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कसक

kasak

आर्थर मॉरिसन

और अधिकआर्थर मॉरिसन

    साइमन ने अपनी पत्नी के साथ बहुत बुरा बर्ताव किया, यह बात अब तक पड़ोसियों के गले नहीं उतर रही थी, सभी पड़ोसियों के लिए यह आश्चर्यजनक था, आस-पड़ोस की सभी स्त्रियाँ उसे एक आदर्श पति मानती थीं और मिसेज़ साइमन भी एक पतिव्रता स्त्री थीं, दिन-रात खटती रहतीं। मुहल्ले की सभी औरतें मानती थीं कि वह अपने पति के लिए जितना करती है, उतना शायद ही कोई कर सकता है, अब बदले में उसे क्या मिला? शायद वह अचानक पगला गया था।

    साइमन से ब्याह करने से पहले मिसेज़ साइमन विधवा थीं और मिसेज़ फोर्ड कहलाती थीं। फोर्ड एक माल जहाज में कुली था, एक दिन वह जहाज उस पर सवार सभी यात्रियों समेत डूब गया। उसे अपनी ज़िद का अच्छा सबक मिला था, वह सैलानी मिज़ाज का था। इसलिए एक अच्छा कारीगर होने के बावजूद उसने जहाज पर नौकरी कर ख़ुद को तबाह कर लिया था, बारह बरस तक ब्याहता रह कर भी मिसेज़ फोर्ड निस्संतान थीं और अब मिसेज़ साइमन के रूप में भी उसके कोई संतान थी।

    जहाँ तक साइमन का सवाल था, सभी मानते थे कि वह बहुत भाग्यशाली है, जो उसे इतनी सुघड़ पत्नी मिली है। वह अच्छा बढ़ई और लुहार था, पर दुनियादारी में बिल्कुल फूहड़ था। उसकी देखभाल के लिए यदि मिसेज़ साइमन होतीं तो थॉमस का जाने क्या हाल होता? वह दब्बू और शांत स्वभाव का था, उसके बाल सुलभ चेहरे पर मूँछें छितरी हुई थीं, उसे कोई लत नहीं थी। यहाँ तक कि विवाह के बाद उसने सिगरेट पीना भी छोड़ दिया था और मिसेज़ साइमन ने उसमें कई अच्छी आदतें डाल दी थीं। वह हर इतवार बिना नागा एक बड़ी-सी टोपी पहन गिरजाघर जाता और वहाँ इकन्नी चढ़ाता। यह इकन्नी इसी काम के लिए सप्ताह के वेतन में से उसे दी जाती थी। फिर घर आकर मिसेज़ साइमन की निगरानी में वह अपनी बेहतरीन पोशाक उतारता, फिर उसे अच्छी तरह, सावधानी से ब्रश से झाड़कर रख देता। हर शनिवार को दोपहर में वह छुरी-काँटों, बर्तनों, जूतों और खिड़कियों की इत्मीनान और सावधानी से सफ़ाई करता, मंगलवार की शाम वह कपड़े इस्त्री करवाने ले जाता और शनिवार की रात घर का सामान लाने मिसेज़ साइमन के साथ बाज़ार जाता और सामान लादकर लाता।

