स्टेशन के बाहर मैंने अपने साथी मनोहरलाल से कहा—कोई इक्का मिल जाए तो अच्छा है—'दस मील का रास्ता है।'
मनोहरलाल बोले—'आइए, इक्के बहुत हैं। उस तरफ़ खड़े होते हैं।'
हम दोनों चले। लगभग दो सौ गज़ चलने के पश्चात देखा तो सामने एक बड़े वृक्ष के नीचे तीन-चार इक्के खड़े दिखाई दिए। एक इक्का अभी आया था और उस पर से दो आदमी अपना असबाब उतार रहे थे। मनोहरलाल ने पुकारा—'कोई इक्का गंगापुर चलेगा?'
एक इक्केवाला बोला—'आइए सरकार, मैं ले चलूँ। कै सवारी है?'
'दो सवारी—गंगापुर का क्या लोगे?'
‘जो सब देते हैं, वही आप भी दे दीजिएगा।'
‘आख़िर कुछ मालूम तो हो?'
'दो रुपए का निरख (निर्ख) है।'
'दो रुपए?—इतना अधेर।'
इसी समय जो लोग अभी आए थे, उनमें और उनके इक्केवाले में झगड़ा होने लगा। इक्केवाला बोला—'यह अच्छी रही, वहाँ से डेढ़ रुपया तय हुआ, अब यहाँ बीस ही आने दिखाते हैं!'
यात्रियों में से एक बोला—'हमने पहले ही कह दिया था कि हम बीस आने से एक पैसा अधिक न देंगे।'
'मैंने भी तो कहा था कि डेढ़ रुपए से एक पैसा कम न लूँगा।'
'कहा होगा, हमने सुना ही नहीं।'
'हाँ, सुना नहीं—ऐसी बात आप काहे को सुनेंगे।'
'अच्छा तुम्हे बीस आने मिलेंगे—लेना हो तो लो, नहीं अपना रास्ता देखो।'
इक्केवाला जो हृष्ट-पुष्ट तथा गौरवर्ण था, अकड़ गया। बोला—'रास्ता देखे, कोई अधेर है! ऐसे रास्ता देखने लगे, तो बस कमाई कर चुके। बाएँ हाथ से इधर डेढ़ रुपया रख दीजिए तब आगे बढ़िएगा। वहाँ तो बोले, अच्छा जो तुम्हारा रेट होगा वह देंगे, अब यहाँ कहते हैं रास्ता देखो—अच्छे मिले!'
हम लोग यह कथोपकथन सुनकर इक्का करना भूल गए और उनकी बातें सुनने लगे। एक यात्री बड़ी गंभीरतापूर्वक बोला—'देखो जी, यदि तुम भलमनसी से बातें करो तो दो-चार पैसे हम अधिक दे सकते हैं, तुम ग़रीब आदमी हो; लेकिन जो झगड़ा करोगे तो एक पैसा न मिलेगा।'
इक्केवाला किंचित मुस्कराकर बोला—'दो-चार पैसे! ओफ़! ओफ़! आप तो बड़े दाता मालूम होते हैं। जब चार पैसे देते हो, तो चार आने ही क्यों नहीं दे देते?'
'चार आने हमारे पास नहीं हैं।'
'नहीं है—अच्छी बात है, तो जो आपके पास हो वही दे दीजिए—न हो न दीजिए और ज़रूरत हो तो एकाध रुपया मैं आपको दे सकता हूँ।'
'तुम बेचारे क्या दोगे, चार-चार पैसे के लिए तो तुम झूठ बोलते हो और बेईमानी करते हो।'
‘अरे बाबूजी, लाखों रुपए के लिए तो मैंने बेईमानी की नहीं—चार पैसे के लिए बेईमानी करूँगा? बेईमानी करता तो इस समय इक्का न हाँकता होता। ख़ैर, आपको जो देना हो दे दीजिए—नहीं जाइए—मैंने किराया भर पाया।'
उन्होंने बीस आने निकालकर दिए, इक्केवाले ने चुपचाप ले लिए।
उस इक्केवाले का आकार-प्रकार, उसकी बातचीत से मुझे कुछ ऐसा प्रतीत हुआ कि अन्य इक्केवालों की तरह यह साधारण आदमी नहीं है। इसमें कुछ विशेषता अवश्य है; अतएव मैंने सोचा कि यदि हो सके तो गंगापुर इसी इक्के पर चलना चाहिए। यह सोचकर मैंने उससे पूछा—'क्यों भाई गंगापुर चलोगे?'
वह बोला—'हाँ! हाँ! आइए!'
'क्या लोगे?'
'वही डेढ़ रुपया!'
मैंने सोचा अन्य इक्केवाले तो दो रुपए माँगते थे, यह डेढ़ रुपया कहता है, आदमी सच्चा मालूम होता है। यह सोचकर मैंने कहा—'अच्छी बात है, चलो डेढ़ रुपया देंगे।'
हम दोनों सवार होकर चले। थोड़ी दूर चलने पर मैंने पूछा—'वे दोनों कौन थे?' इक्केवाले ने कहा—'नारायण जाने कौन थे? परदेशी मालूम होते हैं, लेकिन परले-सिरे के झूठे और बेईमान! चार आने के लिए प्राण तजे दे रहे थे।'
मैंने पूछा—तो सचमुच तुमसे डेढ़ रुपया ही तय हुआ था?'
'और नहीं क्या आप झूठ समझते हैं? बाबूजी, यह पेशा ही बदनाम है, आपका कोई क़ुसूर नहीं। इक्के, ताँगेवाले सदा झूठे और बेईमान समझे जाते हैं। और होते भी हैं—अधिकतर तो ऐसे ही होते हैं। इन्हें चाहें आप रूपये की जगह सवा रुपया दीजिए तब भी संतुष्ट नहीं होते।'
मैंने पूछा—'तुम कौन जाति हो?'
'मैं? मैं तो सरकार वैश्य हूँ।'
'अच्छा! वैश्य होकर इक्का हाँकते हो?'
'क्यों सरकार, इक्का हाँकना कोई बुरा काम तो है नहीं?'
'नहीं, मेरा मतलब यह नहीं है कि इक्का हाँकना कोई बुरा काम है। मैंने इसलिए कहा कि वैश्य तो बहुधा व्यापार करते हैं।'
'यह भी तो व्यापार ही है।'
'हाँ, है तो व्यापार ही।'
मैं मन-ही-मन अपनी इस बेतुकी बात पर लज्जित हुआ; अतएव मैंने प्रसंग बदलने के लिए पूछा—कितने दिनों से यह काम करते हो?
'दो बरस हो गए।'
'इसके पहले क्या करते थे?'
यह सुनकर इक्केवाला गंभीर होकर बोला—'क्या बताऊँ, क्या करता था?
