अच्छा लगता था और मुझे उसकी तरफ़ खींचता था। मेरा मन उसे छूने का करता। मैं उसे देर-देर तक चुपके-चुपके निहारता था। मैंने एक दिन ओमप्रकाश से कह ही दिया,
‘ओम भाई, तुम्हारी बहन मुझे बहुत अच्छी लगती है।’
उसने कहा, ‘मुझे भी तुम्हारी दीदी बहुत अच्छी लगती है। चलो बदल लेते हैं। तुम अपनी दीदी मुझे दे दो और मेरी बहन ले लो।’
दीदी वहीं बग़ल के मिडिल स्कूल में आठवीं में पढ़ती थी। वह न जाने कहाँ पीछे दुबकी थी और हमारी बातें सुन रही थी। दीदी अचानक प्रकट हुई और इसके पहले कि हम कुछ समझ पाते उसने मेरे और ओमप्रकाश के सिरों को पकड़ कर आपस में लड़ा दिया। हम दोनों की आँखों के आगे अँधेरा छा गया। दीदी ने हम दोनों की ख़ूब ताबड़तोड़ ढंग से पिटाई की। हम दोनों पस्त होकर वहीं पड़े रहे और दीदी ने घर जा कर सब कुछ बता दिया।
घर पहुँचा तो दादी डंडा लिए मेरा इंतज़ार कर रही थी। ख़ूब पिटाई हुई। दूसरे दिन स्कूल में भी मेरी और ओमप्रकाश की जम कर पिटाई हुई। कई दिनों बाद दादी ने प्यार से समझाया कि उसका क्या जाता! मान लो ऐसा हो जाए तो बाभन की लड़की पाकर उसकी तो इज़्ज़त बढ़ जाएगी पर तुम्हारे तो पूरे खानदान की नाक कट जाएगी कि तुम्हारी बहन किसी सूद-बहरी के साथ चली गई। अरे ऐसी बातों पर तो गर्दन तक कट जाती हैं और तू है कि... कुल का कलंक बन कर पैदा हुआ है।
इसके बाद हम पर स्कूल में नज़र रखी जाने लगी। घर पर लगातार सुनने को मिलता कि अच्छे लड़के सूद-बहरी की संगत नहीं किया करते। ऐसा करने से उनका मन गंदा हो जाता है और उनके भीतर तमाम गंदी आदतें आ जाती हैं। स्कूल में भी मिसिर मास्टर की निगाहों में आने से बचना होता था। सो हमारे मिलने की एकमात्र जगह जंगल था।
ओमप्रकाश इस बीच बेवजह पिटने लगा था। कई बार मिसिर मास्टर उसके नाम को लेकर उसकी फ़ज़ीहत करते। ‘ससुर अँधेरे की औलाद नाम ओम प्रकाश!’ फिर एक दिन उसे मिसिर मास्टर ने कुएँ पर जाने और रस्सी-बाल्टी छूने से मना कर दिया। ओमप्रकाश नहीं माना तो मिसिर मास्टर ने उसे ज़मीन पर गिराकर लातों और डंडों से ख़ूब पीटा। ओमप्रकाश की समझ में जब कुछ नही आया तो उसने मिसिर मास्टर की कलाई में दाँत गड़ा दिया। मिसिर मास्टर ने चिल्ला कर उसे छोड़ दिया। ओमप्रकाश थोड़ा दूर गया और वहाँ से ईंट का एक टुकड़ा उठा कर मिसिर मास्टर के सिर पर दे मारा। मिसिर मास्टर सिर थाम कर बैठ गए तो ओमप्रकाश ने उन्हें माँ की गाली दी और घर भाग गया। दूसरे दिन ओमप्रकाश के घर वाले आकर सरेआम मिसिर मास्टर की माँ बहन कर गए। इसके बाद ओमप्रकाश और उसकी बहन दोनों का स्कूल आना बंद हो गया।
पंद्रह-बीस दिन बाद एक दिन कुएँ में मरा हुआ कुत्ता तैरता दिखा। दो दिन तक लगातार कुएँ का पानी निकलवाया गया। मिसिर मास्टर ने घर से लाकर गंगाजल डाला पर दस दिन बाद ही कुएँ में मरा हुआ बछड़ा पाया गया। इसके बाद कुएँ में एक बदबू फैल गई जो बढ़ती ही गई। इसके बावजूद छोटे-छोटे बच्चे जाते और उसमें ईंट के टुकड़े उछालते तो एक छपाक की आवाज़ होती और पानी के कुछ छींटे बाहर आ जाते। पानी में कीड़े पड़ गए थे। कई बार पानी के साथ कीड़े भी बाहर आ जाते। बाद में इस कुएँ में कूड़ा फेंका जाने लगा। धीरे-धीरे पानी ग़ायब हो गया और बजबजाता हुआ कीचड़ भर बचा जिसमें घिनौने कीड़े रेंगते जोंकें कई बार ऊपर तक चली आतीं और कुएँ की जगत पर फिसलती दिखाईं देतीं। कुएँ के ऊपर से जो हवा गुज़रती उसमें एक ज़हरीली बदबू फैल जाती। एक-एक कर कुएँ में कई ऐसे बच्चे पाए गए जिनकी नाल तक नहीं काटी गई थी। इनके बारे में पता ही तब चलता है जब कुएँ के ऊपर कौव्वे या गिद्ध मँडराने लगते हैं।
ओमप्रकाश के जाने के बाद बितानू ने भी तालाब पर आना बंद कर दिया। मैं अकेला पड़ गया हूँ। मिसिर मास्टर लगभग रोज़ मुझे पीटते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि ओमप्रकाश और उसके घर वालों से गाली उन्होंने मेरी वजह से खाई। मैं अकेला पड़ गया हूँ पर इस बीच मुझे वर्जित का चस्का लग चुका है। मैं पेड़ पर नहीं चढ़ पाता। मैं मछली नहीं फँसा पाता। बीड़ी पिए भी बहुत दिन हो गए हैं पर मैं जंगल में अकेले ही भटका करता हूँ। पूरे जंगल का स्वाद मुझे पता है। मछली न सही इमली, अमोला, करौंदा, कैथा, झरबेरी या बढ़हल की फुलौरियों का स्वाद मुँह में पानी ला देता है। जब इमली में फलियाँ नहीं लगी होती हैं तो कई बार मैं इमली की नरम-नवेली पत्तियाँ खाता हूँ। उनमें भी इमली जैसा ताज़ा खट्टापन होता है। मैंने एक घास भी खोज निकाली है जो तालाब के किनारे की नम जगहों पर पनपती है। इसकी गुच्छेदार पत्तियाँ इमली से भी ज़्यादा खट्टी होती हैं। उनको खाने से कई बार दाँत इतने खट्टे हो जाते हैं कि रोटी चबाना तक मुश्किल होता है। पर सबसे ज़्यादा फ़िदा मैं शहतूतों पर हुआ हूँ। तालाब के किनारे-किनारे शहतूतों का एक जंगल जैसा है। यहाँ शहतूतों के बीसियों पेड़ उगे हैं जब उन पर फल आते हैं तो ये फल इतने हरे होते हैं कि उन्हें पत्तियों से अलग देख पाना भी मुश्किल होता है। फिर उन फलों पर एक लाली उतरने लगती है। उधर लाली दिखी नहीं कि मेरे मुँह में पानी आना शुरू हो जाता है और काले फलों के दिखाई देते ही मैं उस पर बेसब्री से टूट पड़ता हूँ छोटे-छोटे फल जीभ के ज़रा-सा दबाव पर ही मुँह में घुल जाते हैं खाते-खाते जीभ लाल हो जाती है। कई बार कपड़ों पर भी दाग़ पड़ जाते हैं जिन्हें बितानू की माई छुड़ाती है।
ऐसे ही धीरे-धीरे तुम्हें लगने लगता है कि तुम्हारी दुनिया के समानांतर स्मृतियों की भी एक जीती-जागती दुनिया है जहाँ तुम बितानू, ओमप्रकाश और मछलियों की तलाश में भटकते हो। तुम मानते हो कि वहाँ एक सचमुच का स्कूल है जिसमें मिसिर मास्टर ओर बालगोविन्न मास्टर पढ़ाते हैं और जहाँ से तुम भागे हुए हो। तुम्हें पता नहीं कि कुएँ की दुर्गंध शहतूतों में समा चुकी है इसीलिए तुम्हें अभी भी लगता है कि शहतूत दुनिया के सबसे स्वादिष्ट फल हैं।
तुम महानगर में रहते हो। महानगर में आजकल तपती हुई गर्मी पड़ रही है। तुम कई दिनों से एक बाबू से मिलने जा रहे हो जिसने तुम्हारा काम लटका रखा है। धूप और गर्मी बर्दाश्त नहीं होती तो जल्दी पहुँचने के लिए अपनी जेब सहलाते हुए तुम रिक्शा करते हो। तुम ओमप्रकाश की याद में इतने डूबे हुए हो कि तुम्हें पता भी नहीं चल पाता कि जिस रिक्शे पर तुम बैठे हुए हो उसे ओमप्रकाश चला रहा है। रिक्शे से उतर कर तुम ऑफ़िस जाते हो तो तुम्हें पता चलता है कि जिस बाबू ने तुम्हारा काम रोक रखा है उसका तबादला हो गया है और उसकी जगह पर अशोक कुमार निर्मल बैठा हुआ है। तुम उसे देख कर ख़ुश हो जाते हो पर वह तुम्हारी यादों में इतना डूबा हुआ है कि तुम्हें पहचान ही नहीं पाता। तुम्हे लगता है कि यह दुनिया एक जंगल है। तब तुम तालाब खोजने लगते हो। तुम्हें तालाब नहीं मिलता, तुम्हें एक नल मिलता है। नल का पानी इतना गर्म है कि तुम्हारे हाथों पर छाले पड़ जाते हैं और तुम्हारा चेहरा शहतूतों की तरह काला पड़ जाता है। तुम्हें शहतूतों की याद आती है। तभी तुम देखते हो कि नल का पानी जहाँ जा कर इकट्ठा होता है उसके बग़ल में शहतूत का एक पेड़ है जो फलों से लदा हुआ है। तुम उसके नज़दीक जाते हो तो पेड़ तुम्हें अपने घेरे में ले लेता है और तुम्हें छाँट-छाँटकर अपने सबसे मीठे फल देने लगता है। अब तुम बड़े हो गए हो। तुम फलों को घर लाओगे, उन्हें धोओगे तब खाओगे पर तुम ऐसा नहीं करते। पता नहीं एक बचपना तुम्हारे भीतर बचा हुआ है या पेड़ ही बेसब्र हो उठता है कि वह तुम्हारी अँजुरी शहतूतों से भर देता है। तुम एक साथ सारे शहतूत अपने मुँह में भर लेते हो। अचानक तुम्हें ज़ोर की उबकाई आती है। तुम्हें लगता है कि तुमने अपने मुँह में रोएँदार गुजगुजे कीड़े भर लिए हैं। पेड़ तुम्हारा माथा सहलाना चाहता है पर तुम बाहर भागते हो। तुम फिर से नल पर जाओगे और कुल्ला करोगे और आज के बाद शहतूतों की तरफ़ पलटकर भी नहीं देखोगे। आगे हो सकता है कि तुम किसी ऐसे जंगल में जा करबस जाओ जहाँ शहतूत क्या मछली, मेहँदी, इमली, बढ़हल या कमल जैसी चीज़ें सपनों में भी तुम तक न पहुँच सकें।
