कोलाहल के बीच मैं चुप था। जी हाँ, मुझे बहुत ज़ोरों से लगा कि अपने शहर में होता तो कम से कम सीटीनुमा आवाज़ तो ज़रूर निकालता। कुछ कसरत की कोशिश करता और स्टेशन के हर आने जाने वाले व्यक्ति को पहचानने के लिए मुड़-मुड़ कर देखता अपने शहर में तो हर आदमी पहचाना-पहचाना लगता है। मगर यहाँ इस खेल में किसे शामिल करता? तमतमाए चेहरों की हँसी ख़ुशी, दौड़ लगाते हुए बच्चे और गहरे विषाद में लटके हुए सिरों को दूर से बैठकर देखना एक खेल ही नहीं था। उसमें थोड़ा सा डर भी मिला हुआ था। आज पहली बार लग रहा है, किसी सीमेंट की बैंच पर बैठा कोई लड़का मेरे डर को भाँप रहा होगा। शायद अब खेल नहीं होगा सिर्फ़ डर होगा। और मजबूरन इसी डर से वह खेल रहा होगा।
सूटकेस और होल्डाल घसीट कर एक किनारे पर कर दिया। दूबेजी ने आने को लिखा था तो आएँगे ज़रूर ही। हो सकता है खोजते हुए आ रहे हों। मंजन कर लेता तो अच्छा था। परंतु इस चक्कर में खो जाऊँगा। पटरियों के उस पार बंबे के नीचे कुछ लोग नहा रहे हैं। शरीर मल-मल कर नहा रहे हैं। और फटे चीकट कपड़ों को फटकार कर पहन रहे हैं। तीन टाँगों के सहारे उचकता हुआ कुत्ता औरत की रोटी सूँघ रहा है। उसकी एक टाँग गाड़ी से कटी होगी और औरत स्टेशन के बाहर कहीं पागल हो गई होगी।
वे दूबेजी चले आ रहे हैं। नीली जींस की पैंट और कोटी पहने हैं। लगभग दौड़ते हुए आते हैं। इतनी भीड़भाड़ में क्या कह रहे हैं, कुछ सुनाई नहीं देता। केवल मुस्कुराहट पकड़ पाता हूँ। अरे मालिक! जै राम जी—मैंने दोनों हाथ उठा दिए।
हाय या हाई ऐसा कुछ दूबेजी ने कहा और अपने दोनों हाथ कूल्हे पर धर लिए। मेरे हाथ मय कोहनियों के झूलते हुए नीचे आ गए। अच्छा चलो। जल्दी चलें। फिर मुझे ऑफ़िस जाना है। स्कूटर ले लेते हैं। दूबेजी ने एक साँस में कहा और कुली को आवाज़ देने लगे। उन्होंने मुझे चुपचाप देखकर ही शायद यकायक अपने हाथ मेरे कंधे पर रख दिए फिर मुझे देखा या कहिए कि जायज़ा लिया और पूछा कि न हो तो चाय पी ली जाए। मैं काफ़ी देर तक चुप रहा। वास्तव में दूबेजी की फुर्ती से मैं सुट्ट रह गया और काफ़ी देर तक इस फुर्ती में दूबेजी की पुरानी आदतें ढूँढ़ रहा था।
देखो यदि इस तरह सुस्तराम रहे तो दिल्ली तुम्हें खा जाएगी समझे मुन्ना। चाय पियोगे न?
ऐसा करते हैं कि घर पर ही लेंगे।
घर कहाँ यार! कमरा कहो। यहाँ चाय तो मैं बनाता नहीं। ख़ैर चलो वहीं कहीं पी लेंगे।
स्कूटर में बैठकर पहली बार दूबेजी ने घरेलू अंदाज़ में पूछा—और क्या हाल चाल हैं शहर के?
शहर माने माता पिता भाई बहिन
शहर माने प्रेमिका
शहर माने तालाब पेड़ पुल
शहर माने दोस्त
शहर माने सड़कें
मैं कैसे सारी बातें सूक्तियों में उन्हें बता सकता? कह दिया—शहर की तबियत दुरुस्त है। सूक्तियाँ कभी किसी का भला नहीं कर सकतीं। वे उनकी जिज्ञासाओं पर कील की तरह ठुक गई तो। दूबेजी फिर बतलाने लगे—यह कनॉट सर्कस है। यह पार्लियामेंट स्ट्रीट। यह अशोका होटल। कल से घूमेंगे, मुन्ना, आज तो तुम आराम करना।
मेरा ख़याल है, आज ही उनसे मैं मिल लेता?
वे जान गए कि मैं दिल्ली दर्शन के लिए नहीं आया हूँ। काम पर आया हूँ।
आज ही मिलोगे?
मिल लेते तो अच्छा था।
पहले अपन फ़ोन कर लेंगे।
चला ही जाता तो?
फ़ोन पर बात करते डर लगेगा क्या?
हाँ, डर को निस्संकोच होकर खोला।
तुम्हें किस बात का डर भाई। ठाठ से कहना तुम्हारे दामाद आए हैं।
गाड़ी भेजो फटाफट।
औल सैक्लेटली भेज देंगे तो फिल?
तो सेक्रेटरी को रख लेंगे और गाड़ी भेज देंगे। ठीक?
ठीक!
ठीक?
ठीक!!
दूबेजी की सहायता से मैं विभोर होता रहा। और अब तो मैं यह कहूँगा कि दूबेजी बड़े रायल आदमी हैं। स्टेशन पर उतरते ही मुझे लगा था कि सभी लोग किसी षड्यंत्र के तहत भागदौड़ कर रहे हैं। और इसमें से कोई न कोई अंत में मेरा टेंटुआ दबा देगा। पर अब चैन है। दूबेजी जाने बूझे हैं, कोई डर नहीं।
तुम प्रेम-पत्र ले आए हो ना?
अब जब तक प्रेम-पत्र है मैं मर नहीं सकता। वही तो आया है, उसके पीछे-पीछे मैं दुमछल्ला हूँ।
तुम्हारी अच्छी पहचान है। मुझे तुमसे ईर्ष्या होती है।
अगर आप मेरी जगह होते तो आपकी फट जाती।
अब तो निश्चित ही है कि लग जाओगे।
हाँ, उम्मीद तो है।
तुम आई.ए.एस. में क्यों नहीं बैठते?
दूबेजी, पढ़ाई पूरी किए अभी एक साल हुआ है। फूला फूला फिरा जगत में, कुछ दिन तक। फ़र्स्ट डिवीज़न आई है। क्या बात है। वा भई मैं, वा। पिताजी भी कहते रहे आई.ए.एस. में बैठो। यदि यहीं मेरा अंतिम उद्देश्य होता न दूबेजी तो मैं कम-से-कम अबतक सेल्सटैक्स इंस्पेक्टर तो हो ही गया होता। मैंने दो तीन इंटरव्यूज दिए। नहीं हुआ तब सबको दिव्य ज्ञान प्राप्त हुआ। पिताजी आई.ए.एस. से धीरे-धीरे उतरते हुए 225 की बेसिक पर आ गए। बाइस साल का लड़का जब तेइसवें में निरा नालायक़ और मूर्ख साबित हो जाए तो घर में ऐश बंद हो ही जाने चाहिए। सो अंडा और दूध बंद हुआ।
ख़ैर, अब तो नौकरी मिल ही जाएगी। इसके साथ ही काम्पीटीशन की तैयारी करना।
दूबेजी बात ऐसी है। नहीं। क्या कारण है कि आप यह नहीं कहते कि मुन्ना नौकरी लग जाएगी तो हॉकी की और अच्छी प्रैक्टिस करना। मन लगाकर लिखना-पढ़ना। अच्छी ज़िंदगी जीना।
यार मुन्ना, एक बार बड़ी पोस्ट पा जाओगे न तो तुम्हारे बड़े-बड़े मार्क्सवादी मित्र तुम्हारी झंडी उठाएँगे। ख़ैर अभी तुम बच्चे हो मेरे साथ रहोगे तो व्यावहारिक बना दूँगा।
दूबेजी ने स्कूटर एक ओर मुड़वाकर रुकवा दी। हम दोनों ने मिलकर सामान उतारा। दूबेजी ने ड्राइवर को पैसे देते हुए कहा—मुन्ना तुम्हें मैं काम्पीटीशन में बैठाकर ही छोडूँगा।
इतनी ज़बरदस्त और ग़लत आत्मीयता के लिए मैंने, हूँ कहा और सामान ढोने का प्रयत्न किया। दूबेजी के साथ सामान ढोकर दूसरी मंज़िल पर आए। बीच सीढ़ियों पर रुककर उन्होंने फुसफुसाकर कहा कि क्षंसधजी से कहना कि छोटा भाई हूँ। और वैसे भी मेरे भाई की तरह हो। मैंने इस क़दर सिर हिलाया मानों चोरी करने जा रहे हों।
दरवाज़ा खुलने पर एक तगड़ी औरत को मैंने नमस्ते किया। दूबेजी कुछ बोले इससे पहले ही उन्होंने कहा—आपके भाई हैं? आओ जी आओ।
हम कृतज्ञ होते हुए अंदर आए। बहुत सारे बच्चे थे और कमरे में बू भरी हुई थी। दूबेजी ने अपने कमरे का ताला खोला। सामान ठेल कर अंदर किया। दूबेजी ने दरवाज़ा बंद कर लिया।
देखो अब तुम्हें यहाँ रहना है। इन्हें मूँ लगाने की ज़रूरत नहीं है। नहीं तो सारे बच्चे यहाँ आ जाएँगे। दिल्ली के लोग हरामी होते हैं। तुम्हें कब नंगा कर दे मालूम नहीं।
और आपको किसके लिए नियुक्त किया गया है? आप मुझे भर नंगा न करना—मैं हँसा।
उन्होंने गर्व के साथ सूचना दी कि वे कभी दिल्ली के नहीं रहे। उन्होंने कहा कि छह महीने में यहाँ की नस पकड़ी जा सकती है। और एक बार नस पकड़ ली तो फिर लाखों का वारा-न्यारा हो जाए। दूबेजी कुछ और गुप्त सफलता के सूत्रों की जानकारी देते इसके पहले ही मुझे मुँह धोने की याद आ गई। मैंने ज़मीन पर होल्डाल बिछा लिया और बैठकर मंजन करने लगा। दो बिस्तरों और एक मेज़ से कमरा भरापूरा हो गया। एक वार्डरोब है जो दीवार में समाई हुई है। एक रस्सी एक कोने से दूसरे कोने तक तनी हुई है जिस पर कपड़े लटक रहे हैं। मेज़ के ऊपर दीवाल पर हाथ से बना ग्रीटिंग लगा हुआ है। ‘दादा को शुभ-कामनाओं सहित-कुन्नू, राजू, बंटू और विमला।’ एक पंक्ति और लिखी गई होगी। जिस पर नीली मोटी लकीर फेर दी गई है। सजावट के नाम पर यही एक चिप्पी है। लेकिन शायद यह सजावट न हो। मेज़ पर कुछ किताबें हैं। नीचे प्लास्टिक की बाल्टी। बाक़ी सामान वार्डरोब में होगा। उसमें भी मैं अपने कपड़े रख लूँगा।
निबट लेने के बाद हम नीचे उतर आए। दूबेजी ने कमरे पर ताला लगा दिया था। और ऑफ़िस जाने की तैयारी में पोर्टफ़ोलियो ले लिया। मुझे कुछ अजीब सा लग रहा था। एक घर में रहकर अपने कमरे को जुदा रखना। नीचे आकर मैंने कहा तो वे बोले दोस्त, यह दिल्ली है। यहाँ चुरकट भावुक की तरह तुम रहे तो ज़रूर तुम्हारी नैय्या विजय चौक पर डूब जाएगी। अपना मतलब साधो बस। मैं उसे किराया देता हूँ कमरे के लिए। न की भाई-भौजाई बनाने के लिए।
पास में ही होटल थी। लोगों ने हँस-हँसकर उनसे नमस्ते की। तनिक आवाज़ को रठ्ठ बनाकर होटल के मालिक से मेरा परिचय कराया गया। अब यहीं नाश्ता करना है, यही भोजन करना है। दूबेजी ने स्नेह के चलते मालिक को एक बोल मारी और मुझसे कहा कि—मुन्ना यह वैष्णव भोजनालय है। इसलिए लहसुन और प्याज़ का बंदोबस्त नहीं है। वैष्णव होना फ़ायदेमंद इसलिए है कि प्याज़ मँहगी है। पर बाहर जो तख़त पर अंडे उबाल रहा है। यहाँ ले आएगा। दाल मुफ़्त नहीं मिलेगी और सब्ज़ी की तरी सिर्फ़ एक बार मिलेगी। सारी व्यवस्था समझाने के बाद मठरी और चाय का नाश्ता किया। मुझे घर की याद आने लगी। घर यानी माँ। मठरी यानी माँ।
छूट गया भाई छूट गया
घर आँगन तो छूट गया
छूट गया भाई छूट गया
घर
आँगन
छूट गया
पुराने दिन बहुत ख़राब होते हैं। कॉलेज के दिनों के जुलूस, बंद मुट्ठियाँ, नारे, सन-सनाहट, ग़ुस्सा...पानी की तरह गदबदाता-मगर जुलूस रोक लेता हूँ। मक्कार आदमी की तरह हँसता हूँ क्योंकि दूबेजी एक नौकर से धौल-धप्प कर रहे हैं। दस या बारह के क़रीब का लड़का। मोटा हँसमुख।
मुन्ना अपने को ये खाता खिलाता है। विक्रम है। साला बदमाश है। पर काम अच्छा करता है।
मैंने उससे कहा—विक्रम अब मैं भी यहाँ खाया करूँगा।
ठीक है साब, अपनी तो यही नौकरी है। उसने अदाकारी में सिर झुकाया और पूछा, समोसे चलेंगे?
