रात के बारह बज रहे हैं। तेगा, सिगू और गनपत दबे पाँव आगे बढ़े जा रहे हैं। वे शहर की उस मुख्य सड़क को पार कर चुके हैं, जो रात-भर चलती रहती है। वे शहर के उन स्थानों और मुहल्लों को लाँघ चुके हैं, जहाँ रात होती ही नहीं—बिजली की दूधिया रोशनी और सरगर्मी बनी ही रहती है। अब वे शहर के पश्चिमी हिस्से की तरफ़ उस मुहल्ले में आ गए हैं, जो शहर का सबसे उपेक्षित मुहल्ला है। वहाँ की गलियों में रोशनी का कोई प्रबंध नहीं। रास्ते ऊबड़-खाबड़, कच्चे-पक्के मकान। बीच-बीच में कुछ झोंपड़ियाँ भी। सीलन-भरी गलियाँ। किनारे की नालियों से आती तीखी दुर्गंध। इस मुहल्ले में शहर के मज़दूर, मेहतर, रिक्शा-चालक तथा छोटी-छोटी नौकरियाँ करने वाले वे लोग रहते हैं, जो शहर के दूसरे मुहल्लों में ऊँचे किराए नहीं दे सकते।
गनपत कल दिन में ही इस मुहल्ले में आया था। उसके साथ हाजी सेठ का एक आदमी भी था। वह गनपत को एक निश्चित जगह दिखाकर एक निश्चित व्यक्ति को पहचनवा चुका है। अब गनपत को क्या करना है, यह हाजी सेठ से उसे मालूम हुआ है। अक्सर इस तरह के कामों में गनपत, तेगा और सिगू को ज़रूर लेता है। दरअसल, सच्चाई तो यह है कि गनपत मोल-भाव करके कामों को तय करता है। योजना बनाता है। लेकिन असल काम तो तेगा और सिगू करते हैं।
गनपत को उस पहचनवाए गए व्यक्ति के बारे में कोई ख़ास जानकारी नहीं, देखने में वह गनपत को एक बहुत ही साधारण व्यक्ति मालूम पड़ा है। हाजी सेठ के यहाँ की बातों से वह यह जान पाया है कि वह व्यक्ति हाजी सेठ के पूरे परिवार के लिए चिंता का कारण बना हुआ है। शायद कहीं हाजी सेठ की कोई नई फ़ैक्टरी बन रही है, जहाँ वह व्यक्ति अड़ंगा डाल रहा है। बात क्या है, स्थिति क्या है, क्यों वह व्यक्ति हाजी सेठ से टकरा रहा है, इन सब बातों की विस्तृत जानकारी गनपत को नहीं है। उसने इन बातों की जानकारी के लिए कोशिश भी नहीं की है। असल में हाजी सेठ के कामों में वह अधिक छानबीन और पूछताछ नहीं करता है। हाजी सेठ जब भी काम कराता है, ऊँची रक़म देता है। इसीलिए गनपत आँख मूँदकर हाजी सेठ का काम पूरा करता है।
अपने साथियों के साथ गनपत तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। लोग सो चुके हैं। घर के दरवाज़े और खिड़कियाँ बंद हैं। रात के सन्नाटे में पूरे मुहल्ले का सूनापन गनपत को अच्छा लगता है। ऐसे में काम बड़ी आसानी से हो जाता है।
गनपत को जब कभी रोशनी और सरगर्मी वाले मुहल्लों में काम करना होता है, तो बड़ी फ़ज़ीहत होती है। एक काम में कभी-कभी पूरा महीना लग जाता है। कितनी साज़िशें और कितने षड्यंत्र उसे रचने पड़ते हैं। लेकिन इन मुहल्लों में तो वह चुटकी बजाकर काम कर लेता है। गनपत को ये मुहल्ले शहर के गाँव जान पड़ते हैं। बिलकुल गाँवों की तरह ही बेरोशन, असुरक्षित और सामर्थ्यहीन!
गनपत अपने साथियों के साथ निश्चित जगह पहुँच जाता है। यहाँ से लगभग दस-बारह क़दम के फ़ासले पर ही वह कोठरी है, जिसमें वह व्यक्ति रड़ता है। अभी वह अकेला है। परिवार साथ में नहीं रखा है। पता नहीं, कुँआरा है या बाल-बच्चे वाला? कहाँ का मूल निवासी है? गनपत को कुछ मालूम नहीं। कहीं का हो, इससे उसको क्या मतलब? काम करेगा। पैसे बनाएगा! दारू पिएगा। माँस खाएगा। हीराबाई के साथ मौज करेगा। और क्या!
गनपत और उसके साथियों को यह देखकर भारी आश्चर्य होता है कि उस कमरे का दरवाज़ा खुला है। लालटेन जल रही है। मेज़-कुर्सी लगी है और वह व्यक्ति कुछ लिखने में तन्मय है। ठीक सामने मेज़ पर रखी लालटेन की रोशनी सीधे-सीधे उस व्यक्ति के चेहरे पर पड़ रही है, जिससे उसका चेहरा साफ़-साफ़ नज़र आ रहा है।
इस पूरे मुहल्ले में जहाँ सभी के दरवाज़े और खिड़कियाँ बंद है, वह व्यक्ति किवाड़ खोलकर लिख रहा है। हाजी सेठ से तकरार मोल लेकर भी उसे तनिक भय नहीं! एक क्षण के लिए गनपत और उसके साथियों का उत्साह बिलकुल ठंडा पड़ जाता है। वे किंकर्तव्यविमूढ़ गली के एक कोने में खड़े चुपचाप उसे देखने लगते हैं। फिर गनपत अपने साथियों को इशारा देकर आगे बढ़ाता है और उस गली की बग़ल में ही एक ढहे हुए पुराने मकान के मलबे के पास छिपकर बैठने की सलाह देता है।
अब गनपत और उसके साथी मलबे के ढेर के पीछे छिपकर उकड़ूँ बैठ जाते हैं और उस व्यक्ति को घूरने लगते हैं। वहाँ से भी वह व्यक्ति साफ़-साफ़ दिखाई पड़ता है। तेगा को लगता है, उस व्यक्ति को उसने कहीं देखा है। शराब के नशे में उसे ठीक-ठीक याद नहीं आ रहा है। फिर भी वह याद करने की कोशिश करने लगता है।
तेगा जब भी इस तरह के कामों में जाता है, शराब ख़ूब छककर पी लेता है। गनपत और सिगू भी पीते हैं। लेकिन उसकी तरह नहीं। तेगा जानता है, अगर वह छककर नहीं पीएगा, तो उससे काम नहीं होगा। ऐसे काम होश-हवास में रहने पर नहीं होते।
गनपत फुसफुसाता है...एक ही साथ तीनों आदमी आगे बढ़कर तेज़ी से कोठरी में घुस चलें। सिगू उस व्यक्ति के दोनों हाथ पकड़ लेगा। मैं उसका मुँह बंद कर दूँगा। तेगा काम कर देगा। लेकिन देखना तेगा, वार सही स्थान पर होना चाहिए। मामला सफ़ाये का है।...
तेगा कहता है, “अभी ठहरो...”
तेगा उस व्यक्ति को याद कर रहा होता है।
“सिगू उस व्यक्ति को देर तक घूरने के बाद फुसफुसाता है, देखने में वह व्यक्ति बहुत भला लग रहा है। पढ़ने-लिखने वाला व्यक्ति है। आख़िर हाजी क्यों उसका सफ़ाया करना चाहता है। मुझे तो वह व्यक्ति ग़लत नहीं लग रहा है।”
गनपत ज़वाब देता है, “अपने को इससे क्या मतलब—वह सही हो या ग़लत? हाजी ने पूरे तीन हज़ार दिए हैं। तीनों को एक-एक हज़ार... कम पैसे नहीं हैं।”
सिगू चुप हो जाता है। गनपत भी चुप है। तेगा कुछ सोच रहा है। नशे के भीतर उमके स्मृति-पटल पर अब वह व्यक्ति उभरने लगा है। परसाल तेगा के गाँव में हैजे की बीमारी फैली थी। तेगा का गाँव इस शहर के बिलकुल पास ही है—सिर्फ़ पाँच किलोमीटर के फ़ासले पर। लेकिन शहर की ओर से उसके गाँव को बचाने की कोई कोशिश नहीं की गई। फिर उसके गाँव की ख़बर सुनकर वह कोठरी वाला व्यक्ति पता नहीं कहाँ से आ गया था। उसके साथ नई उम्र के कुछ लड़के भी थे। उन सबने दौड़-दौड़कर गाँव और शहर को एक कर दिया था। लड़-झगड़कर, शोर मचाकर वे लोग शहर से ढेर सारी दवाइयाँ और कई डॉक्टरों को गाँव तक खींच लाए थे...तेगा का भतीजा मर जाता, अगर वह व्यक्ति समय पर न पहुँचता।
तेगा आँखें फाड़-फाड़कर उस व्यक्ति को निहारने लगता है। यह वही व्यक्ति है। तेगा उसे पूरी तरह पहचान लेता है। कोई कोर-कसर बाक़ी नहीं छोड़ता है। पता नहीं, उसका क्या नाम है? गाँव के लड़के उसको पहचानते हैं। भइया, भइया कहते हैं।
अब तेगा फुसफुसाता है, “गनपत, मैं उस व्यक्ति को पहचानता हूँ। मेरे गाँव में हैजा फैला था, तो उसने लोगों की जान बचाई थी। वह बहुत भला आदमी है। हाजी से कहो, बातचीत करके निबटारा कर ले।”
गनपत तेगा को समझाता है, “हाजी ने तीन हज़ार दिए हैं...आधे से अधिक तो हम लोग ख़र्च कर चुके हैं। उसे क्या लौटाएँगे? कम रुपए नहीं हैं।”
तेगा कहता है, “हाजी से बोल देना, उसका कोई दूसरा काम कर देंगे।”
इससे पहले कि गनपत कुछ और कहता, अचानक नई उम्र के पाँच-सात लड़के गली को लाँघते तेज़ी से आते हैं और उस व्यक्ति की कोठरी में घुस जाते हैं।
गनपत और उसके साथियों को उनकी आवाज़ें साफ़-साफ़ सुनाई देती हैं। वे हाँफ रहे हैं। चेहरे तैशपूर्ण हैं, “भइया! रात दस बजे के आसपास हाजी सेठ का ट्रक ईंटों से लदा आया था। हमने उस ज़मीन में ईंटा नहीं गिरने दिया। हाजी सेठ के आदमियों के साथ हम लोगों की काफ़ी तकरार हुई। वे बग़ल वाले थाने में पुलिस सहायता के लिए पहुँचे। हम भी वहाँ गए। हमने थानेदार से साफ़ कहा, “सर, आप तो जानते हैं, इस ज़मीन में आम गाछ के नीचे वर्षों से इस मुहल्ले के लड़के पढ़ते आ रहे हैं। अब हम लोगों ने चंदा करके इस ज़मीन में बच्चों की पाठशाला बनाने की नींव रखी है। यह ज़मीन हाजी सेठ की नहीं है। म्युनिसिपैलिटी की है। इससे पहले के जो चेयरमैन थे उन्होंने इस ज़मीन में पाठशाला बनाने की अनुमति दी थी। इस नए चेयरमैन से मिलकर हाजी सेठ इस ज़मीन को दख़ल करना चाहते हैं। सर, आपको मालूम होगा, भैया ने नए चेयरमैन के ख़िलाफ़ शहर में जुलूस निकाला था। जब तक कोई निर्णय नहीं हो जाता, आप हाजी सेठ की मदद न करें। नहीं तो भैया थाने के खिलाफ़ भी जुलूस निकालेंगे।” और भैया, जब हमने आप द्वारा जुलूस निकालने की बात कही तो थानेदार ने अपने सिपाहियों को रोक लिया...बस, हमने हाजी सेठ के ट्रक को आगे बढ़वा दिया।
सारी बात सुनकर वह व्यक्ति खड़ा होते हुए बोला, “बहुत ठीक किया तुम लोगों ने। बराबर उस ज़मीन पर तैनात रहना। कल हम सब नगर के कलेक्टर, एस.पी. और म्युनिसिपैलिटी के चेयरमैन से मिलेंगे। इस घटना पर शहर के लोगों में जनमत जगाएँगे। उस ज़मीन में वर्षों से हमारे बच्चे पढ़ते आ रहे हैं। वह ज़मीन हाजी सेठ के बाप की नहीं है।”
वे आपस में यही सब बातें कर रहे थे। गनपत और उसके साथियों के ऊपर उनकी बातों की भयानक प्रतिक्रिया हुई। जिस पुलिस के डर से गनपत और उसके साथी कई-कई महीनों तक के लिए लापता हो जाते हैं, वह पुलिस उस व्यक्ति के नाम से डरती है। वे एक-दूसरे के कानों में फुसफुसाते हैं, “साले हाजी ने हमें ग़लत जगह भेजा है...यहाँ से लौट चलना चाहिए।”
और वे दबे पाँव वहाँ से लौट जाते हैं। जिस रफ़्तार से आए थे, उससे तिगुनी रफ़्तार से वापस जाते हैं। उनसे एक क्षण के लिए भी अब वहाँ नहीं रुका जाता।
सुबह हो गई है। गनपत और उसके साथी हाजी सेठ के कमरे में मौजूद हैं। यह जानकर हाजी सेठ का मन खीझ से भर गया है कि काम नहीं हुआ। हाजी सेठ गनपत को डाँटना चाहते हैं। लेकिन उसके साथियों की उपस्थिति में वे ऐसा नहीं कर पाते हैं। अक्सर काम होने से पहले या काम होने के बाद गनपत अकेले ही आकर हाजी सेठ से बातचीत करता था। लेकिन आज उसके साथी भी आए हैं...इसीलिए हाजी सेठ को लगता है, ज़रूर कोई ख़ास बात है। वे पूछते हैं, “कौन-सा विघ्न उपस्थित हो गया? काम क्यों नहीं हुआ?”
