बाज़ार में एक नई तरह की पाज़ेब चली है। पैरों में पड़कर वे बड़ी अच्छी मालूम होती हैं। उनकी कड़ियाँ आपस में लचक के साथ जुड़ी रहती हैं कि पाज़ेब का मानो निज का आकार कुछ नहीं है, जिस पांव में पड़े उसी के अनुकूल ही रहती हैं। पास-पड़ोस में तो सब नन्हीं-बड़ी के पैरों में आप वही पाज़ेब देख लीजिए। एक ने पहनी कि फिर दूसरी ने भी पहनी। देखा-देखी में इस तरह उनका न पहनना मुश्किल हो गया है।
हमारी मुन्नी ने भी कहा कि बाबूजी,हम पाज़ेब पहनेंगे। बोलिए भला कठिनाई से चार बरस की उम्र और पाज़ेब पहनेगी।
मैंने कहा,कैसी पाज़ेब?
बोली,वही जैसी रुकमन पहनती है,जैसी शीला पहनती है।
मैंने कहा, अच्छा-अच्छा।
बोली, मैं तो आज ही मँगा लूँगी।
मैंने कहा, अच्छा भाई आज सही।
उस वक़्त तो ख़ैर मुन्नी किसी काम में बहल गई। लेकिन जब दोपहर आई मुन्नी की बुआ, तब वह मुन्नी सहज मानने वाली न थी। बुआ ने मुन्नी को मिठाई खिलाई और गोद में लिया और कहा कि अच्छा, तो तेरी पाज़ेब अबके इतवार को ज़रूर लेती आऊँगी।
इतवार को बुआ आई और पाज़ेब ले आई। मुन्नी पहनकर ख़ुशी के मारे यहाँ-से-वहाँ ठुमकती फिरी। रुकमन के पास गई और कहा-देख रुकमन, मेरी पाज़ेब। शीला को भी अपनी पाज़ेब दिखाई। सबने पाज़ेब पहनी देखकर उसे प्यार किया और तारीफ़ की। सचमुच वह चाँदी कि सफेद दो-तीन लड़ियाँ-सी टखनों के चारों ओर लिपटकर, चुपचाप बिछी हुई, बहुत ही सुघड़ लगती थी, और बच्ची की ख़ुशी का ठिकाना न था। और हमारे महाशय आशुतोष, जो मुन्नी के बड़े भाई थे, पहले तो मुन्नी को सजी-बजी देखकर बड़े ख़ुश हुए। वह हाथ पकड़कर अपनी बढ़िया मुन्नी को पाज़ेब-सहित दिखाने के लिए आस-पास ले गए। मुन्नी की पाज़ेब का गौरव उन्हें अपना भी मालूम होता था। वह ख़ूब हँसे और ताली पीटी, लेकिन थोड़ी देर बाद वह ठुमकने लगे कि मुन्नी को पाज़ेब दी, सो हम भी बाईसाइकिल लेंगे। बुआ ने कहा कि अच्छा बेटा अबके जन्म दिन को तुझे बाईसिकिल दिलवाएँगे।
आशुतोष बाबू ने कहा कि हम तो अभी लेंगे।
बुआ ने कहा, ‘छी-छी, तू कोई लड़की है? जिद तो लड़कियाँ किया करती हैं। और लड़कियाँ रोती हैं।’
कहीं बाबू साहब लोग रोते हैं?
आशुतोष बाबू ने कहा कि तो हम बाईसिकिल जरूर लेंगे जन्म-दिन वाले रोज बुआ ने कहा कि हाँ, यह बात पक्की रही, जन्म दिन पर तुमको बाईसाइकिल मिलेगी। इस तरह वह इतवार का दिन हँसी-ख़ुशी पूरा हुआ। शाम होने पर बच्चों की बुआ चली गई। पाज़ेब का शौक घड़ीभर का था। वह फिर उतारकर रख-रखा दी गई; जिससे कहीं खो न जाए। पाज़ेब वह बारीक और सुबुक काम की थी और खासे दाम लग गए थे।
श्रीमतीजी ने हमसे कहा, क्यों जी, लगती तो अच्छी है, मैं भी अपने लिए बनवा लूँ?
मैंने कहा कि क्यों न बनवाओं! तुम कौन चार बरस की नहीं हो?
ख़ैर, यह हुआ। पर मैं रात को अपनी मेज़ पर था कि श्रीमती ने आकर कहा कि तुमने पाज़ेब तो नहीं देखी?
मैंने आश्चर्य से कहा कि क्या मतलब?
बोली कि देखो, यहाँ मेज़-वेज़ पर तो नहीं है? एक तो है पर दूसरे पैर की मिलती नहीं है। जाने कहाँ गई?
मैंने कहा कि जाएगी कहाँ? यहीं-कहीं देख लो। मिल जाएगी।
उन्होंने मेरे मेज़ के काग़ज़ उठाने- धरने शुरू किए और आलमारी की किताबें टटोल डालने का भी मनसूबा दिखाया।
मैंने कहा कि यह क्या कर रही हो? यहाँ वह कहाँ से आएगी?
जवाब में वह मुझी से पूछने लगी कि फिर कहाँ है?
मैंने कहा तुम्हीं ने तो रखी थी। कहाँ रखी थी?
बतलाने लगी कि दोपहर के बाद कोई दो बजे उतारकर दोनों को अच्छी तरह सँभालकर उस नीचे वाले बाक्स में रख दी थीं। अब देखा तो एक है, दूसरी गायब है।
मैंने कहा कि तो चलकर वह इस कमरे में कैसे आ जाएगी? भूल हो गई होगी। एक रखी होगी, एक वहीं-कहीं फ़र्श पर छूट गई होगी। देखो, मिल जाएगी। कहीं जा नहीं सकती।
इस पर श्रीमती कहा-सुनी करने लगीं कि तुम तो ऐसे ही हो। ख़ुद लापरवाह हो,दोष उल्टे मुझे देते हो। कह तो रही हूँ कि मैंने दोनों सँभालकर रखी थीं।
मैंने कहा कि सँभालकर रखी थीं,तो फिर यहाँ-वहाँ क्यों देख रही थी? जहाँ रखी थीं वहीं से ले लो न। वहाँ नहीं है तो फिर किसी ने निकाली ही होगी।
श्रीमती बोलीं कि मेरा भी यही ख़्याल हो रहा है। हो न हो, बंसी नौकर ने निकाली हो। मैंने रखी, तब वह वहाँ मौजूद था।
मैंने कहा, तो उससे पूछा?
बोलीं, वह तो साफ इंकार कर रहा है।
मैंने कहा, तो फिर?
श्रीमती जोर से बोली, तो फिर मैं क्या बताऊँ? तुम्हें तो किसी बात की फिकर है नही। डाँटकर कहते क्यों नहीं हो, उसे बंसी को बुलाकर? जरूर पाज़ेब उसी ने ली है।
मैंने कहा कि अच्छा, तो उसे क्या कहना होगा? यह कहूँ कि ला भाई पाज़ेब दे दे!
श्रीमती झल्ला कर बोलीं कि हो चुका सब कुछ तुमसे। तुम्हीं ने तो उस नौकर की जात को शहजोर बना रखा है।
डाँट न फटकार, नौकर ऐसे सिर न चढ़ेगा तो क्या होगा?
बोलीं कि कह तो रही हूँ कि किसी ने उसे बक्स से निकाला ही है। और सोलह में पंद्रह आने यह बंसी है। सुनते हो न, वही है।
मैंने कहा कि मैंने बंसी से पूछा था। उसने नहीं ली मालूम होती।
इस पर श्रीमती ने कहा कि तुम नौकरों को नहीं जानते। वे बड़े छंटे होते हैं। बंसी चोर जरूर है। नहीं तो क्या फरिश्ते लेने आते?
मैंने कहा कि तुमने आशुतोष से भी पूछा?
बोलीं, पूछा था। वह तो ख़ुद ट्रंक और बक्स के नीचे घुस घुसकर खोज लगाने में मेरी मदद करता रहा है। वह नहीं ले सकता।
मैंने कहा, उसे पतंग का बड़ा शौक है।
बोलीं कि तुम तो उसे बताते-बरजते कुछ हो नहीं। उमर होती जा रही है। वह यों ही रह जाएगा। तुम्हीं हो उसे पतंग की शह देने वाले।
मैंने कहा कि जो कहीं पाज़ेब ही पड़ी मिल गई हो तो?
बोलीं, नहीं, नहीं! मिलती तो वह बता न देता?
ख़ैर, बातों-बातों में मालूम हुआ कि उस शाम आशुतोष पतंग और डोर का पिन्ना नया लाया है।
श्रीमती ने कहा कि यह तुम्हीं हो जिसने पतंग की उसे इजाज़त दी। बस सारे दिन पतंग-पतंग। यह नहीं कि कभी उसे बिठाकर सबक की भी कोई बात पूछो। मैं सोचती हूँ कि एक दिन तोड़-ताड़ दूँ उसकी सब डोर और पतंग।
मैंने कहा कि ख़ैर; छोड़ो। कल सवेरे पूछ-ताछ करेंगे।
सवेरे बुलाकर मैंने गंभीरता से उससे पूछा कि क्यों बेटा, एक पाज़ेब नहीं मिल रही है,तुमने तो नहीं देखी? वह गुम हो गया। जैसे नाराज़ हो। उसने सिर हिलाया कि उसने नहीं ली। पर मुँह नहीं खोला।
मैंने कहा कि देखो बेटे, ली हो तो कोई बात नहीं, सच बता देना चाहिए। उसका मुँह और भी फूल आया। और वह गुमसुम बैठा रहा।
मेरे मन में उस समय तरह-तरह के सिद्धांत आए। मैंने स्थिर किया कि अपराध के प्रति करुणा ही होनी चाहिए।
रोष का अधिकार नहीं है। प्रेम से ही अपराध-वृति को जीता जा सकता है। आतंक से उसे दबाना ठीक नहीं है। बालक का स्वभाव कोमल होता है और सदा ही उससे स्नेह से व्यवहार करना चाहिए, इत्यादि।
मैंने कहा कि बेटा आशुतोष, तुम घबराओ नहीं। सच कहने में घबराना नहीं चाहिए। ली हो तो खुल कर कह दो, बेटा!
हम कोई सच कहने की सजा थोड़े ही दे सकते हैं। बल्कि बोलने पर तो इनाम मिला करता है।
आशुतोष तब बैठा सुनता रहा। उसका मुँह सूजा था। वह सामने मेरी आँखों में नहीं देख रहा था। रह-रहकर उसके माथे पर बल पड़ते थे।
“क्यों बेटे,तुमने ली तो नहीं?”
उसने सिर हिलाकर क्रोध से अस्थिर और तेज आवाज़ में कहा कि मैंने नहीं ली, नहीं ली, नहीं ली। यह कहकर वह रोने को हो आया, पर रोया नहीं। आँखों में आँसू रोक लिए। उस वक्त मुझे प्रतीत हुआ, उग्रता दोष का लक्षण है।
मैंने कहा, देखो बेटा, डरो नहीं; अच्छा जाओ, ढूँढो; शायद कहीं पड़ी हुई वह पाज़ेब मिल जाए। मिल जाएगी तो हम तुम्हें इनाम देंगे।
वह चला गया और दूसरे कमरे में जाकर पहले तो एक कोने में खड़ा हो गया। कुछ देर चुपचाप खड़े रहकर वह फिर यहाँ-वहाँ पाज़ेब की तलाश में लग गया।
श्रीमती आकर बोलीं, आशू से तुमने पूछ लिया? क्या ख़्याल है?