दूबेजी ने घड़ी देखी। कहा, नहीं चाहिए। फिर मेरी तरफ़ होकर बोले, चलो उठो मुझे जाना है। उन्होंने मुझे चाबी दे दी। बोले शाम को जल्दी आ जाऊँगा। आज तो तुम कमरे पर आराम करो। कल तुम्हारे साथ चले चलूँगा। फ़्रैचलीव हो जाएगी। वे पोर्टफ़ोलियो झुलाते हुए बस स्टॉप की ओर चलने लगे। मैं भी पीछे-पीछे चलने लगा तो उन्होंने मना कर दिया—जाओ मुन्ना, जाके आराम करो। फिर रूककर बोले तुम्हें मालूम है मुन्ना, साले जो दो-दो हज़ार पाते हैं, वो भी धक्का खाते खड़े रहते हैं। आप मालूम नहीं कर सकते कि कमाते कितना है। अच्छा तुमृ जाओ।
मैं समझ नहीं पाया कि आख़िरी बात के लिए वे रूक क्यों गए थे। आज्ञाकारी की तरह मैं कमरे पर लौट आया। दूसरे कमरे में बच्चे हल्ला कर रहे हैं। माँ खीज रही है। मैं दरवाज़ा बंद किए बैठा हूँ। ये कमरा। सिर्फ़ दूबेजी का कमरा। कितना अजीब है। छीना-झपटी और रोना गाना। होल्डाल से डब्बा निकाल कर गाजर की बर्फ़ी निकाल लेता हूँ। दरवाज़ा खोलकर कमरे से बाहर आता हूँ। बच्चों ने तो सारा सामान अस्त-व्यस्त कर दिया है। वे पाँच हैं। वे सब चुप होकर मुझे देखने लगते हैं। मैं बर्फ़ी उन्हें दे देता हूँ। वे हैरान होकर मुझे देखने लगते हैं। दिल्ली के बच्चे। दूबेजी, दिल्ली के बच्चे। उनकी माँ सिर से दुपट्टा सरका कर मुँह से लगा लेती है। शायद हँस रही है कहती है—ये ऐसे नहीं मानेंगे। अब तो और रोएँगे। गाजर की मिठाई खाई है कभी तुम लोगों ने, अब चुप होना।
चुप तो हैं—मैंने कहा।
अब हम बहुत कुछ कहते। मसलन
आप इन्हें स्कूल क्यों नहीं भेज देती?
अरेऽऽ कहाँऽऽ
कम से कम बड़े को?
अगले साल देखेंगे।
सिंघ साब जल्दी निकल जाते हैं।
एक जगह और थोड़ा काम करते हैं।
ज़माना बड़ा मँहगा है।
हं जी।
तीन में से एक दूबेजी को दे दिया तो घर भी छोटा होगा?
हाँऽऽ
चलो ये तो है कुछ पैसे आ जाते हैं।
हं जी।
आप यहीं की हैं?
नहीं जी।
छुट्टियों में गाँव जाती होंगी?
अरेऽऽ कहाँऽऽ
मँहगाई बहुत है।
हाँऽऽ
पूरा नहीं पड़ता।
हाँ।
हाँ।
हाँ।
इसी तरह से कुछ बातचीत होती। इसके पहले ही मैं कमरे में आ गया।
आदमी जब अकेला होता है इस पर भी अकेला नहीं होता। अपने आपसे लड़ता रहता है। कुछ सुझाता है। हँसता है। और कभी-कभी लड़ते-लड़ते उक्ताहट होती है। संशय या हार के दौरान। कभी लड़ते-लड़ते आयतन कम हो जाता है। किस चीज़ का। मुझे मालूम नहीं। परंतु कोई चीज़ सिकुड़ जाती है, यह तय है। इसको मैं कह देता हूँ कि कुछ लुप्प हो गया। शायद आप कुछ और कहते हों। कुछ भी कहें क्या फ़र्क़ पड़ता है।
बहुत बार, शुरू में ऐसा हुआ कि इसी लड़ाई के कारण मैं अपने को दूसरी से अलग कर लेता था। शानदार लड़ाई जो मेरे अंदर चल रही है वह दूसरों में कहा! बाद में, अनेक लत भंजन के बाद यह महसूस हुआ कि अकेला वीर मैं ही नहीं। कोरस में कई वीर हैं। अब आप यह कहिए कि ये तो लड़ाई का वो हिस्सा है जो महत्वाकांक्षा के निकट आता है।
बहुत ठीक, बहुत ठीक। यह निहायत ख़ुशी की बात है कि लड़ाई के उस हिस्से को हम, कम-अज़-कम पहचान तो रहे जो अंदरूनी मामला है। किंतु ये सिकुड़न है न वो तनाव (कैसा वाहियात शब्द है) पैदा कर देती है जो लड़ाई के दूसरे हिस्से की भी रंगाई करता है।
मैं उक्ता गया।
सारे कमरे की चीज़ें क़रीने से लगा दीं। और फिर बिस्तर पर लेट गया। तकिए में से लिफ़ाफ़ा निकाला। श्रीमती का पत्र है—
अपना बच्चा है। भला है। अपने यहाँ लगा सको तो इस पर दया होगी। सब ठीक है।
श्रम की क़दर की जाती हो तो बाईस वर्ष थोड़े नहीं होते।
इसके बाद दया?
लुप्प्
लुप्प्
लुप्प् लुप्प्
लुप्प्
मुझे अचानक महसूस हुआ मैं दिल्ली में हूँ। मुझे लाल क़िला देखना चाहिए। मुझे कुतुब देखना चाहिए।
नहीं। कुछ भी नहीं। मैं यहाँ सिर्फ़ नौकरी करने आया हूँ। मेरे शहर में भी बहुत सी चीज़ें है। जिन्हें देखकर मैं ख़ुश होता था। छोटी-छोटी टोकरियाँ, गत्ता मिल का धुआँ।
पिछले साल से फिर कहीं नहीं निकला कभी कभार कोई मिल जाता तो कहता—कहो कुछ जमा?
नहीं
दूसरा, कहीं कुछ जमा?
यार, पी.एच.डी. कर रहा हूँ।
तीसरा, कहीं कुछ जमा?
यार, सोचता हूँ फॉरेन निकल जाऊँ।
चौथा मिले इससे पहले मैं घर में क़ैद रहने लगा। निर्वासन। घर का निर्वासन। दिल्ली का निर्वासन। समय का ज़िंदगी से निर्वासन। मैं तैयार होता हूँ। हजामत बनाकर धुले कपड़े पहनता हूँ। श्रीमती का पत्र जेब में रख लेता हूँ पत्र को निकाल कर चोर जेब में रख लेता हूँ।
लुप्प् लुप्प्
बस नं. 15
अब
अब नं. 11
आप सीधे चले जाइए। फिर दाएँ फिर दाएँ। लाल भवन। लिफ़्ट पकड़िए और ऊपर छठी मंज़िल।
मैं आ गया हूँ।
कार्यालय में घुसता चला जाता हूँ। सिर झुकाए लोग काग़ज़ों से जूझ रहे हैं। मैं किसी से पूछता हूँ तो पूछने के पहले ही सिर हिला देता है। फिर कोई उँगली की नोक पर बैठाकर एक चैंबर में लुढ़का देता है। हम उम्र चुस्त नौजवान से पूछ रहा हूँ। चोर जेब में मेरा हाथ थरथरा रहा है। वह कहता है मैनेजर साब अभी नहीं है। पाँच दिन बाद आएँगे। फिर आइएगा।
पाँच दिन और? पहले चिंता फिर ख़ुशी। परीक्षा भवन से बाहर निकल जाने जैसी ख़ुशी। रास्ते में पूछते-पूछते बस से लौट आया। भोजन करके कमरे पर आ गया। शाम तो हो रही है। अब दूबेजी को आ जाना चाहिए। वोट क्ल पर बहुत बड़ा लाल सूरज पत्थरों के भवन के पीछे था। पानी पर भवन, रंग और पूरी भव्यता हिलोर ले रही थी। मैंने तय किया कि नौकरी लगने पर सब कुछ देखूँगा। सब कुछ। नौकरी होने पर सब कुछ आसान हो जाता है क्या?