मैं इसी बात से तो डरता हूँ।
tumhare paas bahut sari smritiyan hain. tum smritiyon mein sir se pair tak Dube hue ho par ye smritiyan tumne khoj khoj kar ikattha ki hain so tum nahin jante ki inmen se kitni chizen vastav mein tumhare saath ghati theen aur kitni dusron ki smriti ka hissa hain! ya ve kaun si ghatnayen hain jo vastav mein kabhi ghati hi nahin, kisi ke bhi jivan mein par turant hi tumhein khayal aata hai ki tum dave ke saath kaise kah sakte ho ki ye ghatnayen kisi ki bhi smriti ka hissa nahin hain yaki kisi ke bhi jivan mein sachmuch nahin ghatin. kya tum duniya bhar ke logon ko jante ho?
to vahan ek primary school hai jismen main paDhta hoon school ki imarat mein sirf teen kamre aur ek baramada hai. baramada samne hai. baramde ke pichhe ek kamra hai. baramde ke aaju baju do kamre hain jo samne ki taraf ek anDakar ubhaar liye hue hain. in teen kamron mein se sirf ek mein darvaza hai aur ek khiDki bhi, jiski chaukhat koi ukhaaD le gaya hai. is kamre ki dusri khiDakiyon mein iinten chunva di gai hain. baqi donon kamron ki khiDkiyan itni baDi ho gai hain ki sochna paDta hai ki un kamron mein darvaze se jaya jaye ya khiDakiyon se. jis ek kamre mein darvaza hai aur jiski ek khiDki ki chaukhat koi ukhaaD le gaya hai, usmen sirf lohe ki chaukhanedar pattiyan bhar bachi hain. in pattiyon ke bahar se main is kamre mein bahut der tak jhankta rahta hoon. is kamre mein do sabut kursiyan hain, ek mez, teen lakDi ki almariyan, ek jhula kursi, ek kaath ka ghoDa, ek saraksiDhi, kuch nai purani kitaben, do zang khaye bakse aur unke upar betartib Dhang se rakhi hui pariksha vali kaupiyan. is kamre mein hamesha tala band rahta hai. ye subah ke das saDhe das baje khulta hai aur iske bhitar ki donon kursiyan nikali jati hain. ek misir master ke liye aur ek balgovinn master ke liye. shaam ko phir tala khulta hai—donon kursiyan phir se isi kamre mein rakh di jati hain aur phir se tala band kar diya jata hai. ek baar kai dinon tak is kamre ki chabi mere paas bhi rahi thi par mujhe khiDki se jhankna zyada achchha lagta hai.
school, school mein nahin school ke pashchim ke baagh mein chalta hai. aam ke peDon ki hari chhaya mein. peD khoob baDe baDe hain isliye peD hamari pahunch mein nahin hain. bus unki chhaya hi hamari pahunch mein hai. school chalte chalte baagh ki satah chikni aur samtal ho gai hai. isi baagh mein koi paanch peD chhaant liye jate hain aur un paanch peDon ke niche paanch kakshayen chalti hain. kakshaon ka munh peD ki taraf hota hai jahan peD ki baghal mein ek kursi aa jati hai. misir master aur balgovinn master jab ek kaksha se dusri kaksha mein jate hain to unke saath unki kursiyan bhi jati hain. master pahle pahunch jate hain aur khaDe rahte hain phir pichhe pichhe kursi pahunchti hai. master kursi par baith jate hain. hum sab bachche bhi baith jate hain. hum zamin par baithte hain. hum apne baithne ke liye ghar se boriyan le kar aate hain aur lautte samay bori apne jhole mein bhar lete hain. jhola bhi bori se bana hota hai aur kai baar kai laDkon ke kapDe bhi. ye boriyan jaDe mein hamare dohre kaam aati hain school se lautte hue hum ismen aag tapne ke liye sukhi pattiyan bator kar ghar le jate hain.
school ke purab ki taraf ek purana sa kuan hai. jab school khula rahta hai to uski jagat par ek rassi balti rakhi rahti hai. hamein khoob pyaas lagti hai. hum jitna pani pite hain usse zyada girate hain. kuen ka pani khoob upar tak hai. hum ise jadui kuan kahte hain. jaise jaise garmi baDhti hai iska pani thanDa hota chala jata hai aur jaise jaise jaDa aata hai iska pani garm hota chala aata hai. kuen ke purab mein mehandi ke kai jhaaD the jin par hum jhula jhulte the. ek baar main is par jhool raha tha ki misir master aate dikhai paDe. main jaldi se utarne laga aur niche aa gira. misir master ne mujhe kai DanDe mare par main uth nahin paya. thoDi der mein mera pair aise sooj aaya jaise mujhe hathipanv ho gaya ho. misir master ne charpai mangvai aur mujhe ghar bhijva diya. hafte bhar baad jab main phir se school aaya to vahan mehandi ka ek bhi jhaaD nahin bacha tha. unki jagah par kuch chikhti hui khuntiyan bhar theen. tab bhi jab main udhar se guzarta hoon to kabhi syahi gir jati hai to kabhi qalam. kitna bhi DhunDho, vahan gum hui chizen dubara kabhi nahin milti. khuntiyon ke aage jane ki hamein manahi hai. aage jangal shuru ho jata hai.
school mein do hi master hain. ek misir master, ek balgovinn master. donon kurta pahante hain. balgovinn master ki tond bahut baDi hai. jab wo chalte hain to unki tond aage pichhe hoti hui bahut mazedar lagti hai. balgovinn master chhaDi lekar chalte hain par hamein marne ke liye unhen baans ki patli patli tahniyan pasand hain jo chamDe ko chumti hain to ek shaista si satak ki avaz hoti hai aur jism mein patli patli laal rekhayen ban jati hain jo thoDi der baad jism ke naqshe par ubhri laal pagDanDiyon si dikhai dene lagti hain balgovinn master in pagDanDiyon par bina chhaDi liye hi chalte hain.
misir master khoob kale hain aur kali kali munchhe rakhte hain. unka ghar school ke pashchim ke baagh ke pashchim mein hai. wo apni misirain ko khoob pitte hain. kai baar jab wo misirain ko peet rahe hote hain to unki chikhen hum tak pahunch jati hain. pitne ke drishya hum tak pahunch jate hain. jis din bhi aisa hota hai hum din bhar Dare rahte hain. kya hamara pitna misirain ko dikhta hoga to ve bhi aise hi Dar jati hongi? misir master ki mere pita se khoob jamti hai. mere pita bhi master hain subah mere pita misir master ke yahan jate hain to shaam ko misir master mere yahan aa jate hain. main pita se bhi Darta hoon aur misir master se bhi. misir master kaksha mein jab kabhi imtahan lete hain sare bachchon ki kaupiyan mujhse janchvate hain aur meri copy khu janchate hain. isse class mein mera rutba thoDa baDh jata hai aur main chahta hoon ki ye sthiti hamesha qayam rahe.