मैंने कहा कि संदेह तो मुझे होता है। नौकर का तो काम यह है नहीं!
श्रीमती ने कहा, नहीं जी, आशू भला क्यों लेगा?
मैं कुछ बोला नहीं। मेरा मन जाने कैसे गंभीर प्रेम के भाव से आशुतोष के प्रति उमड़ रहा था। मुझे ऐसा मालूम होता था कि ठीक इस समय आशुतोष को हमें अपनी सहानुभूति से वंचित नहीं करना चाहिए। बल्कि कुछ अतिरिक्त स्नेह इस समय बालक को मिलना चाहिए। मुझे यह एक भारी दुर्घटना मालूम होती थी। मालूम होता था कि अगर आशुतोष ने चोरी की है तो उसका इतना दोष नहीं है; बल्कि यह हमारे ऊपर बड़ा भारी इल्ज़ाम है। बच्चे में चोरी की आदत भयावह हो सकती है,लेकिन बच्चे के लिए वैसी लाचारी उपस्थित हो आई, यह और भी कहीं भयावह है। यह हमारी आलोचना है। हम उस चोरी से बरी नहीं हो सकते।
मैंने बुलाकर कहा, “अच्छा सुनो। देखो, मेरी तरफ देखो, यह बताओ कि पाज़ेब तुमने छुन्नू को दी है न?”
वह कुछ देर कुछ नहीं बोला। उसके चेहरे पर रंग आया और गया। मैं एक-एक छाया ताड़ना चाहता था।
मैंने आश्वासन देते हुए कहा कि डरने की कोई बात नहीं। हाँ, हाँ, बोलो डरो नहीं। ठीक बताओ, बेटे! कैसा हमारा सच्चा बेटा है!
मानो बड़ी कठिनाई के बाद उसने अपना सिर हिलाया।
मैंने बहुत ख़ुश होकर कहा कि दी है न छुन्नू को? उसने सिर हिला दिया।
अत्यंत सांत्वना के स्वर में स्नेहपूर्वक मैंने कहा कि मुँह से बोलो। छुन्नू को दी है?
उसने कहा, “हाँ-आँ।”
मैंने अत्यंत हर्ष के साथ दोनों बाँहों में लेकर उसे उठा लिया। कहा कि ऐसे ही बोल दिया करते हैं अच्छे लड़के। आशू हमारा राजा बेटा है। गर्व के भाव से उसे गोद में लिए लिए मैं उसकी माँ की तरफ गया। उल्लासपूर्वक बोला कि देखो हमारे बेटे ने सच कबूल किया है। पाज़ेब उसने छुन्नू को दी है। सुनकर माँ उसकी बहुत ख़ुश हो आईं। उन्होंने उसे चूमा। बहुत शाबाशी दी और उसकी बलैयाँ लेने लगी!
आशुतोष भी मुस्करा आया, अगरचे एक उदासी भी उसके चेहरे से दूर नहीं हुई थी।
उसके बाद अलग ले जाकर मैंने बड़े प्रेम से पूछा कि पाज़ेब छुन्नू के पास है न? जाओ, माँग ला सकते हो उससे?
आशुतोष मेरी ओर देखता हुआ बैठा रहा। मैंने कहा कि जाओ बेटे! ले आओ। उसने जवाब में मुँह नहीं खोला।
मैंने आग्रह किया तो वह बोला कि छुन्नू के पास नहीं हुई तो वह कहाँ से देगा?
मैंने कहा कि तो जिसको उसने दी होगी उसका नाम बता देगा। सुनकर वह चुप हो गया। मेरे बार-बार कहने पर वह यही कहता रहा कि पाज़ेब छुन्नू के पास न हुई तो वह देगा कहाँ से?
अंत में हारकर मैंने कहा कि वह कहीं तो होगी। अच्छा, तुमने कहाँ से उठाई थी?
“पड़ी मिली थी।”
“और फिर नीचे जाकर वह तुमने छुन्नू को दिखाई?”
“हाँ!”
“फिर उसी ने कहा कि इसे बेचेंगे!”
“हाँ!”
“कहाँ बेचने को कहा?”
“कहा मिठाई लाएँगे?”
“नहीं, पतंग लाएँगे?”
“हाँ!”
“सो पाज़ेब छुन्नू के पास रह गई?”
“हाँ!”
“तो उसी के पास होनी चाहिए न! या पतंग वाले के पास होगी! जाओ, बेटा, उससे ले आओ। कहना, हमारे बाबूजी तुम्हें इनाम देंगे।
वह जाना नहीं चाहता था। उसने फिर कहा कि छुन्नू के पास नहीं हुई तो कहाँ से देगा!
मुझे उसकी ज़िद बुरी मालूम हुई। मैंने कहा कि तो कहीं तुमने उसे गाड़ दिया है? क्या किया है? बोलते क्यों नहीं?
वह मेरी ओर देखता रहा, और कुछ नहीं बोला।
मैंने कहा, कुछ कहते क्यों नहीं?
वह गुमसुम रह गया। और नहीं बोला।
मैंने डपटकर कहा कि जाओ, जहाँ हो वहीं से पाज़ेब लेकर आओ।
जब वह अपनी जगह से नहीं उठा और नहीं गया तो मैंने उसे कान पकड़कर उठाया। कहा कि सुनते हो? जाओ, पाज़ेब लेकर आओ। नहीं तो घर में तुम्हारा काम नहीं है। उस तरह उठाया जाकर वह उठ गया और कमरे से बाहर निकल गया। निकलकर बरामदे के एक कोने में रूठा मुँह बनाकर खड़ा रह गया।
मुझे बड़ा क्षोभ हो रहा था। यह लड़का सच बोलकर अब किस बात से घबरा रहा है, यह मैं कुछ समझ न सका। मैंने बाहर आकर धीरे से कहा कि जाओ भाई, जाकर छुन्नू से कहते क्यों नहीं हो?
पहले तो उसने कोई जवाब नहीं दिया और जवाब दिया तो बार-बार कहने लगा कि छुन्नू के पास नहीं हुई तो वह कहाँ से देगा?
मैंने कहा कि जितने में उसने बेची होगी वह दाम दे देंगे। समझे न जाओ, तुम कहो तो।
छुन्नू की माँ तो कह रही है कि उसका लड़का ऐसा काम नहीं कर सकता। उसने पाज़ेब नहीं देखी।
जिस पर आशुतोष की माँ ने कहा कि नहीं तुम्हारा छुन्नू झूठ बोलता है। क्यों रे आशुतोष, तैने दी थी न?
आशुतोष ने धीरे से कहा, हाँ, दी थी।
दूसरे ओर से छुन्नू बढ़कर आया और हाथ फटकारकर बोला कि मुझे नहीं दी। क्यों रे, मुझे कब दी थी?
आशुतोष ने जिद बाँधकर कहा कि दी तो थी। कह दो, नहीं दी थी?
नतीजा यह हुआ कि छुन्नू की माँ ने छुन्नू को ख़ूब पीटा और ख़ुद भी रोने लगी। कहती जाती कि हाय रे, अब हम चोर हो गए। कुलच्छनी औलाद जाने कब मिटेगी?
बात दूर तक फैल चली। पड़ोस की स्त्रियों में पवन पड़ने लगी। और श्रीमती ने घर लौटकर कहा कि छुन्नू और उसकी माँ दोनों एक-से हैं। मैंने कहा कि तुमने तेजा-तेजी क्यों कर डाली? ऐसी कोई बात भला सुलझती है!
बोली कि हाँ, मैं तेज बोलती हूँ। अब जाओ ना, तुम्हीं उनके पास से पाज़ेब निकालकर लाते क्यों नहीं? तब जानूँ, जब पाज़ेब निकलवा दो।
मैंने कहा कि पाज़ेब से बढ़कर शांति है। और अशांति से तो पाज़ेब मिल नहीं जाएगी।
श्रीमती बुदबुदाती हुई नाराज़ होकर मेरे सामने से चली गईं।
थोड़ी देर बाद छुन्नू की माँ हमारे घर आई। श्रीमती उन्हें लाई थी। अब उनके बीच गर्मी नहीं थी, उन्होंने मेरे सामने आकर कहा कि छुन्नू तो पाज़ेब के लिए इनकार करता है। वह पाज़ेब कितने की थी, मैं उसके दाम भर सकती हूँ।
मैंने कहा, “यह आप क्या कहती है! बच्चे-बच्चे हैं। आपने छुन्नू से सहूलियत से पूछा भी!”
उन्होंने उसी समय छुन्नू को बुलाकर मेरे सामने कर दिया। कहा कि क्यों रे, बता क्यों नहीं देता जो तैने पाज़ेब देखी हो?
छुन्नू ने जोर से सिर हिलाकर इनकार किया और बताया कि पाज़ेब आशुतोष के हाथ में मैंने देखी थी और वह पतंग वालों को दे आया है। मैंने ख़ूब देखी थी, वह चाँदी की थी।
“तुम्हें ठीक मालूम है?”
“हाँ, वह मुझसे कह रहा था कि तू भी चल। पतंग लाएँगे।”
“पाज़ेब कितनी बड़ी थी? बताओ तो।”
छुन्नू ने उसका आकार बताया, जो ठीक ही था।
मैंने उसकी माँ की तरफ देखकर कहा देखिए न पहले यही कहता था कि मैंने पाज़ेब देखी तक नहीं। अब कहता है कि देखी है।
माँ ने मेरे सामने छुन्नू को खींचकर तभी धम्म-धम्म पीटना शुरू कर दिया। कहा कि क्यों रे, झूठ बोलता है?
तेरी चमड़ी न उधेड़ी तो मैं नहीं।
मैंने बीच-बचाव करके छुन्नू को बचाया। वह शहीद की भाँति पिटता रहा था। रोया बिल्कुल नहीं और एक कोने में खड़े आशुतोष को जाने किस भाव से देख रहा था।
ख़ैर, मैंने सबको छुट्टी दी। कहा, जाओ बेटा छुन्नू खेलो। उसकी माँ को कहा, आप उसे मारिएगा नहीं। और पाज़ेब कोई ऐसी बड़ी चीज़ नहीं है।
छुन्नू चला गया। तब, उसकी माँ ने पूछा कि आप उसे कसूरवार समझतें हैं?
मैंने कहा कि मालूम तो होता है कि उसे कुछ पता है। और वह मामले में शामिल है।
इस पर छुन्नू की माँ ने पास बैठी हुई मेरी पत्नी से कहा, “चलो बहनजी, मैं तुम्हें अपना सारा घर दिखाए देती हूँ।”
“एक-एक चीज़ देख लो। होगी पाज़ेब तो जाएगी कहाँ?”
मैंने कहा, “छोड़िए भी। बेबात को बात बढ़ाने से क्या फायदा।” सो ज्यों-त्यों मैंने उन्हें दिलासा दिया। नहीं तो वह छुन्नू को पीट-पाट हाल-बेहाल कर डालने का प्रण ही उठाए ले रही थी।
कुलच्छनी, आज उसी धरती में नहीं गाड़ दिया तो, मेरा नाम नहीं।
ख़ैर, जिस-तिस भाँति बखेड़ा टाला। मैं इस झँझट में दफ़्तर भी समय पर नहीं जा सका। जाते वक्त श्रीमती को कह गया कि देखो, आशुतोष को धमकाना मत। प्यार से सारी बातें पूछना। धमकाने से बच्चे बिगड़ जाते हैं, और हाथ कुछ नहीं आता। समझी न?
