उस पेड़ पर एक भी पत्ता नहीं बचा था। बाजरे की कलगी के एक-एक दाने को जैसे तोता निकाल लेता है, उसी तरह पतझर ने हर पत्ते को अलग कर दिया था। पेड़ की पूरी कत्थई शाखाएँ बिलकुल नंगी थीं। ओस की बूंदों में भीगने के बाद उसकी खुरदुरी, गड्ढेदार पुरानी छाल धूप में बहुत साफ़ दिखती थी।
लड़का सुबह छत पर गमले के पौधों को पानी देने आया। उसकी निगाह पेड़ पर पड़ी। उसने पहली बार पेड़ को इस तरह नंगा देखा था। हालांकि पतझर हर साल आता था, हर साल बाजरे की कलगी की तरह उसका हर पत्ता अलग कर देता था, हर साल उसकी शाखाएँ इसी तरह नंगी हो जाती थीं, पर लड़के की निगाह नहीं पड़ी थी। इस साल पड़ी थी। उसने इतना बड़ा, ऊँचा और ऐसा बिना पत्तों वाला पेड़ भी पहले कभी नहीं देखा था। इस साल देखा था। उसकी भूरी, कत्थई शाखाएँ उसे मेलों में आने वाले तपस्वी की जटाओं की तरह लगीं। पौधें को पानी देना भूलकर वह उन जटाओं को देखने लगा।
पेड़ को देखते हुए, उसकी नज़र शाखाओं के बीच की खाली जगह पर गई। खाली जगह से उसे कुछ दूर पर एक आँगन का चौकोर हिस्सा दिखा। उस चौकोर हिस्से पर एक लड़की खड़ी थी। वह भी हैरानी से पेड़ को उधर से देख रही थी। नंगी शाखाओं की खाली जगह से उसे भी देख रही थी। दो लोग एक साथ एक ही समय उन कत्थई भूरी शाखाओं को देख रहे थे जिन्हें उन्होंने पहले कभी नहीं देखा था। उन शाखाओं के बीच से वे एक दूसरे को भी देख रहे थे, एक-दूसरे को उन्होंने पहले कभी नहीं देखा था।
लड़की रस्सी पर सूखते कपड़े उठाने आई थी। कपड़े उठाकर वह चली गई। उसके जाने के बाद आँगन की चौकोर जगह खाली हो गई। लड़के ने अब पूरे आँगन को देखा। एक ओर किनारे पर नीची छत थी। उस पर बड़ा-सा धुआँरा बना था। वह जरूर रसोई होगी लड़के ने सोचा। दूसरी ओर उतनी ही नीची छत वाली कोठरियां बनी थीं। वह जरूर अनाज और दूसरे सामान रखने की जगह होगी, लड़के ने सोचा। तीसरी ओर कम ऊँचाई वाला नल लगा था। इस पर कपड़े धोए जाते होंगे, लड़के ने सोचा। चौथी ओर रस्सी बंधी थी। उस पर कपड़े सूखते थे। लड़के ने देखा था। पेड़ के टूटे मटमैले पत्ते रसोई और कोठरियों की छतों पर पड़े थे। वे बहुत ज़्यादा थे। इतने ज़्यादा कि उन्होंने छत को ढक लिया था। इतने ज़्यादा लड़के ने सिर्फ़ तारे देखे थे। वे भी कभी-कभी आसमान को ढक लेते थे। पत्ते एक दूसरे के ऊपर लदे हुए थे। तारे एक दूसरे के ऊपर नहीं लदते होंगे लड़के ने सोचा। लड़की के जाने के बाद आँगन का वह चौकोर हिस्सा बहुत खाली लग रहा था। लड़के ने लड़की को ठीक से नहीं देखा था। वह सोच रहा था। पौधें के पानी देने से पहले लड़की एक बार और आ जाए तो उसे ठीक से देख ले। लड़की अचानक आँगन में आ गई। उसी जगह खड़ी होकर गीले कपड़े सुखाने लगी। ऐसा करते हुए वह शाखाओं के पार लड़के को देख रही थी। इस बार लड़के ने उसे ठीक से देखा। वह उसकी उम्र की ही थी। कसी देह वाली। भरे बादल जैसी साँवली। उसके खुले बाल कंधों पर गिरे हुए थे। लड़की ने अभी रात को सोने वाले कपड़े ही पहने हुए थे। पीले फूलों वाला एक ढीला पायजामा और उन्हीं फूलों वाली एक ऊँची कमीज़। दोनों एक ही कपड़े से बने थे। कमीज कुछ ज़्यादा ऊँची थी। वह कमर के नीचे के भारीपन को ढक नहीं पा रही थी।
लड़की सोकर उठी थी। उसके कपड़ों पर अभी रात की सलवटें थीं। उसकी चाल में आलस्य था। तीसरा कपड़ा सुखाते हुए उसने दो बार जमुहाई ली। जमुहाई लेते समय दोनों बार उसका मुँह थोड़ा ही खुला। लड़के को उसके दाँत नहीं दिखे। अनार के दानों की तरह होंगे लड़के ने यूं ही सोच लिया। लड़की जब रस्सी पर कपड़े टांगती तो उसकी बांहें उठ जातीं। उठी बांहों के नीचे लड़के ने होली के पानी भरे दो छोटे गुब्बारे देखे। गोल कलाइयों पर दो डोरे बंधे देखे।
जब तक लड़की कपड़े सुखाती रही, शाखाओं के बीच से लड़के को देखती रही। लड़का भी शाखाओं के बीच से लड़की को देख रहा था। उसने पहले कभी कपड़े सुखाती लड़की नहीं देखी थी। लड़के को लगा कि वह रस्सी पर कपड़े कुछ जल्दी डाल सकती थी। लड़की देर कर रही थी। कुछ देर में लड़की ने सब कपड़े रस्सी पर फैला दिए। तभी पेड़ की शाख से रसोई की छत पर एक मोटा बंदर धम्म से कूदा। लड़की डर कर अंदर भाग गई। लड़के ने बंदर को एक गाली दी, फिर गमले के पौधों में पानी डालने लगा।
लड़का दसवें पौधे को पानी दे रहा था, उसने ‘हट... हट...’ की आवाज़ सुनी। उसने घूमकर देखा। आँगन के कोने में लड़की एक छोटी लकड़ी लिए बंदर को भगा रही थी। लड़की डर रही थी कि बंदर कहीं कपड़े न उठा ले। लकड़ी पतली और छोटी थी। बंदर मोटा और जिद्दी था। बंदर पर उसकी ‘हट... हट...’ का कोई असर नहीं पड़ा। सूखे पत्तों के बीच उसे एक रोटी मिल गई थी। रोटी मुँह में दबाकर उसने लकड़ी हिलाती हुई लड़की को एक घुड़की दी। चीखकर लड़की अंदर भाग गई। बंदर हँसता हुआ रोटी चबाने लगा। लड़का हँसता हुआ ग्याहरवें पौधे में पानी देने लगा।
जब तक बंदर बैठा था, लड़की आने वाली नहीं थी। आख़िरी पौधे में पानी देने के बाद लड़के के पास खाली समय था। इस खाली समय में लड़के ने मुंडेर पर कोहनियाँ टिकाईं और पेड़ और उसके चारों ओर देखने लगा। पेड़ बहुत ऊँचा था। उसके नीचे कई छोटे-छोटे घरों की छतें थीं। इन घरों के बाहर बड़ी खुली जगह थी। इसमें लकड़ियों की एक टाल थी। घरों की छतों पर भी पेड़ के टूटे पत्ते पड़े थे। पेड़ कहाँ से निकला था, यह लड़के की छत से समझ में नहीं आता था। लड़के की छत से लकड़ी का टाल का खुला मैदान दिख रहा था। उसके एक कोने पर कटी हुई लकड़ियों के छोटे-छोटे अलग ढेर लगे थे। एक ओर पेड़ों की पतली, बिखरी हुई टहनियाँ पड़ी थीं। उनके पास लकड़ियाँ तौलने का बड़े पलड़े वाला तराज़ू लटक रहा था। उसके पीछे छोटी कोठरी बनी थी। उस पेड़ की शाखाएँ लकड़ी के टाल के कुछ हिस्से तक फैल गई थीं। आँगन इन्हीं के पीछे था। पेड़ के दूसरी ओर एक दीवार के पीछे छोटी-सी खुली जगह दिख रही थी। वहाँ एक गाय बंधी थी। उसके सामने खाने के लिए मिट्टी का बड़ा नांद रखा था। उसके अंदर चारा पड़ा था। गाय का बछड़ा उससे सटा खड़ा था। चारखाने वाला अंगोछा पहने एक आदमी गाय का दूध निकालने की तैयारी कर रहा था। वहीं से उठता हुआ काला धुआँ पेड़ तक आ रहा था।
लड़के को पेड़ का तना उस खुली जगह तक जाता दिख रहा था। फिर दीवार थी। तने के चारों ओर और भी छोटी छतें और दीवारें थीं। पेड़ कहाँ से निकला था, यह छत से पता नहीं लगता था। बंदर अभी रोटी खा रहा था। आँगन अभी खाली था। लड़के ने नज़र घुमाकर आँगन की तरफ़ देखा। रसोई की छत पर दो बंदर और आ गए थे। पत्तों में रोटी तलाशते हुए वे आँगन की तरफ़ बढ़ रहे थे। लड़की अब और ज़्यादा डर गई होगी, लड़के ने सोचा। बंदरों के जाने के बाद भी अब देर तक वह आँगन में नहीं आएगी। धूप तेज़ होने लगी थी। लड़का उदास हो गया। उदास होकर वह छत से नीचे आ गया।
दोपहर को लड़का फिर छत पर आया। वह पहले कभी दोपहर को नहीं आया था। उसे छत पर जाते देखकर माँ ने टोका। ‘सुबह पौधें को पानी कम दिया था’, लड़का बोला।
‘धूप में पानी देने से पौधे जल जाते हैं’, माँ बोली।
लड़के ने माँ की बात नहीं मानी। वह छत पर आ गया। उसने आँगन की तरफ़ देखा। आँगन खाली था। कुछ देर धूप में खड़ा वह आँगन देखता रहा। अचानक उसे लड़की दिखी। सिर झुकाए रसोई से निकली और आँगन से होती हुई दूसरी ओर चली गई। उसके हाथों में ट्रे थी। ट्रे पर खाने के बर्तन रखे थे। कुछ क्षण बाद वह रसोई में लौटी। उसके हाथ अब ख़ाली थे। उसे पता नहीं था कि लड़का छत पर है। लड़के की परछाई इतनी बड़ी नहीं थी कि उसके आँगन तक पहुंच जाती। लड़के की गंध इतनी तेज नहीं थी कि वह सूँघ लेती। लड़के की धड़कनें इतनी तेज़ नहीं थी कि वह सुन लेती। लड़का इतना पास नहीं था कि वह देख लेती। पहले की तरह ही सिर झुकाए वह फिर रसोई से निकली। इस बार उसके हाथ में प्लेट थी। प्लेट पर रोटी थी। आँगन के दूसरी ओर वह गई। फिर लौटी। अब उसकी प्लेट खाली थी। लड़का समझ गया रसोई में कोई रोटी सेंक रहा है। लड़की आँगन के पार कमरे में किसी को खाना खिला रही है।
लड़का मुंडेर पर कोहनियाँ टिकाकर खड़ा हो गया। लड़की ने तीन चक्कर लगाए। आख़िरी चक्कर में वह ट्रे पर सब बर्तन लेकर वापस लौटी। ट्रे रसोई में रखकर फिर लौटी। आँगन के तल पर उसने हाथ धोए। पाँव भी धोए। पाँव धोने के लिए उसने पायजामा थोड़ा ऊपर उठाया। लड़के ने उसकी गुदाज पिंडलियाँ देखीं। पंजों में दो साँवले मुलायम ख़रगोश देखे। लड़की अंदर चली गई। धूप बहुत तेज़ हो गई। छत के फ़र्श पर लड़के के तलुए जलने लगे। माँ ने नीचे से आवाज़ दी। पौधों को जलाने के लिए कोसा। उनकी बद्दुआओं से डराया। लड़का डर गया। डरकर नीचे आ गया।
शाम को लड़का फिर छत पर आया। आँगन खाली था। उसने देर तक आसमान में उड़ती पतंगे देखीं, खेतों से लौटते तोते देखे, चिमनियों से निकलता धुँआ देखा, चर्च की मीनार के गले में
लॉकेट-सा लटका पीला चाँद देखा, घरों में जलते चूल्हों की लपट देखी, उन पर सिंकती रोटियाँ देखीं, ख़ूब सारे तारे देखे...फिर नीचे आ गया।
सुबह के इंतिज़ार में लड़का ठीक से सो नहीं पाया। जनाज़े में गैसबत्ती किराए पर देने वाले के मुर्गे की बांग से वह उठ गया। खिड़की का पर्दा हटाकर उसने देखा। अभी अँधेरा था। उसने घड़ी देखी। सुबह के तीन बजे थे। उसने सुना था मुर्गा सुबह होने पर बांग देता है। इस मुर्गे ने ऐसा नहीं किया। गैसबत्ती किराए पर देने वाला बेईमान था। उसे मातम में मुफ़्त देने के लिए कहा गया था, लेकिन वह किराया लेता था। मुर्गा उसका था। मुर्गा भी बेईमान हो गया था। लड़के ने मुर्गे को एक गाली दी। उसने तय किया कि अब मुर्गे की बांग से नहीं उठेगा। मिल के हूटर, कोतवाली के घंटे, अजान या चिड़ियों की आवाज़ से उठेगा। ये बेईमान नहीं थे।
उस सुबह सबसे पहले चिड़िया बोलीं। वह उठ गया। खिड़की का पर्दा हटाकर उसने देखा। थोड़ी रोशनी हो गई थी। वह छत पर आ गया। उसने आँगन की ओर देखा। लड़की आँगन में टहल रही थी। सुबह की ताज़ी हवा फेफड़ों में भर रही थी। हल्का व्यायाम कर रही थी। तीसरे चक्कर में उसने छत की तरफ़ देखा। लड़के को देखकर वह रुकी। रस्सी की तरफ़ आई। उसने रस्सी पर सूखते कपड़ों को ठीक किया। कपड़ों को ठीक करने तक वह लड़के को देखती रही। लड़का भी उसको अब अच्छी तरह से देख पा रहा था। पता नहीं था कि लड़की लड़के को देख रही है या उसे ख़ुद को देखने दे रही है। लड़की आँगन में चक्कर लगाने लगी। कभी हाथ ऊपर उठाती, कभी कंधें से घुमाती। अंदर देखने वालों को वह सुबह का व्यायाम करने का भ्रम दे रही थी।
आँगन के एक ओर से दूसरी ओर घूमते हुए जाने में उसका एक चक्कर हो रहा था। एक चक्कर में वह उतनी ही देर दिखती जितनी देर खुले हिस्से से गुज़रती। बाकी समय दीवार या कोठरियों की आड़ में चली जाती। लड़के ने गिनती गिनकर देखा कि उसका एक चक्कर तीन मिनट का है। हर तीन मिनट बाद लड़की खुली जगह से गुजर रही थी। हर तीन मिनट बाद लड़का उसे देख रहा था। खुली जगह से गुज़रते हुए छत की तरफ़ देख लेती। हर तीन मिनट बाद लड़की लड़के को देख रही थी।
लड़के ने छह बार लड़की को देखा। पहली बार में उसने देखा कि लड़की ने रात के सोने वाले कपड़े बदले हुए थे। वह सफ़ेद रंग के गाउन जैसा कुछ पहने थी। दूसरी बार में उसने देखा कि गाउन पहनने के कारण कल की तरह उसकी कमर के नीचे का भारी हिस्सा नहीं दिख रहा था। तीसरी बार उसने देखा कि कल की तरह उसके बाल खुले नहीं थे। उसने बालों की दो चोटियाँ बना ली थीं। दोनों चोटियाँ उसके कंधों से आगे की तरफ़ पड़ी थीं। चौथी बार में उसने देखा कि कल की तरह वह अलस कर नहीं चल रही थी। पाँचवीं बार में उसने देखा कि तेज़ चलते हुए वह राजसी तरीके से एक ओर थोड़ा झुक जाती है। गर्दन हंसिनी की तरह सीधी रखती है। छठी बार में लड़की खुले हिस्से में रुक गई। वह फिर रस्सी के पास आई। उसने रस्सी से कपड़े उतारे। कपड़े लेकर अंदर चली गई। लड़का मुंडेर से हटकर पौधों को पानी देने लगा।
सोलहवें पौधों में पानी देते समय उसे आवाजें सुनाई दीं। उसने घूमकर देखा। लड़की गीले कपड़े सुखाने लाई थी। यह आवाज़ बाल्टी रखने और कपड़ों को बहुत तेज़ी से फ़टकारने की थी। लड़के ने पौधों को पानी देना छोड़ दिया। वह फिर मुंडेर पर कोहनी टिकाकर खड़ा हो गया।
अब दोनों फिर एक दूसरे को देख रहे थे। रस्सी की तरफ़ मुँह करके लड़की धीरे-धीरे कपड़ा फटकारती फिर रस्सी पर फैलाती। लड़के ने कपड़ों को देखा। कपड़ों में उसने लड़की के कल के पीले फूलों वाले कपड़े पहचान लिए। लड़की के पीछे आँगन के नल पर एक औरत आई। उसने हाथ धोए फिर अंदर चली गई। लड़की कपड़े फैला चुकी थी। वह बाल्टी लेकर अंदर जाने लगी। आँगन में एक आदमी आया। उसके साथ वही औरत थी। रसोई की तरफ़ इशारा करके उन्होंने लड़की से कुछ कहा। दोनों अंदर चले गए। लड़की बाल्टी रखकर रसोई में चली गई। कुछ देर बाद वह लौटी। उसने बाल्टी उठा ली। एक बार सतर्कता से चारों ओर देखा फिर लड़के की तरफ़ घूमी। यूं ही एक हाथ उठाया और हल्के से लहराकर चली गई। उसने बता दिया था कि अब नहीं आएगी। लड़का उदास हो गया। इतना उदास कि उसने बचे हुए पौधों को प्यासा छोड़ दिया। वह नीचे चला गया।
माँ की गालियाँ सुनने के बाद भी वह दोपहर को फिर छत पर आया। लड़की उसी तरह सिर झुकाए आँगन से रोटियाँ लेकर जाती रही। उसे नहीं पता था कि लड़का दोपहर को भी छत पर आता है। लड़का दो बार खांसा, एक बार मुंडेर से फ़र्श पर धम्म से कूदा। लड़की ने नहीं सुना। लड़के को गुस्सा आ गया। गुस्से में वह शाम को छत पर नहीं आया। उस शाम वह नदी किनारे बालू पर पेट के बल लेटा हुआ बालू पर कपड़े सुखाती, रोटियाँ ले जाती, पांव धोती, बंदर से डरती हुई लड़की के चित्र बनाता रहा।
अगली सुबह लड़का मुर्गे की आवाज़ पर नहीं जागा। चिड़ियों की आवाज़ पर भी नहीं जागा। कोतवाली के घंटे बजने पर जागा। जागते ही वह छत पर आया। लड़की ने वही सब उसी तरह किया। उसी तरह वह आदमी और वही औरत आई। लड़की रसोई में गई। जाते समय उसने हवा में हाथ हिलाया। लड़के की हिम्मत बढ़ चुकी थी। उसने हाथ उठाकर लड़की से रुकने को कहा। लड़की रुक गई। रस्सी के पास आकर खड़ी हो गई, फिर नल पर मुँह, हाथ, पाँव धोती रही, फिर डरी हुई-सी कभी कमरे, कभी रसोई की तरफ़ देखती खड़ी रही। यूँ ही बेमतलब खड़ा होना उसे डरा रहा था। कुछ देर बाद उसने लड़के को देखे बगैर हाथ हिलाया और चली गई। उसे डर था कि उसे देखा तो लड़का फिर रोकेगा। वह फिर रुक जाएगी। लड़का उसके बारे में जानना चाहता था। उससे कहना चाहता था कि वह हमेशा आँगन में रहे। उसे कोई गुप्त संकेत बताना चाहता था जिसे सुनकर वह जब बुलाए लड़की आँगन में आ जाए। उसने कुछ गुप्त संकेत सोच भी लिए थे। उसने सोचा था कि इस मौसम में वह पपीहे की आवाज़ निकालेगा या फिर सूर्य का रथ खींचने वाले सुनहरी अयाल के घोड़ों की टापों की आवाज़ या फिर उस बुलबुल की आवाज़ जिसके गले का रंग सुर्ख लाल हो चुका हो। उसने बंद कमरे में इन आवाजों का अभ्यास भी किया था। इन आवाजों को सुनकर माँ कमरे के आस-पास हैरानी से बुलबुल और घोड़ों को ढूँढती रही थी। लड़के ने जब माँ को इस तरह उन्हें ढूंढ़ते देखा, तो उसे लगा कि लड़की भी जब आवाज़ सुनेगी, तो बुलबुल या घोड़े की आवाज़ ही समझेगी। ये आवाज़ें उसे बुलाने के लिए वह निकाल रहा है, उसे पता ही नहीं चलेगा। लड़के ने कुछ और तरकीबें भी सोचीं।
मसलन, वह किसी का पालतू कबूतर उधर माँग ले जो उसका पत्र ले जा सके या उसकी अनाज रखने की कोठरी की दीवार पर उंगलियों की परछाइयों से जानवरों की शक्लें बनाकर उसे आने का इशारा करे या उसके आँगन तक कागज़ का जहाज़ उड़ा सके।