उसकी इस बात से तथा यात्रियों से उसने जो बातें कहीं थीं, उनका तारतम्य मिलाकर मैंने सोचा—इस व्यक्ति का जीवन रहस्यमय मालूम होता है। यह सोचकर मैंने उससे पूछा—'कोई हर्ज न समझो तो बताओ।'
'हर्ज तो कोई नहीं है बाबूजी। पर मेरी बात पर लोगों को विश्वास नहीं होता। इक्केवाले बहुधा परले-सिरे के गप्पी समझे जाते हैं इसलिए मैं किसी को अपना हाल सुनाता नहीं।'
'ख़ैर, मैं उन आदमियों में नहीं हूँ, यह तुम विश्वास रखो।'
'अच्छी बात है सुनिए—'
2
'मैं अगरवाला बनिया हूँ। मेरा नाम श्यामलाल है। मेरा जन्म-स्थान मैनपुरी है। मेरे पिता व्यापार करते थे। जिस समय मेरे पिता की मृत्यु हुई, उस समय मेरी उम्र पंद्रह साल की थी। पिता के मरने पर घर-गृहस्थी का सारा भार मेरे ऊपर पड़ा। मैंने एक वर्ष तक काम-काज चलाया पर मुझे व्यापार का अनुभव न था, इस कारण घाटा हुआ और मेरा सब काम बिगड़ गया। अंत को और कोई उपाय न देख मैंने वहीं एक धनी आदमी के यहाँ नौकरी कर ली। उस समय मेरे परिवार में मेरी माता और एक छोटी बहन थी। जिसके यहाँ मैंने नौकरी की थी, वह तो थे मालदार परंतु बड़े कंजूस थे। ऊपर से देखने में वह एक मामूली हैसियत के आदमी दिखाई पड़ते थे, परंतु लोग कहते थे कि उनके पास एक लाख के लगभग नक़द रुपया है। उस समय मैंने लोगों की बात पर विश्वास नहीं किया था क्योंकि घर की हालत देखने से किसी को यह विश्वास नहीं हो सकता था कि उनके पास इतना रुपया होगा। उनकी उम्र चालीस से ऊपर थी। उन्होंने दूसरी शादी की थी और उनकी पत्नी की उम्र बीस वर्ष के लगभग थी। पहली स्त्री से उनके एक लड़का था। वह जवान था और उसका विवाह इत्यादि सब हो चुका था। उसका नाम शिवचरणलाल था। पहले तो वह अपने पिता के पास ही रहता था, परंतु जब पिता ने दूसरा विवाह किया तो वह नाराज़ होकर अपनी स्त्री सहित फ़रुर्ख़ाबाद चला गया। वहाँ उसने एक दुकान कर ली और वहीं रहने लगा।'
'उन दिनों मुझे कसरत करने का बड़ा शौक़ था इसलिए मेरा बदन बहुत अच्छा बना हुआ था। कुछ दिनों पश्चात् मेरी मालकिन मेरी बहुत ख़ातिर करने लगी। ख़ूब मेवा-मिठाई खिलाती थीं और महीने में दस-बीस रूपये नक़द दे देती थी। इस कारण दिन बड़ी अच्छी तरह कटने लगे। मैं मालकिन के ख़ातिर करने का असली मतलब उस समय नहीं समझा। मैंने जो समझा वह यह था कि मेरी सेवा से प्रसन्न होकर तथा मुझे ग़रीब समझकर वह ऐसा करती हैं। आख़िर जब एक दिन उन्होंने मुझे एकांत में बुलाकर छेड़-छाड़ की, तब मेरी आँखें खुली। मुझे आरंभ से ही इन कामों से नफ़रत थी। मैं इन बातों को जानता भी नहीं था। न कभी ऐसी संगति ही में रहा था जिसमें इन बातों का ज्ञान प्राप्त होता। मैं उस समय जो जानता था वह यह था कि आदमी को ख़ूब कसरत करनी चाहिए और स्त्रियों से बचना चाहिए। जब मालकिन ने छेड़-छाड़ की, तो मेरा कलेजा धड़कने लगा। मुझे ऐसा मालूम हुआ, कि वह एक चुड़ैल है और मुझे भक्षण करना चाहती है।'
इक्केवाले की इस बात पर मेरे साथी मनोहरलाल बहुत हँसे। बोले—तुम तो बिल्कुल बुद्धू थे जी!
श्यामलाल बोला—'अब जो समझिए, परंतु बात ऐसी ही थी। ख़ैर, मैं अपना हाथ छुड़ाकर उनके सामने से भाग आया। अब मुझे उनके सामने जाते डर मालूम होने लगा। यही खटका लगा रहता था कि कहीं किसी दिन फिर न पकड़ ले। तीन-चार दिन के बाद वही हुआ। उन्होंने अवसर पाकर फिर मुझे घेरा। उस दिन मैंने उनसे साफ़-साफ़ कह दिया कि यदि वह ऐसी हरकत करेंगी तो मैं मालिक से कह दूँगा। बस उसी दिन से मेरी ख़ातिर बंद हो गई। केवल ख़ातिर बंद रह जाती वहाँ तक ग़नीमत थी; परंतु अब उन्होंने मुझे तंग करना आरंभ कर दिया। बात-बात पर डाँटती थी। कभी मालिक से शिकायत कर देती थी। आख़िर जब एक दिन मालिक ने मुझे मालकिन के कहने से बहुत डाँटा तो मैंने उन्हें अलग ले जाकर कहा—लालाजी, मेरा हिसाब कर दीजिए, मैं अब आपके यहाँ नौकरी नहीं करूँगा। लालाजी लाल-पीली आँखें करके बोले—एक तो क़ुसूर करता है और उस पर हिसाब माँगता है? मुझे भी तैश आ गया। मैंने कहा—क़ुसूर किस ससुरे ने किया है? लालाजी बोले—तो क्या मालकिन झूठ कहती है? मैंने कहा—बिल्कुल झूठ! लालाजी ने कहा—तेरे से उनकी शत्रुता है क्या? मैंने कहा—हाँ शत्रुता है। उन्होंने पूछा—क्यों? मैंने कहा—अब आपसे क्या बताऊँ। आप उसे भी झूठ मानेंगे। इसलिए सबसे अच्छी बात यही है कि मेरा हिसाब कर दीजिए। मेरी बात सुनकर लाला के पेट में खलबली मची। उन्होंने कहा—पहले यह बता कि बात क्या है? मैंने कहा—उसके कहने से कोई फ़ायदा नहीं, आप मेरा हिसाब दे दीजिए। परंतु लाला मेरे पीछे पड़ गए। मैंने विवश होकर सब हाल बता दिया। मुझे भय था कि लाला को मेरी बात पर विश्वास न होगा पर ऐसा नहीं हुआ। लाला ने मेरी पीठ पर हाथ फेरकर कहा—शाबास श्यामलाल, मैं तुम पर बहुत प्रसन्न हूँ। अब तुम आनंद से रहो, तुम्हारी तरफ़ कोई आँख उठाकर नहीं देख सकेगा। बस उस दिन से मैं निर्द्वन्द्व हो गया। अब अधिकतर मैं मालिक के पास बाहर ही रहने लगा, भीतर कम जाता था। उसके पश्चात् भी मालकिन ने मुझे निकलवाने के लिए चेष्टा की पर लाला ने उनकी एक न सुनी। आख़िर वह भी हारकर बैठ रही।'
इस प्रकार एक वर्ष और बीता। इस बीच में लाला के एक रिश्तेदार—जो उनके चचेरे भाई होते थे—बहुत आने-जाने लगे। उनकी उम्र पच्चीस-छब्बीस वर्ष के लगभग होगी। शरीर के मोटे-ताज़े और तंदुरुस्त आदमी थे। पहले तो मुझे उनका आना-जाना कुछ नहीं खटका पर जब उनका आना-जाना हद से अधिक बढ़ गया और मैंने देखा कि वह मालकिन के पास घंटों बैठे रहते हैं तो मुझे संदेह हुआ कि हो न हो दाल में कुछ काला अवश्य है। लालाजी अधिकतर दुकान में रहने के कारण यह बात न जानते थे। घर का कहार भी मालकिन से मिला हुआ मालूम होता था, इसलिए वह भी चुप्पी साधे था। एक मैं ही ऐसा था जिसके द्वारा लाला को यह ख़बर मिल सकती थी। अंत में मैंने इस रहस्य का पता लगाने पर कमर बाँधी और एक दिन अपनी आँखों उनकी पापमयी लीला देखी। बस उसी दिन मैंने लाला को ख़बर कर दी। लाला उस बात को चुपचाप पी गए। आठ-दस रोज़ बाद लाला ने मुझे बुलाकर कहा—श्यामलाल, तेरी बात ठीक निकली, आज मैंने भी देखा। जिस दिन तूने कहा था, उसी दिन से मैं इसकी टोह में था—आज तेरी बात की सत्यता प्रमाणित हो गई। अब बता क्या करना चाहिए? मैंने कहा—मैं क्या बताऊँ, आप जो उचित समझे, करें।'
'लाला ने पूछा—तेरी क्या राय है? मैंने इस उम्र में विवाह करके बड़ी भूल की पर अब इसका उपाय क्या है? मैंने कहा—अपने भाई साहब का आना-जाना बंद कर दीजिए, यही उपाय है और हो ही क्या सकता है? लाला ने सोचकर कहा—हाँ, यही ठीक है। जी में तो आता है कि इस औरत को निकाल बाहर करूँ, पर इसमें बड़ी बदनामी होगी। लोग हँसेंगे कि पहले तो विवाह किया, फिर निकाल दिया।'