शाम को दफ़्तर से लौटा तो श्रीमती से सूचना दी कि आशुतोष ने सब बतला दिया है। ग्यारह आने पैसे में वह पाज़ेब पतंग वाले को दे दी है। पैसे उसने थोड़े-थोड़े करके देने को कहे हैं। पाँच आने जो दिए वह छुन्नू के पास हैं।
इस तरह रत्ती-रत्ती बात उसने कह दी है। कहने लगी कि मैंने बड़े प्यार से पूछ-पूछकर यह सब उसके पेट में से निकाला है। दो-तीन घंटे में मगज़ मारती रही। हाय राम, बच्चे का भी क्या जी होता है।
मैं सुनकर ख़ुश हुआ। मैंने कहा कि चलो अच्छा है, अब पाँच आने भेजकर पाज़ेब मँगवा लेंगे। लेकिन यह पतंग वाला भी कितना बदमाश है, बच्चों के हाथ से ऐसी चीजें लेता है। उसे पुलिस में दे देना चाहिए। उचक्का कहीं का!
फिर मैंने पूछा कि आशुतोष कहाँ है?
उन्होंने बताया कि बाहर ही कहीं खेल-खाल रहा होगा।
मैंने कहा कि बंसी, जाकर उसे बुला तो लाओ।
बंसी गया और उसने आकर कहा कि वे अभी आते हैं।
“क्या कर रहा है?”
“छुन्नू के साथ गिल्ली-डंडा खेल रहे हैं।”
थोड़ी देर में आशुतोष आया। तब मैंने उसे गोद में लेकर प्यार किया। आते-आते उसका चेहरा उदास हो गया और गोद में लेने पर भी वह कोई विशेष प्रसन्न नहीं मालूम नहीं हुआ। उसकी माँ ने ख़ुश होकर कहा कि आशुतोष ने सब बातें अपने आप पूरी-पूरी बता दी हैं। हमारा आशुतोष बड़ा सच्चा लड़का है।
आशुतोष मेरी गोद में टिका रहा। लेकिन अपनी बड़ाई सुनकर भी उसको कुछ हर्ष नहीं हुआ, ऐसा प्रतीत होता था। मैंने कहा कि आओ चलो। अब क्या बात है। क्यों हज़रत, तुमको पाँच ही आने तो मिले हैं न? हम से पाँच आने माँग लेते तो क्या हम न देते? सुनो, अब से ऐसा मत करना, बेटे!
कमरे में जाकर मैंने उससे फिर पूछताछ की, “क्यों बेटा, पतंग वाले ने पाँच आने तुम्हें दिए न?”
“हाँ”!
“और वह छुन्नू के पास हैं न!”
“हाँ!”
“अभी तो उसके पास होंगे न!”
“नहीं।”
“ख़र्च कर दिए!”
“नहीं।”
“नहीं ख़र्च किए?”
“हाँ।”
“ख़र्च किए, कि नहीं ख़र्च किए?”
उस ओर से प्रश्न करने वह मेरी ओर देखता रहा, उत्तर नहीं दिया।
“बताओं ख़र्च कर दिए कि अभी हैं?”
जवाब में उसने एक बार ‘हाँ’ कहा तो दूसरी बात नहीं कहा।
मैंने कहा, तो यह क्यों नहीं कहते कि तुम्हें नहीं मालूम है?
“हाँ।”
“बेटा, मालूम है न?”
“हाँ।”
पतंग वाले से पैसे छुन्नू ने लिए हैं न?
“हाँ।”
“तुमने क्यों नहीं लिए?”
वह चुप।
“इकन्नियाँ कितनी थी, बोलो?”
“दो।”
“बाकी पैसे थे?”
“हाँ।”
“दुअन्नी थी!”
“हाँ।”
“मुझे क्रोध आने लगा। डपटकर कहा कि सच क्यों नहीं बोलते जी? सच बताओ कितनी इकन्नियाँ थी और कितना क्या था।”
वह खड़ा रहा, नहीं बोला।
“बोलते क्यों नहीं?”
वह नहीं बोला।
“सुनते हो! बोला- नहीं तो—”
आशुतोष डर गया। और कुछ नहीं बोला।
“सुनते नहीं, मैं क्या कह रहा हूँ?”
इस बार भी वह नहीं बोला तो मैंने कान पकड़कर उसके कान खींच लिए। वह बिना आँसू लाए गुम-सुम खड़ा रहा।
“अब भी नहीं बोलोगे?”
वह डर के मारे पीला हो आया। लेकिन बोल नहीं सका। मैंने जोर से बुलाया “बंसी यहाँ आओ, इनको ले जाकर कोठरी में बंद कर दो।”
बंसी नौकर उसे उठाकर ले गया और कोठरी में मूंद दिया।
दस मिनट बाद फिर उसे पास बुलवाया। उसका मुँह सूजा हुआ था। बिना कुछ बोले उसके ओंठ हिल रहे थे। कोठरी में बंद होकर भी वह रोया नहीं।
मैंने कहा, “क्यों रे, अब तो अकल आई?”
वह सुनता हुआ गुमसुम खड़ा रहा।
“अच्छा, पतंग वाला कौन सा? दाई तरफ़ का चौराहे वाला?”
उसने कुछ ओठों में ही बड़बड़ा दिया। जिसे मैं कुछ समझ न सका।
“वह चौराहे वाला? बोलो—”
“हाँ।”
“देखो, अपने चाचा के साथ चले जाओ। बता देना कि कौन सा है। फिर उसे स्वयं भुगत लेंगे। समझते हो न?”
यह कहकर मैंने अपने भाई को बुलवाया। सब बात समझाकर कहा, “देखो,पाँच आने के पैसे ले जाओ। पहले तुम दूर रहना। आशुतोष पैसे ले जाकर उसे देगा और अपनी पाज़ेब माँगेगा। अव्वल तो यह पाज़ेब लौटा ही देगा। नहीं तो उसे डाँटना और कहना कि तुझे पुलिस के सुपुर्द कर दूँगा। बच्चों से माल ठगता है? समझे? नरमी की जरूरत नहीं हैं।”
“और आशुतोष, अब जाओ। अपने चाचा के साथ जाओ।” वह अपनी जगह पर खड़ा था। सुनकर भी टस-से-मस होता दिखाई नहीं दिया।
“नहीं जाओगे!”
उसने सिर हिला दिया कि नहीं जाऊँगा।
मैंने तब उसे समझाकर कहा कि “भैया घर की चीज़ है, दाम लगे हैं। भला पाँच आने में रुपयों का माल किसी के हाथ खो दोगे! जाओ, चाचा के संग जाओ। तुम्हें कुछ नहीं कहना होगा। हाँ, पैसे दे देना और अपनी चीज वापस माँग लेना। दे तो दे, नहीं दे तो नहीं दे। तुम्हारा इससे कोई सरोकार नहीं। सच है न, बेटे! अब जाओ।”
पर वह जाने को तैयार ही नहीं दिखा। मुझे लड़के की गुस्ताख़ी पर बड़ा बुरा मालूम हुआ। बोला, “इसमें बात क्या है?”
“इसमें मुश्किल कहाँ है? समझाकर बात कर रहे है सो समझता ही नहीं, सुनता ही नहीं।” मैंने कहा कि, “क्यों रे नहीं जाएगा?”
उसने फिर सिर हिला दिया कि नहीं जाऊँगा।
मैंने प्रकाश, अपने छोटे भाई को बुलाया। कहा, “प्रकाश, इसे पकड़कर ले जाओ।”
प्रकाश ने उसे पकड़ा और आशुतोष अपने हाथ-पैरों से उसका प्रतिकार करने लगा। वह साथ जाना नहीं चाहता था। मैंने अपने ऊपर बहुत जब्र करके फिर आशुतोष को पुचकारा, कि जाओ भाई! डरो नहीं। अपनी चीज़ घर में आएगी।
इतनी-सी बात समझते नहीं। प्रकाश इसे गोद में उठाकर ले जाओ और जो चीज माँगे उसे बाज़ार में दिला देना। जाओ भाई आशुतोष!
पर उसका मुँह फूला हुआ था। जैसे-तैसे बहुत समझाने पर वह प्रकाश के साथ चला। ऐसे चला मानो पैर उठाना उसे भारी हो रहा हो। आठ बरस का यह लड़का होने को आया फिर भी देखो न कि किसी भी बात की उसमें समझ नहीं हैं। मुझे जो गुस्सा आया कि क्या बतलाऊँ! लेकिन यह याद करके कि गुस्से से बच्चे सँभलने की जगह बिगड़ते हैं, मैं अपने को दबाता चला गया। ख़ैर, वह गया तो मैंने चैन की साँस ली।
लेकिन देखता क्या।
मैंने पूछा, “क्यों?”
बोला कि, आशुतोष भाग आया है।
मैंने कहा कि “अब वह कहाँ है?”
“वह रूठा खड़ा है, घर में नहीं आता।”
“जाओ, पकड़कर तो लाओ।”
वह पकड़ा हुआ आया। मैंने कहा, “क्यों रे, तू शरारत से बाज नहीं आएगा? बोल, जाएगा कि नहीं?”
वह नहीं बोला तो मैंने कस कर उसके दो चाँटे दिए। थप्पड़ लगते ही वह एक दम चीखा,पर फ़ौरन चुप हो गया। वह वैसे ही मेरे सामने खड़ा रहा। कि कुछ देर में प्रकाश लौट आया है।
मैंने उसे देखकर मारे गुस्से से कहा कि ले जाओ इसे मेरे सामने से। जाकर कोठरी में बंद कर दो।
दुष्ट! इस बार वह आध-एक घंटे बंद रहा। मुझे ख़याल आया कि मैं ठीक नहीं कर रहा हूँ, लेकिन जैसे कोई दूसरा रास्ता न दिखता था। मार-पीटकर मन को ठिकाना देने की आदत पड़ कई थी, और कुछ अभ्यास न था।
ख़ैर, मैंने इस बीच प्रकाश को कहा कि तुम दोनों पतंग वाले के पास जाओ। मालूम करना कि किसने पाज़ेब ली है। होशियारी से मालूम करना। मालूम होने पर रेख़्ता करना। मुरव्वत की ज़रूरत नहीं। समझे। प्रकाश गया और लौटने पर बताया कि उसके पास पाज़ेब नहीं है।
सुनकर मैं झल्ला आया, कहा कि “तुमसे कुछ काम नहीं हो सकता। जरा सी बात नहीं हुई, तुमसे क्या उम्मीद रखी जाए? वह अपनी सफाई देने लगा। मैंने कहा, “बस, तुम जाओ।”
प्रकाश मेरा बहुत लिहाज़ मानता था। वह मुँह डालकर चला गया। कोठरी खुलवाने पर आशुतोष को फ़र्श पर सोता पाया। उसके चेहरे पर अब भी आँसू नहीं थे। सच पूछो तो मुझे उस समय बालक पर करुणा हुई। लेकिन आदमी में एक ही साथ जाने क्या-क्या विरोधी भाव उठते हैं! मैंने उसे जगाया। वह हड़बड़ाकर उठा। मैंने कहा, “कहो, क्या हालत है?”
थोड़ी देर तक वह समझा ही नहीं। फिर शायद पिछला सिलसिला याद आया। झट उसके चेहरे पर वहीं ज़िद, अकड़ ओर प्रतिरोध के भाव दिखाई देने लगे।
मैंने कहा कि या तो राजी-राजी चले जाओ नहीं तो इस कोठरी में फिर बंद किए देते हैं। आशुतोष पर इसका विशेष प्रभाव पड़ा हो, ऐसा मालूम नहीं हुआ।
ख़ैर, उसे पकड़कर लाया और समझाने लगा। मैंने निकालकर उसे एक रुपया दिया और कहा, “बेटा, इसे पतंग वाले को दे देना और पाज़ेब माँग लेना कोई घबराने की बात नहीं। तुम समझदार लड़के हो।”
उसने कहा कि जो पाज़ेब उसके पास नहीं हुई तो वह कहाँ से देगा?