इससे पहले कि गनपत कुछ कहता तेगा बोल उठता है, “सेठजी, वह आदमी ग़लत नहीं है...हम उसे नहीं मारेंगे...आप बातचीत करके निबटारा कर लीजिए, उसका सफ़ाया मत करवाइए।”
तेगा की बात से एक क्षण के लिए हाजी सेठ के होशो-हवास गुम हो जाते हैं। लगता है, जैसे पर्वत की सबसे ऊँची चोटी से एकाएक लुढ़ककर वे नीचे आ गिरे हों। उन्होंने स्वप्न में भी ऐसा नहीं सोचा था कि गनपत और उसके साथी किसी आदमी के सही और ग़लत होने की बात भी कर सकते हैं। वे समझ नहीं पाते हैं। कि उस दुबले-पतले आदमी ने इन लोगों पर ऐसा कौन-सा जादू चला दिया है कि वे इस तरह से बात करने लगे हैं।
हाजी सेठ कुछ क्षणों तक सोचते हैं फिर उन तीनों को लेकर अंदर चल देते हैं। एक भव्य कमरे में उन तीनों को बैठाते हैं। फिर सामने की अलमारी खोल देते हैं। रंग-बिरंगी बोतलें निकल आती हैं। नौकर काजू और कबाब की प्लेटें सजा देते हैं।
गनपत और उसके साथियों को जीवन में इतनी अच्छी शराब कभी नहीं मिली थी। काजू और कबाब भी नहीं। डनलप के गद्दे पर ऊपर-नीचे लहराते हुए गनपत और उसके दोस्त खाने-पीने लगे हैं। अब हाजी सेठ बताना शुरू करते हैं, “वह व्यक्ति बहुत बदमाश है। गंदी बस्तियों के लोगों को बहला-फुसलाकर आंदोलन करवाता है। उन्हें मार खिलवाता है। जेल भिजवाता है। ख़ुद नेता बना हुआ है। नई उम्र के लड़कों को शागिर्दी में कर रखा है। मैंने उससे कहा था, कहो तो तुम्हें कोई नौकरी लगवा दें, यह सब धंधा छोड़ दो, नहीं माना। मैंने उसे रुपयों का भी लालच दिया। दो हज़ार ले लो। चार हज़ार ले लो। पाँच हज़ार ले लो। लेकिन वह तो महात्मा बनता है। सीधे-सीधे रुपया कैसे लेगा?”
सेठ अभी अपनी बात पूरी तरह कह भी नहीं पाते हैं कि तेगा बीच में ही बोल उठता है, “बाक़ी सेठजी, वह आदमी ख़ुद गंदी बस्तियों में ही रहता है। लोगों को ठगता, तो ज़रूर अच्छी जगह रहता। मेरे गाँव में हैजा फैला था, तो उसने लोगों की जान बचाई थी। किसी से कुछ माँगा भी नहीं था।”
“तुम नहीं समझोगे तेगा...वैसे लोगों को समझने में तुम्हें देर लगेगी...आख़िर मैं तुमसे ही पूछता हूँ, वह ऐसा क्यों करता है। मैं कुछ करता हूँ, धन-दौलत के लिए। दुनिया का हर आदमी धन-दौलत पाने के लिए ही कुछ कर रहा है। फिर वह ऐसे ही क्यों कुछ करेगा? बहुत बड़ा राज़ है। तुम नहीं समझोगे।”
तेगा चुप हो जाता है। सेठजी उसे निरुत्तरित कर देते हैं। अब उसे कुछ भी समझ में नहीं आता है। फिर भी वह कहता है, “ठीक है सेठजी, लेकिन उस आदमी का सफ़ाया मत करवाइए...समझा-बुझाकर रास्ते से हटा दीजिए।”
“मैं सबकुछ करके देख चुका हूँ तेगा। अंत में यह निर्णय किया है। तुम समझाकर देख लो। तुम्हारी सब बातें वह मान जाएगा। लेकिन जब असल बात पर आओगे तो तुम्हारी एक नहीं सुनेगा।” हाजी सेठ देर तक उस व्यक्ति को बदमाश, ग़लत और ओछा साबित करने लगते हैं। धीरे-धीरे तेगा और उसके साथियों पर शराब की खुमारी छाने लगी है। उनके अंदर की हिंसक प्रवृत्तियाँ जागने लगती हैं। उनके चेहरे के बदलते भावों को पढ़कर हाज़ी सेठ को ख़ुशी होती है कि उनकी बात उन पर असर करने लगी है। अब वे अपनी दूसरी आलमारी खोलते हैं। हरे, पीले नोटों की गड्डियाँ सामने आ जाती हैं। वे बोलते है, “गनपत, पिछली दफ़ा तीन हज़ार रुपए दिए थे न?”
“हाँ।”
“लो ये और छह हज़ार रुपए! आज रात काम हो जाना चाहिए।”
गनपत और उसके साथियों को एक मुश्त इतनी बड़ी राशि कभी नहीं मिली थी। वे नोटों को छिपाकर रखने लगते हैं। फिर चल देते है। शराब का नशा अपने पूरे रंग में खिल चुका है। शराब भी इतनी उम्दा हो सकती है, उन्होंने पहले कभी नहीं सोचा था।
दूसरी रात गनपत और उसके साथी पुनः उसी जगह पर पहुँच आए हैं। मलबे के ढेर के पीछे से छिपकर वे कल की ही भाँति देखते हैं। लेकिन आज दरवाज़ा बंद है। ग़ौर करने पर पाते हैं, दरवाज़ा भीतर से नहीं, बाहर से बंद है। ताला लटके रहा है। उन्हें लगता है, वह व्यक्ति कही चला गया है। सिगू कहता है, “आज ‘जतरा’ ठीक नहीं है। वह आदमी कहीं चला गया। शायद उसे मालूम हो गया।”
गनपत कहता है, “नहीं...मालूम कैसे होगा? हम तीनों के सिवाय और कोई थोड़े ही जानता है। हाजी सेठ की बात किसी को मालूम नहीं होती। वह आदमी आता ही होगा। कल भी तो इतनी रात गए तक पढ़ रहा था।”
तेगा नशे में जम्हाइयाँ लेता रहता है। कुछ क्षण बीत जाने के बाद तेगा कहता है, “गनपत, उस आदमी पर शुरू में वार नहीं किया जाएगा। उसे समझाया जाएगा। रुपयों का लालच दिया जाएगा। वह हत्या करने लायक़ आदमी नहीं है।”
गनपत और सिगू, तेगा को समझाते हैं, चाहे जैसे भी हो, आज काम निबटाना ही होगा। हाजी ने जितने रुपए दिए हैं, उतने कोई और नहीं दे सकता।
तेगा कहता है, “ठीक है। लेकिन मैं उस आदमी को धोखे से नहीं मारूँगा। उसे समझाऊँगा। अपनी बात मनवाऊँगा। नहीं मानेगा, लड़ाई-झगड़ा करने पर उतारू हो जाएगा, तब उसे मारूँगा।”
गनपत को तेगा की यह योजना बिलकुल नई लगती है। इस तरह से तो उन्होंने कभी कोई काम नहीं किया है। लेकिन सिगू, तेगा की बात से सहमत है। गनपत चाहकर भी कुछ बोल नहीं पाता है। जानता है, बिना तेगा के वह कुछ भी नहीं कर सकता है।
रात लगभग एक बजे के आसपास वह व्यक्ति आता है। ताला खोलकर अंदर घुसता है। लालटेन जलाता है। कपड़े बदलता है। फिर एक लोटे में पानी लेकर बाहर निकलता है। हाथ-मुँह धोता है। कुल्ला करता है। फिर अंदर चला जाता है।
अब तेगा, सिगू और गनपत मलबे के ढेर के पीछे से उठकर चल देते हैं। ऐसे कामों में तेगा हमेशा चुपके मे जाता था और शंकित दृष्टि मे अगल-बग़ल ताकता रहता था। लेकिन इस बार वह बिलकुल निर्भीक होकर जा रहा है। लग ही नहीं रहा है कि वह किसी का सफ़ाया करने जा रहा है।
दरवाज़े पर पहुँचकर अंदर बैठे उस व्यक्ति को संबोधित करते हुए तेगा कहता है, “भाई साहब, हम लोग आपसे कुछ बात करने आए हैं।”
तेगा और उसके साथियों को लगता है कि यह सुनकर वह व्यक्ति डर जाएगा, क्योंकि इतनी रात गए बिलकुल अपरिचित लोगों का आना तो ठीक नहीं। लेकिन वह व्यक्ति तनिक भी डरता नहीं है। कहता है, “आप लोग अंदर आ जाइए।”
तेगा और उसके साथी अंदर घुस जाते हैं। कमरा बहुत ही छोटा है। एक मेज़ और एक कुर्सी के अतिरिक्त बैठने-सोने के लिए और कुछ नहीं है। उस कमरे के आधे हिस्से में किताबें रखी हैं। तेगा और उसके साथियों ने किसी एक व्यक्ति के पास इतनी किताबें पहले कभी नहीं देखी थीं। वे हैरत से पहाड़ की तरह लगी किताबों के ढेर को देखते रहते हैं। किताबों के पास ही कमरे के शेष भाग में ज़मीन पर एक चटाई बिछी हुई है। चटाई पर एक दरी है। शायद वह व्यक्ति इसी पर सोता है।
तेगा और उसके साथियों को वह व्यक्ति दरी पर बैठने का संकेत करता है। वे तीनों दरी पर बैठ जाते हैं। वह व्यक्ति भी कुर्सी से उतरकर उन तीनों के पास ही दरी पर आ जाता है। तेगा कहता है, “क्यों...आप कुर्सी पर बैठिए।”
वह व्यक्ति जवाब देता है, “आप लोग उम्र में मुझसे बड़े हैं। मेरे बड़े भाई के बराबर हैं। आप लोगों के सामने मैं कुर्सी पर नहीं बैठूँगा। हम यहीं ज़मीन पर साथ-साथ बैठेंगे।”
उस व्यक्ति की पहली बात तो तेगा के अंदर कहीं बहुत गहरे तक उतर जाती है। वह उस व्यक्ति के चेहरे को टकटकी लगाए देखने लगता है। गनपत और सिगू भी देखने लगते हैं। अचानक सिगू उस व्यक्ति को पहचान जाता है। एक डकैती के मामले में सिगू जेल गया था। वहाँ पहुँचने पर सिगू को वह व्यक्ति दिखा था। शायद पहले से ही वह जेल में था। लेकिन उसे अलग वार्ड मिला था। जेल में भी लोग उसकी इज्ज़त करते थे। क़ैदियों पर होने वाले ज़ुल्म के खिलाफ़ वह जेल में भी आंदोलन करता था। उस व्यक्ति को पहचान लेने के बाद सिगू का मन उसके प्रति श्रद्धा से भर जाता है। सिगू को याद है, जेल में वह उस व्यक्ति को देवता समझता था। सिगू मन ही मन तय कर लेता है, चाहे जो हो, इस व्यक्ति पर वह किसी को हाथ नहीं उठाने देगा।
वह व्यक्ति पूछता है, “कहिए, आप लोगों का कैसे आगमन हुआ?”