'मैंने कहा—हाँ, यह तो आपका कहना ठीक है। बस उनका आना-जाना बंद कर दीजिए, अतएव उसी दिन से यह हुकुम लग गया कि लाला की अनुपस्थिति में बाहर का कोई आदमी—चाहे रिश्तेदार हो, चाहे कोई हो—अंदर न जाने पाए। और यह काम मेरे सुपुर्द किया गया। उस दिन से मैंने उन्हें नहीं धंसने दिया। इस पर उन्होंने मुझे प्रलोभन भी दिए, धमकी भी दी पर मैंने एक न सुनी। मालकिन ने भी बहुत कुछ कहा-सुना, ख़ुशामद की पर मैं ज़रा भी न पसीजा। कहरवा भी बोला—तुमसे क्या मतलब है, जो होता है, होने दो। मैंने उससे कहा—सुनता है बे, तू तो पक्का नमकहराम है, जिसका नामक खाता है उसी के साथ दग़ा करता है। ख़ैरियत इसी में है कि चुप रह नहीं तो तुझे भी निकाल बाहर करूँगा।'
'यह सुनकर कहारराम चुप हो गए।'
'थोड़े दिन बाद लाला के उन रिश्तेदार ने आना-जाना बिल्कुल बंद कर दिया। अब वह लाला के पास भी नहीं आते थे। मैंने भी सोचा, चलो अच्छा हुआ, आँख फूटी पीर गई।'
'इसके छह महीने बाद एक दिन लाला को हैज़ा हो गया मैंने बहुत दौड़-धूप की, इलाज इत्यादि कराया; पर कोई फ़ायदा न हुआ। लाला जी समझ गए कि अंत समय निकट है; अतएव उन्होंने मुझे बुलाकर कहा—श्यामलाल, मैं तुझे अपना नौकर नहीं पुत्र समझता हूँ; इसलिए मैं अपनी कोठरी की ताली तुझे देता हूँ। मेरे मरने पर ताली मेरे लड़के को दे देना और जब तक वह न आ जाए, तब तक किसी को कोठरी न खोलने देना। बस, तुझसे मैं इतनी अंतिम सेवा चाहता हूँ।'
'मैंने कहा—ऐसा ही होगा, चाहे मेरे प्राण ही क्यों न चले जाएँ पर मैं इसमें अंतर न पड़ने दूँगा। इसके पश्चात् उन्होंने मुझे पाँच हज़ार रूपये नक़द दिए और बोले—यह लो, मैं तुम्हें देता हूँ। मैं लेता न था। पर उन्होंने कहा—तू यदि न लेगा तो मुझे दुःख होगा, अतएव मैंने ले लिए। इसके चार घंटे बाद उनका देहांत हो गया। उनके लड़के को उनके मरने के तीन घंटे पहले तार दे दिया गया था। उनके मरने के पाँच घंटे बाद वह मैनपुरी पहुँचा था। उनका देहांत रात को आठ बजे हुआ और वह रात के दो बजे के निकट पहुँचा था। लाला के मरने के बाद उनकी स्त्री ने मुझसे कहा—कोठरी की ताली लाओ। मैंने कहा—ताली तो लाला शिवचरणपाल के हाथ में देने को कह गए हैं, मैं उन्हीं को दूँगा। उन्होंने कहा—अरे मूर्ख, इससे तुझे क्या मिलेगा। कोठरी खोलकर रूपया निकाल ले—मुझे मत दे, तू ले ले, मैं भी तेरे साथ रहूँगी, जहाँ तू चलेगा, तेरे साथ चलूँगी। मैंने कहा—मुझसे न होगा। मैं तुम्हे ले जाकर रखूँगा कहाँ? दूसरे तुम मेरे उस मालिक की स्त्री हो जो मुझे अपने पुत्र के समान मानता था। मुझसे यह न होगा कि तुम्हें अपनी स्त्री बनाकर रखूँ।'
'बाबूजी, एक घंटे तक उसने मुझे समझाया, रोई भी, हाथ भी जोड़े; परंतु मैंने एक न मानी। आख़िर उसने अन्य उपाय न देख अपने देवर अर्थात् उन्हीं को बुलाया, जिनका आना-जाना मैंने बंद कराया था। उन्होंने आते ही बड़ा रुआब झाड़ा। मुझे पुलिस में देने की धमकी दी पर मैं इससे भयभीत न हुआ। तब वह ताला तोड़ने पर आमादा हुए। मैं कोठरी के द्वार पर एक मोटा डंडा लेकर बैठ गया और मैंने उनसे कह दिया कि जो कोई ताला तोड़ने आएगा, पहले मैं उसका सिर तोडूँगा, इसके बाद जो होगा देखा जाएगा। बस फिर उनका साहस न हुआ। इस रगड़े-झगड़े में रात के दो बज गए और शिवचरणलाल आ गए। मैंने उनको ताली दे दी और सब हाल बता दिया।
'बाबूजी, जब कोठरी खोली गई तो उसमें साठ हज़ार रूपये नक़द निकले। इन रुपयों का हाल लाला के अतिरिक्त और किसी को भी मालूम न था। यदि मैं मालकिन की बात मानकर बीस-पच्चीस हज़ार रूपये भी निकाल लेता तो किसी को भी संदेह न होता, पर मेरे मन में इस बात का विचार एक क्षण के लिए भी पैदा न हुआ। मेरी माँ रोज़ रामायण पढ़कर मुझे सुनाया करती थीं और मुझे यही समझाया करती थी कि—बेटा, पाप और बेईमानी से सदा बचना, इससे तुझे कभी दुःख न होगा। उनकी यह बातें मेरे जी में बसी हुई थीं और इसीलिए मैं बच गया। उसके बाद शिवचरणलाल ने भी मुझे एक हज़ार रुपया दिया। साथ ही उन्होंने यह कहा कि तुम मेरे पास रहो; पर लाला के मरने से और जो अनुभव मुझे हुए थे उनके कारण मैंने उनके यहाँ रहना उचित न समझा। लाला की तेरही होने के बाद मैंने उनकी नौकरी छोड़ दी। छ: हज़ार रूपये में से दो हज़ार मैंने अपनी बहन के ब्याह में ख़र्च किए और दो हज़ार अपने ब्याह में ख़र्च किए। एक हज़ार लगाकर एक दुकान की और हज़ार बचाकर रखा; पर दुकान में फिर घाटा हुआ। तब मैंने मैनपुरी छोड़ दी और इधर चला आया। नौकरी करने की इच्छा नहीं थी, इसलिए मैंने इक्का-घोड़ा ख़रीद लिया और किराए पर चलाने लगा—तब से बराबर यही काम कर रहा हूँ। इसमें मुझे खाने-भर को मिल जाता है। अपने आनंद से रहता हूँ, न किसी के लेने में हूँ, न देने में। अब बताइए, वह बाबू कहते थे कि चार आने पैसे के लिए मैं बेईमानी करता हूँ। अब मैं उनसे क्या कहता। यह तो दुनिया है जो जिसकी समझ में आता है कहता है। मैं भी सब सुन लेता हूँ। इक्केवाले बदनाम हैं, इसलिए मुझे भी ये बातें सुननी पड़ती हैं।'
श्यामलाल की आत्मकहानी सुनकर मैं कुछ देर तक स्तब्ध रह बैठा रहा। इसके पश्चात् मैंने कहा—'भाई, तुम तो दर्शनीय आदमी हो, तुम्हारे तो चरण छूने को जी चाहता है।'
श्यामलाल हँसकर बोला—'अजी बाबूजी, क्यों काँटों में घसीटते हो? मेरे चरण और आप छुए—राम! राम! मैं कोई साधू थोड़े ही हूँ।'
मैंने कहा—'और साधु कैसे होते हैं; उनके कोई सुर्खाब का पर तो लगा होता नहीं। सच्चे साधू तो तुम्हीं हो।' यह सुनकर श्यामलाल हँसने लगा।
इसी समय गंगापुर आ गया और हम लोग इक्के से उतरकर अपने निर्दिष्ट स्थान की ओर चल दिए।
रास्ते में मैंने मनोहरलाल से कहा—'इस संसार में अनेकों लाल गुदड़ी में छिपे पड़े हैं। उन्हें कोई जानता तक नहीं।'
मनोहरलाल—'जी हाँ! और नामधारी ढोंगी महात्मा ईश्वर की तरह पूजे जाते हैं।'
बात बहुत पुरानी हो गई है, पता नहीं महात्मा श्यामलाल अब भी जीवित हैं या नहीं, परंतु अब भी जब कभी मुझे उनका स्मरण हो आता है तो ये उनकी काल्पनिक मूर्ति के चरणों में अपना मस्तक नत कर देता हूँ।
station ke bahar mainne apne sathi manoharlal se kaha—koi ikka mil jaye to achchha hai—das meel ka rasta hai
manoharlal bole—aiye, ikke bahut hain us taraf khaड़e hote hain
hum donon chale lagbhag do sau gaz chalne ke pashchat dekha to samne ek baDe wriksh ke niche teen chaar ikke khaड़e dikhai diye ek ikka abhi aaya tha aur us par se do adami apna asbab utar rahe the manoharlal ne pukara—koi ikka gangapur chalega?
