ट्रेन की रफ़्तार तेज़ होती जा रही थी। दरवाज़े से लटके रामदेव के लिए धूल भरी तेज़ हवा में आँख खुली रखना मुश्किल था। कब तक लटका रहेगा बंद दरवाज़े पर? रामदेव ने दरवाज़े पर ज़ोर से थाप मारी। उसके कंधे से लटकता झोला गिरते-गिरते बचा।
कुछ देर बाद दरवाज़ा खुला। वह सँभलता हुआ अंदर घुसा और दरवाज़ा भिड़ाकर डिब्बे के गलियारे में गमछे से मूँगफली के छिलके और सिगरेट के टोंटों को हटाने लगा। दरवाज़ा खोलने वाले फ़ौजी ने घृणा से मुँह बिचकाया ‘भैणचो..मरने चले आते हैं! ये रिज़र्वेशन का डिब्बा है। तेरा रिज़र्वेशन है?’
रामदेव चुप! अठारह साल के साँवले, पतले रामदेव के लिए यह पहली लंबी यात्रा थी। अब तक उसने तिलरथ के अगले स्टेशन बरौनी तक ही रेल यात्रा की थी। रिज़र्वेशन से उसका पाला ही नहीं पड़ा था। पहली दफ़ा वह बिहार तो क्या, अपने जिले से भी बाहर निकला था। अपने भाई विशुनदेव से उसने ज़रूर सुन रखा था कि पंजाब जाने में क्या-क्या परेशानी होती है। दिल्ली होकर पंजाब जाने में सुविधा होती है। और, आसाम मेल दिल्ली जाती है। बरौनी स्टेशन पर डिब्बे में लोग बोरे में सूखी मिर्च की तरह ढूंसे जाते थे। आख़िर ट्रेन खुल गई तो जो डिब्बा सामने आया, उसी में दौड़कर लटक गया था।
‘टिकट है!’ रामदेव ने बमुश्किल कहा।
‘टिकट होने से क्या होता है? यह रिज़र्वेशन का डिब्बा है, समझे?’
अब रामदेव क्या करे, चुप, डरी आँखों से फ़ौजी को देखता रहा। पुरानी बेडौल पैंट और हैंडलूम की बेरंग शर्ट पहनकर रामदेव अपने मोहल्ले में ही आधुनिक होने का स्वांग कर सकता था। इस नई दुनिया में सारी चीज़ें अचंभे से भरी थीं।
कुर्ते और शलवार में लिपटी, सामने के बर्थ पर लेटी औरत ने अँग्रेज़ी उपन्यास को आँखों के सामने से हटाया और उस फ़ौजी से पूछा, ‘सिविल कंपार्टमेंट इज़ लाइक धर्मशाला...इज़ ही ए भैया?’
‘हाँ लगता तो है!’ फ़ौजी भुनभुनाकर रामदेव की ओर मुख़ातिब हो गया, ‘तुमको कहाँ जाना है?’
‘पंजाब।’
रामदेव को लगा कि वह यहाँ बैठा रहा तो इन बड़े लोगों की नज़र में चढ़ा रहेगा। वह उठा और बाथरूम के सामने वाले गलियारे में अँगोछा बिछाकर झोले का तकिया बनाकर लेट गया। ट्रेन में घुसने से लेकर पिछले एक सप्ताह तक के दृश्य उसकी आँखों के सामने घूम गए।
दसवीं का इम्तिहान ख़त्म होते ही माई पंजाब जाने-आने के लिए पैसे का इंतिज़ाम करने लगी थी। गाँव का कोई आदमी मार-काट की वजह से पंजाब जाकर उसके भैया विशुनदेव को ढूँढ़ने को तैयार नहीं था। कई लोगों से मिन्नत करने के बाद, माई रामदेव को ही पंजाब भेजने पर तैयार हो गई। पैसों की समस्या साँप की तरह फ़न काढ़े फुकार रही थी। पुश्तैनी पेशा-अनाज भूनने में क्या रखा है? कनसार में अनाज भुनवाने लोग आते नहीं। मकई की रोटी अशराफ़ लोग खाते नहीं। दाल इतनी महँगी है कि लोग चने की दाल बनवाएँगे कि कनसार में चना भुनवाकर सत्तू बनवाएँगे? उस पर इतनी मेहनत-गाँव के बग़ीचों, बंसवाड़ियों में सूखे पत्ते बटोरकर जमा करो, उन्हें जलाकर अनाज भूनकर पेट की आग ठंडी करो। किसी तरह एक शाम का भोजन जुट पाता। आख़िर माई उपले थापकर, गुल बनाकर बेचने लगी थी। तब किसी तरह भोजन चलने लगा। लेकिन कोई काम आ पड़ता तो क़र्ज़ लेने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचता था। इस बार भी पंडितजी ने ही पैसों की मदद की। भैया की शादी में क़र्ज़ बढ़ा तो मुश्किल हो गई। मूल तो मूल, सूद सुरसा की भाँति बढ़ने लगा। आख़िर भैया को थाली-लोटा, कंबल, वंशी लेकर कमाने पंजाब जाना पड़ा। वहाँ से वह पैसा भेजता तो माई सीधा पंडितजी को जाकर देती। क़र्ज़ चुकने को ही था कि अचानक सब कुछ बंद।
पंजाब में ख़ून-ख़राबे की ख़बर मिलती तो माई के साथ-साथ रामदेव का भी दिल डूबता। माई को पड़ोसी ताने मारते। इतना ही दुख था तो ख़ून-ख़राबे में बेटे को कमाने पंजाब काहे भेजा? अगर विशुनदेव पंजाब नहीं जाता तो वे सब बेघर हो जाते। जनार्दन उनके घर की ज़मीन ख़रीदने की ताक में था। पंडितजी का तक़ाज़ा तेज़ हो रहा था। घर ही बचाने-बसाने विशुनदेव को पंजाब जाना पड़ा था। बहू आती तो कहाँ रहती, क्या खाती? नई ज़िंदगी के कोंपल को माई कैसे मसलने देती? भरे मन से माई ने विशुनदेव को पंजाब जाने दिया था। सब ठीक-ठाक होता जा रहा था कि अचानक सब कुछ बंद।
लेटे-लेटे रामदेव ने क़मीज़ की चोर जेब में हाथ डाला। जेब में रेलवे टिकट, भाई के पते वाला पोस्टकार्ड और पैसों को छूकर उसे इत्मीनान हो आया। झोले का तकिया ठीक से जमाकर आँख बंद कर सोने की कोशिश की। ट्रेन की खटर-पटर, गलियारे में फैली बदबू थी ही। डर भी था और इतना था कि नींद में भी पंजाब-सी उथल-पुथल थी। विशुनदेव! ऐ विशुनदेव!
भैया पंजाब से पिछली दफ़ा लौटा तो वहाँ के क़िस्से ख़ूब सुनाता था। माई भी रोज़ रात उससे पंजाब के बारे में पूछती थी।
‘रोटी खाने? भात नई मिलै छौ?’
‘माई, ऊ लोग सब खाना के रोटी कहै छै! इ बड़का गिलास में चाह! ओह चाह हिया कहाँ?’
‘मर सरधुआ! चाह तो हिमैं बनबे करेई छै!’
‘नइगे माई, ऊ सब बनिहारवाला चाह में अफ़ीम के पानी मिलाए दै छै, वैइसे थकनी हेठ भे जाइछै! अ बनिहार लोग ख़ूब काम कइलक।’
‘कत्ते देर काम करै छहि?’
‘सात बजे भोर सै छ बजे साँझ तक! बीच में रोटी खाइके छुट्टी-एक घंटा।’
‘ख़ूब कि फटफटिया, ट्रैक्टर, जीप महल सन घर। दूगो बेटा। दिल्ली में नौकरी में लागल, टीभी से हो छै!’
‘उ कथी?’
‘जेना रेडियो में ख़ाली गाने बोलई छै ने, टीभी में गाना के साथ-साथ सिनेमा एहन फोटूओ देखेवई छै!’
‘मालिक मारै-पीटे त नईं न छौ!’
‘कखनो-कखनो, गाली हरदम भैनचो...भैनचो बकै छ।’
‘की करभी, पैसा कमेनाइ खेल नईं छै। मन त नईं लागै होतौ?’
‘ग़रीब नईं रहने माई, पंजाब कहियो नईं जैति अइ र इ पैसा...’
विशुनदेव का गौना सामने था। ख़र्चा जुटाने उसे दूसरी बार भी पंजाब जाना पड़ा। अपने इलाक़े में न साल भर मज़दूरी का उपाय, और मज़दूरी भी पंजाब से आधी। विशुनदेव पंजाब से थोड़ा भविष्य लाने गया था।
रात में कोई गाड़ी पंजाब नहीं जाती।
नियॉन लाइट से जगमगाती नई दिल्ली स्टेशन के प्लेटफ़ॉर्म पर उतरते ही उसे लगा कि इतने लोगों के समुद्र में वह खो जाएगा। भीड़, धक्कम-मुक्का, अजनबी लोग और इतनी रौशनी! उसने अपने सीने को कसकर दबा लिया ताकि टिकट, पैसा और पते वाला पोस्टकार्ड कोई मार न ले। वह ठिठक गया, पता नहीं गेट किधर है। आख़िर भीड़ में वह घुस गया। ओवर ब्रिज पारकर स्टेशन के बाहर आ गया।
बाहर टैक्सरी, कार और थ्री व्हीलर की क़तारें। रात का समय। सब कुछ स्वप्न-लोक-सा था जैसा उसने हिंदी फ़िल्मों में देखा था। आसाम मेल रास्ते में ही पाँच घंटे लेट हो गई थी। उसे मालूम था कि दिल्ली से ट्रेन या बस से उसे अमृतसर जाना पड़ेगा। वह मुसाफ़िरख़ाने की ओर बढ़ा। पंजाब जाने वाली गाड़ी के बारे में किससे पूछे, सब तो अफ़सर की तरह लग रहे थे। मुसाफ़िरख़ाने के एक कोने में कुछ साधारण मैले-कुचैले कपड़ों में थकी-बुझी आँखों वाले लोग टिन की बदरंग पेटियों के पास बैठे थे। उन्हीं की तरफ़ बढ़ा।
‘ऊ सामने वाली खिड़की पर जाकर पूछो!’
खिड़की पर कई लोग जमे थे। जब लोग हटे तो उसने बाबू से पूछा।
‘बाबू, अमृतसरवाली चली गई?’
‘हाँ!’
‘अब दूसरी गाड़ी कब जाएगी!’
‘अब तो भैया, कल जाएगी!’
‘इ तो बड़ा स्टेशन है?’
आजकल रात में कोई गाड़ी पंजाब नहीं जाती।’
वह मुड़ा, तो बाबू भी अपने दोस्त से बात करने लगा।
‘सारे हिंदुस्तान को पता है, रात में कोई ट्रेन पंजाब नहीं जाती फिर भी पूछ रहा था!’ बाबू के दोस्त के स्वर में उपहास था।
‘बिहारी भैया था!’ बाबू फिस्स से हँस पड़ा।
‘जलंधर, लुधियाने, सारे पंजाब में ये लोग भरे हैं।’
‘अरे बिहार से आने वाली गाड़ी को पंजाब में भैया एक्सप्रेस कहते हैं! उस तरफ़ हर गाड़ी में ये लोग ठूँसे रहेंगे।’
‘वहाँ इन्हें काम नहीं मिलता?’
