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नारंगी की ख़ुशबू

narangi ki khushbu

अनुवाद : नासिरा शर्मा

तलत सकैरिक

तलत सकैरिक

नारंगी की ख़ुशबू

तलत सकैरिक

और अधिकतलत सकैरिक

    कोई नहीं हिसाब लगा पा रहा था उसकी बची हुई साँसों का और ही समझ पा रहा था उन आँसुओं को जो लगातार उसकी आँखों से बह गालों पर फैल रहे थे! सिर्फ़ अब्दुल खैर स्वयं महसूस कर रहे थे कि अब उसकी ज़िंदगी के कुछ पल ही बचे हैं। जबकि डॉक्टरों ने उसकी पत्नी को आश्वासन दे रखा था कि वह जल्द ही ठीक हो जाएगा। अब्दुल खैर गहरी सोच में डूबा हुआ था। उसकी ज़िंदगी के पेड़ की पत्तियाँ झड़ चुकी थीं, आख़री पत्ती भी डाल छोड़ने वाली थी। यह उसे साफ़ नज़र रहा था! वह किस लिए रो रहा था, उसको बयान करना बचे हुए लम्हों में कठिन था।

    अब्दुल खैर ने अपनी आँखें बंद कर ली। पत्नी, बच्चों और रिश्तेदारों की शक्लें धुँधली पड़ने लगीं! वह धीरे से बुदबुदाया।

    “तुम में से कौन है, जो मेरे लिए नारंगी ला सकता है?”

    “लेकिन बाबा...” सभी उसकी इच्छा सुनकर चकित रह गए। केवल बड़ा बेटा हिम्मत करके बोला तो उसकी बात बीच में ही काट कर उसने कहा—

    “मैं जानता हूँ कि यह नारंगी का मौसम नहीं है, लेकिन मुझे नारंगी चाहिए। मेरे लिए बिना नारंगी के मरना मुश्किल है।”

    सभी ने गर्दन और हाथ हिलाए और नहीं समझ पाए कि सत्तर वर्ष के इस बुजुर्ग को नारंगी क्यों चाहिए! उसकी बीबी उम्मअलखैर ने मन ही मन सोचा कि पति मरने से पहले कुछ ख़ास बात करना चाहता है शायद, सो वह पति के चेहरे पर झुककर धीरे से पूछने लगी, “तुम कुछ कहना चाहते हो, लिल्लाह कुछ बोलो, जो तुम्हारे दिल में है साफ़-साफ़ कह डालो!”

    उसने अपनी आँखें खोलीं। पत्नी के चेहरे पर नज़र डाली, मगर पानी भरी आँखों ने पत्नी का चेहरा धुँधला दिया। वह धीरे से बुदबुदाया, “आह! उम्मे अलखैर! मैं वहीं मरना चाहता हूँ। तुम तो जानती हो मेरी इस ख़्वाहिश को जो हमेशा से मेरे दिल में मचलती रही है। मगर मैं यहाँ क्यों अपनी आख़री साँस गिन रहा हूँ अपने गली कूचों और नारंगी के बग़ीचे से दूर?”

    अब्दुल खैर के मुख से यह शब्द किसी बम की तरह बेटों, रिश्तेदारों के दिल दिमाग़ पर गिरे। जाने कब से रुके आँसू उम्मअलखैर की आँखों से उबल पड़े और वह हिचकियाँ ले रो पड़ी। मृत्यु शैय्या पर पड़े उस बूढ़े आदमी ने मुस्कुराना चाहा, उसकी आँखों के सामने से सड़कें, घर, अपने शहर गाँव के लोगों के चेहरे गुज़रने लगे और हज़ार तरह की बातें याद आने लगीं। उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि ये सारे वर्ष किस शीघ्रता से गुज़र गए? उसने अपनी प्रिय सड़क पर ख़ुद को मटरगश्ती करते देखा। संध्या गीत में उसने विशेष महक को महसूस किया।

    सच पूछा जाए तो कुछ वर्षों तक उसने महसूस ही नहीं किया था कि वह अपने वतन फिलिस्तीन से दूर है। तब वह आँखें बंद कर लेता और जब चाहता अपने प्यारे वतन में दाख़िल हो जाता था। मगर कुछ वर्षों बाद उसे फिदाइन मोर्चों में हिस्सा लेना पड़ा। जब कभी वह देश की सीमा रेखा के समीप पहुँचता तो उसका पूरा वजूद विरह की आग में सुलग उठता था। उसका मन करता कि वह मौत को गले लगा ले, ताकि इसी बहाने से वह अपनी सरज़मीन का स्पर्श कर सकता है। वह अक्सर यह वाक्य दोहराता रहता था कि फिलिस्तीन से दूर मरना दो बार मरने के बराबर है।

    फिलिस्तीन से दूर मरने की कल्पना ने उसमें विचित्र-सी शक्ति भर दी और वह तेज़ी से उठ कर बैठ गया और जूतों में पैर डालने लगा। उसे लगा उसके हाथ-पैर उसके दिल में छुपी इच्छा को पूरा करने का बल रखते हैं। उसमें आई स्फूर्ति को देख पलंग के चारों तरफ़ खड़े लोग हतप्रभ हो उसकी तरफ़ लपके।

    “तुम लोग नहीं समझ सकते हो मैं वहाँ जाकर मरना चाहता हूँ।” अपने को छुड़ाते हुए वह बोला।

    “ख़ुदा के लिए तुम सब लोग इन्हें अकेला छोड़ दो” उम्मअलखैर ने रोते हुए कहा।

    अब्दुल खैर बड़ी मुश्किलों से अपने बिस्तर से उठ पाया और लड़खड़ाते हुए आगे बढ़ा। बच्चों ने आगे बढ़ कर उसे सहारा देना चाहा, मगर उसने मना कर दिया। उसने डगमगाते क़दम से आगे बढ़ दरवाज़ा खोला और लंबी साँस खींच वह किसी बच्चे की तरह ख़ुशी से चीखा, “ख़ुदा की क़सम मैंने नारंगी की ख़ुशबू को महसूस किया।”

    सड़क लंबी थी। वह चलते-चलते रुका। उसका दिल बहुत ज़ोरों से धड़क रहा था, उसका साँस लेना कठिन हो रहा था, उसकी माँसपेशियाँ शिथिल पड़ रही थीं, उसकी आँखें मुँदने लगीं और वह गिर पड़ा।

    “पल बड़े लंबे हैं” उसने हाँफते हुए कहा।

    पत्नी के आँसू रुक गए। उसने अपनी आँखें खोली और पत्नी का हाथ हाथों में लेकर धीरे से कहा, “हम मिले थे वहाँ, पहली बार, हम साथ ही वहाँ लौटेंगे।”

    उम्मअलखैर को लगा कि उसका हाथ गर्म है। फिर एकाएक लगा कि ठंडा पड़ गया है। वह समझ गई कि वह निकल पड़ा है चहलकदमी के लिए सुदूर रास्तों में से एक रास्ते पर।

    स्रोत :
    • पुस्तक : विश्व की श्रेष्ठ कहानियाँ (खण्ड-2) (पृष्ठ 424)
    • संपादक : ममता कालिया
    • रचनाकार : तलत सकैरिक
    • प्रकाशन : लोकभारती प्रकाशन
    • संस्करण : 2005
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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