चार पाँच दिन।
शामें ही ऐसी है, जबकि लगता है कि दिल्ली में हूँ। नए शहर में हूँ। वरना सुबह होटल, लेटना दुपहर फिर शाम। कुछ किताबें साथ लाया था। परंतु वे वैसी की वैसी धरी रही। क्या पढूँ कुछ समझ नहीं आता। जो भी कुछ पढ़ लो किंतु यह निश्चित है कि काम नहीं आएगा। वे सब मूर्धन्य सारी पढ़ाई पर पानी फेर देंगे। फ्रायड की औरतें, पावलोव के कुत्ते, कोह के बंदर, बड़बड़ाहट में हँसता गाँधी। सब बेमानी हो गए अब जो है वह श्रीमंत का पत्र और एक नई दुनिया। या शायद दुनिया जिसमें पहली बार धँस रहा हूँ।
दूबेजी थके हारे शाम को लौटते हैं। पूछते हैं—कुछ पढ़ा?
मैं कहता हूँ, नहीं, और हँसता हूँ।
दिन भर पड़े-पड़े क्या करते हो?
सोता हूँ।
कहानियाँ ही पढ़ा करो।
श्रीमती का पत्र पाँच छे दफ़े पढ़ लेता हूँ।
दूबेजी कुछ नहीं कहते। नए कपड़े पहन कर तैयार होते हैं। योग जैसी दो चार चीज़ें निकालते हैं। फिर आइने में तरह-तरह से चेहरा देखते हैं। गाल फुलाकर। पिचकाकर। आँख के पपोटै खींचकर। दाँत निकालकर आईना देखते हुए मुझसे पूछते हैं—मुन्ना मेरी उम्र क्या लगती होगी?
मैं झूठ बोलता हूँ—3
नहीं यार! फिर से देखो। अपना चेहरा मेरे सामने कर देते हैं।
बिलकुल 3।
वे उमग जाते हैं—कितना मेंटेन करके रखा है मैंने। अब तो ख़ैर सेहत थोड़ी गिर गई नहीं तो कोई भी 17-28 से कम समझता।
हाँ। मैं कहूँगा ही।
यार धक्कम धक्के में मर गए। एक के बाद एक चार नौकरी। इधर से उधर। सैटिल ही नहीं हो पाए।
सैटिल यानी शादी?
शादी भी। क्यों हमारी इच्छा नहीं हो सकती क्या?
तो क्या? शादी कर लीजिए। भाभी को घर छोड़ आना।
मैं ही ख़ुद 4 साल से घर नहीं गया।
4 साल!
हाँ।
आपको याद नहीं आती?
नहीं। कुछ रुपया जुड़े तब घर जाएँ।
इसके बिना नहीं?
जाना कोई मतलब नहीं रखता। न मेरे लिए न उनके लिए।
ऐसा नहीं है।
तुम अभी बच्चे हो मुन्ना। धीरे-धीरे व्यावहारिक बनोगे।
आप अपनी उम्र का फ़ायदा उठा लेते हैं। मैं एकदम बच्चा नहीं हूँ। सचमुच आपको याद नहीं आती?
धीरे-धीरे भूल जाता हूँ। अच्छा उठो चलो।
हर बार वही कनॉट प्लेस!
पिछली बार जब मैं पेरिस में था तब मेपिल की पत्तियाँ इसी तरह सड़क किनारे छा जाती थीं। मुझे पेरिस की बेहद याद आ रही है!
मुन्ना मुझे न्यूयार्क की!
अच्छा चलो कोई बात नहीं। हम मिलकर पेरिस चलेंगे।
नहीं न्यूयार्क।
एग्री।
बहुत चमकीली रौशनियाँ। बहुत अमीर हँसियाँ। बहुत कोमल सरसराहटें। दूबेजी दो साफ़्टी ख़रीदते हैं।
वे कहते हैं—मुन्ना जब मैं बिलकुल अकेला होता हूँ। तो एक साफ़्टी ख़रीद लेता हूँ। और बीच भीड़ में खड़ा खाता हूँ। टकराते हुए लोगों से मन बहल जाता है।
अपने शहर की तरह यहाँ भी अपने मुहल्ले होंगे। वे सभी क्या इसी तरह से साफ़्टी खाएँगे?
दूबेजी बोलते नहीं। हम पार्क के चारों तरफ़ घूमते हैं। रीगल में पोस्टर देखते हैं। आती-जाती लड़कियों के कसे लिहोर लेते उरुज़, मुड़-मुड़ कर देखते हैं। इतने में लगता है रात हो रही है। दूबेजी हाथ पैर दुखने का बहाना करते हैं, फिर व्हिस्की ख़रीदते हैं। पार्क के कोने में जाकर गटकते हैं और कहते हैं। चायघर में बैठेंगे।
चायघर में बैठते ही दो-तीन दुआ सलाम वाले मित्र क़रीब आ जाते हैं। दूबेजी ज़ोर-ज़ोर से बतलाते है कि वे 'फ़लां हाऊस' से पार्टी लेकर आ रहे हैं। स्कॉच और तंदूरी मुर्ग़ा। फिर काफ़ी ऊँची-ऊँची बातें। थकने पर उठते हैं। आवाजाही कम हो गई है। हम बस अड्डे की ओर जाते हैं। ये कोई चीज़ गुनगुना रहे हैं। यकायक मुझसे पूछते हैं—और शहर के क्या हालचाल है?
शहर माने...
शहर माने...
शहर माने....
कोई पाठ हो इसके पहले ही बोलता हूँ—आप ही सुनाइए!
दूबेजी एक क़िस्सा चुनते हैं। प्रेमिका के बारे में। हम रुक कर एक छोटे-से होटल में भोजन करते हैं। दूबेजी का क़िस्सा जारी है। वे सुबकने लगते हैं और उन्हें बहुत सी बातें याद आती हैं। काश, मैं कोई सिलसिलेवार ज़िंदगी जीता। अब नहीं है कुछ नहीं है। मेरा कोई नहीं है। न आगे न पीछे। मैं किसी को भी मार डालूँगा। जेल चला जाऊँगा। मेहनत करने पर दो रोटी वहाँ भी मिल जाएगी।
क़मीज़ से नाक पोंछकर वे उठते हैं। मैं सरदारजी को पैसा देता हूँ।
वे दूबेजी को विनोदी ढंग से देखकर हँसते हैं।
कमरे पर आते ही वे बिस्तर पर लेट जाते हैं। फिर नाक बजने लगती है। मैं होल्डाल पर पसर जाता हूँ। बिजली बंद कर देता हूँ।
दहशत
एक साफ़ सुथरा अंत
बस इतना ही होगा?
नींद आती नहीं...
मैंने चिट पहुँचा दी। केयरऑव श्रीमंता। चेंबर के अंदर गहमागहमी है। जो चिट ले गई थीं, उन्होंने आकर कहा कि मीटिंग चल रही है। यहीं बैठिए। सोफ़े पर मैं बैठा रहा और डरता रहा। वे टाइपराइटर खटखटा रही थीं। मालूम नहीं क्यों सेक्रेटरी के नाम से हेलन की छवि याद आती है (स्त्री हेलन मुझे माफ़ करें)। मगर इस शालीन चेहरे को देखकर अच्छा लगता है। अपना डर, कनखियों से देखकर कम कर रहा हूँ।
अचानक दरवाज़ा भड़भड़ा कर खुलता है। एक सज्जन विलाप करते हुए दोनों कमरों के बीचों-बीच पसर गए हैं। वे अत्यंत करूणा के साथ रो रहे हैं। गले की टाई ढीली हो गई है। कुछ लोग अंदर है। कुछ लोग बाहर से जमा होते जा रहे हैं। मैं भी हड़बड़ाहट में खड़ा हो गया हूँ। सब जस के तस खड़े हैं। वे रो रहे हैं—मुझे मैनेजर साब ने मारा। और इसके बाद ही कहते हैं—मेरी नौकरी चली जाएगी। वे ज़ोरों से रोते हैं। बार-बार यही शब्द। मैं समझ नहीं पाता वे सम्मान के लिए रो रहे हैं या नौकरी के लिए।
लुप्प् लुप्प्
लुप्प्
सब पत्थर की तरह जड़ हैं। अंत में मैनेजर कहते हैं—इसे पानी पिलाओ और आप लोग अपना-अपना काम करिए।
लंबी-चौड़ी मेज़ के पीछे मैनेजर ने हाथ हिलाकर आदेश दिया। कर्मचारीगण घिसटते हुए कुर्सियों की तरफ़ चले जाते हैं। दो व्यक्ति उन्हें उठाकर चल दिए हैं। वे लिफ़्ट से नीचे उतर जाएँगे। दस मिनिट में सुनसान हो गया।
सायं सायं लुप्प् लुप्प्
जाइए—सेक्रेटरी ने कहा।
मैं चोर जेब से पत्र निकाल लेता हूँ। उन्होंने पत्र पढ़ा और स्नेह से मुझे देखा।
पूछा—घर में सब ठीक है उनके?
जी।
उनके रिश्ते में हो?
जी नहीं।
फिर?
घरेलू पहचान है।
ठीक है। उन्होंने एक फ़ार्म निकाला और लिख दिया, जिसका मतलब यह कि ले लिया जाए।
मैं बाहर आकर फ़ार्म भरने लगा। उन्होंने यह भी नहीं पूछा, मेरी योग्यता क्या है? मेरी रुचि किसमें है?
लिखते हुए ऐसा लगा मानों मुर्दा अंगों का प्रदर्शन कर रहा हूँ।
रुचि और विशेष योग्यता के खाने में एक लंबी लकीर खींच दी।
कंपनी की शर्तों के नीचे, जो मेरी ओर से छपी थी, उसके नीचे हस्ताक्षर घसीटे। लुप्प-लुप्प। फ़ार्म जमा किया। कल से यहाँ आना है। बाहर आया तो देखा, वह अपना भारी चेहरा लिए, बाँहों में बैग दबाए प्रतीक्षा कर रहा है। टाई यथास्थान है। मैं उससे नज़रें बचाता निकल गया। (हालाँकि मुझे जानता थोड़ी)।
कोई एक निर्धारित कुर्सी। फ़ाइलें। पानी, चाय, लंच। घंटे, दिन, महीने।
लुप्प् लुप्प्
धड़ाम ऊ ऊँ हा हा
मारा मारा मारा
नौकरी नौकरी नौकरी प्रतीक्षा
लुप्प् लुप्प्
दूबेजी हँसते हैं। दूबेजी रायल आदमी हैं। दूबेजी कहते हैं, व्यावहारिक हैं। दूबेजी सुबह हँसते हैं, रात को रोते हैं। दूबेजी कहते हैं, अच्छा अब छोड़ो। चलो कनॉट तक हो आएँ। मैं मना करता हूँ। मुझे कनॉट से दहशत होती है। वे कंइयाँ में लेने लगते हैं। चलो चलो। यू आर अ यंग चैप। वे समझते हैं मैं थक गया हूँ।
हम वही सड़कें पार करते हैं। उसी घास को रौंदते हैं। उसी मार्के की शराब वे पीते हैं।
लौटते हैं तो कार्यक्रम बनता है एम.पी. कैंटीन में खाया जाए। बस बदल कर जाते हैं।
कैंटीन में साफ़ सुथरे कपड़े पहने विक्रम स्वागत करता है।
अबे तू यहाँ?