लड़का दोपहर को फिर उसी तरह छत पर आया। लड़की ने उसी तरह सिर झुकाए किसी को कमरे में खाना खिलाया। शाम को लड़का फिर आया। आँगन खाली था।
दस दिन हो गए। ग्याहरवें दिन सुबह लड़के ने शाखाओं पर कुछ नए पत्ते देखे। उसने गिने। अस्सी थे। ये पत्ते नवजात शिशु की तरह चमकदार थे। मुलायम थे। पवित्र थे। उम्मीदों से भरे थे। हवा में झूलते तो उन पर ठहरी चमक बूंदों की तरह नीचे गिरती। वे बड़े और चौड़े थे। उनकी नसें उठी हुईं और रस से भरी थीं। इन अस्सी पत्तों ने ही लड़की की रसोई के एक हिस्से को ढक लिया था। अभी उन्हें असंख्य होना था। इतना कि हवा भी उनके पार नहीं गुज़र सकती थी। किसी की नज़र का गुज़रना और भी कठिन था।
लड़के ने चारों ओर नज़र घुमाकर दूसरे पेड़ों को देखा। वे सब नए पत्तों से भर चुके थे। उनके हरे रंग अलग-अलग थे। उनकी आकृतियाँ अलग थीं। चमक अलग थी। पतझर से सूखी ठूँठ में कंपकंपाती जर्जर दिखती देहों वाले वे पेड़ अब आसमान की ओर तने हुए धरती को ढक रहे थे। यही एक पेड़ था जिसकी शाखाएँ अभी नंगी थीं। यह सबसे अलग भी था। इस पर कत्थई रंग के बड़े फूल आते थे। बाद में उनसे कपास के रेशे उड़कर चारों ओर फैलते रहते थे। इसी पेड़ पर बैठकर कोयली कूकती थी। इसी पेड़ पर जब चाँद रुकता, नीचे चाँदनी का नगर बसा दिखाई देता था। यह सब शुरू होने वाला था। दो या तीन दिन में इन शाखाओं को पत्तों से भर जाना था। लड़के ने छत से आँगन वाले घर का रास्ता पहचानने की कोशिश की। आँगन के चारों ओर नीची छतों वाले छोटे-छोटे घर बने थे। उन घरों के बीच वह घर कहाँ है, समझ में नहीं आता था।
उसकी गली, दरवाज़ा कहाँ है, दिखाई नहीं देता था। शाखाओं के पत्तों से भर जाने के बाद आँगन दिखना बंद हो जाएगा। लड़की भी नहीं दिखेगी। यह सोचकर लड़का घबरा गया। मुंडेर से कोहनियाँ टिकाकर उसने एक बार फिर पेड़ देखा। लकड़ी की टाल को देखा जिसके ऊपर उसकी शाखाएँ थीं। बंधी हुई गाय वाले हिस्से को देखा जहाँ उसका तना गया था। कुछ देर तक इसी तरह सब ओर घूरने के बाद वह नीचे उतर आया।
सुबह लड़की को देखने के बाद लड़का घर से निकलने लगा। माँ ने बिना कुछ खाए बाहर जाने के लिए उसे टोका :
‘खाली पेट में आग लगेगी।’
लड़का झल्ला गया :
‘आग लगने के लिए ऑक्सीजन की ज़रूरत होती है। पेट के अंदर ऑक्सीजन नहीं होती।’
माँ हैरानी से उसे देखती रही। पेट की आग के बारे में कुछ और बोलती, इसके पहले लड़का बाहर निकल गया।
लकड़ी की टाल एक छोटे से खुले मैदान में थी। पहले यहाँ हवेलियों की जरूरत की सब्जियाँ वगैरह बोई जाती होंगी या जानवर बंधते होंगे या उन हवेलियों में काम करने वाले झोंपड़ों में रहते होंगे। अब वह मैदान छोटी कोठरियों से भर गया था। इन कोठरियों में लोग रहते थे। इन कोठरियों की छत पर पेड़ के सूखे पत्ते गिरते रहते थे। कभी कोई पुराना साइकिल का टायर, टूटा पिंजरा, फटा जूता भी पड़ा रहता था। लड़के ने छत से इन्हें देखा था। कोठरियों की छतें मिली हुई थीं। ये गिलहरियों और बंदरों के दौड़ने, सोने और खेलने के काम आती थीं। यही छत लड़की के आँगन की रसोई और अनाज के कमरे तक चली गई थी।
गलियों में रास्ता पूछते हुए लड़का टाल तक आ गया। कई तरह की लड़कियों के कई तरह के ढेर लगे थे। कुछ ढेर बहुत ऊँचे थे। कुछ छोटे थे। कुछ सूखी टहनियों के थे। लकड़ियाँ तौलने का तराज़ू लगा था। उसके पलड़े मोटी लकड़ियों से बने थे। दुकान के सामने के तख़्त पर तीन आदमी बैठे थे। वे दुकानदार का इंतिज़ार कर रहे थे। लड़का उनके पास खड़ा हो गया। उनकी बातों से लड़के को पता चला कि एक चिता की लकड़ियाँ बेचने वाला मरघट का दुकानदार था, दूसरा हवन की लकड़ियाँ बेचता था, तीसरा गुल्ली-डंडे बनाने के लिए लकड़ियाँ लेने आया था। वे लकड़ियों के ढेर की ओर इशारा करके ज़ोर-ज़ोर से बोल रहे थे। एक कोठरी से खाँसता हुआ दुकानदार बाहर आया। वह दुबला-पतला था। उसकी उम्र साठ के आस-पास थी। छोटी-सी सफ़ेद दाढ़ी थी। रंग साफ़ था। कंधे पर लंबा तौलिया पड़ा था। उसके पीछे लकड़ियाँ तौलने वाला छोटा लड़का आया। वे तीनों उसके पुराने ग्राहक थे। छोटा लड़का भी उनको पहचानता था। बिना कुछ पूछे वह ढेर से लकड़ियाँ उठाकर तराज़ू के पलड़े पर रखने लगा।
लड़का उनसे थोड़ी दूर खड़ा था। वह सोच रहा था कि ये तीनों चले जाएं तब वह अकेले में दुकानदार से बात करेगा।
दुकानदार ने एक बार उसे उड़ती निगाह से देखा। वह समझ नहीं पाया कि लड़का उसका ग्राहक है या अंदर घरों में किसी से मिलने आया है। उन तीनों से बातें करते हुए वह बीच-बीच में तराज़ू की लकड़ियों को भी देख रहा था। लड़के तक लकड़ियों की गंध आ रही थी, जैसे वे सांस छोड़ रही हों, जैसे कटने जाते बकरमंडी के बकरे छोड़ते थे। उनके ऊपर की नुची भूरी छाल चारों ओर पड़ी थी, जैसे उनकी खाल चाकू से खुरच दी गई हो।
लड़के ने सिर उठाकर देखा। पेड़ की शाखाएँ दिख रही थीं। लकड़ियाँ तौलने के बाद, बाहर खड़े रिक्शों पर लकड़ियाँ लादकर वे तीनों चले गए। दुकानदार ने एक बार लड़के को देखा फिर तख़्त पर बैठकर हिसाब लिखने लगा।
अब लड़का आगे आया। दुकानदार के काग़ज़ पर उसकी परछाईं पड़ी। उसने सिर उठाया।
‘क्या उस पेड़ की लकड़ियाँ मिलेंगी?’ लड़के ने उंगली उठाकर पेड़ की तरफ़ इशारा किया। उसने डाल को लकड़ी कहा था। उसे डर था कि ‘डाल’ बोला तो दुकानदार कह देगा कि वह लकड़ियाँ बेचता है, डाल नहीं। दुकानदार ने सिर उठाकर पेड़ को देखा। वह जब पैदा हुआ था। तब से उस पेड़ को देख रहा था।
‘वे किसी काम नहीं आतीं’ उसने लड़के को देखा, ‘और बहुत तरह की लकड़ियाँ हैं, वे ले लो।’
‘नहीं... यही चाहिए।’
‘क्यों?’
‘वैद्य जी ने इसी पेड़ के लिए कहा है। पत्ते आने से पहले इसकी पतली डालियों को घिसकर लेप बनाना है। अभी पत्ते नहीं आए हैं। अभी इनकी छाल बिलकुल सूखी है। यही सबसे ज़्यादा फ़ायदा करती हैं। पेड़ के उस तरफ़ पत्ते आने लगे हैं। मैंने गिने हैं। अस्सी हैं।’
‘तुमने पत्ते गिने?’ दुकानदार ने हैरत से लड़के को देखा। उसने सिर हिला दिया।
‘मैंने तारे गिने थे।’
‘कितने थे?’
‘पता नहीं।’
‘क्या वे एक दूसरे पर लदे थे?’
‘क्या तारे ऐसा करते हैं?’
‘पत्ते तो करते हैं।’
‘नहीं... लदे नहीं थे।’
दुकानदार ने सिर हिलाया। वह चुप हो गया। कुछ देर दोनों चुप रहे।
‘क्या आप पेड़ के इधर के हिस्से की डालियाँ कटवा कर दे सकते हैं?’ लड़का इस बार लकड़ियों की जगह डालियाँ बोला।
‘नहीं...वहाँ पहुँचने का कोई रास्ता नहीं है। वैसे भी मैं इसे नहीं छुऊँगा। यह पेड़ पीछे वकील के घर से निकला है। जड़ें वहाँ हैं। उसका पेड़ है। वहीं से तने पर चढ़ा भी जा सकता है। तुम्हें अगर इसकी डालियाँ चाहिए तो उसके पास जाओ। वह चाहेगा तो तुम्हें तने पर चढ़कर यहाँ तक आने देगा। अगर दो चार टहनियाँ चाहिए तो अक्सर यहाँ गिर जाती हैं। कभी पतंग की डोर से, कभी बंदरों के कूदने से।’
‘नहीं... मुझे बहुत चाहिए। जितनी इधर हैं वे सब। साल भर की दवा बनानी है। पतझर साल में एक ही बार आता है। सूखी टहनियाँ तभी मिलती हैं। वैद्य जी के पास और भी मरीज आते हैं। उनके भी काम आएंगी।’
‘किसे चाहिए?’ दुकानदार ने जेब से पीतल की चुनौटी निकाली। तंबाकू और चूना हथेली पर रखकर घिसने लगा।
‘क्या?’
‘दवा...तुम्हें बीमारी है।’
‘नहीं...।’ लड़का हड़बड़ा गया, ‘भाई को।’
‘क्या?’
‘वैद्य जी जानते हैं।’
‘तुम नहीं जानते?’
‘उन्होंने बताया नहीं।’
दुकानदार कुछ क्षण लड़के को देखता रहा फिर पुतलियों को आँखों के कोनों पर टिका कर पूछा :
‘कहाँ लगेगी?’
‘क्या?’
‘दवा।’
लड़के ने दुकानदार को देखा। उसकी आँखें थोड़ी सिकुड़ गई थीं। थोड़ी और सिकुड़ती तो बंद हो जातीं। होंठ हल्के-से फैल गए थे। थोड़े और फैलते तो हँसी बन जाती। उसने उन फैले होंठों के बीच में तंबाकू दबाया :
‘देखना...अगर तुम्हारे भाई को फायदा हो तो मुझे भी बताना। मुझे भी तकलीफ़ रहती है। अक्सर बाद में सूजन आ जाती है।’
दुकानदार की बातों से लड़का अचकचा गया। ‘वकील के घर का रास्ता किधर से है’, उसने पूछा।
‘यहाँ से बाहर निकलकर दाएँ घूमना। काले बिच्छू का तेल बेचने वाले बोर्ड की दुकान पर रुक जाना। वहाँ से सटी हुई गली में चले जाना। थोड़ी दूर जाने पर एक टूटा फव्वारा दिखेगा। उसके पीछे छोटा मंदिर है। सामने उसका घर है। फव्वारे से तुम्हें पेड़ का मोटा तना दिखेगा। उस पर हमेशा गीलापन रहता है...जैसे मस्त हाथी के माथे से मद निकलता है...उसी तरह। जो पेड़ सैकड़ों साल पुराने हो जाते हैं उनके तने से हमेशा आँसू बहते हैं। जैसे अंदर की आत्मा मुक्ति चाहती है। तुम्हें फव्वारे से उसके आँसू दिखेंगे। शायद वैद्य ने इसीलिए इस पेड़ की डालें माँगी हैं। उसने इसका तना देखा होगा। ये आँसू अमृत की बूंदों में बदल जाते हैं। पुरानी किताबों में लिखा है। पुराने लकड़हारे इसे जानते हैं।’ दुकानदार चुप हो गया। लड़के ने सिर हिलाया और टाल से बाहर आ गया।
टाल से बिच्छू के तेल की दुकान तक एक पतली गली जाती थी। लड़का उस गली में घुस गया। वह बहुत सँकरी थी। उसमें धूप नहीं आती थी। गली में मकानों के छज्जे मिले हुए थे। उन पर रंगीन कपड़े लटक रहे थे। कुछ कपड़े ज़्यादा लंबे थे। उसी समय सुखाए गए थे। उनकी बूंदें नीचे गिर रही थीं। दुकानें बंद थीं। गली में नीचे दुकान, ऊपर मकान थे। दुकानों के पटरों के नीचे कुत्ते नाली की ठंडक में दुबके हुए थे। लड़के ने गली पार की। गली पार करते हुए उसने भड़भूंजे, रंगरेज, कठपुतली, नट, चांदी का वरक और चमड़े का मशक बनाने वालों की दुकानें और घर पार किए। लड़का जब इन सबको पार कर रहा था उसके मन में ख्याल आया कि टाल वाले का झूठ यहाँ काम नहीं करेगा। पेड़ का तना वकील के घर में था। दवा के लिए डालों की जरूरत बताने पर, वह अपनी तरफ़ की डालें कटवा सकता था। बिच्छू के तेल की दुकान पर पहुंचने तक लड़के ने दूसरा झूठ सोच लिया।
दुकान से सटी हुई गली से लड़का अंदर चला गया। टूटे फव्वारे पर पहुँचकर लड़के को पेड़ का तना दिख गया। पेड़ के तने से आँसू गिर रहे थे। पीले रंग की नीची चहारदीवारी वाला घर था वह। बाहर वकील का नाम लिखा था। लोहे का दरवाज़ा बंद था। लड़के ने छत से इस घर में गाय बंधी देखी थी। भूसे के ढेर देखे थे। यह दीवार, यह दरवाज़ा नहीं देखा था। दीवार के पीछे उसे गाय के रंभाने की आवाज़ सुनाई दी। तभी दरवाज़ा खोलकर एक आदमी बाहर आया। वह हरे रंग का चौकोर खानों वाला अंगोछा लपेटे था। लड़के ने अंगोछे से उसे पहचान लिया। इसे लपेटकर गाय का दूध निकालते हुए उसने कई बार छत से उसे देखा था। वह दरवाज़े पर खड़ा था। उसके हाथ में ताजे निकाले दूध की बाल्टी थी। लड़का उसके पास गया :
‘वकील साहब से मिलना है।’
उसने लड़के को ऊपर से नीचे तक देखा फिर सिर हिलाकर अंदर जाने का इशारा किया। लड़का दरवाज़े से अंदर चला गया। अंदर घुसने पर एक रास्ता कुछ दूर तक बिलकुल सीधा जाता था। उसके दोनों ओर बैंगनी फूलों वाले पौधे लगे थे। एक बाएँ हाथ पर घूम गया था। वहाँ वह एक जालीदार कमरे से होता हुआ आगे चला गया था। एक खुली जगह को तारों वाली जाली से घेरकर बैठने की जगह बनाई गई थी। उस जाली पर भी वकील के नाम की पट्टी लटक रही थी। अंदर प्लास्टिक की कुर्सियाँ पड़ी थीं। एक छोटी मेज के पीछे ऊँट के चमड़े वाली ऊँची कुर्सी थी। वह वकील की थी। प्लास्टिक की कुर्सियों पर दो आदमी बैठे थे। वे वकील का इंतजार कर रहे थे। लड़का भी एक कुर्सी पर बैठ गया। वह भी इंतजार करने लगा।
लड़के ने उस रास्ते को आगे जाते हुए देखा। वही आगे जाकर दीवार के पीछे घूम गया था। पेड़ का तना वहीं था। गाय वहीं थी। आदमी वहीं दूध निकालता था। लड़के का मन हुआ कि उस जगह पर जाकर अपनी छत देखे, जैसे लड़की आँगन से देखती है। लड़के का मन हुआ कि उस जगह पर जाकर पेड़ के गीले तने को छुए। उसके अंदर रोती हुई आत्मा से बात करे। बंदर की तरह उस पर चढ़कर उन शाखाओं तक चला जाए जो लड़की के आँगन तक गई थीं। वहाँ से देख लेगा कि लड़की अंदर किसे रोटी खिलाती है। लड़की को भी बहुत पास से देख लेगा। बंदर की तरह डाल से चिपककर उसे कपड़े सुखाते, रोटियाँ ले जाते, नल पर पंजे धोते देख लेगा। उसके अंदर यह इच्छा हूक की तरह उठी। इतनी तेज़ कि वह उठकर खड़ा हो गया। दोनों आदमियों ने उसे देखा। वे समझे वकील आ रहा है। वे भी खड़े हो गए। लड़के ने उन्हें खड़े होते देखा तो चुपचाप बैठ गया। उसे घूरते हुए वे भी बैठकर बातें करने लगे।
लड़का उनकी बातें सुनने लगा। वे रामलीला मैदान को ख़रीदना चाहते थे। वकील ने उनको बताया था कि ऐसा नहीं हो सकता क्योंकि उस ज़मीन के मालिक खुद दशरथ पुत्र भरत हैं। सैकड़ों साल पुराने दस्तावेज़ में इसके मालिक ने ज़मीन उनके नाम कर दी थी। अब सिर्फ़ भरत ही इसे बेच सकते हैं। उनके दस्तख़त के बगैर ज़मीन नहीं बेची जा सकती। वकील ने उनको समझाया था कि एक ही तरीका है कि तुम सिद्ध कर दो कि भरत की मृत्यु हो चुकी है और तुम उनके वंशज हो। वकील ने यह भी कहा था कि वे लोग पहले नहीं हैं जो इस ज़मीन को लेना चाहते हैं। बहुत लोग पहले भी कोशिश कर चुके हैं। अंग्रेज़ भी कर चुके हैं। उसी समय यह पता चला था कि ज़मीन के मालिक भरत जी हैं। इसीलिए पिछले एक सौ तीस सालों से ‘भरत मिलाप’ इसी मैदान पर होता है। भरत मिलाप हर साल होता है, इसलिए भरत अब जीवित नहीं हैं, यह सिद्ध नहीं किया जा सकता। वे अब सूर्यवंशी भरत के झूठे दस्तखत की कोई साजिश लेकर आए थे।
दरवाज़े पर खांसने की आवाज़ करता हुआ वकील घुसा। खांसने की आवाज़ करते हुए घुसना उसने मुगल बादशाहों के आने की घोषणा करने से सीखा था। वे दोनों खड़े हो गए। लड़का भी खड़ा हो गया। वकील सीधे चमड़े की कुर्सी पर बैठ गया। वे दोनों भी बैठ गए। लड़का भी बैठ गया। लड़के ने वकील को देखा। वह मोटा था। उसका पेट ज़्यादा बाहर निकल आया था। वकील ने लड़के को देखा। वह समझा लड़का उनके साथ है। वह उनकी तरफ़ झुक गया। उन्होंने इशारे से उसे रोक दिया। लड़का उनकी बातें सुन सकता था। बाहर जाकर उनका भेद खोल सकता था।
‘पहले इनका काम कर दें’ उनमें से एक बोला। वकील फिर पीछे मुड़कर कुर्सी की पीठ से चिपक गए। वह चुपचाप लड़के को देख रहा था। उसके चेहरे की खाल कसी हुई थी। उसे लड़के का आना या खुद लड़का अच्छा नहीं लग रहा था। लड़का लड़खड़ा गया :
‘मैं पीछे रहता हूँ। मेरे छत से आपकी गाय दिखती है।’ लड़का चुप हो गया। पीछे रहने या गाय की बात सुनकर वकील का चेहरा मुलायम हो गया। वह मुस्कुराया। लड़के की हिम्मत लौट आई, ‘आपके घर में कत्थई फूलों वाला पेड़ है, वही जिसके तने से आँसू निकलते हैं। वह पेड़ ऊपर बहुत दूर तक फैला है। यहाँ से नहीं दिखेगा। मेरी छत से दिखता है। पतझर के कारण अभी उसमें पत्ते नहीं हैं...पर अब आने शुरू होने वाले हैं। फिर उसमें फूल आएँगे, बहुत सारे बड़े फूल...उनसे कपास के रेशे निकलते हैं। मेरी माँ को उनसे तकलीफ़ होती है। जब हवा मेरे घर की तरफ़ चलती है तो उन फूलों की गंध और कपास के रेशे मेरे घर तक आ जाते हैं...खिड़कियों से अंदर रसोई तक। माँ की सांस फूलने लगती है। डॉक्टर ने कहा है कि उसे इन फूलों की गंध से, कपास के रेशों से बचाना जरूरी है।’ लड़का एक सांस लेकर चुप हो गया। वकील मुस्कुराता हुआ सुन रहा था। उसे लंबे बयान सुनने की आदत थी। वे दोनों भी सुन रहे थे।
‘पत्ते आना शुरू हो चुके हैं। फूल भी आएँगे हवा भी चलने लगी है। इस मौसम से हवा भी पेड़ से होती हुई मेरे घर की तरफ़ आती है?’