meri kaksha mein ek laDka hai ‘ashok kumar nirmal’. uska ghar ka naam bitanu hai. hum bhi use bitanu kahte hain aur apni syahiyan uske kapDe ya jhole par ponchh dete hain. wo shikayat karta hai to misir master hansne lagte hain. kahte hain ki ‘tu kyon rota hai be! teri mai jaise itne logon ka dhoti hai vaise hi tera bhi dho degi. ’ puri kaksha phisir phisir karne lagti hai aur bitanu ka chehra tamtama uthta hai. ab dhire dhire usne shikayat karni band kar di hai. hum uske saath badmashi karte hain to wo jalti ankhon se hamein dekhta hai aur na jane kya kya budbudane lagta hai! idhar uska budbudana baDhta ja raha hai par hum uski budbudahat ki ratti bhar bhi parvah nahin karte hain kyonki misir master aur kaksha ki bahusankhya hamare saath hoti hai. main apni kaksha mein paDhne mein sabse achchha hoon. mujhe adhiktar savalon ke javab aate hain. par ek din aisa hua ki misir master ne jo saval diye unmen se paanch mein se teen mujhe nahin aate the. pura dam lagakar bhi main ganait ke un savalon ko hal nahin kar paya. mujhe misir master se Dar laga. aise kisi bhi mauqe par misir master dusron ki apeksha mujhe zyada pitte the. kahte, sasur babhan ka laDka hokar tumhara ye haal hai. ’ ya ‘paDhoge nahin sasur tau ka nirmalva ki tarah gadha charaoge?’ laDakiyon ke liye kahte, ‘in sasurin ko, kya karna hai! ghar mein rahengi, chulha chauka karengi aur laDika janengi. ’ aisa koi bhi prsang puri kaksha par bhari guzarta hai. main ya jo bhi unke kop ka bhojan banta hai pit pitkar chaknachur ho jata hai aur dusron ke chehre bina pite hi saham jate hain laDkiyan pani pani ho jati hain. par bitanu kuch dusri tarah ka hai. uski ankhen laal ho jati hain aur vahan aag dahakne lagti hai. isiliye wo sabse zyada maar khata hai.
to us din isi bitanu ne paanch ke panchon savalon ke javab sahi sahi diye the aur main paanch mein se teen ka javab nahin de paya tha, par meri copy to misir master sabke baad mein janchate hain pahle to main hi baqi kaupiyan janchta hoon to us din mainne jaan bujhkar bitanu ke teen savalon ko ghalat kaat diya. meri copy misir master ne dekhi. teen saval to mainne kiye hi nahi the. sabke saath saath meri bhi pitai achchhe se hui balki meri kuch zyada hi achchhe se, kyonki babhan hone ki vajah se aur pita ke saath dostana sambandhon ki vajah se misir master mere prati kuch zyada hi zimmedari mahsus karte hain. to misir master ne mere badan ka bhugol badal diya. kahin nadiyan nikal ain to kahin chhote chhote pahaD. par itna jaise kam tha.
bitanu utha aur apni copy le kar misir master ke paas pahunch gaya. bola, ‘massab mere ye saval sahi hain, phir bhi rajakran ne ghalat kaat diya. ’
misir master ne use uphaas ke bhaav se dekha aur bole, ‘tau ab dhobi dhurra babhan mein ghalati nikalenge?’ phir pata nahin kya soch kar bole, ‘la kapi idhar la.
main to sach pahle se hi janta tha. misir master ne meri taraf dekha aur main machine ki tarah uth kar unke paas ja pahuncha. bus chaar DanDe ki saja mili par dusre din bitanu zyada pita kyonki ‘nirmal’ hone ke bavjud wo gande kapDe pahan kar aaya tha. us din ke baad se bitanu ne school aana chhoD diya. kaksha mein ek jagah khali ho gai aur mere bhitar bhi. mujhe laga ki agar us din mainne uske saval ghalat nahin kate hote to bitanu school nahin chhoDta, par jaldi hi mera bhram toot gaya.
hua ye ki misir master ke bete ki tilak thi. pita gaye hue the. main bhi unke saath gaya tha. khoob chahl pahal thi. achanak pata nahin kya sujha ki mainne bayen haath ki tarjani aur anguthe ko mila kar ek gol ghera banaya aur usmen dayen haath ki tarjani baar baar Dalne nikalne laga. main ye kaam puri tallinta se kar raha tha. do laDke mujhe dekh kar hans rahe the aur kuch ishare kar rahe the. pita ki nigah mujh par gai to unka chehra kas utha. unhonne mujhe bulaya, kas kar kaan umetha aur ghar jane ke liye kaha. main munh banata aur kaan sahlata ghar chala aaya.
pita raat mein ghar aaye tab tak main so gaya tha. unhonne mujhe bulane ke liye kaha to didi gai aur mujhe jaga lai. pita ne mujhe itni zor ka thappaD mara ki main zamin par lot gaya. iske baad pita ne kaha ki kal se school jana band. main bahut der tak zamin par vaise hi murde ki tarah paDa raha. phir didi mujhe uthane i. mainne uska haath jhatak diya. khu utha aur bistar par pahunch gaya. puri raat mujhe neend nahin i. main puri raat is bare mein sochta raha ki pita ne mujhe kyon mara! par main kisi natije par nahin pahunch paya. agle kai dinon tak school jana band hi raha. par main din mein do baar maidan jane ka Dibba uthata aur school ke purab taraf jangal mein pahunch jata. vahan baithe baithe main school ki taraf taka karta.
ek din main aise hi vahan chhupa baitha tha aur school ki taraf taak raha tha ki balgovinn master lota lekar andar aate dikhai paDe. balgovinn master thoDa sa andar aaye, ek jagah aaD talashi aur dhoti kholkar baith gaye. balgovinn master mujhe dekh na len is Dar se mein pichhe khisakta chala gaya. jab tak wo dhoti khol baithe rahe, Dar ke mare meri ghigghi bandhi rahi. wo uthne hi vale the ki ek baDa sa Dhela aakar unki peeth par paDa. balgovinn master hakabkakar aage rakhe lote par gir gaye. lote ka sara pani gir gaya. balgovinn master kankhate hue chillaye, ‘kaun hai sasur?’ kisi taraf se koi javab nahin aaya. main Dar ke mare zamin par let sa gaya. balgovinn master bahut der tak idhar udhar dekhte rahe, phir unhonne baghal se lasoDhe ki pattiyan toDi aur usse apna pichhvaDa saaf kiya, idhar udhar dekhte hue dhoti pahni aur bahar nikal gaye.
balgovinn master bahar nikal gaye to mujhe Dar laga. main uth kar khaDa ho gaya aur anayas hi charon taraf dekha. charon taraf peD, jhaDiyan, phool hi phool. aam, mahua, lasoDha, ber, karaunda, kaitha, semal, neem, babul, jangalajlebi, makoy, Dhithori, chilbil aur bhi na jane kya kya jinke main naam tak nahin janta. peDon ke upar ghani latayen phaili hui theen. itni ki kai peD dikh hi nahin rahe the, sirf latayen dikh rahi theen. kuch jaghon par latayen bhi nahin dikh rahi theen, sirf nile pile phool dikh rahe the.
mujhe sab kuch jadu jadu sa laga. mera Dar uDanchhu ho gaya. jaise kisi sammohan ki qaid mein main jangal ke bhitar ki taraf baDhne laga. andar ek talab tha jiske kinare kinare jalkumbhi phaili hui thi. usmen baigni rang ke guchchhedar phool khile hue the aur andar ki taraf kamal ke baDe baDe patte pani ki satah par hare dhabbon ki tarah tair rahe the aur charon taraf khoob kamal or kumudini ke phool khile hue the. mainne iske pahle sachmuch ka kamal nahin dekha tha. mere ghar ke osare mein darvaze ke upar teen baDi baDi tasviren tangi hui hain, un sabmen kamal ke phool hain. ek brahmaji ki tasvir hai jismen wo kamal ke phool par baithe hue hain, dusri sarasvati ki tasvir hai jismen unke ek haath mein kamal ka phool latka hua hai. aise hi ek kuber lakshmi ki tasvir hai jismen donon ek hathi par baithe hue hain aur hathi apni soonD se ek kamal ka phool toD raha hai. to mere dhyaan mein kamal ke phool se juDe jitne bhi prsang the sab devtaon se juDe hue the, isiliye jab mainne talab mein kamal khile dekhe to talab mujhe pavitra kism ka laga. mujhe laga ki raat mein zarur yahan pariyan utarti hongi. mera man hua ki main ek kamal ka phool toDun par kamal talab mein kafi andar khile hue the. talab gahra ho sakta tha aur mujhe tairna nahin aata.
tabhi mainne dekha ki ek taraf se dhuan uth raha hai. main dhire dhire vahan pahuncha to dekha ki omaprkash aur bitanu aag mein se kuch nikal rahe hain omaprkash mujhse ek kaksha aage panchavi mein paDhta hai. main un donon tak pahunchta uske pahle hi bitanu ne mujhe dekh liya aur uthkar khaDa ho gaya.
mujhe laga ki donon mujhe dekhkar sakapka se gaye. par bitanu ne kaha, ‘vahan kyon khaDe ho panDit? yahan aao. ’
main asmanjas mein raha! phir dhire dhire chal kar unke paas jakar khaDa ho gaya. samne ganait ki raf copy ka panna paDa hua tha. us par teen bhuni machhliyan rakhi huin theen. kaghaz par ek kone mein thoDa sa pisa namak rakha tha. bitanu ne puchha, ‘khaoge panDit?’
mainne kaha, ‘chhiः tum log papi ho. ’
omaprkash hansne laga. usne kaha, ‘achchha panDit ji hum log to papi hain hi par machhli to aaj aapko bhi khani paDegi. nahin to main balgovinn master ko bata dunga ki unko Dhela tumne mara tha. ’
main chaunk gaya. ‘iska matlab unko Dhela tum logo ne mara tha. ’ mainne kaha.