हौ।
कैसे?
वो साला समझता है कि चौबीसों घंटों के लिए ख़रीद लिया। अपने शौक़ के कुछ करो तो चिढ़ जाता है।
दारू कब से पीने लगा।
दारू नहीं साब कपड़े, सिनेमा।
अच्छा अच्छा
साब मेहनत करेंगे तो अपने लिए ना।
अच्छा खाना लाओ।
दूबेजी बतला रहे हैं, जब नौजवान थे तब एक लड़के की कितनी पिटाई की थी। वैसे अब भी किसी को पछाड़ सकते हैं।
भोजन करते मैंने कहा—मैं दिल्ली छोड़ना चाहता हूँ। हाँ मेरे कानों ने भी सुना।
घूर कर उन्होंने मुझे देखा, फिर कहा—तुम्हारी फ़ैमिली 'बै' ग्राउंड है। कर सकते हो। अरे मेरे पास जायदाद होती न तो मैं ज़रूर आई.ए.एस. में आ जाता। वे रुआँसे हो गए। उन्होंने मुझसे कहा—तुम्हें दिल्ली से क़तई नहीं डरना चाहिए। यहाँ तो बस छह महीने....
दिल्ली से मैं डरा नहीं हूँ। शहर किसी को डराता नहीं है। मैंने फिर कहा—मैं दिल्ली छोड़ दूँगा।
शायद, उन्होंने सुना नहीं।
वे ग्लास में ही हाथ धोकर क़मीज़ से पोंछने में व्यस्त थे।
kolahal ke beech main chup tha. ji haan, mujhe bahut zoron se laga ki apne shahr mein hota to kam se kam sitinuma avaz to zarur nikalta. kuch kasrat ki koshish karta aur station ke har aane jane vale vekti ko pahchanne ke liye muD muD kar dekhta apne shahr mein to har adami pahchana pahchana lagta hai. magar yahan is khel mein kise shamil karta? tamtamaye chehron ki hansi khushi, dauD lagate hue bachche aur gahre vishad mein latke hue siron ko door se baithkar dekhana ek khel hi nahin tha. usmen thoDa sa Dar bhi mila hua tha. aaj pahli baar lag raha hai, kisi cement ki bainch par baitha koi laDka mere Dar ko bhaanp raha hoga. shayad ab khel nahin hoga sirf Dar hoga. aur majburan isi Dar se wo khel raha hoga.
suitcase aur holDal ghasit kar ek kinare par kar diya. dubeji ne aane ko likha tha to ayenge zarur hi. ho sakta hai khojte hue aa rahe hon. manjan kar leta to achchha tha. parantu is chakkar mein kho jaunga. ptriyon ke us paar bambe ke niche kuch log nha rahe hain. sharir mal mal kar nha rahe hain. aur phate chikat kapDon ko phatkar kar pahan rahe hain. teen tangon ke sahare uchakta hua kutta aurat ki roti soongh raha hai. uski ek taang gaDi se kati hogi aur aurat station ke bahar kahin pagal ho gai hogi.
ve dubeji chale aa rahe hain. nili jeans ki pant aur coati pahne hain. lagbhag dauDte hue aate hain. itni bhiDbhaD mein kya kah rahe hain, kuch sunai nahin deta. keval muskurahat pakaD pata hoon. are malik! jai raam ji—mainne donon haath utha diye.
haay ya high aisa kuch dubeji ne kaha aur apne donon haath kulhe par dhar liye. mere haath mai kohaniyon ke jhulte hue niche aa gaye. achchha chalo. jaldi chalen. phir mujhe office jana hai. skutar le lete hain. dubeji ne ek saans mein kaha aur kuli ko avaz dene lage. unhonne mujhe chupchap dekhkar hi shayad yakayak apne haath mere kandhe par rakh diye phir mujhe dekha ya kahiye ki jayza liya aur puchha ki na ho to chaay pi li jaye. main kafi der tak chup raha. vastav mein dubeji ki phurti se main sutt rah gaya aur kafi der tak is phurti mein dubeji ki purani adten DhoonDh raha tha.
dekho yadi is tarah sustram rahe to dilli tumhein kha jayegi samjhe munna. chaay piyoge n?
aisa karte hain ki ghar par hi lenge.
ghar kahan yaar! kamra kaho. yahan chaay to main banata nahin. khair chalo vahin kahin pi lenge.
skutar mein baithkar pahli baar dubeji ne gharelu andaz mein puchha—aur kya haal chaal hain shahr ke?
shahr mane mata pita bhai bahin
shahr mane premika
shahr mane talab peD pul
shahr mane dost
shahr mane saDken
main kaise sari baten suktiyon mein unhen bata sakta? kah diya—shahr ki tabiyat durust hai. suktiyan kabhi kisi ka bhala nahin kar saktin. ve unki jigyasaon par keel ki tarah thuk gai to. dubeji phir batlane lage—yah kanaut circus hai. ye parliament street. ye ashoka hotel. kal se ghumenge, munna, aaj to tum aram karna.
mera khayal hai, aaj hi unse main mil leta?
ve jaan gaye ki main dilli darshan ke liye nahin aaya hoon. kaam par aaya hoon.
aaj hi miloge?
mil lete to achchha tha.
pahle apan phone kar lenge.
chala hi jata to?
phone par baat karte Dar lagega kyaa?
haan, Dar ko nissankoch hokar khola.
tumhein kis baat ka Dar bhai. thaath se kahna tumhare damad aaye hain.
gaDi bhejo phataphat.
aul saikletli bhej denge to phil?
to sekretari ko rakh lenge aur gaDi bhej denge. theek?
theek!
theek?
theek!!
dubeji ki sahayata se main vibhor hota raha. aur ab to main ye kahunga ki dubeji baDe rayal adami hain. station par utarte hi mujhe laga tha ki sabhi log kisi saDyantr ke tahat bhagdauD kar rahe hain. aur ismen se koi na koi ant mein mera tentua daba dega. par ab chain hai. dubeji jane bujhe hain, koi Dar nahin.
tum prem patr le aaye ho na?
ab jab tak prem patr hai main mar nahin sakta. vahi to aaya hai, uske pichhe pichhe main dumchhalla hoon.
dubeji, paDhai puri kiye abhi ek saal hua hai. phula phula phira jagat mein, kuch din tak. first division i hai. kya baat hai. va bhai main, va. pitaji bhi kahte rahe i. e. s. mein baitho. yadi yahin mera antim uddeshy hota na dubeji to main kam se kam abtak selstaiks inspektar to ho hi gaya hota. mainne do teen intravyuj diye. nahin hua tab sabko divy gyaan praapt hua. pitaji i. e. s. se dhire dhire utarte hue 225 ki basic par aa gaye. bais saal ka laDka jab teisven mein nira nalayaq aur moorkh sabit ho jaye to ghar mein aish band ho hi jane chahiye. so anDa aur doodh band hua.
khair, ab to naukari mil hi jayegi. iske saath hi kampitishan ki taiyari karna.
dubeji baat aisi hai. nahin. kya karan hai ki aap ye nahin kahte ki munna naukari lag jayegi to haॉki ki aur achchhi practice karna. man lagakar likhna paDhna. achchhi zindagi jina.
yaar munna, ek baar baDi post pa jaoge na to tumhare baDe baDe marksavadi mitr tumhari jhanDi uthayenge. khair abhi tum bachche ho mere saath rahoge to vyavaharik bana dunga.
dubeji ne skutar ek or muDvakar rukva di. hum donon ne milkar saman utara. dubeji ne Draivar ko paise dete hue kaha—munna tumhein main kampitishan mein baithakar hi chhoDunga.
itni zabardast aur ghalat atmiyata ke liye mainne, hoon kaha aur saman Dhone ka prayatn kiya. dubeji ke saath saman Dhokar dusri manzil par aaye. beech siDhiyon par rukkar unhonne phusaphusakar kaha ki kshansadhji se kahna ki chhota bhai hoon. aur vaise bhi mere bhai ki tarah ho. mainne is qadar sir hilaya manon chori karne ja rahe hon.
darvaza khulne par ek tagDi aurat ko mainne namaste kiya. dubeji kuch bole isse pahle hi unhonne kaha—apke bhai hain? aao ji aao.
hum kritaj~n hote hue andar aaye. bahut sare bachche the aur kamre mein bu bhari hui thi. dubeji ne apne kamre ka tala khola. saman thel kar andar kiya. dubeji ne darvaza band kar liya.
dekho ab tumhein yahan rahna hai. inhen moon lagane ki zarurat nahin hai. nahin to sare bachche yahan aa jayenge. dilli ke log harami hote hain. tumhein kab nanga kar de malum nahin.
aur aapko kiske liye niyukt kiya gaya hai? aap mujhe bhar nanga na karna—main hansa.
unhonne garv ke saath suchana di ki ve kabhi dilli ke nahin rahe. unhonne kaha ki chhah mahine mein yahan ki nas pakDi ja sakti hai. aur ek baar nas pakaD li to phir lakhon ka vara nyara ho jaye. dubeji kuch aur gupt saphalta ke sutron ki jankari dete iske pahle hi mujhe munh dhone ki yaad aa gai. mainne zamin par holDal bichha liya aur baithkar manjan karne laga. do bistaron aur ek mez se kamra bharapura ho gaya. ek varDrob hai jo divar mein samai hui hai. ek rassi ek kone se dusre kone tak tani hui hai jis par kapDe latak rahe hain. mez ke upar dival par haath se bana greeting laga hua hai. ‘dada ko shubh kamnaon sahit kunnu, raju, bantu aur vimla. ’ ek pankti aur likhi gai hogi. jis par nili moti lakir pher di gai hai. sajavat ke naam par yahi ek chippi hai. lekin shayad ye sajavat na ho. mez par kuch kitaben hain. niche plastic ki balti. baqi saman varDrob mein hoga. usmen bhi main apne kapDe rakh lunga.
nibat lene ke baad hum niche utar aaye. dubeji ne kamre par tala laga diya tha. aur office jane ki taiyari mein portfoliyo le liya. mujhe kuch ajib sa lag raha tha. ek ghar mein rahkar apne kamre ko juda rakhna. niche aakar mainne kaha to ve bole dost, ye dilli hai. yahan churkat bhavuk ki tarah tum rahe to zarur tumhari naiyya vijay chauk par Doob jayegi. apna matlab sadho bus. main use kiraya deta hoon kamre ke liye. na ki bhai bhaujai banane ke liye.