    मिसेज़ साइमन जन्मजात गुणी थीं, बेहद कुशलता से घर के सारे काम निपटातीं, थॉमस को प्रति माह छत्तीस अथवा अड़तीस शिलिंग वेतन मिलता था। उसकी एक-एक पाई का वह सदुपयोग करतीं और साइमन ने कभी यह सोचने की ज़ुर्रत नहीं की, कि इसमें से वह कितना बचाती हैं? वह बेहद सफाई पसंद गृहणी थीं, जिससे कई मर्तबा परेशानी भी झेलनी पड़ती थी। साइमन जब घर लौटता तो वह दरवाज़े पर खड़ी मिलतीं। वहीं उसी वक़्त ठंडे फ़र्श पर एक पैर पर खड़े रह वह जूते उतार चप्पल पहनता, ताकि ज़मीन गंदी हो, क्योंकि रोज़ मिसेज़ साइमन और नीचे की मंजिल पर रहने वाले परिवार की महिला घिस-घिसकर फ़र्श साफ़ करती थीं। सीढ़ियों पर जो कालीन बिछाया गया था, वह उसका था। काम से लौटने पर वह अपनी नज़रों के सामने पति के हाथ-पैर धुलवातीं, ताकि दीवार पर गंदे पानी की एक बूंद भी उछले, इतनी सावधानी के बावजूद यदि कभी-कभार दीवार पर कोई धब्बा पड़ जाता तो वह साइमन को डाँट-फटकार लगातीं और उसे स्वार्थी होने पर लंबे भाषण दे डालतीं। शुरू में रेडीमेड कपड़ों की दुकान पर भी वह उसके साथ जाती थीं। उसके लिए कपड़े पसंद करतीं और पैसे भी वही चुकातीं, क्योंकि उसकी नज़र में सभी पुरुष इतने भोंदू होते हैं कि कुछ बोल नहीं पाते और दुकानदार मनमानी क़ीमत वसूल लेते हैं, अब वह थोड़ा सुधर गई थीं।

    एक दिन सड़क के नुक्कड़ पर उसने एक व्यक्ति को सस्ते दामों में कटपीस बेचते देखा। फिर क्या था, उसने फौरन तय कर लिया कि ख़ुद ही साइमन के कपड़े सिलेगी। हर बात पर तत्काल अमल करना उसका एक गुण था, इसीलिए उसी दोपहर वह एक पुराने कपड़े में से कोट, पतलून सिलने बैठ गईं। इतना ही नहीं, रविवार तक सूट सिल कर तैयार भी हो गया। साइमन कपड़े देख कर चकरा गया। वह इस धक्के से उबर पाता, उससे पहले ही उसे सूट पहना दिया गया और गिरजाघर भेज दिया गया। कपड़े कतई ठीक नहीं सिले थे। पतलून जाँघ के पास बहुत तंग था, एड़ियों के पीछे इतना खुला कि झूलने लगता। बैठते ही उसमें बल पड़ते और कोट का कालर कंधे पर लटकने लगता। पर धीरे-धीरे आदत पड़ने पर साइमन को कपड़ों का बेढंगापन खलना दूर हो गया। उसके सभी साथी उसके लिबास का जो मज़ाक उड़ाते, वह असहनीय था पर मिसेज़ साइमन थीं, जो एक के बाद एक सूट सिलती चली जाती थीं और हर बार पुराने के नाप से ही नया सूट सिला जाता, इसलिए सूट में जो बेढंगापन था, वह कभी ठीक नहीं होता, बल्कि हर नए सूट के साथ अधिक उभर कर दिखने लगता। साइमन ने कई मर्तबा इशारे से उसे रोकने की बेकार कोशिश की। उसने बड़े स्नेह से कहा कि उसे यह अच्छा नहीं लगता कि उसके लिए वह दिन-रात मेहनत करे और सीने-सिलाने के काम से आँखों पर भी बुरा असर पड़ता है। थोड़ी ही दूरी पर सड़क के किनारे एक दर्ज़ी की नई दुकान खुली है, जो बहुत सस्ते में कपड़े सिल देता है। क्यों न...

    “हाँ, हाँ, वह तुरंत बिगड़ पडीं और ज़ोर-ज़ोर से बोलने लगीं, “तुम्हें तो जैसे मेरा बहुत ख़याल है, मैं कब कहती हूँ तुम्हें अपनी पत्नी के मुँह पर झूठ बोलने में शर्म आनी चाहिए। क्या मैं तुम्हें जानती नहीं, मैं तुम्हें भली-भाँति पहचानती हूँ। तुम्हें मेरा इतना ख़याल है कि तुम चाहते हो मैं मेहनत नहीं करूँ और तुम दर्ज़ियों से कपड़े सिला-सिला कर पैसे बर्बाद करो। मैं दिन-रात खटती रहती हूँ, ताकि पैसों की बचत हो। मेरा क्या यही पुरस्कार है? लगता है, तुम्हें पैसा सड़क पर पड़ा मिलता है, जिसे उड़ाना चाहते हो। अच्छा होगा, अगर मैं भी औरों की तरह बिस्तर पर पड़ी रोटियाँ तोड़ती रहूँ, शायद इससे तुम्हारी नज़रों में मेरी इज़्ज़त बढ़ेगी।”