‘to kya hua! hum do hain aur tum akele. do ki baat mein zyada dam hota hai. ’ ye bitanu tha.
uske do vale tark se main gaDbaDa gaya. phir bhi mainne kaha, ‘main ye bhi bataunga ki tum donon yahan ye sab karte ho. ’
bitanu bola, ‘dekh be panDit, ja bata de. main to pahle se hi school nahin aata, tera master mera kya ukhaDega!’
donon tan kar khaDe ho gaye. mujhmen wo himmat nahin bachi ki main un donon ki shikayat karne ke bare mein sochta. donon mujhse zyada takatvar. aur shikayat karke bhi kya hoga, sahi baat hai ki bitanu to pahle se hi school chhoD chuka hai aur phir pita ne mujhe bhi to school aane se mana kiya hai. pita puchhenge ki tum vahan kya kar rahe the to main kya javab dunga! ab bacha omaprkash, wo to school bhi jata hai, upar se mujhse upar ki kaksha mein paDhta hai. agar usne meri shikayat kar di to. . .
to mainne kaha, ‘dekho tum log mere bare mein kuch mat batana. main bhi tum donon ke bare mein kuch nahin bataunga. ’
bitanu bola, ‘ham to batayenge. ’ shayad wo mere Dar ko bhaanp gaya tha.
main bahut der tak na nukur karta raha. ve donon mujhe dhamkate rahe.
akhiraka mainne minminate hue kaha, ‘achchha thoDi si do. achchhi nahin lagegi to nahin khaunga. ’
omaprkash ne machhli ka ek tukDa nikala, usmen namak chhuvaya aur mere munh mein Daal diya. mujhe ubkai si i. ankhon mein ansu aane ko hue, par main ubkai aur ansu donon pi gaya. der tak wo tukDa mere munh mein vaise ka vaise hi paDa raha. phir uska namak mere munh mein ghula. usmen ek ajib si mahak thi. mere roen sann bhaav se khaDe ho gaye jaise kisi anpekshait ka intzaar kar rahe hon. phir machhli ka tukDa mere munh mein bikhar gaya. main dam sadhe use mahsus karne ki koshish kar raha tha. tukDa aur ghula. thoDa aur. aur. phir mainne usse ek tukDa aur manga.
bitanu bola, ‘shabas panDit, maja aaya n!’
main hansne laga. iske baad main bhi unka sajhidar ho gaya.
agle kai dinon tak main roz maidan jane ka Dibba lekar vahan pahunchta raha. omaprkash apne saath machhli phansne vali katiya le kar aata. katiya chaar paanch meter lambe taant ke taar ki bani hoti, jiske ek chhor par wo vahin chhupai gai baans ki tahni laga deta. dusre chhor par ek patla sa lohe ka taranuma bansi lagi hoti jiska agla hissa hook ki tarah muDa hota. wo vahin talab ke kinare ki nami se kenchue ikattha karta aur hook mein kenchue phansa deta. wo kai kai katiya lagakar school chala jata. jab intarval hota to wo talab ki taraf lapakta. main pahle se hi vahan pahuncha hota.
vahin par mainne pahli baar anDe khaye. biDi ka sutta mara. phir ek din amma ne kaha ki main pita ke school ke liye nikal jane ke baad school chala jaya karun. ismen koi diqqat nahin thi kyonki pita ka school door tha aur wo pahle hi nikal jate the. mera school ghar ke samne hi tha so main aram se baad mein ja sakta tha. amma ne zarur pita ki sahamti se hi aisa kiya hoga. amma na batati tab bhi unhen to misir master se pata chal hi jana tha.
kitna achchha hota ki school ghar se door hota. kitna achchha hota ki school ke misir master, balgovinn master aur pita ek dusre ko jante na hote. hum ghar mein bhi pitte aur school mein bhi. donon jaghon par hum sandigdh the aur hamein thonk pitkar achchha banane ka pavitra abhiyan chalaya ja raha tha.
main school jane laga to dhire dhire meri dosti omaprkash aur bitanu se baDhti gai. school mein mera vaqt omaprkash ke saath bitta aur intarval mein bitanu hum donon ka talab par intzaar karta kabhi machhli, kabhi chiDiya ke anDe, kabhi aalu kabhi kumudini ki jaD to kabhi arhar aur matar ki phaliyon ke saath.
omaprkash ke saath uski bahan bhi school aati thi. wo mujhe bahut sundar lagti thi. uske bayen gaal par chavanni barabar ek baDa sa massa tha. massa mujhe bahut achchha lagta tha aur mujhe uski taraf khinchta tha. mera man use chhune ka karta. main use der der tak chupke chupke niharta tha. mainne ek din omaprkash se kah hi diya,
‘om bhai, tumhari bahan mujhe bahut achchhi lagti hai. ’
usne kaha, ‘mujhe bhi tumhari didi bahut achchhi lagti hai. chalo badal lete hain. tum apni didi mujhe de do aur meri bahan le lo. ’
didi vahin baghal ke middle school mein athvin mein paDhti thi. wo na jane kahan pichhe dubki thi aur hamari baten sun rahi thi. didi achanak prakat hui aur iske pahle ki hum kuch samajh pate usne mere aur omaprkash ke siron ko pakaD kar aapas mein laDa diya. hum donon ki ankhon ke aage andhera chha gaya. didi ne hum donon ki khoob tabaDtoD Dhang se pitai ki. hum donon past hokar vahin paDe rahe aur didi ne ghar ja kar sab kuch bata diya.
ghar pahuncha to dadi DanDa liye mera intzaar kar rahi thi. khoob pitai hui. dusre din school mein bhi meri aur omaprkash ki jam kar pitai hui. kai dinon baad dadi ne pyaar se samjhaya ki uska kya jata! maan lo aisa ho jaye to babhan ki laDki pakar uski to izzat baDh jayegi par tumhare to pure khanadan ki naak kat jayegi ki tumhari bahan kisi sood bahri ke saath chali gai. are aisi baton par to gardan tak kat jati hain aur tu hai ki. . . kul ka kalank ban kar paida hua hai.
iske baad hum par school mein nazar rakhi jane lagi. ghar par lagatar sunne ko milta ki achchhe laDke sood bahri ki sangat nahin kiya karte. aisa karne se unka man ganda ho jata hai aur unke bhitar tamam gandi adten aa jati hain. school mein bhi misir master ki nigahon mein aane se bachna hota tha. so hamare milne ki ekmaatr jagah jangal tha.
omaprkash is beech bevajah pitne laga tha. kai baar misir master uske naam ko lekar uski fazihat karte. ‘sasur andhere ki aulad naam om parkash!’ phir ek din use misir master ne kuen par jane aur rassi balti chhune se mana kar diya. omaprkash nahin mana to misir master ne use zamin par girakar laton aur DanDon se khoob pita. omaprkash ki samajh mein jab kuch nahi aaya to usne misir master ki kalai mein daant gaDa diya. misir master ne chilla kar use chhoD diya. omaprkash thoDa door gaya aur vahan se iint ka ek tukDa utha kar misir master ke sir par de mara. misir master sir thaam kar baith gaye to omaprkash ne unhen maan ki gali di aur ghar bhaag gaya. dusre din omaprkash ke ghar vale aakar saream misir master ki maan bahan kar gaye. iske baad omaprkash aur uski bahan donon ka school aana band ho gaya.