‘काम मिलता तो पंजाब थोड़े ही मरने जाते! भूख थोड़े ही रुकती है, इसलिए भैया एक्सप्रेस चलती रहेगी...सरकार की पटरी, सरकार की गाड़ी सब है ही!’
घर पंजाब हो गया है
‘आजकल’ रामदेव के लिए बड़ा शब्द है।
पिछले चार महीने-सोते-जागते पहाड़ की तरह गुज़रे। भैया कैसा होगा? पंजाब में बहा ख़ून का हर क़तरा, वहाँ चली हर गोली माई को लगती। रेडियो विशुनदेव का हाल-चाल थोड़े ही बोलेगा। माई फिर भी पंडित जी के यहाँ रेडियो सुन आती। वह भी चाय की दुकान पर अख़बार पढ़ आता। रजिस्ट्री चिट्ठी लौट आई तो माई रात-भर रोती रही। बेगूसराय जाकर उसी पते पर तार भिजवाया लेकिन कुछ नहीं पता चला। माई मन्नतें माँगती, पंडित जी के पंचाँग से शगुन निकलवाती, रो-धोकर उपले-गुल बेचने फूटलाइज़र टाउनशिप निकल जाती। इतनी मेहनत पर मौसी टोकती तो माई का एक ही जवाब होता, ‘एगो बेटा पंजाब में, इ रमुआ पढ़ लिए जे एकरा पंजाब नईं जाए पड़ैय।’
भौजी के यहाँ से अक्सर पूछवाया जाता—कोई ख़बर मिली? माई को लगता—शादी टूट जाएगी। कोई कब तक जवान बेटी को घर बिठाए रखेगा। माई को लगता, बेटे का पता नहीं, पतोहू छूट रही है। कोशिश करती कि किसी तरह बिखरते घर को आँचल में समेटे रहे।
‘रमुआ से पुतोहू के बियाह के देबैई’, माई से यह सुनते ही रामदेव शर्म से काठ हो गया था। भौजी की साँवली, निर्दोष, बड़ी-बड़ी आँखों वाला चेहरा उसके सामने घूम गया था। अशराफ़ के घर में ऐसा होगा? शादी के बाद भैया पंजाब से लौट आया तो? माई पागल है!
लेकिन माई ने हारना नहीं सीखा था। जो कुछ बचा था, उसे छाती से चिपकाए रहना चाहती थी। एक चक्कर डाक बाबू के यहाँ लगा लेती। लोभ में बेटे को पंजाब भेज दिया, अब काहे को रोज़ चिट्ठी के लिए पूछती हो?’ पोस्टमैन उसे झिड़क देता।
माई का सूखा शरीर, पंडित जी का सूद, जनार्दन का मंसूबा, भौजी की उदासी, भाई के जीवन का संशय, रोज़ की किचकिच, माई का रुदन...रामदेव को लगता—घर पंजाब हो गया है। रात-रातभर सो नहीं पाता। पढ़ता-लिखता क्या ख़ाक! बस एक चीज़ क़ाबिज़ थी— पंजाब!
ख़ून की तरह जमा शहर।
अमृतसर आते-आते बस में यात्रियों की बातचीत सुनते-सुनते मन में ऐसा डर बैठ गया कि वह बस से भी डरने लगा।
बस से उतरते-उतरते फ़ैसला ले लिया—जो भी हो, जैसे-तैसे रात अमृतसर के बस अड्डे पर काट लेगा लेकिन बस से अटारी नहीं जाएगा। साढ़े छह बजे शाम से ही बस अड्डे पर हड़बोंग मची थी। सबको ऐसी जल्दी थी कि जैसे बाढ़ में बाँध टूट गया हो और सब जान बचाने के लिए भाग रहे हों। दुकानें फटाफट बंद हो रही थीं। ठेलेवाले अपनी दुकानें बढ़ा रहे थे। ख़ाली बसों के ड्राइवर-ख़लासी पास के ढाबों में जल्दी-जल्दी खाना खा रहे थे। ढाबे के मालिकों को भी जल्दी थी। इसलिए उनके नौकर भी रेस के घोड़ों की तरह हाँफ़ रहे थे। सबको एक ही डर था...सात बजे कर्फ़्यू लगने वाला था।
रामदेव ने मूँगफली वाले का अक्षरश: अनुसरण किया। अपना सत्तू घोलकर पी गया और उसी के साथ लेट गया। मूँगफली वाला राँची का ईसाई आदिवासी था। तीन साल पहले घर से भागकर यहाँ आया था। चेहरे पर बढ़ी दाढ़ी और सिर पर गमछे के मुरैठा से उसके सरदार होने का भ्रम होता था। हँसता तो चमकीले दाँत मोतियों की तरह जगमगा उठते। निष्पाप आँखें छलछला आतीं। जेम्स ‘अपने देस’ के रामदेव जैसे आदमी से मिलकर ख़ुश हो गया था। दोनों गठरी की तरह कोने में दुबके थे। और भी बहुत गठरियाँ थीं। गुमसुम!
कर्फ़्यू लग चुका था।
चादर की ओट में रामदेव ने झाँककर देखा। बाहर सब कुछ थमा था। इंजन की तरह दहाड़ता बस अड्डा लाश की तरह ख़ामोश था। न पंछी, न हवा, न कोई पत्ता हरकत कर रहा था। चीख़ भी निकलती तो डर से बर्फ़ हो जाती। चलती गोली हवा में थम जाती। पृथ्वी का घूमना जैसे बंद हो गया था। साँसें बे-आवाज़ चल रही थीं। मच्छर थे कि ग़लीज़ में बेफ़िक्री से भिनभिना रहे थे।
सन्नाटे में ही वर्दीवालों से भरी एक जीप गुज़र गई। रामदेव को लगा कि गर्दन पर से कोई धारदार चाकू गुज़र गया। इधर में ऐसा ही होता है। ‘जेम्स फुसफुसाया, ‘चुप सो जाओ, पेशाब करने भी मत जाना।’ रामदेव सोने की कोशिश करने लगा। दिन-भर की थकान के बावजूद उसे नींद नहीं आ रही थी।
रात के कोई ग्यारह बजे बस अड्डे पर जैसे कहर टूट पड़ा। वर्दी वाले सबों को बूट की ठोकरों से जगा रहे थे। पचास सवाल। कहाँ से आए हो? क्या मतलब है? डर से कोई हकलाया तो लात, घूसे, बंदूक़ के कुंदे से ठुकाई। तीन नौजवान सरदारों को घसीटते हुए ले गए। बिहार का नाम सुनकर वे आगे बढ़ गए थे। रामदेव फिर भी थर-थर काँपता रहा। जेम्स फिर सो गया जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो। लेकिन रामदेव के कानों में उन तीन नौजवानों की चीख़ ज़िद्दी मधुमक्खी की तरह भनभनाती रही। रफ़्ता-रफ़्ता सब चीज़ो की आदत हो जाती है। सो धीरे-धीरे शहर भी ख़ून की तरह जम गया।
अग्गे पाकिस्तान है!
स्टेशन पर टिकट लेकर बैठा तो उसे इत्मीनान आया। उसने अपनी जेब से मुड़ा-तुड़ा, बदरंग पोस्टकार्ड निकाला, और पता पढ़ने लगा—विशुनदेव, इंदर सिंह का फ़ार्म, गाँव रानीके, भाया अटारी, जिला अमृतसर (पंजाब)। पढ़कर उसने सामने बैठे बुज़ुर्ग सरदार की ओर बढ़ा दिया ताकि वे रानीके जाने का रास्ता बता दें।
सरदार जी ने अफ़सोस में सिर हिलाया और कहने लगे, ‘मैं हिंदी पढ़ना नहीं जानता। सारी उम्र उर्दू पढ़ी है। बस हिंदी समझ लेता हूँ। बता क्या है?’
‘मुझे रानी के अटारी गाँव जाना है। अनजान आदमी हूँ। बिहार से आया हूँ।’ रामदेव का संकोच सरदार जी की आत्मीयता से घुल गया और उसने पूरा पता पढ़ लिया।
‘संतोख सिंह वाला रानी के? अग्गे अटारी स्टेशन आऊँगा, तू उत्थे उतर जाणा। बाहर टाँगेवाले नूँ पुच्छ लईं। तू तो मुंडा-खुंडा है, पजदा-पजदा दो मील चला जाएगा। अच्छा सुण, अंबरसर दे बाहर बुर्जावालियाँ दी बस जांदी ए, तू सीधा रानीके उतर जाणा सी। गां दे बाहर की संतोख सिंह दी दो मंज़िली कोठी नज़र आउगी। उत्थे पुच्छ लेणा। सामने इंदर सिंह दा फ़ार्म है।’
रामदेव इतना ही समझ पाया कि अटारी स्टेशन से दो मील पर रानीके गाँव है। गाँव के बाहर संतोख सिंह की दो मंज़िली कोठी है। उसके सामने इंदर सिंह का फ़ार्म है।
‘एन्नी दुरो कल्ला किंदा आ गया? बिहार के हो कि यू.पी. के?’
‘बिहार। रानी के गाँव भाई को खोजने जा रहा हूँ।’
‘तेरी तो मूँछे भी नहीं फूटी हैं? पुत्तर हिम्मत ही इंसान दा नाम है।’
गाड़ी रुकते ही ‘अच्छा’ कहकर बुज़ुर्ग उतर गए। रामदेव उन्हें जाते, खिड़की से देखता रहा। गाड़ी खिसकी तो टिकट-चेकर सामने था।
‘टिकट?’ चेकर ने यांत्रिक लहजे में पूछा।
‘अटारी कितने स्टेशन है?’ रामदेव टिकट थमाते हुए पूछ बैठा।
‘पहली बाराँ आया तू?’ अगला स्टेशन है। उत्थे उतर जाणा, अग्गे पाकिस्तान है! चेकर टिकट पंच कर आगे बढ़ गया।
रामदेव सन्न! कहाँ आ गया? पाकिस्तान!
स्वेरे देखेंगे
क्रीच...क्री...च। गाड़ी रुक गई। उतरकर स्टेशन के गेट की तरफ़ बढ़ा। बाहर निकलते ही ताँगेवाले ने उससे पूछा, ‘पाकिस्तानी गाड़ी है जी? टेम तो उसी का है।’ उसने भी पलटकर पूछ लिया, ‘रानी के गाँव कौन-सी सड़क जाती है?’
‘सीधी सड़क जाती है...आगे भी पुच्छ लेणा।’
सूरज सर पर चढ़ गया था। तेज़ चलने की वजह से वह पसीने-पसीने हो रहा था। पर मंज़िल पर पहुँचने की ख़ुशी ने उसे बेफ़िक्र कर दिया था। सड़क के किनारे गेहूँ के कटे, नंगे खेत थे। उसके गाँव की तरह ही थोड़ा तिरछा, औंधा, साफ़ आसमान था। हवा सोई हुई थी, गर्म बगूले सीधा उड़ते और सूखे पत्तों, धूल को ले उड़ते। सुनसान सड़क पर दूर-दूर तक कोई राही नहीं था। चारों तरफ़ तापमान का राज था। रामदेव का ध्यान भाई विशुनदेव की तरफ़ था। रोज़-रोज़ के कर्फ़्यू में चिट्ठी कैसे पहुँचती। भैया भी चिट्ठी का इंतिज़ार करता होगा। भैया उसे देखते ही लिपट जाएगा। वह भी आँसू नहीं रोक सकेगा। भैया तिल का लड्डू देखते ही खिल जाएगा। लेकिन भैया...उससे पहले खाने-पीने को पूछेगा। भैया घुमा-फिराकर भौजी के बारे में भी पूछेगा। वह भाई से जनार्दन से बदला लेने के लिए ज़रूर कहेगा...
