उस दिन जब वह अपने घर से मोती मिस्त्री के गराज की तरफ़ चला, तो उसे इस बात का अंदेशा भी नहीं हो सकता था कि दिन उसके साथ क्या खेल कर गुज़रेगा, वैसे भी, साईत निकालना और भाग्य बाँचना पोथी-पतरा वाले पंडी जी का काम है, जो इन दिनों सिर्फ़ पदाकांक्षी नेताओं के घरों में यज्ञ कराते-मंत्र फूँकते नज़र आते हैं, फिर रमई जैसी आम ज़िंदगी में सामान्यतः अप्राकृतिक उछाल की कोई गुंजाइश भी नहीं होती है।
समय तो उसका लगातार ढीला ही चल रहा था। सबसे पहले तो कत्था कंपनी की साल भर की ड्राइवरी से अचानक जवाब मिल गया था। चोरी की ‘ख़ैर’ पर कारख़ाना चलता था और कत्थे की चोरी पर कामगारों का ख़र्चा-पानी... कि वन विभाग में एक बनमानुस टाइप का अफ़सर आ गया। इधर चारी की ‘ख़ैर’ कटनी कम हुई, उधर कंपनी ने छंटनी का नोटिस साट दिया, और बीस कामगारों के साथ रमई भी गेट के बाहर था। हाँ यूनियन की दया से रिट्रॅचमेंट-बेनिफिट के नाम पर एक वर्दी ज़रूर मिल गई थी। बुझा-बुझा सा घर लौटा था और ओसारे में पसर गया था।
“डिलेभरी (ड्राइवरी) से लेकर बिछौना तक, सब काम में कंडम!” रमई की कटकटाहिन औरत ने दोहरे दाँत गड़ाए थे। छंटनी की ख़बर पछिया-सी झोंक मारती पहले ही पहुँच गई थी...“हमारे मामू दारू चुआते है... डी.एस.पी. से पूरा जान-पहचान है... सुनते हैं, सिपाही में बहाली चल रहा है... नहीं बुझाया? ई कइसन लबड़धोंधो से क़िस्मत जुड़ा है रे भगवान।”
रमई का पैर रोड़े में लटपटा गया। औरत की तीखी आवाज़ रह-रह कर कानों में भीतर तक ‘किस्सऽऽऽ’ से गूँज जाती थी।
मामा जी इलाक़े के पुराने लतख़ोर हुआ करते थे। दारू का धंधा चालू करने के बाद से कैसे तो थोड़ी प्रतिष्ठा भी पाने लगे थे। उसके साथ रमई ने डी.एस.पी. साहेब के न जाने कितने चक्कर काटे डी.एस.पी. साहेब अच्छी तरह जानते थे कि मसला उनकी औकात के बाहर का है, पर शिकार ख़ुद चलकर आए, तो उसे छोड़ना परम मूर्खता ही नहीं, बल्कि पाप भी कहलाएगा। उन्होंने रमई के चेहरे पर उड़ती नज़र डाली, मामा जी से आँखों में कुछ बात की, फिर खंखार कर गला साफ़ किया, “सलामी का धर लो पाँच हज़ार और फ़ाइनल बहाली, अगर जो हुआ, तो दस हज़ार का फ़ीस... कुल पंद्रह का ख़र्चा है।” डी.एस. पी. साहेब नाप-तौलकर बोले थे।
“पंद्रह हज़ार!” रमई के हाथ-पैर फूल गए थे, “उसमें भी पहला पाँच हज़ार को कोई गरेंटी नहीं?”
“गरेंटी खोजता है? तुम्हारे लाईफ़ का गरेंटी है रे, चूतिया का नाती?”
मामा जी ने उसे गुरेड़ कर देखा था और रमई हताश वापस घर लौट आया था। ऊपर से दुर्भाग्य यह कि न जाने कैसे, परिजनों में चर्चा तेज़ी से फैल गई थी कि पुलिस में रमई की बहाली तय हो गई है और रमई ही क्यों, कोई भी नौजवान चाहे, तो इस अवसर का लाभ उठा सकता है मात्र पाँच हज़ार का जोखिम है। निस्संदेह यह मामा जी की कलाकारी थी। तब से लोगों की बेबात की ‘पूछताछ’ पीछे के अंग-विशेष में मिर्चाई सरीखी लहर जाती थी। इसलिए रमई सबसे कटा-कटा-सा रहने लगा था। कोई काम नहीं था, सो पुराने यार मोती मिस्त्री के मोटर गराज में दिन गुज़रता था। स्वभाव में मेहनती, अक्सर रिंच-पेचकस भी उठा लेता था, चाय-नमकीन के बदले में।
एक सड़ी-गली-सी मोटर, काला धुआँ और किरकिराती गर्द उड़ाकर चली गई। खाँसते हुए रमई ने मोटर को अपनी आवाज़ के दायरे से बाहर जाने दिया। फिर दबी ज़ुबान से गाली बकी और आहिस्ता से कपड़ों को झाड़ा। वर्दी टेरीकॉट की थी और सुबह की धूप में चमक रही थी। दैव-इच्छा से दर्ज़ी ने नाप अच्छा काट दिया था। क्रीज़ भी तलवार की धार-सी था। कंधो पर कत्था-कंपनी का बिल्ला भी था... बस, फटे-पुराने चमरौंधे जूते ज़रा बेमेल से थे। वैसे, जो भी था, रमई पर सब फब रहा था। देखने में गोरा, लंबा और आँखें भी हल्की नीली भूरी-सी आईने में देखता था, तो अच्छा लगता था, पर सारे गोतिया बचपन से चिढ़ाते रहे हैं उसे... “कऊसअंक्खा कहीं का—दोगला साला।”
रमई ने लंबी साँस खींची... पैरों में कुछ गड़ा... रमई ने उखड़े तल्ले की कील ठीक से फंसाई और घिसे जूते फटफटाता बाज़ार से छोर पर स्थित मोती के गराज की तरफ़ बढ़ गया।
बाज़ार क्या, छोटा-मोटा क़स्बा ही है, शहर से बीस मील दूर, स्टेट हाईवे को दोनों तरफ़ से जकड़ता हुआ। कुछ साल पहले तक दस-पंद्रह दुकानें थी। ट्रैफ़िक भी इतना मामूली कि लोग सड़क पर ही खटिया डाल लेते थे। कीचड़-कादो के ऊपर ऐसी पक्की चिकनी जगह और कहाँ मिलती? अब तो सड़क के किनारे का कच्चा फुटपाथ या शौच-पट्टिका, जो भी कह लें, भी ईंट-गारे के जंजाल से सिकुड़ती जा रही है। लोगों को नित्य-क्रियाओं के लिए लंबा बाज़ार पार करना पड़ता है। रमई का घर नीचे है। बरसात छोड़ उसे चिंता नहीं रहती।
क़स्बा बना, तो रंगदार भी पैदा हो गए। ललन... झुन्ना...बब्बन...बालो...फेहरिस्त लंबी है... बचपन से ही बालो से डर लगता है उसे बाप की छोटी-सी परचून की दुकान से रंगदारी वसूलता बालो हर रात नशे में धुत्त आता था और जान-बूझकर नन्हे से रमई के आगे उसके बाप को बेइज़्ज़त करता था। कभी कभी माँ-बहन की गालियाँ, तो कभी लप्पड़-थप्पड़। शुरू में बाप की हालत देख रमई रोने लगता था... धीरे-धीरे आदत पड़ गई।
आज के वक़्त में बब्बन सत्ता संघर्ष में देह त्याग चुका है, झुन्ना महीनों से फ़रार है, ललन अनेक सहधर्मियों की तरह विधायक बनकर शहर में रहता है, बड़े दायरे में खेलता है, लेकिन बालो का टैक्स बरक़रार है...।
मोती के टुटही गराज में बैठा वह फटे-चिंदिआए कोकशास्त्र के पन्ने पलट रहा था कि देखा, कुछ लोग बड़ी मशक्कत से एक जीप को ठेलते हुए ला रहे है। स्टीयरिंग व्हील पर डी.एस.पी. साहेब पदासीन थे और मामा जी ‘ज़ोर लगा के हईसा’ का नाद कर रहे थे। रमई ने पुस्तक रख दी और मोती के साथ बाहर निकल आया।
“हजूर नगीच के गाँव में मौज मारने आए थे... अकेले। जीपवा बिगड़ गया है,” मामा जी रमई से फुसफुसाए, “सटने का बढ़िया मौक़ा है... कुछ-न-कुछ फ़ायदा ज़रूर मिलेगा... का समझे?” रमई बकलोल के जैसा ताकता रहा। मामा जी ने किचकिचा कर देखा। रमई ने चट से बोनट उठाया, मोती ने जीप के कल-पुर्ज़ों को टटोलना शुरू किया, मामा जी चाय-पानी की व्यवस्था में लगे और डी.सी.पी. साहेब गई रात के कच्चे अंदाज़ पर गुनगुनाते रहे, “कम-से-कम एक मर्तबा और आना ही पड़ेगा... नहीं, नहीं... सिर्फ़ एक मर्तबा क्यों?... अब एक बार से कौंची होगा जी...”