    उसके बाद थॉमस साइमन ने उस बात का कभी ज़िक्र नहीं किया, यहाँ तक कि जब उसने उसके बाल भी ख़ुद काटने का निर्णय किया तो भी वह चुप रहा।

    बरसों यही सिलसिला चलता रहा, एक दिन गर्मियों की शाम थी, मिसेज़ साइमन छोटी-मोटी ख़रीदारी के लिए थैला लेकर बाज़ार गई थीं। साइमन घर में अकेला था। उसने चाय के बर्तन धोए और सजाकर रख दिए। उसके बाद वह उन दो नई पतलूनों को ग़ौर से देखने लगा, जो उसी दिन सिलकर तैयार हुई थीं और दरवाज़े के पीछे लटक रही थीं। अपनी जगह वे निर्दोष भाव से टँगी थीं—पैरों के पास तंग, कमर की तरफ़ खुली, अब तक सिली गई पतलूनों से कहीं अधिक बेढंगी, पतलूनों को देखते-देखते अचानक एक दुष्ट ख़याल उसके मन में उठा। अपने ख़याल पर थोड़ी शर्म भी आई। यकीनन पत्नी के दूसरे तमाम उपकारों की तरह वह इन पतलूनों के लिए भी उसका शुक्रगुज़ार था। फिर भी वह दुष्ट विचार उसके दिमाग़ से दूर नहीं हुआ। मन ही मन वह सोचने लगा कि जब वह इन कपड़ों को पहन काम पर जाएगा तो उसके साथी उसकी कैसी भद्द उड़ाएँगे?

    “क्यों इन्हें कचरे के डिब्बे में फेंक दिया जाए!” मन के दुष्ट विचार ने यही कहा, “आख़िर ये इसी लायक तो हैं!”

    साइमन अपने भीतर के इस दुष्ट ख़याल से काँप उठा और अपने इस दुष्ट ख़याल पर क़ाबू पाने के लिए उसने चाय के बर्तनों को फिर से साफ़ करने की ठानी। उठ कर वह पीछे के कमरे की ओर गया, वहाँ से उसने देखा कि सामने का दरवाज़ा खुला है, शायद नीचे की मंज़िल के बच्चे ग़लती से खुला छोड़ गए थे। सामने का दरवाज़ा खुला रहे, यह बात मिसेज़ साइमन को कतई पसंद थी, यह उसे प्रतिष्ठा घटने जैसा लगता था। इसलिए साइमन नीचे गया, ताकि लौटने पर वह उस पर बरस पड़े, दरवाज़ा बंद करते वक़्त उसने गली में झाँका।

    सड़क के किनारे एक आदमी टहल रहा था और बड़ी उत्सुकता से दरवाज़े की तरफ़ ताक रहा था, दोनों हाथ नीले रंग की ढीली-ढाली पतलून की जेब में थे, सिर पर ऊनी चोंचदार टोपी पहन रखी थी, जो खलासी पहनते हैं, वह दरवाज़े के निकट आया और पूछा, “श्रीमती फोर्ड अंदर हैं या नहीं?”

    साइमन तकरीबन पाँच सेंकेंड उसे घूरता रहा और फिर बोला—“उहूँ?”

    “वे पहले मिसेज़ फोर्ड थीं, अब मिसेज़ साइमन कहलाती हैं, क्यों ठीक है न?”

    यह बात उसने ऐसे धूर्त ढंग से कही कि साइमन को अच्छा नहीं लगा और ही वह कुछ समझ पाया।

    “नहीं”, साइमन ने कहा—“वह इस समय घर पर नहीं है।”

    “तुम ही तो उसके पति हो, हाँ, हो न?”