“इसका क्या मतलब, तुमने कहा न कि पाँच आने में पाज़ेब दी है। न हो तो छुन्नू को भी साथ ले लेना। समझे?” वह चुप हो गया। आख़िर समझाने पर जाने को तैयार हुआ। मैंने प्रेमपूर्वक उसे प्रकाश के साथ जाने को कहा।
उसका मुँह भारी देखकर डाँटने वाला ही था कि इतने में सामने उसकी बुआ दिखाई दी। बुआ ने आशुतोष के सिर पर हाथ रख कर पूछा कि कहाँ जा रहे हो, मैं तो तुम्हारे लिए केले और मिठाई लाई हूँ। आशुतोष का चेहरा रूठा ही रहा। मैंने बुआ से कहा कि उसे रोको मत, जाने दो।
आशुतोष रुकने को उद्यत था। वह चलने में आनाकानी दिखाने लगा। बुआ ने पूछा, “क्या बात है?”
मैंने कहा, “कोई बात नहीं, जाने दो न उसे।”
पर आशुतोष मचलने पर आ गया था। मैंने डाँटकर कहा, “प्रकाश, इसे ले क्यों नहीं जाते हो?”
बुआ ने कहा कि बात क्या है? क्या बात है?
मैंने पुकारा, “बंसी, तू भी साथ जा। बीच से लौटने न पाए।” सो मेरे आदेश पर दोनों आशुतोष को ज़बरदस्ती उठाकर सामने से ले गए। बुआ ने कहा, “क्यों उसे सता रहे हो?”
मैंने कहा कि कुछ नहीं, ज़रा यों ही-फिर मैं उनके साथ इधर-उधर की बातें ले बैठा। राजनीति राष्ट्र की ही नहीं होती, मुहल्ले में भी राजनीति होती है। यह भार स्त्रियों पर टिकता है। कहाँ क्या हुआ, क्या होना चाहिए इत्यादि चर्चा स्त्रियों को लेकर रँग फैलाती है। इसी प्रकार कुछ बातें हुईं, फिर छोटा-सा बक्सा सरका कर बोली, इनमें वह काग़ज़ है जो तुमने माँगें थे। और यहाँ—यह कह कर उन्होंने अपने बास्कट की जेब में हाथ डालकर पाज़ेब निकालकर सामने की, जैसे सामने बिच्छू हों। मैं भयभीत भाव से कह उठा कि यह क्या? बोली कि उस रोज़ भूल से यह एक पाज़ेब मेरे साथ चली गई थी।
bajar mein ek nai tarah ki pazeb chali hai pairon mein paDkar we baDi achchhi malum hoti hain unki kaDiyan aapas mein lachak ke sath juDi rahti hain ki pazeb ka mano nij ka akar kuch nahin hai, jis panw mein paDe usi ke anukul hi rahti hain pas paDos mein to sab nanhin baDi ke pairon mein aap wahi pazeb dekh lijiye ek ne pahni ki phir dusri ne bhi pahni dekha dekhi mein is tarah unka na pahanna mushkil ho gaya hai
hamari munni ne bhi kaha ki babuji,ham pazeb pahnenge boliye bhala kathinai se chaar baras ki umr aur pazeb pahnegi
mainne kaha,kaisi pazeb?
boli,wahi jaisi rukman pahanti hai,jaisi shila pahanti hai
mainne kaha,achchha achchha
boli,main to aaj hi manga lungi
mainne kaha, achchha bhai aaj sahi
us wakt to khair munni kisi kaam mein bahal gai lekin jab dopahar i munni ki bua,tab wo munni sahj manne wali na thi bua ne munni ko mithai khilai aur god mein liya aur kaha ki achchha,to teri pazeb abke itwar ko jarur leti aungi
itwar ko bua i aur pazeb le i munni pahankar khushi ke mare yahan se wahan thumakti phiri rukman ke pas gai aur kaha dekh rukman, meri pazeb shila ko bhi apni pazeb dikhai sabne pazeb pahni dekhkar use pyar kiya aur tarif ki sachmuch wo chandi ki saphed do teen laDiyan si takhnon ke charon or lipatkar, chupchap bichhi hui, bahut hi sughaD lagti thi, aur bachchi ki khushi ka thikana na tha aur hamare mahashay ashutosh, jo munni ke baDe bhai the, pahle to munni ko saji baji dekhkar baDe khush hue wo hath pakaDkar apni baDhiya munni ko pazeb sahit dikhane ke liye aas pas le gaye munni ki pazeb ka gauraw unhen apna bhi malum hota tha wo khoob hanse aur tali piti, lekin thoDi der baad wo thumakne lage ki munni ko
pazeb di, so hum bhi baisikil lenge bua ne kaha ki achchha beta abke janm din ko tujhe baisikil dilwayenge
ashutosh babu ne kaha ki hum to abhi lenge
bua ne kaha, chhi chhi, tu koi laDki hai? jid to laDkiyan kiya karti hain aur laDkiyan roti hain
kahin babu sahab log rote hain?
ashutosh babu ne kaha ki to hum baisikil jarur lenge janm din wale roj bua ne kaha ki han, ye baat pakki rahi, janm din par tumko baisikil milegi is tarah wo itwar ka din hansi khushi pura hua sham hone par bachchon ki bua chali gai pazeb ka shauk ghaDibhar ka tha wo phir utarkar rakh rakha di gai; jisse kahin kho na jaye pazeb wo barik aur subuk kaam ki thi aur khase dam lag gaye the
shrimtiji ne hamse kaha, kyon ji, lagti to achchhi hai, main bhi apne liye banwa loon?
mainne kaha ki kyon na banwaon! tum kaun chaar baras ki nahin ho?
khair, ye hua par main raat ko apni mej par tha ki shirimati ne aakar kaha ki tumne pazeb to nahin dekhi?
mainne ashchary se kaha ki kya matlab?
boli ki dekho,yahan mej wage par to nahin hai? ek to hai par dusre pair ki milti nahin hai jane kahan gai?
mainne kaha ki jayegi kahan? yahin kahin dekh lo mil jayegi
unhonne mere mej ke kagaj uthane dharne shuru kiye aur almari ki kitaben tatol Dalne ka bhi mansuba dikhaya
mainne kaha ki ye kya kar rahi ho? yahan wo kahan se ayegi?
jawab mein wo mujhi se puchhne lagi ki phir kahan hai?
mainne kaha tumhin ne to rakhi thi kahan rakhi thee?
batlane lagi ki dopahar ke baad koi do baje utarkar donon ko achchhi tarah sanbhalakar us niche wale baks mein rakh di theen ab dekha to ek hai,dusri gayab hai
mainne kaha ki to chalkar wo is kamre mein kaise aa jayegi? bhool ho gai hogi ek rakhi hogi,ek wahin kahin pharsh par chhoot gai hogi dekho,mil jayegi kahin ja nahin sakti
is par shirimati kaha suni karne lagin ki tum to aise hi ho khud laparwah ho,dosh ulte mujhe dete ho kah to rahi hoon ki mainne donon sanbhalakar rakhi theen
mainne kaha ki sanbhalakar rakhi theen,to phir yahan wahan kyon dekh rahi thee? jahan rakhi theen wahin se le lo na wahan nahin hai to phir kisi ne nikali hi hogi
shirimati bolin ki mera bhi yahi khyal ho raha hai ho na ho, bansi naukar ne nikali ho mainne rakhi,tab wo wahan maujud tha
mainne kaha,to usse puchha?
bolin, wo to saph inkar kar raha hai
mainne kaha, to phir?
shirimati jor se boli, to phir main kya bataun? tumhein to kisi baat ki phikar hai nahi Dantakar kahte kyon nahin ho, use bansi ko bulakar? jarur pazeb usi ne li hai
mainne kaha ki achchha, to use kya kahna hoga? ye kahun ki la bhai pazeb de de!
shirimati jhalla kar bolin ki ho chuka sab kuch tumse tumhin ne to us naukar ki jat ko shahjor bana rakha hai
Dant na phatkar,naukar aise sir na chaDhega to kya hoga?
bolin ki kah to rahi hoon ki kisi ne use baks se nikala hi hai aur solah mein pandrah aane ye bansi hai sunte ho na, wahi hai
mainne kaha ki mainne bansi se puchha tha usne nahin li malum hoti
is par shirimati ne kaha ki tum naukaron ko nahin jante we baDe chhante hote hain bansi chor jarur hai nahin to kya pharishte lene aate?
mainne kaha ki tumne ashutosh se bhi puchha?
bolin,puchha tha wo to khud trunk aur baks ke niche ghus ghuskar khoj lagane mein meri madad karta raha hai wo nahin le sakta
mainne kaha, use patang ka baDa shauk hai
bolin ki tum to use batate barajte kuch ho nahin umar hoti ja rahi hai wo yon hi rah jayega tumhin ho use patang ki shah dene wale
mainne kaha ki jo kahin pazeb hi paDi mil gai ho to?
bolin, nahin, nahin! milti to wo bata na deta?
khair,baton baton mein malum hua ki us sham ashutosh patang aur Dor ka pinna naya laya hai
shirimati ne kaha ki ye tumhin ho jisne patang ki use ijazat di bus sare din patang patang ye nahin ki kabhi use bithakar sabak ki bhi koi baat puchho main sochti hoon ki ek din toD taD doon uski sab Dor aur patang
mainne kaha ki khair; chhoDo kal sawere poochh tachh karenge
sawere bulakar mainne gambhirta se usse puchha ki kyon beta,ek pazeb nahin mil rahi hai,tumne to nahin dekhi? wo gum ho gaya jaise naraz ho usne sir hilaya ki usne nahin li par munh nahin khola
mainne kaha ki dekho bete, li ho to koi baat nahin, sach bata dena chahiye uska munh aur bhi phool aaya aur wo gumsum baitha raha
mere man mein us samay tarah tarah ke siddhant aaye mainne sthir kiya ki apradh ke prati karuna hi honi chahiye
rosh ka adhikar nahin hai prem se hi apradh writi ko jita ja sakta hai atank se use dabana theek nahin hai balak ka swbhaw komal hota hai aur sada hi usse sneh se wywahar karna chahiye, ityadi
mainne kaha ki beta ashutosh, tum ghabrao nahin sach kahne mein ghabrana nahin chahiye li ho to khul kar kah do, beta!
hum koi sach kahne ki saja thoDe hi de sakte hain balki bolne par to inam mila karta hai
ashutosh tab baitha sunta raha uska munh suja tha wo samne meri ankhon mein nahin dekh raha tha rah rahkar uske mathe par bal paDte the
kyon bete,tumne li to nahin?
usne sir hilakar krodh se asthir aur tej awaz mein kaha ki mainne nahin li, nahin li, nahin li ye kahkar wo rone ko ho aaya, par roya nahin ankhon mein ansu rok liye us wakt mujhe pratit hua, ugrata dosh ka lachchhan hai
mainne kaha, dekho beta, Daro nahin; achchha jao, DhunDho; shayad kahin paDi hui wo pazeb mil jaye mil jayegi to hum tumhein inam denge
wo chala gaya aur dusre kamre mein jakar pahle to ek kone mein khaDa ho gaya kuch der chupchap khaDe rahkar wo phir yahan wahan pazeb ki talash mein lag gaya
mainne kaha ki sandeh to mujhe hota hai naukar ka to kaam ye hai nahin!
