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घटा

ghata

मार्टी जोनपोल्वी

और अधिकमार्टी जोनपोल्वी

    अगस्त से वह असंतुष्ट था, जबकि उस महीने से मालूम नहीं क्यों उसे सबसे ज़्यादा उम्मीदें थीं। महीने की शुरुआत बरसाती थी। केवल पूर्णमासी के बाद दिन बड़े, स्वच्छ और नीले हुए।

    एक समतल रेल यार्ड से रेलवे लाइन चट्टानों को काटती हुई जाती थी। उत्तरी छोर के क्षितिज पर एक बड़ी घटा बढ़ी रही थी। अजीब प्रभाव था—बादल का तना एक अनगढ़ पकड़ में जकड़ा लगता था, मानो वह बहुत नीचे चला गया हो और चट्टानों के कटाव में फँस गया हो।

    उसने उसे घूरा। ऐसा लगा, मानो वह बादल की झुर्रीदार बाज़ू पर कोई काला दाग़ देख रहा हो। उसके चारों ओर की हवा विरल हो गई, उसे चक्कर आने लगे, साँस लेना कठिन हो गया। अनुभव तेज़ी से एक धुँधली संवेदना में बदल गया। झुर्री की ओर का बादल का धब्बा ग़ायब हो गया था, उसकी एक फ़ीते जैसी पूँछ निकल आई थी और नज़रों से ऐसे ग़ायब हो गई थी, जैसे कोई ग़लत चित्र रेटीना से ओझल हो जाता है। काफ़ी दिनों के बाद उसे मुक्ति का ऐसा अनुभव हुआ, पता नहीं कब और कहाँ से—यह केवल एक संवेदना थी, अनुभूति का बचा हुआ एक अंश, उस क्षण से उपजा, या फिर सारी ज़िंदगी से। उसने सोचा कि घटा की ऊपरी परत से शायद सुदूर आने वाले पतझड़ को देख सकते हैं।

    हाट की ओर से प्लास्टिक बैग और सब्ज़ी की टोकरियाँ लिए हुए औरतें उसकी ओर आईं। उनमें से कई सड़क किनारे खड़ी गाड़ियों की ओर चली गईं। एक गहरे रंग के बालों वाला आदमी ग्रीक रेस्तराँ के दरवाज़े की चौखट पर टेक लगाए हुए था। दरवाज़े के ऊपर की लाइट अभी भी जल रही थी, जबकि यह चमकीली दोपहर थी।

    रिटायर्ड लोग बाज़ार के छोर वाले सॉसेज बूथ पर जमा थे। वे हर हाट वाले दिन वहाँ होते। लगता था वे अपने जीवन के बचे दिनों से क्या करना है, इसके बारे में अनिश्चित थे। एक उजाड़ पड़ी सड़ी टेबल के कोने पर एक दीन भिखमंगा झुका हुआ बैठा था। एक रिटायर्ड आदमी ने उसे सॉसेज का एक टुकड़ा दिया।

    वह हाट की भीड़ के साथ हो लिया और देखने की कोशिश करने लगा कि मटर के ढेर अभी बाज़ार में दीखने लगे हैं या नहीं। शलजम थे, आलू, गाजर, चुकंदर और पतली मूलियाँ थीं।

    “सेब! अच्छे सेब। सुनहरे, पारदर्शी, चख कर देखो!”

    लड़की का चेहरा संवेदनशील था और लगता था किसी भी क्षण वह रो पड़ेगी। सेब बढ़ाने वाला हाथ दुबला था और अँगुलियाँ पतली।

    जब वह सेब खा रहा था, वह लड़की से बातें करने लगा। उसने साल की फसल के बारे में पूछा। उसे ख़ुद इसका गुण और आकार मालूम था; उसके घर पर बग़ीचे में फलों के भार से पेड़ों की डालियाँ झुक गई थीं। उनमें टाँड़ लगानी पड़ी थी। इस साल भी फसल की खपत में मुश्किल होगी। वह अपने आप को जूस स्टैंड पर खड़ा सेबों को कुचलते और निचोड़ते देख रहा था। यह सितंबर या अक्टूबर की शुरुआत होगी। वह सिट्ठी को प्लास्टिक के बैगों में भर बाहर जाएगा, और बाहर की हवा उसकी भोंह को शीतल कर देगी, उसे बताते हुए कि एक साल और बीत गया। सबसे बड़ी बेवक़ूफ़ी का काम जो वह कर सकता था, वह था उस लड़की से सेब ख़रीदना।