उसे सामने सड़क के किनारे दो मंज़िला मकान दिख गया। एक सरदार जी आगे-आगे जा रहे थे। उसने अपनी चाल तेज़ कर दी।
‘भाई साहब, इंदर सिंह का फ़ार्म किधर है?’ उसने पास पहुँचकर पूछा।
‘किसनू मिलना? तू आया कित्थों?’ सरदार जी ने ख़ुलासा ही पूछ लिया। पर रामदेव की समझ में ठीक से न आ पाया।
‘बिशुनदेव, बिहारी।’ रामदेव अटपटाकर बोला।
‘बात तो पल्ले पैंदी नई, चल सरपंच सरूप को चल, उत्थे जाके गल करी?’ सरदार जी ने उसे पीछे-पीछे आने का इशारा किया।
परेशान रामदेव उनके पीछे-पीछे बढ़ता गया। कुछ दूर जाकर, पुरानी ईंटों वाले महलनुमा घर के सामने जाकर दोनों रुक गए। रास्ते में सरदार जी ने उसका नाम पूछ लिया, अपना नाम भी बता दिया—किरपाल सिंह। किरपाल सिंह ने आवाज़ दी।
‘सरपंच जी, सरपंच जी, थल्ले आओ! एक परदेशी बंदा आया सी!’ कुर्ता-पजामा पहने एक लंबा-तगड़ा गोरा-चिट्टा आदमी बाहर आया। उसके चेहरे पर हल्की नुकीली काली पूँछे सज रही थीं। किरपाल सिंह को देखकर मुस्कुराया और उसका हाथ पकड़कर अपनी ओर खींचने लगा।
‘किरपाल्या, ऐ बंदा कोनी? इनु कित्थों फड़के ले आया?’
‘सरपंच जी, मैं कित्थों ले आऊगा?’ ए बंदा किसी दी खोज विच आया सी। हिंदी बोल्दा सी, तुसी समझ लो! गल-बात कर लो!’
सरपंच सरूप रामदेव की ओर मुड़ा, उसे गहरी नज़रों से देखा।
‘काका, क्या बात है?’
‘मेरा भाई विशुनदेव इंदर सिंह के फ़ार्म पर काम करता है, बहुत दूर बिहार से आया हूँ। ये चिट्ठी है।’ रामदेव ने कार्ड सरपंच सरूप के हाथ में थमा दिया। सरपंच सरूप ने पोस्टकार्ड उलट-पुलटकर पढ़ा और रामदेव को वापस थमाते हुए बोला, ‘पता तो ठीक है।’
‘किरपाल्या, देख पाई दी खिंच एन्नी दूर ले आई...अरे याद आया सी। एक बिहारी मुडा इंदर दे फ़ार्म ते देख्या सी...चल तुझे इंदर सिंह के पास ले चलता हूँ।’ सरपंच सरूप आगे बढ़ा।
रामदेव उसके पीछे चला। किरपाल सिंह ‘अच्छा’ कहकर अपनी राह चला गया। तेज़ धूप में चलते दोनों पास ही इंदर सिंह के फ़ार्म पर पहुँचे।
‘स-सिरी अकाल जी!’ एक महिला ने शालीनता से कहा।
सरपंच ने सिर हिलाया।
‘स-सिरी अकाल! इंदर सिंह कहाँ गया?’
‘वो तो कल सवेरे आएँगे जी। अंबरसर में कुछ काम था।’
‘ये मुंडा अपने भाई से मिलने आया है। इसका भाई तेरे फ़ार्म दा काम करता है...क्या नाम बताया?’
‘विशुनदेव’, रामदेव ने साफ़-साफ़ लहज़े में कहा। उसके चेहरे से उत्सुकता का लावा जैसे फूट पड़ना चाहता था। महिला ने उसे ग़ौर से देखा।
‘विशुनदेव! इस नाम का एक भैया तो था जी, तीन महीने पहले कपूरथले लौट गया। पिछले साल उसे हम अपने मामा जी के पास से लाए थे...इस साल भी बिहार से आया, पर बोलता था—दिल नईं लगता, तीन महीने पहले कपूरथले लौट गया।’
सरपंच सरूप ने रामदेव की ओर देखा। उसे लगा कि अब रामदेव रो देगा।
‘देख मनजीत कौर!’ सरपंच सरूप ने आजिजी से कहा, ‘लड़का बिहार से आया है, परेशान है...इसके पास तेरा ही पता है।’
‘सरदार जी के आने पर बात कर लेणा जी, ज़्यादा वही बतलाएँगे!’ कहकर मनजीत कौर मुड़ गई।
चल मुंड्या! मेरे यहाँ ही रोटी-पानी कर लेना। स्वेरे देखेंगे!’ बाँसुरी क्या बोलती है?
रात धमक आई थी। दालान में किरपाल सिंह और सरपंच सरूप बातें कर रहे थे। घूम-फिरकर बात पंजाब के हालात पर ही चलती। अख़बार, रेडियो के हवाले अफ़वाहों का विश्लेषण चल रहा था।
दालान के किनारे वाले तख़्त पर चादर से मुँह ढंके लेटा, रामदेव के सामने विशुनदेव का चेहरा बार-बार कौंध रहा था। उसे रह-रहकर रुलाई आ रही थी। सरदारनी पहले तो अच्छे से बोली पर विशुनदेव का ज़िक्र आते ही साफ़ मुकर गई—सरदार जी से बात कर लेना। अगर विशुनदेव तीन महीने पहले कपूरथले चला गया तो वहाँ से चिट्ठी ज़रूर लिखता। जेल में भी होता तो वहीं से लिखता। दो सौ रुपए में वह अपने भाई को कहाँ-कहाँ खोज पाएगा? कहीं भैया...आख़िर रुलाई फूट पड़ी। हिचकियाँ, नाक से बहते पानी और खाँसी ने भेद खोल दिया।
किरपाल सिंह लपका और रामदेव को झकझोरकर पूछने लगा, ‘ए मुंड्या, ए मुंड्या...सरपंच जी देखो!
सरपंच सरूप भाँप गया। वह उठकर रामदेव के पास आया और दिलासा देने लगा, देख भाई, कल इंदर सिंह से साफ़-साफ़ तेरे भाई का पता पूछ लेंगे। रुपए-पैसे की ज़रूरत हुई तो दे देंगे! तू कपूरथले जाकर भाई से मिल लेना। क्यों किरपाल सिंह?’
‘हंजी, मुंडे नू मदद ज़रूर करनी चाहिए। जे ग्रीब लोग हैं...’
कब रात गुज़र गई, सोचते-सोचते रामदेव को पता ही नहीं चला।
सरपंच सरूप को देखते ही इंदर सिंह चिल्लाया, ‘आओ महाराज! मनजीत कौर कह रही थी उस बिहारी मुंडे के बारे में। मैं अंबरसर चला गया था। दोनों पुत्तरों पर दिल लगा रहता है। रात जाकर टेलीफ़ोन से बात हुई। जी को चैन आया। स्वेरे वहाँ से चला। बस समझो अभी आ ही रहा हूँ...मैं भी मूरख! चलो अंदर बैठते हैं...कुछ चाय-साय भिजवाना, कह कर इंदर सिंह शुरू हो गया, ‘हंजी, लड़का बड़ा भला था। पिछले साल भी मेरे पास था। इस साल आया तो उखड़ा-उखड़ा रहता था। दिल नहीं लगता था। टिक नहीं पाया। चल दिया। कपूरथले मनजीत के मामा के यहाँ गया होगा। ऐसा ही बोल रहा था। दो महीने हो गए...अब आप कहो तो इस मुंडे को ख़र्चा-पानी दे दूँ।’
इंदर सिंह की वाचालता से सरपंच सरूप शक में पड़ गया। कल मनजीत कौर कह रही थी, लड़के को गए तीन महीने हुए। यह कहता है दो महीने हुए। और यह ख़र्चा-पानी क्यों देना चाहता है?
‘इंदर सिंह, लड़का ज़िंदा है या नहीं?’ सरपंच ने सधी आवाज़ में पूछा।
इंदर सिंह के चेहरे पर जैसे स्याही पुत गई। रामदेव का जी धक्क! इंदर सिंह जबरन अपने चेहरे पर कांइयाँ मुस्कुराहट लाता बोला, ‘मरने की बात कहाँ से आ गई?’
...लड़का ज़रूर ज़िंदा होगा जी। कपूरथले होगा या और कहीं चला गया होगा! भैया लोगों का क्या ठिकाना? आज यहाँ काम किया, कल वहाँ...’
सरपंच सरूप के पीछे खड़ा रामदेव सिसकियाँ लेने लगा। मनजीत कौर चाय की ट्रे लेकर कमरे में घुसी। रामदेव को रोता देखकर, पल-भर के लिए ठिठक गई। मनजीत कौर ने गहरी नजरों से पति को देखा और उसके होंठ भिंच गए। यंत्रवत ट्रे को सेंटर टेबल पर रख, तेज़ी से मुड़कर अंदर चली गई।
सरपंच को साफ़ लगा कि इंदर सिंह झूठ बोल रहा है। मनजीत कौर भी छिपा रही थी। ऐसे झूठ बोलने की ज़रूरत क्या है? विशुनदेव ज़िंदा नहीं है। सरपंच की आत्मा पर ठक से हथौड़े जैसी चोट लगी, वह ग़ुस्से से तिलमिला उठा।
‘साफ़ बता इंदर सिंह, विशुनदेव ज़िंदा है या नहीं? ज़िंदा है तो उसका पता दे!’
‘कह तो दिया, वह यहाँ से चला गया। ज़िंदा ही होगा।’
‘इस लड़के पर रहम कर। इतनी दूर से आया है। झूठ बोलने से क्या फ़ायदा?’
‘ओय सरूपे, तू मुझे झूठा कहेगा?’ इंदर सिंह भड़क उठा, ‘सरपंच से हार गया तब भी अकड़ नहीं गई। तू होता कौन है जो मुझसे पूछने चला आया? मैं तुझे कुछ नहीं बताऊँगा! बड़ा आया है लड़के की तरफ़दारी करने वाला!’
सरूप अवाक! रामदेव बुक्का मारकर रो पड़ा। अचानक रामदेव उठा और इंदर सिंह के पाँव पर गिर पड़ा!
‘तू पत्थर है...इंदर सिंह!’ सरपंच सरूप घृणा से उफन उठा, लंबा-चौड़ा फ़ार्म, इतना पैसा, पर इंसानियत ज़रा भी नहीं...परदेशी की तू मदद नहीं कर सकता...ख़ैर चल मुंडे!’
सरपंच सरूप उठ खड़ा आगे बढ़कर रामदेव को झकझोरकर उठाया।
‘भाई साहब, रुकना!’
अंदर से मनजीत कौर की तेज़ आवाज़ आई। दरवाज़े से ही मनजीत कौर ने एक झोला सपरंच के पाँव के पास फेंका! उफनती मनजीत कौर पर जैसे दौरा पड़ गया हो!