ek ikkewala bola—aiye sarkar, main le chalun kai sawari hai?
do sawari—gangapur ka kya loge?
‘jo sab dete hain, wahi aap bhi de dijiyega
‘akhir kuch malum to ho?
do rupae ka nirakh (nirkh) hai
do rupae?—itna adher
isi samay jo log abhi aaye the, unmen aur unke ikkewale mein jhagDa hone laga ikkewala bola—yah achchhi rahi, wahan se DeDh rupaya tay hua, ab yahan bees hi aane dikhate hain!
yatriyon mein se ek bola—hamne pahle hi kah diya tha ki hum bees aane se ek paisa adhik na denge
mainne bhi to kaha tha ki DeDh rupae se ek paisa kam na lunga
kaha hoga, hamne suna hi nahin
han, suna nahin—aisi baat aap kahe ko sunenge
achchha tumhe bees aane milenge—lena ho to lo, nahin apna rasta dekho
ikkewala jo hrisht pusht tatha gaurawarn tha, akaD gaya bola—rasta dekhe, koi adher hai! aise rasta dekhne lage, to bus kamai kar chuke bayen hath se idhar DeDh rupaya rakh dijiye tab aage baDhiyega wahan to bole, achchha jo tumhara ret hoga wo denge, ab yahan kahte hain rasta dekho—achchhe mile!
hum log ye kathopakthan sunkar ikka karna bhool gaye aur unki baten sunne lage ek yatri baDi gambhiratapurwak bola—dekho ji, yadi tum bhalmansi se baten karo to do chaar paise hum adhik de sakte hain, tum gharib adami ho; lekin jo jhagDa karoge to ek paisa na milega
ikkewala kinchit muskrakar bola—do chaar paise! of! of! aap to baDe data malum hote hain jab chaar paise dete ho, to chaar aane hi kyon nahin de dete?
chaar aane hamare pas nahin hain
nahin hai—achchhi baat hai, to jo aapke pas ho wahi de dijiye—n ho na dijiye aur zarurat ho to ekadh rupaya main aapko de sakta hoon
tum bechare kya doge, chaar chaar paise ke liye to tum jhooth bolte ho aur beimani karte ho
‘are babuji, lakhon rupae ke liye to mainne beimani ki nahin—char paise ke liye beimani karunga? beimani karta to is samay ikka na hankata hota khair, aapko jo dena ho de dijiye—nahin jaiye—mainne kiraya bhar paya
unhonne bees aane nikalkar diye, ikkewale ne chupchap le liye
us ikkewale ka akar prakar, uski batachit se mujhe kuch aisa pratit hua ki any ikkewalon ki tarah ye sadharan adami nahin hai ismen kuch wisheshata awashy hai; atew mainne socha ki yadi ho sake to gangapur isi ikke par chalna chahiye ye sochkar mainne usse puchha—kyon bhai gangapur chaloge?
wo bola—han! han! aiye!
kya loge?
wahi DeDh rupaya!
mainne socha any ikkewale to do rupae mangte the, ye DeDh rupaya kahta hai, adami sachcha malum hota hai ye sochkar mainne kaha—achchhi baat hai, chalo DeDh rupaya denge
hum donon sawar hokar chale thoDi door chalne par mainne puchha—we donon kaun the? ikkewale ne kaha—narayan jane kaun the? pardeshi malum hote hain, lekin parle sire ke jhuthe aur beiman! chaar aane ke liye paran taje de rahe the
mainne puchha—to sachmuch tumse DeDh rupaya hi tay hua tha?
aur nahin kya aap jhooth samajhte hain? babuji, ye pesha hi badnam hai, aapka koi qusur nahin ikke, tangewale sada jhuthe aur beiman samjhe jate hain aur hote bhi hain—adhiktar to aise hi hote hain inhen chahen aap rupye ki jagah sawa rupaya dijiye tab bhi santusht nahin hote
mainne puchha—tum kaun jati ho?
main? main to sarkar waishya hoon
achchha! waishya hokar ikka hankte ho?
kyon sarkar, ikka hankna koi bura kaam to hai nahin?
nahin, mera matlab ye nahin hai ki ikka hankna koi bura kaam hai mainne isliye kaha ki waishya to bahudha wyapar karte hain
ye bhi to wyapar hi hai
han, hai to wyapar hi
main man hi man apni is betuki baat par lajjit hua; atew mainne prsang badalne ke liye puchha—kitne dinon se ye kaam karte ho?
do baras ho gaye
iske pahle kya karte the?
ye sunkar ikkewala gambhir hokar bola—kya bataun, kya karta tha?
uski is baat se tatha yatriyon se usne jo baten kahin theen, unka taratamy milakar mainne socha—is wekti ka jiwan rahasyamay malum hota hai ye sochkar mainne usse puchha—koi harj na samjho to batao
harj to koi nahin hai babuji par meri baat par logon ko wishwas nahin hota ikkewale bahudha parle sire ke gappi samjhe jate hain isliye main kisi ko apna haal sunata nahin
khair, main un adamiyon mein nahin hoon, ye tum wishwas rakho
achchhi baat hai suniye—
2
main agarwala baniya hoon mera nam shyamlal hai mera janm sthan mainapuri hai mere pita wyapar karte the jis samay mere pita ki mirtyu hui, us samay meri umr pandrah sal ki thi pita ke marne par ghar grihasthi ka sara bhaar mere upar paDa mainne ek warsh tak kaam kaj chalaya par mujhe wyapar ka anubhaw na tha, is karan ghata hua aur mera sab kaam bigaD gaya ant ko aur koi upay na dekh mainne wahin ek dhani adami ke yahan naukari kar li us samay mere pariwar mein meri mata aur ek chhoti bahan thi jiske yahan mainne naukari ki thi, wo to the maldar parantu baDe kanjus the upar se dekhne mein wo ek mamuli haisiyat ke adami dikhai paDte the, parantu log kahte the ki unke pas ek lakh ke lagbhag naqad rupaya hai us samay mainne logon ki baat par wishwas nahin kiya tha kyonki ghar ki haalat dekhne se kisi ko ye wishwas nahin ho sakta tha ki unke pas itna rupaya hoga unki umr chalis se upar thi unhonne dusri shadi ki thi aur unki patni ki umr bees warsh ke lagbhag thi pahli istri se unke ek laDka tha wo jawan tha aur uska wiwah ityadi sab ho chuka tha uska nam shiwacharanlal tha pahle to wo apne pita ke pas hi rahta tha, parantu jab pita ne dusra wiwah kiya to wo naraz hokar apni istri sahit farurkhabad chala gaya wahan usne ek dukan kar li aur wahin rahne laga
un dinon mujhe kasrat karne ka baDa shauq tha isliye mera badan bahut achchha bana hua tha kuch dinon pashchat meri malkin meri bahut khatir karne lagi khoob mewa mithai khilati theen aur mahine mein das bees rupye naqad de deti thi is karan din baDi achchhi tarah katne lage main malkin ke khatir karne ka asli matlab us samay nahin samjha mainne jo samjha wo ye tha ki meri sewa se prasann hokar tatha mujhe gharib samajhkar wo aisa karti hain akhir jab ek din unhonne mujhe ekant mein bulakar chheD chhaD ki, tab meri ankhen khuli mujhe arambh se hi in kamon se nafar thi main in baton ko janta bhi nahin tha na kabhi aisi sangti hi mein raha tha jismen in baton ka gyan prapt hota main us samay jo janta tha wo ye tha ki adami ko khoob kasrat karni chahiye aur istriyon se bachna chahiye jab malkin ne chheD chhaD ki, to mera kaleja dhaDakne laga mujhe aisa malum hua, ki wo ek chuDail hai aur mujhe bhakshan karna chahti hai
ikkewale ki is baat par mere sathi manoharlal bahut hanse bole—tum to bilkul buddhu the jee!