pandrah bees din baad ek din kuen mein mara hua kutta tairta dikha. do din tak lagatar kuen ka pani nikalvaya gaya. misir master ne ghar se lakar gangajal Dala par das din baad hi kuen mein mara hua bachhDa paya gaya. iske baad kuen mein ek badbu phail gai jo baDhti hi gai. iske bavjud chhote chhote bachche jate aur usmen iint ke tukDe uchhalte to ek chhapak ki avaz hoti aur pani ke kuch chhinte bahar aa jate. pani mein kiDe paD gaye the. kai baar pani ke saath kiDe bhi bahar aa jate. baad mein is kuen mein kuDa phenka jane laga. dhire dhire pani ghayab ho gaya aur bajabjata hua kichaD bhar bacha jismen ghinaune kiDe rengte jonken kai baar upar tak chali atin aur kuen ki jagat par phisalti dikhain detin. kuen ke upar se jo hava guzarti usmen ek zahrili badbu phail jati. ek ek kar kuen mein kai aise bachche pae gaye jinki naal tak nahin kati gai thi. inke bare mein pata hi tab chalta hai jab kuen ke upar kauvve ya giddh manDrane lagte hain.
omaprkash ke jane ke baad bitanu ne bhi talab par aana band kar diya. main akela paD gaya hoon. misir master lagbhag roz mujhe pitte hain kyonki unhen lagta hai ki omaprkash aur uske ghar valon se gali unhonne meri vajah se khai. main akela paD gaya hoon par is beech mujhe varjit ka chaska lag chuka hai. main peD par nahin chaDh pata. main machhli nahin phansa pata. biDi piye bhi bahut din ho gaye hain par main jangal mein akele hi bhatka karta hoon. pure jangal ka svaad mujhe pata hai. machhli na sahi imli, amola, karaunda, kaitha, jharberi ya baDhhal ki phulauriyon ka svaad munh mein pani la deta hai. jab imli mein phaliyan nahin lagi hoti hain to kai baar main imli ki naram naveli pattiyan khata hoon. unmen bhi imli jaisa taza khattapan hota hai. mainne ek ghaas bhi khoj nikali hai jo talab ke kinare ki nam jaghon par panapti hai. iski guchchhedar pattiyan imli se bhi zyada khatti hoti hain. unko khane se kai baar daant itne khatte ho jate hain ki roti chabana tak mushkil hota hai. par sabse zyada fida main shahtuton par hua hoon. talab ke kinare kinare shahtuton ka ek jangal jaisa hai. yahan shahtuton ke bisiyon peD uge hain jab un par phal aate hain to ye phal itne hare hote hain ki unhen pattiyon se alag dekh pana bhi mushkil hota hai. phir un phalon par ek lali utarne lagti hai. udhar lali dikhi nahin ki mere munh mein pani aana shuru ho jata hai aur kale phalon ke dikhai dete hi main us par besabri se toot paDta hoon chhote chhote phal jeebh ke zara sa dabav par hi munh mein ghul jate hain khate khate jeebh laal ho jati hai. kai baar kapDon par bhi daagh paD jate hain jinhen bitanu ki mai chhuDati hai.
aise hi dhire dhire tumhein lagne lagta hai ki tumhari duniya ke samanantar smritiyon ki bhi ek jiti jagti duniya hai jahan tum bitanu, omaprkash aur machhaliyon ki talash mein bhatakte ho. tum mante ho ki vahan ek sachmuch ka school hai jismen misir master or balgovinn master paDhate hain aur jahan se tum bhage hue ho. tumhein pata nahin ki kuen ki durgandh shahtuton mein sama chuki hai isiliye tumhein abhi bhi lagta hai ki shahtut duniya ke sabse svadisht phal hain.
tum mahangar mein rahte ho. mahangar mein ajkal tapti hui garmi paD rahi hai. tum kai dinon se ek babu se milne ja rahe ho jisne tumhara kaam latka rakha hai. dhoop aur garmi bardasht nahin hoti to jaldi pahunchne ke liye apni jeb sahlate hue tum rickshaw karte ho. tum omaprkash ki yaad mein itne Dube hue ho ki tumhein pata bhi nahin chal pata ki jis rikshe par tum baithe hue ho use omaprkash chala raha hai. rikshe se utar kar tum office jate ho to tumhein pata chalta hai ki jis babu ne tumhara kaam rok rakha hai uska tabadla ho gaya hai aur uski jagah par ashok kumar nirmal baitha hua hai. tum use dekh kar khush ho jate ho par wo tumhari yadon mein itna Duba hua hai ki tumhein pahchan hi nahin pata. tumhe lagta hai ki ye duniya ek jangal hai. tab tum talab khojne lagte ho. tumhein talab nahin milta, tumhein ek nal milta hai. nal ka pani itna garm hai ki tumhare hathon par chhale paD jate hain aur tumhara chehra shahtuton ki tarah kala paD jata hai. tumhein shahtuton ki yaad aati hai. tabhi tum dekhte ho ki nal ka pani jahan ja kar ikattha hota hai uske baghal mein shahtut ka ek peD hai jo phalon se lada hua hai. tum uske nazdik jate ho to peD tumhein apne ghere mein le leta hai aur tumhein chhaant chhantakar apne sabse mithe phal dene lagta hai. ab tum baDe ho gaye ho. tum phalon ko ghar laoge, unhen dhooge tab khaoge par tum aisa nahin karte. pata nahin ek bachpana tumhare bhitar bacha hua hai ya peD hi besabr ho uthta hai ki wo tumhari anjuri shahtuton se bhar deta hai. tum ek saath sare shahtut apne munh mein bhar lete ho. achanak tumhein zor ki ubkai aati hai. tumhein lagta hai ki tumne apne munh mein roendar gujaguje kiDe bhar liye hain. peD tumhara matha sahlana chahta hai par tum bahar bhagte ho. tum phir se nal par jaoge aur kulla karoge aur aaj ke baad shahtuton ki taraf palatkar bhi nahin dekhoge. aage ho sakta hai ki tum kisi aise jangal mein ja karbas jao jahan shahtut kya machhli, mehandi, imli, baDhhal ya kamal jaisi chizen sapnon mein bhi tum tak na pahunch saken.
main isi baat se to Darta hoon.
tumhare paas bahut sari smritiyan hain. tum smritiyon mein sir se pair tak Dube hue ho par ye smritiyan tumne khoj khoj kar ikattha ki hain so tum nahin jante ki inmen se kitni chizen vastav mein tumhare saath ghati theen aur kitni dusron ki smriti ka hissa hain! ya ve kaun si ghatnayen hain jo vastav mein kabhi ghati hi nahin, kisi ke bhi jivan mein par turant hi tumhein khayal aata hai ki tum dave ke saath kaise kah sakte ho ki ye ghatnayen kisi ki bhi smriti ka hissa nahin hain yaki kisi ke bhi jivan mein sachmuch nahin ghatin. kya tum duniya bhar ke logon ko jante ho?
to vahan ek primary school hai jismen main paDhta hoon school ki imarat mein sirf teen kamre aur ek baramada hai. baramada samne hai. baramde ke pichhe ek kamra hai. baramde ke aaju baju do kamre hain jo samne ki taraf ek anDakar ubhaar liye hue hain. in teen kamron mein se sirf ek mein darvaza hai aur ek khiDki bhi, jiski chaukhat koi ukhaaD le gaya hai. is kamre ki dusri khiDakiyon mein iinten chunva di gai hain. baqi donon kamron ki khiDkiyan itni baDi ho gai hain ki sochna paDta hai ki un kamron mein darvaze se jaya jaye ya khiDakiyon se. jis ek kamre mein darvaza hai aur jiski ek khiDki ki chaukhat koi ukhaaD le gaya hai, usmen sirf lohe ki chaukhanedar pattiyan bhar bachi hain. in pattiyon ke bahar se main is kamre mein bahut der tak jhankta rahta hoon. is kamre mein do sabut kursiyan hain, ek mez, teen lakDi ki almariyan, ek jhula kursi, ek kaath ka ghoDa, ek saraksiDhi, kuch nai purani kitaben, do zang khaye bakse aur unke upar betartib Dhang se rakhi hui pariksha vali kaupiyan. is kamre mein hamesha tala band rahta hai. ye subah ke das saDhe das baje khulta hai aur iske bhitar ki donon kursiyan nikali jati hain. ek misir master ke liye aur ek balgovinn master ke liye. shaam ko phir tala khulta hai—donon kursiyan phir se isi kamre mein rakh di jati hain aur phir se tala band kar diya jata hai. ek baar kai dinon tak is kamre ki chabi mere paas bhi rahi thi par mujhe khiDki se jhankna zyada achchha lagta hai.
school, school mein nahin school ke pashchim ke baagh mein chalta hai. aam ke peDon ki hari chhaya mein. peD khoob baDe baDe hain isliye peD hamari pahunch mein nahin hain. bus unki chhaya hi hamari pahunch mein hai. school chalte chalte baagh ki satah chikni aur samtal ho gai hai. isi baagh mein koi paanch peD chhaant liye jate hain aur un paanch peDon ke niche paanch kakshayen chalti hain. kakshaon ka munh peD ki taraf hota hai jahan peD ki baghal mein ek kursi aa jati hai. misir master aur balgovinn master jab ek kaksha se dusri kaksha mein jate hain to unke saath unki kursiyan bhi jati hain. master pahle pahunch jate hain aur khaDe rahte hain phir pichhe pichhe kursi pahunchti hai. master kursi par baith jate hain. hum sab bachche bhi baith jate hain. hum zamin par baithte hain. hum apne baithne ke liye ghar se boriyan le kar aate hain aur lautte samay bori apne jhole mein bhar lete hain. jhola bhi bori se bana hota hai aur kai baar kai laDkon ke kapDe bhi. ye boriyan jaDe mein hamare dohre kaam aati hain school se lautte hue hum ismen aag tapne ke liye sukhi pattiyan bator kar ghar le jate hain.