“डाइनामो बिगड़ गया है।” मोती की आवाज़ तैरती हुई आई।
“वही कहें कि साला सवेरे से ‘ठेलको’ काहे हो रहा है...”
“थोड़ा टाईम दीजिए हज़ूर, तो ऐसा बना देंगे कि सहर (शहर) में कोई का बनाएगा।” मोती मिस्त्री सीना फुलाते हुए बोला।
“जीपवा पीछे से भेजवा देंगे हज़ूर, जरीको चिंता मत कीजिए... बहुत बढ़िया चलाता है।” मामा जी ने रमई का कंधा पकड़ते हुए कहा। डी.एस.पी. साहेब के चेहरे से शिकन मिट गई।
“ठीक है, बढ़िया से बनवा-चमका कर डेरा पर लेते आओ,” उन्होंने रमई को ऑर्डर दिया और राहज़नी के अंदाज़ में गुज़रती गाड़ी को छेक कर लिफ़्ट ले ली। मामा जी भी हिदायतें देकर विदा हो लिए।
रमई ने ताज़े धुले कपड़े धीरे-से उतार कर रख दिए और कच्छे-बनियान में ही जीप की सफ़ाई में लग गया। जीप के एक-एक हिस्से को ऊपर से नीचे तक धोया, पाईप नहीं था। चांपा कल से पानी भर कर लाता था। दो घंटे तक वह जीप को माँजता रहा। बोनट खोलकर तेल से सफ़ाई की, फिर भीतरी हिस्से की झड़ाई-पोंछाई, उसके बाद सामने का शीशे पर अख़बारी काग़ज़ से रगड़ाई। आधे घंटे में मटमैला शीशा बिल्लौर-सा चमकने लगा था। जीप सुखा कर वह पॉलिश में लगा। मोमीया पॉलिश को उसने हरी जीप पर फैलाया, सूखे कपड़े से आहिस्ता-आहिस्ता रगड़ा, फिर सख़्ती से अंत में पीतल से हिस्सों पर ब्रासो का इस्तेमाल।
उसने गर्व से देखा। पूरी जीप विज्ञापन-सी चमक रही थी।
मोती भी डाइनामों ‘सेट’ कर संतुष्ट हो चला था। फिट करते-करते छः बज गए। रमई ने हाथ-मुँह धोकर कपड़े पहने, चादर ओढ़ी, जीप पर फिर कपड़ा मारा और ठेलवा कर चीप स्टार्ट की मोती के गराज से शहर उलटी तरफ़ पड़ता है। बाज़ार पार करने में जो वक़्त लगे, शहर पहुँचने में ज़्यादा से ज़्यादा पौन घंटा।
साँझ हो चली थी, पर सूरज की अंतिम छटा तक जीप को नए तेवर दे रही थी। बीच बाज़ार पहुँचते-पहुँचते उसे कानों में ठंड लगने लगी। हवा में सिहरन थी। उसने चादर से सिर ढकने की कोशिश की। छोटी-सी शाल थी। जिधर से भी लपेटता, सर खुला ही रह जाता था। उसने बग़ल वाली सीट पर नज़र दौड़ाई... एक पी कैप (अफ़सरी टोपी) पड़ी थी उसने टोपी पहन ली और भीड़ देखकर एक्सीलेटर धीमें किया।
अचानक कुछ हुआ—एक अटपटी-सी हरकत... चौराहे के सिपाही ने ज़ोर से सैल्यूट मारा और पहले से सिग्नल दिए रिक्शे वाले को लपड़ियाते हुए चिल्लाया, “अंधरा साला, देखता नहीं है रे... भोंसड़ी वाला।”
रमई की अचरजभरी निगाहें पीछे देखने वाले शीशे पर पड़ी... टोपी डी.एस.पी. की थी और उसके रंग-रूप पर खिल रही थी... और तब उसे पहली बार बोध हुआ कि कमबख़्त कत्था कंपनी की वर्दी भी खाकी रंग की थी। जूते का उखड़ा तल्ला नीचे छिपा हुआ था, कंधों के बिल्ले को ढकती चादर थी, जीप भी सरकारी और सर पर टोपी थी। अजीब-सी सनसनाहट का एहसास हुआ, जैसे रक्तचाप बढ़ गया हो, जैसे मुँह में पहले ख़ून का स्वाद लगा हो... उसने दो-तीन लंबी साँसें लीं और एक्सीलेटर दबाया। रास्ते में कई परिचितों को अचरज से मुँह फाड़ते देख उसे उस दैवी आनंद की अनुभूति हो रही थी, जो सिर्फ़ सफल प्रतिशोध में ही प्राप्त होता है। “मिज़ाज फट गया सरवन का... अब तो बप्पा का दुकान बेचवा कर भी पंद्रह हज़ार कर जुगाड़ करना है... बस्सा” उसने निश्चय के साथ सोचा। फिर सबकों जैसे अनदेखा करता, निरंकुश सत्ता के रथ की तरह जीप उड़ाता, वह बढ़ता चला गया।
बाज़ार के अंतिम छोर पर बालो दिखाई पड़ा। उसके बाप की उमर का बालो अभी तक जवान है और रंगदारी टैक्स भरता उसका बाप कब का बूढ़ा हो चला है... उसने कड़वाहट के साथ सोचा। साँझ की भीड़-भाड़ में न चाहते हुए भी उसे जीप धीमी करनी पड़ी। नज़दीक पहुँचा, तो आदतन चेहरा छिपाने के लिए झुक-सा गया। बालो ने देख लिया, तो कौन-सी लहज़ुबान इस्तेमाल कर देगा, कहना मुश्किल है...
कतराकर निकल ही चुका था बालो की नज़रें उससे टकरा गई। रमई घबरा गया। बालो का चेहरा चमका, एक कुटिल-सी मुस्कान उसके चेहरे पर तैर गई।
“अब कुछ बोलेगा...” रमई ने अपने को तैयार किया।
आश्चर्य! घोर आश्चर्य!! अचानक बालो की भंगिमा बदल गई।
“रमई बाबू, परनाम।” खींस निपोरते बालो बोला और समुद्र भर हिम्मत रमई में ठाठ मार गई।
“हँसता है रे? सार भकचोंधरा!! सीधे डंटा धाँस देंगे...” उसका बरसों से जमा ग़ुबार निकल गया। बढ़ती जीप से उसने आँखों के कोने से देखा-हाथ जोड़े बालो, स्तब्ध-सा खड़ा था।
रमई के दिल को ठंडक मिली। नए आत्मविश्वास से भरा हौलापन उसके तर उछाल लेने लगा। सब कुछ हल्का लग रहा था। पूरी दुनिया हल्की और आसान। जैसी बालो को लगती होगी या उससे बढ़कर ललन विधायक को लगती होगी। हरे-भरे मैदान सरीखी, जिधर से चाहिए, चरते चले जाइए।
रमई का बाप चिंता में पड़ा हुआ था, चमकती जीप पर टोपी पहने वह आदमी लगा कि रमई है, सिपाई में बहाली हो गया का? ससुरा आ के गोड़ नहीं छुआ। सब मेहरारू का जादू है... या फिर उसकी नज़रों का धोखा था? कुर्ते के निचले हिस्से पर थूक लगाकर चश्मा रगड़ते हुए वह घर चला, “बहू से पूछते हैं...”
