पंडित जी की अवस्था क़रीब पैंतालीस वर्ष की है और उनकी पत्नी की बीस वर्ष की। पंडित जी अंग्रेज़ी और संस्कृत दोनों में विद्वान हैं और कई पुस्तकें लिख चुके हैं। सप्ताह में दो-एक दिन उन्होंने समाचार पत्र और मासिक पुस्तकों के लिए लेख लिखने को नियत कर लिया है, विशेषकर इन्हीं दिनों में, अर्थात् जब वे कुछ लिखते होते हैं, तब उनकी युवा पत्नी उनको बातचीत में लगाना चाहती हैं। पंडितानी स्वरूपवती हैं और कुछ पढ़ी-लिखी भी हैं। उम्र में बहुत कम हैं ही। इन सब कारणों से वाद-विवाद में पंडितजी उनसे हार मानना ही अकसर उचित समझते हैं। एक दिन का हाल सुनिए।
कमरे में एक कोने में, जहाँ मेज़-कुर्सी लगी हुई थी, पंडित जी बैठे हुए एक विश्व-विख्यात कवि के कविता चातुर्य पर कुछ लिख रहे थे। थोड़ी ही दूर पर पंडितानी भी बैठी हुई एक समाचार पत्र पढ़ रही थीं। कुछ देर सन्नाटे के बाद पंडितानी अपने पति का ध्यान अपनी ओर खींचने के लिए ज़रा खाँसीं। पंडित जी ने इसकी कुछ परवाह न की और अपने काम में वे लगे रहे।
“सुना!—सुना!!”
पंडित जी ने पहिले ‘सुना!’ को तो टाल दिया। परंतु बहरे तो थे ही नहीं; दूसरे पर उन्हें बोलना ही पड़ा।
“हाँ! आज्ञा।”
“क्या कुछ बड़े ज़रूरी काम में हो?”
“नहीं-नहीं, कुछ नहीं” करते हुए पंडित जी ने कहा, “हमको केवल पचास पन्ने का एक लेख लिखकर आज ही रात को भेजना है। लेकिन हम यह कुछ बहुत नहीं समझते; कहो तुम्हें क्या कहना है।”
“इस पत्र में एक बड़े अच्छे तोते का विज्ञापन है। यह तुम्हें मालूम ही है कि तोता पालने की बहुत दिनों से मेरी इच्छा है। अगर मैं यह विज्ञापन काटकर तुम्हें दे दूँ, तो तुम कर्नेलगंज में, बोस कंपनी की दूकान पर उसे देख आओगे?” पंडित जी ने क़लम तो रख दी और ज़रा ज़ोर से साँस खींचकर बोले, “प्रिये! क्या सचमुच ही तोता पालने का तुम्हारा इरादा है?”
“क्यों नहीं; और लोगों के पास भी तो तोते हैं। और यह तोता, जिसका मैं ज़िक्र करती हूँ, बोल सकता है। जब तुम बाहर होगे, वह मेरे लिए एक साथी होगा।”
“हाँ, यह तो ठीक है! मुझे विश्वास है कि मेरे न होने पर तुम तोते के साथ जी बहला सकती हो। परंतु वह तोता मेरे लिए किस काम का होगा, यह भी तुमने सोचा?”
“ज़रूर! मगर जब नए-नए ख़याल मेरे ध्यान में न आवेंगे तब मैं उनके लिए बोलते हुए तोते के पास नहीं जाने का।”
इतना कहकर पंडित जी फिर लिखने में लग गए। भौंह चढ़ाकर उन्होंने, अपने ध्यान को कालिदास की ओर खींचना चाहा। पंडित जी ने ‘कालिदास को काव्यरस का मानो’—यह वाक्य लिखकर सन्नाटे में आगे लिखा—‘तोता समझना चाहिए।’
ध्यान तो प्रिया के तोते की ओर था। इस कारण पंडित जी ‘सोता’ की जगह ‘तोता’ लिख गए! दुबारा पढ़ने पर यह ग़लती मालूम हुई; तब उन्होंने झुंझलाकर उसे काट दिया और पत्नी से आप बोले—
“जब मैं काम में हुआ करूँ तब तुम कृपा करके मुझसे मत बोला करो। तुमने मेरे विचारों का प्रवाह बंद कर दिया।”
पंडितानी, “हाँ! हम तुमसे कुछ भी बोलीं और तुम्हारे विचारों का प्रवाह बंद हुआ। मगर वह प्रवाह ही कैसा जिसे तोता बंद कर दे! मैं तो उसे टपकना भी नहीं कहने की। मगर अब मैं तुमसे कभी न बोलूँगी; और अपनी शेष ज़िंदगी चुपचाप रहकर काटूँगी। अगर तुम ब्याह के समय यह मुझसे कह देते कि मैं तुमको केवल देख सकूँगी; मगर तुमसे बोल न सकूँगी; तो मुझको यह तो मालूम रहता कि किस बात की तुमसे आशा रख सकती हूँ और किसकी नहीं। ओह, मैं मानो किसी काठ के पुतले को ब्याही गई!”
यह सुनकर पंडित जी मुस्कुराए और बोले, “यह जवाब तो कुछ बुरा नहीं। इसमें तो तुमने ख़ूब कविता छाँटी।”
“यदि तुम इतने चिरचिरे ने होते तो मैं तुम्हें ऐसी ही बातें सुनाया करती। उन्हें तुम अपने लेखों में शामिल कर लिया करते और वे तुम्हारे लेखों की शोभा बढ़ातीं। परंतु मुझे तो घंटों चुपचाप बैठा रहना पड़ता है। जैसे मैं किसी कालकोठरी की क़ैदी हूँ, जिसे अपनी परछाँही से भी बातचीत करना मना हो।”
“प्राणाधिके! मैं तुम्हें बोलने से केवल उस समय रोकता हूँ जब मैं किसी काम में लगा होता हूँ। भला तुम्हीं सोचो कि काम और बातचीत दोनों, साथ ही कैसे हो सकते हैं?”