‘ये विशुनदेव का सामान है...वह दुनिया में नहीं है!’ कहते-कहते मनजीत कौर फूट-फूटकर रोने लगी। हिचकियों के बीच उसने कहा, ‘मुझसे बोलकर गया था कि अंबरसर से घरवालों के लिए कपड़े लेने जा रहा हूँ, देस जाना है। अंबरसर से लौटकर आता तो यहाँ से पैसे लेकर जाता...तीन बजे दिन में गया। बस बिगड़ने से शाम हो गई। छेड़हट्टा के पास रोककर मार-काट हुई...उसी में...’
गूँगे रामदेव की आँखों से आँसू लुढ़क रहे थे। सरपंच सरूप मनजीत कौर की बात सुनकर स्तब्ध था और अपराधी की तरह इंदर सिंह की आँखें फ़र्श में गड़ी हुई थीं।
‘मैं तीन दिनों तक रोती रही...मेरे भी बेटे हैं...ये फँस जाने के डर से बात छिपा रहे थे। कल रात-भर हम दोनों झगड़ते रहे—छिपाना क्या, वह भी किसी का बेटा है, भाई है...कल मैं भी झूठ बोली...हमें माफ़ करो सरपंच जी!’ मनजीत कौर के अंदर बैठी माँ ने उफान मारा। उसने आगे बढ़कर रामदेव को छाती से लगा लिया। अपनी ओढ़नी से उसके आँसू पोंछने लगी।
बीच में पड़े विशुनदेव के झोले से उसकी बाँसुरी झाँक रही थी। सब चुप थे। आँसू की तरह बाँसुरी भी जैसे कुछ बोल रही थी। बाँसुरी क्या बोल रही थी, कोई समझ नहीं पाया...
तू यहाँ कब तक भुगतता रहेगा?
देर तक उस दिन नहर के किनारे बैठा रहा। नहर का कलकल पानी, आज़ाद हवा...सब बेकार! सरपंच के घर की तरफ़ चल पड़ा। कल उसे रुपए मिल जाएँगे— दो हज़ार। सरपंच साहब उसे अमृतसर में दिल्ली वाली बस में बिठा देंगे। अमृतसर के लिए आज उनको याद दिला देनी चाहिए। वह सोचता आगे बढ़ा जा रहा था कि फ़ौज की तीन जीपें गुज़रीं। लाउड स्पीकर से पंजाबी में कुछ घोषणा की जा रही थी। थोड़ी दूर और गया कि और तीन जीपें गुज़री। रामदेव घबरा गया। जल्दी-जल्दी सरपंच के घर की ओर बढ़ने लगा।
सरपंच के घर के पास पहुँचकर वह हाँफ़ रहा था।
‘सरपंच साहब, पाकिस्तानी फ़ौज घुस आई क्या?’
‘नहीं, काका,’ सरपंच सरूप ने लंबी साँस ली, ‘अपनी फ़ौज है...यह बहुत बुरा हुआ!’
‘क्यों?’ रामदेव ने हौले से पूछा।
‘तुम क्या समझो? हम बॉर्डर के लोग समझते हैं! फ़ौज आती है, जाती है...पर जो ख़लिश छोड़ जाती है, उसका कोई इलाज नहीं,...चल इंदर सिंह के पास चलते हैं!’
फँसे रामदेव के लिए कोई उपाय नहीं था। टी.वी. पर जालंधर, लाहौर की ख़बरें सुनते-देखते रहो। कुछ मालूम नहीं, कहाँ क्या हो रहा है। पूरे पंजाब को जैसे सुनबहरी हो गया हो। वाघा, अटारी जैसे फ़ौजी छावनी बनी थीं। घरों में चीख़ डर से दुबकी पड़ी थी। हवा की भी तलाशी चल रही थी। घृणा के अंधड़ में मौन ही पत्तियों की भाषा थी। परिंदे की तरह अफ़वाहें उड़तीं। मौत की ख़बर चीख़ भी नहीं बन सकती थी। लोग कबूतरों की तरह दुबके रहते। रात भी जगी रहती। हरी वर्दी में लोग सन्नाटे को कुचलते रहते।
तलाशियों ने मालकिन को तोड़ दिया था। इंदर सिंह टी.वी. के पास बैठे रहते। बीच-बीच में रेडियो पर भी ख़बरें सुनते। रामदेव रसोई में जाकर मालकिन की मदद कर देता। रोना एक सिलसिला बन गया था। सरपंच जी ढांढ़स देने आए।
‘किरपाल का भाई अंबरसर में सेवादार था...किरपाल सब्र कर सकता है! दिल्ली में सब ठीक-ठाक है, आख़िर राजधानी है। तू नाहक़ परेशान है, मनजीत कौर! हिम्मत रख!’
‘कैसे चुप हो जाऊँ! एक फूल टूटता है तो हर पत्ता रोएगा...उस पार के गोले दगते थे तो हमारे में जोश होता था। अब तो इधर से ही...कोई इस बार उन्हें बेटों की तरह कलेजे में क्यों नहीं लगाता?... जिनको देख हिम्मत होती थी, वही हमें डराते हैं। बस अब तो वाहे गुरु का आसरा है!’ रामदेव को रोती-कलपती मनजीत कौर माई की तरह लगी। दिल्ली में बसे उनके दोनों बेटों का क्या हुआ होगा?
तूफ़ान की तरह गुज़रे वे दिन। बारह दिन बाद कर्फ़्यू खुला तो आशंका की तेज़ बयार थी। किसका, कौन मरा, कहाँ चला गया? आख़िर इंदर सिंह ने कहा, ‘अंबरसर जाना है, तू यहाँ कब तक भुगतता रहेगा?’
सफ़र तमाम नहीं...
मलवे के शहर अमृतसर में आतंक का तना हुआ छाता था। आँखों के दिए बुझे-बुझे थे। मरघट-सा सन्नाटा। बस की आरामदेह सीट पर बैठा रामदेव खिड़की से चेहरा सटाए देख रहा था। इंदर सिंह और सरपंच सरूप नीचे खड़े थे। हचके के साथ बस आगे बढ़ी। रामदेव ने झट हाथ जोड़ दिए।
उनके ओझल होते ही उसने लंबी साँस ली। आँखें बंद करते ही जैसे माई सामने खड़ी हो गई। वह झूठ बोलना चाहता है—भैया का पता नहीं चला। पर दो हज़ार का रुपए क्या करेगा! गोद में पड़ा विशुनदेव का झोला भारी लगने लगा। बाँसुरी झोले से बाहर झाँक रही थी। विशुनदेव का चेहरा उसके सामने घूम गया। अचानक उसका माथा घूमने लगा—आँसुओं में तब मनजीत कौर का चेहरा, किरपाल सिंह, इंदर सिंह का झुर्रियों की तरह लटकता चेहरा सामने आता और ओझल हो जाता...फिर दहाड़ मारकर रोती माई...बिस्तर पर मुँह देकर रोती भौजी...
उसे ज़ोर से कंपकंपी आई। रोम-रोम खरखरा उठा। ‘नहीं!’ वह धीरे से बुदबुदाया। आगे की सीट का हैंडिल उसने मज़बूती से पकड़ लिया। गुर्राती बस आगे बढ़ती गई। आगे बढ़ना ही था, भैया एक्सप्रेस का सफ़र तमाम नहीं हुआ था।
iz hi e bhaiya?
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ramadew chup! atharah sal ke sanwle, patle ramadew ke liye ye pahli lambi yatra thi ab tak usne tilrath ke agle station barauni tak hi rail yatra ki thi reserwation se uska pala hi nahin paDa tha pahli dafa wo bihar to kya, apne jile se bhi bahar nikla tha apne bhai wishundew se usne zarur sun rakha tha ki punjab jane mein kya kya pareshani hoti hai dilli hokar punjab jane mein suwidha hoti hai aur, asam mel dilli jati hai barauni station par Dibbe mein log bore mein sukhi mirch ki tarah Dhunse jate the akhir train khul gai to jo Dibba samne aaya, usi mein dauDkar latak gaya tha
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panjab
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daswin ka imtihan khatm hote hi mai punjab jane aane ke liye paise ka intizam karne lagi thi ganw ka koi adami mar kat ki wajah se punjab jakar uske bhaiya wishundew ko DhunDhane ko taiyar nahin tha kai logon se minnat karne ke baad, mai ramadew ko hi punjab bhejne par taiyar ho gai paison ki samasya sanp ki tarah fan kaDhe phukar rahi thi pushtaini pesha anaj bhunne mein kya rakha hai? kansar mein anaj bhunwane log aate nahin maki ki roti ashraf log khate nahin dal itni mahngi hai ki log chane ki dal banwayenge ki kansar mein chana bhunwakar sattu banwayenge? us par itni mehnat ganw ke baghichon, banswaDiyon mein sukhe patte batorkar jama karo, unhen jalakar anaj bhunkar pet ki aag thanDi karo kisi tarah ek sham ka bhojan jut pata akhir mai uple thapkar, gul banakar bechne lagi thi tab kisi tarah bhojan chalne laga lekin koi kaam aa paDta to qarz lene ke alawa koi rasta nahin bachta tha is bar bhi panDitji ne hi paison ki madad ki bhaiya ki shadi mein qarz baDha to mushkil ho gai mool to mool, sood sursa ki bhanti baDhne laga akhir bhaiya ko thali lota, kanbal, wanshi lekar kamane punjab jana paDa wahan se wo paisa bhejta to mai sidha panDitji ko jakar deti qarz chukne ko hi tha ki achanak sab kuch band
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bhaiya punjab se pichhli dafa lauta to wahan ke qisse khoob sunata tha mai bhi roz raat usse punjab ke bare mein puchhti thi
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katte der kaam karai chhahi?
sat baje bhor sai chh baje sanjh tak! beech mein roti khaike chhutti ek ghanta
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raat mein koi gaDi punjab nahin jati
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ab dusri gaDi kab jayegi!
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bihari bhaiya tha! babu phiss se hans paDa
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wahan inhen kaam nahin milta?
kaam milta to punjab thoDe hi marne jate! bhookh thoDe hi rukti hai, isliye bhaiya express chalti rahegi sarkar ki patri, sarkar ki gaDi sab hai hee!
ghar punjab ho gaya hai
ajkal ramadew ke liye baDa shabd hai
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curfew lag chuka tha
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agge pakistan hai!
station par ticket lekar baitha to use itminan aaya usne apni jeb se muDa tuDa, badrang postakarD nikala, aur pata paDhne laga—wishundew, indar singh ka farm, ganw ranike, bhaya atari, jila amaritsar (panjab) paDhkar usne samne baithe buzurg sardar ki or baDha diya taki we ranike jane ka rasta bata den
sardar ji ne afsos mein sir hilaya aur kahne lage, main hindi paDhna nahin janta sari umr urdu paDhi hai bus hindi samajh leta hoon bata kya hai?