paas mein hi hotel thi. logon ne hans hansakar unse namaste ki. tanik avaz ko rathth banakar hotel ke malik se mera parichai karaya gaya. ab yahin nashta karna hai, yahi bhojan karna hai. dubeji ne sneh ke chalte malik ko ek bol mari aur mujhse kaha ki—munna ye vaishnav bhojanalay hai. isliye lahsun aur pyaaz ka bandobast nahin hai. vaishnav hona faydemand isliye hai ki pyaaz manhagi hai. par bahar jo takhat par anDe ubaal raha hai. yahan le ayega. daal muft nahin milegi aur sabzi ki tari sirf ek baar milegi. sari vyavastha samjhane ke baad mathri aur chaay ka nashta kiya. mujhe ghar ki yaad aane lagi. ghar yani maan. mathri yani maan.
chhoot gaya bhai chhoot gaya
ghar angan to chhoot gaya
chhoot gaya bhai chhoot gaya
ghar
angan
chhoot gaya
purane din bahut kharab hote hain. college ke dinon ke julus, band mutthiyan, nare, san sanahat, ghussa. . . pani ki tarah gadabdata magar julus rok leta hoon. makkar adami ki tarah hansta hoon kyonki dubeji ek naukar se dhaul dhapp kar rahe hain. das ya barah ke qarib ka laDka. mota hansmukh.
munna apne ko ye khata khilata hai. vikram hai. sala badmash hai. par kaam achchha karta hai.
mainne usse kaha—vikram ab main bhi yahan khaya karunga.
theek hai saab, apni to yahi naukari hai. usne adakari mein sir jhukaya aur puchha, samose chalenge?
dubeji ne ghaDi dekhi. kaha, nahin chahiye. phir meri taraf hokar bole, chalo utho mujhe jana hai. unhonne mujhe chabi de di. bole shaam ko jaldi aa jaunga. aaj to tum kamre par aram karo. kal tumhare saath chale chalunga. fraichliv ho jayegi. ve portfoliyo jhulate hue bus staup ki or chalne lage. main bhi pichhe pichhe chalne laga to unhonne mana kar diya—jao munna, jake aram karo. phir rukkar bole tumhein malum hai munna, sale jo do do hazar pate hain, wo bhi dhakka khate khaDe rahte hain. aap malum nahin kar sakte ki kamate kitna hai. achchha tumri jao.
main samajh nahin paya ki akhiri baat ke liye ve rook kyon gaye the. agyakari ki tarah main kamre par laut aaya. dusre kamre mein bachche halla kar rahe hain. maan kheej rahi hai. main darvaza band kiye baitha hoon. ye kamra. sirf dubeji ka kamra. kitna ajib hai. chhina jhapti aur rona gana. holDal se Dabba nikal kar gajar ki barfi nikal leta hoon. darvaza kholkar kamre se bahar aata hoon. bachchon ne to sara saman ast vyast kar diya hai. ve paanch hain. ve sab chup hokar mujhe dekhne lagte hain. main barfi unhen de deta hoon. ve hairan hokar mujhe dekhne lagte hain. dilli ke bachche. dubeji, dilli ke bachche. unki maan sir se dupatta sarka kar munh se laga leti hai. shayad hans rahi hai kahti hai—ye aise nahin manenge. ab to aur roenge. gajar ki mithai khai hai kabhi tum logon ne, ab chup hona.
chup to hain—mainne kaha.
ab hum bahut kuch kahte. masalan
aap inhen school kyon nahin bhej deti?
areऽऽ kahanऽऽ
kam se kam baDe ko?
agle saal dekhenge.
singh saab jaldi nikal jate hain.
ek jagah aur thoDa kaam karte hain.
zamana baDa manhaga hai.
han ji.
teen mein se ek dubeji ko de diya to ghar bhi chhota hoga?
haanऽऽ
chalo ye to hai kuch paise aa jate hain.
han ji.
aap yahin ki hain?
nahin ji.
chhuttiyon mein gaanv jati hongi?
areऽऽ kahanऽऽ
manhgai bahut hai.
haanऽऽ
pura nahin paDta.
haan.
haan.
haan.
isi tarah se kuch batachit hoti. iske pahle hi main kamre mein aa gaya.
adami jab akela hota hai is par bhi akela nahin hota. apne aapse laDta rahta hai. kuch sujhata hai. hansta hai. aur kabhi kabhi laDte laDte uktahat hoti hai. sanshay ya haar ke dauran. kabhi laDte laDte ayatan kam ho jata hai. kis cheez ka. mujhe malum nahin. parantu koi cheez sikuD jati hai, ye tay hai. isko main kah deta hoon ki kuch lupp ho gaya. shayad aap kuch aur kahte hon. kuch bhi kahen kya farq paDta hai.
bahut baar, shuru mein aisa hua ki isi laDai ke karan main apne ko dusri se alag kar leta tha. shanadar laDai jo mere andar chal rahi hai wo dusron mein kaha! baad mein, anek lat bhanjan ke baad ye mahsus hua ki akela veer main hi nahin. koras mein kai veer hain. ab aap ye kahiye ki ye to laDai ka wo hissa hai jo mahatvakanksha ke nikat aata hai.
bahut theek, bahut theek. ye nihayat khushi ki baat hai ki laDai ke us hisse ko hum, kam az kam pahchan to rahe jo andaruni mamla hai. kintu ye sikuDan hai na wo tanav (kaisa vahiyat shabd hai) paida kar deti hai jo laDai ke dusre hisse ki bhi rangai karta hai.
main ukta gaya.
sare kamre ki chizen qarine se laga deen. aur phir bistar par let gaya. takiye mein se lifafa nikala. shirimati ka patr hai—
apna bachcha hai. bhala hai. apne yahan laga sako to is par daya hogi. sab theek hai.
shram ki qadar ki jati ho to bais varsh thoDe nahin hote.
iske baad daya?
lupp
lupp
lupp lupp
lupp
mujhe achanak mahsus hua main dilli mein hoon. mujhe laal qila dekhana chahiye. mujhe kutub dekhana chahiye.
nahin. kuch bhi nahin. main yahan sirf naukari karne aaya hoon. mere shahr mein bhi bahut si chizen hai. jinhen dekhkar main khush hota tha. chhoti chhoti tokariyan, gatta mil ka dhuan.
pichhle saal se phir kahin nahin nikla kabhi kabhar koi mil jata to kahta—kaho kuch jama?
nahin
dusra, kahin kuch jama?
yaar, pi. ech. d. kar raha hoon.
tisra, kahin kuch jama?
yaar, sochta hoon foreign nikal jaun.
chautha mile isse pahle main ghar mein qaid rahne laga. nirvasan. ghar ka nirvasan. dilli ka nirvasan. samay ka zindagi se nirvasan. main taiyar hota hoon. hajamat banakar dhule kapDe pahanta hoon. shirimati ka patr jeb mein rakh leta hoon patr ko nikal kar chor jeb mein rakh leta hoon.
karyalay mein ghusta chala jata hoon. sir jhukaye log kaghazon se joojh rahe hain. main kisi se puchhta hoon to puchhne ke pahle hi sir hila deta hai. phir koi ungli ki nok par baithakar ek chaimbar mein luDhka deta hai. hum umr chust naujavan se poochh raha hoon. chor jeb mein mera haath tharthara raha hai. wo kahta hai manager saab abhi nahin hai. paanch din baad ayenge. phir aiyega.
paanch din aur? pahle chinta phir khushi. pariksha bhavan se bahar nikal jane jaisi khushi. raste mein puchhte puchhte bus se laut aaya. bhojan karke kamre par aa gaya. shaam to ho rahi hai. ab dubeji ko aa jana chahiye. vote kl par bahut baDa laal suraj pattharon ke bhavan ke pichhe tha. pani par bhavan, rang aur puri bhavyata hilor le rahi thi. mainne tay kiya ki naukari lagne par sab kuch dekhunga. sab kuch. naukari hone par sab kuch asan ho jata hai kyaa?
chaar paanch din.
shamen hi aisi hai, jabki lagta hai ki dilli mein hoon. nae shahr mein hoon. varna subah hotel, letana duphar phir shaam. kuch kitaben saath laya tha. parantu ve vaisi ki vaisi dhari rahi. kya paDhun kuch samajh nahin aata. jo bhi kuch paDh lo kintu ye nishchit hai ki kaam nahin ayega. ve sab murdhany sari paDhai par pani pher denge. phrayaD ki aurten, pavlov ke kutte, koh ke bandar, baDabDahat mein hansta gandhi. sab bemani ho gaye ab jo hai wo shrimant ka patr aur ek nai duniya. ya shayad duniya jismen pahli baar dhans raha hoon.
dubeji thake hare shaam ko lautte hain. puchhte hain—kuchh paDha?
main kahta hoon, nahin, aur hansta hoon.
din bhar paDe paDe kya karte ho?
sota hoon.
kahaniyan hi paDha karo.
shirimati ka patr paanch chhe dafe paDh leta hoon.
dubeji kuch nahin kahte. nae kapDe pahan kar taiyar hote hain. yog jaisi do chaar chizen nikalte hain. phir aine mein tarah tarah se chehra dekhte hain. gaal phulakar. pichkakar. ankh ke papotai khinchkar. daant nikalkar aina dekhte hue mujhse puchhte hain—munna meri umr kya lagti hogi?
main jhooth bolta hoon—3
nahin yaar! phir se dekho. apna chehra mere samne kar dete hain.
bilkul 3.
ve umag jate hain—kitna menten karke rakha hai mainne. ab to khair sehat thoDi gir gai nahin to koi bhi 17 28 se kam samajhta.
haan. main kahunga hi.
yaar dhakkam dhakke mein mar gaye. ek ke baad ek chaar naukari. idhar se udhar. saitil hi nahin ho pae.
saitil yani shadi?
shadi bhi. kyon hamari ichha nahin ho sakti kyaa?
to kyaa? shadi kar lijiye. bhabhi ko ghar chhoD aana.
main hi khu 4 saal se ghar nahin gaya.