“रूपईय्या जुगाड़ कर लिए कि हमसे पूछते हैं? हमारे मामू को जो करना था, करवा दिए, बाक़ी इहाँ बेटा का मोह हो, तब ना... सब अपने सरीर धंसा लेना है”...बहू की तड़तड़ाती गोली बारी के आगे बातचीत निरर्थक थी। थरथराते से वापस बाज़ार लौटे और अपने चार बित्ता के खोखे में बैठ गए।
हर रोज़ की तरह बालो पहुँचा... “आ गया रंगदारी तहसीलने... और नमकीन का पैकेट भी” रमई के बाप ने गल्ला खोला।
“नाः नाः आज हमरे तरफ़ से मुँह मीठा रमई जी को देखा... बहाली हो गया है ना... हे हे... बहनचो, बतलाए नहीं...” बालो लड्डू का ठोंगा देकर बढ़ गया।
रमई का बाप मुँह बाए देखता रहा।
शहर यहाँ से मुश्किल से दस मिनट! अचानक रफ़्तार में विघ्न पड़ा।
ऑटो वाले ने जब तक देखा नहीं था, रेस लड़ाने में मूड में था। देखने पर घबरा गया। हड़बड़ाहट में पास देते वक़्त उसका अगला हिस्सा रमई के पिछले फेंडर से सट गया।
“रूक साला, रूक” टोपी चिल्लाई, ऑटो वाला चुपचाप खड़ा हो गया। रमई ने कूद कर बंपर देखा। कुछ भी नहीं हुआ था, फिर भी रमई उबलता रहा। उसने कसकर तीन-चार झापड़ मारे और खोज-खोज कर गालियाँ दी, मज़बूत जबड़ों से ख़ुद के हाथों को चोट लग रही थी, पर स्थिर रुआँसे चेहरे पर वह निर्ममता से निशाना साधता रहा, मानो बालो की आत्मा उस पर सवार हो गई हो। टोपी का जादू सर चढ़ कर बोल रहा था।
अंत में रमई ने पाँच सौ ज़ुर्माना ठोका और थाने में बंद करने की धमकी दी, ऑटो वाले के काँपते हाथों से कुल जमा तीन सौ निकाले और रमई का पैर धर लिया। मामला फरिआया। अब बैटरी पूरी तरह चार्ज हो गई थी। डाइनामों अच्छा काम कर रहा था। जीप एक बार में ही ही घुर्रऽऽ से स्टार्ट हो गई। खेल में रोमाँच बढ़ता जा रहा था। तरह-तरह की योजनाएँ अंकुरा रही थी। उसने सलीक़े से टोपी ‘एडजस्ट’ की और दूरस्थ कुहराई शहरी रोशनियों की तरफ़ बढ़ गया।
रमई के बाप के पास परिचितों की जमात लगाने लगी। सब रमई के बारे में जानना चाहते थे।
“का बताएँ... ठीक-ठीक नहीं कह सकते...”
“अरे सार, छुपाते का हो... ई तो डंका पर बोलने का चीज़ है।”
“देखे, एकदम हैट पहने हुए था।”
“दुर्र ससुर, हैट तो सीनियर अफ़सर पहनता है।”
“नहीं भाई-हैटे था तबा”
“अब कह दो कि एस.पी ये में बहाली हो गया है... बुड़बक कहीं का!!...” किसी ने जलन के साथ कहा।
देखा तो रमई के बाप ने भी हैट ही था, पर संकोच में इतना ही बोला, “का हैट-कैट के फेरा में पड़ल हो तू लोग अरे, सीधे टोपी कहो ना”
बालो के दिए लड्डू बाँट कर वह रमई की बाट जोहने लगा।
रमई शहर में घुस गया। डी.एस.पी. साहेब का डेरा दूसरे छोर पर था। रमई को लगा, जैसे पहली बार शहर देख रहा है। एक से एक आईटम दुकानों में दिख थे। टोपी में लिपटा माथा सुरसुराया। आँखों में गिद्ध उड़ने लगे।
“औरते भी चिढ़चिढ़ाई रहती है... छूने ही नहीं देती है... कुछ सौग़ात ले चलें, तो सायद काम बन जाए...”
उसने जीप रोक दी।
बीस-पच्चीस रूपए की टिकुली-चूड़ियाँ तो मुफ़्त में ही मिल गई। छोटा दुकानदार एक डाँट में ही सीधा हो गया था। छिटपुट चीज़ें तहसील कर रमई, साड़ियाँ छाँटता रहा। अंत में तीन सौ की एक साड़ी पसंद आई-चटक लाल और भदेस-सी।
“पहन कर दुलहन लगेगी साली,” उसने सोचा। “दाम कितना दिया जाए?” उसने दुकानदार को तौला।
“सौ रूपया लगाओ-चीन्हते नहीं हो का?” रमई का साहस बढ़ता जा रहा था।
“मेम साहब से पसंद करवा लीजिए, तब न दाम तो लगता रहेगा”, दुकान वाला संकोच के साथ बोला।
‘मेम साहब!! उसकी औरत को मेम साहब कहा जा रहा है।’ रमई का सीना गज भर फैला गया... ‘सब इसी का कमाल है,’ कसती हुई वर्दी के पीछे से उसने सोचा।
“आदमी भेज देते हैं, डेरा पर ही पसंद करवा लेगा,” दुकान वाले ने जोड़ा।
“काहे? आदमी काहे भेजोगे... सार, हम पर बिस्वास नहीं है का? सीधे भीतर चल जाओगे...” रमई ग़ुस्से में बोला।
“माफ़ी सरकार... हुज़ूर तो बुरा मान गए...” दुकान वाले की नज़र रमई के पैर पर पड़ी।
“नक्सलाईट सब को खदेरते-खदेरते जूतवे फट जाता है...” रमई भाँपते हुए बोला।
“कॉफ़ी पिलाओ,” गर्मी-सी लग रही थी। रमई ने कंधों की चादर समेटते हुए कहा। दुकानदार ने ग़ौर से देखा।
लगा कि भाव कुछ ज़ियादा ही पड़ गया। कॉफ़ी के पहले समोसे भी आ गए और खीरमोहन भी।
“अब तनी जल्दी से बिलवा बना दीजिए—एक सौ में फाईनल कीजिए।”
“बस, ज़रा कॉफ़ी हो जाए सरकार!” दुकान वाला कुछ ज़ियादा ही शहद घोलते हुए बोला। रमई, टोपी की अंगुली पर नाचते हुए मुस्कुराया।
रात दस बज चुके थे, रमई का बाप ऊहापोह में फँसा, दुकान पर ही बैठा हुआ था कि किसी ने आ कर बतलाया, “बड़ा मुकुट चढ़ा कर निकले थे... चार सौ बीसी में धरा गया है...”
