Font by Mehr Nastaliq Web

तीन बहनें

teen bahnen

येनो हैलतई

येनो हैलतई

तीन बहनें

येनो हैलतई

और अधिकयेनो हैलतई

    तुंदेर्लकि बहनें गिनती में तीन थीं। उनमें से दो इज़्ज़तदार थी, पर तीसरी थी। इज़्ज़तदार लड़कियों के नाम थे मरिश्का और योलान—जो इज़्ज़तदार नहीं थी वह थी पुत्यि।

    पुत्यि कोई अभिनेत्री भी थी—बस एक तरह की तमाशे वाली थी। वह अनैतिक जीवन बिताती थी, क्योंकि उसका एक मित्र था (निस्संदेह सिर्फ़ एक) जो बहुत अमीर था और उसे रखैल की तरह रखता था। उसने उसके लिए एक बहुत बड़ा घर सजवाया था, उस पर रुपए और हीरे-जवाहरात बरसाता था, और उसके साज-सिंगार के लिए जी खोलकर ख़र्च करता था।

    मरिश्का और योलान पुत्यि के साथ रहती थीं। पुत्यि उन्हें कपड़े, गहने, हैट और रुपए दिया करती। क्योंकि पुत्यि भली बहन थी और उनकी इज़्ज़तदारी को ऊँची नज़र से देखती थी। मरिश्का और योलान को भी इस बात का बड़ा गर्व था कि वे इज़्ज़तदार हैं और उन्हें अपने रहने के लिए, अपनी रेशमी जुर्राबों के लिए, पंखदार हैटों और पेटेंट लैदर के जूतों के लिए बदले में कुछ नहीं देना पड़ता है।

    इसके अलावा मरिश्का के सिर ऊँचा करके चलने की एक ख़ास वजह थी। वह टीचर बनना चाहती थी। सच तो यह है कि वह डिप्लोमा ले चुकी थी और उसे उम्मीद थी कि किसी भी दिन नौकरी मिल जाएगी, पर जाने क्यों उसमें देर होती जा रही थी। हालाँकि पुत्यि के मित्र ज़मींदार साहब कृपापूर्वक उसकी तरफ़दारी कर रहे थे, यहाँ तक कि वे इस सम्बन्ध में एल्डरमैनों और काउन्सिलरों से ही नहीं, ख़ुद मेयर साहब से भी मिल चुके थे।

    इसके बरक्स योलान दिवा-स्वप्नों में खोई रहने वाली लड़की थी। उसके सपनों का केंद्र था विवाह। इज़्ज़त वाली सचमुच की शादी, जैसी हर संभ्रांत मध्यवर्ग की कुमारियों की किस्मत में होती है। तीन कमरों वाला फ्लैट, अपने हाथों रसोई और महरी से कहा-सुनी।

    आह, आह, और फिर आह! सपने उसे आविष्ट कर लेते। उसके अस्तित्व का एकमात्र लक्ष्य यही था। वह सतृष्ण नेत्रों से उस दिन की बाट देखती रहती, जब पुरुष, पति-परमेश्वर आकर उसका उद्धार करेगा।

    इस प्रकार वे बाट देखती रहतीं, तीनों की तीनों। मरिश्का अपने नियुक्ति पत्र की, योलान अपने पति की, और पुत्यि अपनी दोनों बहनों के सपने सच होने की।

    एक दिन मरिश्का ख़ुशी से दमकती घर आई।

    “ओह पुत्यि” वह बोली, “अब की लगता है कि मुझे आख़िरकार नौकरी मिल ही जाएगी। जिस आदमी के हाथ में मेरी नौकरी है, उसने मुझे आज शाम को मिलने के लिए बुलवाया है।”

    “चलो, आख़िर यह दिन तो आया!” पुत्यि ने उछलकर कहा।

    “खैर, तुम्हारा सितारा तो ऊँचा जा रहा है।” योलान बोली।

    और फिर एक आह भरकर जोड़ा, “लेकिन मेरा सितारा जाने कहाँ जा छिपा है?”