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ramadew itna hi samajh paya ki atari station se do meel par ranike ganw hai ganw ke bahar santokh singh ki do manzili kothi hai uske samne indar singh ka farm hai
enni duro kalla kinda aa gaya? bihar ke ho ki yu pi ke?
bihar rani ke ganw bhai ko khojne ja raha hoon
teri to munchhe bhi nahin phuti hain? puttar himmat hi insan da nam hai
gaDi rukte hi achchha kahkar buzurg utar gaye ramadew unhen jate, khiDki se dekhta raha gaDi khiski to ticket chekar samne tha
ticket? chekar ne yantrik lahje mein puchha
atari kitne station hai? ramadew ticket thamate hue poochh baitha
pahli baran aaya too? agla station hai utthe utar jana, agge pakistan hai! chekar ticket panch kar aage baDh gaya
ramadew sann! kahan aa gaya? pakistan!
swere dekhenge
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sidhi saDak jati hai aage bhi puchchh lena
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bhai sahab, indar singh ka farm kidhar hai? usne pas pahunchakar puchha
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sarpanch ji, sarpanch ji, thalle aao! ek pardeshi banda aaya see! kurta pajama pahne ek lamba tagDa gora chitta adami bahar aaya uske chehre par halki nukili kali punchhe saj rahi theen kirpal singh ko dekhkar muskuraya aur uska hath pakaDkar apni or khinchne laga
kirpalya, ai banda koni? inu kitthon phaDke le aya?
sarpanch ji, main kitthon le auga? e banda kisi di khoj wich aaya si hindi bolda si, tusi samajh lo! gal baat kar lo!
sarpanch sarup ramadew ki or muDa, use gahri nazron se dekha
kaka, kya baat hai?
mera bhai wishundew indar singh ke farm par kaam karta hai, bahut door bihar se aaya hoon ye chitthi hai ramadew ne card sarpanch sarup ke hath mein thama diya sarpanch sarup ne postakarD ulat pulatkar paDha aur ramadew ko wapas thamate hue bola, pata to theek hai
kirpalya, dekh pai di khinch enni door le i are yaad aaya si ek bihari muDa indar de farm te dekhya si chal tujhe indar singh ke pas le chalta hoon sarpanch sarup aage baDha
ramadew uske pichhe chala kirpal singh achchha kahkar apni rah chala gaya tez dhoop mein chalte donon pas hi indar singh ke farm par pahunche
s siri akal jee! ek mahila ne shalinata se kaha
sarpanch ne sir hilaya
s siri akal! indar singh kahan gaya?
wo to kal sawere ayenge ji ambarsar mein kuch kaam tha
ye munDa apne bhai se milne aaya hai iska bhai tere farm da kaam karta hai kya nam bataya?
wishundew, ramadew ne saf saf lahje mein kaha uske chehre se utsukta ka lawa jaise phoot paDna chahta tha mahila ne use ghaur se dekha
wishundew! is nam ka ek bhaiya to tha ji, teen mahine pahle kapurathle laut gaya pichhle sal use hum apne mama ji ke pas se laye the is sal bhi bihar se aaya, par bolta tha—dil nain lagta, teen mahine pahle kapurathle laut gaya
sarpanch sarup ne ramadew ki or dekha use laga ki ab ramadew ro dega
dekh manjit kaur! sarpanch sarup ne ajiji se kaha, laDka bihar se aaya hai, pareshan hai iske pas tera hi pata hai
sardar ji ke aane par baat kar lena ji, ziyada wahi batlayenge! kahkar manjit kaur muD gai
chal munDya! mere yahan hi roti pani kar lena swere dekhenge! bansuri kya bolti hai?
raat dhamak i thi dalan mein kirpal singh aur sarpanch sarup baten kar rahe the ghoom phirkar baat punjab ke halat par hi chalti akhbar, radio ke hawale afwahon ka wishleshan chal raha tha
dalan ke kinare wale takht par chadar se munh Dhanke leta, ramadew ke samne wishundew ka chehra bar bar kaundh raha tha use rah rahkar rulai aa rahi thi sardarani pahle to achchhe se boli par wishundew ka zikr aate hi saf mukar gai—sardar ji se baat kar lena agar wishundew teen mahine pahle kapurathle chala gaya to wahan se chitthi zarur likhta jel mein bhi hota to wahin se likhta do sau rupae mein wo apne bhai ko kahan kahan khoj payega? kahin bhaiya akhir rulai phoot paDi hichkiyan, nak se bahte pani aur khansi ne bhed khol diya
kirpal singh lapka aur ramadew ko jhakjhorkar puchhne laga, e munDya, e munDya sarpanch ji dekho!
sarpanch sarup bhanp gaya wo uthkar ramadew ke pas aaya aur dilasa dene laga, dekh bhai, kal indar singh se saf saf tere bhai ka pata poochh lenge rupae paise ki zarurat hui to de denge! tu kapurathle jakar bhai se mil lena kyon kirpal sinh?
hanji, munDe nu madad zarur karni chahiye je greeb log hain
kab raat guzar gai, sochte sochte ramadew ko pata hi nahin chala
sarpanch sarup ko dekhte hi indar singh chillaya, ao maharaj! manjit kaur kah rahi thi us bihari munDe ke bare mein main ambarsar chala gaya tha donon puttron par dil laga rahta hai raat jakar telephone se baat hui ji ko chain aaya swere wahan se chala bus samjho abhi aa hi raha hoon main bhi murakh! chalo andar baithte hain kuch chay say bhijwana, kah kar indar singh shuru ho gaya, hanji, laDka baDa bhala tha pichhle sal bhi mere pas tha is sal aaya to ukhDa ukhDa rahta tha dil nahin lagta tha tik nahin paya chal diya kapurathle manjit ke mama ke yahan gaya hoga aisa hi bol raha tha do mahine ho gaye ab aap kaho to is munDe ko kharcha pani de doon
indar singh ki wachalata se sarpanch sarup shak mein paD gaya kal manjit kaur kah rahi thi, laDke ko gaye teen mahine hue ye kahta hai do mahine hue aur ye kharcha pani kyon dena chahta hai?
indar singh, laDka zinda hai ya nahin? sarpanch ne sadhi awaz mein puchha
indar singh ke chehre par jaise syahi put gai ramadew ka ji dhakk! indar singh jabran apne chehre par kaniyan muskurahat lata bola, marne ki baat kahan se aa gai? laDka zarur zinda hoga ji kapurathle hoga ya aur kahin chala gaya hoga! bhaiya logon ka kya thikana? aaj yahan kaam kiya, kal wahan
sarpanch sarup ke pichhe khaDa ramadew siskiyan lene laga manjit kaur chay ki tray lekar kamre mein ghusi ramadew ko rota dekhkar, pal bhar ke liye thithak gai manjit kaur ne gahri najron se pati ko dekha aur uske honth bhinch gaye yantrawat tray ko centre table par rakh, tezi se muDkar andar chali gai
sarpanch ko saf laga ki indar singh jhooth bol raha hai manjit kaur bhi chhipa rahi thi aise jhooth bolne ki zarurat kya hai? wishundew zinda nahin hai sarpanch ki aatma par thak se hathauDe jaisi chot lagi, wo ghusse se tilmila utha
saf bata indar singh, wishundew zinda hai ya nahin? zinda hai to uska pata de!
kah to diya, wo yahan se chala gaya zinda hi hoga
is laDke par rahm kar itni door se aaya hai jhooth bolne se kya fayda?
oy sarupe, tu mujhe jhutha kahega? indar singh bhaDak utha, ‘sarpanch se haar gaya tab bhi akaD nahin gai tu hota kaun hai jo mujhse puchhne chala aaya? main tujhe kuch nahin bataunga! baDa aaya hai laDke ki tarafadar karne wala!
sarup awak! ramadew bukka markar ro paDa achanak ramadew utha aur indar singh ke panw par gir paDa!
malik! rota ramadew chikhne laga, ‘bata dijiye malik, mera bhaiya kahan hain? bahut upkar hoga malik! bata dijiye malik malik
tu patthar hai indar sinh! sarpanch sarup ghrina se uphan utha, lamba chauDa farm, itna paisa, par insaniyat zara bhi nahin pardeshi ki tu madad nahin kar sakta khair chal munDe!
sarpanch sarup uth khaDa aage baDhkar ramadew ko jhakjhorkar uthaya
bhai sahab, rukna!
andar se manjit kaur ki tez awaz i darwaze se hi manjit kaur ne ek jhola sapranch ke panw ke pas phenka! uphanti manjit kaur par jaise daura paD gaya ho!
ye wishundew ka saman hai wo duniya mein nahin hai! kahte kahte manjit kaur phoot phutkar rone lagi hichkiyon ke beech usne kaha, mujhse bolkar gaya tha ki ambarsar se gharwalon ke liye kapDe lene ja raha hoon, des jana hai ambarsar se lautkar aata to yahan se paise lekar jata teen baje din mein gaya bus bigaDne se sham ho gai chheDhatta ke pas rokkar mar kat hui usi mein
gunge ramadew ki ankhon se ansu luDhak rahe the sarpanch sarup manjit kaur ki baat sunkar stabdh tha aur apradhi ki tarah indar singh ki ankhen farsh mein gaDi hui theen
main teen dinon tak roti rahi mere bhi bete hain ye phans jane ke Dar se baat chhipa rahe the kal raat bhar hum donon jhagaDte rahe—chhipana kya, wo bhi kisi ka beta hai, bhai hai kal main bhi jhooth boli hamein maf karo sarpanch jee! manjit kaur ke andar baithi man ne uphan mara usne aage baDhkar ramadew ko chhati se laga liya apni oDhni se uske ansu ponchhne lagi
beech mein paDe wishundew ke jhole se uski bansuri jhank rahi thi sab chup the ansu ki tarah bansuri bhi jaise kuch bol rahi thi bansuri kya bol rahi thi, koi samajh nahin paya
tu yahan kab tak bhugatta rahega?
der tak us din nahr ke kinare baitha raha nahr ka kalkal pani, azad hawa sab bekar! sarpanch ke ghar ki taraf chal paDa kal use rupae mil jayenge — do hazar sarpanch sahab use amaritsar mein dilli wali bus mein bitha denge amaritsar ke liye aaj unko yaad dila deni chahiye wo sochta aage baDha ja raha tha ki fauj ki teen jipen guzrin lauD speaker se punjabi mein kuch ghoshana ki ja rahi thi thoDi door aur gaya ki aur teen jipen guzri ramadew ghabra gaya jaldi jaldi sarpanch ke ghar ki or baDhne laga
sarpanch ke ghar ke pas pahunchakar wo hanf raha tha
sarpanch sahab, pakistani fauj ghus i kya?
nahin, kaka, sarpanch sarup ne lambi sans li, apni fauj hai ye bahut bura hua!
kyon? ramadew ne haule se puchha
tum kya samjho? hum border ke log samajhte hain! fauj aati hai, jati hai par jo khalish chhoD jati hai, uska koi ilaj nahin, chal indar singh ke pas chalte hain!
phanse ramadew ke liye koi upay nahin tha t wi par jalandhar, lahore ki khabren sunte dekhte raho kuch malum nahin, kahan kya ho raha hai pure punjab ko jaise sunabahri ho gaya ho wagha, atari jaise fauji chhawani bani theen gharon mein cheekh Dar se dubki paDi thi hawa ki bhi talashi chal rahi thi ghrina ke andhaD mein maun hi pattiyon ki bhasha thi parinde ki tarah afwahen uDtin maut ki khabar cheekh bhi nahin ban sakti thi log kabutaron ki tarah dubke rahte raat bhi jagi rahti hari wardi mein log sannate ko kuchalte rahte
talashiyon ne malkin ko toD diya tha indar singh t wi ke pas baithe rahte beech beech mein radio par bhi khabren sunte ramadew rasoi mein jakar malkin ki madad kar deta rona ek silsila ban gaya tha sarpanch ji DhanDhas dene aaye
kirpal ka bhai ambarsar mein sewadar tha kirpal sabr kar sakta hai! dilli mein sab theek thak hai, akhir rajdhani hai tu nahaq pareshan hai, manjit kaur! himmat rakh!