उधर साड़ी वाला अपने मुनीम से कह रहा था, “कच्चा था बेचारा, सौ रूपया देने के लिए जो बोला... हमको तो उसी समय डाऊट हो गया था।”
जब से टोपी उतर गई थी, रमई का माथा सुन्न पड़ गया था। ज़ुबान को भी जैसे लकवा मार गया था। इतनी देर तक पिटाई होती रही, पर मुँह से ‘उफ्’ तक नहीं निकला। ठंड की तीक्ष्णता और थप्पड़ों के दंश, उसे कुछ भी महसूस नहीं हो रहा था। यहाँ तक कि डी.एस.पी साहेब मारते-मारते बेदम हो गए, पर वह खोई हुई दृष्टि से बस, शून्य में ताक़ता रहा।
डी.एस.पी साहेब ने हाँफते हुए धूल-धूसरित नंगी देह और अँगुलियाँ छपे चेहरे की तरफ़ हिकारत से देखा, “ढेर मन बढ़ गया था रे, हरमज़ादा कहीं का!” मेज़ पर रखी टोपी उठाते वह बोले।
“हमारा कोई दोस नहीं है, मालिक! सब इसी का है... इसी का।” और अचानक लोथ की तरह पड़ा रमई चित्कारा, “पहनते मिजाजे घूम गया था, सरकार... गर्मीया बरदास्ते नहीं हुआ... हज़ूर लोग कैसे कर लेते हैं रे बाप...”
us din jab wo apne ghar se moti mistri ke garaj ki taraf chala, to use is baat ka andesha bhi nahin ho sakta tha ki din uske sath kya khel kar guzrega, waise bhi, sait nikalna aur bhagya banchna pothi patra wale panDi ji ka kaam hai, jo in dinon sirf padakankshi netaon ke gharon mein yagya karate mantr phunkte nazar aate hain, phir rami jaisi aam zindagi mein samanyatः aprakritik uchhaal ki koi gunjaish bhi nahin hoti hai
samay to uska lagatar Dhila hi chal raha tha sabse pahle to kattha kampni ki sal bhar ki Draiwri se achanak jawab mil gaya tha chori ki khair par karakhana chalta tha aur katthe ki chori par kamgaron ka kharcha pani ki wan wibhag mein ek banmanus type ka afsar aa gaya idhar chari ki khair katni kam hui, udhar kampni ne chhantni ka notis sat diya, aur bees kamgaron ke sath rami bhi gate ke bahar tha han union ki daya se ritrechment beniphit ke nam par ek wardi zarur mil gai thi bujha bujha sa ghar lauta tha aur osare mein pasar gaya tha
“Dilebhri (Draiwri) se lekar bichhauna tak, sab kaam mein kanDam! rami ki kataktahin aurat ne dohre dant gaDaye the chhantni ki khabar pachhiya si jhonk marti pahle hi pahunch gai thi “hamare mamu daru chuate hai d s pi se pura jaan pahchan hai sunte hain, sipahi mein bahali chal raha hai nahin bujhaya? i kaisan labaDdhondho se qimat juDa hai re bhagwan
rami ka pair roDe mein latapta gaya aurat ki tikhi awaz rah rah kar kanon mein bhitar tak kissऽऽऽ se goonj jati thi
mama ji ilaqe ke purane latkhor hua karte the daru ka dhandha chalu karne ke baad se kaise to thoDi pratishtha bhi pane lage the uske sath rami ne d s pi saheb ke na jane kitne chakkar kate d s pi saheb achchhi tarah jante the ki masla unki aukat ke bahar ka hai, par shikar khu chalkar aaye, to use chhoDna param murkhata hi nahin, balki pap bhi kahlayega unhonne rami ke chehre par uDti nazar Dali, mama ji se ankhon mein kuch baat ki, phir khankhar kar gala saf kiya, “salami ka dhar lo panch hazar aur final bahali, agar jo hua, to das hazar ka fees kul pandrah ka kharcha hai ” d s pi saheb nap taulkar bole the
“pandrah hazar!” rami ke hath pair phool gaye the, “usmen bhi pahla panch hazar ko koi garenti nahin?
“garenti khojta hai? tumhare life ka garenti hai re, chutiya ka nati?
mama ji ne use gureD kar dekha tha aur rami hatash wapas ghar laut aaya tha upar se durbhagy ye ki na jane kaise, parijnon mein charcha tezi se phail gai thi ki police mein rami ki bahali tay ho gai hai aur rami hi kyon, koi bhi naujawan chahe, to is awsar ka labh utha sakta hai matr panch hazar ka jokhim hai nisandeh ye mama ji ki kalakari thi tab se logon ki bebat ki puchhatachh pichhe ke ang wishesh mein mirchai sarikhi lahr jati thi isliye rami sabse kata kata sa rahne laga tha koi kaam nahin tha, so purane yar moti mistri ke motor garaj mein din guzarta tha swbhaw mein mehnati, aksar rinch pechkas bhi utha leta tha, chay namkin ke badle mein
ek saDi gali si motor, kala dhuan aur kirkirati gard uDakar chali gai khanste hue rami ne motor ko apni awaz ke dayre se bahar jane diya phir dabi zuban se gali baki aur ahista se kapDon ko jhaDa wardi terikaut ki thi aur subah ki dhoop mein chamak rahi thi daiw ichha se darji ne nap achchha kat diya tha kreej bhi talwar ki dhaar si tha kandho par kattha kampni ka billa bhi tha bus, phate purane chamraundhe jute zara bemel se the waise, jo bhi tha, rami par sab phab raha tha dekhne mein gora, lamba aur ankhen bhi halki nili bhuri si aine mein dekhta tha, to achchha lagta tha, par sare gotiya bachpan se chiDhate rahe hain use “kausankkha kahin ka—dogla sala
rami ne lambi sans khinchi pairon mein kuch gaDa rami ne ukhDe talle ki keel theek se phansai aur ghise jute phataphtata bazar se chhor par sthit moti ke garaj ki taraf baDh gaya
bazar kya, chhota mota qasba hi hai, shahr se bees meel door, state highway ko donon taraf se jakaDta hua kuch sal pahle tak das pandrah dukanen thi traffic bhi itna mamuli ki log saDak par hi khatiya Dal lete the kichaD kado ke upar aisi pakki chikni jagah aur kahan milti? ab to saDak ke kinare ka kachcha phutpath ya shauch pattika, jo bhi kah len, bhi int gare ke janjal se sikuDti ja rahi hai logon ko nity kriyaon ke liye lamba bazar par karna paDta hai rami ka ghar niche hai barsat chhoD use chinta nahin rahti
qasba bana, to rangdar bhi paida ho gaye lalan jhunna babban balo pheharist lambi hai bachpan se hi balo se Dar lagta hai use bap ki chhoti si parchun ki dukan se rangdari wasulta balo har raat nashe mein dhutt aata tha aur jaan bujhkar nannhe se rami ke aage uske bap ko beiज़ज़t karta tha kabhi kabhi man bahan ki galiyan, to kabhi lappaD thappaD shuru mein bap ki haalat dekh rami rone lagta tha dhire dhire aadat paD gai
aj ke waqt mein babban satta sangharsh mein deh tyag chuka hai, jhunna mahinon se farar hai, lalan anek sahdharmiyon ki tarah widhayak bankar shahr mein rahta hai, baDe dayre mein khelta hai, lekin balo ka tax barqarar hai
moti ke tuthi garaj mein baitha wo phate chindiae kokshastr ke panne palat raha tha ki dekha, kuch log baDi mashakkat se ek jeep ko thelte hue la rahe hai stiyring wheel par d s pi saheb padasin the aur mama ji zor laga ke haisa ka nad kar rahe the rami ne pustak rakh di aur moti ke sath bahar nikal aaya