“सिगू गनपत की ओर ताकता है, गनपत तेगा की ओर। एक क्षण तक उनमें से कोई नहीं बोल पाता है। भीमपट्टी मुहल्ले में हाजी सेठ कोई कारख़ाना बनाना चाह रहे हैं। लेकिन आप उसे बनने नहीं दे रहे हैं।”
इससे पहले कि तेगा कुछ और कहता, वह व्यक्ति बीच में ही बोल पड़ता है, “नहीं...ग़लत बात है। यह आरोप सिर्फ़ मेरे अकेले पर नहीं होना चाहिए। मैं कहता हूँ, आप लोगों ने रोक रखा है। मैं उस ज़मीन में अपना घर बनाने के लिए हाजी सेठ से नहीं लड़ रहा हूँ। उस ज़मीन में आपके, मेरे बच्चे पढ़ेंगे। आप जानते हैं, वह मुहल्ला इस मुहल्ले से भी गया-गुज़रा है। उस मुहल्ले में शहर की कोई सुविधा नहीं। अगर उम ज़मीन को हाजी सेठ दख़ल कर लेंगे तो फिर उस मुहल्ले में बच्चों के पढ़ने की कोई जगह नहीं रहेगी। शहर के दूर पड़ने वाले और महँगे स्कूलों में उस मुहल्ले के बच्चे कैसे पढ़ने जाएँगे? मैं जानता हूँ, आप लोग वैसे ही मुहल्लों के वासी हैं। हाजी सेठ के मुहल्ले में आप लोगों के घर नहीं हैं। हाजी सेठ आपके अपने हाथों से आपके घर को उजड़वाना चाहता है। सोचिए, उस मुहल्ले के बच्चे आख़िर कहाँ पढ़ेंगे? हाजी सेठ का लड़का विदेश में पढ़ता है। उनके जैसे लोगों के लिए शहर में रोज़ नए-नए स्कूल खुल रहे हैं। हम पर और आप पर कौन ध्यान दे रहा है? ग़रीबी, भुखमरी और बीमारी से हम मर रहे हैं। हमारे मुहल्ले के लोग पशुओं की ज़िंदगी जी रहे हैं। हाजी सेठ जैसे लोग कभी हमें इंसान की तरह नहीं जीने देंगे। हाजी सेठ आज उस स्कूल वाली ज़मीन को हड़प रहे हैं। कल हमारे और आपके घरों को उजड़वाएँगे। वहाँ अपने बँगले बनवाएँगे। तब हम भिखारी बन जाएँगे। सड़क के किनारे हमारा जीना-मरना होगा। आप लोगों ने स्टेशन के पास के कराहते-तड़पते भिखमंगों को ज़रुर देखा होगा। वे हाजी सेठ जैसे परिवारों के नहीं, हमारे और आप जैसे परिवारों के हैं। मैं शपथ खाकर कहता हूँ, अगर आप लोग उस ज़मीन में स्कूल नहीं बनने देना चाह रहे हैं तो नहीं बनेगा। मैं कौन होता हूँ बीच में बोलने वाला। आप लोग उसे मुहल्ले में जाकर पूछ लीजिए, उस मुहल्ले का बच्चा-बच्चा तैयार है कि यह ज़मीन हाजी सेठ को नहीं हड़पने देंगे। मैं अभी वहीं से आ रहा हूँ। कल सुबह फिर वहाँ एक आम सभा है। आप लोग जाकर देख लीजिए, आपके अपने बच्चे हैं, जो वहाँ सीना तानकर खड़े हैं। क्या मजाल कि हाजी सेठ उस ज़मीन पर पहुँच जाएँ।”
वह व्यक्ति खड़ा हो जाता है। बोलते-बोलते उसका चेहरा लाल हो गया है। कमरे में धीरे-धीरे टहलते हुए वह बोलता जाता है, “हाजी सेठ मूर्ख हैं। मुझे पता चला है कि वे मेरा सफ़ाया कराना चाहते हैं। वे जानते हैं, मेरे बाद उन्हें कोई नहीं रोकेगा। लेकिन उन्हें नहीं मालूम, सारा मुहल्ला जाग उठा है। वे कितने लोगों का सफ़ाया करवाएँगे? मैं तो चाहता हूँ कि हाजी सेठ मुझे मरवा दें। आख़िर तो हमको, आपको, सबको एक दिन मरना ही है।”
वह व्यक्ति देर तक बोलता ही रहता है; तेगा, सिगू और गनपत माथा झुकाए सुनते रहते हैं। उस व्यक्ति की बातों से वे एक अजीब-सी दुनिया में पहुँच आए हैं। आदमी ऐसे भी होते हैं, उन्हें पता नहीं था। उनके पास तो हाज़ी सेठ वाली व्याख्या थी कि हर आदमी धन-दौलत के लिए ही कुछ करता है, लेकिन उस व्यक्ति की व्याख्या कुछ और ही थी। तेगा को मन ही मन कुछ अफ़सोस हो रहा था कि वह क्यों आया? साला हाजी उनसे उनके अपने आदमी को मरवा रहा है। सिगू की आँखें छलछला आई थीं। काश! वह पहले जानता होता! गनपत को लग रहा था, अब काम नहीं होगा। हाजी को रुपए लौटाने होंगे, इतने सारे रुपए।
वह व्यक्ति पूछता है, “आप लोग चुप क्यों हैं? कुछ बोलिए। जब तक आप कुछ कहेंगे नहीं, मैं कल से उस ज़मीन पर नहीं जाऊँगा।”
तेगा माथा उठाता है। जीवन में पहले कभी उसकी आँखों में आँसू नहीं आए थे, लेकिन आज ये आँसू अचानक कहाँ से आ गए हैं? तेगा भर्राई हुई आवाज़ में कहता है, “हमें माफ़ कर दीजिए। हमें कुछ मालूम नहीं था। अज्ञानवश हम यहाँ चले आए हैं।”
सिगू अब अपने को रोक नहीं पाता है। अपनी आँखें पोंछने लगता है। पहली दफ़ा गनपत भी आर्द्र हो उठता है। वह व्यक्ति बारी-बारी से उन सबको गले से लगाता है।
अब तक रात के लगभग तीन बज चुके होते हैं। वह व्यक्ति कहता है, “मैंने अभी तक कुछ खाया नहीं। आप लोगों ने भी तो नहीं खाया होगा। मेरा खाना रखा है। बाँट-बाँटकर हम सभी खाएँगे।”
और तेगा तथा उसके साथियों के लाख मना करने के बावजूद वह व्यक्ति कमरे के एक कोने में ढके अपने खाने को सामने लाता है। दिन की बनाई हुई छह रोटियाँ, जो सूख गई हैं। काग़ज़ की पोटली में थोड़ा नमक, एक हरी मिर्च और प्याज़ का एक टुकड़ा।
वह व्यक्ति खाना बीच में रख देता है और उनके हाथ पकड़कर विनयपूर्वक खाने का आग्रह करता है। वे सब खाने लगते हैं। खाते हुए सोचते रहते हैं, हाजी कितना झूठा है। बोल रहा था, वह व्यक्ति गंदी बस्तियों के लोगों को फुसलाकर अपना मक़सद साधता है। मज़े मार रहा है। साला हाजी बेईमान! दग़ाबाज़!
खाना खा चुकने के बाद वह व्यक्ति सबसे आग्रह करता है कि वे इस समय और कहीं न जाएँ। चुपचाप यहीं सो रहें। सुबह जाएँगे।
वह व्यक्ति और वे तीनों ज़मीन पर बिछाई गई चटाई और दरी को अलग-अलग कर उस पर सो रहते हैं। लालटेन बुझा दी जाती है। कोई किसी से कुछ नहीं बोलता है। लेकिन हरेक के अंतर में वार्तालाप चलता रहता है। वे आँखें मूँदे इस नई वास्तविकता में साक्षात्कार करते रहते हैं।
सुबह, एकदम तड़के ही वे तीनों उस व्यक्ति को सोए छोड़ वहाँ से चल देते हैं। उस मुहल्ले को लाँघकर वे मुख्य सड़क पर आ जाते हैं। अपने मकान की बालकनी में टहलता हाजी उन्हें दूर से ही दिखाई पड़ने लगता है। परिणाम जानने के लिए वह उन्हीं का रास्ता देख रहा है। वे तीनों सीधे हाजी सेठ के पास पहुँचते हैं। उनके चेहरे को देखते ही हाजी सेठ को लगता है, आज फिर काम नहीं हुआ। इससे पहले कि हाजी सेठ कुछ बोलते, तेगा हाजी सेठ के दिए नोटों को उसके ऊपर फेंकते हुए कहता है, “हाजी सेठ! मैं तुमको चेतावनी देने आया हूँ। अगर उस आदमी को कुछ हो गया तो मैं तुझे ज़िंदा नहीं छोड़ूँगा।”
हाजी सेठ चौंकते हुए पूछते हैं, “क्या बात है? क्या हुआ?”
लेकिन वे तीनों वहाँ से चल देते हैं। कोई जवाब नहीं देता। हाजी सेठ पुकारते हैं, ज़रा रुको तो। मेरा सामान तो दे दो।”
लेकिन उनमें से कोई नहीं ठहरता। गनपत भी नहीं। हाजी सेठ की चिंता और परेशानी एकाएक बढ़ जाती है। उन्होंने अपना विदेशी रिवॉल्वर काम करने के लिए इन्हें दिया था। इनके देशी हथियारों पर उन्हें विश्वास नहीं। लेकिन यह क्या? उनका हथियार लौटाए बिना सब चले जा रहे हैं।
हाजी सेठ की समझ में नहीं आ रहा है कि यह सब कैसे हो रहा है? उनका वार कभी ख़ाली नहीं जाता था। इस काम के लिए उन्होंने सबसे अधिक रुपए फेंके थे। वह आदमी कैसा है? उसने कौन-सा तीर चला दिया है? आज उनका अपना एक हथियार भी ग़ायब हो गया। अचानक आज यह सब क्या हो रहा है?