‘तुम्हे कैसे पता?’ वकील अब बोला। उसकी आवाज़ खुरदुरी थी। जैसे किसी पत्थर पर रस्सी घिसी जा रही हो।
‘क्या?’
‘यही...कि हवा इधर से तुम्हारे घर की ओर चलेगी।’
‘इस मौसम में यही होता है। उसमें खुले बालों की, साँवले ख़रगोश की, रोटियों की महक होती है।’ लड़के को अचानक लड़की याद आ गई।
‘इससे हवा के चलने की दिशा कैसे पता लगती है?’ लड़का लड़खड़ा गया।
‘उधर घरों में यह सब होता है।’
‘घरों से हवा कभी मेरे घर की तरफ़ भी चलती होगी?’
‘जी।’
‘लेकिन मुझे तो कभी रोटियों की, खुले बालों की या साँवले खरगोश की गंध नहीं आई?’
लड़के ने सिर झुका लिया। उसके बयान में गलती पकड़कर वकील ख़ुश हो गया।
‘खैर...तो?’
‘अगर आप पेड़ की केवल उन डालों को कटवा दें जो मेरी छत से दिखती हैं तो फूलों की गंध और कपास के रेशे नहीं आएँगे’
‘पर पेड़ तो मेरा नहीं है।’
‘आपके घर में है।’
‘घर भी मेरा नहीं है।’
लड़के ने असमंजस में उसे देखा।
‘यह सारी ज़मीन वक्फ़ की है। सारे घर भी उसी के हैं। इनका मालिक मुतवल्ली है। इन घरों के बारे में कोई भी फैसला वही ले सकता है।’
‘यह क्या होता है?’
‘क्या।’
‘जो अभी आपने बोला।’
‘तुम इतना ही समझ लो कि वक्फ मतलब ट्रस्ट और मुतवल्ली मतलब बड़ा ट्रस्टी। मुतवल्ली की मर्ज़ी के बगैर कुछ नहीं हो सकता। तुमने बाहर दीवार पर पीला रंग देखा होगा? उसी ने करवाया है। गाय भी उसी ने बंधवाई है। दरवाज़े पर दूध की बाल्टी लिए कोई आदमी मिला था? उसी का है। दूध भी उसी का है। उसके घर जा रहा था। मैं तो बाजार से खरीदता हूँ। यह पेड़ भी उसी का है। इसकी डालें कटवाने के लिए तुम्हें उससे बात करनी पड़ेगी।’
‘वह कहाँ मिलेंगे?’
‘दूर नहीं है। मुसाफ़िरख़ाने के अंदर उसका दफ़्तर है। वहाँ सुबह बैठता है। अभी चले जाओ। मिल जाएगा।’
‘बाद में?’
‘तुमने रास्ते में काले बिच्छू के तेल की दुकान देखी थी न?’
‘हाँ।’
‘उसी की है। बाद में वह काले बिच्छू खरीदता है...उनका तेल निकलवाता है। शीशियों में बंद करवाता है... उसका तेल बहुत मुफीद है, बहुत बिकता है। तुमने कोशिश की कभी?’
मेज पर कोहनियाँ रखकर वह थोड़ा आगे झुक गया।
‘किस बात की?’
‘माँ की बीमारी के लिए इस तेल का इस्तेमाल करने की? हो सकता है उन्हें फ़ायदा हो जाए। पेड़ न कटवाना पडे़। तुम चाहो तो मैं मुतवल्ली से बात कर लूंगा। वह इस बीमारी के लिए किसी नायाब बिच्छू का तेल बना देगा। उसके पास ऐसे बहुत बिच्छू हैं। उनका तेल वह बेचता नहीं है, अपने लिए रखता है। कई बीमारियों में इस्तेमाल करता है।’
‘क्या उससे सूजन ठीक हो जाती है?’
‘वह तो बिलकुल हो जाती है।’
‘लकड़ी की टाल वाले को जरूरत है... उसे बाद में सूजन आ जाती है।’
‘वह तो आएगी ही। उसने एक तोता पाल रखा है। जैसे तोता हरी मिर्च पकड़ता है, उस तरह वह औरत को पकड़ता है। सूजन तो आएगी ही।’
लड़के ने कभी तोते को हरी मिर्च पकड़ते नहीं देखा था। वह चुप रहा।
‘ख़ैर तुम मुतवल्ली से मिल लो। तेल जरूर ले लेना। एक शीशी टाल वाले के लिए भी।’ लड़का उठ गया।
‘तुम एक दरख़्वास्त दे दो। माँ की बीमारी का हवाला दे देना। उसके पास आदमी रहते हैं। जब चाहे उन्हें भेज दे। मैं पेड़ पर चढ़ा दूंगा। दरख़्वास्त लिख लोगे न?’ उसने लड़के को देखा। लड़का चुप रहा।
‘न लिख पाओ तो रुको। मेरा मुंशी आ रहा होगा। वह लिख देगा। उसकी फीस दे देना।’
‘मैं लिख लूंगा’ लड़के ने सिर हिलाया। वकील ने भी सिर हिला दिया। वे दोनों आदमी अब तक ऊब चुके थे, उन्होंने भी सिर हिलाया। लड़के ने उनकी ऊब देखी। वह जाली वाले कमरे से बाहर आ गया। बाहर आकर उसने एक बार फिर तने को देखा। उन पर फैलती शाखाओं को देखा। पत्ते बहुत तेजी से निकल रहे थे। अब वे तीन सौ हो गए थे। शाखाओं पर दौड़ती गिलहरी उनमें फंस रही थी।
लड़का वापस टूटे फव्वारे के पास आ गया। उसे भूख लग रही थी। कुछ ही देर में उसके पेट में आग लगने लगी।
मुसाफ़िरख़ाना दूर था। लड़के ने सोचा घर जाकर कुछ खा ले। वहीं बैठकर दरख़्वास्त भी लिख लेगा।
घर लौटते समय लड़का फिर उसी गली से गुजरा। लौटते समय वह सोच रहा था कि मुतवल्ली के पास यह झूठ काम नहीं करेगा। बीमारी की बात करने पर हो सकता था कि मुतवल्ली उसे काले बिच्छू का तेल लगाने के लिए दे देता। कुछ दिन असर देखने के लिए कह सकता था। मरीज़ देखने घर भी आ सकता था। ‘दवा का असर नहीं हुआ तब पेड़ की डालें कटवा देगा’, वह यह कह सकता था। लेकिन तब तक पेड़ पत्तों से लद जाता। तब हो सकता था वह हरे-भरे पेड़ को काटने से इनकार कर देता। अगले पतझर तक सब कुछ टाल देता।
लड़का घर आ गया। तेज़ धूप में उसका चेहरा लाल हो रहा था। माँ उसे दरवाज़े पर ही मिल गई, उसकी सुबह की बातों से वह नाराज़ थी। लड़के को दुःख हुआ। लेकिन वह जानता था कि माँ है। चुटकी में मान जाएगी। वह माँ से लिपट गया।
‘पेट में आग जल रही है’ उसने अपना गाल माँ के कंधे से रगड़ा।
‘कहाँ गया था सुबह से?’ माँ ने कंधा हटाकर गुस्सा दिखाया।
‘लकड़ी की टाल’, लड़के ने फिर गाल कंधे से सटा दिया। इस बार माँ ने नहीं हटाया।
‘क्यों?’
‘दोस्त के घर में हवन है। उसके लिए लकड़ियां लेनी थीं।’ लड़के ने झूठ बोल दिया। लड़के को अचानक ध्यान आया कि वह बहुत सहजता से झूठ बोल रहा है। इतना कि उसे सोचना भी नहीं पड़ रहा। हवन की बात से माँ खुश हो गई। वह अंदर आ गई। लड़का भी पीछे-पीछे आया। माँ रसोई में आई उसने लड़के के लिए मखाने की खीर और हरे चने बनाए थे। लड़का फर्श पर बैठ गया। माँ ने उसके सामने थाली रख दी। खुद भी सामने बैठ गई। लड़का मखाने और हरे चने खाने लगा। खाकर उसे दरख़्वास्त लिखनी थी। उसने वकील से कह दिया कि लिख लेगा, लेकिन उसने कभी दरख़्वास्त नहीं लिखी थी।
‘तुम दरख़्वास्त लिख सकती हो?’ उसने माँ से पूछा। माँ को भगवान के नाम दरख़्वास्त लिखते उसने कई बार देखा था।
‘क्यों?’ माँ ने उसे देखा, ‘किसे लिखवानी है?’
‘मैंने सुबह छत से देखा, सामने पेड़ के बीच से अपने टेलीफ़ोन के तार आए हैं। पेड़ पर पत्ते आने लगे हैं। कुछ ही दिनों में वे तारों को ढक लेंगे। उन पर ओस रुकेगी तो उसकी नमी तारों में पहुँच जाएगी। उससे फोन ख़राब हो सकता है। पत्तों से नहीं भी हुआ तो जब फूल आएंगे तब होगा। फूल से कपास उड़ेगी। तारों पर चिपक जाएगी...।’ लड़के ने घबराहट में ढेर सारे चने मुँह में भर लिए थे। इतना बोलकर वह धीरे-धीरे उन्हें चबाने लगा।
‘क्या फ़ोन बंद हो जाएगा?’ माँ चिंतित हो गई। वह अपनी माँ से फ़ोन पर रोज़ एक बार बात करती थी।
‘बंद न भी हो, तो भी लगेगा जैसे फोन के ऊपर कोई सिसकियाँ ले रहा है। कुछ सुनाई नहीं देगा।’
‘हां सिसकियों में बोला हुआ सुनाई नहीं देता।’
माँ चिंतित थी। उसकी माँ जब फोन पर सिसकियाँ लेती थी, वह कुछ समझ नहीं पाती थी।
‘तुम खा लो मैं दरख़्वास्त लिख देती हूँ...।’
लड़का ख़ुश हो गया। उसने जल्दी में मखाने की खीर पी ली। चने निगल लिए। उठ गया। माँ उठकर कमरे में आ गई। लड़के ने उसे कागज़ कलम दिया। बताया कि दरख़्वास्त मुतवल्ली के नाम लिखनी है कि वह इस पेड़ की उन शाखाओं को कटवा दे जो तारों के पास हैं। माँ दरख़्वास्त लिखने बैठ गई। लड़का लड़की को देखने छत पर चला गया। आँगन खाली था। लड़की को उसके आने की कोई उम्मीद नहीं थी।
लड़के को भी लड़की के दिखने की कोई उम्मीद नहीं थी। फिर भी बिना उम्मीद की एक उम्मीद थी। तभी ऊपर से एक हवाई जहाज़ शोर करता गुजरा। जहाज़ देखने के लिए लड़की दौड़ती हुई आँगन में आई। जहाज़ आँगन से छत की तरफ़ आ रहा था। जहाज़ को देखते हुए लड़की की निगाह छत पर गई। उसने जहाज़ देखना छोड़ दिया। वह लड़के को देखने लगी। वह नंगे पांव भागी आई थी। धूप तेज थी। आँगन की ईंट पर उसके तलुए जलने लगे। वह खड़ी थी, पर जल्दी-जल्दी पैर बदल रही थी। इस धूप में आँगन में यूं ही खड़ी हुई वह डर रही थी। डर...तलुओं की जलन से वह देर तक नहीं रुकी। हाथ उठाकर उसने इशारा किया और चली गई। लड़का ख़ुश हो गया। उसने पेड़ को देखा। चार सौ तीस पत्ते हो गए थे।
आँगन का नल थोड़ा ढक गया था। लड़की अगर पाँव धोती तो उसके पंजे नहीं दिखते। शाखाएँ नहीं कटीं तो इसी तरह एक रोज लड़की भी नहीं दिखेगी। लड़का उदास हो गया। उसकी उदासी इतनी बढ़ी कि वह घबरा कर नीचे उतर आया। माँ ने दरख़्वास्त लिख दी थी। बिना कुछ पढे़ उसने कागज जेब में रखा और तेजी से बाहर निकल गया।
मुसाफ़िरख़ाना शहर के बीच में था। बरसात के दिनों में जब नदी घाट की ऊपरी सीढि़यों को डुबो देती थी और नावें उलटी करके रख दी जाती थीं और पुल से गुजरने वाली रेलगाड़ियों में बैठे लोग नदी में जार्ज पंचम और विक्टोरिया के सिक्के फेंकते थे, उन दिनों मुसाफ़िरख़ाना भरा रहता था। आस-पास से या दूर-दराज़ से भी लोग मेलों में आते थे, मुर्दनी में आते थे। शादियों में आते थे, फसल कटने पर, मन्नत पूरी होने पर आते थे। नदी सूखती गई। मुसाफ़िरख़ाने की दीवारों मे दरारें पड़ गईं। कोनों में मकड़ियों ने जाले बना लिए। छत पर हरे पत्तों वाले पौधे उग आए। मुसाफ़िरख़ाने को रुपए देने वाले घर खुद भूखे हो गए। लोगों ने भी फसलों, बीमारियों, मुर्दनी और मन्नतों में आना छोड़ दिया। आजादी के बाद इसमें दफ़्तर खोल दिए गए। जन्म लेने और मरने की ख़बर का दफ़्तर, टीके लगाने, मरे जानवर उठाने का, गुमशुदाओं को ढूंढ़ने का दफ़्तर खुल गया। बाहर इनकी पट्टियाँ लगी थीं। पहले वह हवा में लटकीं फिर टूटकर नाली में गिर गईं। इसी मुसाफ़िरख़ाने में वक्फ़ का दफ़्तर था।
लड़का मुसाफ़िरख़ाने की तीन टूटी सीढ़ियाँ चढ़कर ऊँचे दरवाज़े से अंदर गया। अंदर एक खुली जगह के चारों ओर चौकोर गलियारा था। उसके साथ कमरे बने थे, कमरों के बाहर नाम की पट्टियाँ लटक रही थीं। गलियारे के एक कोने में दो घड़ों में पानी रखा था। एक घड़े के ऊपर हैंडल वाली छोटी-सी लुटिया रखी थी। गलियारे के बाहर की खुली जगह में क्यारियाँ थीं। उनमें पौधे थे।
पहला बड़ा कमरा ही वक्फ़ का था। लड़का कमरे में गया। बड़ी-सी मेज़ के पीछे दोहरे बदन का एक आदमी बैठा था। वह मुतवल्ली था। उसके सामने की कुर्सी पर एक आदमी था। उसकी कुर्सी के साथ की दो कुर्सियाँ खाली थीं। मुतवल्ली ने लड़के को देखा। कुर्सी पर बैठने का इशारा किया। लड़का कुर्सी पर बैठ गया। वे दोनों बातें करने लगे। लड़के ने कमरे में नज़र दौड़ाई। मुतवल्ली के पीछे की दीवार के दोनों सिरों पर लंबी खिड़कियाँ बनी थीं। एक से धूप आ रही थी। कमरे में उसी की रोशनी थी। उसी रोशनी में खिड़कियों की सलाखों का भूरा जंग चमक रहा था। नीचे की धूल भी। दूसरी खिड़की के पीछे सड़क दिख रही थी। सड़क पर दरगाह पर चढ़ाने वाली चादर के चारों कोने पकड़कर लड़के पैसे माँग रहे थे। एक मदारी जमूरे को ज़मीन पर लिटाने की तैयारी कर रहा था। बांसुरी बजाता एक आदमी कंधे पर ढेर-सी बांसुरी, रंगीन गुब्बारे, गुलेल, रंगीन लट्टू, कागज़ के जानवर लटकाए जा रहा था। एक लड़की और लड़का उसकी धुन पर नाचते हुए उसके पीछे जा रहे थे।
बिच्छू के बारे में लोग ज़्यादा नहीं जानते’, मुतवल्ली के सामने बैठा हुआ आदमी बोल रहा था। मुतवल्ली बहुत ध्यान से सुन रहा था।
‘सच तो यह है कि जानवरों के बारे में भी नहीं जानते। इनके अंदर अनमोल ख़ज़ाने छुपे होते हैं। उनके बारे में भी नहीं जानते। उनकी खाल, उनके जहर, उनकी लार, उनकी नीचे की गोलियाँ, नाख़ून, बाल तक में हर बीमारी का इलाज है। जिस दिन इंसान जानवरों के अंदर छुपी इस ताकत को जान लेगा, सब कुछ बदल जाएगा। न कोई बूढ़ा होगा, न मरेगा। मकड़ी के जाले का तार, बिच्छू का ज़हर।’ वह आदमी फ़र्श तक झुका। झोले के अंदर से कांच की बड़ी शीशियाँ निकालकर मेज़ पर रखीं, ‘मेरे पुरखे जानते थे। तभी सैकड़ों सालों से लोग हमारे पास आते हैं। अब रेगिस्तान के इस बिच्छू को देखिए। दुनिया का सबसे ज़हरीला जानवर है। इसकी दुम देखिए...हमेशा धनुष की तरह ऊपर उठी रहती है। डंक मारने को तैयार। रेगिस्तानी लोमड़ी, कंगारू, चूहा तक इसके ज़हर से नहीं बचते। इसमें तेल बहुत कम होता है, पर जितना होता है अमृत समझिए। और इसे देखिए।’ उसने एक और बड़ी शीशी आगे बढ़ाई, ‘पहाड़ों की चट्टानों में रहने वाला। रूम के लोग अपने चोगे का एक हिस्सा इसके ज़हर से रंगवाते थे। कभी अचानक मरना पड़े तो उसे चाट लेते थे। बहुत से लोग इस तरह मरे हैं। मैंने तो सुना है कि सुकरात को भी इसी का जहर दिया गया था।’
लड़का भी मेज़ पर झुककर बिच्छू दखने लगा। उसने पहले कभी बिच्छू नहीं देखा था। कांच की बड़ी शीशी में बंद होने के बाद भी वह डरा रहा था। उसकी खाल बटी हुई रस्सी की तरह और चमकीली थी। लड़के ने इतना गहरा काला रंग कभी नहीं देखा था। न बादलों में, न लड़की के बालों में, न शहतूत में। लड़के ने सिर उठाकर मुतवल्ली को देखा। उसकी आँखें खुशी से चमक रही थीं।
‘पर मुझे ज़िंदा नहीं चाहिए’, वह बोला।
‘वह मैं दूंगा भी नहीं’, उस आदमी ने शीशियाँ वापस झोले में रख लीं।
‘मार कर ही दूंगा...तेल आप निकालिएगा।’
उसने एक बार लड़के को देखा फिर उठ गया।
‘बाकी बातें शाम को दुकान पर करूँगा। तब तक मैं मेडिकल कॉलेज जा रहा हूँ। वहाँ भी इनकी ज़रूरत है।’
‘पर उन्हें ये मत देना।’
‘नहीं...उन्हें तो दुम निकले हुए मामूली बिच्छू दूँगा जो मारे-मारे फिरते हैं। ये आपके लिए रहेंगे।’ उसने पायजामे का नाड़ा खोलकर बांधा फिर झोला कंधे पर लटकाकर चला गया।
‘हाँ’, मुतवल्ली अब लड़के की ओर मुड़ा।
लड़के ने जेब से दरख़्वास्त निकाल कर उसे दी। मुतवल्ली ने मेज पर रखा चश्मा आंखों पर चढ़ाया। दरख़्वास्त पढ़ी। चश्मा उतारकर मेज़ पर रखा। चश्मे के पास कागज़ रखा। लड़के को देखा, फिर हँसा।
‘कमाल है! एक पेड़ की डालों से इतनी दुश्मनी...जैसे वह बिच्छू हो! अभी कुछ देर पहले इन्हीं डालों को काटने की एक दरख़्वास्त और आई है।’ उसने दराज खोली और एक कागज निकालकर लड़के के सामने रख दिया।
उस पतझड़ में लड़के ने पाँच झूठ बोले। उस पतझर में लड़की ने कितने बोले पता नहीं, पर पत्ते आने से पहले पेड़ की शाखाएँ कट गईं।
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us peD par ek bhi patta nahin bacha tha bajre ki kalgi ke ek ek dane ko jaise tota nikal leta hai, usi tarah patjhar ne har patte ko alag kar diya tha peD ki puri katthai shakhayen bilkul nangi theen os ki bundon mein bhigne ke baad uski khurduri, gaDDhedar purani chhaal dhoop mein bahut saph dikhti thi
laDka subah chhat par gamle ke paudhon ko pani dene aaya uski nigah peD par paDi usne pahli bar peD ko is tarah nanga dekha tha halanki patjhar har sal aata tha, har sal bajre ki kalgi ki tarah uska har patta alag kar deta tha, har sal uski shakhayen isi tarah nangi ho jati theen, par laDke ki nigah nahin paDi thi is sal paDi thi usne itna baDa, uncha aur aisa bina patton wala peD bhi pahle kabhi nahin dekha tha is sal dekha tha uski bhuri, katthai shakhayen use melon mein aane wale tapaswi ki jataon ki tarah lagin paudhen ko pani dena bhulkar wo un jataon ko dekhne laga
peD ko dekhte hue, uski najar shakhaon ke beech ki khali jagah par gai khali jagah se use kuch door par ek angan ka chaukor hissa dikha us chaukor hisse par ek laDki khaDi thi wo bhi hairani se peD ko udhar se dekh rahi thi nangi shakhaon ki khali jagah se use bhi dekh rahi thi do log ek sath ek hi samay un katthai bhuri shakhaon ko dekh rahe the jinhen unhonne pahle kabhi nahin dekha tha un shakhaon ke beech se we ek dusre ko bhi dekh rahe the, ek dusre ko unhonne pahle kabhi nahin dekha tha
laDki rassi par sukhte kapDe uthane i thi kapDe uthakar wo chali gai uske jane ke baad angan ki chaukor jagah khali ho gai laDke ne ab pure angan ko dekha ek or kinare par nichi chhat thi us par baDa sa dhuanra bana tha wo jarur rasoi hogi laDke ne socha dusri or utni hi nichi chhat wali kothriyan bani theen wo jarur anaj aur dusre saman rakhne ki jagah hogi, laDke ne socha tisri or kam unchai wala nal laga tha is par kapDe dhoe jate honge, laDke ne socha chauthi or rassi bandhi thi us par kapDe sukhte the laDke ne dekha tha peD ke tute matamaile patte rasoi aur kothariyon ki chhaton par paDe the we bahut jyada the itne jyada ki unhonne chhat ko Dhak liya tha itne jyada laDke ne sirph tare dekhe the we bhi kabhi kabhi asman ko Dhak lete the patte ek dusre ke upar lade hue the tare ek dusre ke upar nahin ladte honge laDke ne socha laDki ke jane ke baad angan ka wo chaukor hissa bahut khali lag raha tha laDke ne laDki ko theek se nahin dekha tha wo soch raha tha paudhen ke pani dene se pahle laDki ek bar aur aa jaye to use theek se dekh le laDki achanak angan mein aa gai usi jagah khaDi hokar gile kapDe sukhane lagi aisa karte hue wo shakhaon ke par laDke ko dekh rahi thi is bar laDke ne use theek se dekha wo uski umr ki hi thi kasi deh wali bhare badal jaisi sanwli uske khule baal kandhon par gire hue the laDki ne abhi raat ko sone wale kapDe hi pahne hue the pile phulon wala ek Dhila payajama aur unhin phulon wali ek unchi kamiz donon ek hi kapDe se bane the kamij kuch jyada unchi thi wo kamar ke niche ke bharipan ko Dhak nahin pa rahi thi
laDki sokar uthi thi uske kapDon par abhi raat ki salawten theen uski chaal mein alasy tha tisra kapDa sukhate hue usne do bar jamuhai li jamuhai lete samay donon bar uska munh thoDa hi khula laDke ko uske dant nahin dikhe anar ke danon ki tarah honge laDke ne yoon hi soch liya laDki jab rassi par kapDe tangti to uski banhen uth jatin uthi banhon ke niche laDke ne holi ke pani bhare do chhote gubbare dekhe gol kalaiyon par do Dore bandhe dekhe
jab tak laDki kapDe sukhati rahi, shakhaon ke beech se laDke ko dekhti rahi laDka bhi shakhaon ke beech se laDki ko dekh raha tha usne pahle kabhi kapDe sukhati laDki nahin dekhi thi laDke ko laga ki wo rassi par kapDe kuch jaldi Dal sakti thi laDki der kar rahi thi kuch der mein laDki ne sab kapDe rassi par phaila diye tabhi peD ki shakh se rasoi ki chhat par ek mota bandar dhamm se kuda laDki Dar kar andar bhag gai laDke ne bandar ko ek gali di, phir gamle ke paudhon mein pani Dalne laga