    इस पर वे सोच में पड़ गईं।

    ‘‘मेरा ख़याल है” पुत्यि बोली, “अब मुझे हाथ डालना पड़ेगा। तुम ख़ुद तो कभी कोई पति ख़ोज नहीं पाओगी, इसलिए अब तुम्हारे लिए पति मैं ख़ोजने वाली हूँ।”

    “वाह-वाह पुत्यि”, योलान ने उमँगते हुए कहा, “तुम अगर एक बार ठान लो तो क्या नहीं कर सकतीं।’’

    पुत्यि विह्वल भाव से उसे निहारने लगी।

    “हम भी कितनी मूरख हैं कि पहले कभी इस बात का ध्यान ही आया। तुम-जैसी बेचारी तो ज़िंदगी-भर अपने राजकुमार की बाट देखती बैठी रह जाएगी। दुनिया में तो रुपये का राज है बहन, और क्वाँरे जवान तुम्हारी तरफ़ आँख नहीं उठाते; क्योंकि वे सोचते हैं कि तुम्हारे पास एक कौड़ी भी नहीं है। पर यह उनकी भूल है, क्योंकि मैंने अभी-अभी तय किया है कि मैं तुम्हारे दहेज के लिए बीस हज़ार रुपए दूँगी।”

    योलान ख़ुशी के मारे भौंचक रह गई। आख़िरकार वह अस्फुट स्वर में बोली, “बीस हज़ार रुपए!”

    मरिश्का ने भरे हुए गले से कहा, “दुनिया में तुम-सी बहन और किसी की होगी।”

    पुत्यि बोली, “खैर, जो कहो, मैं अच्छी लड़की तो ज़रूर हूँ। मेरे पास कुल बीस ही हज़ार रुपये हैं, पर वे मैं तुम्हें दे दूँगी।”

    खेल शुरू होने में थोड़ी-सी देर थी कि मरिश्का उस आदमी से मिलकर लौटी जिसके हाथ में उसकी नौकरी थी। वह उदास दिखती थी।

    “कुछ गड़बड़ है क्या?” पुत्यि ने हमदर्दी से पूछा।

    “ऐं, हाँ, यही समझो!” मरिश्का ने कहा।

    “बात क्या है?”

    “अरे, कुछ नहीं...असल में सब-कुछ तय हो चुका है और अब मुझे फ़ौरन नौकरी मिल सकती है। पर बुड्ढे ने साफ़-साफ़ कह दिया है कि वह मुझे यों ही नौकरी नहीं देगा।”

    “तो क्या रुपए माँगता है?”

    “नहीं भई। वह...लगता है मैं उसे जँच गई हूँ... और...”

    “समझी।”

    पुत्यि सोचने लगी। और योलान भी। मरिश्का चुप रही। कुछ देर रुककर पुत्यि ने पूछा—

    “तुमने क्या जवाब दिया?”

    “मैं क्या कहती?” मरिश्का भड़क उठी। बिगड़कर बोली, “तुम क्या समझती हो मैं ऐसे आदमी को मुँह लगाऊँगी? तुम्हारा क्या ख़याल है मैं कभी ऐसा कर सकती हूँ? तुम तो मेरे उसूल जानती हो...”

    पुत्यि घबरा उठी।

    “भगवान के लिए मुझे ग़लत मत समझो। मैं जानती हूँ तुम इज़्ज़तदार औरत हो...फिर भी... ख़ैर यह बताओ आख़िर में बात ख़त्म कैसे हुई?”