“वाह! मैं तो उस समय भी काम कर सकती हूँ जब घर भर बातचीत करते हों; बीसियों आदमी बोलते हों। देखो न, मेरे साथ की सात-आठ सहेलियाँ बातचीत करती जाती थीं, जब मैंने तुम्हारे लिए वह मखमली जूती तैयार की। तुम्हीं कहो वह कैसी अच्छी है।”
पंडित जी हँसकर—“हम तुम्हारे ऐसे बुद्धिमान नहीं।”
“इसीलिए तो मैं तोता पालना चाहती हूँ कि जब तुम मुझसे न बोल सको और मुझसे भी चुपचाप बैठे न रहा जाए, तब मैं तोते से बोल सकूँ और तोता मुझसे बोल सके; और मुझे यह शंका न होने लगे कि मैं गूँगी या बहरी होती जाती हूँ, जैसा कि अब कभी-कभी होता है।”
“मैं कहे देता हूँ”—पंडित जी ने कुछ क्रोधित होकर कहा, “कि अब मैं कदापि और जीव घर में न लाने दूँगा। तुम्हारे पास एक कुत्ता है, एक बिल्ली है, रंगीन मछलियाँ हैं, और कितने ही लाल हैं। इतने जानवर, किसी स्त्री के लिए, जो नूह की नौका में न पली हो, बस हैं।”
पंडितानी ने बड़े मधुरस्वर से कहा, “देखो, इस मामले में बाइबिल को न घसीटो।”
पंडित जी ने अपने लेख को निराशा की निगाह से देखा और पंडितानी की ओर प्यार से देखकर वे बोले, “प्रिये, तनिक तो बुद्धि से काम लो। यह कमबख़्त तोता तुम्हारे सिर में कैसे घुसा?”
“मेरे घर में भी एक तोता था। फिर, जब मैं ऐसे घर से आई, जहाँ सदा तोता रहा, तो बिना उसके मुझसे कैसे रहा जाए?”
“जिसका ब्याह हो गया हो, उसके लिए तोता अच्छा साथी नहीं।”
“क्या ख़ूब! बापू तोते को बहुत प्यार करते थे।”
“तुम्हारे बापू को, शाम को अख़बारों के लिए लेख न लिखने पड़ते होंगे।”
“नहीं। वे अपना काम दिन ही को ख़त्म कर डालते थे, और सायंकाल भले आदमियों की तरह अपने बाल-बच्चों के साथ बिताते थे। मुझे इस प्रकार, कुल रात बापू की ओर घूरते हुए न बैठे रहना पड़ता था। एक शब्द तक मुँह से निकलने का मुझे कष्ट न था। हम लोग बहुत मज़े में मिलजुल कर रहते थे—हम, और बापू और तोता।”
इतना कहकर पंडितानी ने अपनी सूरत रोती-सी बनार्इ, जिससे पंडित जी आतुर होकर बोले—
“देखो, आँसू न निकालो। तुम अच्छी तरह रहो कि जो तुम इस मकान के नींव की ईंटें तक माँगो तो वे भी मैं तुम्हें देने को तैयार हूँ।”
“मैं ईंटें नहीं माँगती; तोता माँगती हूँ।” पंडित जी को रोककर वह फिर बोली, “तुम मेरे लिए तोता ज़रूर ला दो; मैं देखती रहूँगी कि वह तुम्हें दिक न करे।”
“परंतु वह दिक करेगा ही। देखो तुमने लाल पाले हैं; वे मुझे कितना दिक करते हैं।”
“वे बिचारे प्यारे-प्यारे लाल, कैसी मधुरी बानी बोलते हैं। क्या उनके गाने से तुम दिक होते हो?”
“प्रिये! उनके गाने से मेरा हर्ज़ नहीं। परंतु जब कभी पिंजड़े के किवाड़ खुले रह जाते हैं, तब मुझे रखवाली करनी पड़ती है कि कहीं तुम्हारी बिल्ली उनका नाश्ता न कर डाले। कल दो बार मैंने उधर जो देखा तो मालूम हुआ कि पुसी पिंजड़े के पास अपने होठ फड़का रही है। भला तुम्हीं कहो, कोई मनुष्य अपना ध्यान किसी बात में कैसे लगा सकता है यदि उसे एक बिल्ली की रखवाली करना पड़े, जो उसकी पत्नी के लालों की ताक में हो।”
“परंतु, तुम्हें तोते को न ताकना पड़ेगा। तुम जानते हो कि बिल्लियाँ तोते को नहीं खातीं। और जब तुम काम में न होगे, तब उसकी बोली सुनकर प्रसन्न होगे। मैं उसको बड़ी अच्छी-अच्छी बोलियाँ सिखाऊँगी।”
“जो कुछ तुम उसे सिखाओगी वह नहीं बोलेगा; बल्कि वह वही बोलेगा जो वह पहिले ही से जानता है।”
‘नहीं! नहीं! मुझे विश्वास है कि इस तोते की शिक्षा बुरी नहीं हुई है। विज्ञापन में लिखा है कि वह बच्चों से मिल गया है। इसके यह मानी हैं, कि वह गाली-गुफ़्ता नहीं बकता। मेरे घर का तोता पूरा भला मानस था। उससे मेरे घर के आदमियों पर बड़ा अच्छा असर पड़ा। मेरा भाई तोते के आने से पहले तो कभी गाली वग़ैरह तक भी देता था; परंतु जब से तोता आया, तब से उसने कभी वैसा नहीं किया। उसको भय था कि कहीं तोता भी न वही बोलने लगे। मुझे बहुधा ख़याल हुआ है कि बोलने वाले तोते के होने से शायद तुम्हारी भी कुछ आदतें सुधर जाएँ!”
