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प्रियतम की हथेली के प्रति
बेसुध !ज्यों सोता है नवजात शिशु पिता की थपकियों की लय में निश्चिंत
बाबुषा कोहली
जाड़े की साँझ
लगता कभी कि गर्जन करता कोई जंगल का हैवानऔर कभी ऐसा लगता है रोता कोई शिशु नादान।
अलेक्सांद्र पूश्किन
हत्यारे की आँख का आँसू और तुम्हारा चुंबन
जी चाहता है ताक़ीद कर दूँ तमाम कोखों कोकि मत जनना कोई शिशु जब तक