    जब वह उसकी बातें सुन रहा था, प्रत्येक चीज़ अनोखे ढंग से बदल गई। यह एक सुखद, उन्मुक्त अंदरूनी भावना थी। उसने उत्तरी दिशा में घटा के लिए देखा, पर हाट के आसपास की ऊँची इमारतों ने उसे नज़रों से छुपा रखा था। कोई भी चीज़ अब पहले जैसी नहीं थी। लोग, सब्जियाँ, कबूतर और समुद्री पक्षी, मौसम से भूरी हो गई टेबल, यहाँ तक कि बाज़ार के रास्ते के काले पत्थर भी...मानो वह उन्हें पहली बार देख रहा हो। मानो उसने बाहर की अंधकारपूर्ण और एकाकी दुनिया से निकलकर एक सघन, प्यार, गर्माहट और रौशनी से भरपूर ज़िंदगी में प्रवेश किया हो और पूछ रहा हो—क्या दुनिया ऐसी ही है? ऐसा लगा मानो लड़की के संग बिताया क्षणिक अंतराल सालों-साल रहा हो।

    उसने उससे एक किलो सेब ख़रीदे, एक-एक कर उसकी हथेली पर सिक्के गिने। उसका हाथ शीतल और थोड़ा-सा नम था, जैसे भोर में फल। उसकी नज़र लड़की की बाँह पर पड़ी। सुनहरी, पारदर्शी, उसने सोचा।

    हाट लोगों से भरी थी, पर उनका अब कोई महत्व नहीं रह गया था और वह बिना सोचे उनके बीच से रास्ता बनाता चला जा सकता था। उसने वही किया, एक हाथ में सेब का थैला और दूसरे हाथ में अधखाया सेब लिया। पता नहीं क्यों वह डरा हुआ था। यह क्या हो रहा था? बाज़ार के छोर की कॉफ़ी दुकान के लिए उसने चारों ओर देखा, जहाँ बाज़ार के फेरीवाले जाया करते थे।

    एक मेहराब की भीतरी अहाते के धुँधलके से हौज़ निकला। इससे निकला पानी फ़ुटपाथ के डामर से टकराया और एक ललछोंह धार में बहता हुआ मैनहोल द्वारा निगल लिया गया। लबादा पहने एक आदमी ने उसका नोज़ल पकड़ा हुआ था। उसके नारंगी लबादे की पीठ पर छपा था—इमारत का रखवाला। उसके रबर बूट के ऊपरी भाग नयेपन से चमक रहे थे, सड़क के जीवन को प्रतिबिंबित करते हुए...राह चलते लोग, पानी से बचते हुए, तेज़ी से अपनी राह पर जाते, दिन के ज़रूरी कामों को अपने मन में लिए।

    उसे रुकता देख, आदमी ने दोबारा देखा, इस बार ज़्यादा प्रेम से, शायद इसलिए कि कोई उसके नीरस काम में रस ले रहा था। “डेडमैन का बटन। तुमें मालूम है वह क्या है?” डामर से लाल धब्बा निकल गया, और उसने सोचा कि यहाँ रंग की बाल्टी गिर गई थी।

    “जुवोनेन लोकोमोटिव का इंजीनियर हुआ करता था,’’ वह अभी भी प्रश्न के बारे में सोच रहा था, जब रखवाला बोलता गया। “उसका अंतिम काम एक ट्राम ड्राइव करना था।” पानी की धार रुक गई। पानी के दबाव ने हौज़ पर तनाव डाला, लेकिन वह तनाव सह गया। हौज़ दोहरा होकर उसकी बाँह पर झूल रहा था, अपने लबादे की निचली पॉकेट से रखवाले ने सिगरेट का पैक निकाला।

    “कैब में केवल ड्राइवर रहता है। डेडमैन का बटन, एक स्विच, ड्राइवर के पैर के पास होता है। जब ड्राइव कर रहे होते हैं, उसके ऊपर पैर रखना होता है। अगर ड्राइवर को कुछ होता है, जैसे बीमारी का दौरा, उसके पैर का दबाव रुक जाता है और इमरजेंसी ब्रेक अपने आप लग जाता है। इसी तरह इसे बनाया गया है ।”