kaise chup ho jaun! ek phool tutta hai to har patta roega us par ke gole dagte the to hamare mein josh hota tha ab to idhar se hi koi is bar unhen beton ki tarah kaleje mein kyon nahin lagata? jinko dekh himmat hoti thi, wahi hamein Darate hain bus ab to wahe guru ka aasra hai! ramadew ko roti kalapti manjit kaur mai ki tarah lagi dilli mein base unke donon beton ka kya hua hoga?
tufan ki tarah guzre we din barah din baad curfew khula to ashanka ki tez bayar thi kiska, kaun mara, kahan chala gaya? akhir indar singh ne kaha, ambarsar jana hai, tu yahan kab tak bhugatta rahega?
safar tamam nahin
malwe ke shahr amaritsar mein atank ka tana hua chhata tha ankhon ke diye bujhe bujhe the marghat sa sannata bus ki aramdeh seat par baitha ramadew khiDki se chehra sataye dekh raha tha indar singh aur sarpanch sarup niche khaDe the hachke ke sath bus aage baDhi ramadew ne jhat hath joD diye
unke ojhal hote hi usne lambi sans li ankhen band karte hi jaise mai samne khaDi ho gai wo jhooth bolna chahta hai—bhaiya ka pata nahin chala par do hazar ka rupae kya karega! god mein paDa wishundew ka jhola bhari lagne laga bansuri jhole se bahar jhank rahi thi wishundew ka chehra uske samne ghoom gaya achanak uska matha ghumne laga—ansuon mein tab manjit kaur ka chehra, kirpal singh, indar singh ka jhurriyon ki tarah latakta chehra samne aata aur ojhal ho jata phir dahaD markar roti mai bistar par munh dekar roti bhauji
use zor se kampkampi i rom rom kharakhra utha nahin! wo dhire se budabudaya aage ki seat ka hainDil usne mazbuti se pakaD liya gurrati bus aage baDhti gai aage baDhna hi tha, bhaiya express ka safar tamam nahin hua tha
iz hi e bhaiya?
train ki raftar tez hoti ja rahi thi darwaze se latke ramadew ke liye dhool bhari tez hawa mein ankh khuli rakhna mushkil tha kab tak latka rahega band darwaze par? ramadew ne darwaze par zor se thap mari uske kandhe se latakta jhola girte girte bacha
kuch der baad darwaza khula wo sambhalta hua andar ghusa aur darwaza bhiDakar Dibbe ke galiyare mein gamchhe se mungaphali ke chhilke aur cigarette ke tonton ko hatane laga darwaza kholne wale fauji ne ghrina se munh bichkaya bhaincho marne chale aate hain! ye reserwation ka Dibba hai tera reserwation hai?
ramadew chup! atharah sal ke sanwle, patle ramadew ke liye ye pahli lambi yatra thi ab tak usne tilrath ke agle station barauni tak hi rail yatra ki thi reserwation se uska pala hi nahin paDa tha pahli dafa wo bihar to kya, apne jile se bhi bahar nikla tha apne bhai wishundew se usne zarur sun rakha tha ki punjab jane mein kya kya pareshani hoti hai dilli hokar punjab jane mein suwidha hoti hai aur, asam mel dilli jati hai barauni station par Dibbe mein log bore mein sukhi mirch ki tarah Dhunse jate the akhir train khul gai to jo Dibba samne aaya, usi mein dauDkar latak gaya tha
ticket hai! ramadew ne bamushkil kaha
ticket hone se kya hota hai? ye reserwation ka Dibba hai, samjhe?
ab ramadew kya kare, chup, Dari ankhon se fauji ko dekhta raha purani beDaul pant aur hainDlum ki berang shirt pahankar ramadew apne mohalle mein hi adhunik hone ka swang kar sakta tha is nai duniya mein sari chizen achambhe se bhari theen
kurte aur shalwar mein lipti, samne ke berth par leti aurat ne angrezi upanyas ko ankhon ke samne se hataya aur us fauji se puchha, siwil kanpartament iz like dharmshala iz hi e bhaiya?
han lagta to hai! fauji bhunabhunakar ramadew ki or mukhatib ho gaya, tumko kahan jana hai?
panjab
ramadew ko laga ki wo yahan baitha raha to in baDe logon ki nazar mein chaDha rahega wo utha aur bathrum ke samne wale galiyare mein angochha bichhakar jhole ka takiya banakar let gaya train mein ghusne se lekar pichhle ek saptah tak ke drishya uski ankhon ke samne ghoom gaye
daswin ka imtihan khatm hote hi mai punjab jane aane ke liye paise ka intizam karne lagi thi ganw ka koi adami mar kat ki wajah se punjab jakar uske bhaiya wishundew ko DhunDhane ko taiyar nahin tha kai logon se minnat karne ke baad, mai ramadew ko hi punjab bhejne par taiyar ho gai paison ki samasya sanp ki tarah fan kaDhe phukar rahi thi pushtaini pesha anaj bhunne mein kya rakha hai? kansar mein anaj bhunwane log aate nahin maki ki roti ashraf log khate nahin dal itni mahngi hai ki log chane ki dal banwayenge ki kansar mein chana bhunwakar sattu banwayenge? us par itni mehnat ganw ke baghichon, banswaDiyon mein sukhe patte batorkar jama karo, unhen jalakar anaj bhunkar pet ki aag thanDi karo kisi tarah ek sham ka bhojan jut pata akhir mai uple thapkar, gul banakar bechne lagi thi tab kisi tarah bhojan chalne laga lekin koi kaam aa paDta to qarz lene ke alawa koi rasta nahin bachta tha is bar bhi panDitji ne hi paison ki madad ki bhaiya ki shadi mein qarz baDha to mushkil ho gai mool to mool, sood sursa ki bhanti baDhne laga akhir bhaiya ko thali lota, kanbal, wanshi lekar kamane punjab jana paDa wahan se wo paisa bhejta to mai sidha panDitji ko jakar deti qarz chukne ko hi tha ki achanak sab kuch band
punjab mein khoon kharabe ki khabar milti to mai ke sath sath ramadew ka bhi dil Dubta mai ko paDosi tane marte itna hi dukh tha to khoon kharabe mein bete ko kamane punjab kahe bheja? agar wishundew punjab nahin jata to we sab beghar ho jate janardan unke ghar ki zamin kharidne ki tak mein tha panDitji ka taqaza tez ho raha tha ghar hi bachane basane wishundew ko punjab jana paDa tha bahu aati to kahan rahti, kya khati? nai zindagi ke konpal ko mai kaise masalne deti? bhare man se mai ne wishundew ko punjab jane diya tha sab theek thak hota ja raha tha ki achanak sab kuch band
lete lete ramadew ne qamiz ki chor jeb mein hath Dala jeb mein railway ticket, bhai ke patewala postakarD aur paison ko chhukar use itminan ho aaya jhole ka takiya theek se jamakar ankh band kar sone ki koshish ki train ki khatar patar, galiyare mein phaili badbu thi hi Dar bhi tha aur itna tha ki neend mein bhi panjab si uthal puthal thi wishundew! ai wishundew!
bhaiya punjab se pichhli dafa lauta to wahan ke qisse khoob sunata tha mai bhi roz raat usse punjab ke bare mein puchhti thi
roti khane? bhat nai milai chhau?
mai, u log sab khana ke roti kahai chhai! i baDaka gilas mein chah! oh chah hiya kahan?
mar saradhua! chah to himain banbe karei chhai!
naige mai, u sab baniharwala chah mein afim ke pani milaye dai chhai, waise thakni heth bhae jaichhai! a banihar log khoob kaam kailak
katte der kaam karai chhahi?
sat baje bhor sai chh baje sanjh tak! beech mein roti khaike chhutti ek ghanta
sab tash khelalkar, hammen apni bansuri banjailaun hamar malakini theek chhau hank partau e wishundew! ai wishundew! malakini kai hamri bansuri bajenai khoob neek lagaichhai! widyapati, chaitawar sune lel pagal paDhlo chhe ge mai b e pas!
khoob sukhitgar malik chhau?
khoob ki phataphtiya, tracktor, jeep mahl san ghar dugo beta dilli mein naukari mein lagal, tibhi se ho chhai!
u kathi?
jena radio mein khali gane boli chhai ne, tibhi mein gana ke sath sath cinema ehan photuo dekhewi chhai!
malik marai pite t nain na chhau!
kakhno kakhno, gali hardam bhaincho bhaincho bakai chh
ki karbhi, paisa kamenai khel nain chhai man t nain lagai hotau?
gharib nain rahne mai, punjab kahiyo nain jaiti ai r i paisa
wishundew ka gauna samne tha kharcha jutane use dusri bar bhi punjab jana paDa apne ilaqe mein na sal bhar mazduri ka upay, aur mazduri bhi punjab se aadhi wishundew punjab se thoDa bhawishya lane gaya tha
raat mein koi gaDi punjab nahin jati
niyaun lait se jagmagati nai dilli station ke pletfaurm par utarte hi use laga ki itne logon ke samudr mein wo kho jayega bheeD, dhakkam mukka, ajnabi log aur itni raushani! usne apne sine ko kaskar daba liya taki ticket, paisa aur pate wala postakarD koi mar na le wo thithak gaya, pata nahin gate kidhar hai akhir bheeD mein wo ghus gaya ower bridge parker station ke bahar aa gaya
bahar taiksri, kar aur thre whilar ki qataren raat ka samay sab kuch swapn lok sa tha jaisa usne hindi filmon mein dekha tha asam mel raste mein hi panch ghante let ho gai thi use malum tha ki dilli se train ya bus se use amaritsar jana paDega wo musafirkhane ki or baDha punjab jane wali gaDi ke bare mein kisse puchhe, sab to afsar ki tarah lag rahe the musafirkhane ke ek kone mein kuch sadharan maile kuchaile kapDon mein thaki bujhi ankhon wale log tin ki badrang petiyon ke pas baithe the unhin ki taraf baDha
u samne wali khiDki par jakar puchho!
khiDki par kai log jame the jab log hate to usne babu se puchha
babu, amritasarwali chali gai?
han!
ab dusri gaDi kab jayegi!
ab to bhaiya, kal jayegi!
i to baDa station hai?
ajkal raat mein koi gaDi punjab nahin jati
wo muDa, to babu bhi apne dost se baat karne laga
sare hindustan ko pata hai, raat mein koi train punjab nahin jati phir bhi poochh raha tha! babu ke dost ke swar mein uphas tha
bihari bhaiya tha! babu phiss se hans paDa
jalandhar, ludhiyane, sare punjab mein ye log bhare hain
are bihar se anewali gaDi ko punjab mein bhaiya express kahte hain! us taraf har gaDi mein ye log thunse rahenge
wahan inhen kaam nahin milta?
kaam milta to punjab thoDe hi marne jate! bhookh thoDe hi rukti hai, isliye bhaiya express chalti rahegi sarkar ki patri, sarkar ki gaDi sab hai hee!