laDka daswen paudhe ko pani de raha tha, usne ‘hat hat ’ ki awaj suni usne ghumkar dekha angan ke kone mein laDki ek chhoti lakDi liye bandar ko bhaga rahi thi laDki Dar rahi thi ki bandar kahin kapDe na utha le lakDi patli aur chhoti thi bandar mota aur jiddi tha bandar par uski ‘hat hat ’ ka koi asar nahin paDa sukhe patton ke beech use ek roti mil gai thi roti munh mein dabakar usne lakDi hilati hui laDki ko ek ghuDki di chikhkar laDki andar bhag gai bandar hansta hua roti chabane laga laDka hansta hua gyaharwen paudhe mein pani dene laga
jab tak bandar baitha tha, laDki aane wali nahin thi akhiri paudhe mein pani dene ke baad laDke ke pas khali samay tha is khali samay mein laDke ne munDer par kohaniyan tikain aur peD aur uske charon or dekhne laga peD bahut uncha tha uske niche kai chhote chhote gharon ki chhaten theen in gharon ke bahar baDi khuli jagah thi ismen lakaDiyon ki ek tal thi gharon ki chhaton par bhi peD ke tute patte paDe the peD kahan se nikla tha, ye laDke ki chhat se samajh mein nahin aata tha laDke ki chhat se lakDi ka tal ka khula maidan dikh raha tha uske ek kone par kati hui lakaDiyon ke chhote chhote alag Dher lage the ek or peDon ki patli, bikhri hui tahniyan paDi theen unke pas lakDiyan taulne ka baDe palDe wala taraju latak raha tha uske pichhe chhoti kothari bani thi us peD ki shakhayen lakDi ke tal ke kuch hisse tak phail gai theen angan inhin ke pichhe tha peD ke dusri or ek diwar ke pichhe chhoti si khuli jagah dikh rahi thi wahan ek gay bandhi thi uske samne khane ke liye mitti ka baDa nand rakha tha uske andar chara paDa tha gay ka bachhDa usse sata khaDa tha charkhane wala angochha pahne ek adami gay ka doodh nikalne ki taiyari kar raha tha wahin se uthta hua kala dhuan peD tak aa raha tha
laDke ko peD ka tana us khuli jagah tak jata dikh raha tha phir diwar thi tane ke charon or aur bhi chhoti chhaten aur diwaren theen peD kahan se nikla tha, ye chhat se pata nahin lagta tha bandar abhi roti kha raha tha angan abhi khali tha laDke ne najar ghumakar angan ki taraph dekha rasoi ki chhat par do bandar aur aa gaye the patton mein roti talashte hue we angan ki taraf baDh rahe the laDki ab aur jyada Dar gai hogi, laDke ne socha bandron ke jane ke baad bhi ab der tak wo angan mein nahin ayegi dhoop tez hone lagi thi laDka udas ho gaya udas hokar wo chhat se niche aa gaya
dopahar ko laDka phir chhat par aaya wo pahle kabhi dopahar ko nahin aaya tha use chhat par jate dekhkar man ne toka ‘subah paudhen ko pani kam diya tha’, laDka bola
‘dhoop mein pani dene se paudhe jal jate hain’, man boli
laDke ne man ki baat nahin mani wo chhat par aa gaya usne angan ki taraf dekha angan khali tha kuch der dhoop mein khaDa wo angan dekhta raha achanak use laDki dikhi sir jhukaye rasoi se nikli aur angan se hoti hui dusri or chali gai uske hathon mein tray thi tray par khane ke bartan rakhe the kuch kshan baad wo rasoi mein lauti uske hath ab khali the use pata nahin tha ki laDka chhat par hai laDke ki parchhai itni baDi nahin thi ki uske angan tak pahunch jati laDke ki gandh itni tej nahin thi ki wo soongh leti laDke ki dhaDaknen itni tez nahin thi ki wo sun leti laDka itna pas nahin tha ki wo dekh leti pahle ki tarah hi sir jhukaye wo phir rasoi se nikli is bar uske hath mein plate thi plate par roti thi angan ke dusri or wo gai phir lauti ab uski plate khali thi laDka samajh gaya rasoi mein koi roti senk raha hai laDki angan ke par kamre mein kisi ko khana khila rahi hai
laDka munDer par kohaniyan tikakar khaDa ho gaya laDki ne teen chakkar lagaye akhiri chakkar mein wo tray par sab bartan lekar wapas lauti tray rasoi mein rakhkar phir lauti angan ke tal par usne hath dhoe panw bhi dhoe panw dhone ke liye usne payajama thoDa upar uthaya laDke ne uski gudaj pinDaliyan dekhin panjon mein do sanwle mulayam khargosh dekhe laDki andar chali gai dhoop bahut tez ho gai chhat ke farsh par laDke ke talue jalne lage man ne niche se awaj di paudhon ko jalane ke liye kosa unki badduaon se Daraya laDka Dar gaya Darkar niche aa gaya
sham ko laDka phir chhat par aaya angan khali tha usne der tak asman mein uDti patange dekhin, kheton se lautte tote dekhe, chimaniyon se nikalta dhuna dekha, church ki minar ke gale mein
layeket sa latka pila chand dekha, gharon mein jalte chulhon ki lapat dekhi, un par sinkti rotiyan dekhin, khoob sare tare dekhe phir niche aa gaya
subah ke intizar mein laDka theek se so nahin paya janaze mein gaisbatti kiraye par dene wale ke murge ki bang se wo uth gaya khiDki ka parda hatakar usne dekha abhi andhera tha usne ghaDi dekhi subah ke teen baje the usne suna tha murga subah hone par bang deta hai is murge ne aisa nahin kiya gaisbatti kiraye par dene wala beiman tha use matam mein muft dene ke liye kaha gaya tha, lekin wo kiraya leta tha murga uska tha murga bhi beiman ho gaya tha laDke ne murge ko ek gali di usne tay kiya ki ab murge ki bang se nahin uthega mil ke hutar, kotawali ke ghante, ajan ya chiDiyon ki awaz se uthega ye beiman nahin the
us subah sabse pahle chiDiya bolin wo uth gaya khiDki ka parda hatakar usne dekha thoDi roshni ho gai thi wo chhat par aa gaya usne angan ki or dekha laDki angan mein tahal rahi thi subah ki tazi hawa phephDon mein bhar rahi thi halka wyayam kar rahi thi tisre chakkar mein usne chhat ki taraph dekha laDke ko dekhkar wo ruki rassi ki taraf i usne rassi par sukhte kapDon ko theek kiya kapDon ko theek karne tak wo laDke ko dekhti rahi laDka bhi usko ab achchhi tarah se dekh pa raha tha pata nahin tha ki laDki laDke ko dekh rahi hai ya use khu ko dekhne de rahi hai laDki angan mein chakkar lagane lagi kabhi hath upar uthati, kabhi kandhen se ghumati andar dekhne walon ko wo subah ka wyayam karne ka bhram de rahi thi
angan ke ek or se dusri or ghumte hue jane mein uska ek chakkar ho raha tha ek chakkar mein wo utni hi der dikhti jitni der khule hisse se guzarti baki samay diwar ya kothariyon ki aaD mein chali jati laDke ne ginti ginkar dekha ki uska ek chakkar teen minat ka hai har teen minat baad laDki khuli jagah se gujar rahi thi har teen minat baad laDka use dekh raha tha khuli jagah se gujarte hue chhat ki tarpaph dekh leti har teen minat baad laDki laDke ko dekh rahi thi
laDke ne chhah bar laDki ko dekha pahli bar mein usne dekha ki laDki ne raat ke sone wale kapDe badle hue the wo safed rang ke gown jaisa kuch pahne thi dusri bar mein usne dekha ki gown pahanne ke karan kal ki tarah uski kamar ke niche ka bhari hissa nahin dikh raha tha tisri bar usne dekha ki kal ki tarah uske baal khule nahin the usne balon ki do chotiyan bana li theen donon chotiyan uske kandhon se aage ki taraf paDi theen chauthi bar mein usne dekha ki kal ki tarah wo alas kar nahin chal rahi thi panchawin bar mein usne dekha ki tez chalte hue wo rajasi tarike se ek or thoDa jhuk jati hai gardan hansini ki tarah sidhi rakhti hai chhathi bar mein laDki khule hisse mein ruk gai wo phir rassi ke pas i usne rassi se kapDe utare kapDe lekar andar chali gai laDka munDer se hatkar paudhon ko pani dene laga
solahwen paudhon mein pani dete samay use awajen sunai deen usne ghumkar dekha laDki gile kapDe sukhane lai thi ye awaj balti rakhne aur kapDon ko bahut tezi se fatkarne ki thi laDke ne paudhon ko pani dena chhoD diya wo phir munDer par kohni tikakar khaDa ho gaya
ab donon phir ek dusre ko dekh rahe the rassi ki taraph munh karke laDki dhire dhire kapDa phatkarti phir rassi par phailati laDke ne kapDon ko dekha kapDon mein usne laDki ke kal ke pile phulon wale kapDe pahchan liye laDki ke pichhe angan ke nal par ek aurat i usne hath dhoe phir andar chali gai laDki kapDe phaila chuki thi wo balti lekar andar jane lagi angan mein ek adami aaya uske sath wahi aurat thi rasoi ki taraf ishara karke unhonne laDki se kuch kaha donon andar chale gaye laDki balti rakhkar rasoi mein chali gai kuch der baad wo lauti usne balti utha li ek bar satarkata se charon or dekha phir laDke ki taraf ghumi yoon hi ek hath uthaya aur halke se lahrakar chali gai usne bata diya tha ki ab nahin ayegi laDka udas ho gaya itna udas ki usne bache hue paudhon ko pyasa chhoD diya wo niche chala gaya
man ki galiyan sunne ke baad bhi wo dopahar ko phir chhat par aaya laDki usi tarah sir jhukaye angan se rotiyan lekar jati rahi use nahin pata tha ki laDka dopahar ko bhi chhat par aata hai laDka do bar khansa, ek bar munDer se pharsh par dhamm se kuda laDki ne nahin suna laDke ko gussa aa gaya gusse mein wo sham ko chhat par nahin aaya us sham wo nadi kinare balu par pet ke bal leta hua balu par kapDe sukhati, rotiyan le jati, panw dhoti, bandar se Darti hui laDki ke chitr banata raha
agli subah laDka murge ki awaj par nahin jaga chiDiyon ki awaj par bhi nahin jaga kotawali ke ghante bajne par jaga jagte hi wo chhat par aaya laDki ne wahi sab usi tarah kiya usi tarah wo adami aur wahi aurat i laDki rasoi mein gai jate samay usne hawa mein hath hilaya laDke ki himmat baDh chuki thi usne hath uthakar laDki se rukne ko kaha laDki ruk gai rassi ke pas aakar khaDi ho gai, phir nal par munh, hath, panw dhoti rahi, phir Dari hui si kabhi kamre, kabhi rasoi ki taraph dekhti khaDi rahi yoon hi bematlab khaDa hona use Dara raha tha kuch der baad usne laDke ko dekhe bagair hath hilaya aur chali gai use Dar tha ki use dekha to laDka phir rokega wo phir ruk jayegi laDka uske bare mein janna chahta tha usse kahna chahta tha ki wo hamesha angan mein rahe use koi gupt sanket batana chahta tha jise sunkar wo jab bulaye laDki angan mein aa jaye usne kuch gupt sanket soch bhi liye the usne socha tha ki is mausam mein wo papihe ki awaj nikalega ya phir surya ka rath khinchne wale sunahri ayal ke ghoDon ki tapon ki awaj ya phir us bulbul ki awaj jiske gale ka rang surkh lal ho chuka ho usne band kamre mein in awajon ka abhyas bhi kiya tha in awajon ko sunkar man kamre ke aas pas hairani se bulbul aur ghoDon ko DhunDhti rahi thi laDke ne jab man ko is tarah unhen DhunDhte dekha, to use laga ki laDki bhi jab awaj sunegi, to bulbul ya ghoDe ki awaj hi samjhegi ye awajen use bulane ke liye wo nikal raha hai, use pata hi nahin chalega laDke ne kuch aur tarkiben bhi sochin
masalan, wo kisi ka paltu kabutar udhar mang le jo uska patr le ja sake ya uski anaj rakhne ki kothari ki diwar par ungaliyon ki parchhaiyon se janawron ki shaklen banakar use aane ka ishara kare ya uske angan tak kagaj ka jahaj uDa sake
laDka dopahar ko phir usi tarah chhat par aaya laDki ne usi tarah sir jhukaye kisi ko kamre mein khana khilaya sham ko laDka phir aaya angan khali tha
das din ho gaye gyaharwen din subah laDke ne shakhaon par kuch nae patte dekhe usne gine assi the ye patte nawjat shishu ki tarah chamakdar the mulayam the pawitra the ummidon se bhare the hawa mein jhulte to un par thahri chamak bundon ki tarah niche girti we baDe aur chauDe the unki nasen uthi huin aur ras se bhari theen in assi patton ne hi laDki ki rasoi ke ek hisse ko Dhak liya tha abhi unhen asankhya hona tha itna ki hawa bhi unke par nahin gujar sakti thi kisi ki najar ka guzarna aur bhi kathin tha
laDke ne charon or nazar ghumakar dusre peDon ko dekha we sab nae patton se bhar chuke the unke hare rang alag alag the unki akritiyan alag theen chamak alag thi patjhar se sukhi thoonth mein kampkampati jarjar dikhti dehon wale we peD ab asman ki or tane hue dharti ko Dhak rahe the yahi ek peD tha jiski shakhayen abhi nangi theen ye sabse alag bhi tha is par katthai rang ke baDe phool aate the baad mein unse kapas ke reshe uDkar charon or phailte rahte the isi peD par baithkar koyali kukti thi isi peD par jab chand rukta, niche chandni ka nagar bsa dikhai deta tha ye sab shuru hone wala tha do ya teen din mein in shakhaon ko patton se bhar jana tha laDke ne chhat se angan wale ghar ka rasta pahchanne ki koshish ki angan ke charon or nichi chhaton wale chhote chhote ghar bane the un gharon ke beech wo ghar kahan hai, samajh mein nahin aata tha
uski gali, darwaja kahan hai, dikhai nahin deta tha shakhaon ke patton se bhar jane ke baad angan dikhna band ho jayega laDki bhi nahin dikhegi ye sochkar laDka ghabra gaya munDer se kohaniyan tikakar usne ek bar phir peD dekha lakDi ki tal ko dekha jiske upar uski shakhayen theen bandhi hui gay wale hisse ko dekha jahan uska tana gaya tha kuch der tak isi tarah sab or ghurne ke baad wo niche utar aaya
subah laDki ko dekhne ke baad laDka ghar se nikalne laga man ne bina kuch khaye bahar jane ke liye use toka ha
‘khali pet mein aag lagegi ’
laDka jhalla gaya ha
‘ag lagne ke liye oxygen ki zarurat hoti hai pet ke andar oxygen nahin hoti ’
man hairani se use dekhti rahi pet ki aag ke bare mein kuch aur bolti, iske pahle laDka bahar nikal gaya
lakDi ki tal ek chhote se khule maidan mein thi pahle yahan haweliyon ki jarurat ki sabjiyan wagairah boi jati hongi ya janwar bandhte honge ya un haweliyon mein kaam karne wale jhompDon mein rahte honge ab wo maidan chhoti kothariyon se bhar gaya tha in kothariyon mein log rahte the in kothariyon ki chhat par peD ke sukhe patte girte rahte the kabhi koi purana cycle ka tyre, tuta pinjra, phata juta bhi paDa rahta tha laDke ne chhat se inhen dekha tha kothariyon ki chhaten mili hui theen ye gilahariyon aur bandron ke dauDne, sone aur khelne ke kaam aati theen yahi chhat laDki ke angan ki rasoi aur anaj ke kamre tak chali gai thi
galiyon mein rasta puchhte hue laDka tal tak aa gaya kai tarah ki laDakiyon ke kai tarah ke Dher lage the kuch Dher bahut unche the kuch chhote the kuch sukhi tahaniyon ke the lakDiyan taulne ka taraju laga tha uske palDe moti lakaDiyon se bane the dukan ke samne ke takht par teen adami baithe the we dukandar ka intzar kar rahe the laDka unke pas khaDa ho gaya unki baton se laDke ko pata chala ki ek chita ki lakaDiyan bechne wala marghat ka dukandar tha, dusra hawan ki lakDiyan bechta tha, tisra gulli DanDe banane ke liye lakDiyan lene aaya tha we lakaDiyon ke Dher ki or ishara karke jor jor se bol rahe the ek kothari se khansata hua dukandar bahar aaya wo dubla patla tha uski umr sath ke aas pas thi chhoti si saphed daDhi thi rang saph tha kandhe par lamba tauliya paDa tha uske pichhe lakDiyan taulne wala chhota laDka aaya we tinon uske purane gerahak the chhota laDka bhi unko pahchanta tha bina kuch puchhe wo Dher se lakaDiyan uthakar taraju ke palDe par rakhne laga
laDka unse thoDi door khaDa tha wo soch raha tha ki ye tinon chale jayen tab wo akele mein dukandar se baat karega
dukandar ne ek bar use uDti nigah se dekha wo samajh nahin paya ki laDka uska gerahak hai ya andar gharon mein kisi se milne aaya hai un tinon se baten karte hue wo beech beech mein taraju ki lakaDiyon ko bhi dekh raha tha laDke tak lakaDiyon ki gandh aa rahi thi, jaise we sans chhoD rahi hon, jaise katne jate bakarmanDi ke bakre chhoDte the unke upar ki nuchi bhuri chhaal charon or paDi thi, jaise unki khaal chaku se khurach di gai ho
laDke ne sir uthakar dekha peD ki shakhayen dikh rahi theen lakaDiyan taulne ke baad, bahar khaDe rikshon par lakaDiyan ladkar we tinon chale gaye dukandar ne ek bar laDke ko dekha phir takht par baithkar hisab likhne laga
ab laDka aage aaya dukandar ke kaghaz par uski parchhain paDi usne sir uthaya
‘kya us peD ki lakDiyan milengi?’ laDke ne ungli uthakar peD ki taraph ishara kiya usne Dal ko lakDi kaha tha use Dar tha ki ‘Dal’ bola to dukandar kah dega ki wo lakDiyan bechta hai, Dal nahin dukandar ne sir uthakar peD ko dekha wo jab paida hua tha tab se us peD ko dekh raha tha
‘we kisi kaam nahin atin’ usne laDke ko dekha, ‘aur bahut tarah ki lakDiyan hain, we le lo ’
‘nahin yahi chahiye ’
‘kyon?’