    उस आदमी ने मुँह से पाइप लगाया और काफ़ी वक़्त मुँह सिकोड़ उसकी ओर ताकता रहा। आख़िर वह बोला, “बंधु, तुम तो बिल्कुल उसी क़िस्म के हो जैसा वह पसंद करती है,” यह कह वह उसे फिर से निहारने लगा। फिर उसने देखा कि साइमन दरवाज़ा बंद करने जा रहा है तो एक पैर दहलीज़ पर और हाथ दरवाज़े पर रख कर बोला, “दोस्त इतनी जल्दबाज़ी मत करो, मैं तुमसे ही बातें करने के लिए आया हूँ।” और उसने अपनी भौंहें सिकोड़ लीं।

    साइमन को बड़ा अजीब लग रहा था, पर दरवाज़ा भी बंद नहीं कर सकता था, इसलिए उसे राज़ी होना पड़ा, “तुम क्या चाहते हो?” उसने पूछा, “मैं तुम्हें नहीं जानता।”

    “तो मेरी गुस्ताख़ी माफ़ करो, पहले मैं तुम्हें अपना परिचय दे दूँ।” नकली नम्रता दिखाते हुए उसने अपनी टोपी अभिवादन की मुद्रा में उठाई, “मैं बॉब फोर्ड हूँ।” वह बोला, “मान लो कि मैं एक बिल्कुल अलहदा दुनिया से लौटकर आया हूँ। सभी समझते हैं कि पाँच बरस पहले मैं दूसरे लोगों के साथ जहाज में डूब कर मर गया था। मैं यहाँ अपनी बीवी से मिलने आया हूँ।”

    जब वह बोल रहा था तो साइमन के चेहरे का रंग उड़ता जा रहा था, उसकी बात ख़त्म होने पर उसने बालों में उँगलियाँ फिराई, नीचे बिछाई दरी को देखा, ऊपर-पंखे को, फिर बाहर सड़क की ओर देखा और उस आँगतुक पर एक कड़ी निगाह फेंकी, पर मुँह से एक शब्द भी नहीं बोल पाया।

    “मैं अपनी पत्नी को देखने आया हूँ,” उस आदमी ने अपनी बात दोहराई, “तो क्या अब हम खुल कर बात कर लें?”

    साइमन ने धीरे से मुँह बंद किया और बिल्कुल यंत्रचालित अंदाज़ में सीढ़ियाँ चढ़ने लगा। उँगलियाँ अब भी बालों में ही थीं, धीरे-धीरे सारा मसला ज़ेहन में स्पष्ट होने लगा था और मन में वह दुष्ट ख़याल फिर से उछलने लगा था। मान लो यह शख़्स फोर्ड ही निकला तब? मान लो यह अपनी पत्नी को वापस माँगे तो क्या उसके लिए असहनीय होगा? क्या वह यह चोट सह सकेगा? मन ही मन वह उन पतलूनों, चाय के बर्तनों, छुरी-काँटों, खिड़कियों की साफ़-सफ़ाई के बारे में सोचने लगा, यह सोचते हुए वह ख़ुद को परास्त-सा अनुभव कर रहा था।

    सीढ़ियाँ चढ़ते हुए फोर्ड ने उसकी बाँह पकड़ ली और भारी आवाज़ में फुसफुसाते हुए पूछा, “उसके लौटने में अभी कितना वक़्त है?”

    “मेरे ख़याल से क़रीब एक घंटा,” साइमन ने जवाब देने से पहले मन-ही-मन सवाल दोहराया, फिर बैठक का दरवाज़ा खोला।

    “ओह!” फोर्ड ने चारों ओर नज़र घुमाते हुए कहा, “लगता है तुम बड़े मज़े में हो, ये कुर्सियाँ, ये सारा सामान”—उसने पाइप से इशारा करते हुए कहा—

    “उसी का यानी एक तरह से मेरा ही है, चलो अब खुल कर बात कर ली वह बैठ गया और विचारमग्र मुद्रा में सिगार के कश लेते हुए बोला, “हाँ, तो,” उसने बात जारी रखी, “मैं पूरे हाँड़-मांस के साथ ज़िंदा हूँ, लोग समझते हैं कि बॉब फोर्ड ‘मूलतैन’ जहाज के साथ डूबकर मर गया पर, मैं जीवित हूँ।” और उसने पाइप से साइमन का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया, “मैं मरा नहीं, जानते हो क्यों? क्योंकि जर्मनी के एक जहाज ने मुझे समुद्र से बाहर निकाल लिया और मुझे अमेरिका ले गया, कुछ बरसों तक मैं वहीं भटकता रहा और— अब मैं अपनी बीवी से मिलने गया हूँ।”