    “मैं पीठ फेरकर उसके दफ़्तर से निकल आई। मैंने साफ़ कह दिया कि अपनी नौकरी अपने पास धर रखो, मैं मर जाऊँगी पर लाज पर आँच आने दूँगी।”

    योलान ने अपनी सहमति प्रकट की। बोली, “तुमने बिलकुल ठीक किया।”

    “सोलहों आने” पुत्यि ने साथ दिया, “और फिर वह? उसने क्या कहा?”

    बोला, “तुम तो बेवक़ूफ़ हो। ज़रा सोचकर तो देखो, तुम्हारा सारा भविष्य इसी पर टिका है, और मैं तुम्हारी मदद करना चाहता हूँ। बोला, कल फिर आकर मुझसे मिल लेना। पर मैंने कहा, मैं आपके दफ़्तर का मुँह भी देखूँगी और फूट-फूटकर रो पड़ी। पर लौटते समय मैं रास्ते में सोचने लगी कि कितना बढ़िया मौक़ा हाथ से निकला जा रहा है...तुम्हारा क्या ख़याल है?”

    “हाँ, सो तो है”, योलान ने कहा।

    “सोलहों आने” पुत्यि ने कहा।

    “मेरे मन में आया कि शायद कोई रास्ता निकल आए...”

    “कैसा रास्ता?” पुत्यि ने प्रश्न किया।

    “असल में मैंने सोचा कि अगर कोई जाकर उससे मिले और उसे समझा दे कि मैं कोई उस तरह की लड़की नहीं हूँ, जो ऐसे-वैसे काम करे। अगर कोई जाकर उससे अपील कर सकता कि कम-से-कम एक बार वह सज्जन बन जाए और अपनी कुर्सी का नाजाएज़ फ़ायदा उठाए...”

    “सो तो ठीक है, पर जाएगा कौन?” योलान ने पूछा।

    “पुत्यि कैसी रहेगी...इसका नाम है, बातूनी भी है और लोगों को बस में करना भी जानती है, इसलिए...” मरिश्का ने कुछ हिचकिचाते हुए कहा।

    पुत्यि पीली पड़ गई।

    “तुम सोचती हो मुझे जाना चाहिए?”

    मरिश्का ने हिम्मत बाँधी।

    “क्यों नहीं पुत्यि? यह कोई ऐसा बड़ा त्याग थोड़े ही है—अपनी बहन के लिए क्या इतना भी नहीं कर सकती? मैं शर्त लगाकर कह सकती हूँ कि तुम्हारे जाकर कहने भर की देर है, और मुझे नौकरी मिल जाएगी।”

    पुत्यि ने योलान की ओर देखा, मानो उससे प्रतिवाद की आशा हो। लेकिन योलान बोली—“सच पुत्यि, तुम कितनी अच्छी हो...तुमने मेरा इंतज़ाम तो कर ही दिया है, मैं जानती हूँ तुम बेचारी मरिश्का के लिए भी कुछ-न-कुछ ज़रूर करोगी।”

    “लेकिन...लेकिन मान लो वह भला आदमी मेरी बात भी माने तो? यों ही करने को राज़ी हो तो?” पुत्यि ने कड़वाहट से प्रश्न किया।

    दोनों बहनें एक-दूसरे को देखकर मुसकुराईं और एकसाथ बोल पड़ीं, “अब बनो मत पुत्यि!”

    मरिश्का को नौकरी क्या मिली, योलान की तकदीर भी चेत गई। मरिश्का का साथी एक टीचर अक्सर तुंदेर्लकि-परिवार में आने-जाने लगा। उसे योलान से प्यार हो गया। वह भी उस युवक को नापसंद नहीं करती थी। तिस पर जब उस युवक को पता चला कि योलान का मतलब है बीस हज़ार रुपए, तब तो उसके प्रेम का पारा तेज़ी से चढ़ने लगा। मरिश्का आग में ईंधन डालती रही।

    “अच्छा हो कि तुम मेरी बहन को अपनाने की बात पुत्यि से कहो!”

    “क्या कहा?...क्यों, मिस पुत्यि से क्यों?”