ghar punjab ho gaya hai
ajkal ramadew ke liye baDa shabd hai
pichhle chaar mahine sote jagte pahaD ki tarah guzre bhaiya kaisa hoga? punjab mein baha khoon ka har qatra, wahan chali har goli mai ko lagti radio wishundew ka haal chaal thoDe hi bolega mai phir bhi panDit ji ke yahan radio sun aati wo bhi chay ki dukan par akhbar paDh aata registry chitthi laut i to mai raat bhar roti rahi begusray jakar usi pate par tar bhijwaya lekin kuch nahin pata chala mai mannaten mangti, panDit ji ke panchang se shagun nikalwati, ro dhokar uple gul bechne phutlaizar taunship nikal jati itni mehnat par mausi tokti to mai ka ek hi jawab hota, ego beta punjab mein, i ramua paDh liye je ekra punjab nain jaye paDaiy
bhauji ke yahan se aksar puchhwaya jata—koi khabar mili? mai ko lagta—shadi toot jayegi koi kab tak jawan beti ko ghar bithaye rakhega mai ko lagta, bete ka pata nahin, patohu chhoot rahi hai koshish karti ki kisi tarah bikharte ghar ko anchal mein samete rahe
ramua se putohu ke biyah ke debai, mai se ye sunte hi ramadew sharm se kath ho gaya tha bhauji ki sanwli, nirdosh, baDi baDi ankhon wala chehra uske samne ghoom gaya tha ashraf ke ghar mein aisa hoga? shadi ke baad bhaiya punjab se laut aaya to? mai pagal hai!
lekin mai ne harna nahin sikha tha jo kuch bacha tha, use chhati se chipkaye rahna chahti thi ek chakkar Dak babu ke yahan laga leti lobh mein bete ko punjab bhej diya, ab kahe ko roz chitthi ke liye puchhti ho? postamain use jhiDak deta
mai ka sukha sharir, panDit ji ka sood, janardan ka mansuba, bhauji ki udasi, bhai ke jiwan ka sanshay, roz ki kichkich, mai ka rudan ramadew ko lagta—ghar punjab ho gaya hai raat ratbhar so nahin pata paDhta likhta kya khak! bus ek cheez qabiz thi — panjab!
khoon ki tarah jama shahr
amaritsar aate aate bus mein yatriyon ki batachit sunte sunte man mein aisa Dar baith gaya ki wo bus se bhi Darne laga
bus se utarte utarte faisla le liya—jo bhi ho, jaise taise raat amaritsar ke bus aDDe par kat lega lekin bus se atari nahin jayega saDhe chhah baje sham se hi bus aDDe par haDbong machi thi sabko aisi jaldi thi ki jaise baDh mein bandh toot gaya ho aur sab jaan bachane ke liye bhag rahe hon dukanen phataphat band ho rahi theen thelewale apni dukanen baDha rahe the khali buson ke Draiwar khalasi pas ke Dhabon mein jaldi jaldi khana kha rahe the Dhabe ke malikon ko bhi jaldi thi isliye unke naukar bhi res ke ghoDon ki tarah hanf rahe the sabko ek hi Dar tha sat baje curfew lagne wala tha
ramadew ne mungaphali wale ka aksharshah anusarn kiya apna sattu gholkar pi gaya aur usi ke sath let gaya mungaphali wala ranchi ka isai adiwasi tha teen sal pahle ghar se bhagkar yahan aaya tha chehre par baDhi daDhi aur sir par gamchhe ke muraitha se uske sardar hone ka bhram hota tha hansta to chamkile dant motiyon ki tarah jagmaga uthte nishpap ankhen chhalachhla atin jems apne des ke ramadew jaise adami se milkar khush ho gaya tha donon gathri ki tarah kone mein dubke the aur bhi bahut gathriyan theen gumsum!
curfew lag chuka tha
chadar ki ot mein ramadew ne jhankakar dekha bahar sab kuch thama tha engine ki tarah dahaDta bus aDDa lash ki tarah khamosh tha na panchhi, na hawa, na koi patta harkat kar raha tha cheekh bhi nikalti to Dar se barf ho jati chalti goli hawa mein tham jati prithwi ka ghumna jaise band ho gaya tha sansen beawaz chal rahi theen machchhar the ki ghaliz mein befiri se bhinbhina rahe the
sannate mein hi wardiwalon se bhari ek jeep guzar gai ramadew ko laga ki gardan par se koi dharadar chaku guzar gaya idhar mein aisa hi hota hai jems phusaphusaya, chup so jao, peshab karne bhi mat jana ramadew sone ki koshish karne laga din bhar ki thakan ke bawjud use neend nahin aa rahi thi
raat ke koi gyarah baje bus aDDe par jaise kahar toot paDa wardi wale sabon ko boot ki thokaron se jaga rahe the pachas sawal kahan se aaye ho? kya matlab hai? Dar se koi haklaya to lat, ghuse, banduq ke kunden se thukai teen naujawan sardaron ko ghasitte hue le gaye bihar ka nam sunkar we aage baDh gaye the ramadew phir bhi thar thar kanpta raha jems phir so gaya jaise kuch hua hi nahin ho lekin ramadew ke kanon mein un teen naujawanon ki cheekh ziddi madhumakkhi ki tarah bhanabhnati rahi rafta rafta sab chizo ki aadat ho jati hai so dhire dhire shahr bhi khoon ki tarah jam gaya
agge pakistan hai!
station par ticket lekar baitha to use itminan aaya usne apni jeb se muDa tuDa, badrang postakarD nikala, aur pata paDhne laga—wishundew, indar singh ka farm, ganw ranike, bhaya atari, jila amaritsar (panjab) paDhkar usne samne baithe buzurg sardar ki or baDha diya taki we ranike jane ka rasta bata den
sardar ji ne afsos mein sir hilaya aur kahne lage, main hindi paDhna nahin janta sari umr urdu paDhi hai bus hindi samajh leta hoon bata kya hai?
mujhe ranike atari ganw jana hai anjan adami hoon bihar se aaya hoon ramadew ka sankoch sardar ji ki atmiyata se ghul gaya aur usne pura pata paDh liya
santokh singh wala ranike? agge atari station aunga, tu utthe utar jana bahar tangewale noon puchchh lain tu to munDa khunDa hai, pajda pajda do meel chala jayega achchha sun, ambarsar de bahar burjawaliyan di bus jandi e, tu sidha ranike utar jana si gan de bahar ki santokh singh di do manzili kothi nazar aaugi utthe puchchh lena samne indar singh da farm hai
ramadew itna hi samajh paya ki atari station se do meel par ranike ganw hai ganw ke bahar santokh singh ki do manzili kothi hai uske samne indar singh ka farm hai
enni duro kalla kinda aa gaya? bihar ke ho ki yu pi ke?
bihar rani ke ganw bhai ko khojne ja raha hoon
teri to munchhe bhi nahin phuti hain? puttar himmat hi insan da nam hai
gaDi rukte hi achchha kahkar buzurg utar gaye ramadew unhen jate, khiDki se dekhta raha gaDi khiski to ticket chekar samne tha
ticket? chekar ne yantrik lahje mein puchha
atari kitne station hai? ramadew ticket thamate hue poochh baitha
pahli baran aaya too? agla station hai utthe utar jana, agge pakistan hai! chekar ticket panch kar aage baDh gaya
ramadew sann! kahan aa gaya? pakistan!
swere dekhenge
creach kri ch gaDi ruk gai utarkar station ke gate ki taraf baDha bahar nikalte hi tangewale ne usse puchha, pakistani gaDi hai jee? tem to usi ka hai usne bhi palatkar poochh liya, ranike ganw kaun si saDak jati hai?
sidhi saDak jati hai aage bhi puchchh lena
suraj sar par chaDh gaya tha tez chalne ki wajah se wo pasine pasine ho raha tha par manzil par pahunchne ki khushi ne use befir kar diya tha saDak ke kinare gehun ke kate, nange khet the uske ganw ki tarah hi thoDa tirchha, aundha, saf asman tha hawa soi hui thi, garm bagule sidha uDte aur sukhe patton, dhool ko le uDte sunsan saDak par door door tak koi rahi nahin tha charon taraf tapaman ka raj tha ramadew ka dhyan bhai wishundew ki taraf tha roz roz ke curfew mein chitthi kaise pahunchti bhaiya bhi chitthi ka intizar karta hoga bhaiya use dekhte hi lipat jayega wo bhi ansu nahin rok sakega bhaiya til ka laDDu dekhte hi khil jayega lekin bhaiya usse pahle khane pine ko puchhega bhaiya ghuma phirakar bhauji ke bare mein bhi puchhega wo bhai se janardan se badla lene ke liye zarur kahega
use samne saDak ke kinare do manzila makan dikh gaya ek sardar ji aage aage ja rahe the usne apni chaal tez kar di
bhai sahab, indar singh ka farm kidhar hai? usne pas pahunchakar puchha
kisnu milna? tu aaya kitthon? sardar ji ne khulasa hi poochh liya par ramadew ki samajh mein theek se na aa paya
bishundew, bihari ramadew ataptakar bola
baat to palle paindi nai, chal sarpanch sarup ko chal, utthe jake gal kari? sardar ji ne use pichhe pichhe aane ka ishara kiya
pareshan ramadew unke pichhe pichhe baDhta gaya kuch door jakar, purani inton wale mahalanuma ghar ke samne jakar donon ruk gaye raste mein sardar ji ne uska nam poochh liya, apna nam bhi bata diya — kirpal singh kirpal singh ne awaz di
sarpanch ji, sarpanch ji, thalle aao! ek pardeshi banda aaya see! kurta pajama pahne ek lamba tagDa gora chitta adami bahar aaya uske chehre par halki nukili kali punchhe saj rahi theen kirpal singh ko dekhkar muskuraya aur uska hath pakaDkar apni or khinchne laga
kirpalya, ai banda koni? inu kitthon phaDke le aya?
sarpanch ji, main kitthon le auga? e banda kisi di khoj wich aaya si hindi bolda si, tusi samajh lo! gal baat kar lo!
sarpanch sarup ramadew ki or muDa, use gahri nazron se dekha
kaka, kya baat hai?
mera bhai wishundew indar singh ke farm par kaam karta hai, bahut door bihar se aaya hoon ye chitthi hai ramadew ne card sarpanch sarup ke hath mein thama diya sarpanch sarup ne postakarD ulat pulatkar paDha aur ramadew ko wapas thamate hue bola, pata to theek hai
kirpalya, dekh pai di khinch enni door le i are yaad aaya si ek bihari muDa indar de farm te dekhya si chal tujhe indar singh ke pas le chalta hoon sarpanch sarup aage baDha
ramadew uske pichhe chala kirpal singh achchha kahkar apni rah chala gaya tez dhoop mein chalte donon pas hi indar singh ke farm par pahunche
s siri akal jee! ek mahila ne shalinata se kaha
sarpanch ne sir hilaya
s siri akal! indar singh kahan gaya?
wo to kal sawere ayenge ji ambarsar mein kuch kaam tha
ye munDa apne bhai se milne aaya hai iska bhai tere farm da kaam karta hai kya nam bataya?