अपना यह ख़याल तो तुम एकदम दूर कर दो। घर में तोते की मौजूदगी मुझे आपे से बाहर कर देगी। जब वह चीख़ने लगेगा तब न जाने मैं क्या-क्या बक जाऊँगा। इसके सिवा मेरे इज़्ज़तदार, भलेमानस, और सीधे-सादे पड़ोसियों को एक चीख़ते हुए तोते से बड़ी परेशानी होगी।
“हाँ! हाँ! तुम पड़ोसियों का ख़याल कर रहे हो? तुम्हें इस बात का ख़याल नहीं कि मुझे कितना दुःख है। तुम्हारा सब ध्यान ग़ैरों की तरफ़ है! अच्छा कल मैं अपने मकान के सामने वाली हवेली में कहला भेजूँगी कि वे कुत्ता न पालें क्योंकि वह घंटों दरवाज़े पर भौंका करता है। अगर मैं तोता न पाल सकूँगी तो वे कुत्ता भी न पाल सकेंगे। और, हाँ पड़ोस में अभी एक बच्चा हुआ है। वह क़रीब-क़रीब रात भर चिल्लाता रहता है। मैं उसके लिए भी वैसा ही कहला भेजूँगी। अगर मैं उनके कारण तोता न रख सकूँगी तो वे मेरे कारण बच्चा भी न रखने पावेंगे!” इतने पर पंडित जी ने कालिदास और उनके काव्य को हटाया और कुर्सी फेरकर वे अपनी अर्धांगिनी के सम्मुख हुए।
“प्रियतमे! यदि तुम बुद्धिमानी से बात करो तो मैं तुम्हारी बात सुनूँगा, वरना नहीं। भला पड़ोसी के बच्चे और तुम्हारे तोते से क्या संबंध?”
“संबंध क्यों नहीं! ख़ूब संबंध है। अगर मेरे कोई बच्चा हो, और वह रोए तो तुम कहोगे कि तुम्हारा ध्यान बँटता है। इसलिए दाई को उसे लेकर छत पर या बाहर बाज़ार में बैठना पड़ेगा, जिसमें उसका रोना तुम्हें न सुनाई दे। तुम्हारे लिए तो केवल एक स्थान अच्छा होगा। तुम एक कमरा किसी गूँगे-बहिरों के अस्पताल में ले लो, तो तुम बिना किसी विघ्न के लिख-पढ़ सकोगे। मैं कहती हूँ कि आख़िर और लोग कैसे किताबें लिखते हैं? तुम्हें कालिदास के बारे में दो सतरें लिखना है; और उतने के लिए अपनी पत्नी को सभ्यतापूर्वक जवाब देना तुम्हें कठिन हो गया है।”
“प्रिये! जवाब तो मैं दे चुका। क्या मैंने यह नहीं कहा कि मैं तोता रखने के विरुद्ध हूँ?”
“हाँ! परंतु तुमने मुझे समझाने तो नहीं दिया। तुम्हारा जो ख़याल तोतों के विषय में है, वह सर्वथा ग़लत है। तुमने जानवरों के अजायबघर के चीख़ते हुए तोते देखे हैं जो एक शब्द भी नहीं उच्चारण कर सकते। परंतु एक सिखाया हुआ तोता, एक शिक्षित तोता, एक पालतू तोता, जैसा विज्ञापन में लिखा है कुछ और ही चीज़ है। मेरे घर में जो तोता है, वह गा सकता है। लोग कोसों से उसके गीत सुनने आते हैं। उसके पिंजड़े के पास भीड़ लग जाती है।”
“अच्छा, वह क्या गाता है? ऋतुसंहार के श्लोक?”
“देखो ऐसी बे-लगाव बातें मत करो! ऋतुसंहार के श्लोक पढ़ेगा! वह काशी का कोई शास्त्री है न!”
“अच्छा फिर, यह बताओ, वह गाता क्या है। इसमें तो कोई संदेह ही नहीं कि तुम तोता ज़रूर पालोगी, चाहे हम माने या न मानें। अब हमें इतना तो मालूम हो जाए कि क्या बक-बककर सुबह, दोपहर और शाम, हर समय वह, हमारे कान फोड़ेगा?”
“उसमें कान फोड़ने की कोई बात नहीं। तुम तो ऐसा कहते हो, गोया मेरे घर के आदमी सब जंगली हैं; गान-विद्या जानते ही नहीं। याद रखिए, उनमें बुद्धि और सभ्यता तुमसे कुछ कम नहीं।”
“अच्छा, यह सब हमने माना। ज़रा बताइए तो सही आपका वह सभ्य तोता कहता क्या है?”
“वह कई बड़े ही मनोहर पद कहता है। नीचे का पद तो वह बड़ी ही सफ़ाई से गाता है, वह कहता है...”
“सत्त, गुरदत्त, शिवदत्त दाता।”
“आहा! क्या कहना है!” पंडित जी ने कुछ क्रोध और कुछ कटाक्ष से कहा, “मैंने अपने जीवन में इससे अधिक अच्छा गाना कभी नहीं सुना। अगर यही गाना है तो मैं इस ‘दत्तदत्त’ पर ‘धत्त’ कहता हूँ!”