‘waidy ji ne isi peD ke liye kaha hai patte aane se pahle iski patli Daliyon ko ghiskar lep banana hai abhi patte nahin aaye hain abhi inki chhaal bilkul sukhi hai yahi sabse jyada fayda karti hain peD ke us taraf patte aane lage hain mainne gine hain assi hain ’
‘tumne patte gine?’ dukandar ne hairat se laDke ko dekha usne sir hila diya
‘mainne tare gine the ’
‘kitne the?’
‘pata nahin ’
‘kya we ek dusre par lade the?’
‘kya tare aisa karte hain?’
‘patte to karte hain ’
‘nahin lade nahin the ’
dukandar ne sir hilaya wo chup ho gaya kuch der donon chup rahe
‘kya aap peD ke idhar ke hisse ki Daliyan katwa kar de sakte hain?’ laDka is bar lakaDiyon ki jagah Daliyan bola
‘nahin wahan pahunchne ka koi rasta nahin hai waise bhi main ise nahin chhunga ye peD pichhe wakil ke ghar se nikla hai jaDen wahan hain uska peD hai wahin se tane par chaDha bhi ja sakta hai tumhein agar iski Daliyan chahiye to uske pas jao wo chahega to tumhein tane par chaDhkar yahan tak aane dega agar do chaar tahniyan chahiye to aksar yahan gir jati hain kabhi patang ki Dor se, kabhi bandron ke kudne se ’
‘nahin mujhe bahut chahiye jitni idhar hain we sab sal bhar ki dawa banani hai patjhar sal mein ek hi bar aata hai sukhi tahniyan tabhi milti hain waidy ji ke pas aur bhi marij aate hain unke bhi kaam ayengi ’
‘kise chahiye?’ dukandar ne jeb se pital ki chunauti nikali tambaku aur chuna hatheli par rakhkar ghisne laga
‘kya?’
‘dawa tumhein bimari hai ’
‘nahin ’ laDka haDbaDa gaya, ‘bhai ko ’
‘kya?’
‘waidy ji jante hain ’
‘tum nahin jante?’
‘unhonne bataya nahin ’
dukandar kuch kshan laDke ko dekhta raha phir putaliyon ko ankhon ke konon par tika kar puchha ha
‘kahan lagegi?’
‘kya?’
‘dawa ’
laDke ne dukandar ko dekha uski ankhen thoDi sikuD gai theen thoDi aur sikuDti to band ho jatin honth halke se phail gaye the thoDe aur phailte to hansi ban jati usne un phaile honthon ke beech mein tambaku dabaya ha
‘dekhana agar tumhare bhai ko phayda ho to mujhe bhi batana mujhe bhi takliph rahti hai aksar baad mein sujan aa jati hai ’
dukandar ki baton se laDka achakcha gaya ‘wakil ke ghar ka rasta kidhar se hai’, usne puchha
‘yahan se bahar nikalkar dayen ghumna kale bichchhu ka tel bechne wale board ki dukan par ruk jana wahan se sati hui gali mein chale jana thoDi door jane par ek tuta phawwara dikhega uske pichhe chhota mandir hai samne uska ghar hai phawware se tumhein peD ka mota tana dikhega us par hamesha gilapan rahta hai jaise mast hathi ke mathe se mad nikalta hai usi tarah jo peD saikDon sal purane ho jate hain unke tane se hamesha aansu bahte hain jaise andar ki aatma mukti chahti hai tumhein phawware se uske aansu dikhenge shayad waidy ne isiliye is peD ki Dalen mangi hain usne iska tana dekha hoga ye aansu amrit ki bundon mein badal jate hain purani kitabon mein likha hai purane lakaDhare ise jante hain ’ dukandar chup ho gaya laDke ne sir hilaya aur tal se bahar aa gaya
tal se bichchhu ke tel ki dukan tak ek patli gali jati thi laDka us gali mein ghus gaya wo bahut sankri thi usmen dhoop nahin aati thi gali mein makanon ke chhajje mile hue the un par rangin kapDe latak rahe the kuch kapDe jyada lambe the usi samay sukhaye gaye the unki bunden niche gir rahi theen dukanen band theen gali mein niche dukan, upar makan the dukanon ke patron ke niche kutte nali ki thanDak mein dubke hue the laDke ne gali par ki gali par karte hue usne bhaDbhunje, rangrej, kathputli, nat, chandi ka warak aur chamDe ka mashak banane walon ki dukanen aur ghar par kiye laDka jab in sabko par kar raha tha uske man mein khyal aaya ki tal wale ka jhooth yahan kaam nahin karega peD ka tana wakil ke ghar mein tha dawa ke liye Dalon ki jarurat batane par, wo apni taraph ki Dalen katwa sakta tha bichchhu ke tel ki dukan par pahunchne tak laDke ne dusra jhooth soch liya
dukan se sati hui gali se laDka andar chala gaya tute phawware par pahunchkar laDke ko peD ka tana dikh gaya peD ke tane se aansu gir rahe the pile rang ki nichi chaharadiwari wala ghar tha wo bahar wakil ka nam likha tha lohe ka darwaja band tha laDke ne chhat se is ghar mein gay bandhi dekhi thi bhuse ke Dher dekhe the ye diwar, ye darwaja nahin dekha tha diwar ke pichhe use gay ke rambhane ki awaj sunai di tabhi darwaja kholkar ek adami bahar aaya wo hare rang ka chaukor khanon wala angochha lapete tha laDke ne angochhe se use pahchan liya ise lapetkar gay ka doodh nikalte hue usne kai bar chhat se use dekha tha wo darwaje par khaDa tha uske hath mein taje nikale doodh ki balti thi laDka uske pas gaya ha
‘wakil sahab se milna hai ’
usne laDke ko upar se niche tak dekha phir sir hilakar andar jane ka ishara kiya laDka darwaje se andar chala gaya andar ghusne par ek rasta kuch door tak bilkul sidha jata tha uske donon or baingni paphulon wale paudhe lage the ek bayen hath par ghoom gaya tha wahan wo ek jalidar kamre se hota hua aage chala gaya tha ek khuli jagah ko taron wali jali se gherkar baithne ki jagah banai gai thi us jali par bhi wakil ke nam ki patti latak rahi thi andar plastic ki kursiyan paDi theen ek chhoti mej ke pichhe unt ke chamDe wali unchi kursi thi wo wakil ki thi plastic ki kursiyon par do adami baithe the we wakil ka intjar kar rahe the laDka bhi ek kursi par baith gaya wo bhi intjar karne laga
laDke ne us raste ko aage jate hue dekha wahi aage jakar diwar ke pichhe ghoom gaya tha peD ka tana wahin tha gay wahin thi adami wahin doodh nikalta tha laDke ka man hua ki us jagah par jakar apni chhat dekhe, jaise laDki angan se dekhti hai laDke ka man hua ki us jagah par jakar peD ke gile tane ko chhue uske andar roti hui aatma se baat kare bandar ki tarah us par chaDhkar un shakhaon tak chala jaye jo laDki ke angan tak gai theen wahan se dekh lega ki laDki andar kise roti khilati hai laDki ko bhi bahut pas se dekh lega bandar ki tarah Dal se chipakkar use kapDe sukhate, rotiyan le jate, nal par panje dhote dekh lega uske andar ye ichha hook ki tarah uthi itni tej ki wo uthkar khaDa ho gaya donon adamiyon ne use dekha we samjhe wakil aa raha hai we bhi khaDe ho gaye laDke ne unhen khaDe hote dekha to chupchap baith gaya use ghurte hue we bhi baithkar baten karne lage
laDka unki baten sunne laga we ramlila maidan ko kharidana chahte the wakil ne unko bataya tha ki aisa nahin ho sakta kyonki us jamin ke malik khud dashrath putr bharat hain saikDon sal purane dastawej mein iske malik ne jamin unke nam kar di thi ab sirph bharat hi ise bech sakte hain unke dastkhat ke bagair jamin nahin bechi ja sakti wakil ne unko samjhaya tha ki ek hi tarika hai ki tum siddh kar do ki bharat ki mirtyu ho chuki hai aur tum unke wanshaj ho wakil ne ye bhi kaha tha ki we log pahle nahin hain jo is jamin ko lena chahte hain bahut log pahle bhi koshish kar chuke hain angrej bhi kar chuke hain usi samay ye pata chala tha ki jamin ke malik bharat ji hain isiliye pichhle ek sau tees salon se ‘bharat milap’ isi maidan par hota hai bharat milap har sal hota hai, isliye bharat ab jiwit nahin hain, ye siddh nahin kiya ja sakta we ab surywanshi bharat ke jhuthe dastkhat ki koi sajish lekar aaye the
darwaje par khansne ki awaj karta hua wakil ghusa khansne ki awaj karte hue ghusna usne mugal badshahon ke aane ki ghoshana karne se sikha tha we donon khaDe ho gaye laDka bhi khaDa ho gaya wakil sidhe chamDe ki kursi par baith gaya we donon bhi baith gaye laDka bhi baith gaya laDke ne wakil ko dekha wo mota tha uska pet jyada bahar nikal aaya tha wakil ne laDke ko dekha wo samjha laDka unke sath hai wo unki taraph jhuk gaya unhonne ishare se use rok diya laDka unki baten sun sakta tha bahar jakar unka bhed khol sakta tha
‘pahle inka kaam kar den’ unmen se ek bola wakil phir pichhe muDkar kursi ki peeth se chipak gaye wo chupchap laDke ko dekh raha tha uske chehre ki khaal kasi hui thi use laDke ka aana ya khud laDka achchha nahin lag raha tha laDka laDkhaDa gaya ha
‘main pichhe rahta hoon mere chhat se apaki gay dikhti hai ’ laDka chup ho gaya pichhe rahne ya gay ki baat sunkar wakil ka chehra mulayam ho gaya wo muskuraya laDke ki himmat laut i, ‘apke ghar mein katthai phulon wala peD hai, wahi jiske tane se aansu nikalte hain wo peD upar bahut door tak phaila hai yahan se nahin dikhega meri chhat se dikhta hai patjhar ke karan abhi usmen patte nahin hain par ab aane shuru hone wale hain phir usmen phool ayenge, bahut sare baDe phool unse kapas ke reshe nikalte hain meri man ko unse takliph hoti hai jab hawa mere ghar ki taraph chalti hai to un phulon ki gandh aur kapas ke reshe mere ghar tak aa jate hain khiDakiyon se andar rasoi tak man ki sans phulne lagti hai Dayektar ne kaha hai ki use in phulon ki gandh se, kapas ke reshon se bachana jaruri hai ’ laDka ek sans lekar chup ho gaya wakil muskurata hua sun raha tha use lambe byan sunne ki aadat thi we donon bhi sun rahe the
‘patte aana shuru ho chuke hain phool bhi ayenge hawa bhi chalne lagi hai is mausam se hawa bhi peD se hoti hui mere ghar ki taraph aati hai?’
‘tumhe kaise pata?’ wakil ab bola uski awaj khurduri thi jaise kisi patthar par rassi ghisi ja rahi ho
‘kya?’
‘yahi ki hawa idhar se tumhare ghar ki or chalegi ’
‘is mausam mein yahi hota hai usmen khule balon ki, sanwle khargosh ki, rotiyon ki mahak hoti hai ’ laDke ko achanak laDki yaad aa gai
‘isse hawa ke chalne ki disha kaise pata lagti hai?’ laDka laDkhaDa gaya
‘udhar gharon mein ye sab hota hai ’
‘gharon se hawa kabhi mere ghar ki taraph bhi chalti hogi?’
‘ji ’
‘lekin mujhe to kabhi rotiyon ki, khule balon ki ya sanwle khargosh ki gandh nahin i?’
laDke ne sir jhuka liya uske byan mein galti pakaDkar wakil khush ho gaya
‘khair to?’
‘agar aap peD ki kewal un Dalon ko katwa den jo meri chhat se dikhti hain to phulon ki gandh aur kapas ke reshe nahin ayenge ’
‘par peD to mera nahin hai ’
‘apke ghar mein hai ’
‘ghar bhi mera nahin hai ’
laDke ne asmanjas mein use dekha
‘yah sari jamin wakph ki hai sare ghar bhi usi ke hain inka malik mutawalli hai in gharon ke bare mein koi bhi phaisla wahi le sakta hai ’
‘yah kya hota hai?’
‘kya ’
‘jo abhi aapne bola ’
‘tum itna hi samajh lo ki wakph matlab trast aur mutawalli matlab baDa trasti mutawalli ki marji ke bagair kuch nahin ho sakta tumne bahar diwar par pila rang dekha hoga? usi ne karwaya hai gay bhi usi ne bandhwai hai darwaje par doodh ki balti liye koi adami mila tha? usi ka hai doodh bhi usi ka hai uske ghar ja raha tha main to bajar se kharidta hoon ye peD bhi usi ka hai iski Dalen katwane ke liye tumhein usse baat karni paDegi ’
‘wah kahan milenge?’
‘door nahin hai musaphirkhane ke andar uska daphtar hai wahan subah baithta hai abhi chale jao mil jayega ’
‘baad mein?’
‘tumne raste mein kale bichchhu ke tel ki dukan dekhi thi n?’
‘han ’
‘usi ki hai baad mein wo kale bichchhu kharidta hai unka tel nikalwata hai shishiyon mein band karwata hai uska tel bahut muphid hai, bahut bikta hai tumne koshish ki kabhi?’
mej par kohaniyan rakhkar wo thoDa aage jhuk gaya
‘kis baat kee?’
‘man ki bimari ke liye is tel ka istemal karne kee? ho sakta hai unhen phayda ho jaye peD na katwana paDe tum chaho to main mutawalli se baat kar lunga wo is bimari ke liye kisi nayab bichchhu ka tel bana dega uske pas aise bahut bichchhu hain unka tel wo bechta nahin hai, apne liye rakhta hai kai bimariyon mein istemal karta hai ’
‘kya usse sujan theek ho jati hai?’