wishundew, ramadew ne saf saf lahje mein kaha uske chehre se utsukta ka lawa jaise phoot paDna chahta tha mahila ne use ghaur se dekha
wishundew! is nam ka ek bhaiya to tha ji, teen mahine pahle kapurathle laut gaya pichhle sal use hum apne mama ji ke pas se laye the is sal bhi bihar se aaya, par bolta tha—dil nain lagta, teen mahine pahle kapurathle laut gaya
sarpanch sarup ne ramadew ki or dekha use laga ki ab ramadew ro dega
dekh manjit kaur! sarpanch sarup ne ajiji se kaha, laDka bihar se aaya hai, pareshan hai iske pas tera hi pata hai
sardar ji ke aane par baat kar lena ji, ziyada wahi batlayenge! kahkar manjit kaur muD gai
chal munDya! mere yahan hi roti pani kar lena swere dekhenge! bansuri kya bolti hai?
raat dhamak i thi dalan mein kirpal singh aur sarpanch sarup baten kar rahe the ghoom phirkar baat punjab ke halat par hi chalti akhbar, radio ke hawale afwahon ka wishleshan chal raha tha
dalan ke kinare wale takht par chadar se munh Dhanke leta, ramadew ke samne wishundew ka chehra bar bar kaundh raha tha use rah rahkar rulai aa rahi thi sardarani pahle to achchhe se boli par wishundew ka zikr aate hi saf mukar gai—sardar ji se baat kar lena agar wishundew teen mahine pahle kapurathle chala gaya to wahan se chitthi zarur likhta jel mein bhi hota to wahin se likhta do sau rupae mein wo apne bhai ko kahan kahan khoj payega? kahin bhaiya akhir rulai phoot paDi hichkiyan, nak se bahte pani aur khansi ne bhed khol diya
kirpal singh lapka aur ramadew ko jhakjhorkar puchhne laga, e munDya, e munDya sarpanch ji dekho!
sarpanch sarup bhanp gaya wo uthkar ramadew ke pas aaya aur dilasa dene laga, dekh bhai, kal indar singh se saf saf tere bhai ka pata poochh lenge rupae paise ki zarurat hui to de denge! tu kapurathle jakar bhai se mil lena kyon kirpal sinh?
hanji, munDe nu madad zarur karni chahiye je greeb log hain
kab raat guzar gai, sochte sochte ramadew ko pata hi nahin chala
sarpanch sarup ko dekhte hi indar singh chillaya, ao maharaj! manjit kaur kah rahi thi us bihari munDe ke bare mein main ambarsar chala gaya tha donon puttron par dil laga rahta hai raat jakar telephone se baat hui ji ko chain aaya swere wahan se chala bus samjho abhi aa hi raha hoon main bhi murakh! chalo andar baithte hain kuch chay say bhijwana, kah kar indar singh shuru ho gaya, hanji, laDka baDa bhala tha pichhle sal bhi mere pas tha is sal aaya to ukhDa ukhDa rahta tha dil nahin lagta tha tik nahin paya chal diya kapurathle manjit ke mama ke yahan gaya hoga aisa hi bol raha tha do mahine ho gaye ab aap kaho to is munDe ko kharcha pani de doon
indar singh ki wachalata se sarpanch sarup shak mein paD gaya kal manjit kaur kah rahi thi, laDke ko gaye teen mahine hue ye kahta hai do mahine hue aur ye kharcha pani kyon dena chahta hai?
indar singh, laDka zinda hai ya nahin? sarpanch ne sadhi awaz mein puchha
indar singh ke chehre par jaise syahi put gai ramadew ka ji dhakk! indar singh jabran apne chehre par kaniyan muskurahat lata bola, marne ki baat kahan se aa gai? laDka zarur zinda hoga ji kapurathle hoga ya aur kahin chala gaya hoga! bhaiya logon ka kya thikana? aaj yahan kaam kiya, kal wahan
sarpanch sarup ke pichhe khaDa ramadew siskiyan lene laga manjit kaur chay ki tray lekar kamre mein ghusi ramadew ko rota dekhkar, pal bhar ke liye thithak gai manjit kaur ne gahri najron se pati ko dekha aur uske honth bhinch gaye yantrawat tray ko centre table par rakh, tezi se muDkar andar chali gai
sarpanch ko saf laga ki indar singh jhooth bol raha hai manjit kaur bhi chhipa rahi thi aise jhooth bolne ki zarurat kya hai? wishundew zinda nahin hai sarpanch ki aatma par thak se hathauDe jaisi chot lagi, wo ghusse se tilmila utha
saf bata indar singh, wishundew zinda hai ya nahin? zinda hai to uska pata de!
kah to diya, wo yahan se chala gaya zinda hi hoga
is laDke par rahm kar itni door se aaya hai jhooth bolne se kya fayda?
oy sarupe, tu mujhe jhutha kahega? indar singh bhaDak utha, ‘sarpanch se haar gaya tab bhi akaD nahin gai tu hota kaun hai jo mujhse puchhne chala aaya? main tujhe kuch nahin bataunga! baDa aaya hai laDke ki tarafadar karne wala!
sarup awak! ramadew bukka markar ro paDa achanak ramadew utha aur indar singh ke panw par gir paDa!
malik! rota ramadew chikhne laga, ‘bata dijiye malik, mera bhaiya kahan hain? bahut upkar hoga malik! bata dijiye malik malik
tu patthar hai indar sinh! sarpanch sarup ghrina se uphan utha, lamba chauDa farm, itna paisa, par insaniyat zara bhi nahin pardeshi ki tu madad nahin kar sakta khair chal munDe!
sarpanch sarup uth khaDa aage baDhkar ramadew ko jhakjhorkar uthaya
bhai sahab, rukna!
andar se manjit kaur ki tez awaz i darwaze se hi manjit kaur ne ek jhola sapranch ke panw ke pas phenka! uphanti manjit kaur par jaise daura paD gaya ho!
ye wishundew ka saman hai wo duniya mein nahin hai! kahte kahte manjit kaur phoot phutkar rone lagi hichkiyon ke beech usne kaha, mujhse bolkar gaya tha ki ambarsar se gharwalon ke liye kapDe lene ja raha hoon, des jana hai ambarsar se lautkar aata to yahan se paise lekar jata teen baje din mein gaya bus bigaDne se sham ho gai chheDhatta ke pas rokkar mar kat hui usi mein
gunge ramadew ki ankhon se ansu luDhak rahe the sarpanch sarup manjit kaur ki baat sunkar stabdh tha aur apradhi ki tarah indar singh ki ankhen farsh mein gaDi hui theen
main teen dinon tak roti rahi mere bhi bete hain ye phans jane ke Dar se baat chhipa rahe the kal raat bhar hum donon jhagaDte rahe—chhipana kya, wo bhi kisi ka beta hai, bhai hai kal main bhi jhooth boli hamein maf karo sarpanch jee! manjit kaur ke andar baithi man ne uphan mara usne aage baDhkar ramadew ko chhati se laga liya apni oDhni se uske ansu ponchhne lagi
beech mein paDe wishundew ke jhole se uski bansuri jhank rahi thi sab chup the ansu ki tarah bansuri bhi jaise kuch bol rahi thi bansuri kya bol rahi thi, koi samajh nahin paya
tu yahan kab tak bhugatta rahega?
der tak us din nahr ke kinare baitha raha nahr ka kalkal pani, azad hawa sab bekar! sarpanch ke ghar ki taraf chal paDa kal use rupae mil jayenge — do hazar sarpanch sahab use amaritsar mein dilli wali bus mein bitha denge amaritsar ke liye aaj unko yaad dila deni chahiye wo sochta aage baDha ja raha tha ki fauj ki teen jipen guzrin lauD speaker se punjabi mein kuch ghoshana ki ja rahi thi thoDi door aur gaya ki aur teen jipen guzri ramadew ghabra gaya jaldi jaldi sarpanch ke ghar ki or baDhne laga
sarpanch ke ghar ke pas pahunchakar wo hanf raha tha
sarpanch sahab, pakistani fauj ghus i kya?
nahin, kaka, sarpanch sarup ne lambi sans li, apni fauj hai ye bahut bura hua!
kyon? ramadew ne haule se puchha
tum kya samjho? hum border ke log samajhte hain! fauj aati hai, jati hai par jo khalish chhoD jati hai, uska koi ilaj nahin, chal indar singh ke pas chalte hain!
phanse ramadew ke liye koi upay nahin tha t wi par jalandhar, lahore ki khabren sunte dekhte raho kuch malum nahin, kahan kya ho raha hai pure punjab ko jaise sunabahri ho gaya ho wagha, atari jaise fauji chhawani bani theen gharon mein cheekh Dar se dubki paDi thi hawa ki bhi talashi chal rahi thi ghrina ke andhaD mein maun hi pattiyon ki bhasha thi parinde ki tarah afwahen uDtin maut ki khabar cheekh bhi nahin ban sakti thi log kabutaron ki tarah dubke rahte raat bhi jagi rahti hari wardi mein log sannate ko kuchalte rahte
talashiyon ne malkin ko toD diya tha indar singh t wi ke pas baithe rahte beech beech mein radio par bhi khabren sunte ramadew rasoi mein jakar malkin ki madad kar deta rona ek silsila ban gaya tha sarpanch ji DhanDhas dene aaye
kirpal ka bhai ambarsar mein sewadar tha kirpal sabr kar sakta hai! dilli mein sab theek thak hai, akhir rajdhani hai tu nahaq pareshan hai, manjit kaur! himmat rakh!
kaise chup ho jaun! ek phool tutta hai to har patta roega us par ke gole dagte the to hamare mein josh hota tha ab to idhar se hi koi is bar unhen beton ki tarah kaleje mein kyon nahin lagata? jinko dekh himmat hoti thi, wahi hamein Darate hain bus ab to wahe guru ka aasra hai! ramadew ko roti kalapti manjit kaur mai ki tarah lagi dilli mein base unke donon beton ka kya hua hoga?
tufan ki tarah guzre we din barah din baad curfew khula to ashanka ki tez bayar thi kiska, kaun mara, kahan chala gaya? akhir indar singh ne kaha, ambarsar jana hai, tu yahan kab tak bhugatta rahega?
safar tamam nahin
malwe ke shahr amaritsar mein atank ka tana hua chhata tha ankhon ke diye bujhe bujhe the marghat sa sannata bus ki aramdeh seat par baitha ramadew khiDki se chehra sataye dekh raha tha indar singh aur sarpanch sarup niche khaDe the hachke ke sath bus aage baDhi ramadew ne jhat hath joD diye
unke ojhal hote hi usne lambi sans li ankhen band karte hi jaise mai samne khaDi ho gai wo jhooth bolna chahta hai—bhaiya ka pata nahin chala par do hazar ka rupae kya karega! god mein paDa wishundew ka jhola bhari lagne laga bansuri jhole se bahar jhank rahi thi wishundew ka chehra uske samne ghoom gaya achanak uska matha ghumne laga—ansuon mein tab manjit kaur ka chehra, kirpal singh, indar singh ka jhurriyon ki tarah latakta chehra samne aata aur ojhal ho jata phir dahaD markar roti mai bistar par munh dekar roti bhauji
use zor se kampkampi i rom rom kharakhra utha nahin! wo dhire se budabudaya aage ki seat ka hainDil usne mazbuti se pakaD liya gurrati bus aage baDhti gai aage baDhna hi tha, bhaiya express ka safar tamam nahin hua tha
स्रोत :
पुस्तक : श्रेष्ठ हिन्दी कहानियाँ (1980-1990) (पृष्ठ 1)
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।