“hajur nagich ke ganw mein mauj marne aaye the akele jipwa bigaD gaya hai,” mama ji rami se phusaphusaye, “satne ka baDhiya mauqa hai kuch na kuch fayda zarur milega ka samjhe? rami baklol ke jaisa takta raha mama ji ne kichakicha kar dekha rami ne chat se bonat uthaya, moti ne jeep ke kal purzon ko tatolna shuru kiya, mama ji chay pani wyawastha mein lage aur d si pi saheb gai raat ke kachche andaz par gungunate rahe, “kam se kam ek martaba aur aana hi paDega nahin, nahin sirf ek martaba kyon? ab ek bar se kaunchi hoga ji ”
“Dainamo bigaD gaya hai moti ki awaz tairti hui i
wahi kahen ki sala sawere se thelko kahe ho raha hai
“thoDa taim dijiye hazur, to aisa bana denge ki sahar (shahr) mein koi ka banayega moti mistri sina phulate hue bola
“jipwa pichhe se bhejwa denge hazur, jariko chinta mat kijiye bahut baDhiya chalata hai ” mama ji ne rami ka kandha pakaDte hue kaha d s pi saheb ke chehre se shikan mit gai
“theek hai, baDhiya se banwa chamka kar Dera par lete aao,” unhonne rami ko order diya aur rahzani ke andaz mein guzarti gaDi ko chhek kar lift le li mama ji bhi hidayten dekar wida ho liye
rami ne taze dhule kapDe dhire se utar kar rakh diye aur kachchhe baniyan mein hi jeep ki safai mein lag gaya jeep ke ek ek hisse ko upar se niche tak dhoya, paip nahin tha champa kal se pani bhar kar lata tha do ghante tak wo jeep ko manjata raha bonat kholkar tel se safai ki, phir bhitari hisse ki jhaDai ponchhai, uske baad samne ka shishe par akhbari kaghaz se ragDai aadhe ghante mein matmaila shisha billaur sa chamakne laga tha jeep sukha kar wo polish mein laga momiya polish ko usne hari jeep par phailaya, sukhe kapDe se ahista ahista ragDa, phir sakhti se ant mein pital se hisson par braso ka istemal
usne garw se dekha puri jeep wigyapan si chamak rahi thi
moti bhi Dainamon set kar santusht ho chala tha phit karte karte chhः baj gaye rami ne hath munh dhokar kapDe pahne, chadar oDhi, jeep par phir kapDa mara aur thelwa kar cheep start ki moti ke garaj se shahr ulti taraf paDta hai bazar par karne mein jo waqt lage, shahr pahunchne mein ziyada se ziyada paun ghanta
sanjh ho chali thi, par suraj ki antim chhata tak jeep ko nae tewar de rahi thi beech bazar pahunchte pahunchte use kanon mein thanD lagne lagi hawa mein siharan thi usne chadar se sir dhakne ki koshish ki chhoti si shaal thi jidhar se bhi lapetta, sar khula hi rah jata tha usne baghal wali seat par nazar dauDai ek pi kaip (afsari topi) paDi thi usne topi pahan li aur bheeD dekhkar eksiletar dhimen kiya
achanak kuch hua—ek atapti si harkat chaurahe ke sipahi ne zor se sailyut mara aur pahle se signal diye rikshe wale ko lapaDiyate hue chillaya, “andhra sala, dekhta nahin hai re bhonsDi wala ”
rami ki acharajabhri nigahen pichhe dekhne wale shishe par paDi topi d s pi ki thi aur uske rang roop par khil rahi thi aur tab use pahli bar bodh hua ki kambakht kattha kampni ki wardi bhi khaki rang ki thi jute ka ukhDa talla niche chhipa hua tha, kandhon ke bille ko Dhakti chadar thi, jeep bhi sarkari aur sar par topi thi ajib si sansanahat ka ehsas hua, jaise raktachap baDh gaya ho, jaise munh mein pahle khoon ka swad laga ho usne do teen lambi sansen leen aur eksiletar dabaya raste mein kai parichiton ko achraj se munh phaDte dekh use us daiwi anand ki anubhuti ho rahi thi, jo sirf saphal pratishodh mein hi prapt hota hai mizaj phat gaya sarwan ka ab to bappa ka dukan bechwa kar bhi pandrah hazar kar jugaD karna hai bassa usne nishchay ke sath socha phir sabkon jaise andekha karta, nirankush satta ke rath ki tarah jeep uData, wo baDhta chala gaya
bazar ke antim chhor par balo dikhai paDa uske bap ki umar ka balo abhi tak jawan hai aur rangdari tax bharta uska bap kab ka buDha ho chala hai usne kaDwahat ke sath socha sanjh ki bheeD bhaD mein na chahte hue bhi use jeep dhimi karni paDi nazdik pahuncha, to adatan chehra chhipane ke liye jhuk sa gaya balo ne dekh liya, to kaun si lahazuban istemal kar dega, kahna mushkil hai
katrakar nikal hi chuka tha balo ki nazren usse takra gai rami ghabra gaya balo ka chehra chamka, ek kutil si muskan uske chehre par tair gai
“ab kuch bolega ” rami ne apne ko taiyar kiya
ashchary! ghor ashchary!! achanak balo ki bhangima badal gai
“rami babu, parnama” kheens niporte balo bola aur samudr bhar himmat rami mein thath mar gai
hansta hai re? sar bhakchondhra!! sidhe Danta dhans denge ” uska barson se jama ghubar nikal gaya baDhti jeep se usne ankhon ke kone se dekha hath joDe balo, stabdh sa khaDa tha
rami ke dil ko thanDak mili nae atmawishwas se bhara haulapan uske tar uchhaal lene laga sab kuch halka lag raha tha puri duniya halki aur asan jaisi balo ko lagti hogi ya usse baDhkar lalan widhayak ko lagti hogi hare bhare maidan sarikhi, jidhar se chahiye, charte chale jaiye
rami ka bap chinta mein paDa hua tha, chamakti jeep par topi pahne wo adami laga ki rami hai, sipai mein bahali ho gaya ka? sasura aa ke goD nahin chhua sab mehraru ka jadu hai ya phir uski nazron ka dhokha tha? kurte ke nichle hisse par thook lagakar chashma ragaDte hue wo ghar chala, “bahu se puchhte hain ”
“rupiyya jugaD kar liye ki hamse puchhte hain? hamare mamu ko jo karna tha, karwa diye, baqi ihan beta ka moh ho, tab na sab apne sarir dhansa lena hai” bahu ki taDatDati goli bari ke aage batachit nirarthak thi thartharate se wapas bazar laute aur apne chaar bitta ke khokhe mein baith gaye
har roz ki tarah balo pahuncha a gaya rangdari tahsilne aur namkin ka packet bhee” rami ke bap ne galla khola
“naः naः aaj hamre taraf se munh mitha rami ji ko dekha bahali ho gaya hai na he he bahancho, batlaye nahin ” balo laDDu ka thonga dekar baDh gaya
rami ka bap munh baye dekhta raha
shahr yahan se mushkil se das minat! achanak raftar mein wighn paDa
ऑto wale ne jab tak dekha nahin tha, res laDane mein mood mein tha dekhne par ghabra gaya haDbaDahat mein pas dete waqt uska agla hissa rami ke pichhle phenDar se sat gaya
“rook sala, rook” topi chillai, ऑto wala chupchap khaDa ho gaya rami ne kood kar bumper dekha kuch bhi nahin hua tha, phir bhi rami ubalta raha usne kaskar teen chaar jhapaD mare aur khoj khoj kar galiyan di, mazbut jabDon se khu ke hathon ko chot lag rahi thi, par sthir ruanse chehre par wo nirmamta se nishana sadhta raha, mano balo ki aatma us par sawar ho gai ho topi ka jadu sar chaDh kar bol raha tha