हाजी सेठ चिंता और परेशानी में डूबते-उतरते अपनी बालकनी में टहलते रहते हैं। ठीक उसी समय वह व्यक्ति उनकी ओर आता हुआ दिखाई पड़ता है। वे ग़ौर से उस व्यक्ति को देखने लगते हैं। वह हाजी सेठ की ओर ही आ रहा है। हाजी सेठ के पास आकर वह अपने झोले से हाजी सेठ का रिवॉल्वर निकालता है और उन्हें सौंपते हुए कहता है, “सेठजी, आपका हथियार आपके आदमी मेरे यहाँ छोड़ आए हैं। सोचा, आपको वापस कर दूँ।”
सेठ अपना रिवॉल्वर ले लेता है। लेकिन सुबह के सर्द मौसम में भी उसके चेहरे पर पसीने की बूँदें चुहचुहा आती हैं। उसके हाथ काँपने-से लगते हैं। वह रिवॉल्वर सँभाल नहीं पाता है। पास ही रखी कुर्सी पर रख देता है।
वह व्यक्ति वहाँ से चलने को होता है कि सेठ के मुँह से बोल फूट पड़ते हैं, “क्षमा कीजिएगा, मैं शर्मिंदा हूँ। आइए, ज़रा चाय पी लीजिए।”
वह व्यक्ति आगे बढ़ते हुए कहता है, “मेरे पास समय नहीं सेठ जी, उस ज़मीन में आज लोगों की आम सभा है। मैं वहीं जा रहा हूँ।”
सेठ कहता है, “ज़रा एक मिनट सुनिए तो। उस ज़मीन में अब कोई आम सभा मत करवाइए। मैंने फ़ैसला कर लिया है कि अब उस ज़मीन पर मैं नहीं जाऊँगा। अपनी ग़लती के लिए मुझे बहुत अफ़सोस है।”
यह व्यक्ति पलटकर सेठ की ओर देखता है। सेठ सिर से पाँव तक पसीने से भीग गया है। वह फटी-फटी आँखों से उस व्यक्ति को देख रहा है, जिस व्यक्ति को वह एक निहायत तुच्छ और हल्का आदमी समझता था। उस व्यक्ति को चुटकियों में मसलकर ख़त्म कर देने की सामर्थ्य सेठ अपने अंदर रखता था, लेकिन आज उस आदमी के सामने सेठ को अपनी अट्टालिका और अपना व्यक्तित्व बहुत बौना मालूम पड़ने लगता है। सेठ किसी अज्ञात भय से काँपने-सा लगता है। सेठ की हालत देख उस व्यक्ति के होठों पर मुस्कान की एक हल्की रेखा उभर आती है।
raat ke barah baj rahe hain tega, sigu aur ganpat dabe panw aage baDhe ja rahe hain we shahr ki us mukhy saDak ko par kar chuke hain, jo raat bhar chalti rahti hai we shahr ke un sthanon aur muhallon ko langh chuke hain, jahan raat hoti hi nahin—bijli ki dudhiya roshni aur sargarmi bani hi rahti hai ab we shahr ke pashchimi hisse ki taraf us muhalle mein aa gaye hain, jo shahr ka sabse upekshait muhalla hai wahan ki galiyon mein roshni ka koi prbandh nahin raste ubaD khabaD, kachche pakke makan beech beech mein kuch jhompaDiyan bhi silan bhari galiyan kinare ki naliyon se aati tikhi durgandh is muhalle mein shahr ke mazdur, mehtar, rickshaw chalak tatha chhoti chhoti naukariyan karne wale we log rahte hain, jo shahr ke dusre muhallon mein unche kiraye nahin de sakte
ganpat kal din mein hi is muhalle mein aaya tha uske sath haji seth ka ek adami bhi tha wo ganpat ko ek nishchit jagah dikhakar ek nishchit wekti ko pahachanwa chuka hai ab ganpat ko kya karna hai, ye haji seth se use malum hua hai aksar is tarah ke kamon mein ganpat, tega aur sigu ko zarur leta hai darasal, sachchai to ye hai ki ganpat mol bhaw karke kamon ko tay karta hai yojna banata hai lekin asal kaam to tega aur sigu karte hain
ganpat ko us pahachanwaye gaye wekti ke bare mein koi khas jankari nahin, dekhne mein wo ganpat ko ek bahut hi sadharan wekti malum paDa hai haji seth ke yahan ki baton se wo ye jaan paya hai ki wo wekti haji seth ke pure pariwar ke liye chinta ka karan bana hua hai shayad kahin haji seth ki koi nai phaiktri ban rahi hai, jahan wo wekti aDanga Dal raha hai baat kya hai, sthiti kya hai, kyon wo wekti haji seth se takra raha hai, in sab baton ki wistrit jankari ganpat ko nahin hai usne in baton ki jankari ke liye koshish bhi nahin ki hai asal mein haji seth ke kamon mein wo adhik chhanabin aur puchhatachh nahin karta hai haji seth jab bhi kaam karata hai, unchi raqam deta hai isiliye ganpat ankh mundakar haji seth ka kaam pura karta hai
apne sathiyon ke sath ganpat tezi se aage baDh raha hai log so chuke hain ghar ke darwaze aur khiDkiyan band hain raat ke sannate mein pure muhalle ka sunapan ganpat ko achchha lagta hai aise mein kaam baDi asani se ho jata hai
ganpat ko jab kabhi roshni aur sargarmi wale muhallon mein kaam karna hota hai, to baDi fazihat hoti hai ek kaam mein kabhi kabhi pura mahina lag jata hai kitni sazishen aur kitne shaDyantr use rachne paDte hain lekin in muhallon mein to wo chutki bajakar kaam kar leta hai ganpat ko ye muhalle shahr ke ganw jaan paDte hain bilkul ganwon ki tarah hi beroshan, asurakshait aur samarthyhin!
ganpat apne sathiyon ke sath nishchit jagah pahunch jata hai yahan se lagbhag das barah qadam ke fasle par hi wo kothari hai, jismen wo wekti raDta hai abhi wo akela hai pariwar sath mein nahin rakha hai pata nahin, kunara hai ya baal bachche wala? kahan ka mool niwasi hai? ganpat ko kuch malum nahin kahin ka ho, isse usko kya matlab? kaam karega paise banayega! daru piyega mans khayega hirabai ke sath mauj karega aur kya!
ganpat aur uske sathiyon ko ye dekhkar bhari ashchary hota hai ki us kamre ka darwaza khula hai lalten jal rahi hai mez kursi lagi hai aur wo wekti kuch likhne mein tanmay hai theek samne mez par rakhi lalten ki roshni sidhe sidhe us wekti ke chehre par paD rahi hai, jisse uska chehra saf saf nazar aa raha hai
is pure muhalle mein jahan sabhi ke darwaze aur khiDkiyan band hai, wo wekti kiwaD kholkar likh raha hai haji seth se takrar mol lekar bhi use tanik bhay nahin! ek kshan ke liye ganpat aur uske sathiyon ka utsah bilkul thanDa paD jata hai we kinkartawyawimuDh gali ke ek kone mein khaDe chupchap use dekhne lagte hain phir ganpat apne sathiyon ko ishara dekar aage baDhata hai aur us gali ki baghal mein hi ek Dhahe hue purane makan ke malbe ke pas chhipkar baithne ki salah deta hai
ab ganpat aur uske sathi malbe ke Dher ke pichhe chhipkar ukDun baith jate hain aur us wekti ko ghurne lagte hain wahan se bhi wo wekti saf saf dikhai paDta hai tega ko lagta hai, us wekti ko usne kahin dekha hai sharab ke nashe mein use theek theek yaad nahin aa raha hai phir bhi wo yaad karne ki koshish karne lagta hai
tega jab bhi is tarah ke kamon mein jata hai, sharab khoob chhakkar pi leta hai ganpat aur sigu bhi pite hain lekin uski tarah nahin tega janta hai, agar wo chhakkar nahin piyega, to usse kaam nahin hoga aise kaam hosh hawas mein rahne par nahin hote
ganpat phusaphusata hai ek hi sath tinon adami aage baDhkar tezi se kothari mein ghus chalen sigu us wekti ke donon hath pakaD lega main uska munh band kar dunga tega kaam kar dega lekin dekhana tega, war sahi sthan par hona chahiye mamla safaye ka hai
tega kahta hai, “abhi thahro ”
tega us wekti ko yaad kar raha hota hai
sigu us wekti ko der tak ghurne ke baad phusaphusata hai, dekhne mein wo wekti bahut bhala lag raha hai paDhne likhne wala wekti hai akhir haji kyon uska safaya karna chahta hai mujhe to wo wekti galat nahin lag raha hai ”
ganpat zawab deta hai, “apne ko isse kya matlab—wah sahi ho ya ghalat? haji ne pure teen hazar diye hain tinon ko ek ek hazar ” kam paise nahin hain ”
sigu chup ho jata hai ganpat bhi chup hai tega kuch soch raha hai nashe ke bhitar umke smriti patal par ab wo wekti ubharne laga hai parsal tega ke ganw mein haije ki bimari phaili thi tega ka ganw is shahr ke bilkul pas hi hai—sirf panch kilomitar ke fasle par lekin shahr ki or se uske ganw ko bachane ki koi koshish nahin ki gai phir uske ganw ki khabar sunkar wo kothari wala wekti pata nahin kahan se aa gaya tha uske sath nai umr ke kuch laDke bhi the un sabne dauD dauDkar ganw aur shahr ko ek kar diya tha laD jhagaDkar, shor machakar we log shahr se Dher sari dawaiyan aur kai Dauktron ko ganw tak kheench laye the tega ka bhatija mar jata, agar wo wekti samay par na pahunchta
tega ankhen phaD phaDkar us wekti ko niharne lagta hai ye wahi wekti hai tega use puri tarah pahchan leta hai koi kor kasar baqi nahin chhoDta hai pata nahin, uska kya nam hai? ganw ke laDke usko pahchante hain bhaiya, bhaiya kahte hain
ab tega phusaphusata hai, “ganpat, main us wekti ko pahchanta hoon mere ganw mein haija phaila tha, to usne logon ki jaan bachai thi wo bahut bhala adami hai haji se kaho, batachit karke nibtara kar le ”
ganpat tega ko samjhata hai, “haji ne teen hazar diye hain aadhe se adhik to hum log kharch kar chuke hain use kya lautayenge? kam rupae nahin hain ”
tega kahta hai, “haji se bol dena, uska koi dusra kaam kar denge ”
isse pahle ki ganpat kuch aur kahta, achanak nai umr ke panch sat laDke gali ko langhate tezi se aate hain aur us wekti ki kothari mein ghus jate hain
ganpat aur uske sathiyon ko unki awajen saf saf sunai deti hain we hanph rahe hain chehre taishpurn hain, “bhaiya! raat das baje ke asapas haji seth ka truck inton se lada aaya tha hamne us zamin mein inta nahin girne diya haji seth ke adamiyon ke sath hum logon ki kafi takrar hui we baghalwale thane mein police sahayata ke liye pahunche hum bhi wahan gaye hamne thanedar se saf kaha, “sar, aap to jante hain, is zamin mein aam gachh ke niche warshon se is muhalle ke laDke paDhte aa rahe hain ab hum logon ne chanda karke is zamin mein bachchon ki pathashala banane ki neenw rakhi hai ye zamin haji seth ki nahin hai myunisipailiti ki hai isse pahle ke jo cheyarmain the unhonne is zamin mein pathashala banane ki anumti di thi is nae cheyarmain se milkar haji seth is zamin ko dakhal karna chahte hain sar, aapko malum hoga, bhaiya ne nae cheyarmain ke khilaf shahr mein julus nikala tha jab tak koi nirnay nahin ho jata, aap haji seth ki madad na karen nahin to bhaiya thane ke khilaf bhi julus nikalenge ” aur bhaiya, jab hamne aap dwara julus nikalne ki baat kahi to thanedar ne apne sipahiyon ko rok liya bus, hamne haji seth ke truck ko aage baDhwa diya
sari baat sunkar wo wekti khaDa hote hue bola, “bahut theek kiya tum logon ne barabar us zamin par tainat rahna kal hum sab nagar ke collector, s pi aur myunisipailiti ke cheyarmain se milenge is ghatna par shahr ke logon mein janmat jagayenge us zamin mein warshon se hamare bachche paDhte aa rahe hain wo zamin haji seth ke bap ki nahin hai ”
we aapas mein yahi sab baten kar rahe the ganpat aur uske sathiyon ke upar unki baton ki bhayanak pratikriya hui jis police ke Dar se ganpat aur uske sathi kai kai mahinon tak ke liye lapata ho jate hain, wo police us wekti ke nam se Darti hai we ek dusre ke kanon mein phusaphusate hain, “sale haji ne hamein ghalat jagah bheja hai yahan se laut chalna chahiye ”
aur we dabe panw wahan se laut jate hain jis raftar se aaye the, usse tiguni raftar se wapas jate hain unse ek kshan ke liye bhi ab wahan nahin ruka jata
subah ho gai hai ganpat aur uske sathi haji seth ke kamre mein maujud hain ye jankar haji seth ka man kheejh se bhar gaya hai ki kaam nahin hua haji seth ganpat ko Dantna chahte hain lekin uske sathiyon ki upasthiti mein we aisa nahin kar pate hain aksar kaam hone se pahle ya kaam hone ke baad ganpat akele hi aakar haji seth se batachit karta tha lekin aaj uske sathi bhi aaye hain isiliye haji seth ko lagta hai, zarur koi khas baat hai we puchhte hain, “kaun sa wighn upasthit ho gaya? kaam kyon nahin hua?”