shyamlal bola—ab jo samjhiye, parantu baat aisi hi thi khair, main apna hath chhuDakar unke samne se bhag aaya ab mujhe unke samne jate Dar malum hone laga yahi khatka laga rahta tha ki kahin kisi din phir na pakaD le teen chaar din ke baad wahi hua unhonne awsar pakar phir mujhe ghera us din mainne unse saf saf kah diya ki yadi wo aisi harkat karengi to main malik se kah dunga bus usi din se meri khatir band ho gai kewal khatir band rah jati wahan tak ghanimat thee; parantu ab unhonne mujhe tang karna arambh kar diya baat baat par Dantti thi kabhi malik se shikayat kar deti thi akhir jab ek din malik ne mujhe malkin ke kahne se bahut Danta to mainne unhen alag le jakar kaha—lalaji, mera hisab kar dijiye, main ab aapke yahan naukari nahin karunga lalaji lal pili ankhen karke bole—ek to qusur karta hai aur us par hisab mangta hai? mujhe bhi taish aa gaya mainne kaha—qusur kis sasure ne kiya hai? lalaji bole—to kya malkin jhooth kahti hai? mainne kaha—bilkul jhooth! lalaji ne kaha—tere se unki shatruta hai kya? mainne kaha—han shatruta hai unhonne puchha—kyon? mainne kaha—ab aapse kya bataun aap use bhi jhooth manenge isliye sabse achchhi baat yahi hai ki mera hisab kar dijiye meri baat sunkar lala ke pet mein khalbali machi unhonne kaha—pahle ye bata ki baat kya hai? mainne kaha—uske kahne se koi fayda nahin, aap mera hisab de dijiye parantu lala mere pichhe paD gaye mainne wiwash hokar sab haal bata diya mujhe bhay tha ki lala ko meri baat par wishwas na hoga par aisa nahin hua lala ne meri peeth par hath pherkar kaha—shabas shyamlal, main tum par bahut prasann hoon ab tum anand se raho, tumhari taraf koi ankh uthakar nahin dekh sakega bus us din se main nirdwandw ho gaya ab adhiktar main malik ke pas bahar hi rahne laga, bhitar kam jata tha uske pashchat bhi malkin ne mujhe nikalwane ke liye cheshta ki par lala ne unki ek na suni akhir wo bhi harkar baith rahi
is prakar ek warsh aur bita is beech mein lala ke ek rishtedar—jo unke chachere bhai hote the—bahut aane jane lage unki umr pachchis chhabbis warsh ke lagbhag hogi sharir ke mote taze aur tandurust adami the pahle to mujhe unka aana jana kuch nahin khatka par jab unka aana jana had se adhik baDh gaya aur mainne dekha ki wo malkin ke pas ghanton baithe rahte hain to mujhe sandeh hua ki ho na ho dal mein kuch kala awashy hai lalaji adhiktar dukan mein rahne ke karan ye baat na jante the ghar ka kahar bhi malkin se mila hua malum hota tha, isliye wo bhi chuppi sadhe tha ek main hi aisa tha jiske dwara lala ko ye khabar mil sakti thi ant mein mainne is rahasy ka pata lagane par kamar bandhi aur ek din apni ankhon unki papamyi lila dekhi bus usi din mainne lala ko khabar kar di lala us baat ko chupchap pi gaye aath das roz baad lala ne mujhe bulakar kaha—shyamlal, teri baat theek nikli, aaj mainne bhi dekha jis din tune kaha tha, usi din se main iski toh mein tha—aj teri baat ki satyata pramanait ho gai ab bata kya karna chahiye? mainne kaha—main kya bataun, aap jo uchit samjhe, karen
lala ne puchha—teri kya ray hai? mainne is umr mein wiwah karke baDi bhool ki par ab iska upay kya hai? mainne kaha—apne bhai sahab ka aana jana band kar dijiye, yahi upay hai aur ho hi kya sakta hai? lala ne sochkar kaha—han, yahi theek hai ji mein to aata hai ki is aurat ko nikal bahar karun, par ismen baDi badnami hogi log hansenge ki pahle to wiwah kiya, phir nikal diya
mainne kaha—han, ye to aapka kahna theek hai bus unka aana jana band kar dijiye, atew usi din se ye hukum lag gaya ki lala ki anupasthiti mein bahar ka koi adami—chahe rishtedar ho, chahe koi ho—andar na jane pae aur ye kaam mere supurd kiya gaya us din se mainne unhen nahin dhansne diya is par unhonne mujhe pralobhan bhi diye, dhamki bhi di par mainne ek na suni malkin ne bhi bahut kuch kaha suna, khushamad ki par main zara bhi na pasija kaharwa bhi bola—tumse kya matlab hai, jo hota hai, hone do mainne usse kaha—sunta hai be, tu to pakka namkahram hai, jiska namak khata hai usi ke sath dagha karta hai khairiyat isi mein hai ki chup rah nahin to tujhe bhi nikal bahar karunga
ye sunkar kaharram chup ho gaye
thoDe din baad lala ke un rishtedar ne aana jana bilkul band kar diya ab wo lala ke pas bhi nahin aate the mainne bhi socha, chalo achchha hua, ankh phuti peer gai
iske chhah mahine baad ek din lala ko haiza ho gaya mainne bahut dauD dhoop ki, ilaj ityadi karaya; par koi fayda na hua lala ji samajh gaye ki ant samay nikat hai; atew unhonne mujhe bulakar kaha—shyamlal, main tujhe apna naukar nahin putr samajhta hoon; isliye main apni kothari ki tali tujhe deta hoon mere marne par tali mere laDke ko de dena aur jab tak wo na aa jaye, tab tak kisi ko kothari na kholne dena bus, tujhse main itni antim sewa chahta hoon
mainne kaha—aisa hi hoga, chahe mere paran hi kyon na chale jayen par main ismen antar na paDne dunga iske pashchat unhonne mujhe panch hazar rupye naqad diye aur bole—yah lo, main tumhein deta hoon main leta na tha par unhonne kaha—tu yadi na lega to mujhe duःkh hoga, atew mainne le liye iske chaar ghante baad unka dehant ho gaya unke laDke ko unke marne ke teen ghante pahle tar de diya gaya tha unke marne ke panch ghante baad wo mainapuri pahuncha tha unka dehant raat ko aath baje hua aur wo raat ke do baje ke nikat pahuncha tha lala ke marne ke baad unki istri ne mujhse kaha—kothari ki tali lao mainne kaha—tali to lala shiwacharanpal ke hath mein dene ko kah gaye hain, main unhin ko dunga unhonne kaha—are moorkh, isse tujhe kya milega kothari kholkar rupya nikal le—mujhe mat de, tu le le, main bhi tere sath rahungi, jahan tu chalega, tere sath chalungi mainne kaha—mujhse na hoga main tumhe le jakar rakhunga kahan? dusre tum mere us malik ki istri ho jo mujhe apne putr ke saman manata tha mujhse ye na hoga ki tumhein apni istri banakar rakhun