    “वह...वह सिगरेट पीना कतई पसंद नहीं करती,” साइमन ने कहा, मानों अचानक उसे यह बात याद गई हो।

    “नहीं, मैं शर्तिया कह सकता हूँ कि वह कुछ नहीं कहेगी,” पाइप मुँह से निकाल हाथ में थामते हुए फोर्ड बोला, “मैं उसके सारे तौर-तरीक़े जानता हूँ, ख़ैर...तुम्हें वह कैसी लगती है? क्या वह तुमसे खिड़कियाँ साफ़ करवाती है?”

    “हाँ!” साइमन ने हिचकिचाते हुए हामी भरी। “हाँ, कभी-कभार मैं उसकी मदद कर देता हूँ।”

    “ओह! तो वह तुमसे छुरी-काँटे भी साफ़ करवाती होगी, मैं यक़ीन के साथ कह सकता हूँ, और बर्तन भी, मुझे सब पता है।” वह उठा और झुक कर साइमन का पीछे से सिर देखने लगा—“मेरे ख़याल से तुम्हारे बाल भी वही काटती होगी, तुम मानों या मानों पर मैं उसे ख़ूब जानता हूँ।”

    शर्म से झेंपते साइमन की उसने हर कोण से जाँच की, फिर दरवाज़े के पीछे लटक रहे पतलून का एक पैर ऊपर उठाया। “मैं शर्तिया कह सकता हूँ, ये पतलून भी उसी ने सिले हैं। कोई और ऐसा पतलून सिल ही नहीं सकता। अच्छा, जो पतलून तुमने पहना हैं, वह भी तो उसी ने सिला है, है न?”

    साइमन के मन में लगातार उस दुष्ट भाव से तर्क-वितर्क चल रहा था। अगर यह शख़्स अपनी बीवी माँग लेता है तो ये पतलून उसे ही पहनने पड़ेंगे।

    “ओह!” फोर्ड बोलता रहा, “वह तनिक भी नहीं बदली, अरे मेरे यार, यह भी एक अच्छा मज़ाक है।”

    साइमन को अचानक लगा कि अब इन बातों में कुछ नहीं धरा। सीधी सी बात यह कि वह इसकी पत्नी है और शिष्टाचार का तक़ाज़ा है कि मैं इस बात को मान लूँ, भीतर दुष्ट भाव ने उसे समझाया कि यही उसका कर्त्तव्य है।

    “अच्छा तो,” अचानक फोर्ड बोला, “वक़्त कम है और हम काम की बात नहीं कर रहे हैं। दोस्त मैं तुमसे कठोर नहीं होऊँगा। मुझे अपने अधिकार पर डटे रहना चाहिए, पर मैं देख रहा हूँ कि तुम्हारी बसी-बसाई गृहस्थी है, तुम आराम से जीवन बसर कर रहे हो और तुम भले आदमी हो, इसलिए मैं,’’ सहसा बड़ी उदारता दिखाते हुए उसने कहा—“मिलाओ हाथ, मैं बस एक मुनासिब रक़म बताए देता हूँ, कम ज़्यादा। पाँच पाउंड में मामला तय कर लेते हैं और फिर मैं हमेशा-हमेशा के लिए दूर चला जाऊँगा।”

    साइमन के पास पाँच पाउंड तो क्या पाँच पेंस भी नहीं थे—और उसने साफ़-साफ़ कह दिया, “मैं दरअसल पति-पत्नी के बीच आने का ख़याल भी मन में नहीं लाना चाहता।” उसने ज़ोर देकर कहा, “किसी भी क़ीमत पर नहीं, हालाँकि यह मेरे लिए बहुत कठिन था, पर यह मेरा कर्त्तव्य है, मैं अपनी बात से मुकरूँगा नहीं।”

    “नहीं, नहीं”—फोर्ड ने साइमन की बाँह पकड़ फौरन कहा, “ऐसा मत करो, मैं थोड़ा कम किए देता हूँ, अच्छा, चलो तीन पाउंड, देखो यह बहुत ही वाजिब दाम है, क्यों है न! इतनी-सी रक़म के बदले मैं सदा के लिए किसी दूर देश चला जाऊँगा। अपनी पत्नी को कभी अपना मुँह तक नहीं दिखाऊँगा। देखो यह मर्द की ज़बान है, मैं अपनी ज़बान को पलटूँगा नहीं, मैं दफ़ा हो जाऊँगा, बोलो, ठीक है न?”