“देखो मुझसे धत्त न कहना। कोई मैं कुँजड़िन-कबड़िन नहीं।”
“ख़फ़ा मत हो। मैं तुम्हें धत्त नहीं कहता; तुम्हारे सभ्य तोते को धत्त कहता हूँ। तुमने पूरा एक घंटा समय मेरा नष्ट किया। अब कृपा करके लिखने दो।”
किसी प्रकार पंडितजी ने अपना चित्त खींच कर फिर कालिदास पर उसे जमाया! लेकिन पंडितानी जी से चुपचाप कब रहा जाता है! थोड़ी ही देर में उस सन्नाटे ने उन्हें व्याकुल कर दिया। अपनी जगह से उठकर वे पंडित जी के पास आई और अपना हाथ मेज़ पर कई बार मारकर उन्होंने उनका ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। वे बोली, “अच्छा, तो पूछती हूँ कि, अगर मैं एक तोता न पालूँ तो तुम छ: कुत्ते कैसे पालोगे? छ: कुत्ते और उसमें से ऐसा काटने वाला कि जिसके मारे धोबिन, नाइन, तेलिन-तमोलिन तक का आना मुश्किल! अहीर जब दूध दुहने आता है तब दो नौकर उस कुत्ते को पकड़ने को चाहिए। यह सब तुम जानते हो; तब भी उसे नहीं निकालते, अभी उस दिन तुम्हें मेहतर को दो रुपये देने पड़े। जिसमें वह उसके काटने की ख़बर पुलिस को न करे। जनकिया महरी को देख उस दिन वह ऐसा ग़ुर्राया कि वह गिर ही पड़ी! तुम तो ऐसा कुत्ता रखो और यदि मैं छोटा-सा, मिष्टभाषी, ख़ूबसूरत, निरुपम तोता पिंजड़े में पालना चाहूँ तो तुम मुझसे ऐसे लड़ो जैसे मैं कोई बाघ घर में लाना चाहती हूँ!!”
पंडित जी से अब आगे कुछ न बन पड़ी। उन्होंने पंडितानी के दोनों हाथ अपने हाथों में प्यार से लेकर दबाया और उनका मुख एक बार चुंबन करके कहा, “अच्छा तो हम तुम्हारे लिए एक नहीं, छ: तोते ला देंगे। अब तो प्रसन्न हो?”
इस पर पंडितानी जी प्रसन्नता से फूलकर चुपचाप बैठ गईं और पंडितजी ने जल्दी-जल्दी अपना लेख समाप्त कर डाला।
ईसाइयों की धर्मपुस्तक बाइबिल में लिखा है कि जब संसारी जीवों के पातकों के कारण आई हुई भयंकर बाढ़ से बचने के लिए, नूह ने ईश्वर के आज्ञानुसार एक बड़ी किश्ती बनाई और उसमें शरण ली तब उन्होंने अपने बाल बच्चों के अतिरिक्त सब जंतुओं का एक-एक जोड़ा भी साथ ले लिया।
panDit ji ki awastha qarib paintalis warsh ki hai aur unki patni ki bees warsh ki panDit ji angrezi aur sanskrit donon mein widwan hain aur kai pustken likh chuke hain saptah mein do ek din unhonne samachar patr aur masik pustkon ke liye lekh likhne ko niyat kar liya hai, wisheshkar inhin dinon mein, arthat jab we kuch likhte hote hain, tab unki yuwa patni unko batachit mein lagana chahti hain panDitani swrupawti hain aur kuch paDhi likhi bhi hain umr mein bahut kam hain hi in sab karnon se wad wiwad mein panDitji unse haar manna hi aksar uchit samajhte hain ek din ka haal suniye
kamre mein ek kone mein, jahan mez kursi lagi hui thi, panDit ji baithe hue ek wishw wikhyat kawi ke kawita chatury par kuch likh rahe the thoDi hi door par panDitani bhi baithi hui ek samachar patr paDh rahi theen kuch der sannate ke baad panDitani apne pati ka dhyan apni or khinchne ke liye zara khansin panDit ji ne iski kuch parwah na ki aur apne kaam mein we lage rahe
suna!—suna!!
panDit ji ne pahile suna! ko to tal diya parantu bahre to the hi nahin; dusre par unhen bolna hi paDa
han! aagya
kya kuch baDe zaruri kaam mein ho?
nahin nahin, kuch nahin karte hue panDit ji ne kaha, hamko kewal pachas panne ka ek lekh likhkar aaj hi raat ko bhejna hai lekin hum ye kuch bahut nahin samajhte; kaho tumhein kya kahna hai
is patr mein ek baDe achchhe tote ka wigyapan hai ye tumhein malum hi hai ki tota palne ki bahut dinon se meri ichha hai agar main ye wigyapan katkar tumhein de doon, to tum karnelganj mein, bos kampni ki dukan par use dekh aoge? panDit ji ne qalam to rakh di aur zara zor se sans khinchkar bole, priye! kya sachmuch hi tota palne ka tumhara irada hai?
kyon nahin; aur logon ke pas bhi to tote hain aur ye tota, jiska main zikr karti hoon, bol sakta hai jab tum bahar hoge, wo mere liye ek sathi hoga ”
han, ye to theek hai! mujhe wishwas hai ki mere na hone par tum tote ke sath ji bahla sakti ho parantu wo tota mere liye kis kaam ka hoga, ye bhi tumne socha?
wo tumhein bhi prasann karega; nae nae khayal tum usse seekh sakoge!