shirimati ne kaha, nahin ji, aashu bhala kyon lega?
main kuch bola nahin mera man jane kaise gambhir prem ke bhaw se ashutosh ke prati umaD raha tha mujhe aisa malum hota tha ki theek is samay ashutosh ko hamein apni sahanubhuti se wanchit nahin karna chahiye balki kuch atirikt sneh is samay balak ko milna chahiye mujhe ye ek bhari durghatna malum hoti thi malum hota tha ki agar ashutosh ne chori ki hai to uska itna dosh nahin hai; balki ye hamare upar baDa bhari ilzam hai bachche mein chori ki aadat bhayawah ho sakti hai,lekin bachche ke liye waisi lachari upasthit ho i, ye aur bhi kahin bhayawah hai ye hamari alochana hai hum us chori se bari nahin ho sakte
mainne bulakar kaha, achchha suno dekho, meri taraph dekho, ye batao ki pazeb tumne chhunnu ko di hai n?
wo kuch der kuch nahin bola uske chehre par rang aaya aur gaya main ek ek chhaya taDana chahta tha
mainne ashwasan dete hue kaha ki Darne ki koi baat nahin han, han, bolo Daro nahin theek batao, bete! kaisa hamara sachcha beta hai!
mano baDi kathinai ke baad usne apna sir hilaya
mainne bahut khush hokar kaha ki di hai na chhunnu ko? usne sir hila diya
atyant santwana ke swar mein snehpurwak mainne kaha ki munh se bolo chhunnu ko di hai?
usne kaha, han aan
mainne atyant harsh ke sath donon banhon mein lekar use utha liya kaha ki aise hi bol diya karte hain achchhe laDke aashu hamara raja beta hai garw ke bhaw se use god mein liye liye main uski man ki taraph gaya ullaspurwak bola ki dekho hamare bete ne sach kabul kiya hai pazeb usne chhunnu ko di hai sunkar man uski bahut khush ho ain unhonne use chuma bahut shabashi di aur uski balaiyan lene lagi!
ashutosh bhi muskra aaya, agarche ek udasi bhi uske chehre se door nahin hui thi
uske baad alag le jakar mainne baDe prem se puchha ki pazeb chhunnu ke pas hai n? jao, mang la sakte ho usse?
ashutosh meri or dekhta hua baitha raha mainne kaha ki jao bete! le aao usne jawab mein munh nahin khola
mainne agrah kiya to wo bola ki chhunnu ke pas nahin hui to wo kahan se dega?
mainne kaha ki to jisko usne di hogi uska nam bata dega sunkar wo chup ho gaya mere bar bar kahne par wo yahi kahta raha ki pazeb chhunnu ke pas na hui to wo dega kahan se?
ant mein harkar mainne kaha ki wo kahin to hogi achchha,tumne kahan se uthai thee?
paDi mili thi
aur phir niche jakar wo tumne chhunnu ko dikhai?
han!
phir usi ne kaha ki ise bechenge!
han!
kahan bechne ko kaha?
kaha mithai layenge?
nahin,patang layenge?
han!
so pazeb chhunnu ke pas rah gai?
han!
to usi ke pas honi chahiye n! ya patang wale ke pas hogi! jao,beta,usse le aao kahna,hamare babuji tumhein inam denge
wo jana nahin chahta tha usne phir kaha ki chhunnu ke pas nahin hui to kahan se dega!
mujhe uski jid buri malum hui mainne kaha ki to kahin tumne use gaD diya hai? kya kiya hai? bolte kyon nahin?
wo meri or dekhta raha, aur kuch nahin bola
mainne kaha,kuchh kahte kyon nahin?
wo gumsum rah gaya aur nahin bola
mainne Dapatkar kaha ki jao,jahan ho wahin se pazeb lekar aao
jab wo apni jagah se nahin utha aur nahin gaya to mainne use kan pakaDkar uthaya kaha ki sunte ho? jao, pazeb lekar aao nahin to ghar mein tumhara kaam nahin hai us tarah uthaya jakar wo uth gaya aur kamre se bahar nikal gaya nikalkar baramde ke ek kone mein rutha munh banakar khaDa rah gaya
mujhe baDa kshaobh ho raha tha ye laDka sach bolkar ab kis baat se ghabra raha hai, ye main kuch samajh na saka mainne bahar aakar dhire se kaha ki jao bhai, jakar chhunnu se kahte kyon nahin ho?
pahle to usne koi jawab nahin diya aur jawab diya to bar bar kahne laga ki chhunnu ke pas nahin hui to wo kahan se dega?
mainne kaha ki jitne mein usne bechi hogi wo dam de denge samjhe na jao, tum kaho to
chhunnu ki man to kah rahi hai ki uska laDka aisa kaam nahin kar sakta usne pazeb nahin dekhi
jis par ashutosh ki man ne kaha ki nahin tumhara chhunnu jhooth bolta hai kyon re ashutosh, taine di thi n?
ashutosh ne dhire se kaha, han, di thi
dusre or se chhunnu baDhkar aaya aur hath phatkarkar bola ki mujhe nahin di kyon re, mujhe kab di thee?
ashutosh ne jid bandhakar kaha ki di to thi kah do, nahin di thee?
natija ye hua ki chhunnu ki man ne chhunnu ko khoob pita aur khud bhi rone lagi kahti jati ki hay re, ab hum chor ho gaye kulachchhani aulad jane kab mitegi?
baat door tak phail chali paDos ki istriyon mein pawan paDne lagi aur shirimati ne ghar lautkar kaha ki chhunnu aur uski man donon ek se hain mainne kaha ki tumne teja teji kyon kar Dali? aisi koi baat bhala sulajhti hai!
boli ki han, main tej bolti hoon ab jao na, tumhin unke pas se pazeb nikalkar late kyon nahin? tab janun, jab pazeb nikalwa do
mainne kaha ki pazeb se baDhkar shanti hai aur ashanti se to pazeb mil nahin jayegi
shirimati budabudati hui naraz hokar mere samne se chali gain
thoDi der baad chhunnu ki man hamare ghar i shirimati unhen lai thi ab unke beech garmi nahin thi, unhonne mere samne aakar kaha ki chhunnu to pazeb ke liye inkar karta hai wo pazeb kitne ki thi, main uske dam bhar sakti hoon
mainne kaha, yah aap kya kahti hai! bachche bachche hain aapne chhunnu se sahuliyat se puchha bhee!
unhonne usi samay chhunnu ko bulakar mere samne kar diya kaha ki kyon re, bata kyon nahin deta jo taine pazeb dekhi ho?
chhunnu ne jor se sir hilakar inkar kiya aur bataya ki pazeb ashutosh ke hath mein mainne dekhi thi aur wo patang walon ko de aaya hai mainne khoob dekhi thi, wo chandi ki thi
tumhen theek malum hai?
han, wo mujhse kah raha tha ki tu bhi chal patang layenge
pazeb kitni baDi thee? batao to
chhunnu ne uska akar bataya, jo theek hi tha
mainne uski man ki taraph dekhkar kaha dekhiye na pahle yahi kahta tha ki mainne pazeb dekhi tak nahin ab kahta hai ki dekhi hai
man ne mere samne chhunnu ko khinchkar tabhi dhamm dhamm pitna shuru kar diya kaha ki kyon re, jhooth bolta hai?
teri chamDi na udheDi to main nahin
mainne beech bachaw karke chhunnu ko bachaya wo shahid ki bhanti pitta raha tha roya bilkul nahin aur ek kone mein khaDe ashutosh ko jane kis bhaw se dekh raha tha
khair, mainne sabko chhutti di kaha, jao beta chhunnu khelo uski man ko kaha, aap use mariyega nahin aur pazeb koi aisi baDi cheez nahin hai
chhunnu chala gaya tab, uski man ne puchha ki aap use kasurwar samajhten hain?
mainne kaha ki malum to hota hai ki use kuch pata hai aur wo mamle mein shamil hai
is par chhunnu ki man ne pas baithi hui meri patni se kaha, chalo bahanji, main tumhein apna sara ghar dikhaye deti hoon
ek ek cheez dekh lo hogi pazeb to jayegi kahan?
mainne kaha, chhoDiye bhi bebat ko baat baDhane se kya phayda so jyon tyon mainne unhen dilasa diya nahin to wo chhunnu ko peet pat haal behal kar Dalne ka pran hi uthaye le rahi thi
khair, jis tis bhanti bakheDa tala main is jhanjhat mein daphtar bhi samay par nahin ja saka jate wakt shirimati ko kah gaya ki dekho, ashutosh ko dhamkana mat pyar se sari baten puchhna dhamkane se bachche bigaD jate hain, aur hath kuch nahin aata samjhi n?
sham ko daphtar se lauta to shirimati se suchana di ki ashutosh ne sab batala diya hai gyarah aane paise mein wo pazeb patang wale ko de di hai paise usne thoDe thoDe karke dene ko kahe hain panch aane jo diye wo chhunnu ke pas hain
is tarah ratti ratti baat usne kah di hai kahne lagi ki mainne baDe pyar se poochh puchhkar ye sab uske pet mein se nikala hai do teen ghante mein magaz marti rahi hay ram, bachche ka bhi kya ji hota hai
main sunkar khush hua mainne kaha ki chalo achchha hai,ab panch aane bhejkar pazeb mangwa lenge lekin ye patang wala bhi kitna badmash hai, bachchon ke hath se aisi chijen leta hai use police mein de dena chahiye uchakka kahin ka!
phir mainne puchha ki ashutosh kahan hai?
unhonne bataya ki bahar hi kahin khel khaal raha hoga
mainne kaha ki bansi, jakar use bula to lao
bansi gaya aur usne aakar kaha ki we abhi aate hain
kya kar raha hai?
chhunnu ke sath gilli DanDa khel rahe hain
thoDi der mein ashutosh aaya tab mainne use god mein lekar pyar kiya aate aate uska chehra udas ho gaya aur god mein lene par bhi wo koi wishesh prasann nahin malum nahin hua uski man ne khush hokar kaha ki ashutosh ne sab baten apne aap puri puri bata di hain hamara ashutosh baDa sachcha laDka hai
ashutosh meri god mein tika raha lekin apni baDai sunkar bhi usko kuch harsh nahin hua,aisa pratit hota tha mainne kaha ki aao chalo ab kya baat hai kyon hazrat, tumko panch hi aane to mile hain n? hum se panch aane mang lete to kya hum na dete? suno,ab se aisa mat karna, bete!
kamre mein jakar mainne usse phir puchhatachh ki, kyon beta, patang wale ne panch aane tumhein diye n?
han!
aur wo chhunnu ke pas hain n!
han!
abhi to uske pas honge n!
nahin
kharch kar diye!
nahin
nahin kharch kiye?
han
kharch kiye, ki nahin kharch kiye?
us or se parashn karne wo meri or dekhta raha,uttar nahin diya
bataon kharch kar diye ki abhi hain?
jawab mein usne ek bar han kaha to dusri baat nahin kaha
mainne kaha,to ye kyon nahin kahte ki tumhein nahin malum hai?
is bar bhi wo nahin bola to mainne kan pakaDkar uske kan kheench liye wo bina ansu laye gum sum khaDa raha
ab bhi nahin bologe?
wo Dar ke mare pila ho aaya lekin bol nahin saka mainne jor se bulaya bansi yahan aao, inko le jakar kothari mein band kar do
bansi naukar use uthakar le gaya aur kothari mein moond diya
das minat baad phir use pas bulwaya uska munh suja hua tha bina kuch bole uske awnth hil rahe the kothari mein band hokar bhi wo roya nahin
mainne kaha, kyon re, ab to akal i?