4 saal!
haan.
aapko yaad nahin ati?
nahin. kuch rupaya juDe tab ghar jayen.
iske bina nahin?
jana koi matlab nahin rakhta. na mere liye na unke liye.
aisa nahin hai.
tum abhi bachche ho munna. dhire dhire vyavaharik banoge.
aap apni umr ka fayda utha lete hain. main ekdam bachcha nahin hoon. sachmuch aapko yaad nahin ati?
dhire dhire bhool jata hoon. achchha utho chalo.
har baar vahi kanaut ples!
pichhli baar jab main peris mein tha tab mepil ki pattiyan isi tarah saDak kinare chha jati theen. mujhe peris ki behad yaad aa rahi hai!
bahut chamkili raushaniyan. bahut amir hansiyan. bahut komal sarsarahaten. dubeji do safti kharidte hain.
ve kahte hain—munna jab main bilkul akela hota hoon. to ek safti kharid leta hoon. aur beech bheeD mein khaDa khata hoon. takrate hue logon se man bahal jata hai.
apne shahr ki tarah yahan bhi apne muhalle honge. ve sabhi kya isi tarah se safti khayenge?
dubeji bolte nahin. hum park ke charon taraf ghumte hain. rigal mein poster dekhte hain. aati jati laDkiyon ke kase lihor lete uruz, muD muD kar dekhte hain. itne mein lagta hai raat ho rahi hai. dubeji haath pair dukhne ka bahana karte hain, phir whisky kharidte hain. park ke kone mein jakar gatakte hain aur kahte hain. chayghar mein baithenge.
chayghar mein baithte hi do teen dua salam vale mitr qarib aa jate hain. dubeji zor zor se batlate hai ki ve falan haus se party lekar aa rahe hain. skauch aur tanduri murgha. phir kafi unchi unchi baten. thakne par uthte hain. avajahi kam ho gai hai. hum bus aDDe ki or jate hain. ye koi cheez gunguna rahe hain. yakayak mujhse puchhte hain—aur shahr ke kya halachal hai?
shahr mane. . .
shahr mane. . .
shahr mane. . . .
koi paath ho iske pahle hi bolta hun—ap hi sunaiye!
dubeji ek qissa chunte hain. premika ke bare mein. hum ruk kar ek chhote se hotel mein bhojan karte hain. dubeji ka qissa jari hai. ve subakne lagte hain aur unhen bahut si baten yaad aati hain. kaash, main koi silsilevar zindagi jita. ab nahin hai kuch nahin hai. mera koi nahin hai. na aage na pichhe. main kisi ko bhi maar Dalunga. jel chala jaunga. mehnat karne par do roti vahan bhi mil jayegi.
qamiz se naak ponchhkar ve uthte hain. main sardarji ko paisa deta hoon.
ve dubeji ko vinodi Dhang se dekhkar hanste hain.
kamre par aate hi ve bistar par let jate hain. phir naak bajne lagti hai. main holDal par pasar jata hoon. bijli band kar deta hoon.
dahshat
ek saaf suthra ant
bus itna hi hoga?
neend aati nahin. . .
mainne chit pahuncha di. keyrauv shrimanta. chembar ke andar gahmagahmi hai. jo chit le gai theen, unhonne aakar kaha ki meeting chal rahi hai. yahin baithiye. sofe par main baitha raha aur Darta raha. ve taipraitar khatkhata rahi theen. malum nahin kyon sekretari ke naam se helan ki chhavi yaad aati hai (istri helan mujhe maaf karen). magar is shalin chehre ko dekhkar achchha lagta hai. apna Dar, kanakhiyon se dekhkar kam kar raha hoon.
achanak darvaza bhaDabhDa kar khulta hai. ek sajjan vilap karte hue donon kamron ke bichon beech pasar gaye hain. ve atyant karuna ke saath ro rahe hain. gale ki tie Dhili ho gai hai. kuch log andar hai. kuch log bahar se jama hote ja rahe hain. main bhi haDbaDahat mein khaDa ho gaya hoon. sab jas ke tas khaDe hain. ve ro rahe hain—mujhe manager saab ne mara. aur iske baad hi kahte hain—meri naukari chali jayegi. ve zoron se rote hain. baar baar yahi shabd. main samajh nahin pata ve samman ke liye ro rahe hain ya naukari ke liye.
lupp lupp
lupp
sab patthar ki tarah jaD hain. ant mein manager kahte hain—ise pani pilao aur aap log apna apna kaam kariye.
lambi chauDi mez ke pichhe manager ne haath hilakar adesh diya. karmcharigan ghisatte hue kursiyon ki taraf chale jate hain. do vekti unhen uthakar chal diye hain. ve lift se niche utar jayenge. das minit mein sunsan ho gaya.
sayan sayan lupp lupp
jaiye—sekretari ne kaha.
main chor jeb se patr nikal leta hoon. unhonne patr paDha aur sneh se mujhe dekha.
puchha—ghar mein sab theek hai unke?
ji.
unke rishte mein ho?
ji nahin.
phir?
gharelu pahchan hai.
theek hai. unhonne ek faarm nikala aur likh diya, jiska matlab ye ki le liya jaye.
main bahar aakar faarm bharne laga. unhonne ye bhi nahin puchha, meri yogyata kya hai? meri ruchi kismen hai?
likhte hue aisa laga manon murda angon ka pradarshan kar raha hoon.
ruchi aur vishesh yogyata ke khane mein ek lambi lakir kheench di.
company ki sharton ke niche, jo meri or se chhapi thi, uske niche hastakshar ghasite. lupp lupp. faarm jama kiya. kal se yahan aana hai. bahar aaya to dekha, wo apna bhari chehra liye, banhon mein bag dabaye pratiksha kar raha hai. tie yathasthan hai. main usse nazren bachata nikal gaya. (halanki mujhe janta thoDi).
dubeji hanste hain. dubeji rayal adami hain. dubeji kahte hain, vyavaharik hain. dubeji subah hanste hain, raat ko rote hain. dubeji kahte hain, achchha ab chhoDo. chalo kanaut tak ho ayen. main mana karta hoon. mujhe kanaut se dahshat hoti hai. ve kaniyan mein lene lagte hain. chalo chalo. yu aar a young chaip. ve samajhte hain main thak gaya hoon.
hum vahi saDken paar karte hain. usi ghaas ko raundte hain. usi marke ki sharab ve pite hain.
lautte hain to karyakram banta hai em. pi. canteen mein khaya jaye. bus badal kar jate hain.
canteen mein saaf suthre kapDe pahne vikram svagat karta hai.
abe tu yahan?
hau.
kaise?
wo sala samajhta hai ki chaubison ghanton ke liye kharid liya. apne shauq ke kuch karo to chiDh jata hai.
daru kab se pine laga.
daru nahin saab kapDe, cinema.
achchha achchha
saab mehnat karenge to apne liye na.
achchha khana lao.
dubeji batala rahe hain, jab naujavan the tab ek laDke ki kitni pitai ki thi. vaise ab bhi kisi ko pachhaD sakte hain.
bhojan karte mainne kaha—main dilli chhoDna chahta hoon. haan mere kanon ne bhi suna.
ghoor kar unhonne mujhe dekha, phir kaha—tumhari faimili bai ground hai. kar sakte ho. are mere paas jayadad hoti na to main zarur i. e. s. mein aa jata. ve ruanse ho gaye. unhonne mujhse kaha—tumhen dilli se qatii nahin Darna chahiye. yahan to bus chhah mahine. . . .
dilli se main Dara nahin hoon. shahr kisi ko Darata nahin hai. mainne phir kaha—main dilli chhoD dunga.
shayad, unhonne suna nahin.
ve glaas mein hi haath dhokar qamiz se ponchhne mein vyast the.
kolahal ke beech main chup tha. ji haan, mujhe bahut zoron se laga ki apne shahr mein hota to kam se kam sitinuma avaz to zarur nikalta. kuch kasrat ki koshish karta aur station ke har aane jane vale vekti ko pahchanne ke liye muD muD kar dekhta apne shahr mein to har adami pahchana pahchana lagta hai. magar yahan is khel mein kise shamil karta? tamtamaye chehron ki hansi khushi, dauD lagate hue bachche aur gahre vishad mein latke hue siron ko door se baithkar dekhana ek khel hi nahin tha. usmen thoDa sa Dar bhi mila hua tha. aaj pahli baar lag raha hai, kisi cement ki bainch par baitha koi laDka mere Dar ko bhaanp raha hoga. shayad ab khel nahin hoga sirf Dar hoga. aur majburan isi Dar se wo khel raha hoga.
suitcase aur holDal ghasit kar ek kinare par kar diya. dubeji ne aane ko likha tha to ayenge zarur hi. ho sakta hai khojte hue aa rahe hon. manjan kar leta to achchha tha. parantu is chakkar mein kho jaunga. ptriyon ke us paar bambe ke niche kuch log nha rahe hain. sharir mal mal kar nha rahe hain. aur phate chikat kapDon ko phatkar kar pahan rahe hain. teen tangon ke sahare uchakta hua kutta aurat ki roti soongh raha hai. uski ek taang gaDi se kati hogi aur aurat station ke bahar kahin pagal ho gai hogi.
ve dubeji chale aa rahe hain. nili jeans ki pant aur coati pahne hain. lagbhag dauDte hue aate hain. itni bhiDbhaD mein kya kah rahe hain, kuch sunai nahin deta. keval muskurahat pakaD pata hoon. are malik! jai raam ji—mainne donon haath utha diye.
haay ya high aisa kuch dubeji ne kaha aur apne donon haath kulhe par dhar liye. mere haath mai kohaniyon ke jhulte hue niche aa gaye. achchha chalo. jaldi chalen. phir mujhe office jana hai. skutar le lete hain. dubeji ne ek saans mein kaha aur kuli ko avaz dene lage. unhonne mujhe chupchap dekhkar hi shayad yakayak apne haath mere kandhe par rakh diye phir mujhe dekha ya kahiye ki jayza liya aur puchha ki na ho to chaay pi li jaye. main kafi der tak chup raha. vastav mein dubeji ki phurti se main sutt rah gaya aur kafi der tak is phurti mein dubeji ki purani adten DhoonDh raha tha.
dekho yadi is tarah sustram rahe to dilli tumhein kha jayegi samjhe munna. chaay piyoge n?
aisa karte hain ki ghar par hi lenge.
ghar kahan yaar! kamra kaho. yahan chaay to main banata nahin. khair chalo vahin kahin pi lenge.
skutar mein baithkar pahli baar dubeji ne gharelu andaz mein puchha—aur kya haal chaal hain shahr ke?
shahr mane mata pita bhai bahin
shahr mane premika
shahr mane talab peD pul
shahr mane dost
shahr mane saDken
main kaise sari baten suktiyon mein unhen bata sakta? kah diya—shahr ki tabiyat durust hai. suktiyan kabhi kisi ka bhala nahin kar saktin. ve unki jigyasaon par keel ki tarah thuk gai to. dubeji phir batlane lage—yah kanaut circus hai. ye parliament street. ye ashoka hotel. kal se ghumenge, munna, aaj to tum aram karna.
mera khayal hai, aaj hi unse main mil leta?
ve jaan gaye ki main dilli darshan ke liye nahin aaya hoon. kaam par aaya hoon.
aaj hi miloge?
mil lete to achchha tha.
pahle apan phone kar lenge.
chala hi jata to?
phone par baat karte Dar lagega kyaa?
haan, Dar ko nissankoch hokar khola.
tumhein kis baat ka Dar bhai. thaath se kahna tumhare damad aaye hain.
gaDi bhejo phataphat.
aul saikletli bhej denge to phil?
to sekretari ko rakh lenge aur gaDi bhej denge. theek?
theek!
theek?
theek!!
dubeji ki sahayata se main vibhor hota raha. aur ab to main ye kahunga ki dubeji baDe rayal adami hain. station par utarte hi mujhe laga tha ki sabhi log kisi saDyantr ke tahat bhagdauD kar rahe hain. aur ismen se koi na koi ant mein mera tentua daba dega. par ab chain hai. dubeji jane bujhe hain, koi Dar nahin.
tum prem patr le aaye ho na?
ab jab tak prem patr hai main mar nahin sakta. vahi to aaya hai, uske pichhe pichhe main dumchhalla hoon.