babuji, ek ghante tak usne mujhe samjhaya, roi bhi, hath bhi joDe; parantu mainne ek na mani akhir usne any upay na dekh apne dewar arthat unhin ko bulaya, jinka aana jana mainne band karaya tha unhonne aate hi baDa ruab jhaDa mujhe police mein dene ki dhamki di par main isse bhaybhit na hua tab wo tala toDne par amada hue main kothari ke dwar par ek mota DanDa lekar baith gaya aur mainne unse kah diya ki jo koi tala toDne ayega, pahle main uska sir toDunga, iske baad jo hoga dekha jayega bus phir unka sahas na hua is ragDe jhagDe mein raat ke do baj gaye aur shiwacharanlal aa gaye mainne unko tali de di aur sab haal bata diya
babuji, jab kothari kholi gai to usmen sath hazar rupye naqad nikle in rupyon ka haal lala ke atirikt aur kisi ko bhi malum na tha yadi main malkin ki baat mankar bees pachchis hazar rupye bhi nikal leta to kisi ko bhi sandeh na hota, par mere man mein is baat ka wichar ek kshan ke liye bhi paida na hua meri man roz ramayan paDhkar mujhe sunaya karti theen aur mujhe yahi samjhaya karti thi ki—beta, pap aur beimani se sada bachna, isse tujhe kabhi duःkh na hoga unki ye baten mere ji mein basi hui theen aur isiliye main bach gaya uske baad shiwacharanlal ne bhi mujhe ek hazar rupaya diya sath hi unhonne ye kaha ki tum mere pas raho; par lala ke marne se aur jo anubhaw mujhe hue the unke karan mainne unke yahan rahna uchit na samjha lala ki terhi hone ke baad mainne unki naukari chhoD di chhe hazar rupye mein se do hazar mainne apni bahan ke byah mein kharch kiye aur do hazar apne byah mein kharch kiye ek hazar lagakar ek dukan ki aur hazar bachakar rakha; par dukan mein phir ghata hua tab mainne mainapuri chhoD di aur idhar chala aaya naukari karne ki ichha nahin thi, isliye mainne ikka ghoDa kharid liya aur kiraye par chalane laga—tab se barabar yahi kaam kar raha hoon ismen mujhe khane bhar ko mil jata hai apne anand se rahta hoon, na kisi ke lene mein hoon, na dene mein ab bataiye, wo babu kahte the ki chaar aane paise ke liye main beimani karta hoon ab main unse kya kahta ye to duniya hai jo jiski samajh mein aata hai kahta hai main bhi sab sun leta hoon ikkewale badnam hain, isliye mujhe bhi ye baten sunni paDti hain
shyamlal ki atmakhani sunkar main kuch der tak stabdh rah baitha raha iske pashchat mainne kaha—bhai, tum to darshaniy adami ho, tumhare to charn chhune ko ji chahta hai
shyamlal hansakar bola—aji babuji, kyon kanton mein ghasitte ho? mere charn aur aap chhue—ram! ram! main koi sadhu thoDe hi hoon
mainne kaha—aur sadhu kaise hote hain; unke koi surkhab ka par to laga hota nahin sachche sadhu to tumhin ho ye sunkar shyamlal hansne laga
isi samay gangapur aa gaya aur hum log ikke se utarkar apne nirdisht sthan ki or chal diye
raste mein mainne manoharlal se kaha—is sansar mein anekon lal gudDi mein chhipe paDe hain unhen koi janta tak nahin
manoharlal—ji han! aur namadhari Dhongi mahatma ishwar ki tarah puje jate hain
baat bahut purani ho gai hai, pata nahin mahatma shyamlal ab bhi jiwit hain ya nahin, parantu ab bhi jab kabhi mujhe unka smarn ho aata hai to ye unki kalpanik murti ke charnon mein apna mastak nat kar deta hoon
station ke bahar mainne apne sathi manoharlal se kaha—koi ikka mil jaye to achchha hai—das meel ka rasta hai
manoharlal bole—aiye, ikke bahut hain us taraf khaड़e hote hain
hum donon chale lagbhag do sau gaz chalne ke pashchat dekha to samne ek baDe wriksh ke niche teen chaar ikke khaड़e dikhai diye ek ikka abhi aaya tha aur us par se do adami apna asbab utar rahe the manoharlal ne pukara—koi ikka gangapur chalega?
ek ikkewala bola—aiye sarkar, main le chalun kai sawari hai?
do sawari—gangapur ka kya loge?
‘jo sab dete hain, wahi aap bhi de dijiyega
‘akhir kuch malum to ho?
do rupae ka nirakh (nirkh) hai
do rupae?—itna adher
isi samay jo log abhi aaye the, unmen aur unke ikkewale mein jhagDa hone laga ikkewala bola—yah achchhi rahi, wahan se DeDh rupaya tay hua, ab yahan bees hi aane dikhate hain!
yatriyon mein se ek bola—hamne pahle hi kah diya tha ki hum bees aane se ek paisa adhik na denge
mainne bhi to kaha tha ki DeDh rupae se ek paisa kam na lunga
kaha hoga, hamne suna hi nahin
han, suna nahin—aisi baat aap kahe ko sunenge
achchha tumhe bees aane milenge—lena ho to lo, nahin apna rasta dekho
ikkewala jo hrisht pusht tatha gaurawarn tha, akaD gaya bola—rasta dekhe, koi adher hai! aise rasta dekhne lage, to bus kamai kar chuke bayen hath se idhar DeDh rupaya rakh dijiye tab aage baDhiyega wahan to bole, achchha jo tumhara ret hoga wo denge, ab yahan kahte hain rasta dekho—achchhe mile!
hum log ye kathopakthan sunkar ikka karna bhool gaye aur unki baten sunne lage ek yatri baDi gambhiratapurwak bola—dekho ji, yadi tum bhalmansi se baten karo to do chaar paise hum adhik de sakte hain, tum gharib adami ho; lekin jo jhagDa karoge to ek paisa na milega
ikkewala kinchit muskrakar bola—do chaar paise! of! of! aap to baDe data malum hote hain jab chaar paise dete ho, to chaar aane hi kyon nahin de dete?
chaar aane hamare pas nahin hain
nahin hai—achchhi baat hai, to jo aapke pas ho wahi de dijiye—n ho na dijiye aur zarurat ho to ekadh rupaya main aapko de sakta hoon
tum bechare kya doge, chaar chaar paise ke liye to tum jhooth bolte ho aur beimani karte ho
‘are babuji, lakhon rupae ke liye to mainne beimani ki nahin—char paise ke liye beimani karunga? beimani karta to is samay ikka na hankata hota khair, aapko jo dena ho de dijiye—nahin jaiye—mainne kiraya bhar paya
unhonne bees aane nikalkar diye, ikkewale ne chupchap le liye
us ikkewale ka akar prakar, uski batachit se mujhe kuch aisa pratit hua ki any ikkewalon ki tarah ye sadharan adami nahin hai ismen kuch wisheshata awashy hai; atew mainne socha ki yadi ho sake to gangapur isi ikke par chalna chahiye ye sochkar mainne usse puchha—kyon bhai gangapur chaloge?
wo bola—han! han! aiye!
kya loge?
wahi DeDh rupaya!