wo sunta hua gumsum khaDa raha
achchha, patang wala kaun sa? dai taraf ka chaurahe wala?
usne kuch othon mein hi baDbaDa diya jise main kuch samajh na saka
wah chaurahe wala? bolo
han
dekho, apne chacha ke sath chale jao bata dena ki kaun sa hai phir use swayan bhugat lenge samajhte ho n?
ye kahkar mainne apne bhai ko bulwaya sab baat samjhakar kaha, dekho,panch aane ke paise le jao pahle tum door rahna ashutosh paise le jakar use dega aur apni pazeb mangega awwal to ye pazeb lauta hi dega nahin to use Dantna aur kahna ki tujhe police ke supurd kar dunga bachchon se mal thagta hai? samjhe? narmi ki jarurat nahin hain
aur ashutosh, ab jao apne chacha ke sath jao wo apni jagah par khaDa tha sunkar bhi tas se mas hota dikhai nahin diya
nahin jaoge!
usne sir hila diya ki nahin jaunga
mainne tab use samjhakar kaha ki bhaiya ghar ki cheej hai, dam lage hain bhala panch aane mein rupyon ka mal kisi ke hath kho doge! jao, chacha ke sang jao tumhein kuch nahin kahna hoga han, paise de dena aur apni cheej wapas mang lena de to de, nahin de to nahin de tumhara isse koi sarokar nahin sach hai na, bete! ab jao
par wo jane ko taiyar hi nahin dikha mujhe laDke ki gustakhi par baDa bura malum hua bola, ismen baat kya hai?
ismen mushkil kahan hai? samjhakar baat kar rahe hai so samajhta hi nahin, sunta hi nahin mainne kaha ki, kyon re nahin jayega?
usne phir sir hila diya ki nahin jaunga
mainne parkash, apne chhote bhai ko bulaya kaha, parkash, ise pakaDkar le jao
parkash ne use pakDa aur ashutosh apne hath pairon se uska pratikar karne laga wo sath jana nahin chahta tha mainne apne upar bahut jabr karke phir ashutosh ko puchkara, ki jao bhai! Daro nahin apni cheez ghar mein ayegi
itni si baat samajhte nahin parkash ise god mein uthakar le jao aur jo cheej mange use bajar mein dila dena jao bhai ashutosh!
par uska munh phula hua tha jaise taise bahut samjhane par wo parkash ke sath chala aise chala mano pair uthana use bhari ho raha ho aath baras ka ye laDka hone ko aaya phir bhi dekho na ki kisi bhi baat ki usmen samajh nahin hain mujhe jo gussa aaya ki kya batlaun! lekin ye yaad karke ki gusse se bachche sambhalne ki jagah bigaDte hain, main apne ko dabata chala gaya khair, wo gaya to mainne chain ki sans li
lekin dekhta kya
mainne puchha, kyon?
bola ki ashutosh bhag aaya hai
mainne kaha ki ab wo kahan hai?
wah rutha khaDa hai,ghar mein nahin aata
jao, pakaDkar to lao
wo pakDa hua aaya mainne kaha, kyon re, tu shararat se baz nahin ayega? bol, jayega ki nahin?
wo nahin bola to mainne kas kar uske do chante diye thappaD lagte hi wo ek dam chikha,par fauran chup ho gaya wo waise hi mere samne khaDa raha ki kuch der mein parkash laut aaya hai
mainne use dekhkar mare gusse se kaha ki le jao ise mere samne se jakar kothari mein band kar do
dusht! is bar wo aadh ek ghante band raha mujhe khayal aaya ki main theek nahin kar raha hoon, lekin jaise koi dusra rasta na dikhta tha mar pitkar man ko thikana dene ki aadat paD kai thi, aur kuch abhyas na tha
khair, mainne is beech parkash ko kaha ki tum donon patang wale ke pas jao malum karna ki kisne pazeb li hai hoshiyari se malum karna malum hone par rekhta karna murawwat ki
jarurat nahin samjhe parkash gaya aur lautne par bataya ki uske pas pazeb nahin hai
sunkar main jhalla aaya,kaha ki tumse kuch kaam nahin ho sakta jara si baat nahin hui,tumse kya ummid rakhi jaye? wo apni saphai dene laga mainne kaha, bus, tum jao
parkash mera bahut lihaज़ manata tha wo munh Dalkar chala gaya kothari khulwane par ashutosh ko pharsh par sota paya uske chehre par ab bhi ansu nahin the sach puchho to mujhe us samay balak par karuna hui lekin adami mein ek hi sath jane kya kya wirodhi bhaw uthte hain! mainne use jagaya wo haDabDakar utha mainne kaha, kaho, kya haalat hai?
thoDi der tak wo samjha hi nahin phir shayad pichhla silsila yaad aaya jhat uske chehre par wahin jid, akaD or pratirodh ke bhaw dikhai dene lage
mainne kaha ki ya to raji raji chale jao nahin to is kothari mein phir band kiye dete hain ashutosh par iska wishesh prabhaw paDa ho, aisa malum nahin hua
khair, use pakaDkar laya aur samjhane laga mainne nikalkar use ek rupaya diya aur kaha, beta, ise patang wale ko de dena aur pazeb mang lena koi ghabrane ki baat nahin tum samajhdar laDke ho
usne kaha ki jo pazeb uske pas nahin hui to wo kahan se dega?
iska kya matlab, tumne kaha na ki panch aane mein pazeb di hai na ho to chhunnu ko bhi sath le lena samjhe? wo chup ho gaya akhir samjhane par jane ko taiyar hua mainne prempurwak use parkash ke sath jane ko kaha
uska munh bhari dekhkar Dantane wala hi tha ki itne mein samne uski bua dikhai di bua ne ashutosh ke sir par hath rakh kar puchha ki kahan ja rahe ho, main to tumhare liye kele aur mithai lai hoon ashutosh ka chehra rutha hi raha mainne bua se kaha ki use roko mat, jane do
ashutosh rukne ko udyat tha wo chalne mein anakani dikhane laga bua ne puchha, kya baat hai?
mainne kaha, koi baat nahin, jane do na use
par ashutosh machalne par aa gaya tha mainne Dantakar kaha, parkash, ise le kyon nahin jate ho?
bua ne kaha ki baat kya hai? kya baat hai?
mainne pukara, bansi, tu bhi sath ja beech se lautne na pae so mere adesh par donon ashutosh ko jabardasti uthakar samne se le gaye bua ne kaha, kyon use sata rahe ho?
mainne kaha ki kuch nahin, zara yon hi phir main unke sath idhar udhar ki baten le baitha rajaniti rashtra ki hi nahin hoti, muhalle mein bhi rajaniti hoti hai ye bhaar istriyon par tikta hai kahan kya hua, kya hona chahiye ityadi charcha istriyon ko lekar rang phailati hai isi prakar kuch baten huin, phir chhota sa baksa sarka kar boli, inmen wo kagaj hai jo tumne mangen the aur yahan—yah kah kar unhonne apne baskat ki jeb mein hath Dalkar pazeb nikalkar samne ki, jaise samne bichchhu hon main bhaybhit bhaw se kah utha ki ye kya? boli ki us roz bhool se ye ek pazeb mere sath chali gai thi
bajar mein ek nai tarah ki pazeb chali hai pairon mein paDkar we baDi achchhi malum hoti hain unki kaDiyan aapas mein lachak ke sath juDi rahti hain ki pazeb ka mano nij ka akar kuch nahin hai, jis panw mein paDe usi ke anukul hi rahti hain pas paDos mein to sab nanhin baDi ke pairon mein aap wahi pazeb dekh lijiye ek ne pahni ki phir dusri ne bhi pahni dekha dekhi mein is tarah unka na pahanna mushkil ho gaya hai
hamari munni ne bhi kaha ki babuji,ham pazeb pahnenge boliye bhala kathinai se chaar baras ki umr aur pazeb pahnegi
mainne kaha,kaisi pazeb?
boli,wahi jaisi rukman pahanti hai,jaisi shila pahanti hai
mainne kaha,achchha achchha
boli,main to aaj hi manga lungi
mainne kaha, achchha bhai aaj sahi
us wakt to khair munni kisi kaam mein bahal gai lekin jab dopahar i munni ki bua,tab wo munni sahj manne wali na thi bua ne munni ko mithai khilai aur god mein liya aur kaha ki achchha,to teri pazeb abke itwar ko jarur leti aungi
itwar ko bua i aur pazeb le i munni pahankar khushi ke mare yahan se wahan thumakti phiri rukman ke pas gai aur kaha dekh rukman, meri pazeb shila ko bhi apni pazeb dikhai sabne pazeb pahni dekhkar use pyar kiya aur tarif ki sachmuch wo chandi ki saphed do teen laDiyan si takhnon ke charon or lipatkar, chupchap bichhi hui, bahut hi sughaD lagti thi, aur bachchi ki khushi ka thikana na tha aur hamare mahashay ashutosh, jo munni ke baDe bhai the, pahle to munni ko saji baji dekhkar baDe khush hue wo hath pakaDkar apni baDhiya munni ko pazeb sahit dikhane ke liye aas pas le gaye munni ki pazeb ka gauraw unhen apna bhi malum hota tha wo khoob hanse aur tali piti, lekin thoDi der baad wo thumakne lage ki munni ko
pazeb di, so hum bhi baisikil lenge bua ne kaha ki achchha beta abke janm din ko tujhe baisikil dilwayenge
ashutosh babu ne kaha ki hum to abhi lenge
bua ne kaha, chhi chhi, tu koi laDki hai? jid to laDkiyan kiya karti hain aur laDkiyan roti hain
kahin babu sahab log rote hain?
ashutosh babu ne kaha ki to hum baisikil jarur lenge janm din wale roj bua ne kaha ki han, ye baat pakki rahi, janm din par tumko baisikil milegi is tarah wo itwar ka din hansi khushi pura hua sham hone par bachchon ki bua chali gai pazeb ka shauk ghaDibhar ka tha wo phir utarkar rakh rakha di gai; jisse kahin kho na jaye pazeb wo barik aur subuk kaam ki thi aur khase dam lag gaye the
shrimtiji ne hamse kaha, kyon ji, lagti to achchhi hai, main bhi apne liye banwa loon?
mainne kaha ki kyon na banwaon! tum kaun chaar baras ki nahin ho?
khair, ye hua par main raat ko apni mej par tha ki shirimati ne aakar kaha ki tumne pazeb to nahin dekhi?
mainne ashchary se kaha ki kya matlab?
boli ki dekho,yahan mej wage par to nahin hai? ek to hai par dusre pair ki milti nahin hai jane kahan gai?
mainne kaha ki jayegi kahan? yahin kahin dekh lo mil jayegi
unhonne mere mej ke kagaj uthane dharne shuru kiye aur almari ki kitaben tatol Dalne ka bhi mansuba dikhaya
mainne kaha ki ye kya kar rahi ho? yahan wo kahan se ayegi?
jawab mein wo mujhi se puchhne lagi ki phir kahan hai?
mainne kaha tumhin ne to rakhi thi kahan rakhi thee?
batlane lagi ki dopahar ke baad koi do baje utarkar donon ko achchhi tarah sanbhalakar us niche wale baks mein rakh di theen ab dekha to ek hai,dusri gayab hai
mainne kaha ki to chalkar wo is kamre mein kaise aa jayegi? bhool ho gai hogi ek rakhi hogi,ek wahin kahin pharsh par chhoot gai hogi dekho,mil jayegi kahin ja nahin sakti
is par shirimati kaha suni karne lagin ki tum to aise hi ho khud laparwah ho,dosh ulte mujhe dete ho kah to rahi hoon ki mainne donon sanbhalakar rakhi theen
mainne kaha ki sanbhalakar rakhi theen,to phir yahan wahan kyon dekh rahi thee? jahan rakhi theen wahin se le lo na wahan nahin hai to phir kisi ne nikali hi hogi
shirimati bolin ki mera bhi yahi khyal ho raha hai ho na ho, bansi naukar ne nikali ho mainne rakhi,tab wo wahan maujud tha
mainne kaha,to usse puchha?