school ke purab ki taraf ek purana sa kuan hai. jab school khula rahta hai to uski jagat par ek rassi balti rakhi rahti hai. hamein khoob pyaas lagti hai. hum jitna pani pite hain usse zyada girate hain. kuen ka pani khoob upar tak hai. hum ise jadui kuan kahte hain. jaise jaise garmi baDhti hai iska pani thanDa hota chala jata hai aur jaise jaise jaDa aata hai iska pani garm hota chala aata hai. kuen ke purab mein mehandi ke kai jhaaD the jin par hum jhula jhulte the. ek baar main is par jhool raha tha ki misir master aate dikhai paDe. main jaldi se utarne laga aur niche aa gira. misir master ne mujhe kai DanDe mare par main uth nahin paya. thoDi der mein mera pair aise sooj aaya jaise mujhe hathipanv ho gaya ho. misir master ne charpai mangvai aur mujhe ghar bhijva diya. hafte bhar baad jab main phir se school aaya to vahan mehandi ka ek bhi jhaaD nahin bacha tha. unki jagah par kuch chikhti hui khuntiyan bhar theen. tab bhi jab main udhar se guzarta hoon to kabhi syahi gir jati hai to kabhi qalam. kitna bhi DhunDho, vahan gum hui chizen dubara kabhi nahin milti. khuntiyon ke aage jane ki hamein manahi hai. aage jangal shuru ho jata hai.
school mein do hi master hain. ek misir master, ek balgovinn master. donon kurta pahante hain. balgovinn master ki tond bahut baDi hai. jab wo chalte hain to unki tond aage pichhe hoti hui bahut mazedar lagti hai. balgovinn master chhaDi lekar chalte hain par hamein marne ke liye unhen baans ki patli patli tahniyan pasand hain jo chamDe ko chumti hain to ek shaista si satak ki avaz hoti hai aur jism mein patli patli laal rekhayen ban jati hain jo thoDi der baad jism ke naqshe par ubhri laal pagDanDiyon si dikhai dene lagti hain balgovinn master in pagDanDiyon par bina chhaDi liye hi chalte hain.
misir master khoob kale hain aur kali kali munchhe rakhte hain. unka ghar school ke pashchim ke baagh ke pashchim mein hai. wo apni misirain ko khoob pitte hain. kai baar jab wo misirain ko peet rahe hote hain to unki chikhen hum tak pahunch jati hain. pitne ke drishya hum tak pahunch jate hain. jis din bhi aisa hota hai hum din bhar Dare rahte hain. kya hamara pitna misirain ko dikhta hoga to ve bhi aise hi Dar jati hongi? misir master ki mere pita se khoob jamti hai. mere pita bhi master hain subah mere pita misir master ke yahan jate hain to shaam ko misir master mere yahan aa jate hain. main pita se bhi Darta hoon aur misir master se bhi. misir master kaksha mein jab kabhi imtahan lete hain sare bachchon ki kaupiyan mujhse janchvate hain aur meri copy khu janchate hain. isse class mein mera rutba thoDa baDh jata hai aur main chahta hoon ki ye sthiti hamesha qayam rahe.
meri kaksha mein ek laDka hai ‘ashok kumar nirmal’. uska ghar ka naam bitanu hai. hum bhi use bitanu kahte hain aur apni syahiyan uske kapDe ya jhole par ponchh dete hain. wo shikayat karta hai to misir master hansne lagte hain. kahte hain ki ‘tu kyon rota hai be! teri mai jaise itne logon ka dhoti hai vaise hi tera bhi dho degi. ’ puri kaksha phisir phisir karne lagti hai aur bitanu ka chehra tamtama uthta hai. ab dhire dhire usne shikayat karni band kar di hai. hum uske saath badmashi karte hain to wo jalti ankhon se hamein dekhta hai aur na jane kya kya budbudane lagta hai! idhar uska budbudana baDhta ja raha hai par hum uski budbudahat ki ratti bhar bhi parvah nahin karte hain kyonki misir master aur kaksha ki bahusankhya hamare saath hoti hai. main apni kaksha mein paDhne mein sabse achchha hoon. mujhe adhiktar savalon ke javab aate hain. par ek din aisa hua ki misir master ne jo saval diye unmen se paanch mein se teen mujhe nahin aate the. pura dam lagakar bhi main ganait ke un savalon ko hal nahin kar paya. mujhe misir master se Dar laga. aise kisi bhi mauqe par misir master dusron ki apeksha mujhe zyada pitte the. kahte, sasur babhan ka laDka hokar tumhara ye haal hai. ’ ya ‘paDhoge nahin sasur tau ka nirmalva ki tarah gadha charaoge?’ laDakiyon ke liye kahte, ‘in sasurin ko, kya karna hai! ghar mein rahengi, chulha chauka karengi aur laDika janengi. ’ aisa koi bhi prsang puri kaksha par bhari guzarta hai. main ya jo bhi unke kop ka bhojan banta hai pit pitkar chaknachur ho jata hai aur dusron ke chehre bina pite hi saham jate hain laDkiyan pani pani ho jati hain. par bitanu kuch dusri tarah ka hai. uski ankhen laal ho jati hain aur vahan aag dahakne lagti hai. isiliye wo sabse zyada maar khata hai.
to us din isi bitanu ne paanch ke panchon savalon ke javab sahi sahi diye the aur main paanch mein se teen ka javab nahin de paya tha, par meri copy to misir master sabke baad mein janchate hain pahle to main hi baqi kaupiyan janchta hoon to us din mainne jaan bujhkar bitanu ke teen savalon ko ghalat kaat diya. meri copy misir master ne dekhi. teen saval to mainne kiye hi nahi the. sabke saath saath meri bhi pitai achchhe se hui balki meri kuch zyada hi achchhe se, kyonki babhan hone ki vajah se aur pita ke saath dostana sambandhon ki vajah se misir master mere prati kuch zyada hi zimmedari mahsus karte hain. to misir master ne mere badan ka bhugol badal diya. kahin nadiyan nikal ain to kahin chhote chhote pahaD. par itna jaise kam tha.
bitanu utha aur apni copy le kar misir master ke paas pahunch gaya. bola, ‘massab mere ye saval sahi hain, phir bhi rajakran ne ghalat kaat diya. ’
misir master ne use uphaas ke bhaav se dekha aur bole, ‘tau ab dhobi dhurra babhan mein ghalati nikalenge?’ phir pata nahin kya soch kar bole, ‘la kapi idhar la.
main to sach pahle se hi janta tha. misir master ne meri taraf dekha aur main machine ki tarah uth kar unke paas ja pahuncha. bus chaar DanDe ki saja mili par dusre din bitanu zyada pita kyonki ‘nirmal’ hone ke bavjud wo gande kapDe pahan kar aaya tha. us din ke baad se bitanu ne school aana chhoD diya. kaksha mein ek jagah khali ho gai aur mere bhitar bhi. mujhe laga ki agar us din mainne uske saval ghalat nahin kate hote to bitanu school nahin chhoDta, par jaldi hi mera bhram toot gaya.
hua ye ki misir master ke bete ki tilak thi. pita gaye hue the. main bhi unke saath gaya tha. khoob chahl pahal thi. achanak pata nahin kya sujha ki mainne bayen haath ki tarjani aur anguthe ko mila kar ek gol ghera banaya aur usmen dayen haath ki tarjani baar baar Dalne nikalne laga. main ye kaam puri tallinta se kar raha tha. do laDke mujhe dekh kar hans rahe the aur kuch ishare kar rahe the. pita ki nigah mujh par gai to unka chehra kas utha. unhonne mujhe bulaya, kas kar kaan umetha aur ghar jane ke liye kaha. main munh banata aur kaan sahlata ghar chala aaya.
pita raat mein ghar aaye tab tak main so gaya tha. unhonne mujhe bulane ke liye kaha to didi gai aur mujhe jaga lai. pita ne mujhe itni zor ka thappaD mara ki main zamin par lot gaya. iske baad pita ne kaha ki kal se school jana band. main bahut der tak zamin par vaise hi murde ki tarah paDa raha. phir didi mujhe uthane i. mainne uska haath jhatak diya. khu utha aur bistar par pahunch gaya. puri raat mujhe neend nahin i. main puri raat is bare mein sochta raha ki pita ne mujhe kyon mara! par main kisi natije par nahin pahunch paya. agle kai dinon tak school jana band hi raha. par main din mein do baar maidan jane ka Dibba uthata aur school ke purab taraf jangal mein pahunch jata. vahan baithe baithe main school ki taraf taka karta.