    “क्योंकि तुम जानो वही हमारा घर चलाती है। वही तो दे रही है बीस हज़ार रुपए।”

    टीचर कुछ पीले पड़ गए।

    “ओह, समझा।”

    “ठीक, तुम्हें कोई आपत्ति है?”

    “ख़ैर...हाँ...कुछ अजीब लग रहा है। तुम मुझे ग़लत मत समझना मिस मरिश्का। तुम्हारी बहन, मिस पुत्यि के बारे में बहुत ऊँची राय है मेरी। लेकिन...तुम सोचो तो सही मैं ज़रा भावुक आदमी हूँ।”

    मरिश्का ने उसे बर्फीली नज़र से ताका।

    “क्या बकवास करते हो! योलान इतनी अच्छी लड़की है और तुम इतने अच्छे आदमी हो; तुम लोगों की जोड़ी ख़ूब रहेगी। बस और क्या चाहिए। तुम हीले हवाले करके कीमती वक़्त बरबाद कर रहे हो।’

    टीचर ने हकलाते हुए कुछ शब्द निकाले। पर बाद में उसने सोचा कि सफलता की कुंजी से अक्ल से काम लेना। बस वह एक दिन बन ठनकर पुत्यि से मिलने गया और योलान से शादी करने की इच्छा प्रकट कर दी।

    ख़ुशी के मारे पुत्यि की आँखों में आँसू ही गए। उसका वात्सल्य ऐसा उमड़ा कि उसने तुरंत दोनों को आशीर्वाद दे डाला।

    योलान और उसका मँगेतर दोनों मानो आनंद की तस्वीर हों। टीचर हर रोज़ अपनी मँगेतर के घर आता, ठाठ से भोजन करता और चौधरी साहब की सिगरेटें और सिगारें उड़ाता। फिर भी, जैसा कि वह ख़ुद ही बता चुका था, वह ज़रा भावुक क़िस्म का आदमी था।

    “मुझे इस तरह की बात बिलकुल पसंद नहीं, “वह योलान से मिलते ही प्राय: हर बार यही कहता, “मेरा बस चले, तो मैं तो तुम्हारे दहेज लेने से इंकार कर दूँ।”

    योलान बिगड़ उठती।

    “क्या बे- सिर-पैर की बातें करते हो! भला इतना रुपया कोई ठुकराता है!!”

    “ठीक है, लेकिन आख़िरकार...मैं मानता हूँ, तुम्हारी बहन लाजवाब है, पर सबसे पहले तो इज़्ज़त का ध्यान करना पड़ता है, है कि नहीं?”

    “इसमें क्या शक है!’ योलान ने पूरे विश्वास के साथ सहमति प्रकट की।

    “बस एक बार हम पति-पत्नी बन जाएँ फिर...”

    “फिर क्या?”

    “देखो रानी, तुम कुछ और मत समझना, पर मैं सोचता हूँ कि फिर हम उनसे कुछ दूर ही रहें तो अच्छा।”

    “जैसी तुम्हारी इच्छा।” योलान ने आज्ञाकारियों की भाँति कहा। उसने अपने मँगेतर की ओर देखा तो उसका चेहरा दमक रहा था।

    तुंदेर्लकि बहनें, जैसा कि मैं बता चुका हूँ, गिनती में तीन थीं। उनमें से दो तो इज़्ज़तदार थीं, पर तीसरी थी।

    स्रोत :
    • पुस्तक : विश्व की श्रेष्ठ कहानियाँ (खण्ड-2) (पृष्ठ 162)
    • संपादक : ममता कालिया
    • रचनाकार : येनो हैलतई
    • प्रकाशन : लोकभारती प्रकाशन
    • संस्करण : 2005
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    Rekhta Gujarati Utsav I Vadodara - 5th Jan 25 I Mumbai - 11th Jan 25 I Bhavnagar - 19th Jan 25

    Register for free