    “बेशक-तुमने मुनासिब दाम माँगे हैं” साइमन ने उल्लसित होकर कहा, “यह तो बहुत कम है, यह तुम्हारी कृपा है, पर मैं तुम्हारी भलाई का कोई अनुचित फ़ायदा नहीं उठाऊँगा। मि० फोर्ड, वह तुम्हारी पत्नी है और मैं तुम दोनों के बीच नहीं आऊँगा, मैं माफ़ी चाहता हूँ। तुम यही रहो, अपना हक़ लो। यहाँ से अगर कोई जाएगा तो मैं जाऊँगा।” और उसने दरवाज़े की ओर क़दम बढ़ाए।

    “रुक जाओ,’’ फोर्ड ने कहा और साइमन तथा दरवाज़े के बीच आकर खड़ा हो गया। “देखो, जल्दबाज़ी मत करो, ज़रा सोचो तुम्हारे लिए यह कितना नुक़सानदेह होगा। तुम्हारा कोई घर-बार नहीं रहेगा, ही कोई देखभाल करने वाला होगा। यह वाक़ई भयानक होगा। अच्छा छोड़ो, हम दाम पर नहीं झगड़ेंगे, चलो एक-आध पाउंड ही सही, यह मर्द की ज़बान है, इतना पैसा तुम आसानी से दे सकते हो—देखो यहाँ यह घड़ी है और इतना बढ़िया सामान है, बस एक पाउंड दे दो और मैं चलता बनूँगा।”

    सामने के दरवाज़े पर किसी ने दो बार दस्तक दी। इस इलाक़े में दो बार दस्तक देने का मतलब होता है, यह ऊपर वाली मंज़िल के किराएदार के लिए है।

    “कौन है?” फोर्ड ने सशंकित होकर पूछा।

    “मैं देखता हूँ, “थॉमस साइमन ने कहा और तेज़ी से सीढ़ियों की ओर लपका।

    बॉब फोर्ड ने सामने का दरवाज़ा खुलने की आवाज़ सुनी और खिड़की के निकट जाकर नीचे झाँकने लगा। नीचे उसे एक स्त्री की टोपी दिखाई दी, फिर ओझल हो गई, तभी दरवाज़े के भीतर से उसे वही चिर-परिचित स्त्री कंठ की आवाज़ सुनाई दी।

    “ठीक है, ठीक है—ऊपर तुमसे कोई मिलने आया है।” साइमन ने जवाब दिया। फिर घनीभूत होते हुए अंधकार में फोर्ड ने एक आदमी को सरपट भागते देखा। वह थॉमस साइमन था।

    फोर्ड तीन क़दमों में ही उछल कर नीचे जा पहुँचा, उसकी बीवी बाहर के दरवाज़े पर हक्की-बक्की साइमन को घूर रही थी, जो पीछे के कमरे में घुसा, खिड़की खोलकर गुसलखाने की छत से पिछवाड़े कूद पड़ा। इसके बाद तेज़ी से मकान की चारदीवारी लाँघकर अँधेरे में ओझल हो गया। किसी ने भी उसे नहीं देखा।

    यही वजह थी कि ठीक अपनी बीवी की नज़रों के सामने साइमन के इस तरह नीचतापूर्ण तरीक़े से भाग जाने पर सभी पड़ोसी हैरान थे।

    स्रोत :
    • पुस्तक : विश्व की श्रेष्ठ कहानियाँ (खण्ड-2) (पृष्ठ 24)
    • संपादक : ममता कालिया
    • रचनाकार : आर्थर मॉरिसन
    • प्रकाशन : लोकभारती प्रकाशन
    • संस्करण : 2005
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

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