zarur! magar jab nae nae khayal mere dhyan mein na awenge tab main unke liye bolte hue tote ke pas nahin jane ka
itna kahkar panDit ji phir likhne mein lag gaye bhaunh chaDhakar unhonne, apne dhyan ko kalidas ki or khinchna chaha panDit ji ne kalidas ko kawyaras ka mano—yah waky likhkar sannate mein aage likha—tota samajhna chahiye
dhyan to priya ke tote ki or tha is karan panDit ji sota ki jagah tota likh gaye! dubara paDhne par ye ghalati malum hui; tab unhonne jhunjhlakar use kat diya aur patni se aap bole—
jab main kaam mein hua karun tab tum kripa karke mujhse mat bola karo tumne mere wicharon ka prawah band kar diya
panDitani, han! hum tumse kuch bhi bolin aur tumhare wicharon ka prawah band hua magar wo prawah hi kaisa jise tota band kar de! main to use tapakna bhi nahin kahne ki magar ab main tumse kabhi na bolungi; aur apni shesh zindagi chupchap rahkar katungi agar tum byah ke samay ye mujhse kah dete ki main tumko kewal dekh sakungi; magar tumse bol na sakungi; to mujhko ye to malum rahta ki kis baat ki tumse aasha rakh sakti hoon aur kiski nahin oh, main mano kisi kath ke putle ko byahi gari!
ye sunkar panDit ji muskuraye aur bole, yah jawab to kuch bura nahin ismen to tumne khoob kawita chhanti
yadi tum itne chirachire ne hote to main tumhein aisi hi baten sunaya karti unhen tum apne lekhon mein shamil kar liya karte aur we tumhare lekhon ki shobha baDhatin parantu mujhe to ghanton chupchap baitha rahna paDta hai jaise main kisi kalakothari ki qaidi hoon, jise apni parchhanhi se bhi batachit karna mana ho
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wah! main to us samay bhi kaam kar sakti hoon jab ghar bhar batachit karte hon; bisiyon adami bolte hon dekho na, mere sath ki sat aath saheliyan batachit karti jati theen, jab mainne tumhare liye wo makhamli juti taiyar ki tumhin kaho wo kaisi achchhi hai
panDit ji hansakar—ham tumhare aise buddhiman nahin
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main inten nahin mangti; tota mangti hoon panDit ji ko rokkar wo phir boli, tum mere liye tota zarur la do; main dekhti rahungi ki wo tumhein dik na kare
parantu wo dik karega hi dekho tumne lal pale hain; we mujhe kitna dik karte hain
we bichare pyare pyare lal, kaisi madhuri bani bolte hain kya unke gane se tum dik hote ho?
priye! unke gane se mera harz nahin parantu jab kabhi pinjDe ke kiwaD khule rah jate hain, tab mujhe rakhwali karni paDti hai ki kahin tumhari billi unka nashta na kar Dale kal do bar mainne udhar jo dekha to malum hua ki pusi pinjDe ke pas apne hoth phaDka rahi hai bhala tumhin kaho, koi manushya apna dhyan kisi baat mein kaise laga sakta hai yadi use ek billi ki rakhwali karna paDe, jo uski patni ke lalon ki tak mein ho
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jo kuch tum use sikhaogi wo nahin bolega; balki wo wahi bolega jo wo pahile hi se janta hai
nahin! nahin! mujhe wishwas hai ki is tote ki shiksha buri nahin hui hai wigyapan mein likha hai ki wo bachchon se mil gaya hai iske ye mani hain, ki wo gali guphta nahin bakta mere ghar ka tota pura bhala manas tha usse mere ghar ke adamiyon par baDa achchha asar paDa mera bhai tote ke aane se pahle to kabhi gali waghairah tak bhi deta tha; parantu jab se tota aaya, tab se usne kabhi waisa nahin kiya usko bhay tha ki kahin tota bhi na wahi bolne lage mujhe bahudha khayal hua hai ki bolnewale tote ke hone se shayad tumhari bhi kuch adten sudhar jayen!
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priyatme! yadi tum buddhimani se baat karo to main tumhari baat sununga, warna nahin bhala paDosi ke bachche aur tumhare tote se kya sambandh?
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priye! jawab to main de chuka kya mainne ye nahin kaha ki main tota rakhne ke wiruddh hoon?
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achchha, wo kya gata hai? ritusanhar ke shlok?
dekho aisi be lagaw baten mat karo! ritusanhar ke shlok paDhega! wo kashi ka koi shastari hai n!
“achchha phir, ye batao, wo gata kya hai ismen to koi sandeh hi nahin ki tum tota zarur palogi, chahe hum mane ya na manen ab hamein itna to malum ho jaye ki kya bak bakkar subah, dopahar aur sham, har samay wo, hamare kan phoDega?
usmen kan phoDne ki koi baat nahin tum to aisa kahte ho, goya mere ghar ke adami sab jangli hain; gan widdya jante hi nahin yaad rakhiye, unmen buddhi aur sabhyata tumse kuch kam nahin
“achchha, ye sab hamne mana zara bataiye to sahi aapka wo sabhy tota kahta kya hai?
wah kai baDe hi manohar pad kahta hai niche ka pad to wo baDi hi safai se gata hai, wo kahta hai ”
“satt, gurdatt, shiwdatt data
aha! kya kahna hai! panDit ji ne kuch krodh aur kuch kataksh se kaha, mainne apne jiwan mein isse adhik achchha gana kabhi nahin suna agar yahi gana hai to main is dattdatt par dhatt kahta hoon!