dubeji, paDhai puri kiye abhi ek saal hua hai. phula phula phira jagat mein, kuch din tak. first division i hai. kya baat hai. va bhai main, va. pitaji bhi kahte rahe i. e. s. mein baitho. yadi yahin mera antim uddeshy hota na dubeji to main kam se kam abtak selstaiks inspektar to ho hi gaya hota. mainne do teen intravyuj diye. nahin hua tab sabko divy gyaan praapt hua. pitaji i. e. s. se dhire dhire utarte hue 225 ki basic par aa gaye. bais saal ka laDka jab teisven mein nira nalayaq aur moorkh sabit ho jaye to ghar mein aish band ho hi jane chahiye. so anDa aur doodh band hua.
khair, ab to naukari mil hi jayegi. iske saath hi kampitishan ki taiyari karna.
dubeji baat aisi hai. nahin. kya karan hai ki aap ye nahin kahte ki munna naukari lag jayegi to haॉki ki aur achchhi practice karna. man lagakar likhna paDhna. achchhi zindagi jina.
yaar munna, ek baar baDi post pa jaoge na to tumhare baDe baDe marksavadi mitr tumhari jhanDi uthayenge. khair abhi tum bachche ho mere saath rahoge to vyavaharik bana dunga.
dubeji ne skutar ek or muDvakar rukva di. hum donon ne milkar saman utara. dubeji ne Draivar ko paise dete hue kaha—munna tumhein main kampitishan mein baithakar hi chhoDunga.
itni zabardast aur ghalat atmiyata ke liye mainne, hoon kaha aur saman Dhone ka prayatn kiya. dubeji ke saath saman Dhokar dusri manzil par aaye. beech siDhiyon par rukkar unhonne phusaphusakar kaha ki kshansadhji se kahna ki chhota bhai hoon. aur vaise bhi mere bhai ki tarah ho. mainne is qadar sir hilaya manon chori karne ja rahe hon.
darvaza khulne par ek tagDi aurat ko mainne namaste kiya. dubeji kuch bole isse pahle hi unhonne kaha—apke bhai hain? aao ji aao.
hum kritaj~n hote hue andar aaye. bahut sare bachche the aur kamre mein bu bhari hui thi. dubeji ne apne kamre ka tala khola. saman thel kar andar kiya. dubeji ne darvaza band kar liya.
dekho ab tumhein yahan rahna hai. inhen moon lagane ki zarurat nahin hai. nahin to sare bachche yahan aa jayenge. dilli ke log harami hote hain. tumhein kab nanga kar de malum nahin.
aur aapko kiske liye niyukt kiya gaya hai? aap mujhe bhar nanga na karna—main hansa.
unhonne garv ke saath suchana di ki ve kabhi dilli ke nahin rahe. unhonne kaha ki chhah mahine mein yahan ki nas pakDi ja sakti hai. aur ek baar nas pakaD li to phir lakhon ka vara nyara ho jaye. dubeji kuch aur gupt saphalta ke sutron ki jankari dete iske pahle hi mujhe munh dhone ki yaad aa gai. mainne zamin par holDal bichha liya aur baithkar manjan karne laga. do bistaron aur ek mez se kamra bharapura ho gaya. ek varDrob hai jo divar mein samai hui hai. ek rassi ek kone se dusre kone tak tani hui hai jis par kapDe latak rahe hain. mez ke upar dival par haath se bana greeting laga hua hai. ‘dada ko shubh kamnaon sahit kunnu, raju, bantu aur vimla. ’ ek pankti aur likhi gai hogi. jis par nili moti lakir pher di gai hai. sajavat ke naam par yahi ek chippi hai. lekin shayad ye sajavat na ho. mez par kuch kitaben hain. niche plastic ki balti. baqi saman varDrob mein hoga. usmen bhi main apne kapDe rakh lunga.
nibat lene ke baad hum niche utar aaye. dubeji ne kamre par tala laga diya tha. aur office jane ki taiyari mein portfoliyo le liya. mujhe kuch ajib sa lag raha tha. ek ghar mein rahkar apne kamre ko juda rakhna. niche aakar mainne kaha to ve bole dost, ye dilli hai. yahan churkat bhavuk ki tarah tum rahe to zarur tumhari naiyya vijay chauk par Doob jayegi. apna matlab sadho bus. main use kiraya deta hoon kamre ke liye. na ki bhai bhaujai banane ke liye.
paas mein hi hotel thi. logon ne hans hansakar unse namaste ki. tanik avaz ko rathth banakar hotel ke malik se mera parichai karaya gaya. ab yahin nashta karna hai, yahi bhojan karna hai. dubeji ne sneh ke chalte malik ko ek bol mari aur mujhse kaha ki—munna ye vaishnav bhojanalay hai. isliye lahsun aur pyaaz ka bandobast nahin hai. vaishnav hona faydemand isliye hai ki pyaaz manhagi hai. par bahar jo takhat par anDe ubaal raha hai. yahan le ayega. daal muft nahin milegi aur sabzi ki tari sirf ek baar milegi. sari vyavastha samjhane ke baad mathri aur chaay ka nashta kiya. mujhe ghar ki yaad aane lagi. ghar yani maan. mathri yani maan.
chhoot gaya bhai chhoot gaya
ghar angan to chhoot gaya
chhoot gaya bhai chhoot gaya
ghar
angan
chhoot gaya
purane din bahut kharab hote hain. college ke dinon ke julus, band mutthiyan, nare, san sanahat, ghussa. . . pani ki tarah gadabdata magar julus rok leta hoon. makkar adami ki tarah hansta hoon kyonki dubeji ek naukar se dhaul dhapp kar rahe hain. das ya barah ke qarib ka laDka. mota hansmukh.
munna apne ko ye khata khilata hai. vikram hai. sala badmash hai. par kaam achchha karta hai.
mainne usse kaha—vikram ab main bhi yahan khaya karunga.
theek hai saab, apni to yahi naukari hai. usne adakari mein sir jhukaya aur puchha, samose chalenge?
dubeji ne ghaDi dekhi. kaha, nahin chahiye. phir meri taraf hokar bole, chalo utho mujhe jana hai. unhonne mujhe chabi de di. bole shaam ko jaldi aa jaunga. aaj to tum kamre par aram karo. kal tumhare saath chale chalunga. fraichliv ho jayegi. ve portfoliyo jhulate hue bus staup ki or chalne lage. main bhi pichhe pichhe chalne laga to unhonne mana kar diya—jao munna, jake aram karo. phir rukkar bole tumhein malum hai munna, sale jo do do hazar pate hain, wo bhi dhakka khate khaDe rahte hain. aap malum nahin kar sakte ki kamate kitna hai. achchha tumri jao.
main samajh nahin paya ki akhiri baat ke liye ve rook kyon gaye the. agyakari ki tarah main kamre par laut aaya. dusre kamre mein bachche halla kar rahe hain. maan kheej rahi hai. main darvaza band kiye baitha hoon. ye kamra. sirf dubeji ka kamra. kitna ajib hai. chhina jhapti aur rona gana. holDal se Dabba nikal kar gajar ki barfi nikal leta hoon. darvaza kholkar kamre se bahar aata hoon. bachchon ne to sara saman ast vyast kar diya hai. ve paanch hain. ve sab chup hokar mujhe dekhne lagte hain. main barfi unhen de deta hoon. ve hairan hokar mujhe dekhne lagte hain. dilli ke bachche. dubeji, dilli ke bachche. unki maan sir se dupatta sarka kar munh se laga leti hai. shayad hans rahi hai kahti hai—ye aise nahin manenge. ab to aur roenge. gajar ki mithai khai hai kabhi tum logon ne, ab chup hona.
chup to hain—mainne kaha.
ab hum bahut kuch kahte. masalan
aap inhen school kyon nahin bhej deti?
areऽऽ kahanऽऽ
kam se kam baDe ko?
agle saal dekhenge.
singh saab jaldi nikal jate hain.
ek jagah aur thoDa kaam karte hain.
zamana baDa manhaga hai.
han ji.
teen mein se ek dubeji ko de diya to ghar bhi chhota hoga?
haanऽऽ
chalo ye to hai kuch paise aa jate hain.
han ji.
aap yahin ki hain?
nahin ji.
chhuttiyon mein gaanv jati hongi?
areऽऽ kahanऽऽ
manhgai bahut hai.
haanऽऽ
pura nahin paDta.
haan.
haan.
haan.
isi tarah se kuch batachit hoti. iske pahle hi main kamre mein aa gaya.
adami jab akela hota hai is par bhi akela nahin hota. apne aapse laDta rahta hai. kuch sujhata hai. hansta hai. aur kabhi kabhi laDte laDte uktahat hoti hai. sanshay ya haar ke dauran. kabhi laDte laDte ayatan kam ho jata hai. kis cheez ka. mujhe malum nahin. parantu koi cheez sikuD jati hai, ye tay hai. isko main kah deta hoon ki kuch lupp ho gaya. shayad aap kuch aur kahte hon. kuch bhi kahen kya farq paDta hai.
bahut baar, shuru mein aisa hua ki isi laDai ke karan main apne ko dusri se alag kar leta tha. shanadar laDai jo mere andar chal rahi hai wo dusron mein kaha! baad mein, anek lat bhanjan ke baad ye mahsus hua ki akela veer main hi nahin. koras mein kai veer hain. ab aap ye kahiye ki ye to laDai ka wo hissa hai jo mahatvakanksha ke nikat aata hai.
bahut theek, bahut theek. ye nihayat khushi ki baat hai ki laDai ke us hisse ko hum, kam az kam pahchan to rahe jo andaruni mamla hai. kintu ye sikuDan hai na wo tanav (kaisa vahiyat shabd hai) paida kar deti hai jo laDai ke dusre hisse ki bhi rangai karta hai.
main ukta gaya.
sare kamre ki chizen qarine se laga deen. aur phir bistar par let gaya. takiye mein se lifafa nikala. shirimati ka patr hai—
apna bachcha hai. bhala hai. apne yahan laga sako to is par daya hogi. sab theek hai.
shram ki qadar ki jati ho to bais varsh thoDe nahin hote.
iske baad daya?
lupp
lupp
lupp lupp
lupp
mujhe achanak mahsus hua main dilli mein hoon. mujhe laal qila dekhana chahiye. mujhe kutub dekhana chahiye.
nahin. kuch bhi nahin. main yahan sirf naukari karne aaya hoon. mere shahr mein bhi bahut si chizen hai. jinhen dekhkar main khush hota tha. chhoti chhoti tokariyan, gatta mil ka dhuan.
pichhle saal se phir kahin nahin nikla kabhi kabhar koi mil jata to kahta—kaho kuch jama?
nahin
dusra, kahin kuch jama?
yaar, pi. ech. d. kar raha hoon.
tisra, kahin kuch jama?
yaar, sochta hoon foreign nikal jaun.
chautha mile isse pahle main ghar mein qaid rahne laga. nirvasan. ghar ka nirvasan. dilli ka nirvasan. samay ka zindagi se nirvasan. main taiyar hota hoon. hajamat banakar dhule kapDe pahanta hoon. shirimati ka patr jeb mein rakh leta hoon patr ko nikal kar chor jeb mein rakh leta hoon.