mainne socha any ikkewale to do rupae mangte the, ye DeDh rupaya kahta hai, adami sachcha malum hota hai ye sochkar mainne kaha—achchhi baat hai, chalo DeDh rupaya denge
hum donon sawar hokar chale thoDi door chalne par mainne puchha—we donon kaun the? ikkewale ne kaha—narayan jane kaun the? pardeshi malum hote hain, lekin parle sire ke jhuthe aur beiman! chaar aane ke liye paran taje de rahe the
mainne puchha—to sachmuch tumse DeDh rupaya hi tay hua tha?
aur nahin kya aap jhooth samajhte hain? babuji, ye pesha hi badnam hai, aapka koi qusur nahin ikke, tangewale sada jhuthe aur beiman samjhe jate hain aur hote bhi hain—adhiktar to aise hi hote hain inhen chahen aap rupye ki jagah sawa rupaya dijiye tab bhi santusht nahin hote
mainne puchha—tum kaun jati ho?
main? main to sarkar waishya hoon
achchha! waishya hokar ikka hankte ho?
kyon sarkar, ikka hankna koi bura kaam to hai nahin?
nahin, mera matlab ye nahin hai ki ikka hankna koi bura kaam hai mainne isliye kaha ki waishya to bahudha wyapar karte hain
ye bhi to wyapar hi hai
han, hai to wyapar hi
main man hi man apni is betuki baat par lajjit hua; atew mainne prsang badalne ke liye puchha—kitne dinon se ye kaam karte ho?
do baras ho gaye
iske pahle kya karte the?
ye sunkar ikkewala gambhir hokar bola—kya bataun, kya karta tha?
uski is baat se tatha yatriyon se usne jo baten kahin theen, unka taratamy milakar mainne socha—is wekti ka jiwan rahasyamay malum hota hai ye sochkar mainne usse puchha—koi harj na samjho to batao
harj to koi nahin hai babuji par meri baat par logon ko wishwas nahin hota ikkewale bahudha parle sire ke gappi samjhe jate hain isliye main kisi ko apna haal sunata nahin
khair, main un adamiyon mein nahin hoon, ye tum wishwas rakho
achchhi baat hai suniye—
2
main agarwala baniya hoon mera nam shyamlal hai mera janm sthan mainapuri hai mere pita wyapar karte the jis samay mere pita ki mirtyu hui, us samay meri umr pandrah sal ki thi pita ke marne par ghar grihasthi ka sara bhaar mere upar paDa mainne ek warsh tak kaam kaj chalaya par mujhe wyapar ka anubhaw na tha, is karan ghata hua aur mera sab kaam bigaD gaya ant ko aur koi upay na dekh mainne wahin ek dhani adami ke yahan naukari kar li us samay mere pariwar mein meri mata aur ek chhoti bahan thi jiske yahan mainne naukari ki thi, wo to the maldar parantu baDe kanjus the upar se dekhne mein wo ek mamuli haisiyat ke adami dikhai paDte the, parantu log kahte the ki unke pas ek lakh ke lagbhag naqad rupaya hai us samay mainne logon ki baat par wishwas nahin kiya tha kyonki ghar ki haalat dekhne se kisi ko ye wishwas nahin ho sakta tha ki unke pas itna rupaya hoga unki umr chalis se upar thi unhonne dusri shadi ki thi aur unki patni ki umr bees warsh ke lagbhag thi pahli istri se unke ek laDka tha wo jawan tha aur uska wiwah ityadi sab ho chuka tha uska nam shiwacharanlal tha pahle to wo apne pita ke pas hi rahta tha, parantu jab pita ne dusra wiwah kiya to wo naraz hokar apni istri sahit farurkhabad chala gaya wahan usne ek dukan kar li aur wahin rahne laga
un dinon mujhe kasrat karne ka baDa shauq tha isliye mera badan bahut achchha bana hua tha kuch dinon pashchat meri malkin meri bahut khatir karne lagi khoob mewa mithai khilati theen aur mahine mein das bees rupye naqad de deti thi is karan din baDi achchhi tarah katne lage main malkin ke khatir karne ka asli matlab us samay nahin samjha mainne jo samjha wo ye tha ki meri sewa se prasann hokar tatha mujhe gharib samajhkar wo aisa karti hain akhir jab ek din unhonne mujhe ekant mein bulakar chheD chhaD ki, tab meri ankhen khuli mujhe arambh se hi in kamon se nafar thi main in baton ko janta bhi nahin tha na kabhi aisi sangti hi mein raha tha jismen in baton ka gyan prapt hota main us samay jo janta tha wo ye tha ki adami ko khoob kasrat karni chahiye aur istriyon se bachna chahiye jab malkin ne chheD chhaD ki, to mera kaleja dhaDakne laga mujhe aisa malum hua, ki wo ek chuDail hai aur mujhe bhakshan karna chahti hai
ikkewale ki is baat par mere sathi manoharlal bahut hanse bole—tum to bilkul buddhu the jee!
shyamlal bola—ab jo samjhiye, parantu baat aisi hi thi khair, main apna hath chhuDakar unke samne se bhag aaya ab mujhe unke samne jate Dar malum hone laga yahi khatka laga rahta tha ki kahin kisi din phir na pakaD le teen chaar din ke baad wahi hua unhonne awsar pakar phir mujhe ghera us din mainne unse saf saf kah diya ki yadi wo aisi harkat karengi to main malik se kah dunga bus usi din se meri khatir band ho gai kewal khatir band rah jati wahan tak ghanimat thee; parantu ab unhonne mujhe tang karna arambh kar diya baat baat par Dantti thi kabhi malik se shikayat kar deti thi akhir jab ek din malik ne mujhe malkin ke kahne se bahut Danta to mainne unhen alag le jakar kaha—lalaji, mera hisab kar dijiye, main ab aapke yahan naukari nahin karunga lalaji lal pili ankhen karke bole—ek to qusur karta hai aur us par hisab mangta hai? mujhe bhi taish aa gaya mainne kaha—qusur kis sasure ne kiya hai? lalaji bole—to kya malkin jhooth kahti hai? mainne kaha—bilkul jhooth! lalaji ne kaha—tere se unki shatruta hai kya? mainne kaha—han shatruta hai unhonne puchha—kyon? mainne kaha—ab aapse kya bataun aap use bhi jhooth manenge isliye sabse achchhi baat yahi hai ki mera hisab kar dijiye meri baat sunkar lala ke pet mein khalbali machi unhonne kaha—pahle ye bata ki baat kya hai? mainne kaha—uske kahne se koi fayda nahin, aap mera hisab de dijiye parantu lala mere pichhe paD gaye mainne wiwash hokar sab haal bata diya mujhe bhay tha ki lala ko meri baat par wishwas na hoga par aisa nahin hua lala ne meri peeth par hath pherkar kaha—shabas shyamlal, main tum par bahut prasann hoon ab tum anand se raho, tumhari taraf koi ankh uthakar nahin dekh sakega bus us din se main nirdwandw ho gaya ab adhiktar main malik ke pas bahar hi rahne laga, bhitar kam jata tha uske pashchat bhi malkin ne mujhe nikalwane ke liye cheshta ki par lala ne unki ek na suni akhir wo bhi harkar baith rahi
is prakar ek warsh aur bita is beech mein lala ke ek rishtedar—jo unke chachere bhai hote the—bahut aane jane lage unki umr pachchis chhabbis warsh ke lagbhag hogi sharir ke mote taze aur tandurust adami the pahle to mujhe unka aana jana kuch nahin khatka par jab unka aana jana had se adhik baDh gaya aur mainne dekha ki wo malkin ke pas ghanton baithe rahte hain to mujhe sandeh hua ki ho na ho dal mein kuch kala awashy hai lalaji adhiktar dukan mein rahne ke karan ye baat na jante the ghar ka kahar bhi malkin se mila hua malum hota tha, isliye wo bhi chuppi sadhe tha ek main hi aisa tha jiske dwara lala ko ye khabar mil sakti thi ant mein mainne is rahasy ka pata lagane par kamar bandhi aur ek din apni ankhon unki papamyi lila dekhi bus usi din mainne lala ko khabar kar di lala us baat ko chupchap pi gaye aath das roz baad lala ne mujhe bulakar kaha—shyamlal, teri baat theek nikli, aaj mainne bhi dekha jis din tune kaha tha, usi din se main iski toh mein tha—aj teri baat ki satyata pramanait ho gai ab bata kya karna chahiye? mainne kaha—main kya bataun, aap jo uchit samjhe, karen