isse pahle ki ganpat kuch kahta tega bol uthta hai, “sethji, wo adami ghalat nahin hai hum use nahin marenge aap batachit karke nibtara kar lijiye, uska safaya mat karwaiye ”
tega ki baat se ek kshan ke liye haji seth ke hosho hawas gum ho jate hain lagta hai, jaise parwat ki sabse unchi choti se ekayek luDhakkar we niche aa gire hon unhonne swapn mein bhi aisa nahin socha tha ki ganpat aur uske sathi kisi adami ke sahi aur ghalat hone ki baat bhi kar sakte hain we samajh nahin pate hain ki us duble patle adami ne in logon par aisa kaun sa jadu chala diya hai ki we is tarah se baat karne lage hain
haji seth kuch kshnon tak sochte hain phir un tinon ko lekar andar chal dete hain ek bhawy kamre mein un tinon ko baithate hain phir samne ki almari khol dete hain rang birangi botlen nikal aati hain naukar kaju aur kabab ki pleten saja dete hain
ganpat aur uske sathiyon ko jiwan mein itni achchhi sharab kabhi nahin mili thi kaju aur kabab bhi nahin Danlap ke gadde par upar niche lahrate hue ganpat aur uske dost khane pine lage hain ab haji seth batana shuru karte hain, “wah wekti bahut badmash hai gandi bastiyon ke logon ko bahla phuslakar andolan karwata hai unhen mar khilwata hai jel bhijwata hai khu neta bana hua hai nai umr ke laDkon ko shagirdi mein kar rakha hai mainne usse kaha tha, kaho to tumhein koi naukari lagwa den, ye sab dhandha chhoD do, nahin mana mainne use rupyon ka bhi lalach diya do hazar le lo chaar hazar le lo panch hazar le lo lekin wo to mahatma banta hai sidhe sidhe rupaya kaise lega?
seth abhi apni baat puri tarah kah bhi nahin pate hain ki tega beech mein hi bol uthta hai, “baqi sethji, wo adami khu gandi bastiyon mein hi rahta hai logon ko thagta, to zarur achchhi jagah rahta mere ganw mein haija phaila tha, to usne logon ki jaan bachai thi kisi se kuch manga bhi nahin tha ”
“tum nahin samjhoge tega waise logon ko samajhne mein tumhein der lagegi akhir main tumse hi puchhta hoon, wo aisa kyon karta hai main kuch karta hoon, dhan daulat ke liye duniya ka har adami dhan daulat pane ke liye hi kuch kar raha hai phir wo aise hi kyon kuch karega? bahut baDa raaz hai tum nahin samjhoge ”
tega chup ho jata hai sethji use niruttrit kar dete hain ab use kuch bhi samajh mein nahin aata hai phir bhi wo kahta hai, “theek hai sethji, lekin us adami ka safaya mat karwaiye samjha bujhakar raste se hata dijiye ”
“main sabkuchh karke dekh chuka hoon tega ant mein ye nirnay kiya hai tum samjhakar dekh lo tumhari sab baten wo man jayega lekin jab asal baat par aoge to tumhari ek nahin sunega ” haji seth der tak us wekti ko badmash, ghalat aur ochha sabit karne lagte hain dhire dhire tega aur uske sathiyon par sharab ki khumari chhane lagi hai unke andar ki hinsak prwrittiyan jagne lagti hain unke chehre ke badalte bhawon ko paDhkar hazi seth ko khushi hoti hai ki unki baat un par asar karne lagi hai ab we apni dusri almari kholte hain hare, pile noton ki gaDDiyan samne aa jati hain we bolte hai, “ganpat, pichhli dafa teen hazar rupae diye the n?”
“han ”
“lo ye aur chhah hazar rupae! aaj raat kaam ho jana chahiye ”
ganpat aur uske sathiyon ko ek musht itni baDi rashi kabhi nahin mili thi we noton ko chhipakar rakhne lagte hain phir chal dete hai sharab ka nasha apne pure rang mein khil chuka hai sharab bhi itni umda ho sakti hai, unhonne pahle kabhi nahin socha tha
dusri raat ganpat aur uske sathi punः usi jagah par pahunch aaye hain malbe ke Dher ke pichhe se chhipkar we kal ki hi bhanti dekhte hain lekin aaj darwaza band hai ghaur karne par pate hain, darwaza bhitar se nahin, bahar se band hai tala latke raha hai unhen lagta hai, wo wekti kahi chala gaya hai sigu kahta hai, “aj ‘jatra’ theek nahin hai wo adami kahin chala gaya shayad use malum ho gaya ”
ganpat kahta hai, “nahin malum kaise hoga? hum tinon ke siway aur koi thoDe hi janta hai haji seth ki baat kisi ko malum nahin hoti wo adami aata hi hoga kal bhi to itni raat gaye tak paDh raha tha ”
tega nashe mein jamhaiyan leta rahta hai kuch kshan beet jane ke baad tega kahta hai, “ganpat, us adami par shuru mein war nahin kiya jayega use samjhaya jayega rupyon ka lalach diya jayega wo hattya karne layaq adami nahin hai ”
ganpat aur sigu, tega ko samjhate hain, chahe jaise bhi ho, aaj kaam nibtana hi hoga haji ne jitne rupae diye hain, utne koi aur nahin de sakta
tega kahta hai, “theek hai lekin main us adami ko dhokhe se nahin marunga use samjhaunga apni baat manwaunga nahin manega, laDai jhagDa karne par utaru ho jayega, tab use marunga ”
ganpat ko tega ki ye yojna bilkul nai lagti hai is tarah se to unhonne kabhi koi kaam nahin kiya hai lekin sigu, tega ki baat se sahmat hai ganpat chahkar bhi kuch bol nahin pata hai janta hai, bina tega ke wo kuch bhi nahin kar sakta hai
raat lagbhag ek baje ke asapas wo wekti aata hai tala kholkar andar ghusta hai lalten jalata hai kapDe badalta hai phir ek lote mein pani lekar bahar nikalta hai hath munh dhota hai kulla karta hai phir andar chala jata hai
ab tega, sigu aur ganpat malbe ke Dher ke pichhe se uthkar chal dete hain aise kamon mein tega hamesha chupke mae jata tha aur shankit drishti mae agal baghal takta rahta tha lekin is bar wo bilkul nirbhik hokar ja raha hai lag hi nahin raha hai ki wo kisi ka safaya karne ja raha hai
darwaze par pahunchakar andar baithe us wekti ko sambodhit karte hue tega kahta hai, “bhai sahab, hum log aapse kuch baat karne aaye hain ”
tega aur uske sathiyon ko lagta hai ki ye sunkar wo wekti Dar jayega, kyonki itni raat gaye bilkul aprichit logon ka aana to theek nahin lekin wo wekti tanik bhi Darta nahin hai kahta hai, “ap log andar aa jaiye ”
tega aur uske sathi andar ghus jate hain kamra bahut hi chhota hai ek mez aur ek kursi ke atirikt baithne sone ke liye aur kuch nahin hai us kamre ke aadhe hisse mein kitaben rakhi hain tega aur uske sathiyon ne kisi ek wekti ke pas itni kitaben pahle kabhi nahin dekhi theen we hairat se pahaD ki tarah lagi kitabon ke Dher ko dekhte rahte hain kitabon ke pas hi kamre ke shesh bhag mein zamin par ek chatai bichhi hui hai chatai par ek dari hai shayad wo wekti isi par sota hai
tega aur uske sathiyon ko wo wekti dari par baithne ka sanket karta hai we tinon dari par baith jate hain wo wekti bhi kursi se utarkar un tinon ke pas hi dari par aa jata hai tega kahta hai, “kyon aap kursi par baithiye ”
wo wekti jawab deta hai, “ap log umr mein mujhse baDe hain mere baDe bhai ke barabar hain aap logon ke samne main kursi par nahin baithunga hum yahin zamin par sath sath baithenge ”
us wekti ki pahli baat to tega ke andar kahin bahut gahre tak utar jati hai wo us wekti ke chehre ko takatki lagaye dekhne lagta hai ganpat aur sigu bhi dekhne lagte hain achanak sigu us wekti ko pahchan jata hai ek Dakaiti ke mamle mein sigu jel gaya tha wahan pahunchne par sigu ko wo wekti dikha tha shayad pahle se hi wo jel mein tha lekin use alag warD mila tha jel mein bhi log uski ijzat karte the qaidiyon par honewale zulm ke khilaf wo jel mein bhi andolan karta tha us wekti ko pahchan lene ke baad sigu ka man uske prati shardha se bhar jata hai sigu ko yaad hai, jel mein wo us wekti ko dewta samajhta tha sigu man hi man tay kar leta hai, chahe jo ho, is wekti par wo kisi ko hath nahin uthane dega
wo wekti puchhta hai, “kahiye, aap logon ka kaise agaman hua?”