‘wah to bilkul ho jati hai ’
‘lakDi ki tal wale ko jarurat hai use baad mein sujan aa jati hai ’
‘wah to ayegi hi usne ek tota pal rakha hai jaise tota hari mirch pakaDta hai, us tarah wo aurat ko pakaDta hai sujan to ayegi hi ’
laDke ne kabhi tote ko hari mirch pakaDte nahin dekha tha wo chup raha
‘khair tum mutawalli se mil lo tel jarur le lena ek shishi tal wale ke liye bhi ’ laDka uth gaya
‘tum ek darakhwast de do man ki bimari ka hawala de dena uske pas adami rahte hain jab chahe unhen bhej de main peD par chaDha dunga darakhwast likh loge n?’ usne laDke ko dekha laDka chup raha
‘n likh pao to ruko mera munshi aa raha hoga wo likh dega uski phees de dena ’
‘main likh lunga’ laDke ne sir hilaya wakil ne bhi sir hila diya we donon adami ab tak ub chuke the, unhonne bhi sir hilaya laDke ne unki ub dekhi wo jali wale kamre se bahar aa gaya bahar aakar usne ek bar phir tane ko dekha un par phailti shakhaon ko dekha patte bahut teji se nikal rahe the ab we teen sau ho gaye the shakhaon par dauDti gilahri unmen phans rahi thi
laDka wapas tute phawware ke pas aa gaya use bhookh lag rahi thi kuch hi der mein uske pet mein aag lagne lagi
musaphirkhana door tha laDke ne socha ghar jakar kuch kha le wahin baithkar darakhwast bhi likh lega
ghar lautte samay laDka phir usi gali se gujra lautte samay wo soch raha tha ki mutawalli ke pas ye jhooth kaam nahin karega bimari ki baat karne par ho sakta tha ki mutawalli use kale bichchhu ka tel lagane ke liye de deta kuch din asar dekhne ke liye kah sakta tha marij dekhne ghar bhi aa sakta tha ‘dawa ka asar nahin hua tab peD ki Dalen katwa dega’, wo ye kah sakta tha lekin tab tak peD patton se lad jata tab ho sakta tha wo hare bhare peD ko katne se inkar kar deta agle patjhar tak sab kuch tal deta
laDka ghar aa gaya tej dhoop mein uska chehra lal ho raha tha man use darwaje par hi mil gai, uski subah ki baton se wo naraj thi laDke ko duःkh hua lekin wo janta tha ki man hai chutki mein man jayegi wo man se lipat gaya
‘pet mein aag jal rahi hai’ usne apna gal man ke kandhe se ragDa
‘kahan gaya tha subah se?’ man ne kandha hatakar gussa dikhaya
‘lakDi ki tal’, laDke ne phir gal kandhe se sata diya is bar man ne nahin hataya
‘kyon?’
‘dost ke ghar mein hawan hai uske liye lakDiyan leni theen ’ laDke ne jhooth bol diya laDke ko achanak dhyan aaya ki wo bahut sahajta se jhooth bol raha hai itna ki use sochna bhi nahin paD raha hawan ki baat se man khush ho gai wo andar aa gai laDka bhi pichhe pichhe aaya man rasoi mein i usne laDke ke liye makhane ki kheer aur hare chane banaye the laDka pharsh par baith gaya man ne uske samne thali rakh di khud bhi samne baith gai laDka makhane aur hare chane khane laga khakar use darakhwast likhni thi usne wakil se kah diya ki likh lega, lekin usne kabhi darakhwast nahin likhi thi
‘tum darakhwast likh sakti ho?’ usne man se puchha man ko bhagwan ke nam darakhwast likhte usne kai bar dekha tha
‘kyon?’ man ne use dekha, ‘kise likhwani hai?’
‘mainne subah chhat se dekha, samne peD ke beech se apne teliphon ke tar aaye hain peD par patte aane lage hain kuch hi dinon mein we taron ko Dhak lenge un par os rukegi to uski nami taron mein pahunch jayegi usse phon kharab ho sakta hai patton se nahin bhi hua to jab phool ayenge tab hoga phool se kapas uDegi taron par chipak jayegi ’ laDke ne ghabrahat mein Dher sare chane munh mein bhar liye the itna bolkar wo dhire dhire unhen chabane laga
‘kya phon band ho jayega?’ man chintit ho gai wo apni man se phon par roj ek bar baat karti thi
‘band na bhi ho, to bhi lagega jaise phon ke upar koi siskiyan le raha hai kuch sunai nahin dega ’
‘han sisakiyon mein bola hua sunai nahin deta ’
man chintit thi uski man jab phon par siskiyan leti thi, wo kuch samajh nahin pati thi
‘tum kha lo main darakhwast likh deti hoon ’
laDka khush ho gaya usne jaldi mein makhane ki kheer pi li chane nigal liye uth gaya man uthkar kamre mein aa gai laDke ne use kagaj kalam diya bataya ki darakhwast mutawalli ke nam likhni hai ki wo is peD ki un shakhaon ko katwa de jo taron ke pas hain man darakhwast likhne baith gai laDka laDki ko dekhne chhat par chala gaya angan khali tha laDki ko uske aane ki koi ummid nahin thi
laDke ko bhi laDki ke dikhne ki koi ummid nahin thi phir bhi bina ummid ki ek ummid thi tabhi upar se ek hawai jahaj shor karta gujra jahaj dekhne ke liye laDki dauDti hui angan mein i jahaj angan se chhat ki taraph aa raha tha jahaj ko dekhte hue laDki ki nigah chhat par gai usne jahaj dekhana chhoD diya wo laDke ko dekhne lagi wo nange panw bhagi i thi dhoop tej thi angan ki int par uske talue jalne lage wo khaDi thi, par jaldi jaldi pair badal rahi thi is dhoop mein angan mein yoon hi khaDi hui wo Dar rahi thi Dar taluon ki jalan se wo der tak nahin ruki hath uthakar usne ishara kiya aur chali gai laDka khush ho gaya usne peD ko dekha chaar sau tees patte ho gaye the
angan ka nal thoDa Dhak gaya tha laDki agar panw dhoti to uske panje nahin dikhte shakhayen nahin katin to isi tarah ek roj laDki bhi nahin dikhegi laDka udas ho gaya uski udasi itni baDhi ki wo ghabra kar niche utar aaya man ne darakhwast likh di thi bina kuch paDhe usne kagaj jeb mein rakha aur teji se bahar nikal gaya
musaphirkhana shahr ke beech mein tha barsat ke dinon mein jab nadi ghat ki upri siDhiyon ko Dubo deti thi aur nawen ulti karke rakh di jati theen aur pul se gujarne wali relgaDiyon mein baithe log nadi mein jarj pancham aur wictoria ke sikke phenkte the, un dinon musaphirkhana bhara rahta tha aas pas se ya door daraj se bhi log melon mein aate the, murdani mein aate the shadiyon mein aate the, phasal katne par, mannat puri hone par aate the nadi sukhti gai musaphirkhane ki diwaron mae dararen paD gain konon mein makaDiyon ne jale bana liye chhat par hare patton wale paudhe ug aaye musaphirkhane ko rupae dene wale ghar khud bhukhe ho gaye logon ne bhi phaslon, bimariyon, murdani aur mannton mein aana chhoD diya ajadi ke baad ismen daphtar khol diye gaye janm lene aur marne ki khabar ka daphtar, tike lagane, mare janwar uthane ka, gumashudaon ko DhunDhne ka daphtar khul gaya bahar inki pattiyan lagi theen pahle wo hawa mein latkin phir tutkar nali mein gir gain isi musaphirkhane mein wakph ka daphtar tha
laDka musaphirkhane ki teen tuti siDhiyan chaDhkar unche darwaje se andar gaya andar ek khuli jagah ke charon or chaukor galiyara tha uske sath kamre bane the, kamron ke bahar nam ki pattiyan latak rahi theen galiyare ke ek kone mein do ghaDon mein pani rakha tha ek ghaDe ke upar hainDal wali chhoti si lutiya rakhi thi galiyare ke bahar ki khuli jagah mein kyariyan theen unmen paudhe the
pahla baDa kamra hi wakph ka tha laDka kamre mein gaya baDi si mej ke pichhe dohre badan ka ek adami baitha tha wo mutawalli tha uske samne ki kursi par ek adami tha uski kursi ke sath ki do kursiyan khali theen mutawalli ne laDke ko dekha kursi par baithne ka ishara kiya laDka kursi par baith gaya we donon baten karne lage laDke ne kamre mein najar dauDai mutawalli ke pichhe ki diwar ke donon siron par lambi khiDkiyan bani theen ek se dhoop aa rahi thi kamre mein usi ki roshni thi usi roshni mein khiDakiyon ki salakhon ka bhura jang chamak raha tha niche ki dhool bhi dusri khiDki ke pichhe saDak dikh rahi thi saDak par dargah par chaDhane wali chadar ke charon kone pakaDkar laDke paise mang rahe the ek madari jamure ko jamin par litane ki taiyari kar raha tha bansuri bajata ek adami kandhe par Dher si bansuri, rangin gubbare, gulel, rangin lattu, kagaj ke janwar latkaye ja raha tha ek laDki aur laDka uski dhun par nachte hue uske pichhe ja rahe the
bichchhu ke bare mein log jyada nahin jante’, mutawalli ke samne baitha hua adami bol raha tha mutawalli bahut dhyan se sun raha tha
‘sach to ye hai ki janawron ke bare mein bhi nahin jante inke andar anmol khajane chhupe hote hain unke bare mein bhi nahin jante unki khaal, unke jahar, unki lar, unki niche ki goliyan, nakhun, baal tak mein har bimari ka ilaj hai jis din insan janawron ke andar chhupi is takat ko jaan lega, sab kuch badal jayega na koi buDha hoga, na marega makDi ke jale ka tar, bichchhu ka jahar ’ wo adami pharsh tak jhuka jhole ke andar se kanch ki baDi shishiyan nikalkar mej par rakhin, ‘mere purkhe jante the tabhi saikDon salon se log hamare pas aate hain ab registan ke is bichchhu ko dekhiye duniya ka sabse jahrila janwar hai iski dum dekhiye hamesha dhanush ki tarah upar uthi rahti hai Dank marne ko taiyar registani lomDi, kangaru, chuha tak iske jahar se nahin bachte ismen tel bahut kam hota hai, par jitna hota hai amrit samjhiye aur ise dekhiye ’ usne ek aur baDi shishi aage baDhai, ‘pahaDon ki chattanon mein rahne wala room ke log apne choge ka ek hissa iske jahar se rangwate the kabhi achanak marna paDe to use chat lete the bahut se log is tarah mare hain mainne to suna hai ki sukrat ko bhi isi ka jahar diya gaya tha ’
laDka bhi mej par jhukkar bichchhu dakhne laga usne pahle kabhi bichchhu nahin dekha tha kanch ki baDi shishi mein band hone ke baad bhi wo Dara raha tha uski khaal bati hui rassi ki tarah aur chamkili thi laDke ne itna gahra kala rang kabhi nahin dekha tha na badlon mein, na laDki ke balon mein, na shahtut mein laDke ne sir uthakar mutawalli ko dekha uski ankhen khushi se chamak rahi theen
‘par mujhe jinda nahin chahiye’, wo bola
‘wah main dunga bhi nahin’, us adami ne shishiyan wapas jhole mein rakh leen
‘mar kar hi dunga tel aap nikaliyega ’
usne ek bar laDke ko dekha phir uth gaya
‘baki baten sham ko dukan par karunga tab tak main medical kayelej ja raha hoon wahan bhi inki jarurat hai ’
‘par unhen ye mat dena ’
‘nahin unhen to dum nikle hue mamuli bichchhu dunga jo mare mare phirte hain ye aapke liye rahenge ’ usne payjame ka naDa kholkar bandha phir jhola kandhe par latkakar chala gaya
‘han’, mutawalli ab laDke ki or muDa
laDke ne jeb se darakhwast nikal kar use di mutawalli ne mej par rakha chashma ankhon par chaDhaya darakhwast paDhi chashma utarkar mej par rakha chashme ke pas kagaj rakha laDke ko dekha, phir hansa
‘kamal hai! ek peD ki Dalon se itni dushmani jaise wo bichchhu ho! abhi kuch der pahle inhin Dalon ko katne ki ek darakhwast aur i hai ’ usne daraj kholi aur ek kagaj nikalkar laDke ke samne rakh diya
us patjhar mein laDke ne panch jhooth bole us patjhar mein laDki ne kitne bole pata nahin, par patte aane se pahle peD ki shakhayen kat gain
patjhar aa gaya tha
us peD par ek bhi patta nahin bacha tha bajre ki kalgi ke ek ek dane ko jaise tota nikal leta hai, usi tarah patjhar ne har patte ko alag kar diya tha peD ki puri katthai shakhayen bilkul nangi theen os ki bundon mein bhigne ke baad uski khurduri, gaDDhedar purani chhaal dhoop mein bahut saph dikhti thi
laDka subah chhat par gamle ke paudhon ko pani dene aaya uski nigah peD par paDi usne pahli bar peD ko is tarah nanga dekha tha halanki patjhar har sal aata tha, har sal bajre ki kalgi ki tarah uska har patta alag kar deta tha, har sal uski shakhayen isi tarah nangi ho jati theen, par laDke ki nigah nahin paDi thi is sal paDi thi usne itna baDa, uncha aur aisa bina patton wala peD bhi pahle kabhi nahin dekha tha is sal dekha tha uski bhuri, katthai shakhayen use melon mein aane wale tapaswi ki jataon ki tarah lagin paudhen ko pani dena bhulkar wo un jataon ko dekhne laga
peD ko dekhte hue, uski najar shakhaon ke beech ki khali jagah par gai khali jagah se use kuch door par ek angan ka chaukor hissa dikha us chaukor hisse par ek laDki khaDi thi wo bhi hairani se peD ko udhar se dekh rahi thi nangi shakhaon ki khali jagah se use bhi dekh rahi thi do log ek sath ek hi samay un katthai bhuri shakhaon ko dekh rahe the jinhen unhonne pahle kabhi nahin dekha tha un shakhaon ke beech se we ek dusre ko bhi dekh rahe the, ek dusre ko unhonne pahle kabhi nahin dekha tha
laDki rassi par sukhte kapDe uthane i thi kapDe uthakar wo chali gai uske jane ke baad angan ki chaukor jagah khali ho gai laDke ne ab pure angan ko dekha ek or kinare par nichi chhat thi us par baDa sa dhuanra bana tha wo jarur rasoi hogi laDke ne socha dusri or utni hi nichi chhat wali kothriyan bani theen wo jarur anaj aur dusre saman rakhne ki jagah hogi, laDke ne socha tisri or kam unchai wala nal laga tha is par kapDe dhoe jate honge, laDke ne socha chauthi or rassi bandhi thi us par kapDe sukhte the laDke ne dekha tha peD ke tute matamaile patte rasoi aur kothariyon ki chhaton par paDe the we bahut jyada the itne jyada ki unhonne chhat ko Dhak liya tha itne jyada laDke ne sirph tare dekhe the we bhi kabhi kabhi asman ko Dhak lete the patte ek dusre ke upar lade hue the tare ek dusre ke upar nahin ladte honge laDke ne socha laDki ke jane ke baad angan ka wo chaukor hissa bahut khali lag raha tha laDke ne laDki ko theek se nahin dekha tha wo soch raha tha paudhen ke pani dene se pahle laDki ek bar aur aa jaye to use theek se dekh le laDki achanak angan mein aa gai usi jagah khaDi hokar gile kapDe sukhane lagi aisa karte hue wo shakhaon ke par laDke ko dekh rahi thi is bar laDke ne use theek se dekha wo uski umr ki hi thi kasi deh wali bhare badal jaisi sanwli uske khule baal kandhon par gire hue the laDki ne abhi raat ko sone wale kapDe hi pahne hue the pile phulon wala ek Dhila payajama aur unhin phulon wali ek unchi kamiz donon ek hi kapDe se bane the kamij kuch jyada unchi thi wo kamar ke niche ke bharipan ko Dhak nahin pa rahi thi
laDki sokar uthi thi uske kapDon par abhi raat ki salawten theen uski chaal mein alasy tha tisra kapDa sukhate hue usne do bar jamuhai li jamuhai lete samay donon bar uska munh thoDa hi khula laDke ko uske dant nahin dikhe anar ke danon ki tarah honge laDke ne yoon hi soch liya laDki jab rassi par kapDe tangti to uski banhen uth jatin uthi banhon ke niche laDke ne holi ke pani bhare do chhote gubbare dekhe gol kalaiyon par do Dore bandhe dekhe
jab tak laDki kapDe sukhati rahi, shakhaon ke beech se laDke ko dekhti rahi laDka bhi shakhaon ke beech se laDki ko dekh raha tha usne pahle kabhi kapDe sukhati laDki nahin dekhi thi laDke ko laga ki wo rassi par kapDe kuch jaldi Dal sakti thi laDki der kar rahi thi kuch der mein laDki ne sab kapDe rassi par phaila diye tabhi peD ki shakh se rasoi ki chhat par ek mota bandar dhamm se kuda laDki Dar kar andar bhag gai laDke ne bandar ko ek gali di, phir gamle ke paudhon mein pani Dalne laga
laDka daswen paudhe ko pani de raha tha, usne ‘hat hat ’ ki awaj suni usne ghumkar dekha angan ke kone mein laDki ek chhoti lakDi liye bandar ko bhaga rahi thi laDki Dar rahi thi ki bandar kahin kapDe na utha le lakDi patli aur chhoti thi bandar mota aur jiddi tha bandar par uski ‘hat hat ’ ka koi asar nahin paDa sukhe patton ke beech use ek roti mil gai thi roti munh mein dabakar usne lakDi hilati hui laDki ko ek ghuDki di chikhkar laDki andar bhag gai bandar hansta hua roti chabane laga laDka hansta hua gyaharwen paudhe mein pani dene laga
jab tak bandar baitha tha, laDki aane wali nahin thi akhiri paudhe mein pani dene ke baad laDke ke pas khali samay tha is khali samay mein laDke ne munDer par kohaniyan tikain aur peD aur uske charon or dekhne laga peD bahut uncha tha uske niche kai chhote chhote gharon ki chhaten theen in gharon ke bahar baDi khuli jagah thi ismen lakaDiyon ki ek tal thi gharon ki chhaton par bhi peD ke tute patte paDe the peD kahan se nikla tha, ye laDke ki chhat se samajh mein nahin aata tha laDke ki chhat se lakDi ka tal ka khula maidan dikh raha tha uske ek kone par kati hui lakaDiyon ke chhote chhote alag Dher lage the ek or peDon ki patli, bikhri hui tahniyan paDi theen unke pas lakDiyan taulne ka baDe palDe wala taraju latak raha tha uske pichhe chhoti kothari bani thi us peD ki shakhayen lakDi ke tal ke kuch hisse tak phail gai theen angan inhin ke pichhe tha peD ke dusri or ek diwar ke pichhe chhoti si khuli jagah dikh rahi thi wahan ek gay bandhi thi uske samne khane ke liye mitti ka baDa nand rakha tha uske andar chara paDa tha gay ka bachhDa usse sata khaDa tha charkhane wala angochha pahne ek adami gay ka doodh nikalne ki taiyari kar raha tha wahin se uthta hua kala dhuan peD tak aa raha tha