ek din main aise hi vahan chhupa baitha tha aur school ki taraf taak raha tha ki balgovinn master lota lekar andar aate dikhai paDe. balgovinn master thoDa sa andar aaye, ek jagah aaD talashi aur dhoti kholkar baith gaye. balgovinn master mujhe dekh na len is Dar se mein pichhe khisakta chala gaya. jab tak wo dhoti khol baithe rahe, Dar ke mare meri ghigghi bandhi rahi. wo uthne hi vale the ki ek baDa sa Dhela aakar unki peeth par paDa. balgovinn master hakabkakar aage rakhe lote par gir gaye. lote ka sara pani gir gaya. balgovinn master kankhate hue chillaye, ‘kaun hai sasur?’ kisi taraf se koi javab nahin aaya. main Dar ke mare zamin par let sa gaya. balgovinn master bahut der tak idhar udhar dekhte rahe, phir unhonne baghal se lasoDhe ki pattiyan toDi aur usse apna pichhvaDa saaf kiya, idhar udhar dekhte hue dhoti pahni aur bahar nikal gaye.
balgovinn master bahar nikal gaye to mujhe Dar laga. main uth kar khaDa ho gaya aur anayas hi charon taraf dekha. charon taraf peD, jhaDiyan, phool hi phool. aam, mahua, lasoDha, ber, karaunda, kaitha, semal, neem, babul, jangalajlebi, makoy, Dhithori, chilbil aur bhi na jane kya kya jinke main naam tak nahin janta. peDon ke upar ghani latayen phaili hui theen. itni ki kai peD dikh hi nahin rahe the, sirf latayen dikh rahi theen. kuch jaghon par latayen bhi nahin dikh rahi theen, sirf nile pile phool dikh rahe the.
mujhe sab kuch jadu jadu sa laga. mera Dar uDanchhu ho gaya. jaise kisi sammohan ki qaid mein main jangal ke bhitar ki taraf baDhne laga. andar ek talab tha jiske kinare kinare jalkumbhi phaili hui thi. usmen baigni rang ke guchchhedar phool khile hue the aur andar ki taraf kamal ke baDe baDe patte pani ki satah par hare dhabbon ki tarah tair rahe the aur charon taraf khoob kamal or kumudini ke phool khile hue the. mainne iske pahle sachmuch ka kamal nahin dekha tha. mere ghar ke osare mein darvaze ke upar teen baDi baDi tasviren tangi hui hain, un sabmen kamal ke phool hain. ek brahmaji ki tasvir hai jismen wo kamal ke phool par baithe hue hain, dusri sarasvati ki tasvir hai jismen unke ek haath mein kamal ka phool latka hua hai. aise hi ek kuber lakshmi ki tasvir hai jismen donon ek hathi par baithe hue hain aur hathi apni soonD se ek kamal ka phool toD raha hai. to mere dhyaan mein kamal ke phool se juDe jitne bhi prsang the sab devtaon se juDe hue the, isiliye jab mainne talab mein kamal khile dekhe to talab mujhe pavitra kism ka laga. mujhe laga ki raat mein zarur yahan pariyan utarti hongi. mera man hua ki main ek kamal ka phool toDun par kamal talab mein kafi andar khile hue the. talab gahra ho sakta tha aur mujhe tairna nahin aata.
tabhi mainne dekha ki ek taraf se dhuan uth raha hai. main dhire dhire vahan pahuncha to dekha ki omaprkash aur bitanu aag mein se kuch nikal rahe hain omaprkash mujhse ek kaksha aage panchavi mein paDhta hai. main un donon tak pahunchta uske pahle hi bitanu ne mujhe dekh liya aur uthkar khaDa ho gaya.
mujhe laga ki donon mujhe dekhkar sakapka se gaye. par bitanu ne kaha, ‘vahan kyon khaDe ho panDit? yahan aao. ’
main asmanjas mein raha! phir dhire dhire chal kar unke paas jakar khaDa ho gaya. samne ganait ki raf copy ka panna paDa hua tha. us par teen bhuni machhliyan rakhi huin theen. kaghaz par ek kone mein thoDa sa pisa namak rakha tha. bitanu ne puchha, ‘khaoge panDit?’
mainne kaha, ‘chhiः tum log papi ho. ’
omaprkash hansne laga. usne kaha, ‘achchha panDit ji hum log to papi hain hi par machhli to aaj aapko bhi khani paDegi. nahin to main balgovinn master ko bata dunga ki unko Dhela tumne mara tha. ’
main chaunk gaya. ‘iska matlab unko Dhela tum logo ne mara tha. ’ mainne kaha.
‘to kya hua! hum do hain aur tum akele. do ki baat mein zyada dam hota hai. ’ ye bitanu tha.
uske do vale tark se main gaDbaDa gaya. phir bhi mainne kaha, ‘main ye bhi bataunga ki tum donon yahan ye sab karte ho. ’
bitanu bola, ‘dekh be panDit, ja bata de. main to pahle se hi school nahin aata, tera master mera kya ukhaDega!’
donon tan kar khaDe ho gaye. mujhmen wo himmat nahin bachi ki main un donon ki shikayat karne ke bare mein sochta. donon mujhse zyada takatvar. aur shikayat karke bhi kya hoga, sahi baat hai ki bitanu to pahle se hi school chhoD chuka hai aur phir pita ne mujhe bhi to school aane se mana kiya hai. pita puchhenge ki tum vahan kya kar rahe the to main kya javab dunga! ab bacha omaprkash, wo to school bhi jata hai, upar se mujhse upar ki kaksha mein paDhta hai. agar usne meri shikayat kar di to. . .
to mainne kaha, ‘dekho tum log mere bare mein kuch mat batana. main bhi tum donon ke bare mein kuch nahin bataunga. ’
bitanu bola, ‘ham to batayenge. ’ shayad wo mere Dar ko bhaanp gaya tha.
main bahut der tak na nukur karta raha. ve donon mujhe dhamkate rahe.
akhiraka mainne minminate hue kaha, ‘achchha thoDi si do. achchhi nahin lagegi to nahin khaunga. ’
omaprkash ne machhli ka ek tukDa nikala, usmen namak chhuvaya aur mere munh mein Daal diya. mujhe ubkai si i. ankhon mein ansu aane ko hue, par main ubkai aur ansu donon pi gaya. der tak wo tukDa mere munh mein vaise ka vaise hi paDa raha. phir uska namak mere munh mein ghula. usmen ek ajib si mahak thi. mere roen sann bhaav se khaDe ho gaye jaise kisi anpekshait ka intzaar kar rahe hon. phir machhli ka tukDa mere munh mein bikhar gaya. main dam sadhe use mahsus karne ki koshish kar raha tha. tukDa aur ghula. thoDa aur. aur. phir mainne usse ek tukDa aur manga.
bitanu bola, ‘shabas panDit, maja aaya n!’
main hansne laga. iske baad main bhi unka sajhidar ho gaya.
agle kai dinon tak main roz maidan jane ka Dibba lekar vahan pahunchta raha. omaprkash apne saath machhli phansne vali katiya le kar aata. katiya chaar paanch meter lambe taant ke taar ki bani hoti, jiske ek chhor par wo vahin chhupai gai baans ki tahni laga deta. dusre chhor par ek patla sa lohe ka taranuma bansi lagi hoti jiska agla hissa hook ki tarah muDa hota. wo vahin talab ke kinare ki nami se kenchue ikattha karta aur hook mein kenchue phansa deta. wo kai kai katiya lagakar school chala jata. jab intarval hota to wo talab ki taraf lapakta. main pahle se hi vahan pahuncha hota.
vahin par mainne pahli baar anDe khaye. biDi ka sutta mara. phir ek din amma ne kaha ki main pita ke school ke liye nikal jane ke baad school chala jaya karun. ismen koi diqqat nahin thi kyonki pita ka school door tha aur wo pahle hi nikal jate the. mera school ghar ke samne hi tha so main aram se baad mein ja sakta tha. amma ne zarur pita ki sahamti se hi aisa kiya hoga. amma na batati tab bhi unhen to misir master se pata chal hi jana tha.
kitna achchha hota ki school ghar se door hota. kitna achchha hota ki school ke misir master, balgovinn master aur pita ek dusre ko jante na hote. hum ghar mein bhi pitte aur school mein bhi. donon jaghon par hum sandigdh the aur hamein thonk pitkar achchha banane ka pavitra abhiyan chalaya ja raha tha.
main school jane laga to dhire dhire meri dosti omaprkash aur bitanu se baDhti gai. school mein mera vaqt omaprkash ke saath bitta aur intarval mein bitanu hum donon ka talab par intzaar karta kabhi machhli, kabhi chiDiya ke anDe, kabhi aalu kabhi kumudini ki jaD to kabhi arhar aur matar ki phaliyon ke saath.