ant mein rami ne panch sau jurmana thoka aur thane mein band karne ki dhamki di, ऑto wale ke kanpte hathon se kul jama teen sau nikale aur rami ka pair dhar liya mamla phariaya ab baitari puri tarah charge ho gai thi Dainamon achchha kaam kar raha tha jeep ek bar mein hi hi ghurrऽऽ se start ho gai khel mein romanch baDhta ja raha tha tarah tarah ki yojnayen ankura rahi thi usne saliqe se topi ‘eDjast ki aur durasth kuhrai shahri raushaniyon ki taraf baDh gaya
rami ke bap ke pas parichiton ki jamat lagane lagi sab rami ke bare mein janna chahte the
“ka batayen theek theek nahin kah sakte
“are sar, chhupate ka ho i to Danka par bolne ka cheez hai
“dekhe, ekdam hat pahne hue tha
“durr sasur, hat to siniyar afsar pahanta hai
nahin bhai haite tha taba
“ab kah do ki s pi ye mein bahali ho gaya hai buDbak kahin ka!! ” kisi ne jalan ke sath kaha
dekha to rami ke bap ne bhi hat hi tha, par sankoch mein itna hi bola, “ka hat kait ke phera mein paDal ho tu log are, sidhe topi kaho na
balo ke diye laDDu bant kar wo rami ki baat johne laga
rami shahr mein ghus gaya d s pi saheb ka Dera dusre chhor par tha rami ko laga, jaise pahli bar shahr dekh raha hai ek se ek aitam dukanon mein dikh the topi mein lipta matha surasuraya ankhon mein giddh uDne lage
“aurte bhi chiDhachiDhai rahti hai chhune hi nahin deti hai kuch saughat le chalen, to sayad kaam ban jaye
usne jeep rok di
bees pachchis rupe ki tikuli chuDiyan to muft mein hi mil gai chhota dukandar ek Dant mein hi sidha ho gaya tha chhitput chizen tahsil kar rami, saDiyan chhantata raha ant mein teen sau ki ek saDi pasand i chatak lal aur bhades si
“pahan kar dulhan lagegi sali,” usne socha “dam kitna diya jaye? usne dukandar ko taula
sau rupya lagao chinhte nahin ho ka? rami ka sahas baDhta ja raha tha
“mem sahab se pasand karwa lijiye, tab na dam to lagta rahega”, dukan wala sankoch ke sath bola
mem sahab!! uski aurat ko mem sahab kaha ja raha hai rami ka sina gaj bhar phaila gaya sab isi ka kamal hai, kasti hui wardi ke pichhe se usne socha
“adami bhej dete hain, Dera par hi pasand karwa lega,” dukan wale ne joDa
kahe? adami kahe bhejoge sar, hum par biswas nahin hai ka? sidhe bhitar chal jaoge ” rami ghusse mein bola
“mafi sarkar huzur to bura man gaye ” dukan wale ki nazar rami ke pair par paDi
“nakslait sab ko khaderte khaderte jutwe phat jata hai ” rami bhanpte hue bola
coffe pilao,” garmi si lag rahi thi rami ne kandhon ki chadar samette hue kaha dukandar ne ghaur se dekha
laga ki bhaw kuch ziyada hi paD gaya coffe ke pahle samose bhi aa gaye aur khirmohan bhi
“ab tani jaldi se bilwa bana dijiye—ek sau mein phainal kijiye
bus, zara coffe ho jaye sarkar!” dukan wala kuch ziyada hi shahd gholte hue bola rami, topi ki anguli par nachte hue muskuraya
raat das baj chuke the, rami ka bap uhapoh mein phansa, dukan par hi baitha hua tha ki kisi ne aa kar batlaya, “baDa mukut chaDha kar nikle the chaar sau bisi mein dhara gaya hai ”
udhar saDi wala apne munim se kah raha tha, “kachcha tha bechara, sau rupya dene ke liye jo bola hamko to usi samay Daut ho gaya tha ”
jab se topi utar gai thi, rami ka matha sunn paD gaya tha zuban ko bhi jaise lakwa mar gaya tha itni der tak pitai hoti rahi, par munh se uph tak nahin nikla thanD ki tikshnata aur thappDon ke dansh, use kuch bhi mahsus nahin ho raha tha yahan tak ki d s pi saheb marte marte bedam ho gaye, par wo khoi hui drishti se bus, shunya mein taqta raha
d s pi saheb ne hanphate hue dhool dhusarit nangi deh aur anguliyan chhape chehre ki taraf hikarat se dekha, “Dher man baDh gaya tha re, haramzada kahin ka! mez par rakhi topi uthate wo bole
hamara koi dos nahin hai, malik! sab isi ka hai isi ka ” aur achanak loth ki tarah paDa rami chitkara, “pahante mijaje ghoom gaya tha, sarkar garmiya bardaste nahin hua hazur log kaise kar lete hain re bap
us din jab wo apne ghar se moti mistri ke garaj ki taraf chala, to use is baat ka andesha bhi nahin ho sakta tha ki din uske sath kya khel kar guzrega, waise bhi, sait nikalna aur bhagya banchna pothi patra wale panDi ji ka kaam hai, jo in dinon sirf padakankshi netaon ke gharon mein yagya karate mantr phunkte nazar aate hain, phir rami jaisi aam zindagi mein samanyatः aprakritik uchhaal ki koi gunjaish bhi nahin hoti hai
samay to uska lagatar Dhila hi chal raha tha sabse pahle to kattha kampni ki sal bhar ki Draiwri se achanak jawab mil gaya tha chori ki khair par karakhana chalta tha aur katthe ki chori par kamgaron ka kharcha pani ki wan wibhag mein ek banmanus type ka afsar aa gaya idhar chari ki khair katni kam hui, udhar kampni ne chhantni ka notis sat diya, aur bees kamgaron ke sath rami bhi gate ke bahar tha han union ki daya se ritrechment beniphit ke nam par ek wardi zarur mil gai thi bujha bujha sa ghar lauta tha aur osare mein pasar gaya tha
“Dilebhri (Draiwri) se lekar bichhauna tak, sab kaam mein kanDam! rami ki kataktahin aurat ne dohre dant gaDaye the chhantni ki khabar pachhiya si jhonk marti pahle hi pahunch gai thi “hamare mamu daru chuate hai d s pi se pura jaan pahchan hai sunte hain, sipahi mein bahali chal raha hai nahin bujhaya? i kaisan labaDdhondho se qimat juDa hai re bhagwan
rami ka pair roDe mein latapta gaya aurat ki tikhi awaz rah rah kar kanon mein bhitar tak kissऽऽऽ se goonj jati thi
mama ji ilaqe ke purane latkhor hua karte the daru ka dhandha chalu karne ke baad se kaise to thoDi pratishtha bhi pane lage the uske sath rami ne d s pi saheb ke na jane kitne chakkar kate d s pi saheb achchhi tarah jante the ki masla unki aukat ke bahar ka hai, par shikar khu chalkar aaye, to use chhoDna param murkhata hi nahin, balki pap bhi kahlayega unhonne rami ke chehre par uDti nazar Dali, mama ji se ankhon mein kuch baat ki, phir khankhar kar gala saf kiya, “salami ka dhar lo panch hazar aur final bahali, agar jo hua, to das hazar ka fees kul pandrah ka kharcha hai ” d s pi saheb nap taulkar bole the
“pandrah hazar!” rami ke hath pair phool gaye the, “usmen bhi pahla panch hazar ko koi garenti nahin?