bolin, wo to saph inkar kar raha hai
mainne kaha, to phir?
shirimati jor se boli, to phir main kya bataun? tumhein to kisi baat ki phikar hai nahi Dantakar kahte kyon nahin ho, use bansi ko bulakar? jarur pazeb usi ne li hai
mainne kaha ki achchha, to use kya kahna hoga? ye kahun ki la bhai pazeb de de!
shirimati jhalla kar bolin ki ho chuka sab kuch tumse tumhin ne to us naukar ki jat ko shahjor bana rakha hai
Dant na phatkar,naukar aise sir na chaDhega to kya hoga?
bolin ki kah to rahi hoon ki kisi ne use baks se nikala hi hai aur solah mein pandrah aane ye bansi hai sunte ho na, wahi hai
mainne kaha ki mainne bansi se puchha tha usne nahin li malum hoti
is par shirimati ne kaha ki tum naukaron ko nahin jante we baDe chhante hote hain bansi chor jarur hai nahin to kya pharishte lene aate?
mainne kaha ki tumne ashutosh se bhi puchha?
bolin,puchha tha wo to khud trunk aur baks ke niche ghus ghuskar khoj lagane mein meri madad karta raha hai wo nahin le sakta
mainne kaha, use patang ka baDa shauk hai
bolin ki tum to use batate barajte kuch ho nahin umar hoti ja rahi hai wo yon hi rah jayega tumhin ho use patang ki shah dene wale
mainne kaha ki jo kahin pazeb hi paDi mil gai ho to?
bolin, nahin, nahin! milti to wo bata na deta?
khair,baton baton mein malum hua ki us sham ashutosh patang aur Dor ka pinna naya laya hai
shirimati ne kaha ki ye tumhin ho jisne patang ki use ijazat di bus sare din patang patang ye nahin ki kabhi use bithakar sabak ki bhi koi baat puchho main sochti hoon ki ek din toD taD doon uski sab Dor aur patang
mainne kaha ki khair; chhoDo kal sawere poochh tachh karenge
sawere bulakar mainne gambhirta se usse puchha ki kyon beta,ek pazeb nahin mil rahi hai,tumne to nahin dekhi? wo gum ho gaya jaise naraz ho usne sir hilaya ki usne nahin li par munh nahin khola
mainne kaha ki dekho bete, li ho to koi baat nahin, sach bata dena chahiye uska munh aur bhi phool aaya aur wo gumsum baitha raha
mere man mein us samay tarah tarah ke siddhant aaye mainne sthir kiya ki apradh ke prati karuna hi honi chahiye
rosh ka adhikar nahin hai prem se hi apradh writi ko jita ja sakta hai atank se use dabana theek nahin hai balak ka swbhaw komal hota hai aur sada hi usse sneh se wywahar karna chahiye, ityadi
mainne kaha ki beta ashutosh, tum ghabrao nahin sach kahne mein ghabrana nahin chahiye li ho to khul kar kah do, beta!
hum koi sach kahne ki saja thoDe hi de sakte hain balki bolne par to inam mila karta hai
ashutosh tab baitha sunta raha uska munh suja tha wo samne meri ankhon mein nahin dekh raha tha rah rahkar uske mathe par bal paDte the
kyon bete,tumne li to nahin?
usne sir hilakar krodh se asthir aur tej awaz mein kaha ki mainne nahin li, nahin li, nahin li ye kahkar wo rone ko ho aaya, par roya nahin ankhon mein ansu rok liye us wakt mujhe pratit hua, ugrata dosh ka lachchhan hai
mainne kaha, dekho beta, Daro nahin; achchha jao, DhunDho; shayad kahin paDi hui wo pazeb mil jaye mil jayegi to hum tumhein inam denge
wo chala gaya aur dusre kamre mein jakar pahle to ek kone mein khaDa ho gaya kuch der chupchap khaDe rahkar wo phir yahan wahan pazeb ki talash mein lag gaya
mainne kaha ki sandeh to mujhe hota hai naukar ka to kaam ye hai nahin!
shirimati ne kaha, nahin ji, aashu bhala kyon lega?
main kuch bola nahin mera man jane kaise gambhir prem ke bhaw se ashutosh ke prati umaD raha tha mujhe aisa malum hota tha ki theek is samay ashutosh ko hamein apni sahanubhuti se wanchit nahin karna chahiye balki kuch atirikt sneh is samay balak ko milna chahiye mujhe ye ek bhari durghatna malum hoti thi malum hota tha ki agar ashutosh ne chori ki hai to uska itna dosh nahin hai; balki ye hamare upar baDa bhari ilzam hai bachche mein chori ki aadat bhayawah ho sakti hai,lekin bachche ke liye waisi lachari upasthit ho i, ye aur bhi kahin bhayawah hai ye hamari alochana hai hum us chori se bari nahin ho sakte
mainne bulakar kaha, achchha suno dekho, meri taraph dekho, ye batao ki pazeb tumne chhunnu ko di hai n?
wo kuch der kuch nahin bola uske chehre par rang aaya aur gaya main ek ek chhaya taDana chahta tha
mainne ashwasan dete hue kaha ki Darne ki koi baat nahin han, han, bolo Daro nahin theek batao, bete! kaisa hamara sachcha beta hai!
mano baDi kathinai ke baad usne apna sir hilaya
mainne bahut khush hokar kaha ki di hai na chhunnu ko? usne sir hila diya
atyant santwana ke swar mein snehpurwak mainne kaha ki munh se bolo chhunnu ko di hai?
usne kaha, han aan
mainne atyant harsh ke sath donon banhon mein lekar use utha liya kaha ki aise hi bol diya karte hain achchhe laDke aashu hamara raja beta hai garw ke bhaw se use god mein liye liye main uski man ki taraph gaya ullaspurwak bola ki dekho hamare bete ne sach kabul kiya hai pazeb usne chhunnu ko di hai sunkar man uski bahut khush ho ain unhonne use chuma bahut shabashi di aur uski balaiyan lene lagi!
ashutosh bhi muskra aaya, agarche ek udasi bhi uske chehre se door nahin hui thi
uske baad alag le jakar mainne baDe prem se puchha ki pazeb chhunnu ke pas hai n? jao, mang la sakte ho usse?
ashutosh meri or dekhta hua baitha raha mainne kaha ki jao bete! le aao usne jawab mein munh nahin khola
mainne agrah kiya to wo bola ki chhunnu ke pas nahin hui to wo kahan se dega?
mainne kaha ki to jisko usne di hogi uska nam bata dega sunkar wo chup ho gaya mere bar bar kahne par wo yahi kahta raha ki pazeb chhunnu ke pas na hui to wo dega kahan se?
ant mein harkar mainne kaha ki wo kahin to hogi achchha,tumne kahan se uthai thee?
paDi mili thi
aur phir niche jakar wo tumne chhunnu ko dikhai?
han!
phir usi ne kaha ki ise bechenge!
han!
kahan bechne ko kaha?
kaha mithai layenge?
nahin,patang layenge?
han!
so pazeb chhunnu ke pas rah gai?
han!
to usi ke pas honi chahiye n! ya patang wale ke pas hogi! jao,beta,usse le aao kahna,hamare babuji tumhein inam denge
wo jana nahin chahta tha usne phir kaha ki chhunnu ke pas nahin hui to kahan se dega!
mujhe uski jid buri malum hui mainne kaha ki to kahin tumne use gaD diya hai? kya kiya hai? bolte kyon nahin?
wo meri or dekhta raha, aur kuch nahin bola
mainne kaha,kuchh kahte kyon nahin?
wo gumsum rah gaya aur nahin bola
mainne Dapatkar kaha ki jao,jahan ho wahin se pazeb lekar aao
jab wo apni jagah se nahin utha aur nahin gaya to mainne use kan pakaDkar uthaya kaha ki sunte ho? jao, pazeb lekar aao nahin to ghar mein tumhara kaam nahin hai us tarah uthaya jakar wo uth gaya aur kamre se bahar nikal gaya nikalkar baramde ke ek kone mein rutha munh banakar khaDa rah gaya
mujhe baDa kshaobh ho raha tha ye laDka sach bolkar ab kis baat se ghabra raha hai, ye main kuch samajh na saka mainne bahar aakar dhire se kaha ki jao bhai, jakar chhunnu se kahte kyon nahin ho?
pahle to usne koi jawab nahin diya aur jawab diya to bar bar kahne laga ki chhunnu ke pas nahin hui to wo kahan se dega?
mainne kaha ki jitne mein usne bechi hogi wo dam de denge samjhe na jao, tum kaho to
chhunnu ki man to kah rahi hai ki uska laDka aisa kaam nahin kar sakta usne pazeb nahin dekhi
jis par ashutosh ki man ne kaha ki nahin tumhara chhunnu jhooth bolta hai kyon re ashutosh, taine di thi n?
ashutosh ne dhire se kaha, han, di thi
dusre or se chhunnu baDhkar aaya aur hath phatkarkar bola ki mujhe nahin di kyon re, mujhe kab di thee?
ashutosh ne jid bandhakar kaha ki di to thi kah do, nahin di thee?
natija ye hua ki chhunnu ki man ne chhunnu ko khoob pita aur khud bhi rone lagi kahti jati ki hay re, ab hum chor ho gaye kulachchhani aulad jane kab mitegi?
baat door tak phail chali paDos ki istriyon mein pawan paDne lagi aur shirimati ne ghar lautkar kaha ki chhunnu aur uski man donon ek se hain mainne kaha ki tumne teja teji kyon kar Dali? aisi koi baat bhala sulajhti hai!
boli ki han, main tej bolti hoon ab jao na, tumhin unke pas se pazeb nikalkar late kyon nahin? tab janun, jab pazeb nikalwa do
mainne kaha ki pazeb se baDhkar shanti hai aur ashanti se to pazeb mil nahin jayegi
shirimati budabudati hui naraz hokar mere samne se chali gain
thoDi der baad chhunnu ki man hamare ghar i shirimati unhen lai thi ab unke beech garmi nahin thi, unhonne mere samne aakar kaha ki chhunnu to pazeb ke liye inkar karta hai wo pazeb kitne ki thi, main uske dam bhar sakti hoon
mainne kaha, yah aap kya kahti hai! bachche bachche hain aapne chhunnu se sahuliyat se puchha bhee!
unhonne usi samay chhunnu ko bulakar mere samne kar diya kaha ki kyon re, bata kyon nahin deta jo taine pazeb dekhi ho?
chhunnu ne jor se sir hilakar inkar kiya aur bataya ki pazeb ashutosh ke hath mein mainne dekhi thi aur wo patang walon ko de aaya hai mainne khoob dekhi thi, wo chandi ki thi
tumhen theek malum hai?
han, wo mujhse kah raha tha ki tu bhi chal patang layenge
pazeb kitni baDi thee? batao to
chhunnu ne uska akar bataya, jo theek hi tha
mainne uski man ki taraph dekhkar kaha dekhiye na pahle yahi kahta tha ki mainne pazeb dekhi tak nahin ab kahta hai ki dekhi hai
man ne mere samne chhunnu ko khinchkar tabhi dhamm dhamm pitna shuru kar diya kaha ki kyon re, jhooth bolta hai?