dekho mujhse dhatt na kahna koi main kunjaDin kabDin nahin
“khafa mat ho main tumhein dhatt nahin kahta; tumhare sabhy tote ko dhatt kahta hoon tumne pura ek ghanta samay mera nasht kiya ab kripa karke likhne do
kisi prakar panDitji ne apna chitt kheench kar phir kalidas par use jamaya! lekin panDitani ji se chupchap kab raha jata hai! thoDi hi der mein us sannate ne unhen wyakul kar diya apni jagah se uthkar we panDit ji ke pas i aur apna hath mez par kai bar markar unhonne unka dhyan apni or akarshait kiya we boli, “achchha, to puchhti hoon ki, agar main ek tota na palun to tum chhe kutte kaise paloge? chhe kutte aur usmen se aisa katnewala ki jiske mare dhobin, nain, telin tamolin tak ka aana mushkil! ahir jab doodh duhne aata hai tab do naukar us kutte ko pakaDne ko chahiye ye sab tum jante ho; tab bhi use nahin nikalte, abhi us din tumhein mehtar ko do rupye dene paDe jismen wo uske katne ki khabar police ko na kare janakiya mahri ko dekh us din wo aisa ghurraya ki wo gir hi paDi! tum to aisa kutta rakho aur yadi main chhota sa, mishtabhashai, khubsurat, nirupam tota pinjDe mein palna chahun to tum mujhse aise laDo jaise main koi bagh ghar mein lana chahti hoon!!
panDit ji se ab aage kuch na ban paDi unhonne panDitani ke donon hath apne hathon mein pyar se lekar dabaya aur unka mukh ek bar chumban karke kaha, “achchha to hum tumhare liye ek nahin, chhe tote la denge ab to prasann ho?
is par panDitani ji prasannata se phulkar chupchap baith gain aur panDitji ne jaldi jaldi apna lekh samapt kar Dala
isaiyon ki dharmpustak baibil mein likha hai ki jab sansari jiwon ke patkon ke karan i hui bhayankar baDh se bachne ke liye, nooh ne ishwar ke agyanusar ek baDi kishti banai aur usmen sharan li tab unhonne apne baal bachchon ke atirikt sab jantuon ka ek ek joDa bhi sath le liya
panDit ji ki awastha qarib paintalis warsh ki hai aur unki patni ki bees warsh ki panDit ji angrezi aur sanskrit donon mein widwan hain aur kai pustken likh chuke hain saptah mein do ek din unhonne samachar patr aur masik pustkon ke liye lekh likhne ko niyat kar liya hai, wisheshkar inhin dinon mein, arthat jab we kuch likhte hote hain, tab unki yuwa patni unko batachit mein lagana chahti hain panDitani swrupawti hain aur kuch paDhi likhi bhi hain umr mein bahut kam hain hi in sab karnon se wad wiwad mein panDitji unse haar manna hi aksar uchit samajhte hain ek din ka haal suniye
kamre mein ek kone mein, jahan mez kursi lagi hui thi, panDit ji baithe hue ek wishw wikhyat kawi ke kawita chatury par kuch likh rahe the thoDi hi door par panDitani bhi baithi hui ek samachar patr paDh rahi theen kuch der sannate ke baad panDitani apne pati ka dhyan apni or khinchne ke liye zara khansin panDit ji ne iski kuch parwah na ki aur apne kaam mein we lage rahe
suna!—suna!!
panDit ji ne pahile suna! ko to tal diya parantu bahre to the hi nahin; dusre par unhen bolna hi paDa
han! aagya
kya kuch baDe zaruri kaam mein ho?
nahin nahin, kuch nahin karte hue panDit ji ne kaha, hamko kewal pachas panne ka ek lekh likhkar aaj hi raat ko bhejna hai lekin hum ye kuch bahut nahin samajhte; kaho tumhein kya kahna hai
is patr mein ek baDe achchhe tote ka wigyapan hai ye tumhein malum hi hai ki tota palne ki bahut dinon se meri ichha hai agar main ye wigyapan katkar tumhein de doon, to tum karnelganj mein, bos kampni ki dukan par use dekh aoge? panDit ji ne qalam to rakh di aur zara zor se sans khinchkar bole, priye! kya sachmuch hi tota palne ka tumhara irada hai?
kyon nahin; aur logon ke pas bhi to tote hain aur ye tota, jiska main zikr karti hoon, bol sakta hai jab tum bahar hoge, wo mere liye ek sathi hoga ”
han, ye to theek hai! mujhe wishwas hai ki mere na hone par tum tote ke sath ji bahla sakti ho parantu wo tota mere liye kis kaam ka hoga, ye bhi tumne socha?
wo tumhein bhi prasann karega; nae nae khayal tum usse seekh sakoge!
zarur! magar jab nae nae khayal mere dhyan mein na awenge tab main unke liye bolte hue tote ke pas nahin jane ka
itna kahkar panDit ji phir likhne mein lag gaye bhaunh chaDhakar unhonne, apne dhyan ko kalidas ki or khinchna chaha panDit ji ne kalidas ko kawyaras ka mano—yah waky likhkar sannate mein aage likha—tota samajhna chahiye
dhyan to priya ke tote ki or tha is karan panDit ji sota ki jagah tota likh gaye! dubara paDhne par ye ghalati malum hui; tab unhonne jhunjhlakar use kat diya aur patni se aap bole—
jab main kaam mein hua karun tab tum kripa karke mujhse mat bola karo tumne mere wicharon ka prawah band kar diya
panDitani, han! hum tumse kuch bhi bolin aur tumhare wicharon ka prawah band hua magar wo prawah hi kaisa jise tota band kar de! main to use tapakna bhi nahin kahne ki magar ab main tumse kabhi na bolungi; aur apni shesh zindagi chupchap rahkar katungi agar tum byah ke samay ye mujhse kah dete ki main tumko kewal dekh sakungi; magar tumse bol na sakungi; to mujhko ye to malum rahta ki kis baat ki tumse aasha rakh sakti hoon aur kiski nahin oh, main mano kisi kath ke putle ko byahi gari!