“garenti khojta hai? tumhare life ka garenti hai re, chutiya ka nati?
mama ji ne use gureD kar dekha tha aur rami hatash wapas ghar laut aaya tha upar se durbhagy ye ki na jane kaise, parijnon mein charcha tezi se phail gai thi ki police mein rami ki bahali tay ho gai hai aur rami hi kyon, koi bhi naujawan chahe, to is awsar ka labh utha sakta hai matr panch hazar ka jokhim hai nisandeh ye mama ji ki kalakari thi tab se logon ki bebat ki puchhatachh pichhe ke ang wishesh mein mirchai sarikhi lahr jati thi isliye rami sabse kata kata sa rahne laga tha koi kaam nahin tha, so purane yar moti mistri ke motor garaj mein din guzarta tha swbhaw mein mehnati, aksar rinch pechkas bhi utha leta tha, chay namkin ke badle mein
ek saDi gali si motor, kala dhuan aur kirkirati gard uDakar chali gai khanste hue rami ne motor ko apni awaz ke dayre se bahar jane diya phir dabi zuban se gali baki aur ahista se kapDon ko jhaDa wardi terikaut ki thi aur subah ki dhoop mein chamak rahi thi daiw ichha se darji ne nap achchha kat diya tha kreej bhi talwar ki dhaar si tha kandho par kattha kampni ka billa bhi tha bus, phate purane chamraundhe jute zara bemel se the waise, jo bhi tha, rami par sab phab raha tha dekhne mein gora, lamba aur ankhen bhi halki nili bhuri si aine mein dekhta tha, to achchha lagta tha, par sare gotiya bachpan se chiDhate rahe hain use “kausankkha kahin ka—dogla sala
rami ne lambi sans khinchi pairon mein kuch gaDa rami ne ukhDe talle ki keel theek se phansai aur ghise jute phataphtata bazar se chhor par sthit moti ke garaj ki taraf baDh gaya
bazar kya, chhota mota qasba hi hai, shahr se bees meel door, state highway ko donon taraf se jakaDta hua kuch sal pahle tak das pandrah dukanen thi traffic bhi itna mamuli ki log saDak par hi khatiya Dal lete the kichaD kado ke upar aisi pakki chikni jagah aur kahan milti? ab to saDak ke kinare ka kachcha phutpath ya shauch pattika, jo bhi kah len, bhi int gare ke janjal se sikuDti ja rahi hai logon ko nity kriyaon ke liye lamba bazar par karna paDta hai rami ka ghar niche hai barsat chhoD use chinta nahin rahti
qasba bana, to rangdar bhi paida ho gaye lalan jhunna babban balo pheharist lambi hai bachpan se hi balo se Dar lagta hai use bap ki chhoti si parchun ki dukan se rangdari wasulta balo har raat nashe mein dhutt aata tha aur jaan bujhkar nannhe se rami ke aage uske bap ko beiज़ज़t karta tha kabhi kabhi man bahan ki galiyan, to kabhi lappaD thappaD shuru mein bap ki haalat dekh rami rone lagta tha dhire dhire aadat paD gai
aj ke waqt mein babban satta sangharsh mein deh tyag chuka hai, jhunna mahinon se farar hai, lalan anek sahdharmiyon ki tarah widhayak bankar shahr mein rahta hai, baDe dayre mein khelta hai, lekin balo ka tax barqarar hai
moti ke tuthi garaj mein baitha wo phate chindiae kokshastr ke panne palat raha tha ki dekha, kuch log baDi mashakkat se ek jeep ko thelte hue la rahe hai stiyring wheel par d s pi saheb padasin the aur mama ji zor laga ke haisa ka nad kar rahe the rami ne pustak rakh di aur moti ke sath bahar nikal aaya
“hajur nagich ke ganw mein mauj marne aaye the akele jipwa bigaD gaya hai,” mama ji rami se phusaphusaye, “satne ka baDhiya mauqa hai kuch na kuch fayda zarur milega ka samjhe? rami baklol ke jaisa takta raha mama ji ne kichakicha kar dekha rami ne chat se bonat uthaya, moti ne jeep ke kal purzon ko tatolna shuru kiya, mama ji chay pani wyawastha mein lage aur d si pi saheb gai raat ke kachche andaz par gungunate rahe, “kam se kam ek martaba aur aana hi paDega nahin, nahin sirf ek martaba kyon? ab ek bar se kaunchi hoga ji ”
“Dainamo bigaD gaya hai moti ki awaz tairti hui i
wahi kahen ki sala sawere se thelko kahe ho raha hai
“thoDa taim dijiye hazur, to aisa bana denge ki sahar (shahr) mein koi ka banayega moti mistri sina phulate hue bola
“jipwa pichhe se bhejwa denge hazur, jariko chinta mat kijiye bahut baDhiya chalata hai ” mama ji ne rami ka kandha pakaDte hue kaha d s pi saheb ke chehre se shikan mit gai
“theek hai, baDhiya se banwa chamka kar Dera par lete aao,” unhonne rami ko order diya aur rahzani ke andaz mein guzarti gaDi ko chhek kar lift le li mama ji bhi hidayten dekar wida ho liye
rami ne taze dhule kapDe dhire se utar kar rakh diye aur kachchhe baniyan mein hi jeep ki safai mein lag gaya jeep ke ek ek hisse ko upar se niche tak dhoya, paip nahin tha champa kal se pani bhar kar lata tha do ghante tak wo jeep ko manjata raha bonat kholkar tel se safai ki, phir bhitari hisse ki jhaDai ponchhai, uske baad samne ka shishe par akhbari kaghaz se ragDai aadhe ghante mein matmaila shisha billaur sa chamakne laga tha jeep sukha kar wo polish mein laga momiya polish ko usne hari jeep par phailaya, sukhe kapDe se ahista ahista ragDa, phir sakhti se ant mein pital se hisson par braso ka istemal
usne garw se dekha puri jeep wigyapan si chamak rahi thi
moti bhi Dainamon set kar santusht ho chala tha phit karte karte chhः baj gaye rami ne hath munh dhokar kapDe pahne, chadar oDhi, jeep par phir kapDa mara aur thelwa kar cheep start ki moti ke garaj se shahr ulti taraf paDta hai bazar par karne mein jo waqt lage, shahr pahunchne mein ziyada se ziyada paun ghanta
sanjh ho chali thi, par suraj ki antim chhata tak jeep ko nae tewar de rahi thi beech bazar pahunchte pahunchte use kanon mein thanD lagne lagi hawa mein siharan thi usne chadar se sir dhakne ki koshish ki chhoti si shaal thi jidhar se bhi lapetta, sar khula hi rah jata tha usne baghal wali seat par nazar dauDai ek pi kaip (afsari topi) paDi thi usne topi pahan li aur bheeD dekhkar eksiletar dhimen kiya
achanak kuch hua—ek atapti si harkat chaurahe ke sipahi ne zor se sailyut mara aur pahle se signal diye rikshe wale ko lapaDiyate hue chillaya, “andhra sala, dekhta nahin hai re bhonsDi wala ”
rami ki acharajabhri nigahen pichhe dekhne wale shishe par paDi topi d s pi ki thi aur uske rang roop par khil rahi thi aur tab use pahli bar bodh hua ki kambakht kattha kampni ki wardi bhi khaki rang ki thi jute ka ukhDa talla niche chhipa hua tha, kandhon ke bille ko Dhakti chadar thi, jeep bhi sarkari aur sar par topi thi ajib si sansanahat ka ehsas hua, jaise raktachap baDh gaya ho, jaise munh mein pahle khoon ka swad laga ho usne do teen lambi sansen leen aur eksiletar dabaya raste mein kai parichiton ko achraj se munh phaDte dekh use us daiwi anand ki anubhuti ho rahi thi, jo sirf saphal pratishodh mein hi prapt hota hai mizaj phat gaya sarwan ka ab to bappa ka dukan bechwa kar bhi pandrah hazar kar jugaD karna hai bassa usne nishchay ke sath socha phir sabkon jaise andekha karta, nirankush satta ke rath ki tarah jeep uData, wo baDhta chala gaya