teri chamDi na udheDi to main nahin
mainne beech bachaw karke chhunnu ko bachaya wo shahid ki bhanti pitta raha tha roya bilkul nahin aur ek kone mein khaDe ashutosh ko jane kis bhaw se dekh raha tha
khair, mainne sabko chhutti di kaha, jao beta chhunnu khelo uski man ko kaha, aap use mariyega nahin aur pazeb koi aisi baDi cheez nahin hai
chhunnu chala gaya tab, uski man ne puchha ki aap use kasurwar samajhten hain?
mainne kaha ki malum to hota hai ki use kuch pata hai aur wo mamle mein shamil hai
is par chhunnu ki man ne pas baithi hui meri patni se kaha, chalo bahanji, main tumhein apna sara ghar dikhaye deti hoon
ek ek cheez dekh lo hogi pazeb to jayegi kahan?
mainne kaha, chhoDiye bhi bebat ko baat baDhane se kya phayda so jyon tyon mainne unhen dilasa diya nahin to wo chhunnu ko peet pat haal behal kar Dalne ka pran hi uthaye le rahi thi
khair, jis tis bhanti bakheDa tala main is jhanjhat mein daphtar bhi samay par nahin ja saka jate wakt shirimati ko kah gaya ki dekho, ashutosh ko dhamkana mat pyar se sari baten puchhna dhamkane se bachche bigaD jate hain, aur hath kuch nahin aata samjhi n?
sham ko daphtar se lauta to shirimati se suchana di ki ashutosh ne sab batala diya hai gyarah aane paise mein wo pazeb patang wale ko de di hai paise usne thoDe thoDe karke dene ko kahe hain panch aane jo diye wo chhunnu ke pas hain
is tarah ratti ratti baat usne kah di hai kahne lagi ki mainne baDe pyar se poochh puchhkar ye sab uske pet mein se nikala hai do teen ghante mein magaz marti rahi hay ram, bachche ka bhi kya ji hota hai
main sunkar khush hua mainne kaha ki chalo achchha hai,ab panch aane bhejkar pazeb mangwa lenge lekin ye patang wala bhi kitna badmash hai, bachchon ke hath se aisi chijen leta hai use police mein de dena chahiye uchakka kahin ka!
phir mainne puchha ki ashutosh kahan hai?
unhonne bataya ki bahar hi kahin khel khaal raha hoga
mainne kaha ki bansi, jakar use bula to lao
bansi gaya aur usne aakar kaha ki we abhi aate hain
kya kar raha hai?
chhunnu ke sath gilli DanDa khel rahe hain
thoDi der mein ashutosh aaya tab mainne use god mein lekar pyar kiya aate aate uska chehra udas ho gaya aur god mein lene par bhi wo koi wishesh prasann nahin malum nahin hua uski man ne khush hokar kaha ki ashutosh ne sab baten apne aap puri puri bata di hain hamara ashutosh baDa sachcha laDka hai
ashutosh meri god mein tika raha lekin apni baDai sunkar bhi usko kuch harsh nahin hua,aisa pratit hota tha mainne kaha ki aao chalo ab kya baat hai kyon hazrat, tumko panch hi aane to mile hain n? hum se panch aane mang lete to kya hum na dete? suno,ab se aisa mat karna, bete!
kamre mein jakar mainne usse phir puchhatachh ki, kyon beta, patang wale ne panch aane tumhein diye n?
han!
aur wo chhunnu ke pas hain n!
han!
abhi to uske pas honge n!
nahin
kharch kar diye!
nahin
nahin kharch kiye?
han
kharch kiye, ki nahin kharch kiye?
us or se parashn karne wo meri or dekhta raha,uttar nahin diya
bataon kharch kar diye ki abhi hain?
jawab mein usne ek bar han kaha to dusri baat nahin kaha
mainne kaha,to ye kyon nahin kahte ki tumhein nahin malum hai?
is bar bhi wo nahin bola to mainne kan pakaDkar uske kan kheench liye wo bina ansu laye gum sum khaDa raha
ab bhi nahin bologe?
wo Dar ke mare pila ho aaya lekin bol nahin saka mainne jor se bulaya bansi yahan aao, inko le jakar kothari mein band kar do
bansi naukar use uthakar le gaya aur kothari mein moond diya
das minat baad phir use pas bulwaya uska munh suja hua tha bina kuch bole uske awnth hil rahe the kothari mein band hokar bhi wo roya nahin
mainne kaha, kyon re, ab to akal i?
wo sunta hua gumsum khaDa raha
achchha, patang wala kaun sa? dai taraf ka chaurahe wala?
usne kuch othon mein hi baDbaDa diya jise main kuch samajh na saka
wah chaurahe wala? bolo
han
dekho, apne chacha ke sath chale jao bata dena ki kaun sa hai phir use swayan bhugat lenge samajhte ho n?
ye kahkar mainne apne bhai ko bulwaya sab baat samjhakar kaha, dekho,panch aane ke paise le jao pahle tum door rahna ashutosh paise le jakar use dega aur apni pazeb mangega awwal to ye pazeb lauta hi dega nahin to use Dantna aur kahna ki tujhe police ke supurd kar dunga bachchon se mal thagta hai? samjhe? narmi ki jarurat nahin hain
aur ashutosh, ab jao apne chacha ke sath jao wo apni jagah par khaDa tha sunkar bhi tas se mas hota dikhai nahin diya
nahin jaoge!
usne sir hila diya ki nahin jaunga
mainne tab use samjhakar kaha ki bhaiya ghar ki cheej hai, dam lage hain bhala panch aane mein rupyon ka mal kisi ke hath kho doge! jao, chacha ke sang jao tumhein kuch nahin kahna hoga han, paise de dena aur apni cheej wapas mang lena de to de, nahin de to nahin de tumhara isse koi sarokar nahin sach hai na, bete! ab jao
par wo jane ko taiyar hi nahin dikha mujhe laDke ki gustakhi par baDa bura malum hua bola, ismen baat kya hai?
ismen mushkil kahan hai? samjhakar baat kar rahe hai so samajhta hi nahin, sunta hi nahin mainne kaha ki, kyon re nahin jayega?
usne phir sir hila diya ki nahin jaunga
mainne parkash, apne chhote bhai ko bulaya kaha, parkash, ise pakaDkar le jao
parkash ne use pakDa aur ashutosh apne hath pairon se uska pratikar karne laga wo sath jana nahin chahta tha mainne apne upar bahut jabr karke phir ashutosh ko puchkara, ki jao bhai! Daro nahin apni cheez ghar mein ayegi
itni si baat samajhte nahin parkash ise god mein uthakar le jao aur jo cheej mange use bajar mein dila dena jao bhai ashutosh!
par uska munh phula hua tha jaise taise bahut samjhane par wo parkash ke sath chala aise chala mano pair uthana use bhari ho raha ho aath baras ka ye laDka hone ko aaya phir bhi dekho na ki kisi bhi baat ki usmen samajh nahin hain mujhe jo gussa aaya ki kya batlaun! lekin ye yaad karke ki gusse se bachche sambhalne ki jagah bigaDte hain, main apne ko dabata chala gaya khair, wo gaya to mainne chain ki sans li
lekin dekhta kya
mainne puchha, kyon?
bola ki ashutosh bhag aaya hai
mainne kaha ki ab wo kahan hai?
wah rutha khaDa hai,ghar mein nahin aata
jao, pakaDkar to lao
wo pakDa hua aaya mainne kaha, kyon re, tu shararat se baz nahin ayega? bol, jayega ki nahin?
wo nahin bola to mainne kas kar uske do chante diye thappaD lagte hi wo ek dam chikha,par fauran chup ho gaya wo waise hi mere samne khaDa raha ki kuch der mein parkash laut aaya hai
mainne use dekhkar mare gusse se kaha ki le jao ise mere samne se jakar kothari mein band kar do
dusht! is bar wo aadh ek ghante band raha mujhe khayal aaya ki main theek nahin kar raha hoon, lekin jaise koi dusra rasta na dikhta tha mar pitkar man ko thikana dene ki aadat paD kai thi, aur kuch abhyas na tha
khair, mainne is beech parkash ko kaha ki tum donon patang wale ke pas jao malum karna ki kisne pazeb li hai hoshiyari se malum karna malum hone par rekhta karna murawwat ki
jarurat nahin samjhe parkash gaya aur lautne par bataya ki uske pas pazeb nahin hai
sunkar main jhalla aaya,kaha ki tumse kuch kaam nahin ho sakta jara si baat nahin hui,tumse kya ummid rakhi jaye? wo apni saphai dene laga mainne kaha, bus, tum jao
parkash mera bahut lihaज़ manata tha wo munh Dalkar chala gaya kothari khulwane par ashutosh ko pharsh par sota paya uske chehre par ab bhi ansu nahin the sach puchho to mujhe us samay balak par karuna hui lekin adami mein ek hi sath jane kya kya wirodhi bhaw uthte hain! mainne use jagaya wo haDabDakar utha mainne kaha, kaho, kya haalat hai?
thoDi der tak wo samjha hi nahin phir shayad pichhla silsila yaad aaya jhat uske chehre par wahin jid, akaD or pratirodh ke bhaw dikhai dene lage
mainne kaha ki ya to raji raji chale jao nahin to is kothari mein phir band kiye dete hain ashutosh par iska wishesh prabhaw paDa ho, aisa malum nahin hua
khair, use pakaDkar laya aur samjhane laga mainne nikalkar use ek rupaya diya aur kaha, beta, ise patang wale ko de dena aur pazeb mang lena koi ghabrane ki baat nahin tum samajhdar laDke ho
usne kaha ki jo pazeb uske pas nahin hui to wo kahan se dega?
iska kya matlab, tumne kaha na ki panch aane mein pazeb di hai na ho to chhunnu ko bhi sath le lena samjhe? wo chup ho gaya akhir samjhane par jane ko taiyar hua mainne prempurwak use parkash ke sath jane ko kaha
uska munh bhari dekhkar Dantane wala hi tha ki itne mein samne uski bua dikhai di bua ne ashutosh ke sir par hath rakh kar puchha ki kahan ja rahe ho, main to tumhare liye kele aur mithai lai hoon ashutosh ka chehra rutha hi raha mainne bua se kaha ki use roko mat, jane do
ashutosh rukne ko udyat tha wo chalne mein anakani dikhane laga bua ne puchha, kya baat hai?
mainne kaha, koi baat nahin, jane do na use
par ashutosh machalne par aa gaya tha mainne Dantakar kaha, parkash, ise le kyon nahin jate ho?
bua ne kaha ki baat kya hai? kya baat hai?
mainne pukara, bansi, tu bhi sath ja beech se lautne na pae so mere adesh par donon ashutosh ko jabardasti uthakar samne se le gaye bua ne kaha, kyon use sata rahe ho?
mainne kaha ki kuch nahin, zara yon hi phir main unke sath idhar udhar ki baten le baitha rajaniti rashtra ki hi nahin hoti, muhalle mein bhi rajaniti hoti hai ye bhaar istriyon par tikta hai kahan kya hua, kya hona chahiye ityadi charcha istriyon ko lekar rang phailati hai isi prakar kuch baten huin, phir chhota sa baksa sarka kar boli, inmen wo kagaj hai jo tumne mangen the aur yahan—yah kah kar unhonne apne baskat ki jeb mein hath Dalkar pazeb nikalkar samne ki, jaise samne bichchhu hon main bhaybhit bhaw se kah utha ki ye kya? boli ki us roz bhool se ye ek pazeb mere sath chali gai thi
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।