ye sunkar panDit ji muskuraye aur bole, yah jawab to kuch bura nahin ismen to tumne khoob kawita chhanti
yadi tum itne chirachire ne hote to main tumhein aisi hi baten sunaya karti unhen tum apne lekhon mein shamil kar liya karte aur we tumhare lekhon ki shobha baDhatin parantu mujhe to ghanton chupchap baitha rahna paDta hai jaise main kisi kalakothari ki qaidi hoon, jise apni parchhanhi se bhi batachit karna mana ho
pranadhike! main tumhein bolne se kewal us samay rokta hoon jab main kisi kaam mein laga hota hoon bhala tumhin socho ki kaam aur batachit donon, sath hi kaise ho sakte hain?
wah! main to us samay bhi kaam kar sakti hoon jab ghar bhar batachit karte hon; bisiyon adami bolte hon dekho na, mere sath ki sat aath saheliyan batachit karti jati theen, jab mainne tumhare liye wo makhamli juti taiyar ki tumhin kaho wo kaisi achchhi hai
panDit ji hansakar—ham tumhare aise buddhiman nahin
isiliye to main tota palna chahti hoon ki jab tum mujhse na bol sako aur mujhse bhi chupchap baithe na raha jaye, tab main tote se bol sakun aur tota mujhse bol sake; aur mujhe ye shanka na hone lage ki main gungi ya bahri hoti jati hoon, jaisa ki ab kabhi kabhi hota hai
main kahe deta hun—panDit ji ne kuch krodhit hokar kaha, ki ab main kadapi aur jeew ghar mein na lane dunga tumhare pas ek kutta hai, ek billi hai, rangin machhliyan hain, aur kitne hi lal hain itne janwar, kisi istri ke liye, jo nooh ki nauka mein na pali ho, bus hain
panDitani ne baDe madhuraswar se kaha, dekho, is mamle mein baibil ko na ghasito
panDit ji ne apne lekh ko nirasha ki nigah se dekha aur panDitani ki or pyar se dekhkar we bole, priye, tanik to buddhi se kaam lo ye kambakht tota tumhare sir mein kaise ghusa?
mere ghar mein bhi ek tota tha phir, jab main aise ghar se i, jahan sada tota raha, to bina uske mujhse kaise raha jaye?
jiska byah ho gaya ho, uske liye tota achchha sathi nahin
kya khoob! bapu tote ko bahut pyar karte the
tumhare bapu ko, sham ko akhbaron ke liye lekh na likhne paDte honge
nahin we apna kaam din hi ko khatm kar Dalte the, aur sayankal bhale adamiyon ki tarah apne baal bachchon ke sath bitate the mujhe is prakar, kul raat bapu ki or ghurte hue na baithe rahna paDta tha ek shabd tak munh se nikalne ka mujhe kasht na tha hum log bahut maze mein miljul kar rahte the—ham, aur bapu aur tota
itna kahkar panDitani ne apni surat roti si banari, jisse panDit ji aatur hokar bole—
dekho, ansu na nikalo tum achchhi tarah raho ki jo tum is makan ke neenw ki inten tak mango to we bhi main tumhein dene ko taiyar hoon
main inten nahin mangti; tota mangti hoon panDit ji ko rokkar wo phir boli, tum mere liye tota zarur la do; main dekhti rahungi ki wo tumhein dik na kare
parantu wo dik karega hi dekho tumne lal pale hain; we mujhe kitna dik karte hain
we bichare pyare pyare lal, kaisi madhuri bani bolte hain kya unke gane se tum dik hote ho?
priye! unke gane se mera harz nahin parantu jab kabhi pinjDe ke kiwaD khule rah jate hain, tab mujhe rakhwali karni paDti hai ki kahin tumhari billi unka nashta na kar Dale kal do bar mainne udhar jo dekha to malum hua ki pusi pinjDe ke pas apne hoth phaDka rahi hai bhala tumhin kaho, koi manushya apna dhyan kisi baat mein kaise laga sakta hai yadi use ek billi ki rakhwali karna paDe, jo uski patni ke lalon ki tak mein ho
parantu, tumhein tote ko na takana paDega tum jante ho ki billiyan tote ko nahin khatin aur jab tum kaam mein na hoge, tab uski boli sunkar prasann hoge main usko baDi achchhi achchhi boliyan sikhaungi
jo kuch tum use sikhaogi wo nahin bolega; balki wo wahi bolega jo wo pahile hi se janta hai
nahin! nahin! mujhe wishwas hai ki is tote ki shiksha buri nahin hui hai wigyapan mein likha hai ki wo bachchon se mil gaya hai iske ye mani hain, ki wo gali guphta nahin bakta mere ghar ka tota pura bhala manas tha usse mere ghar ke adamiyon par baDa achchha asar paDa mera bhai tote ke aane se pahle to kabhi gali waghairah tak bhi deta tha; parantu jab se tota aaya, tab se usne kabhi waisa nahin kiya usko bhay tha ki kahin tota bhi na wahi bolne lage mujhe bahudha khayal hua hai ki bolnewale tote ke hone se shayad tumhari bhi kuch adten sudhar jayen!
