जर्मन पादरी पास्टर निमोलर को याद करते हुए
सबसे पहले वे मेरी कविता के लिए आए,
यह सोचकर कि कोई आत्ममुग्ध न कह दे
मैंने आदर किया,
उनके लिए आसन भी बिछाए।
फिर वे कविता की विधा के लिए आए,
मैं एक ख़ारिज आदमी
उन्हें रोकने में कितना दाख़िल हो सकता था
कोई मुझे बतलाए?
और फिर उनके हाथों का ख़ारिजी फंदा
साहित्य की गर्दन पर कसता रहा,
मैं बेबस सिवान बदर
डँडार पर खड़ा पैमाइश देखता रहा।
अब काम पूरा हुआ समझना मेरी भूल थी,
उनके ख़ारिजी अश्वमेघ का घोड़ा
सारी रचनात्मक विधाओं को एक-एक कर रौंदता रहा
चहुँदिस ग़ुबार था, धूल थी।
सोचता हूँ, उस ‘शिशु ख़ारिज’ के सामने
तन कर खड़ा हो गया होता,
तो उसी पल उसी जगह
वही ख़ारिज हो गया होता।
- रचनाकार : रामजी तिवारी
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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