    आकाश में सूरज ने जगह बदल ली और इमारत की छाया दीवाल के क़रीब गई। डामर जो धूप में था गर्मी से भाप छोड़ने लगा और उससे एक तीखी, गंदी गंध उठने लगी।

    “एक बार जब जुवोनेन गाड़ी चला रहा था, लोगों ने उसे ड्राइवर की जगह से पैंसेंजर कंपार्टमेंट की ओर भागते देखा। वहाँ उसने ख़ुद को सीधे फ़र्श पर गिरा दिया। तुरंत ही गाड़ी रुक गई। यात्री अवश्य ही थोड़ा डर गए होंगे। जब जुवोनेन अपना हैट खोज रहा था, उस जगह कंडक्टर आया। जुवोनेन ने बताया कि वह अभ्यास कर रहा था। जब वे एक ओवरपास के सामने पहुँचे, उसने सोचा वह क्या करेगा यदि बगल से लट्ठों से भरा एक ट्रक आए और ठीक उसके सामने रुक जाए।”

    “और इस उपाय ने काम किया।”

    “उस समय। उस तरह की ट्रिक। उसका अनुभव इतना स्पष्ट था कि उसने बिना अस्तित्व वाले ट्रक को देखा। लेकिन ट्रक केवल उसके दिमाग़ में चल रहा था। लोग कहते हैं कि पहले भी उसने वे चीज़ें देखीं थीं, जो औरों को नहीं दीखतीं थीं।”

    बाज़ार के छोर पर एक आदमी एक ट्रक में कंद के बोरे चढ़ा रहा था। रखवाले की नज़रें उसी काम पर टिकीं लग रहीं थीं।

    “वह गाड़ी वापस स्टेशन तक ले आया। हालाँकि कंडक्टर उसकी बग़ल में ही था। और उसने उसके बाद कोई ट्रक नहीं देखा। यह जॉब पर उसकी अंतिम शिफ़्ट थी। उसकी ड्राइविंग पर तत्काल रोक लगा दी गई।”

    रखवाले ने स्प्रे नोजल की पिस्तौल का घोड़ा दबा दिया और फ़व्वारे के फोर्स को ठीक करने लगा। पानी ने फिर से डामर पर चोट की और फिर से लाल हो गया और पानी मैनहोल के ढक्कन की जाली में अदृश्य हो गया।

    “यह जुवोनेन का ख़ून है, “उसने कंधे के ऊपर से कहा। “छठी मंज़िल की बाल्कनी से डेढ़ घंटे पहले वह वहाँ गिरा। पता नहीं उसने वहाँ क्या देखा?”

    वह कॉफ़ी के लिए नहीं गया। बाज़ार की गलियों में टेबल के बीच से चलते हुए अब उसकी भावनाएँ वही नहीं थीं।

    “सेब! अच्छे सेब। सुनहरे, पारदर्शी। चखकर देखो!”

    बिना किसी पहचान की झलक के लड़की ने उसे अपने सेब के ढेर के पीछे से देखा। उसे पक्का करने में कुछ समय लगा—अब वह उसे नहीं जानती थी! खोखे के पास, सड़ी मेज़ के कोने पर वह भिखमंगा अभी भी बैठा था, ज़िंदगी से उतना ही बेज़ार जितना वह स्थान था जहाँ वह बैठा था। रिटायर्ड लोगों का समूह छोटा हो गया था।

    उसने उसके बग़ल में सेब का थैला रख दिया, भिखमंगे ने काले पत्थरों पर फुदकते व्यस्त कबूतरों से नज़रें उठाईं पर उन आँखों में कोई संदेश नहीं था।

    बाद में, चट्टानों को काटती दूर विलीन होती रेलवे लाइन को देखते हुए उसने पाया कि बादलों का बड़ा खंभा उत्तरी आकाश से ग़ायब हो गया है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : विश्व की श्रेष्ठ कहानियाँ (खण्ड-2) (पृष्ठ 81)
    • संपादक : ममता कालिया
    • रचनाकार : माटी जोएनपोल्वी
    • प्रकाशन : लोकभारती प्रकाशन
    • संस्करण : 2005
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

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