apna ye khayal to tum ekdam door kar do ghar mein tote ki maujudgi mujhe aape se bahar kar degi jab wo chikhne lagega tab na jane main kya kya bak jaunga iske siwa mere izzatdar, bhalemanas, aur sidhe sade paDosiyon ko ek chikhte hue tote se baDi pareshani hogi
han! han! tum paDosiyon ka khayal kar rahe ho? tumhein is baat ka khayal nahin ki mujhe kitna duःkh hai tumhara sab dhyan ghairon ki taraf hai! achchha kal main apne makan ke samne wali haweli mein kahla bhejungi ki we kutta na palen kyonki wo ghanton darwaze par bhaunka karta hai agar main tota na pal sakungi to we kutta bhi na pal sakenge aur, han paDos mein abhi ek bachcha hua hai wo qarib qarib raat bhar chillata rahta hai main uske liye bhi waisa hi kahla bhejungi agar main unke karan tota na rakh sakungi to we mere karan bachcha bhi na rakhne pawenge! itne par panDit ji ne kalidas aur unke kawy ko hataya aur kursi pherkar we apni ardhangini ke sammukh hue
priyatme! yadi tum buddhimani se baat karo to main tumhari baat sununga, warna nahin bhala paDosi ke bachche aur tumhare tote se kya sambandh?
sambandh kyon nahin! khoob sambandh hai agar mere koi bachcha ho, aur wo roe to tum kahoge ki tumhara dhyan bantata hai isliye dai ko use lekar chhat par ya bahar bazar mein baithna paDega, jismen uska rona tumhein na sunai de tumhare liye to kewal ek sthan achchha hoga tum ek kamra kisi gunge bahiron ke aspatal mein le lo, to tum bina kisi wighn ke likh paDh sakoge main kahti hoon ki akhir aur log kaise kitaben likhte hain? tumhein kalidas ke bare mein do satren likhna hai; aur utne ke liye apni patni ko sabhytapurwak jawab dena tumhein kathin ho gaya hai
priye! jawab to main de chuka kya mainne ye nahin kaha ki main tota rakhne ke wiruddh hoon?
han! parantu tumne mujhe samjhane to nahin diya tumhara jo khayal toton ke wishay mein hai, wo sarwatha ghalat hai tumne janawron ke ajayabghar ke chikhte hue tote dekhe hain jo ek shabd bhi nahin uchcharan kar sakte parantu ek sikhaya hua tota, ek shikshait tota, ek paltu tota, jaisa wigyapan mein likha hai kuch aur hi cheez hai mere ghar mein jo tota hai, wo ga sakta hai log koson se uske geet sunne aate hain uske pinjDe ke pas bheeD lag jati hai
achchha, wo kya gata hai? ritusanhar ke shlok?
dekho aisi be lagaw baten mat karo! ritusanhar ke shlok paDhega! wo kashi ka koi shastari hai n!
“achchha phir, ye batao, wo gata kya hai ismen to koi sandeh hi nahin ki tum tota zarur palogi, chahe hum mane ya na manen ab hamein itna to malum ho jaye ki kya bak bakkar subah, dopahar aur sham, har samay wo, hamare kan phoDega?
usmen kan phoDne ki koi baat nahin tum to aisa kahte ho, goya mere ghar ke adami sab jangli hain; gan widdya jante hi nahin yaad rakhiye, unmen buddhi aur sabhyata tumse kuch kam nahin
“achchha, ye sab hamne mana zara bataiye to sahi aapka wo sabhy tota kahta kya hai?
wah kai baDe hi manohar pad kahta hai niche ka pad to wo baDi hi safai se gata hai, wo kahta hai ”
“satt, gurdatt, shiwdatt data
aha! kya kahna hai! panDit ji ne kuch krodh aur kuch kataksh se kaha, mainne apne jiwan mein isse adhik achchha gana kabhi nahin suna agar yahi gana hai to main is dattdatt par dhatt kahta hoon!
dekho mujhse dhatt na kahna koi main kunjaDin kabDin nahin
“khafa mat ho main tumhein dhatt nahin kahta; tumhare sabhy tote ko dhatt kahta hoon tumne pura ek ghanta samay mera nasht kiya ab kripa karke likhne do
kisi prakar panDitji ne apna chitt kheench kar phir kalidas par use jamaya! lekin panDitani ji se chupchap kab raha jata hai! thoDi hi der mein us sannate ne unhen wyakul kar diya apni jagah se uthkar we panDit ji ke pas i aur apna hath mez par kai bar markar unhonne unka dhyan apni or akarshait kiya we boli, “achchha, to puchhti hoon ki, agar main ek tota na palun to tum chhe kutte kaise paloge? chhe kutte aur usmen se aisa katnewala ki jiske mare dhobin, nain, telin tamolin tak ka aana mushkil! ahir jab doodh duhne aata hai tab do naukar us kutte ko pakaDne ko chahiye ye sab tum jante ho; tab bhi use nahin nikalte, abhi us din tumhein mehtar ko do rupye dene paDe jismen wo uske katne ki khabar police ko na kare janakiya mahri ko dekh us din wo aisa ghurraya ki wo gir hi paDi! tum to aisa kutta rakho aur yadi main chhota sa, mishtabhashai, khubsurat, nirupam tota pinjDe mein palna chahun to tum mujhse aise laDo jaise main koi bagh ghar mein lana chahti hoon!!
panDit ji se ab aage kuch na ban paDi unhonne panDitani ke donon hath apne hathon mein pyar se lekar dabaya aur unka mukh ek bar chumban karke kaha, “achchha to hum tumhare liye ek nahin, chhe tote la denge ab to prasann ho?
is par panDitani ji prasannata se phulkar chupchap baith gain aur panDitji ne jaldi jaldi apna lekh samapt kar Dala
isaiyon ki dharmpustak baibil mein likha hai ki jab sansari jiwon ke patkon ke karan i hui bhayankar baDh se bachne ke liye, nooh ne ishwar ke agyanusar ek baDi kishti banai aur usmen sharan li tab unhonne apne baal bachchon ke atirikt sab jantuon ka ek ek joDa bhi sath le liya
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।