bazar ke antim chhor par balo dikhai paDa uske bap ki umar ka balo abhi tak jawan hai aur rangdari tax bharta uska bap kab ka buDha ho chala hai usne kaDwahat ke sath socha sanjh ki bheeD bhaD mein na chahte hue bhi use jeep dhimi karni paDi nazdik pahuncha, to adatan chehra chhipane ke liye jhuk sa gaya balo ne dekh liya, to kaun si lahazuban istemal kar dega, kahna mushkil hai
katrakar nikal hi chuka tha balo ki nazren usse takra gai rami ghabra gaya balo ka chehra chamka, ek kutil si muskan uske chehre par tair gai
“ab kuch bolega ” rami ne apne ko taiyar kiya
ashchary! ghor ashchary!! achanak balo ki bhangima badal gai
“rami babu, parnama” kheens niporte balo bola aur samudr bhar himmat rami mein thath mar gai
hansta hai re? sar bhakchondhra!! sidhe Danta dhans denge ” uska barson se jama ghubar nikal gaya baDhti jeep se usne ankhon ke kone se dekha hath joDe balo, stabdh sa khaDa tha
rami ke dil ko thanDak mili nae atmawishwas se bhara haulapan uske tar uchhaal lene laga sab kuch halka lag raha tha puri duniya halki aur asan jaisi balo ko lagti hogi ya usse baDhkar lalan widhayak ko lagti hogi hare bhare maidan sarikhi, jidhar se chahiye, charte chale jaiye
rami ka bap chinta mein paDa hua tha, chamakti jeep par topi pahne wo adami laga ki rami hai, sipai mein bahali ho gaya ka? sasura aa ke goD nahin chhua sab mehraru ka jadu hai ya phir uski nazron ka dhokha tha? kurte ke nichle hisse par thook lagakar chashma ragaDte hue wo ghar chala, “bahu se puchhte hain ”
“rupiyya jugaD kar liye ki hamse puchhte hain? hamare mamu ko jo karna tha, karwa diye, baqi ihan beta ka moh ho, tab na sab apne sarir dhansa lena hai” bahu ki taDatDati goli bari ke aage batachit nirarthak thi thartharate se wapas bazar laute aur apne chaar bitta ke khokhe mein baith gaye
har roz ki tarah balo pahuncha a gaya rangdari tahsilne aur namkin ka packet bhee” rami ke bap ne galla khola
“naः naः aaj hamre taraf se munh mitha rami ji ko dekha bahali ho gaya hai na he he bahancho, batlaye nahin ” balo laDDu ka thonga dekar baDh gaya
rami ka bap munh baye dekhta raha
shahr yahan se mushkil se das minat! achanak raftar mein wighn paDa
ऑto wale ne jab tak dekha nahin tha, res laDane mein mood mein tha dekhne par ghabra gaya haDbaDahat mein pas dete waqt uska agla hissa rami ke pichhle phenDar se sat gaya
“rook sala, rook” topi chillai, ऑto wala chupchap khaDa ho gaya rami ne kood kar bumper dekha kuch bhi nahin hua tha, phir bhi rami ubalta raha usne kaskar teen chaar jhapaD mare aur khoj khoj kar galiyan di, mazbut jabDon se khu ke hathon ko chot lag rahi thi, par sthir ruanse chehre par wo nirmamta se nishana sadhta raha, mano balo ki aatma us par sawar ho gai ho topi ka jadu sar chaDh kar bol raha tha
ant mein rami ne panch sau jurmana thoka aur thane mein band karne ki dhamki di, ऑto wale ke kanpte hathon se kul jama teen sau nikale aur rami ka pair dhar liya mamla phariaya ab baitari puri tarah charge ho gai thi Dainamon achchha kaam kar raha tha jeep ek bar mein hi hi ghurrऽऽ se start ho gai khel mein romanch baDhta ja raha tha tarah tarah ki yojnayen ankura rahi thi usne saliqe se topi ‘eDjast ki aur durasth kuhrai shahri raushaniyon ki taraf baDh gaya
rami ke bap ke pas parichiton ki jamat lagane lagi sab rami ke bare mein janna chahte the
“ka batayen theek theek nahin kah sakte
“are sar, chhupate ka ho i to Danka par bolne ka cheez hai
“dekhe, ekdam hat pahne hue tha
“durr sasur, hat to siniyar afsar pahanta hai
nahin bhai haite tha taba
“ab kah do ki s pi ye mein bahali ho gaya hai buDbak kahin ka!! ” kisi ne jalan ke sath kaha
dekha to rami ke bap ne bhi hat hi tha, par sankoch mein itna hi bola, “ka hat kait ke phera mein paDal ho tu log are, sidhe topi kaho na
balo ke diye laDDu bant kar wo rami ki baat johne laga
rami shahr mein ghus gaya d s pi saheb ka Dera dusre chhor par tha rami ko laga, jaise pahli bar shahr dekh raha hai ek se ek aitam dukanon mein dikh the topi mein lipta matha surasuraya ankhon mein giddh uDne lage
“aurte bhi chiDhachiDhai rahti hai chhune hi nahin deti hai kuch saughat le chalen, to sayad kaam ban jaye
usne jeep rok di
bees pachchis rupe ki tikuli chuDiyan to muft mein hi mil gai chhota dukandar ek Dant mein hi sidha ho gaya tha chhitput chizen tahsil kar rami, saDiyan chhantata raha ant mein teen sau ki ek saDi pasand i chatak lal aur bhades si
“pahan kar dulhan lagegi sali,” usne socha “dam kitna diya jaye? usne dukandar ko taula
sau rupya lagao chinhte nahin ho ka? rami ka sahas baDhta ja raha tha
“mem sahab se pasand karwa lijiye, tab na dam to lagta rahega”, dukan wala sankoch ke sath bola
mem sahab!! uski aurat ko mem sahab kaha ja raha hai rami ka sina gaj bhar phaila gaya sab isi ka kamal hai, kasti hui wardi ke pichhe se usne socha
“adami bhej dete hain, Dera par hi pasand karwa lega,” dukan wale ne joDa
kahe? adami kahe bhejoge sar, hum par biswas nahin hai ka? sidhe bhitar chal jaoge ” rami ghusse mein bola
“mafi sarkar huzur to bura man gaye ” dukan wale ki nazar rami ke pair par paDi
“nakslait sab ko khaderte khaderte jutwe phat jata hai ” rami bhanpte hue bola
coffe pilao,” garmi si lag rahi thi rami ne kandhon ki chadar samette hue kaha dukandar ne ghaur se dekha
laga ki bhaw kuch ziyada hi paD gaya coffe ke pahle samose bhi aa gaye aur khirmohan bhi
“ab tani jaldi se bilwa bana dijiye—ek sau mein phainal kijiye
bus, zara coffe ho jaye sarkar!” dukan wala kuch ziyada hi shahd gholte hue bola rami, topi ki anguli par nachte hue muskuraya
raat das baj chuke the, rami ka bap uhapoh mein phansa, dukan par hi baitha hua tha ki kisi ne aa kar batlaya, “baDa mukut chaDha kar nikle the chaar sau bisi mein dhara gaya hai ”
udhar saDi wala apne munim se kah raha tha, “kachcha tha bechara, sau rupya dene ke liye jo bola hamko to usi samay Daut ho gaya tha ”
jab se topi utar gai thi, rami ka matha sunn paD gaya tha zuban ko bhi jaise lakwa mar gaya tha itni der tak pitai hoti rahi, par munh se uph tak nahin nikla thanD ki tikshnata aur thappDon ke dansh, use kuch bhi mahsus nahin ho raha tha yahan tak ki d s pi saheb marte marte bedam ho gaye, par wo khoi hui drishti se bus, shunya mein taqta raha
d s pi saheb ne hanphate hue dhool dhusarit nangi deh aur anguliyan chhape chehre ki taraf hikarat se dekha, “Dher man baDh gaya tha re, haramzada kahin ka! mez par rakhi topi uthate wo bole
hamara koi dos nahin hai, malik! sab isi ka hai isi ka ” aur achanak loth ki tarah paDa rami chitkara, “pahante mijaje ghoom gaya tha, sarkar garmiya bardaste nahin hua hazur log kaise kar lete hain re bap
स्रोत :
पुस्तक : श्रेष्ठ हिन्दी कहानियाँ (1990-2000) (पृष्ठ 210)
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।