omaprkash ke saath uski bahan bhi school aati thi. wo mujhe bahut sundar lagti thi. uske bayen gaal par chavanni barabar ek baDa sa massa tha. massa mujhe bahut achchha lagta tha aur mujhe uski taraf khinchta tha. mera man use chhune ka karta. main use der der tak chupke chupke niharta tha. mainne ek din omaprkash se kah hi diya,
‘om bhai, tumhari bahan mujhe bahut achchhi lagti hai. ’
usne kaha, ‘mujhe bhi tumhari didi bahut achchhi lagti hai. chalo badal lete hain. tum apni didi mujhe de do aur meri bahan le lo. ’
didi vahin baghal ke middle school mein athvin mein paDhti thi. wo na jane kahan pichhe dubki thi aur hamari baten sun rahi thi. didi achanak prakat hui aur iske pahle ki hum kuch samajh pate usne mere aur omaprkash ke siron ko pakaD kar aapas mein laDa diya. hum donon ki ankhon ke aage andhera chha gaya. didi ne hum donon ki khoob tabaDtoD Dhang se pitai ki. hum donon past hokar vahin paDe rahe aur didi ne ghar ja kar sab kuch bata diya.
ghar pahuncha to dadi DanDa liye mera intzaar kar rahi thi. khoob pitai hui. dusre din school mein bhi meri aur omaprkash ki jam kar pitai hui. kai dinon baad dadi ne pyaar se samjhaya ki uska kya jata! maan lo aisa ho jaye to babhan ki laDki pakar uski to izzat baDh jayegi par tumhare to pure khanadan ki naak kat jayegi ki tumhari bahan kisi sood bahri ke saath chali gai. are aisi baton par to gardan tak kat jati hain aur tu hai ki. . . kul ka kalank ban kar paida hua hai.
iske baad hum par school mein nazar rakhi jane lagi. ghar par lagatar sunne ko milta ki achchhe laDke sood bahri ki sangat nahin kiya karte. aisa karne se unka man ganda ho jata hai aur unke bhitar tamam gandi adten aa jati hain. school mein bhi misir master ki nigahon mein aane se bachna hota tha. so hamare milne ki ekmaatr jagah jangal tha.
omaprkash is beech bevajah pitne laga tha. kai baar misir master uske naam ko lekar uski fazihat karte. ‘sasur andhere ki aulad naam om parkash!’ phir ek din use misir master ne kuen par jane aur rassi balti chhune se mana kar diya. omaprkash nahin mana to misir master ne use zamin par girakar laton aur DanDon se khoob pita. omaprkash ki samajh mein jab kuch nahi aaya to usne misir master ki kalai mein daant gaDa diya. misir master ne chilla kar use chhoD diya. omaprkash thoDa door gaya aur vahan se iint ka ek tukDa utha kar misir master ke sir par de mara. misir master sir thaam kar baith gaye to omaprkash ne unhen maan ki gali di aur ghar bhaag gaya. dusre din omaprkash ke ghar vale aakar saream misir master ki maan bahan kar gaye. iske baad omaprkash aur uski bahan donon ka school aana band ho gaya.
pandrah bees din baad ek din kuen mein mara hua kutta tairta dikha. do din tak lagatar kuen ka pani nikalvaya gaya. misir master ne ghar se lakar gangajal Dala par das din baad hi kuen mein mara hua bachhDa paya gaya. iske baad kuen mein ek badbu phail gai jo baDhti hi gai. iske bavjud chhote chhote bachche jate aur usmen iint ke tukDe uchhalte to ek chhapak ki avaz hoti aur pani ke kuch chhinte bahar aa jate. pani mein kiDe paD gaye the. kai baar pani ke saath kiDe bhi bahar aa jate. baad mein is kuen mein kuDa phenka jane laga. dhire dhire pani ghayab ho gaya aur bajabjata hua kichaD bhar bacha jismen ghinaune kiDe rengte jonken kai baar upar tak chali atin aur kuen ki jagat par phisalti dikhain detin. kuen ke upar se jo hava guzarti usmen ek zahrili badbu phail jati. ek ek kar kuen mein kai aise bachche pae gaye jinki naal tak nahin kati gai thi. inke bare mein pata hi tab chalta hai jab kuen ke upar kauvve ya giddh manDrane lagte hain.
omaprkash ke jane ke baad bitanu ne bhi talab par aana band kar diya. main akela paD gaya hoon. misir master lagbhag roz mujhe pitte hain kyonki unhen lagta hai ki omaprkash aur uske ghar valon se gali unhonne meri vajah se khai. main akela paD gaya hoon par is beech mujhe varjit ka chaska lag chuka hai. main peD par nahin chaDh pata. main machhli nahin phansa pata. biDi piye bhi bahut din ho gaye hain par main jangal mein akele hi bhatka karta hoon. pure jangal ka svaad mujhe pata hai. machhli na sahi imli, amola, karaunda, kaitha, jharberi ya baDhhal ki phulauriyon ka svaad munh mein pani la deta hai. jab imli mein phaliyan nahin lagi hoti hain to kai baar main imli ki naram naveli pattiyan khata hoon. unmen bhi imli jaisa taza khattapan hota hai. mainne ek ghaas bhi khoj nikali hai jo talab ke kinare ki nam jaghon par panapti hai. iski guchchhedar pattiyan imli se bhi zyada khatti hoti hain. unko khane se kai baar daant itne khatte ho jate hain ki roti chabana tak mushkil hota hai. par sabse zyada fida main shahtuton par hua hoon. talab ke kinare kinare shahtuton ka ek jangal jaisa hai. yahan shahtuton ke bisiyon peD uge hain jab un par phal aate hain to ye phal itne hare hote hain ki unhen pattiyon se alag dekh pana bhi mushkil hota hai. phir un phalon par ek lali utarne lagti hai. udhar lali dikhi nahin ki mere munh mein pani aana shuru ho jata hai aur kale phalon ke dikhai dete hi main us par besabri se toot paDta hoon chhote chhote phal jeebh ke zara sa dabav par hi munh mein ghul jate hain khate khate jeebh laal ho jati hai. kai baar kapDon par bhi daagh paD jate hain jinhen bitanu ki mai chhuDati hai.
aise hi dhire dhire tumhein lagne lagta hai ki tumhari duniya ke samanantar smritiyon ki bhi ek jiti jagti duniya hai jahan tum bitanu, omaprkash aur machhaliyon ki talash mein bhatakte ho. tum mante ho ki vahan ek sachmuch ka school hai jismen misir master or balgovinn master paDhate hain aur jahan se tum bhage hue ho. tumhein pata nahin ki kuen ki durgandh shahtuton mein sama chuki hai isiliye tumhein abhi bhi lagta hai ki shahtut duniya ke sabse svadisht phal hain.
tum mahangar mein rahte ho. mahangar mein ajkal tapti hui garmi paD rahi hai. tum kai dinon se ek babu se milne ja rahe ho jisne tumhara kaam latka rakha hai. dhoop aur garmi bardasht nahin hoti to jaldi pahunchne ke liye apni jeb sahlate hue tum rickshaw karte ho. tum omaprkash ki yaad mein itne Dube hue ho ki tumhein pata bhi nahin chal pata ki jis rikshe par tum baithe hue ho use omaprkash chala raha hai. rikshe se utar kar tum office jate ho to tumhein pata chalta hai ki jis babu ne tumhara kaam rok rakha hai uska tabadla ho gaya hai aur uski jagah par ashok kumar nirmal baitha hua hai. tum use dekh kar khush ho jate ho par wo tumhari yadon mein itna Duba hua hai ki tumhein pahchan hi nahin pata. tumhe lagta hai ki ye duniya ek jangal hai. tab tum talab khojne lagte ho. tumhein talab nahin milta, tumhein ek nal milta hai. nal ka pani itna garm hai ki tumhare hathon par chhale paD jate hain aur tumhara chehra shahtuton ki tarah kala paD jata hai. tumhein shahtuton ki yaad aati hai. tabhi tum dekhte ho ki nal ka pani jahan ja kar ikattha hota hai uske baghal mein shahtut ka ek peD hai jo phalon se lada hua hai. tum uske nazdik jate ho to peD tumhein apne ghere mein le leta hai aur tumhein chhaant chhantakar apne sabse mithe phal dene lagta hai. ab tum baDe ho gaye ho. tum phalon ko ghar laoge, unhen dhooge tab khaoge par tum aisa nahin karte. pata nahin ek bachpana tumhare bhitar bacha hua hai ya peD hi besabr ho uthta hai ki wo tumhari anjuri shahtuton se bhar deta hai. tum ek saath sare shahtut apne munh mein bhar lete ho. achanak tumhein zor ki ubkai aati hai. tumhein lagta hai ki tumne apne munh mein roendar gujaguje kiDe bhar liye hain. peD tumhara matha sahlana chahta hai par tum bahar bhagte ho. tum phir se nal par jaoge aur kulla karoge aur aaj ke baad shahtuton ki taraf palatkar bhi nahin dekhoge. aage ho sakta hai ki tum kisi aise jangal mein ja karbas jao jahan shahtut kya machhli, mehandi, imli, baDhhal ya kamal jaisi chizen sapnon mein bhi tum tak na pahunch saken.
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।
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