sigu ganpat ki or takta hai, ganpat tega ki or ek kshan tak unmen se koi nahin bol pata hai bhimpatti muhalle mein haji seth koi karkhana banana chah rahe hain lekin aap use banne nahin de rahe hain ”
isse pahle ki tega kuch aur kahta, wo wekti beech mein hi bol paDta hai, “nahin ghalat baat hai ye aarop sirf mere akele par nahin hona chahiye main kahta hoon, aap logon ne rok rakha hai main us zamin mein apna ghar banane ke liye haji seth se nahin laD raha hoon us zamin mein aapke, mere bachche paDhenge aap jante hain, wo muhalla is muhalle se bhi gaya guzra hai us muhalle mein shahr ki koi suwidha nahin agar um zamin ko haji seth dakhal kar lenge to phir us muhalle mein bachchon ke paDhne ki koi jagah nahin rahegi shahr ke door paDne wale aur mahnge skulon mein us muhalle ke bachche kaise paDhne jayenge? main janta hoon, aap log waise hi muhallon ke wasi hain haji seth ke muhalle mein aap logon ke ghar nahin hain haji seth aapke apne hathon se aapke ghar ko ujaDwana chahta hai sochiye, us muhalle ke bachche akhir kahan paDhenge? haji seth ka laDka widesh mein paDhta hai unke jaise logon ke liye shahr mein roz nae nae school khul rahe hain hum par aur aap par kaun dhyan de raha hai? gharib, bhukhamri aur bimari se hum mar rahe hain hamare muhalle ke log pashuon ki zindagi ji rahe hain haji seth jaise log kabhi hamein insan ki tarah nahin jine denge haji seth aaj us school wali zamin ko haDap rahe hain kal hamare aur aapke gharon ko ujaDwayenge wahan apne bangale banwayenge tab hum bhikhari ban jayenge saDak ke kinare hamara jina marna hoga aap logon ne station ke pas ke karahte taDapte bhikhmangon ko zarur dekha hoga we haji seth jaise pariwaron ke nahin, hamare aur aap jaise pariwaron ke hain main shapath khakar kahta hoon, agar aap log us zamin mein school nahin banne dena chah rahe hain to nahin banega main kaun hota hoon beech mein bolne wala aap log use muhalle mein jakar poochh lijiye, us muhalle ka bachcha bachcha taiyar hai ki ye zamin haji seth ko nahin haDapne denge main abhi wahin se aa raha hoon kal subah phir wahan ek aam sabha hai aap log jakar dekh lijiye, aapke apne bachche hain, jo wahan sina tankar khaDe hain kya majal ki haji seth us zamin par pahunch jayen ”
wo wekti khaDa ho jata hai bolte bolte uska chehra lal ho gaya hai kamre mein dhire dhire tahalte hue wo bolta jata hai, “haji seth moorkh hain mujhe pata chala hai ki we mera safaya karana chahte hain we jante hain, mere baad unhen koi nahin rokega lekin unhen nahin malum, sara muhalla jag utha hai we kitne logon ka safaya karwayenge? main to chahta hoon ki haji seth mujhe marwa den akhir to hamko, aapko, sabko ek din marna hi hai ”
wo wekti der tak bolta hi rahta hai; tega, sigu aur ganpat matha jhukaye sunte rahte hain us wekti ki baton se we ek ajib si duniya mein pahunch aaye hain adami aise bhi hote hain, unhen pata nahin tha unke pas to hazi seth wali wyakhya thi ki har adami dhan daulat ke liye hi kuch karta hai, lekin us wekti ki wyakhya kuch aur hi thi tega ko man hi man kuch afsos ho raha tha ki wo kyon aaya? sala haji unse unke apne adami ko marwa raha hai sigu ki ankhen chhalachhla i theen kash! wo pahle janta hota! ganpat ko lag raha tha, ab kaam nahin hoga haji ko rupae lautane honge, itne sare rupae
wo wekti puchhta hai, “ap log chup kyon hain? kuch boliye jab tak aap kuch kahenge nahin, main kal se us zamin par nahin jaunga ”
tega matha uthata hai jiwan mein pahle kabhi uski ankhon mein ansu nahin aaye the, lekin aaj ye ansu achanak kahan se aa gaye hain? tega bharrai hui awaz mein kahta hai, “hamen maf kar dijiye hamein kuch malum nahin tha agyanwash hum yahan chale aaye hain ”
sigu ab apne ko rok nahin pata hai apni ankhen ponchhne lagta hai pahli dafa ganpat bhi aardr ho uthta hai wo wekti bari bari se un sabko gale se lagata hai
ab tak raat ke lagbhag teen baj chuke hote hain wo wekti kahta hai, “mainne abhi tak kuch khaya nahin aap logon ne bhi to nahin khaya hoga mera khana rakha hai bant bantakar hum sabhi khayenge ”
aur tega tatha uske sathiyon ke lakh mana karne ke bawjud wo wekti kamre ke ek kone mein Dhake apne khane ko samne lata hai din ki banai hui chhah rotiyan, jo sookh gai hain kaghaz ki potli mein thoDa namak, ek hari mirch aur pyaz ka ek tukDa
wo wekti khana beech mein rakh deta hai aur unke hath pakaDkar winaypurwak khane ka agrah karta hai we sab khane lagte hain khate hue sochte rahte hain, haji kitna jhutha hai bol raha tha, wo wekti gandi bastiyon ke logon ko phuslakar apna maqsad sadhta hai maze mar raha hai sala haji beiman! daghabaj!
khana kha chukne ke baad wo wekti sabse agrah karta hai ki we is samay aur kahin na jayen chupchap yahin so rahen subah jayenge
wo wekti aur we tinon zamin par bichhai gai chatai aur dari ko alag alag kar us par so rahte hain lalten bujha di jati hai koi kisi se kuch nahin bolta hai lekin harek ke antar mein wartalap chalta rahta hai we ankhen munde is nai wastawikta mein sakshatkar karte rahte hain
subah, ekdam taDke hi we tinon us wekti ko soe chhoD wahan se chal dete hain us muhalle ko langhakar we mukhy saDak par aa jate hain apne makan ki balakni mein tahalta haji unhen door se hi dikhai paDne lagta hai parinam janne ke liye wo unhin ka rasta dekh raha hai we tinon sidhe haji seth ke pas pahunchte hain unke chehre ko dekhte hi haji seth ko lagta hai, aaj phir kaam nahin hua isse pahle ki haji seth kuch bolte, tega haji seth ke diye noton ko uske upar phenkte hue kahta hai, “haji seth! main tumko chetawni dene aaya hoon agar us adami ko kuch ho gaya to main tujhe zinda nahin chhoDunga ”
lekin we tinon wahan se chal dete hain koi jawab nahin deta haji seth pukarte hain, zara ruko to mera saman to de do ”
lekin unmen se koi nahin thaharta ganpat bhi nahin haji seth ki chinta aur pareshani ekayek baDh jati hai unhonne apna wideshi riwaulwar kaam karne ke liye inhen diya tha inke deshi hathiyaron par unhen wishwas nahin lekin ye kya? unka hathiyar lautaye bina sab chale ja rahe hain
haji seth ki samajh mein nahin aa raha hai ki ye sab kaise ho raha hai? unka war kabhi khali nahin jata tha is kaam ke liye unhonne sabse adhik rupae phenke the wo adami kaisa hai? usne kaun sa teer chala diya hai? aaj unka apna ek hathiyar bhi ghayab ho gaya achanak aaj ye sab kya ho raha hai?
haji seth chinta aur pareshani mein Dubte utarte apni balakni mein tahalte rahte hain theek usi samay wo wekti unki or aata hua dikhai paDta hai we ghaur se us wekti ko dekhne lagte hain wo haji seth ki or hi aa raha hai haji seth ke pas aakar wo apne jhole se haji seth ka riwaulwar nikalta hai aur unhen saumpte hue kahta hai, “sethji, aapka hathiyar aapke adami mere yahan chhoD aaye hain socha, aapko wapas kar doon ”
seth apna riwaulwar le leta hai lekin subah ke sard mausam mein bhi uske chehre par pasine ki bunden chuhchuha aati hain uske hath kanpne se lagte hain wo riwaulwar sanbhal nahin pata hai pas hi rakhi kursi par rakh deta hai
wo wekti wahan se chalne ko hota hai ki seth ke munh se bol phoot paDte hain, “kshama kijiyega, main sharminda hoon aiye, zara chay pi lijiye ”
wo wekti aage baDhte hue kahta hai, “mere pas samay nahin seth ji, us zamin mein aaj logon ki aam sabha hai main wahin ja raha hoon ”
seth kahta hai, “zara ek minat suniye to us zamin mein ab koi aam sabha mat karwaiye mainne faisla kar liya hai ki ab us zamin par main nahin jaunga apni ghalati ke liye mujhe bahut afsos hai ”
ye wekti palatkar seth ki or dekhta hai seth sir se panw tak pasine se bheeg gaya hai wo phati phati ankhon se us wekti ko dekh raha hai, jis wekti ko wo ek nihayat tuchchh aur halka adami samajhta tha us wekti ko chutakiyon mein masalkar khatm kar dene ki samarthy seth apne andar rakhta tha, lekin aaj us adami ke samne seth ko apni attalika aur apna wyaktitw bahut bauna malum paDne lagta hai seth kisi agyat bhay se kanpne sa lagta hai seth ki haalat dekh us wekti ke hothon par muskan ki ek halki rekha ubhar aati hai
raat ke barah baj rahe hain tega, sigu aur ganpat dabe panw aage baDhe ja rahe hain we shahr ki us mukhy saDak ko par kar chuke hain, jo raat bhar chalti rahti hai we shahr ke un sthanon aur muhallon ko langh chuke hain, jahan raat hoti hi nahin—bijli ki dudhiya roshni aur sargarmi bani hi rahti hai ab we shahr ke pashchimi hisse ki taraf us muhalle mein aa gaye hain, jo shahr ka sabse upekshait muhalla hai wahan ki galiyon mein roshni ka koi prbandh nahin raste ubaD khabaD, kachche pakke makan beech beech mein kuch jhompaDiyan bhi silan bhari galiyan kinare ki naliyon se aati tikhi durgandh is muhalle mein shahr ke mazdur, mehtar, rickshaw chalak tatha chhoti chhoti naukariyan karne wale we log rahte hain, jo shahr ke dusre muhallon mein unche kiraye nahin de sakte
ganpat kal din mein hi is muhalle mein aaya tha uske sath haji seth ka ek adami bhi tha wo ganpat ko ek nishchit jagah dikhakar ek nishchit wekti ko pahachanwa chuka hai ab ganpat ko kya karna hai, ye haji seth se use malum hua hai aksar is tarah ke kamon mein ganpat, tega aur sigu ko zarur leta hai darasal, sachchai to ye hai ki ganpat mol bhaw karke kamon ko tay karta hai yojna banata hai lekin asal kaam to tega aur sigu karte hain
ganpat ko us pahachanwaye gaye wekti ke bare mein koi khas jankari nahin, dekhne mein wo ganpat ko ek bahut hi sadharan wekti malum paDa hai haji seth ke yahan ki baton se wo ye jaan paya hai ki wo wekti haji seth ke pure pariwar ke liye chinta ka karan bana hua hai shayad kahin haji seth ki koi nai phaiktri ban rahi hai, jahan wo wekti aDanga Dal raha hai baat kya hai, sthiti kya hai, kyon wo wekti haji seth se takra raha hai, in sab baton ki wistrit jankari ganpat ko nahin hai usne in baton ki jankari ke liye koshish bhi nahin ki hai asal mein haji seth ke kamon mein wo adhik chhanabin aur puchhatachh nahin karta hai haji seth jab bhi kaam karata hai, unchi raqam deta hai isiliye ganpat ankh mundakar haji seth ka kaam pura karta hai
apne sathiyon ke sath ganpat tezi se aage baDh raha hai log so chuke hain ghar ke darwaze aur khiDkiyan band hain raat ke sannate mein pure muhalle ka sunapan ganpat ko achchha lagta hai aise mein kaam baDi asani se ho jata hai
ganpat ko jab kabhi roshni aur sargarmi wale muhallon mein kaam karna hota hai, to baDi fazihat hoti hai ek kaam mein kabhi kabhi pura mahina lag jata hai kitni sazishen aur kitne shaDyantr use rachne paDte hain lekin in muhallon mein to wo chutki bajakar kaam kar leta hai ganpat ko ye muhalle shahr ke ganw jaan paDte hain bilkul ganwon ki tarah hi beroshan, asurakshait aur samarthyhin!
ganpat apne sathiyon ke sath nishchit jagah pahunch jata hai yahan se lagbhag das barah qadam ke fasle par hi wo kothari hai, jismen wo wekti raDta hai abhi wo akela hai pariwar sath mein nahin rakha hai pata nahin, kunara hai ya baal bachche wala? kahan ka mool niwasi hai? ganpat ko kuch malum nahin kahin ka ho, isse usko kya matlab? kaam karega paise banayega! daru piyega mans khayega hirabai ke sath mauj karega aur kya!