lala ne puchha—teri kya ray hai? mainne is umr mein wiwah karke baDi bhool ki par ab iska upay kya hai? mainne kaha—apne bhai sahab ka aana jana band kar dijiye, yahi upay hai aur ho hi kya sakta hai? lala ne sochkar kaha—han, yahi theek hai ji mein to aata hai ki is aurat ko nikal bahar karun, par ismen baDi badnami hogi log hansenge ki pahle to wiwah kiya, phir nikal diya
mainne kaha—han, ye to aapka kahna theek hai bus unka aana jana band kar dijiye, atew usi din se ye hukum lag gaya ki lala ki anupasthiti mein bahar ka koi adami—chahe rishtedar ho, chahe koi ho—andar na jane pae aur ye kaam mere supurd kiya gaya us din se mainne unhen nahin dhansne diya is par unhonne mujhe pralobhan bhi diye, dhamki bhi di par mainne ek na suni malkin ne bhi bahut kuch kaha suna, khushamad ki par main zara bhi na pasija kaharwa bhi bola—tumse kya matlab hai, jo hota hai, hone do mainne usse kaha—sunta hai be, tu to pakka namkahram hai, jiska namak khata hai usi ke sath dagha karta hai khairiyat isi mein hai ki chup rah nahin to tujhe bhi nikal bahar karunga
ye sunkar kaharram chup ho gaye
thoDe din baad lala ke un rishtedar ne aana jana bilkul band kar diya ab wo lala ke pas bhi nahin aate the mainne bhi socha, chalo achchha hua, ankh phuti peer gai
iske chhah mahine baad ek din lala ko haiza ho gaya mainne bahut dauD dhoop ki, ilaj ityadi karaya; par koi fayda na hua lala ji samajh gaye ki ant samay nikat hai; atew unhonne mujhe bulakar kaha—shyamlal, main tujhe apna naukar nahin putr samajhta hoon; isliye main apni kothari ki tali tujhe deta hoon mere marne par tali mere laDke ko de dena aur jab tak wo na aa jaye, tab tak kisi ko kothari na kholne dena bus, tujhse main itni antim sewa chahta hoon
mainne kaha—aisa hi hoga, chahe mere paran hi kyon na chale jayen par main ismen antar na paDne dunga iske pashchat unhonne mujhe panch hazar rupye naqad diye aur bole—yah lo, main tumhein deta hoon main leta na tha par unhonne kaha—tu yadi na lega to mujhe duःkh hoga, atew mainne le liye iske chaar ghante baad unka dehant ho gaya unke laDke ko unke marne ke teen ghante pahle tar de diya gaya tha unke marne ke panch ghante baad wo mainapuri pahuncha tha unka dehant raat ko aath baje hua aur wo raat ke do baje ke nikat pahuncha tha lala ke marne ke baad unki istri ne mujhse kaha—kothari ki tali lao mainne kaha—tali to lala shiwacharanpal ke hath mein dene ko kah gaye hain, main unhin ko dunga unhonne kaha—are moorkh, isse tujhe kya milega kothari kholkar rupya nikal le—mujhe mat de, tu le le, main bhi tere sath rahungi, jahan tu chalega, tere sath chalungi mainne kaha—mujhse na hoga main tumhe le jakar rakhunga kahan? dusre tum mere us malik ki istri ho jo mujhe apne putr ke saman manata tha mujhse ye na hoga ki tumhein apni istri banakar rakhun
babuji, ek ghante tak usne mujhe samjhaya, roi bhi, hath bhi joDe; parantu mainne ek na mani akhir usne any upay na dekh apne dewar arthat unhin ko bulaya, jinka aana jana mainne band karaya tha unhonne aate hi baDa ruab jhaDa mujhe police mein dene ki dhamki di par main isse bhaybhit na hua tab wo tala toDne par amada hue main kothari ke dwar par ek mota DanDa lekar baith gaya aur mainne unse kah diya ki jo koi tala toDne ayega, pahle main uska sir toDunga, iske baad jo hoga dekha jayega bus phir unka sahas na hua is ragDe jhagDe mein raat ke do baj gaye aur shiwacharanlal aa gaye mainne unko tali de di aur sab haal bata diya
babuji, jab kothari kholi gai to usmen sath hazar rupye naqad nikle in rupyon ka haal lala ke atirikt aur kisi ko bhi malum na tha yadi main malkin ki baat mankar bees pachchis hazar rupye bhi nikal leta to kisi ko bhi sandeh na hota, par mere man mein is baat ka wichar ek kshan ke liye bhi paida na hua meri man roz ramayan paDhkar mujhe sunaya karti theen aur mujhe yahi samjhaya karti thi ki—beta, pap aur beimani se sada bachna, isse tujhe kabhi duःkh na hoga unki ye baten mere ji mein basi hui theen aur isiliye main bach gaya uske baad shiwacharanlal ne bhi mujhe ek hazar rupaya diya sath hi unhonne ye kaha ki tum mere pas raho; par lala ke marne se aur jo anubhaw mujhe hue the unke karan mainne unke yahan rahna uchit na samjha lala ki terhi hone ke baad mainne unki naukari chhoD di chhe hazar rupye mein se do hazar mainne apni bahan ke byah mein kharch kiye aur do hazar apne byah mein kharch kiye ek hazar lagakar ek dukan ki aur hazar bachakar rakha; par dukan mein phir ghata hua tab mainne mainapuri chhoD di aur idhar chala aaya naukari karne ki ichha nahin thi, isliye mainne ikka ghoDa kharid liya aur kiraye par chalane laga—tab se barabar yahi kaam kar raha hoon ismen mujhe khane bhar ko mil jata hai apne anand se rahta hoon, na kisi ke lene mein hoon, na dene mein ab bataiye, wo babu kahte the ki chaar aane paise ke liye main beimani karta hoon ab main unse kya kahta ye to duniya hai jo jiski samajh mein aata hai kahta hai main bhi sab sun leta hoon ikkewale badnam hain, isliye mujhe bhi ye baten sunni paDti hain
shyamlal ki atmakhani sunkar main kuch der tak stabdh rah baitha raha iske pashchat mainne kaha—bhai, tum to darshaniy adami ho, tumhare to charn chhune ko ji chahta hai
shyamlal hansakar bola—aji babuji, kyon kanton mein ghasitte ho? mere charn aur aap chhue—ram! ram! main koi sadhu thoDe hi hoon
mainne kaha—aur sadhu kaise hote hain; unke koi surkhab ka par to laga hota nahin sachche sadhu to tumhin ho ye sunkar shyamlal hansne laga
isi samay gangapur aa gaya aur hum log ikke se utarkar apne nirdisht sthan ki or chal diye
raste mein mainne manoharlal se kaha—is sansar mein anekon lal gudDi mein chhipe paDe hain unhen koi janta tak nahin
manoharlal—ji han! aur namadhari Dhongi mahatma ishwar ki tarah puje jate hain
baat bahut purani ho gai hai, pata nahin mahatma shyamlal ab bhi jiwit hain ya nahin, parantu ab bhi jab kabhi mujhe unka smarn ho aata hai to ye unki kalpanik murti ke charnon mein apna mastak nat kar deta hoon
स्रोत :
पुस्तक : गल्प-संसार-माला, भाग-1 (पृष्ठ 29)
संपादक : श्रीपत राय
रचनाकार : विश्वम्भरनाथ शर्मा 'कौशिक'
प्रकाशन : सरस्वती प्रकाशन, बनारस
संस्करण : 1953
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।