laDke ko peD ka tana us khuli jagah tak jata dikh raha tha phir diwar thi tane ke charon or aur bhi chhoti chhaten aur diwaren theen peD kahan se nikla tha, ye chhat se pata nahin lagta tha bandar abhi roti kha raha tha angan abhi khali tha laDke ne najar ghumakar angan ki taraph dekha rasoi ki chhat par do bandar aur aa gaye the patton mein roti talashte hue we angan ki taraf baDh rahe the laDki ab aur jyada Dar gai hogi, laDke ne socha bandron ke jane ke baad bhi ab der tak wo angan mein nahin ayegi dhoop tez hone lagi thi laDka udas ho gaya udas hokar wo chhat se niche aa gaya
dopahar ko laDka phir chhat par aaya wo pahle kabhi dopahar ko nahin aaya tha use chhat par jate dekhkar man ne toka ‘subah paudhen ko pani kam diya tha’, laDka bola
‘dhoop mein pani dene se paudhe jal jate hain’, man boli
laDke ne man ki baat nahin mani wo chhat par aa gaya usne angan ki taraf dekha angan khali tha kuch der dhoop mein khaDa wo angan dekhta raha achanak use laDki dikhi sir jhukaye rasoi se nikli aur angan se hoti hui dusri or chali gai uske hathon mein tray thi tray par khane ke bartan rakhe the kuch kshan baad wo rasoi mein lauti uske hath ab khali the use pata nahin tha ki laDka chhat par hai laDke ki parchhai itni baDi nahin thi ki uske angan tak pahunch jati laDke ki gandh itni tej nahin thi ki wo soongh leti laDke ki dhaDaknen itni tez nahin thi ki wo sun leti laDka itna pas nahin tha ki wo dekh leti pahle ki tarah hi sir jhukaye wo phir rasoi se nikli is bar uske hath mein plate thi plate par roti thi angan ke dusri or wo gai phir lauti ab uski plate khali thi laDka samajh gaya rasoi mein koi roti senk raha hai laDki angan ke par kamre mein kisi ko khana khila rahi hai
laDka munDer par kohaniyan tikakar khaDa ho gaya laDki ne teen chakkar lagaye akhiri chakkar mein wo tray par sab bartan lekar wapas lauti tray rasoi mein rakhkar phir lauti angan ke tal par usne hath dhoe panw bhi dhoe panw dhone ke liye usne payajama thoDa upar uthaya laDke ne uski gudaj pinDaliyan dekhin panjon mein do sanwle mulayam khargosh dekhe laDki andar chali gai dhoop bahut tez ho gai chhat ke farsh par laDke ke talue jalne lage man ne niche se awaj di paudhon ko jalane ke liye kosa unki badduaon se Daraya laDka Dar gaya Darkar niche aa gaya
sham ko laDka phir chhat par aaya angan khali tha usne der tak asman mein uDti patange dekhin, kheton se lautte tote dekhe, chimaniyon se nikalta dhuna dekha, church ki minar ke gale mein
layeket sa latka pila chand dekha, gharon mein jalte chulhon ki lapat dekhi, un par sinkti rotiyan dekhin, khoob sare tare dekhe phir niche aa gaya
subah ke intizar mein laDka theek se so nahin paya janaze mein gaisbatti kiraye par dene wale ke murge ki bang se wo uth gaya khiDki ka parda hatakar usne dekha abhi andhera tha usne ghaDi dekhi subah ke teen baje the usne suna tha murga subah hone par bang deta hai is murge ne aisa nahin kiya gaisbatti kiraye par dene wala beiman tha use matam mein muft dene ke liye kaha gaya tha, lekin wo kiraya leta tha murga uska tha murga bhi beiman ho gaya tha laDke ne murge ko ek gali di usne tay kiya ki ab murge ki bang se nahin uthega mil ke hutar, kotawali ke ghante, ajan ya chiDiyon ki awaz se uthega ye beiman nahin the
us subah sabse pahle chiDiya bolin wo uth gaya khiDki ka parda hatakar usne dekha thoDi roshni ho gai thi wo chhat par aa gaya usne angan ki or dekha laDki angan mein tahal rahi thi subah ki tazi hawa phephDon mein bhar rahi thi halka wyayam kar rahi thi tisre chakkar mein usne chhat ki taraph dekha laDke ko dekhkar wo ruki rassi ki taraf i usne rassi par sukhte kapDon ko theek kiya kapDon ko theek karne tak wo laDke ko dekhti rahi laDka bhi usko ab achchhi tarah se dekh pa raha tha pata nahin tha ki laDki laDke ko dekh rahi hai ya use khu ko dekhne de rahi hai laDki angan mein chakkar lagane lagi kabhi hath upar uthati, kabhi kandhen se ghumati andar dekhne walon ko wo subah ka wyayam karne ka bhram de rahi thi
angan ke ek or se dusri or ghumte hue jane mein uska ek chakkar ho raha tha ek chakkar mein wo utni hi der dikhti jitni der khule hisse se guzarti baki samay diwar ya kothariyon ki aaD mein chali jati laDke ne ginti ginkar dekha ki uska ek chakkar teen minat ka hai har teen minat baad laDki khuli jagah se gujar rahi thi har teen minat baad laDka use dekh raha tha khuli jagah se gujarte hue chhat ki tarpaph dekh leti har teen minat baad laDki laDke ko dekh rahi thi
laDke ne chhah bar laDki ko dekha pahli bar mein usne dekha ki laDki ne raat ke sone wale kapDe badle hue the wo safed rang ke gown jaisa kuch pahne thi dusri bar mein usne dekha ki gown pahanne ke karan kal ki tarah uski kamar ke niche ka bhari hissa nahin dikh raha tha tisri bar usne dekha ki kal ki tarah uske baal khule nahin the usne balon ki do chotiyan bana li theen donon chotiyan uske kandhon se aage ki taraf paDi theen chauthi bar mein usne dekha ki kal ki tarah wo alas kar nahin chal rahi thi panchawin bar mein usne dekha ki tez chalte hue wo rajasi tarike se ek or thoDa jhuk jati hai gardan hansini ki tarah sidhi rakhti hai chhathi bar mein laDki khule hisse mein ruk gai wo phir rassi ke pas i usne rassi se kapDe utare kapDe lekar andar chali gai laDka munDer se hatkar paudhon ko pani dene laga
solahwen paudhon mein pani dete samay use awajen sunai deen usne ghumkar dekha laDki gile kapDe sukhane lai thi ye awaj balti rakhne aur kapDon ko bahut tezi se fatkarne ki thi laDke ne paudhon ko pani dena chhoD diya wo phir munDer par kohni tikakar khaDa ho gaya
ab donon phir ek dusre ko dekh rahe the rassi ki taraph munh karke laDki dhire dhire kapDa phatkarti phir rassi par phailati laDke ne kapDon ko dekha kapDon mein usne laDki ke kal ke pile phulon wale kapDe pahchan liye laDki ke pichhe angan ke nal par ek aurat i usne hath dhoe phir andar chali gai laDki kapDe phaila chuki thi wo balti lekar andar jane lagi angan mein ek adami aaya uske sath wahi aurat thi rasoi ki taraf ishara karke unhonne laDki se kuch kaha donon andar chale gaye laDki balti rakhkar rasoi mein chali gai kuch der baad wo lauti usne balti utha li ek bar satarkata se charon or dekha phir laDke ki taraf ghumi yoon hi ek hath uthaya aur halke se lahrakar chali gai usne bata diya tha ki ab nahin ayegi laDka udas ho gaya itna udas ki usne bache hue paudhon ko pyasa chhoD diya wo niche chala gaya
man ki galiyan sunne ke baad bhi wo dopahar ko phir chhat par aaya laDki usi tarah sir jhukaye angan se rotiyan lekar jati rahi use nahin pata tha ki laDka dopahar ko bhi chhat par aata hai laDka do bar khansa, ek bar munDer se pharsh par dhamm se kuda laDki ne nahin suna laDke ko gussa aa gaya gusse mein wo sham ko chhat par nahin aaya us sham wo nadi kinare balu par pet ke bal leta hua balu par kapDe sukhati, rotiyan le jati, panw dhoti, bandar se Darti hui laDki ke chitr banata raha
agli subah laDka murge ki awaj par nahin jaga chiDiyon ki awaj par bhi nahin jaga kotawali ke ghante bajne par jaga jagte hi wo chhat par aaya laDki ne wahi sab usi tarah kiya usi tarah wo adami aur wahi aurat i laDki rasoi mein gai jate samay usne hawa mein hath hilaya laDke ki himmat baDh chuki thi usne hath uthakar laDki se rukne ko kaha laDki ruk gai rassi ke pas aakar khaDi ho gai, phir nal par munh, hath, panw dhoti rahi, phir Dari hui si kabhi kamre, kabhi rasoi ki taraph dekhti khaDi rahi yoon hi bematlab khaDa hona use Dara raha tha kuch der baad usne laDke ko dekhe bagair hath hilaya aur chali gai use Dar tha ki use dekha to laDka phir rokega wo phir ruk jayegi laDka uske bare mein janna chahta tha usse kahna chahta tha ki wo hamesha angan mein rahe use koi gupt sanket batana chahta tha jise sunkar wo jab bulaye laDki angan mein aa jaye usne kuch gupt sanket soch bhi liye the usne socha tha ki is mausam mein wo papihe ki awaj nikalega ya phir surya ka rath khinchne wale sunahri ayal ke ghoDon ki tapon ki awaj ya phir us bulbul ki awaj jiske gale ka rang surkh lal ho chuka ho usne band kamre mein in awajon ka abhyas bhi kiya tha in awajon ko sunkar man kamre ke aas pas hairani se bulbul aur ghoDon ko DhunDhti rahi thi laDke ne jab man ko is tarah unhen DhunDhte dekha, to use laga ki laDki bhi jab awaj sunegi, to bulbul ya ghoDe ki awaj hi samjhegi ye awajen use bulane ke liye wo nikal raha hai, use pata hi nahin chalega laDke ne kuch aur tarkiben bhi sochin
masalan, wo kisi ka paltu kabutar udhar mang le jo uska patr le ja sake ya uski anaj rakhne ki kothari ki diwar par ungaliyon ki parchhaiyon se janawron ki shaklen banakar use aane ka ishara kare ya uske angan tak kagaj ka jahaj uDa sake
laDka dopahar ko phir usi tarah chhat par aaya laDki ne usi tarah sir jhukaye kisi ko kamre mein khana khilaya sham ko laDka phir aaya angan khali tha
das din ho gaye gyaharwen din subah laDke ne shakhaon par kuch nae patte dekhe usne gine assi the ye patte nawjat shishu ki tarah chamakdar the mulayam the pawitra the ummidon se bhare the hawa mein jhulte to un par thahri chamak bundon ki tarah niche girti we baDe aur chauDe the unki nasen uthi huin aur ras se bhari theen in assi patton ne hi laDki ki rasoi ke ek hisse ko Dhak liya tha abhi unhen asankhya hona tha itna ki hawa bhi unke par nahin gujar sakti thi kisi ki najar ka guzarna aur bhi kathin tha
laDke ne charon or nazar ghumakar dusre peDon ko dekha we sab nae patton se bhar chuke the unke hare rang alag alag the unki akritiyan alag theen chamak alag thi patjhar se sukhi thoonth mein kampkampati jarjar dikhti dehon wale we peD ab asman ki or tane hue dharti ko Dhak rahe the yahi ek peD tha jiski shakhayen abhi nangi theen ye sabse alag bhi tha is par katthai rang ke baDe phool aate the baad mein unse kapas ke reshe uDkar charon or phailte rahte the isi peD par baithkar koyali kukti thi isi peD par jab chand rukta, niche chandni ka nagar bsa dikhai deta tha ye sab shuru hone wala tha do ya teen din mein in shakhaon ko patton se bhar jana tha laDke ne chhat se angan wale ghar ka rasta pahchanne ki koshish ki angan ke charon or nichi chhaton wale chhote chhote ghar bane the un gharon ke beech wo ghar kahan hai, samajh mein nahin aata tha
uski gali, darwaja kahan hai, dikhai nahin deta tha shakhaon ke patton se bhar jane ke baad angan dikhna band ho jayega laDki bhi nahin dikhegi ye sochkar laDka ghabra gaya munDer se kohaniyan tikakar usne ek bar phir peD dekha lakDi ki tal ko dekha jiske upar uski shakhayen theen bandhi hui gay wale hisse ko dekha jahan uska tana gaya tha kuch der tak isi tarah sab or ghurne ke baad wo niche utar aaya
subah laDki ko dekhne ke baad laDka ghar se nikalne laga man ne bina kuch khaye bahar jane ke liye use toka ha
‘khali pet mein aag lagegi ’
laDka jhalla gaya ha
‘ag lagne ke liye oxygen ki zarurat hoti hai pet ke andar oxygen nahin hoti ’
man hairani se use dekhti rahi pet ki aag ke bare mein kuch aur bolti, iske pahle laDka bahar nikal gaya
lakDi ki tal ek chhote se khule maidan mein thi pahle yahan haweliyon ki jarurat ki sabjiyan wagairah boi jati hongi ya janwar bandhte honge ya un haweliyon mein kaam karne wale jhompDon mein rahte honge ab wo maidan chhoti kothariyon se bhar gaya tha in kothariyon mein log rahte the in kothariyon ki chhat par peD ke sukhe patte girte rahte the kabhi koi purana cycle ka tyre, tuta pinjra, phata juta bhi paDa rahta tha laDke ne chhat se inhen dekha tha kothariyon ki chhaten mili hui theen ye gilahariyon aur bandron ke dauDne, sone aur khelne ke kaam aati theen yahi chhat laDki ke angan ki rasoi aur anaj ke kamre tak chali gai thi
galiyon mein rasta puchhte hue laDka tal tak aa gaya kai tarah ki laDakiyon ke kai tarah ke Dher lage the kuch Dher bahut unche the kuch chhote the kuch sukhi tahaniyon ke the lakDiyan taulne ka taraju laga tha uske palDe moti lakaDiyon se bane the dukan ke samne ke takht par teen adami baithe the we dukandar ka intzar kar rahe the laDka unke pas khaDa ho gaya unki baton se laDke ko pata chala ki ek chita ki lakaDiyan bechne wala marghat ka dukandar tha, dusra hawan ki lakDiyan bechta tha, tisra gulli DanDe banane ke liye lakDiyan lene aaya tha we lakaDiyon ke Dher ki or ishara karke jor jor se bol rahe the ek kothari se khansata hua dukandar bahar aaya wo dubla patla tha uski umr sath ke aas pas thi chhoti si saphed daDhi thi rang saph tha kandhe par lamba tauliya paDa tha uske pichhe lakDiyan taulne wala chhota laDka aaya we tinon uske purane gerahak the chhota laDka bhi unko pahchanta tha bina kuch puchhe wo Dher se lakaDiyan uthakar taraju ke palDe par rakhne laga
laDka unse thoDi door khaDa tha wo soch raha tha ki ye tinon chale jayen tab wo akele mein dukandar se baat karega
dukandar ne ek bar use uDti nigah se dekha wo samajh nahin paya ki laDka uska gerahak hai ya andar gharon mein kisi se milne aaya hai un tinon se baten karte hue wo beech beech mein taraju ki lakaDiyon ko bhi dekh raha tha laDke tak lakaDiyon ki gandh aa rahi thi, jaise we sans chhoD rahi hon, jaise katne jate bakarmanDi ke bakre chhoDte the unke upar ki nuchi bhuri chhaal charon or paDi thi, jaise unki khaal chaku se khurach di gai ho
laDke ne sir uthakar dekha peD ki shakhayen dikh rahi theen lakaDiyan taulne ke baad, bahar khaDe rikshon par lakaDiyan ladkar we tinon chale gaye dukandar ne ek bar laDke ko dekha phir takht par baithkar hisab likhne laga
ab laDka aage aaya dukandar ke kaghaz par uski parchhain paDi usne sir uthaya
‘kya us peD ki lakDiyan milengi?’ laDke ne ungli uthakar peD ki taraph ishara kiya usne Dal ko lakDi kaha tha use Dar tha ki ‘Dal’ bola to dukandar kah dega ki wo lakDiyan bechta hai, Dal nahin dukandar ne sir uthakar peD ko dekha wo jab paida hua tha tab se us peD ko dekh raha tha
‘we kisi kaam nahin atin’ usne laDke ko dekha, ‘aur bahut tarah ki lakDiyan hain, we le lo ’
‘nahin yahi chahiye ’
‘kyon?’
‘waidy ji ne isi peD ke liye kaha hai patte aane se pahle iski patli Daliyon ko ghiskar lep banana hai abhi patte nahin aaye hain abhi inki chhaal bilkul sukhi hai yahi sabse jyada fayda karti hain peD ke us taraf patte aane lage hain mainne gine hain assi hain ’
‘tumne patte gine?’ dukandar ne hairat se laDke ko dekha usne sir hila diya
‘mainne tare gine the ’
‘kitne the?’
‘pata nahin ’
‘kya we ek dusre par lade the?’
‘kya tare aisa karte hain?’
‘patte to karte hain ’
‘nahin lade nahin the ’
dukandar ne sir hilaya wo chup ho gaya kuch der donon chup rahe
‘kya aap peD ke idhar ke hisse ki Daliyan katwa kar de sakte hain?’ laDka is bar lakaDiyon ki jagah Daliyan bola
‘nahin wahan pahunchne ka koi rasta nahin hai waise bhi main ise nahin chhunga ye peD pichhe wakil ke ghar se nikla hai jaDen wahan hain uska peD hai wahin se tane par chaDha bhi ja sakta hai tumhein agar iski Daliyan chahiye to uske pas jao wo chahega to tumhein tane par chaDhkar yahan tak aane dega agar do chaar tahniyan chahiye to aksar yahan gir jati hain kabhi patang ki Dor se, kabhi bandron ke kudne se ’
‘nahin mujhe bahut chahiye jitni idhar hain we sab sal bhar ki dawa banani hai patjhar sal mein ek hi bar aata hai sukhi tahniyan tabhi milti hain waidy ji ke pas aur bhi marij aate hain unke bhi kaam ayengi ’
‘kise chahiye?’ dukandar ne jeb se pital ki chunauti nikali tambaku aur chuna hatheli par rakhkar ghisne laga
‘kya?’
‘dawa tumhein bimari hai ’
‘nahin ’ laDka haDbaDa gaya, ‘bhai ko ’
‘kya?’
‘waidy ji jante hain ’
‘tum nahin jante?’
‘unhonne bataya nahin ’
dukandar kuch kshan laDke ko dekhta raha phir putaliyon ko ankhon ke konon par tika kar puchha ha
‘kahan lagegi?’
‘kya?’