ganpat aur uske sathiyon ko ye dekhkar bhari ashchary hota hai ki us kamre ka darwaza khula hai lalten jal rahi hai mez kursi lagi hai aur wo wekti kuch likhne mein tanmay hai theek samne mez par rakhi lalten ki roshni sidhe sidhe us wekti ke chehre par paD rahi hai, jisse uska chehra saf saf nazar aa raha hai
is pure muhalle mein jahan sabhi ke darwaze aur khiDkiyan band hai, wo wekti kiwaD kholkar likh raha hai haji seth se takrar mol lekar bhi use tanik bhay nahin! ek kshan ke liye ganpat aur uske sathiyon ka utsah bilkul thanDa paD jata hai we kinkartawyawimuDh gali ke ek kone mein khaDe chupchap use dekhne lagte hain phir ganpat apne sathiyon ko ishara dekar aage baDhata hai aur us gali ki baghal mein hi ek Dhahe hue purane makan ke malbe ke pas chhipkar baithne ki salah deta hai
ab ganpat aur uske sathi malbe ke Dher ke pichhe chhipkar ukDun baith jate hain aur us wekti ko ghurne lagte hain wahan se bhi wo wekti saf saf dikhai paDta hai tega ko lagta hai, us wekti ko usne kahin dekha hai sharab ke nashe mein use theek theek yaad nahin aa raha hai phir bhi wo yaad karne ki koshish karne lagta hai
tega jab bhi is tarah ke kamon mein jata hai, sharab khoob chhakkar pi leta hai ganpat aur sigu bhi pite hain lekin uski tarah nahin tega janta hai, agar wo chhakkar nahin piyega, to usse kaam nahin hoga aise kaam hosh hawas mein rahne par nahin hote
ganpat phusaphusata hai ek hi sath tinon adami aage baDhkar tezi se kothari mein ghus chalen sigu us wekti ke donon hath pakaD lega main uska munh band kar dunga tega kaam kar dega lekin dekhana tega, war sahi sthan par hona chahiye mamla safaye ka hai
tega kahta hai, “abhi thahro ”
tega us wekti ko yaad kar raha hota hai
sigu us wekti ko der tak ghurne ke baad phusaphusata hai, dekhne mein wo wekti bahut bhala lag raha hai paDhne likhne wala wekti hai akhir haji kyon uska safaya karna chahta hai mujhe to wo wekti galat nahin lag raha hai ”
ganpat zawab deta hai, “apne ko isse kya matlab—wah sahi ho ya ghalat? haji ne pure teen hazar diye hain tinon ko ek ek hazar ” kam paise nahin hain ”
sigu chup ho jata hai ganpat bhi chup hai tega kuch soch raha hai nashe ke bhitar umke smriti patal par ab wo wekti ubharne laga hai parsal tega ke ganw mein haije ki bimari phaili thi tega ka ganw is shahr ke bilkul pas hi hai—sirf panch kilomitar ke fasle par lekin shahr ki or se uske ganw ko bachane ki koi koshish nahin ki gai phir uske ganw ki khabar sunkar wo kothari wala wekti pata nahin kahan se aa gaya tha uske sath nai umr ke kuch laDke bhi the un sabne dauD dauDkar ganw aur shahr ko ek kar diya tha laD jhagaDkar, shor machakar we log shahr se Dher sari dawaiyan aur kai Dauktron ko ganw tak kheench laye the tega ka bhatija mar jata, agar wo wekti samay par na pahunchta
tega ankhen phaD phaDkar us wekti ko niharne lagta hai ye wahi wekti hai tega use puri tarah pahchan leta hai koi kor kasar baqi nahin chhoDta hai pata nahin, uska kya nam hai? ganw ke laDke usko pahchante hain bhaiya, bhaiya kahte hain
ab tega phusaphusata hai, “ganpat, main us wekti ko pahchanta hoon mere ganw mein haija phaila tha, to usne logon ki jaan bachai thi wo bahut bhala adami hai haji se kaho, batachit karke nibtara kar le ”
ganpat tega ko samjhata hai, “haji ne teen hazar diye hain aadhe se adhik to hum log kharch kar chuke hain use kya lautayenge? kam rupae nahin hain ”
tega kahta hai, “haji se bol dena, uska koi dusra kaam kar denge ”
isse pahle ki ganpat kuch aur kahta, achanak nai umr ke panch sat laDke gali ko langhate tezi se aate hain aur us wekti ki kothari mein ghus jate hain
ganpat aur uske sathiyon ko unki awajen saf saf sunai deti hain we hanph rahe hain chehre taishpurn hain, “bhaiya! raat das baje ke asapas haji seth ka truck inton se lada aaya tha hamne us zamin mein inta nahin girne diya haji seth ke adamiyon ke sath hum logon ki kafi takrar hui we baghalwale thane mein police sahayata ke liye pahunche hum bhi wahan gaye hamne thanedar se saf kaha, “sar, aap to jante hain, is zamin mein aam gachh ke niche warshon se is muhalle ke laDke paDhte aa rahe hain ab hum logon ne chanda karke is zamin mein bachchon ki pathashala banane ki neenw rakhi hai ye zamin haji seth ki nahin hai myunisipailiti ki hai isse pahle ke jo cheyarmain the unhonne is zamin mein pathashala banane ki anumti di thi is nae cheyarmain se milkar haji seth is zamin ko dakhal karna chahte hain sar, aapko malum hoga, bhaiya ne nae cheyarmain ke khilaf shahr mein julus nikala tha jab tak koi nirnay nahin ho jata, aap haji seth ki madad na karen nahin to bhaiya thane ke khilaf bhi julus nikalenge ” aur bhaiya, jab hamne aap dwara julus nikalne ki baat kahi to thanedar ne apne sipahiyon ko rok liya bus, hamne haji seth ke truck ko aage baDhwa diya
sari baat sunkar wo wekti khaDa hote hue bola, “bahut theek kiya tum logon ne barabar us zamin par tainat rahna kal hum sab nagar ke collector, s pi aur myunisipailiti ke cheyarmain se milenge is ghatna par shahr ke logon mein janmat jagayenge us zamin mein warshon se hamare bachche paDhte aa rahe hain wo zamin haji seth ke bap ki nahin hai ”
we aapas mein yahi sab baten kar rahe the ganpat aur uske sathiyon ke upar unki baton ki bhayanak pratikriya hui jis police ke Dar se ganpat aur uske sathi kai kai mahinon tak ke liye lapata ho jate hain, wo police us wekti ke nam se Darti hai we ek dusre ke kanon mein phusaphusate hain, “sale haji ne hamein ghalat jagah bheja hai yahan se laut chalna chahiye ”
aur we dabe panw wahan se laut jate hain jis raftar se aaye the, usse tiguni raftar se wapas jate hain unse ek kshan ke liye bhi ab wahan nahin ruka jata
subah ho gai hai ganpat aur uske sathi haji seth ke kamre mein maujud hain ye jankar haji seth ka man kheejh se bhar gaya hai ki kaam nahin hua haji seth ganpat ko Dantna chahte hain lekin uske sathiyon ki upasthiti mein we aisa nahin kar pate hain aksar kaam hone se pahle ya kaam hone ke baad ganpat akele hi aakar haji seth se batachit karta tha lekin aaj uske sathi bhi aaye hain isiliye haji seth ko lagta hai, zarur koi khas baat hai we puchhte hain, “kaun sa wighn upasthit ho gaya? kaam kyon nahin hua?”
isse pahle ki ganpat kuch kahta tega bol uthta hai, “sethji, wo adami ghalat nahin hai hum use nahin marenge aap batachit karke nibtara kar lijiye, uska safaya mat karwaiye ”
tega ki baat se ek kshan ke liye haji seth ke hosho hawas gum ho jate hain lagta hai, jaise parwat ki sabse unchi choti se ekayek luDhakkar we niche aa gire hon unhonne swapn mein bhi aisa nahin socha tha ki ganpat aur uske sathi kisi adami ke sahi aur ghalat hone ki baat bhi kar sakte hain we samajh nahin pate hain ki us duble patle adami ne in logon par aisa kaun sa jadu chala diya hai ki we is tarah se baat karne lage hain
haji seth kuch kshnon tak sochte hain phir un tinon ko lekar andar chal dete hain ek bhawy kamre mein un tinon ko baithate hain phir samne ki almari khol dete hain rang birangi botlen nikal aati hain naukar kaju aur kabab ki pleten saja dete hain
ganpat aur uske sathiyon ko jiwan mein itni achchhi sharab kabhi nahin mili thi kaju aur kabab bhi nahin Danlap ke gadde par upar niche lahrate hue ganpat aur uske dost khane pine lage hain ab haji seth batana shuru karte hain, “wah wekti bahut badmash hai gandi bastiyon ke logon ko bahla phuslakar andolan karwata hai unhen mar khilwata hai jel bhijwata hai khu neta bana hua hai nai umr ke laDkon ko shagirdi mein kar rakha hai mainne usse kaha tha, kaho to tumhein koi naukari lagwa den, ye sab dhandha chhoD do, nahin mana mainne use rupyon ka bhi lalach diya do hazar le lo chaar hazar le lo panch hazar le lo lekin wo to mahatma banta hai sidhe sidhe rupaya kaise lega?
seth abhi apni baat puri tarah kah bhi nahin pate hain ki tega beech mein hi bol uthta hai, “baqi sethji, wo adami khu gandi bastiyon mein hi rahta hai logon ko thagta, to zarur achchhi jagah rahta mere ganw mein haija phaila tha, to usne logon ki jaan bachai thi kisi se kuch manga bhi nahin tha ”
“tum nahin samjhoge tega waise logon ko samajhne mein tumhein der lagegi akhir main tumse hi puchhta hoon, wo aisa kyon karta hai main kuch karta hoon, dhan daulat ke liye duniya ka har adami dhan daulat pane ke liye hi kuch kar raha hai phir wo aise hi kyon kuch karega? bahut baDa raaz hai tum nahin samjhoge ”
tega chup ho jata hai sethji use niruttrit kar dete hain ab use kuch bhi samajh mein nahin aata hai phir bhi wo kahta hai, “theek hai sethji, lekin us adami ka safaya mat karwaiye samjha bujhakar raste se hata dijiye ”
“main sabkuchh karke dekh chuka hoon tega ant mein ye nirnay kiya hai tum samjhakar dekh lo tumhari sab baten wo man jayega lekin jab asal baat par aoge to tumhari ek nahin sunega ” haji seth der tak us wekti ko badmash, ghalat aur ochha sabit karne lagte hain dhire dhire tega aur uske sathiyon par sharab ki khumari chhane lagi hai unke andar ki hinsak prwrittiyan jagne lagti hain unke chehre ke badalte bhawon ko paDhkar hazi seth ko khushi hoti hai ki unki baat un par asar karne lagi hai ab we apni dusri almari kholte hain hare, pile noton ki gaDDiyan samne aa jati hain we bolte hai, “ganpat, pichhli dafa teen hazar rupae diye the n?”