karyalay mein ghusta chala jata hoon. sir jhukaye log kaghazon se joojh rahe hain. main kisi se puchhta hoon to puchhne ke pahle hi sir hila deta hai. phir koi ungli ki nok par baithakar ek chaimbar mein luDhka deta hai. hum umr chust naujavan se poochh raha hoon. chor jeb mein mera haath tharthara raha hai. wo kahta hai manager saab abhi nahin hai. paanch din baad ayenge. phir aiyega.
paanch din aur? pahle chinta phir khushi. pariksha bhavan se bahar nikal jane jaisi khushi. raste mein puchhte puchhte bus se laut aaya. bhojan karke kamre par aa gaya. shaam to ho rahi hai. ab dubeji ko aa jana chahiye. vote kl par bahut baDa laal suraj pattharon ke bhavan ke pichhe tha. pani par bhavan, rang aur puri bhavyata hilor le rahi thi. mainne tay kiya ki naukari lagne par sab kuch dekhunga. sab kuch. naukari hone par sab kuch asan ho jata hai kyaa?
chaar paanch din.
shamen hi aisi hai, jabki lagta hai ki dilli mein hoon. nae shahr mein hoon. varna subah hotel, letana duphar phir shaam. kuch kitaben saath laya tha. parantu ve vaisi ki vaisi dhari rahi. kya paDhun kuch samajh nahin aata. jo bhi kuch paDh lo kintu ye nishchit hai ki kaam nahin ayega. ve sab murdhany sari paDhai par pani pher denge. phrayaD ki aurten, pavlov ke kutte, koh ke bandar, baDabDahat mein hansta gandhi. sab bemani ho gaye ab jo hai wo shrimant ka patr aur ek nai duniya. ya shayad duniya jismen pahli baar dhans raha hoon.
dubeji thake hare shaam ko lautte hain. puchhte hain—kuchh paDha?
main kahta hoon, nahin, aur hansta hoon.
din bhar paDe paDe kya karte ho?
sota hoon.
kahaniyan hi paDha karo.
shirimati ka patr paanch chhe dafe paDh leta hoon.
dubeji kuch nahin kahte. nae kapDe pahan kar taiyar hote hain. yog jaisi do chaar chizen nikalte hain. phir aine mein tarah tarah se chehra dekhte hain. gaal phulakar. pichkakar. ankh ke papotai khinchkar. daant nikalkar aina dekhte hue mujhse puchhte hain—munna meri umr kya lagti hogi?
main jhooth bolta hoon—3
nahin yaar! phir se dekho. apna chehra mere samne kar dete hain.
bilkul 3.
ve umag jate hain—kitna menten karke rakha hai mainne. ab to khair sehat thoDi gir gai nahin to koi bhi 17 28 se kam samajhta.
haan. main kahunga hi.
yaar dhakkam dhakke mein mar gaye. ek ke baad ek chaar naukari. idhar se udhar. saitil hi nahin ho pae.
saitil yani shadi?
shadi bhi. kyon hamari ichha nahin ho sakti kyaa?
to kyaa? shadi kar lijiye. bhabhi ko ghar chhoD aana.
main hi khu 4 saal se ghar nahin gaya.
4 saal!
haan.
aapko yaad nahin ati?
nahin. kuch rupaya juDe tab ghar jayen.
iske bina nahin?
jana koi matlab nahin rakhta. na mere liye na unke liye.
aisa nahin hai.
tum abhi bachche ho munna. dhire dhire vyavaharik banoge.
aap apni umr ka fayda utha lete hain. main ekdam bachcha nahin hoon. sachmuch aapko yaad nahin ati?
dhire dhire bhool jata hoon. achchha utho chalo.
har baar vahi kanaut ples!
pichhli baar jab main peris mein tha tab mepil ki pattiyan isi tarah saDak kinare chha jati theen. mujhe peris ki behad yaad aa rahi hai!
bahut chamkili raushaniyan. bahut amir hansiyan. bahut komal sarsarahaten. dubeji do safti kharidte hain.
ve kahte hain—munna jab main bilkul akela hota hoon. to ek safti kharid leta hoon. aur beech bheeD mein khaDa khata hoon. takrate hue logon se man bahal jata hai.
apne shahr ki tarah yahan bhi apne muhalle honge. ve sabhi kya isi tarah se safti khayenge?
dubeji bolte nahin. hum park ke charon taraf ghumte hain. rigal mein poster dekhte hain. aati jati laDkiyon ke kase lihor lete uruz, muD muD kar dekhte hain. itne mein lagta hai raat ho rahi hai. dubeji haath pair dukhne ka bahana karte hain, phir whisky kharidte hain. park ke kone mein jakar gatakte hain aur kahte hain. chayghar mein baithenge.
chayghar mein baithte hi do teen dua salam vale mitr qarib aa jate hain. dubeji zor zor se batlate hai ki ve falan haus se party lekar aa rahe hain. skauch aur tanduri murgha. phir kafi unchi unchi baten. thakne par uthte hain. avajahi kam ho gai hai. hum bus aDDe ki or jate hain. ye koi cheez gunguna rahe hain. yakayak mujhse puchhte hain—aur shahr ke kya halachal hai?
shahr mane. . .
shahr mane. . .
shahr mane. . . .
koi paath ho iske pahle hi bolta hun—ap hi sunaiye!
dubeji ek qissa chunte hain. premika ke bare mein. hum ruk kar ek chhote se hotel mein bhojan karte hain. dubeji ka qissa jari hai. ve subakne lagte hain aur unhen bahut si baten yaad aati hain. kaash, main koi silsilevar zindagi jita. ab nahin hai kuch nahin hai. mera koi nahin hai. na aage na pichhe. main kisi ko bhi maar Dalunga. jel chala jaunga. mehnat karne par do roti vahan bhi mil jayegi.
qamiz se naak ponchhkar ve uthte hain. main sardarji ko paisa deta hoon.
ve dubeji ko vinodi Dhang se dekhkar hanste hain.
kamre par aate hi ve bistar par let jate hain. phir naak bajne lagti hai. main holDal par pasar jata hoon. bijli band kar deta hoon.
dahshat
ek saaf suthra ant
bus itna hi hoga?
neend aati nahin. . .
mainne chit pahuncha di. keyrauv shrimanta. chembar ke andar gahmagahmi hai. jo chit le gai theen, unhonne aakar kaha ki meeting chal rahi hai. yahin baithiye. sofe par main baitha raha aur Darta raha. ve taipraitar khatkhata rahi theen. malum nahin kyon sekretari ke naam se helan ki chhavi yaad aati hai (istri helan mujhe maaf karen). magar is shalin chehre ko dekhkar achchha lagta hai. apna Dar, kanakhiyon se dekhkar kam kar raha hoon.
achanak darvaza bhaDabhDa kar khulta hai. ek sajjan vilap karte hue donon kamron ke bichon beech pasar gaye hain. ve atyant karuna ke saath ro rahe hain. gale ki tie Dhili ho gai hai. kuch log andar hai. kuch log bahar se jama hote ja rahe hain. main bhi haDbaDahat mein khaDa ho gaya hoon. sab jas ke tas khaDe hain. ve ro rahe hain—mujhe manager saab ne mara. aur iske baad hi kahte hain—meri naukari chali jayegi. ve zoron se rote hain. baar baar yahi shabd. main samajh nahin pata ve samman ke liye ro rahe hain ya naukari ke liye.
lupp lupp
lupp
sab patthar ki tarah jaD hain. ant mein manager kahte hain—ise pani pilao aur aap log apna apna kaam kariye.
lambi chauDi mez ke pichhe manager ne haath hilakar adesh diya. karmcharigan ghisatte hue kursiyon ki taraf chale jate hain. do vekti unhen uthakar chal diye hain. ve lift se niche utar jayenge. das minit mein sunsan ho gaya.
sayan sayan lupp lupp
jaiye—sekretari ne kaha.
main chor jeb se patr nikal leta hoon. unhonne patr paDha aur sneh se mujhe dekha.
puchha—ghar mein sab theek hai unke?
ji.
unke rishte mein ho?
ji nahin.
phir?
gharelu pahchan hai.
theek hai. unhonne ek faarm nikala aur likh diya, jiska matlab ye ki le liya jaye.
main bahar aakar faarm bharne laga. unhonne ye bhi nahin puchha, meri yogyata kya hai? meri ruchi kismen hai?
likhte hue aisa laga manon murda angon ka pradarshan kar raha hoon.
ruchi aur vishesh yogyata ke khane mein ek lambi lakir kheench di.
company ki sharton ke niche, jo meri or se chhapi thi, uske niche hastakshar ghasite. lupp lupp. faarm jama kiya. kal se yahan aana hai. bahar aaya to dekha, wo apna bhari chehra liye, banhon mein bag dabaye pratiksha kar raha hai. tie yathasthan hai. main usse nazren bachata nikal gaya. (halanki mujhe janta thoDi).
dubeji hanste hain. dubeji rayal adami hain. dubeji kahte hain, vyavaharik hain. dubeji subah hanste hain, raat ko rote hain. dubeji kahte hain, achchha ab chhoDo. chalo kanaut tak ho ayen. main mana karta hoon. mujhe kanaut se dahshat hoti hai. ve kaniyan mein lene lagte hain. chalo chalo. yu aar a young chaip. ve samajhte hain main thak gaya hoon.
hum vahi saDken paar karte hain. usi ghaas ko raundte hain. usi marke ki sharab ve pite hain.
lautte hain to karyakram banta hai em. pi. canteen mein khaya jaye. bus badal kar jate hain.
canteen mein saaf suthre kapDe pahne vikram svagat karta hai.
abe tu yahan?
hau.
kaise?
wo sala samajhta hai ki chaubison ghanton ke liye kharid liya. apne shauq ke kuch karo to chiDh jata hai.
daru kab se pine laga.
daru nahin saab kapDe, cinema.
achchha achchha
saab mehnat karenge to apne liye na.
achchha khana lao.
dubeji batala rahe hain, jab naujavan the tab ek laDke ki kitni pitai ki thi. vaise ab bhi kisi ko pachhaD sakte hain.
bhojan karte mainne kaha—main dilli chhoDna chahta hoon. haan mere kanon ne bhi suna.
ghoor kar unhonne mujhe dekha, phir kaha—tumhari faimili bai ground hai. kar sakte ho. are mere paas jayadad hoti na to main zarur i. e. s. mein aa jata. ve ruanse ho gaye. unhonne mujhse kaha—tumhen dilli se qatii nahin Darna chahiye. yahan to bus chhah mahine. . . .
dilli se main Dara nahin hoon. shahr kisi ko Darata nahin hai. mainne phir kaha—main dilli chhoD dunga.
shayad, unhonne suna nahin.
ve glaas mein hi haath dhokar qamiz se ponchhne mein vyast the.
स्रोत :
पुस्तक : श्रेष्ठ हिन्दी कहानियाँ (1980-1990) (पृष्ठ 91)
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।