‘dawa ’
laDke ne dukandar ko dekha uski ankhen thoDi sikuD gai theen thoDi aur sikuDti to band ho jatin honth halke se phail gaye the thoDe aur phailte to hansi ban jati usne un phaile honthon ke beech mein tambaku dabaya ha
‘dekhana agar tumhare bhai ko phayda ho to mujhe bhi batana mujhe bhi takliph rahti hai aksar baad mein sujan aa jati hai ’
dukandar ki baton se laDka achakcha gaya ‘wakil ke ghar ka rasta kidhar se hai’, usne puchha
‘yahan se bahar nikalkar dayen ghumna kale bichchhu ka tel bechne wale board ki dukan par ruk jana wahan se sati hui gali mein chale jana thoDi door jane par ek tuta phawwara dikhega uske pichhe chhota mandir hai samne uska ghar hai phawware se tumhein peD ka mota tana dikhega us par hamesha gilapan rahta hai jaise mast hathi ke mathe se mad nikalta hai usi tarah jo peD saikDon sal purane ho jate hain unke tane se hamesha aansu bahte hain jaise andar ki aatma mukti chahti hai tumhein phawware se uske aansu dikhenge shayad waidy ne isiliye is peD ki Dalen mangi hain usne iska tana dekha hoga ye aansu amrit ki bundon mein badal jate hain purani kitabon mein likha hai purane lakaDhare ise jante hain ’ dukandar chup ho gaya laDke ne sir hilaya aur tal se bahar aa gaya
tal se bichchhu ke tel ki dukan tak ek patli gali jati thi laDka us gali mein ghus gaya wo bahut sankri thi usmen dhoop nahin aati thi gali mein makanon ke chhajje mile hue the un par rangin kapDe latak rahe the kuch kapDe jyada lambe the usi samay sukhaye gaye the unki bunden niche gir rahi theen dukanen band theen gali mein niche dukan, upar makan the dukanon ke patron ke niche kutte nali ki thanDak mein dubke hue the laDke ne gali par ki gali par karte hue usne bhaDbhunje, rangrej, kathputli, nat, chandi ka warak aur chamDe ka mashak banane walon ki dukanen aur ghar par kiye laDka jab in sabko par kar raha tha uske man mein khyal aaya ki tal wale ka jhooth yahan kaam nahin karega peD ka tana wakil ke ghar mein tha dawa ke liye Dalon ki jarurat batane par, wo apni taraph ki Dalen katwa sakta tha bichchhu ke tel ki dukan par pahunchne tak laDke ne dusra jhooth soch liya
dukan se sati hui gali se laDka andar chala gaya tute phawware par pahunchkar laDke ko peD ka tana dikh gaya peD ke tane se aansu gir rahe the pile rang ki nichi chaharadiwari wala ghar tha wo bahar wakil ka nam likha tha lohe ka darwaja band tha laDke ne chhat se is ghar mein gay bandhi dekhi thi bhuse ke Dher dekhe the ye diwar, ye darwaja nahin dekha tha diwar ke pichhe use gay ke rambhane ki awaj sunai di tabhi darwaja kholkar ek adami bahar aaya wo hare rang ka chaukor khanon wala angochha lapete tha laDke ne angochhe se use pahchan liya ise lapetkar gay ka doodh nikalte hue usne kai bar chhat se use dekha tha wo darwaje par khaDa tha uske hath mein taje nikale doodh ki balti thi laDka uske pas gaya ha
‘wakil sahab se milna hai ’
usne laDke ko upar se niche tak dekha phir sir hilakar andar jane ka ishara kiya laDka darwaje se andar chala gaya andar ghusne par ek rasta kuch door tak bilkul sidha jata tha uske donon or baingni paphulon wale paudhe lage the ek bayen hath par ghoom gaya tha wahan wo ek jalidar kamre se hota hua aage chala gaya tha ek khuli jagah ko taron wali jali se gherkar baithne ki jagah banai gai thi us jali par bhi wakil ke nam ki patti latak rahi thi andar plastic ki kursiyan paDi theen ek chhoti mej ke pichhe unt ke chamDe wali unchi kursi thi wo wakil ki thi plastic ki kursiyon par do adami baithe the we wakil ka intjar kar rahe the laDka bhi ek kursi par baith gaya wo bhi intjar karne laga
laDke ne us raste ko aage jate hue dekha wahi aage jakar diwar ke pichhe ghoom gaya tha peD ka tana wahin tha gay wahin thi adami wahin doodh nikalta tha laDke ka man hua ki us jagah par jakar apni chhat dekhe, jaise laDki angan se dekhti hai laDke ka man hua ki us jagah par jakar peD ke gile tane ko chhue uske andar roti hui aatma se baat kare bandar ki tarah us par chaDhkar un shakhaon tak chala jaye jo laDki ke angan tak gai theen wahan se dekh lega ki laDki andar kise roti khilati hai laDki ko bhi bahut pas se dekh lega bandar ki tarah Dal se chipakkar use kapDe sukhate, rotiyan le jate, nal par panje dhote dekh lega uske andar ye ichha hook ki tarah uthi itni tej ki wo uthkar khaDa ho gaya donon adamiyon ne use dekha we samjhe wakil aa raha hai we bhi khaDe ho gaye laDke ne unhen khaDe hote dekha to chupchap baith gaya use ghurte hue we bhi baithkar baten karne lage
laDka unki baten sunne laga we ramlila maidan ko kharidana chahte the wakil ne unko bataya tha ki aisa nahin ho sakta kyonki us jamin ke malik khud dashrath putr bharat hain saikDon sal purane dastawej mein iske malik ne jamin unke nam kar di thi ab sirph bharat hi ise bech sakte hain unke dastkhat ke bagair jamin nahin bechi ja sakti wakil ne unko samjhaya tha ki ek hi tarika hai ki tum siddh kar do ki bharat ki mirtyu ho chuki hai aur tum unke wanshaj ho wakil ne ye bhi kaha tha ki we log pahle nahin hain jo is jamin ko lena chahte hain bahut log pahle bhi koshish kar chuke hain angrej bhi kar chuke hain usi samay ye pata chala tha ki jamin ke malik bharat ji hain isiliye pichhle ek sau tees salon se ‘bharat milap’ isi maidan par hota hai bharat milap har sal hota hai, isliye bharat ab jiwit nahin hain, ye siddh nahin kiya ja sakta we ab surywanshi bharat ke jhuthe dastkhat ki koi sajish lekar aaye the
darwaje par khansne ki awaj karta hua wakil ghusa khansne ki awaj karte hue ghusna usne mugal badshahon ke aane ki ghoshana karne se sikha tha we donon khaDe ho gaye laDka bhi khaDa ho gaya wakil sidhe chamDe ki kursi par baith gaya we donon bhi baith gaye laDka bhi baith gaya laDke ne wakil ko dekha wo mota tha uska pet jyada bahar nikal aaya tha wakil ne laDke ko dekha wo samjha laDka unke sath hai wo unki taraph jhuk gaya unhonne ishare se use rok diya laDka unki baten sun sakta tha bahar jakar unka bhed khol sakta tha
‘pahle inka kaam kar den’ unmen se ek bola wakil phir pichhe muDkar kursi ki peeth se chipak gaye wo chupchap laDke ko dekh raha tha uske chehre ki khaal kasi hui thi use laDke ka aana ya khud laDka achchha nahin lag raha tha laDka laDkhaDa gaya ha
‘main pichhe rahta hoon mere chhat se apaki gay dikhti hai ’ laDka chup ho gaya pichhe rahne ya gay ki baat sunkar wakil ka chehra mulayam ho gaya wo muskuraya laDke ki himmat laut i, ‘apke ghar mein katthai phulon wala peD hai, wahi jiske tane se aansu nikalte hain wo peD upar bahut door tak phaila hai yahan se nahin dikhega meri chhat se dikhta hai patjhar ke karan abhi usmen patte nahin hain par ab aane shuru hone wale hain phir usmen phool ayenge, bahut sare baDe phool unse kapas ke reshe nikalte hain meri man ko unse takliph hoti hai jab hawa mere ghar ki taraph chalti hai to un phulon ki gandh aur kapas ke reshe mere ghar tak aa jate hain khiDakiyon se andar rasoi tak man ki sans phulne lagti hai Dayektar ne kaha hai ki use in phulon ki gandh se, kapas ke reshon se bachana jaruri hai ’ laDka ek sans lekar chup ho gaya wakil muskurata hua sun raha tha use lambe byan sunne ki aadat thi we donon bhi sun rahe the
‘patte aana shuru ho chuke hain phool bhi ayenge hawa bhi chalne lagi hai is mausam se hawa bhi peD se hoti hui mere ghar ki taraph aati hai?’
‘tumhe kaise pata?’ wakil ab bola uski awaj khurduri thi jaise kisi patthar par rassi ghisi ja rahi ho
‘kya?’
‘yahi ki hawa idhar se tumhare ghar ki or chalegi ’
‘is mausam mein yahi hota hai usmen khule balon ki, sanwle khargosh ki, rotiyon ki mahak hoti hai ’ laDke ko achanak laDki yaad aa gai
‘isse hawa ke chalne ki disha kaise pata lagti hai?’ laDka laDkhaDa gaya
‘udhar gharon mein ye sab hota hai ’
‘gharon se hawa kabhi mere ghar ki taraph bhi chalti hogi?’
‘ji ’
‘lekin mujhe to kabhi rotiyon ki, khule balon ki ya sanwle khargosh ki gandh nahin i?’
laDke ne sir jhuka liya uske byan mein galti pakaDkar wakil khush ho gaya
‘khair to?’
‘agar aap peD ki kewal un Dalon ko katwa den jo meri chhat se dikhti hain to phulon ki gandh aur kapas ke reshe nahin ayenge ’
‘par peD to mera nahin hai ’
‘apke ghar mein hai ’
‘ghar bhi mera nahin hai ’
laDke ne asmanjas mein use dekha
‘yah sari jamin wakph ki hai sare ghar bhi usi ke hain inka malik mutawalli hai in gharon ke bare mein koi bhi phaisla wahi le sakta hai ’
‘yah kya hota hai?’
‘kya ’
‘jo abhi aapne bola ’
‘tum itna hi samajh lo ki wakph matlab trast aur mutawalli matlab baDa trasti mutawalli ki marji ke bagair kuch nahin ho sakta tumne bahar diwar par pila rang dekha hoga? usi ne karwaya hai gay bhi usi ne bandhwai hai darwaje par doodh ki balti liye koi adami mila tha? usi ka hai doodh bhi usi ka hai uske ghar ja raha tha main to bajar se kharidta hoon ye peD bhi usi ka hai iski Dalen katwane ke liye tumhein usse baat karni paDegi ’
‘wah kahan milenge?’
‘door nahin hai musaphirkhane ke andar uska daphtar hai wahan subah baithta hai abhi chale jao mil jayega ’
‘baad mein?’
‘tumne raste mein kale bichchhu ke tel ki dukan dekhi thi n?’
‘han ’
‘usi ki hai baad mein wo kale bichchhu kharidta hai unka tel nikalwata hai shishiyon mein band karwata hai uska tel bahut muphid hai, bahut bikta hai tumne koshish ki kabhi?’
mej par kohaniyan rakhkar wo thoDa aage jhuk gaya
‘kis baat kee?’
‘man ki bimari ke liye is tel ka istemal karne kee? ho sakta hai unhen phayda ho jaye peD na katwana paDe tum chaho to main mutawalli se baat kar lunga wo is bimari ke liye kisi nayab bichchhu ka tel bana dega uske pas aise bahut bichchhu hain unka tel wo bechta nahin hai, apne liye rakhta hai kai bimariyon mein istemal karta hai ’
‘kya usse sujan theek ho jati hai?’
‘wah to bilkul ho jati hai ’
‘lakDi ki tal wale ko jarurat hai use baad mein sujan aa jati hai ’
‘wah to ayegi hi usne ek tota pal rakha hai jaise tota hari mirch pakaDta hai, us tarah wo aurat ko pakaDta hai sujan to ayegi hi ’
laDke ne kabhi tote ko hari mirch pakaDte nahin dekha tha wo chup raha
‘khair tum mutawalli se mil lo tel jarur le lena ek shishi tal wale ke liye bhi ’ laDka uth gaya
‘tum ek darakhwast de do man ki bimari ka hawala de dena uske pas adami rahte hain jab chahe unhen bhej de main peD par chaDha dunga darakhwast likh loge n?’ usne laDke ko dekha laDka chup raha
‘n likh pao to ruko mera munshi aa raha hoga wo likh dega uski phees de dena ’
‘main likh lunga’ laDke ne sir hilaya wakil ne bhi sir hila diya we donon adami ab tak ub chuke the, unhonne bhi sir hilaya laDke ne unki ub dekhi wo jali wale kamre se bahar aa gaya bahar aakar usne ek bar phir tane ko dekha un par phailti shakhaon ko dekha patte bahut teji se nikal rahe the ab we teen sau ho gaye the shakhaon par dauDti gilahri unmen phans rahi thi
laDka wapas tute phawware ke pas aa gaya use bhookh lag rahi thi kuch hi der mein uske pet mein aag lagne lagi
musaphirkhana door tha laDke ne socha ghar jakar kuch kha le wahin baithkar darakhwast bhi likh lega
ghar lautte samay laDka phir usi gali se gujra lautte samay wo soch raha tha ki mutawalli ke pas ye jhooth kaam nahin karega bimari ki baat karne par ho sakta tha ki mutawalli use kale bichchhu ka tel lagane ke liye de deta kuch din asar dekhne ke liye kah sakta tha marij dekhne ghar bhi aa sakta tha ‘dawa ka asar nahin hua tab peD ki Dalen katwa dega’, wo ye kah sakta tha lekin tab tak peD patton se lad jata tab ho sakta tha wo hare bhare peD ko katne se inkar kar deta agle patjhar tak sab kuch tal deta
laDka ghar aa gaya tej dhoop mein uska chehra lal ho raha tha man use darwaje par hi mil gai, uski subah ki baton se wo naraj thi laDke ko duःkh hua lekin wo janta tha ki man hai chutki mein man jayegi wo man se lipat gaya
‘pet mein aag jal rahi hai’ usne apna gal man ke kandhe se ragDa
‘kahan gaya tha subah se?’ man ne kandha hatakar gussa dikhaya
‘lakDi ki tal’, laDke ne phir gal kandhe se sata diya is bar man ne nahin hataya
‘kyon?’
‘dost ke ghar mein hawan hai uske liye lakDiyan leni theen ’ laDke ne jhooth bol diya laDke ko achanak dhyan aaya ki wo bahut sahajta se jhooth bol raha hai itna ki use sochna bhi nahin paD raha hawan ki baat se man khush ho gai wo andar aa gai laDka bhi pichhe pichhe aaya man rasoi mein i usne laDke ke liye makhane ki kheer aur hare chane banaye the laDka pharsh par baith gaya man ne uske samne thali rakh di khud bhi samne baith gai laDka makhane aur hare chane khane laga khakar use darakhwast likhni thi usne wakil se kah diya ki likh lega, lekin usne kabhi darakhwast nahin likhi thi
‘tum darakhwast likh sakti ho?’ usne man se puchha man ko bhagwan ke nam darakhwast likhte usne kai bar dekha tha
‘kyon?’ man ne use dekha, ‘kise likhwani hai?’
‘mainne subah chhat se dekha, samne peD ke beech se apne teliphon ke tar aaye hain peD par patte aane lage hain kuch hi dinon mein we taron ko Dhak lenge un par os rukegi to uski nami taron mein pahunch jayegi usse phon kharab ho sakta hai patton se nahin bhi hua to jab phool ayenge tab hoga phool se kapas uDegi taron par chipak jayegi ’ laDke ne ghabrahat mein Dher sare chane munh mein bhar liye the itna bolkar wo dhire dhire unhen chabane laga
‘kya phon band ho jayega?’ man chintit ho gai wo apni man se phon par roj ek bar baat karti thi
‘band na bhi ho, to bhi lagega jaise phon ke upar koi siskiyan le raha hai kuch sunai nahin dega ’
‘han sisakiyon mein bola hua sunai nahin deta ’
man chintit thi uski man jab phon par siskiyan leti thi, wo kuch samajh nahin pati thi
‘tum kha lo main darakhwast likh deti hoon ’
laDka khush ho gaya usne jaldi mein makhane ki kheer pi li chane nigal liye uth gaya man uthkar kamre mein aa gai laDke ne use kagaj kalam diya bataya ki darakhwast mutawalli ke nam likhni hai ki wo is peD ki un shakhaon ko katwa de jo taron ke pas hain man darakhwast likhne baith gai laDka laDki ko dekhne chhat par chala gaya angan khali tha laDki ko uske aane ki koi ummid nahin thi
laDke ko bhi laDki ke dikhne ki koi ummid nahin thi phir bhi bina ummid ki ek ummid thi tabhi upar se ek hawai jahaj shor karta gujra jahaj dekhne ke liye laDki dauDti hui angan mein i jahaj angan se chhat ki taraph aa raha tha jahaj ko dekhte hue laDki ki nigah chhat par gai usne jahaj dekhana chhoD diya wo laDke ko dekhne lagi wo nange panw bhagi i thi dhoop tej thi angan ki int par uske talue jalne lage wo khaDi thi, par jaldi jaldi pair badal rahi thi is dhoop mein angan mein yoon hi khaDi hui wo Dar rahi thi Dar taluon ki jalan se wo der tak nahin ruki hath uthakar usne ishara kiya aur chali gai laDka khush ho gaya usne peD ko dekha chaar sau tees patte ho gaye the
angan ka nal thoDa Dhak gaya tha laDki agar panw dhoti to uske panje nahin dikhte shakhayen nahin katin to isi tarah ek roj laDki bhi nahin dikhegi laDka udas ho gaya uski udasi itni baDhi ki wo ghabra kar niche utar aaya man ne darakhwast likh di thi bina kuch paDhe usne kagaj jeb mein rakha aur teji se bahar nikal gaya
musaphirkhana shahr ke beech mein tha barsat ke dinon mein jab nadi ghat ki upri siDhiyon ko Dubo deti thi aur nawen ulti karke rakh di jati theen aur pul se gujarne wali relgaDiyon mein baithe log nadi mein jarj pancham aur wictoria ke sikke phenkte the, un dinon musaphirkhana bhara rahta tha aas pas se ya door daraj se bhi log melon mein aate the, murdani mein aate the shadiyon mein aate the, phasal katne par, mannat puri hone par aate the nadi sukhti gai musaphirkhane ki diwaron mae dararen paD gain konon mein makaDiyon ne jale bana liye chhat par hare patton wale paudhe ug aaye musaphirkhane ko rupae dene wale ghar khud bhukhe ho gaye logon ne bhi phaslon, bimariyon, murdani aur mannton mein aana chhoD diya ajadi ke baad ismen daphtar khol diye gaye janm lene aur marne ki khabar ka daphtar, tike lagane, mare janwar uthane ka, gumashudaon ko DhunDhne ka daphtar khul gaya bahar inki pattiyan lagi theen pahle wo hawa mein latkin phir tutkar nali mein gir gain isi musaphirkhane mein wakph ka daphtar tha
laDka musaphirkhane ki teen tuti siDhiyan chaDhkar unche darwaje se andar gaya andar ek khuli jagah ke charon or chaukor galiyara tha uske sath kamre bane the, kamron ke bahar nam ki pattiyan latak rahi theen galiyare ke ek kone mein do ghaDon mein pani rakha tha ek ghaDe ke upar hainDal wali chhoti si lutiya rakhi thi galiyare ke bahar ki khuli jagah mein kyariyan theen unmen paudhe the
pahla baDa kamra hi wakph ka tha laDka kamre mein gaya baDi si mej ke pichhe dohre badan ka ek adami baitha tha wo mutawalli tha uske samne ki kursi par ek adami tha uski kursi ke sath ki do kursiyan khali theen mutawalli ne laDke ko dekha kursi par baithne ka ishara kiya laDka kursi par baith gaya we donon baten karne lage laDke ne kamre mein najar dauDai mutawalli ke pichhe ki diwar ke donon siron par lambi khiDkiyan bani theen ek se dhoop aa rahi thi kamre mein usi ki roshni thi usi roshni mein khiDakiyon ki salakhon ka bhura jang chamak raha tha niche ki dhool bhi dusri khiDki ke pichhe saDak dikh rahi thi saDak par dargah par chaDhane wali chadar ke charon kone pakaDkar laDke paise mang rahe the ek madari jamure ko jamin par litane ki taiyari kar raha tha bansuri bajata ek adami kandhe par Dher si bansuri, rangin gubbare, gulel, rangin lattu, kagaj ke janwar latkaye ja raha tha ek laDki aur laDka uski dhun par nachte hue uske pichhe ja rahe the
bichchhu ke bare mein log jyada nahin jante’, mutawalli ke samne baitha hua adami bol raha tha mutawalli bahut dhyan se sun raha tha
‘sach to ye hai ki janawron ke bare mein bhi nahin jante inke andar anmol khajane chhupe hote hain unke bare mein bhi nahin jante unki khaal, unke jahar, unki lar, unki niche ki goliyan, nakhun, baal tak mein har bimari ka ilaj hai jis din insan janawron ke andar chhupi is takat ko jaan lega, sab kuch badal jayega na koi buDha hoga, na marega makDi ke jale ka tar, bichchhu ka jahar ’ wo adami pharsh tak jhuka jhole ke andar se kanch ki baDi shishiyan nikalkar mej par rakhin, ‘mere purkhe jante the tabhi saikDon salon se log hamare pas aate hain ab registan ke is bichchhu ko dekhiye duniya ka sabse jahrila janwar hai iski dum dekhiye hamesha dhanush ki tarah upar uthi rahti hai Dank marne ko taiyar registani lomDi, kangaru, chuha tak iske jahar se nahin bachte ismen tel bahut kam hota hai, par jitna hota hai amrit samjhiye aur ise dekhiye ’ usne ek aur baDi shishi aage baDhai, ‘pahaDon ki chattanon mein rahne wala room ke log apne choge ka ek hissa iske jahar se rangwate the kabhi achanak marna paDe to use chat lete the bahut se log is tarah mare hain mainne to suna hai ki sukrat ko bhi isi ka jahar diya gaya tha ’
laDka bhi mej par jhukkar bichchhu dakhne laga usne pahle kabhi bichchhu nahin dekha tha kanch ki baDi shishi mein band hone ke baad bhi wo Dara raha tha uski khaal bati hui rassi ki tarah aur chamkili thi laDke ne itna gahra kala rang kabhi nahin dekha tha na badlon mein, na laDki ke balon mein, na shahtut mein laDke ne sir uthakar mutawalli ko dekha uski ankhen khushi se chamak rahi theen
‘par mujhe jinda nahin chahiye’, wo bola
‘wah main dunga bhi nahin’, us adami ne shishiyan wapas jhole mein rakh leen
‘mar kar hi dunga tel aap nikaliyega ’
usne ek bar laDke ko dekha phir uth gaya
‘baki baten sham ko dukan par karunga tab tak main medical kayelej ja raha hoon wahan bhi inki jarurat hai ’
‘par unhen ye mat dena ’
‘nahin unhen to dum nikle hue mamuli bichchhu dunga jo mare mare phirte hain ye aapke liye rahenge ’ usne payjame ka naDa kholkar bandha phir jhola kandhe par latkakar chala gaya
‘han’, mutawalli ab laDke ki or muDa
laDke ne jeb se darakhwast nikal kar use di mutawalli ne mej par rakha chashma ankhon par chaDhaya darakhwast paDhi chashma utarkar mej par rakha chashme ke pas kagaj rakha laDke ko dekha, phir hansa
‘kamal hai! ek peD ki Dalon se itni dushmani jaise wo bichchhu ho! abhi kuch der pahle inhin Dalon ko katne ki ek darakhwast aur i hai ’ usne daraj kholi aur ek kagaj nikalkar laDke ke samne rakh diya
us patjhar mein laDke ne panch jhooth bole us patjhar mein laDki ne kitne bole pata nahin, par patte aane se pahle peD ki shakhayen kat gain
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।
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