“han ”
“lo ye aur chhah hazar rupae! aaj raat kaam ho jana chahiye ”
ganpat aur uske sathiyon ko ek musht itni baDi rashi kabhi nahin mili thi we noton ko chhipakar rakhne lagte hain phir chal dete hai sharab ka nasha apne pure rang mein khil chuka hai sharab bhi itni umda ho sakti hai, unhonne pahle kabhi nahin socha tha
dusri raat ganpat aur uske sathi punः usi jagah par pahunch aaye hain malbe ke Dher ke pichhe se chhipkar we kal ki hi bhanti dekhte hain lekin aaj darwaza band hai ghaur karne par pate hain, darwaza bhitar se nahin, bahar se band hai tala latke raha hai unhen lagta hai, wo wekti kahi chala gaya hai sigu kahta hai, “aj ‘jatra’ theek nahin hai wo adami kahin chala gaya shayad use malum ho gaya ”
ganpat kahta hai, “nahin malum kaise hoga? hum tinon ke siway aur koi thoDe hi janta hai haji seth ki baat kisi ko malum nahin hoti wo adami aata hi hoga kal bhi to itni raat gaye tak paDh raha tha ”
tega nashe mein jamhaiyan leta rahta hai kuch kshan beet jane ke baad tega kahta hai, “ganpat, us adami par shuru mein war nahin kiya jayega use samjhaya jayega rupyon ka lalach diya jayega wo hattya karne layaq adami nahin hai ”
ganpat aur sigu, tega ko samjhate hain, chahe jaise bhi ho, aaj kaam nibtana hi hoga haji ne jitne rupae diye hain, utne koi aur nahin de sakta
tega kahta hai, “theek hai lekin main us adami ko dhokhe se nahin marunga use samjhaunga apni baat manwaunga nahin manega, laDai jhagDa karne par utaru ho jayega, tab use marunga ”
ganpat ko tega ki ye yojna bilkul nai lagti hai is tarah se to unhonne kabhi koi kaam nahin kiya hai lekin sigu, tega ki baat se sahmat hai ganpat chahkar bhi kuch bol nahin pata hai janta hai, bina tega ke wo kuch bhi nahin kar sakta hai
raat lagbhag ek baje ke asapas wo wekti aata hai tala kholkar andar ghusta hai lalten jalata hai kapDe badalta hai phir ek lote mein pani lekar bahar nikalta hai hath munh dhota hai kulla karta hai phir andar chala jata hai
ab tega, sigu aur ganpat malbe ke Dher ke pichhe se uthkar chal dete hain aise kamon mein tega hamesha chupke mae jata tha aur shankit drishti mae agal baghal takta rahta tha lekin is bar wo bilkul nirbhik hokar ja raha hai lag hi nahin raha hai ki wo kisi ka safaya karne ja raha hai
darwaze par pahunchakar andar baithe us wekti ko sambodhit karte hue tega kahta hai, “bhai sahab, hum log aapse kuch baat karne aaye hain ”
tega aur uske sathiyon ko lagta hai ki ye sunkar wo wekti Dar jayega, kyonki itni raat gaye bilkul aprichit logon ka aana to theek nahin lekin wo wekti tanik bhi Darta nahin hai kahta hai, “ap log andar aa jaiye ”
tega aur uske sathi andar ghus jate hain kamra bahut hi chhota hai ek mez aur ek kursi ke atirikt baithne sone ke liye aur kuch nahin hai us kamre ke aadhe hisse mein kitaben rakhi hain tega aur uske sathiyon ne kisi ek wekti ke pas itni kitaben pahle kabhi nahin dekhi theen we hairat se pahaD ki tarah lagi kitabon ke Dher ko dekhte rahte hain kitabon ke pas hi kamre ke shesh bhag mein zamin par ek chatai bichhi hui hai chatai par ek dari hai shayad wo wekti isi par sota hai
tega aur uske sathiyon ko wo wekti dari par baithne ka sanket karta hai we tinon dari par baith jate hain wo wekti bhi kursi se utarkar un tinon ke pas hi dari par aa jata hai tega kahta hai, “kyon aap kursi par baithiye ”
wo wekti jawab deta hai, “ap log umr mein mujhse baDe hain mere baDe bhai ke barabar hain aap logon ke samne main kursi par nahin baithunga hum yahin zamin par sath sath baithenge ”
us wekti ki pahli baat to tega ke andar kahin bahut gahre tak utar jati hai wo us wekti ke chehre ko takatki lagaye dekhne lagta hai ganpat aur sigu bhi dekhne lagte hain achanak sigu us wekti ko pahchan jata hai ek Dakaiti ke mamle mein sigu jel gaya tha wahan pahunchne par sigu ko wo wekti dikha tha shayad pahle se hi wo jel mein tha lekin use alag warD mila tha jel mein bhi log uski ijzat karte the qaidiyon par honewale zulm ke khilaf wo jel mein bhi andolan karta tha us wekti ko pahchan lene ke baad sigu ka man uske prati shardha se bhar jata hai sigu ko yaad hai, jel mein wo us wekti ko dewta samajhta tha sigu man hi man tay kar leta hai, chahe jo ho, is wekti par wo kisi ko hath nahin uthane dega
wo wekti puchhta hai, “kahiye, aap logon ka kaise agaman hua?”
sigu ganpat ki or takta hai, ganpat tega ki or ek kshan tak unmen se koi nahin bol pata hai bhimpatti muhalle mein haji seth koi karkhana banana chah rahe hain lekin aap use banne nahin de rahe hain ”
isse pahle ki tega kuch aur kahta, wo wekti beech mein hi bol paDta hai, “nahin ghalat baat hai ye aarop sirf mere akele par nahin hona chahiye main kahta hoon, aap logon ne rok rakha hai main us zamin mein apna ghar banane ke liye haji seth se nahin laD raha hoon us zamin mein aapke, mere bachche paDhenge aap jante hain, wo muhalla is muhalle se bhi gaya guzra hai us muhalle mein shahr ki koi suwidha nahin agar um zamin ko haji seth dakhal kar lenge to phir us muhalle mein bachchon ke paDhne ki koi jagah nahin rahegi shahr ke door paDne wale aur mahnge skulon mein us muhalle ke bachche kaise paDhne jayenge? main janta hoon, aap log waise hi muhallon ke wasi hain haji seth ke muhalle mein aap logon ke ghar nahin hain haji seth aapke apne hathon se aapke ghar ko ujaDwana chahta hai sochiye, us muhalle ke bachche akhir kahan paDhenge? haji seth ka laDka widesh mein paDhta hai unke jaise logon ke liye shahr mein roz nae nae school khul rahe hain hum par aur aap par kaun dhyan de raha hai? gharib, bhukhamri aur bimari se hum mar rahe hain hamare muhalle ke log pashuon ki zindagi ji rahe hain haji seth jaise log kabhi hamein insan ki tarah nahin jine denge haji seth aaj us school wali zamin ko haDap rahe hain kal hamare aur aapke gharon ko ujaDwayenge wahan apne bangale banwayenge tab hum bhikhari ban jayenge saDak ke kinare hamara jina marna hoga aap logon ne station ke pas ke karahte taDapte bhikhmangon ko zarur dekha hoga we haji seth jaise pariwaron ke nahin, hamare aur aap jaise pariwaron ke hain main shapath khakar kahta hoon, agar aap log us zamin mein school nahin banne dena chah rahe hain to nahin banega main kaun hota hoon beech mein bolne wala aap log use muhalle mein jakar poochh lijiye, us muhalle ka bachcha bachcha taiyar hai ki ye zamin haji seth ko nahin haDapne denge main abhi wahin se aa raha hoon kal subah phir wahan ek aam sabha hai aap log jakar dekh lijiye, aapke apne bachche hain, jo wahan sina tankar khaDe hain kya majal ki haji seth us zamin par pahunch jayen ”
wo wekti khaDa ho jata hai bolte bolte uska chehra lal ho gaya hai kamre mein dhire dhire tahalte hue wo bolta jata hai, “haji seth moorkh hain mujhe pata chala hai ki we mera safaya karana chahte hain we jante hain, mere baad unhen koi nahin rokega lekin unhen nahin malum, sara muhalla jag utha hai we kitne logon ka safaya karwayenge? main to chahta hoon ki haji seth mujhe marwa den akhir to hamko, aapko, sabko ek din marna hi hai ”
wo wekti der tak bolta hi rahta hai; tega, sigu aur ganpat matha jhukaye sunte rahte hain us wekti ki baton se we ek ajib si duniya mein pahunch aaye hain adami aise bhi hote hain, unhen pata nahin tha unke pas to hazi seth wali wyakhya thi ki har adami dhan daulat ke liye hi kuch karta hai, lekin us wekti ki wyakhya kuch aur hi thi tega ko man hi man kuch afsos ho raha tha ki wo kyon aaya? sala haji unse unke apne adami ko marwa raha hai sigu ki ankhen chhalachhla i theen kash! wo pahle janta hota! ganpat ko lag raha tha, ab kaam nahin hoga haji ko rupae lautane honge, itne sare rupae
wo wekti puchhta hai, “ap log chup kyon hain? kuch boliye jab tak aap kuch kahenge nahin, main kal se us zamin par nahin jaunga ”
tega matha uthata hai jiwan mein pahle kabhi uski ankhon mein ansu nahin aaye the, lekin aaj ye ansu achanak kahan se aa gaye hain? tega bharrai hui awaz mein kahta hai, “hamen maf kar dijiye hamein kuch malum nahin tha agyanwash hum yahan chale aaye hain ”
sigu ab apne ko rok nahin pata hai apni ankhen ponchhne lagta hai pahli dafa ganpat bhi aardr ho uthta hai wo wekti bari bari se un sabko gale se lagata hai
ab tak raat ke lagbhag teen baj chuke hote hain wo wekti kahta hai, “mainne abhi tak kuch khaya nahin aap logon ne bhi to nahin khaya hoga mera khana rakha hai bant bantakar hum sabhi khayenge ”
aur tega tatha uske sathiyon ke lakh mana karne ke bawjud wo wekti kamre ke ek kone mein Dhake apne khane ko samne lata hai din ki banai hui chhah rotiyan, jo sookh gai hain kaghaz ki potli mein thoDa namak, ek hari mirch aur pyaz ka ek tukDa
wo wekti khana beech mein rakh deta hai aur unke hath pakaDkar winaypurwak khane ka agrah karta hai we sab khane lagte hain khate hue sochte rahte hain, haji kitna jhutha hai bol raha tha, wo wekti gandi bastiyon ke logon ko phuslakar apna maqsad sadhta hai maze mar raha hai sala haji beiman! daghabaj!
khana kha chukne ke baad wo wekti sabse agrah karta hai ki we is samay aur kahin na jayen chupchap yahin so rahen subah jayenge
wo wekti aur we tinon zamin par bichhai gai chatai aur dari ko alag alag kar us par so rahte hain lalten bujha di jati hai koi kisi se kuch nahin bolta hai lekin harek ke antar mein wartalap chalta rahta hai we ankhen munde is nai wastawikta mein sakshatkar karte rahte hain
subah, ekdam taDke hi we tinon us wekti ko soe chhoD wahan se chal dete hain us muhalle ko langhakar we mukhy saDak par aa jate hain apne makan ki balakni mein tahalta haji unhen door se hi dikhai paDne lagta hai parinam janne ke liye wo unhin ka rasta dekh raha hai we tinon sidhe haji seth ke pas pahunchte hain unke chehre ko dekhte hi haji seth ko lagta hai, aaj phir kaam nahin hua isse pahle ki haji seth kuch bolte, tega haji seth ke diye noton ko uske upar phenkte hue kahta hai, “haji seth! main tumko chetawni dene aaya hoon agar us adami ko kuch ho gaya to main tujhe zinda nahin chhoDunga ”
lekin we tinon wahan se chal dete hain koi jawab nahin deta haji seth pukarte hain, zara ruko to mera saman to de do ”
lekin unmen se koi nahin thaharta ganpat bhi nahin haji seth ki chinta aur pareshani ekayek baDh jati hai unhonne apna wideshi riwaulwar kaam karne ke liye inhen diya tha inke deshi hathiyaron par unhen wishwas nahin lekin ye kya? unka hathiyar lautaye bina sab chale ja rahe hain
haji seth ki samajh mein nahin aa raha hai ki ye sab kaise ho raha hai? unka war kabhi khali nahin jata tha is kaam ke liye unhonne sabse adhik rupae phenke the wo adami kaisa hai? usne kaun sa teer chala diya hai? aaj unka apna ek hathiyar bhi ghayab ho gaya achanak aaj ye sab kya ho raha hai?
haji seth chinta aur pareshani mein Dubte utarte apni balakni mein tahalte rahte hain theek usi samay wo wekti unki or aata hua dikhai paDta hai we ghaur se us wekti ko dekhne lagte hain wo haji seth ki or hi aa raha hai haji seth ke pas aakar wo apne jhole se haji seth ka riwaulwar nikalta hai aur unhen saumpte hue kahta hai, “sethji, aapka hathiyar aapke adami mere yahan chhoD aaye hain socha, aapko wapas kar doon ”
seth apna riwaulwar le leta hai lekin subah ke sard mausam mein bhi uske chehre par pasine ki bunden chuhchuha aati hain uske hath kanpne se lagte hain wo riwaulwar sanbhal nahin pata hai pas hi rakhi kursi par rakh deta hai
wo wekti wahan se chalne ko hota hai ki seth ke munh se bol phoot paDte hain, “kshama kijiyega, main sharminda hoon aiye, zara chay pi lijiye ”
wo wekti aage baDhte hue kahta hai, “mere pas samay nahin seth ji, us zamin mein aaj logon ki aam sabha hai main wahin ja raha hoon ”
seth kahta hai, “zara ek minat suniye to us zamin mein ab koi aam sabha mat karwaiye mainne faisla kar liya hai ki ab us zamin par main nahin jaunga apni ghalati ke liye mujhe bahut afsos hai ”
ye wekti palatkar seth ki or dekhta hai seth sir se panw tak pasine se bheeg gaya hai wo phati phati ankhon se us wekti ko dekh raha hai, jis wekti ko wo ek nihayat tuchchh aur halka adami samajhta tha us wekti ko chutakiyon mein masalkar khatm kar dene ki samarthy seth apne andar rakhta tha, lekin aaj us adami ke samne seth ko apni attalika aur apna wyaktitw bahut bauna malum paDne lagta hai seth kisi agyat bhay se kanpne sa lagta hai seth ki haalat dekh us wekti ke hothon par muskan ki ek halki rekha ubhar aati hai
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।